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डेली न्यूज़

  • 29 Sep, 2021
  • 44 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आतंकवाद पर अमेरिकी कॉन्ग्रेस की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

क्वाड, फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स

मेन्स के लिये:

आतंकवाद की चुनौतियाँ एवं समाधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आतंकवाद पर अमेरिकी कॉन्ग्रेसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान विदेशी आतंकवादी संगठन (Foreign Terrorist Organisation- FTO) के रूप में नामित कम-से-कम 12 समूहों का घर है।

  • क्वाड समिट (Quad summit), 2021 में अमेरिकी कॉन्ग्रेस के द्विदलीय अनुसंधान विंग द्वारा जारी “पाकिस्तान में आतंकवादी और अन्य मिलिटेंट ग्रुप्स” नामक रिपोर्ट।
  • इससे पहले फरवरी 2021 में फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे लिस्ट पर बनाए रखने का फैसला किया था।

विदेशी आतंकवादी संगठन

  • एफटीओ विदेशी संगठन हैं जिन्हें यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा नामित किया जाता है। यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आतंकवादी गतिविधियों तथा समूहों पर आतंकवाद के कारोबार से बाहर निकलने के लिये दबाव बनाने हेतु समर्थन को कम करने का एक प्रभावी साधन है।

प्रमुख बिंदु

  • आतंकवाद के लिये पाकिस्तान सुरक्षित पनाहगाह:
    • पाकिस्तान कुछ क्षेत्रीय आतंकवादी समूहों के लिये एक सुरक्षित पनाहगाह के रूप में काम कर रहा है और इन समूहों को अफगानिस्तान के साथ-साथ भारत को लक्षित करने की अनुमति दी है।
    • अफगानिस्तान, भारत और अमेरिका सहित पाकिस्तान के पड़ोसियों ने लंबे समय से इस्लामाबाद पर आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह तथा समर्थन प्रदान करने का आरोप लगाया है।
  • आतंकवादी समूहों का वर्गीकरण:
    • पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी समूहों को मोटे तौर पर पाँच प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
      • विश्व-उन्मुख
      • अफगानिस्तान उन्मुख
      • भारत और कश्मीर उन्मुख
      • घरेलू रूप से उन्मुख
      • सांप्रदायिक (शिया विरोधी)।

पाकिस्तान के प्रमुख आतंकवादी संगठन 

नाम

गठन

FTO के रूप में नामित

परिचय

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के अनुसार भारत में स्थिति

लश्कर-ए-तैयबा (LET)

1980 के दशक के अंत में

2001

यह मुंबई में वर्ष 2008 के प्रमुख हमलों के साथ- साथ कई अन्य हाई-प्रोफाइल हमलों के लिये उत्तरदायी था।



प्रतिबंधित

जैश-ए-मोहम्मद (JEM)

2000

2001

लश्कर-ए-तैयबा के साथ यह अन्य हमलों के अलावा भारतीय संसद पर वर्ष 2001 में हुए हमले के लिये उत्तरदायी था। जैश-ए-मोहम्मद ने संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा की है।



प्रतिबंधित

हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी (HUJI)

1980

2010

प्रारंभ में इसका गठन सोवियत सेना से लड़ने के लिये किया गया था, हालाँकि वर्ष 1989 के बाद इसने भारत की ओर अपने प्रयासों को पुनर्निर्देशित किया, साथ ही इसने अफगान तालिबान को लड़ाकों की भी आपूर्ति की है।


हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी (HUJI) वर्तमान में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और, बांग्लादेश में सक्रिय है और कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मांग करता है।



प्रतिबंधित

हरकत-उल-मुजाहिदीन (HUM)

1985

1997

यह मुख्य रूप से पाक-अधिकृत कश्मीर और कुछ पाकिस्तानी शहरों से संचालित होता है।



प्रतिबंधित

हिज़बुल मुजाहिद्दीन



1989

2017

यह पाकिस्तान के सबसे बड़े इस्लामी राजनीतिक दल की उग्रवादी शाखा है और जम्मू-कश्मीर में सक्रिय सबसे बड़े और सबसे पुराने आतंकवादी समूहों में से एक है।

प्रतिबंधित

अलकायदा 

1988

1999

यह मुख्य रूप से पूर्व संघ प्रशासित जनजातीय, कराची मेगासिटी और अफगानिस्तान में संचालित है।

प्रतिबंधित

  • उठाए गए कदम:
    • जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2019 की शुरुआत में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान सरकार द्वारा आतंकी वित्तपोषण (Terror Financing) और भारत-केंद्रित कुछ युद्धरत आतंकी समूहों को रोकने के लिये मामूली कदम उठाए गए थे।
    • हालाँकि इसे अभी भारत एवं अफगानिस्तान केंद्रित उग्रवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करनी है और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये 2015 की राष्ट्रीय कार्य योजना के सबसे कठिन पहलुओं पर भी उसकी प्रगति अधूरी है, विशेष रूप से बिना किसी देरी तथा भेदभाव के सभी आतंकवादी संगठनों को खत्म करने का संकल्प।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल

प्रिलिम्स के लिये:

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल

मेन्स के लिये:

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल का महत्त्व और चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल हेतु संभावित परियोजनाओं की तलाश में अमेरिकी अधिकारी लैटिन अमेरिका का दौरा करेंगे। B3W जून 2021 में सबसे सफल लोकतंत्र वाले देशों के G-7 समूह द्वारा घोषित एक अंतर्राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा निवेश पहल है।

प्रमुख बिंदु 

  • B3W और इसके मार्गदर्शक सिद्धांत:
    • लक्ष्य: बिल्ड बैक बेटर प्लान विकासशील और निम्न-आय वाले देशों के लिये G-7 देशों द्वारा प्रस्तावित एक कोविड-19 राहत, भविष्य का आर्थिक और बुनियादी ढाँचा पैकेज़ है।
    • B3W के घटक: B3W के माध्यम से G7 और अन्य समान विचारधारा वाले भागीदार फोकस के चार क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की पूंजी जुटाने में समन्वय स्थापित करेंगे:
      • जलवायु
      • स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सुरक्षा
      • डिजिटल टेक्नोलाॅजी
      • लैंगिक समानता 
    • मूल्य-संचालित विकास: वित्तीय, पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से पारदर्शी तथा  टिकाऊ तरीके से किये गए बुनियादी ढाँचे के विकास से प्राप्तकर्त्ता देशों और समुदायों के लिये बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।
    • सुशासन और मज़बूत मानक: पर्यावरण और जलवायु, श्रम एवं सामाजिक सुरक्षा उपायों, पारदर्शिता, वित्तपोषण, निर्माण, भ्रष्टाचार विरोधी तथा अन्य क्षेत्रों से संबंधित ब्लू डॉट नेटवर्क द्वारा प्रचारित मानकों का अनुपालन कर निवेश को बढ़ावा देने के लिये B3W महत्त्वपूर्ण है।
    • जलवायु अनुकूल: यह पहल पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के अनुरूप तरीके से स्थापित किया जाएगा।
    • मज़बूत रणनीतिक साझेदारी: B3W विकास के आक्रामक मॉडल का मुकाबला करने और वैश्विक विकास का एक व्यापक समावेशी मॉडल स्थापित करने की परिकल्पना करेगा।
  • BRI और संबद्ध मुद्दे:
    • वर्ष 2013 से 2020 के मध्य तक चीन का कुल निवेश लगभग 750 बिलियन डॉलर था।
  • हालाँकि निम्नलिखित कारणों से BRI परियोजना की भारी आलोचना हुई है:
    • पश्चिमी आलोचकों द्वारा इस पहल को नव उपनिवेशवाद या 21वीं सदी की मार्शल योजना के रूप में देखा जा रहा है।
    • BRI को चीन की ऋण जाल नीति के एक भाग के रूप में भी देखा जा रहा है, जिसमें चीन जान-बूझकर कर्ज़दार देश से आर्थिक या राजनीतिक रियायतें प्राप्त करने के इरादे से दूसरे देश को अत्यधिक ऋण देता है।
    • इसके अलावा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना का निर्माण जैसी परियोजनाएँ न केवल वाणिज्यिक प्रकृति की हैं बल्कि रणनीतिक प्रभाव भी उत्पन्न करती हैं।
    • BRI परियोजना 2013 में शुरू की गई थी, इसका व्यापक उद्देश्य माल के सीमा पार परिवहन, ऊर्जा तक पहुँच, चीनी उद्योगों में मौजूदा अतिरिक्त क्षमता का उपयोग करना है।

आगे की राह

  • संगठित वित्तीयन: अवसंरचना विधेयकों पर पाँच वर्षों में 1.2 ट्रिलियन डॉलर और सुलह विधेयक पर दस वर्षों में 3.5 ट्रिलियन डॉलर खर्च होने का अनुमान है।
    • ये दोनों विधेयक अमेरिकी राष्ट्रपति के आर्थिक एजेंडे की नींव तैयार करते हैं और उनकी बिल्ड बैक बेटर योजना का हिस्सा हैं।
    • हालाँकि इन विधेयकों पर अमेरिकी सीनेट में भारी बहस जारी रही है और इनके पारित होने की संभावना कम है।
    • इस प्रकार B3W की सफलता के लिये एक स्थायी वित्तपोषण मॉडल विकसित करने की आवश्यकता है।
  • पूंजीवाद की पुनः तलाश: कोविड-19 ने समकालीन पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं की संवेदनशीलता और सामाजिक रूप से नकारात्मक परिणामों को उजागर किया है।
    • इस प्रकार B3W ब्लूप्रिंट द्वारा हाइलाइट किये गए वैश्विक विकास की ओर ले जाने के लिये इसे पूंजीवाद के वर्तमान मॉडल के फाइन-ट्यूनिंग की आवश्यकता होगी।
  • लोकतंत्रों के मध्य आम सहमति बनाना: जीवंत लोकतंत्र वाले इन देशों द्वारा तैयार की गई किसी भी योजना में आमतौर पर समय लग सकता है और योजनाओं को कई राजनयिक और नौकरशाही प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ सकता है।
    • इस प्रकार G-7 देशों के लिये मुख्य चुनौती वैश्विक आम सहमति बनाना और समयबद्ध तरीके से परियोजनाओं लागू करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

कावेरी नदी जल विवाद

प्रिलिम्स के लिये:

मेकेदातु जलाशय परियोजना, कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद और उनके समाधान हेतु उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) ने कर्नाटक को तमिलनाडु के लिये पानी की शेष मात्रा तत्काल जारी करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • कावेरी जल विवाद:
    • परिचय:
      • इसमें 3 राज्य और एक केंद्रशासित प्रदेश (तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पुद्दुचेरी) शामिल हैं।
      • विवाद की उत्पत्ति तकरीबन 150 वर्ष पूर्व वर्ष 1892 और वर्ष 1924 के बीच तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी एवं मैसूर के बीच मध्यस्थता के दो समझौतों के साथ हुई थी।
      • इन समझौतों में यह सिद्धांत निहित था कि ऊपरी तटवर्ती राज्य को किसी भी निर्माण (जैसे कावेरी नदी पर जलाशय) गतिविधि के लिये निचले तटवर्ती राज्य की सहमति प्राप्त करनी होगी।
    • हालिया घटनाक्रम
      • वर्ष 1974 के बाद से कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति लिये बिना अपने चार नए जलाशयों में पानी को मोड़ना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप विवाद उत्पन्न हो गया है।
      • इस विवाद को समाप्त करने हेतु वर्ष 1990 में ‘कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण’ की स्थापना की गई, जिसने 17 वर्ष बाद यह निर्णय दिया कि कावेरी नदी के जल को सामान्य वर्षा की स्थिति में 4 तटवर्ती राज्यों के बीच किस प्रकार साझा किया जाना चाहिये।
      • न्यायाधिकरण के निर्णय के मुताबिक, कम वर्षा की स्थिति में आनुपातिक आधार का उपयोग किया जाएगा। सरकार ने इस निर्णय के छः वर्ष बाद वर्ष 2013 में आदेश अधिसूचित किया।
      • इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, क्योंकि इसमें कर्नाटक को तत्काल तमिलनाडु के लिये 12000 क्यूसेक जल छोड़ने का निर्देश दिया गया था जिसके कारण राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम निर्णय वर्ष 2018 में आया जिसमें न्यायालय ने कावेरी नदी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया और CWDT द्वारा जल-बँँटवारे हेतु अंतिम रूप से की गई व्यवस्था को बरकरार रखा तथा कर्नाटक से तमिलनाडु को किये जाने वाले जल के आवंटन को भी कम कर दिया।
        • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, कर्नाटक को 284.75 हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट (tmcft), तमिलनाडु को 404.25 tmcft, केरल को 30 tmcft और पुद्दुचेरी को 7 tmcft जल प्राप्त होगा।
        • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को कावेरी प्रबंधन योजना (Cauvery Management Scheme) को अधिसूचित करने का भी निर्देश दिया। केंद्र सरकार ने जून 2018 में 'कावेरी जल प्रबंधन योजना' अधिसूचित की, जिसके तहत केंद्र सरकार ने निर्णय को प्रभावी करने के लिये 'कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण' (Cauvery Water Management Authority- CWMA) और 'कावेरी जल विनियमन समिति' (Cauvery Water Regulation Committee) का गठन किया।
  • मेकेदातु जलाशय परियोजना:
    • इसका उद्देश्य बंगलूरू शहर के लिये पीने के पानी का भंडारण और आपूर्ति सुनिश्चित करना है। परियोजना के के तहत लगभग 400 मेगावाट (MW) बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव है।
    • वर्ष 2018 में तमिलनाडु राज्य द्वारा परियोजना के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) में अपील की गई, हालांँकि कर्नाटक द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया था कि यह परियोजना तमिलनाडु में जल के प्रवाह को प्रभावित नहीं करेगी।
      • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदन प्राप्त होने से पूर्व तक तमिलनाडु ऊपरी तट (Upper Riparian) पर प्रस्तावित किसी भी परियोजना के निर्माण का विरोध करता रहा है।

कावेरी नदी

Cauvery-River

  • तमिल भाषा में इसे 'पोन्नी' के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस नदी को दक्षिण की गंगा (Ganga of the South) भी कहा जाता है और यह दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है।
  • यह दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है। इसका उद्गम दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाट में स्थित ब्रह्मगिरी पहाड़ी से होता है, यह कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों से होती हुई दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती है और एक शृंखला बनाती हुई पूर्वी घाटों में उतरती है इसके बाद पांडिचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
    • अर्कवती, हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ, शिमसा, काबिनी एवं हरंगी आदि इसकी कुछ सहायक नदियाँ हैं।

आगे की राह:

  • राज्यों को क्षेत्रीय दृष्टिकोण को त्यागने की ज़रूरत है क्योंकि समस्या का समाधान सहयोग और समन्वय में निहित है, न कि संघर्ष में। स्थायी एवं पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य समाधान के लिये बेसिन स्तर पर योजना तैयार की जानी चाहिये।
  • दीर्घावधि में वनीकरण, रिवर लिंकिंग आदि के माध्यम से नदी का पुनर्भरण किये जाने और जल के दक्षतापूर्ण उपयोग (जैसे- सूक्ष्म सिंचाई आदि) को बढ़ावा देने के साथ-साथ जल के विवेकपूर्ण उपयोग हेतु लोगों को जागरूक करने तथा जल स्मार्ट रणनीतियों को अपनाए जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

मेनिन्जाइटिस को समाप्त करने के लिये वैश्विक रोडमैप: डब्ल्यूएचओ

प्रिलिम्स के लिये:

मेनिन्जाइटिस, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

वर्ष 2030 तक मेनिन्जाइटिस को समाप्त करने के लिये जारी वैश्विक रोडमैप का उद्देश्य

चर्चा में क्यों?   

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) द्वारा मेनिन्जाइटिस को समाप्त करने के लिये पहली वैश्विक रणनीति- ‘’वर्ष 2030 तक मेनिन्जाइटिस को हराने के लिये वैश्विक रोडमैप’’ (Global Roadmap to Defeat Meningitis by 2030) प्रस्तुत किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • रोडमैप के बारे में: 
    • लक्ष्य: रोडमैप में तीन दूरदर्शी लक्ष्य शामिल हैं:
      • बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस (Bacterial Meningitis) महामारी को समाप्त करना।
      • वैक्सीन-प्रेवेंटेबल बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस (Vaccine-Preventable Bacterial Meningitis) के मामलों में 50% और मौतों में 70% की कमी लाना।
      • मेनिन्जाइटिस के बाद किसी भी कारण से विकलांगता को कम करना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना।
    • उद्देश्य:
      • टीकाकरण कवरेज को अधिकतम करना, नए किफायती टीकों का विकास, बेहतर रोकथाम रणनीतियाँ तथा मेनिन्जाइटिस प्रकोप के प्रति प्रतिक्रिया।
      • रोग का शीघ्र निदान और इष्टतम उपचार।
      • रोग की रोकथाम और नियंत्रण प्रयासों का मार्गदर्शन करने हेतु पर्याप्त डेटा उपलब्ध कराना।
      • मेनिन्जाइटिस से प्रभावित लोगों के लिये देखभाल और सपोर्ट, शीघ्र पहचान तथा देखभाल हेतु बेहतर पहुंँच एवं मेनिन्जाइटिस के बाद के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करना।
      • मेनिन्जाइटिस के बारे में उच्च जागरूकता, राष्ट्रीय योजनाओं के लिये  जवाबदेही, साथ ही इसकी रोकथाम, देखभाल के बाद सेवाओं के अधिकार की पुष्टि सुनिश्चित करने हेतु सलाह प्रदान करना।
  •  मेनिन्जाइटिस के बारे में:
    •  मेनिन्जाइटिस:  मेनिन्जाइटिस मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को कवर करने वाली सुरक्षात्मक झिल्लियों की सूजन (सूजन) है। 
      • यह मुख्य रूप से बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण के कारण होता है। हालांँकि चोट, कैंसर, कुछ दवाएंँ और अन्य प्रकार के संक्रमण भी मेनिन्जाइटिस का कारण बन सकते हैं।
    • लक्षण: गंभीर सिरदर्द जो सामान्य से अलग लगता है, अचानक तेज बुखार, गर्दन में अकड़न तथा ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई आदि।
    • संचरण: मेनिन्जाइटिस (Meningitis) का कारण बनने वाले अधिकांश बैक्टीरिया जैसे- मेनिंगोकोकस (Meningococcus), न्यूमोकोकस (Pneumococcus) और हीमोफिलस (Haemophilus) इन्फ्लुएंज़ा को मानव नाक और गले में पहुँचाते हैं।
      • ये छींकने से निकलने वाली छोटी बूँदों के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों में फैलते हैं।
      • ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस (बैक्टीरिया) अक्सर जन्म के समय माँ से बच्चे में फैलता है।
    • प्रभाव: मेनिन्जाइटिस गंभीर स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक परिणामों के साथ घातक तथा दुर्बल करने वाला रोग है, जिसमें आजीवन विकलांगता शामिल है, यह सभी देशों में सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है।
      • जीवाणु संक्रमण के कारण होने वाला मेनिन्जाइटिस एक वर्ष में लगभग 2,50,000 मौतों का कारण बनता है जो तेज़ी से फैलने वाली महामारी का रूप ले सकती है।
      • इससे प्रभावित प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और प्रत्येक पाँचवाँ व्यक्ति दृष्टि हानि, तंत्रिका संबंधी क्षति, संज्ञानात्मक हानि जैसी बीमारी से ग्रसित हो जाता है।
    • फैलाव: विश्व के सभी क्षेत्रों में पिछले दशक में मेनिन्जाइटिस महामारी की घटना देखी गई है। लेकिन यह 'मेनिन्जाइटिस बेल्ट' में सबसे आम है, जो उप-सहारा अफ्रीका के 26 देशों में फैला है।
    • उपलब्ध टीके: मेनिंगोकोकल (Meningococcal), हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी (Haemophilus Influenzae Type B) और न्यूमोकोकल (Pneumococcal) टीके।
    • उपचार: मेनिन्जाइटिस के इलाज के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की एक शृंखला का उपयोग किया जाता है, जिसमें पेनिसिलिन (Penicillin), एम्पीसिलीन (Ampicillin) और सेफ्ट्रिएक्सोन (Ceftriaxone) शामिल हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

भारत के हवाई क्षेत्र का मानचित्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्रालय (Ministry of Civil Aviation) ने ड्रोन संचालन के लिये भारत के हवाई क्षेत्र का मानचित्र जारी किया है, जो पूरे देश में रेड ज़ोन, येलो ज़ोन और ग्रीन ज़ोन क्षेत्रों को दर्शाता है।

  • यह नागरिक ड्रोन ऑपरेटरों को सीमांकित प्रतिबंधित उड़ान ज़ोन (No-fly zones) की जाँच करने की अनुमति देगा या जहाँ उन्हें उड़ान भरने से पहले कुछ औपचारिकताओं से गुज़रना होगा।
  • इससे पहले ‘‘विश्वास, स्वप्रमाणन एवं बिना किसी हस्तक्षेप के निगरानी’’ पर आधारित 'उदारीकृत ड्रोन नियम, 2021' का अनावरण किया गया था और ड्रोन उद्योग के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना की भी घोषणा की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • ग्रीन ज़ोन: 
      • यह 400 फीट तक का हवाई क्षेत्र है जिसे लाल या पीले क्षेत्र के रूप में नामित नहीं किया गया है और एक हवाई अड्डे की परिचालन परिधि से 8-12 किमी के बीच स्थित क्षेत्र से 200 फीट ऊपर है।
      • 500 किलोग्राम तक वज़न वाले ड्रोन के संचालन के लिये किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है। 
    • येलो ज़ोन:
      • यह एक निर्दिष्ट ग्रीन ज़ोन में 400 फीट से ऊपर का हवाई क्षेत्र है और एक हवाई अड्डे की परिधि से 8-12 किमी. के बीच स्थित क्षेत्र में 200 फीट से ऊपर तथा एक हवाई अड्डे की परिधि सतह से 5-8 किमी. के बीच स्थित क्षेत्र है। 
      • संबंधित हवाई यातायात नियंत्रण प्राधिकरणों से अनुमति की आवश्यकता होती है जो या तो भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, भारतीय वायु सेना, भारतीय नौसेना, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड आदि हो सकते हैं।
    • रेड ज़ोन:
      • यह 'नो-ड्रोन ज़ोन' है जिसके भीतर केंद्र सरकार की अनुमति के बाद ही ड्रोन का संचालन किया जा सकता है।
  • ड्रोन नियम, 2021:
    • इन नियमों का उद्देश्य एक 'डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म' निर्मित करना है जो एक व्यापार-अनुकूल सिंगल-विंडो ऑनलाइन सिस्टम है, जिसमें न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के साथ अधिकांश अनुमतियांँ स्वयं ही प्राप्त की जा सकेंगी।
    • नियमों के अनुपालन की मांग ने प्रक्रिया में शामिल लालफीताशाही (Red-Tape) को कम कर दिया है:
      • शुल्क की मात्रा को नाममात्र के स्तर तक घटा दिया गया है और इसे ड्रोन के आकार से निर्धारित होने की प्रक्रिया से अलग कर दिया गया है।
      • डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म के माध्यम से ड्रोन के हस्तांतरण और पंजीकरण हेतु आसान प्रक्रिया निर्दिष्ट की गई है।
      • नैनो और मॉडल ड्रोन (अनुसंधान या मनोरंजन के उद्देश्य से बने) को टाइप सर्टिफिकेशन से छूट दी गई है।
    • ड्रोन नियम 2021 के तहत ड्रोन का कवरेज 300 किलोग्राम से बढ़ाकर 500 किलोग्राम कर दिया गया है। इसमें ड्रोन टैक्सियाँ भी शामिल होंगी।
    • टाइप सर्टिफिकेट की ज़रूरत तभी पड़ती है जब भारत में ड्रोन का संचालन किया जाना हो। पूरी तरह से निर्यात हेतु निर्माण ड्रोन को टाइप सर्टिफिकेट (Type Certification) और विशिष्ट पहचान संख्या (Unique Identification Number) से छूट दी गई है।
    • कार्गो डिलीवरी हेतु ड्रोन कॉरिडोर विकसित किये जाएंगे।

ड्रोन

  • ड्रोन के बारे में:
    • ड्रोन मानव रहित विमान (Unmanned Aircraft) के लिये प्रयुक्त एक आम शब्द है। मानव रहित विमान के तीन उप-सेट हैं- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट (Remotely Piloted Aircraft), ऑटोनॉमस एयरक्राफ्ट (Autonomous Aircraft) और मॉडल एयरक्राफ्ट (Model Aircraft)।
      • रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट में रिमोट पायलट स्टेशन, आवश्यक कमांड और कंट्रोल लिंक तथा अन्य घटक होते हैं।
    • ड्रोन को उनके वज़न के आधार पर पाँच श्रेणियों में बाँटा गया है-
      • नैनो- 250 ग्राम से कम या उसके बराबर।
      • माइक्रो- 250 ग्राम से 2 किग्रा. तक।
      • स्माल- 2 किग्रा. से 25 किग्रा. तक।
      • मीडियम- 25 किग्रा. से 150 किग्रा. तक।
      • लार्ज- 150 किग्रा. से अधिक
  • महत्त्व:
    • ड्रोन, अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में लाभ प्रदान करते हैं। 
    • इनमें शामिल हैं- कृषि, खनन, बुनियादी ढाँचा, निगरानी, ​​आपातकालीन प्रतिक्रिया, परिवहन, भू-स्थानिक मानचित्रण, रक्षा और कानून प्रवर्तन।
    • ड्रोन अपनी पहुँच, उच्च क्षमता और उपयोग में आसानी के कारण विशेष रूप से भारत के दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में रोज़गार एवं आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण निर्माता हो सकते हैं।
      • हाल ही में तेलंगाना सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी यानी इस प्रकार की पहली पायलट परियोजना 'मेडिसिन फ्रॉम द स्काई' के परीक्षण के लिये 16 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) का चयन किया है। इस परियोजना में ड्रोन के ज़रिये दवाओं की डिलीवरी करना शामिल है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

आकाश प्राइम सरफेस-टू-एयर मिसाइल: डीआरडीओ

प्रिलिम्स के लिये:

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, आकाश प्राइम, मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल, आकाश मिसाइल, एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम, पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, नाग

मेन्स के लिये:

रक्षा प्रोद्योगिकी के स्वदेशीकरण में DRDO की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने एकीकृत परीक्षण रेंज (ITR) चांदीपुर, ओडिशा से आकाश मिसाइल के एक नए संस्करण 'आकाश प्राइम' (Akash Prime) का परीक्षण किया।

  • इससे पहले डीआरडीओ ने आकाश-एनजी (नई पीढ़ी) और मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (Man Portable Anti Tank Guided Missile) लॉन्च की थी।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन

  • यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में सशक्त बनाना है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDE) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।

प्रमुख  बिंदु

Akash-Prime

  • आकाश प्राइम के विषय में:
    • यह मौजूदा आकाश प्रणाली की तुलना में बेहतर सटीकता के लिये स्वदेशी सक्रिय रेडियो फ्रीक्वेंसी से लैस है, जो यह सुनिश्चित करता है कि जिस लक्ष्य पर मिसाइल दागी गई है वहीं पहुँचे।
    • आकाश प्राइम में अन्य सुधार भी शामिल किये गए थे जैसे- उच्च ऊँचाई पर कम तापमान वाले वातावरण में विश्वसनीय प्रदर्शन सुनिश्चित करना।
  • विकास और उत्पादन:
    • मिसाइल और सामरिक प्रणाली (Missiles and Strategic System) के अंतर्गत अन्य डीआरडीओ प्रयोगशालाओं के सहयोग से रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (DRDL), हैदराबाद द्वारा विकसित।
  • आकाश मिसाइल:
    • आकाश भारत की पहली स्वदेश निर्मित मध्यम श्रेणी की सतह से हवा (SAM) में मार करने वाली मिसाइल है जो कई दिशाओं, कई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है। इस मिसाइल को मोबाइल प्लेटफाॅर्म्स के माध्यम से युद्धक टैंकों या ट्रकों से लॉन्च किया जा सकता है। इसमें लगभग 90% तक लक्ष्य को भेदने की सटीकता की संभावना है।
    • इस प्रकार से यह अद्वितीय है क्योंकि यह रडार प्रणाली समूह या स्वायत्त मोड में कई दिशाओं से अत्यधिक लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है।
    • इसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटरमेशर्स (Electronic Counter-Counter Measures-ECCM) जैसी विशेषताएँ है जिसका अर्थ है कि इसमें ऑन-बोर्ड तंत्र हैं जो डिटेक्शन सिस्टम के प्रभाव को कम करने वाले इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम का सामना कर सकते हैं।
    • इस मिसाइल का संचालन स्वदेशी रूप से विकसित रडार 'राजेंद्र' द्वारा किया जाता है।
    • यह मिसाइल ध्वनि की गति से 2.5 गुना तीव्र गति से लक्ष्य को भेद सकती है तथा निम्न, मध्यम और उच्च ऊँचाई पर लक्ष्यों का पता लगाकर उन्हें नष्ट कर सकती है।
    • यह मिसाइल ठोस ईंधन तकनीक और उच्च तकनीकी रडार प्रणाली के कारण अमेरिकी पैट्रियट मिसाइलों (US’ Patriot Missiles) की तुलना में सस्ती और अधिक सटीक है।

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम

  • इसकी स्थापना का विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था। इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 1983 में अनुमोदित किया गया था और मार्च 2012 में पूरा किया गया था।
  • इस कार्यक्रम के तहत विकसित 5 मिसाइलें (P-A-T-N-A) हैं:
    • पृथ्वी: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • अग्नि: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल, यानी अग्नि (1,2,3,4,5)।
    • त्रिशूल: सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
    • नाग: तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल।
    • आकाश: सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

लैंडसैट 9

प्रिलिम्स के लिये:

नासा, अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट, लैंडसैट-9, सेंटिनल उपग्रह

मेन्स के लिये:

लैंडसैट-9 : भूमि उपयोग का अवलोकन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा ने कैलिफोर्निया में वैंडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से एक अर्थ ऑब्ज़र्वेशन/मॉनिटरिंग सैटेलाइट (Earth Monitoring Satellite) लॉन्च किया है। इसे लैंडसैट 9 (Landsat 9) नाम दिया गया है।  यह उपग्रह नासा और यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) का संयुक्त मिशन है।

  • इस उपग्रह को नासा की 'आकाश में स्थित नई आँख' (New Eye in the Sky) के रूप में जाना जाता है जो जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने में मदद करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • लैंडसैट 9 पृथ्वी का अवलोकन करने वाले अंतरिक्षयान की एक अगली शृंखला है, जो लगभग 50 वर्ष पुरानी है।
    • पहला लैंडसैट उपग्रह 1972 में लॉन्च किया गया था और तब से लैंडसैट उपग्रहों ने पृथ्वी की छवियों को एकत्र किया है तथा यह समझने में मदद की है कि दशकों में भूमि का उपयोग कैसे बदल गया है।
    • वर्ष 2008 में यह निर्णय लिया गया था कि सभी लैंडसैट छवियाँ मुफ्त और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होंगी तथा इस नीति ने कई शोधकर्त्ताओं, किसानों, नीति विश्लेषकों, ग्लेशियोलॉजिस्ट और भूकंपविदों की मदद की है।
    • लैंडसैट छवियों का उपयोग वनों के स्वास्थ्य, प्रवाल भित्तियों, पानी की गुणवत्ता की निगरानी और ग्लेशियरों के पिघलने के अध्ययन के लिये किया गया है।
  • लैंडसैट 9 के बारे में: 
    • लैंडसैट 9 को वर्ष 2013 में लॉन्च किये गए लैंडसैट 8 से जोड़ा गया है तथा दोनों उपग्रह मिलकर पृथ्वी की सतह की छवियाँ एकत्र करेंगे। 
      • इनको संपूर्ण पृथ्वी का छायांकन करने में 8 दिन लगते हैं।
    • लैंडसैट 9 अन्य लैंडसैट उपग्रहों के समान उपकरणों को वहन करता है, लेकिन यह अपनी पीढ़ी का तकनीकी रूप से सबसे उन्नत उपग्रह है।
    • लैंडसैट 9 के प्रमुख उपकरण ऑपरेशनल लैंड इमेजर 2 (OLI-2) और थर्मल इन्फ्रारेड सेंसर 2 (TIRS-2) हैं। 
      • OLI-2: यह पृथ्वी की सतह से परावर्तित सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है और स्पेक्ट्रम के दृश्य, नज़दीकी-अवरक्त या इंफ्रारेड तथा लघु अवरक्त तरंगों के भागों का अध्ययन करता है।
      • TIRS-2: इसमें चार-तत्त्वों वाला अपवर्तक दूरबीन और प्रकाश संवेदनशील डिटेक्टर है जो थर्मल विकिरण को अवशोषित करते हैं तथा पृथ्वी की सतह के तापमान का अध्ययन करने में मदद करते हैं।
    • लैंडसैट उपग्रह, यूरोपियन यूनियन के सेंटिनल-2 उपग्रहों के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन की सीमा का बेहतर अनुमान प्रदर्शित करेगा।

सेंटिनल उपग्रह

  • यह कोपरनिकस कार्यक्रम के तहत यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा विकसित उपग्रहों की फैमिली है।
  • कोपरनिकस कार्यक्रम ESA द्वारा प्रबंधित पृथ्वी अवलोकन कार्यक्रम है, जिसे वर्ष 1998 में शुरू किया गया था।
    • इसका नाम वैज्ञानिक और पर्यवेक्षक निकोलस कोपरनिकस के नाम पर रखा गया था। कोपरनिकस के सूर्य केंद्रित (सूर्य-केंद्रित) ब्रह्मांड के सिद्धांत ने आधुनिक विज्ञान में अग्रणी योगदान दिया था।
  • सेंटिनल उपग्रह विभिन्न उद्देश्यों के लिये समर्पित छह उपग्रहों का एक समूह है।
    • सेंटिनल 1: यह सभी मौसम, दिन और रात के रडार इमेज़िंग करता है।
    • सेंटिनल 2: यह भूमि सेवाओं के लिये उच्च-रिज़ॉल्यूशन ऑप्टिकल छवियाँ प्रदान करता है।
    • सेंटिनल 3: यह भूमि और महासागर पर डेटा वितरित करता है।
    • सेंटिनल 4 और 5: भूस्थिर और ध्रुवीय कक्षाओं से वातावरण की निगरानी करता है।
    • सेंटिनल 6: समुद्र विज्ञान और जलवायु अध्ययन के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

भारत के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह

  • हाल ही में भारत ने EOS-01 उपग्रह लॉन्च किया है।
    • यह एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है और कृषि, वानिकी तथा आपदा प्रबंधन अनुप्रयोगों में सहायता प्रदान करता है।
  • पृथ्वी अवलोकन उपग्रह रिमोट सेंसिंग तकनीक से लैस उपग्रह हैं। पृथ्वी अवलोकन का आशय पृथ्वी की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रणालियों के बारे में जानकारी जुटाना है।
  • ISRO द्वारा लॉन्च किये गए अन्य पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों में रिसोर्ससैट- 2, 2A; कार्टोसैट-1, 2, 2A, 2B; रिसैट-1 और 2; ओशनसैट-2; मेघा-ट्रॉपिक्स; सरल और स्कैटसैट-1; इन्सैट-3DR, 3D शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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