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कावेरी नदी जल विवाद – राज्यों की ज़रूरतों की जाँच नहीं हुई

  • 13 Jul 2017
  • 4 min read

संदर्भ 
कर्नाटक सरकार ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण ने ‘समता के स्थापित सिद्धान्तों’ (settled principles of equity) के अनुसार अंतर्राज्यीय कावेरी नदी के जल का बँटवारा नहीं किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा 2007 में जल विभाजन पर दिये गए अंतिम निर्णय के विरुद्ध कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल ने उच्चतम न्यायालय में अपील की है। 
  • कर्नाटक का तर्क है कि 1924 के जल साझाकरण के समय तमिलनाडु सिंचाई के लिये केवल 21.38 लाख एकड़  क्षेत्र विकसित करने का हक़दार था। परन्तु, इस समझौते के होते हुए भी तमिलनाडु ने कावेरी नदी से 566 टीएमसी जल का उपयोग करते हुए सिंचाई के लिये 28.2 लाख एकड़ क्षेत्र विकसित कर लिया है।
  • कर्नाटक ने कहा कि किसानों के परिवारों एवं समता के मद्देनज़र इस नदी के तटीय राज्यों की ज़रूरतों की जाँच नहीं की गई। अब तमिलनाडु उस समझौते को तोड़ते हुए और पानी की माँग कर रहा है।
  • जल बँटवारे पर कर्नाटक ने कहा कि कावेरी नदी घाटी में प्रत्येक राज्य द्वारा जल के योगदान, जल पर निर्भर प्रत्येक राज्य की जनसंख्या तथा इसके बेसिन में प्रत्येक राज्य के कृषि योग्य क्षेत्र के विस्तार के आधार पर प्रत्येक राज्य के हिस्से को तय किया जाना चाहिये। 
  • गौरतलब है कि इसके बेसिन में कर्नाटक का कृषि योग्य क्षेत्र 5522 हज़ार हेक्टेयर है, जबकि तमिलनाडु का 2891 हज़ार हेक्टेयर है। 
  • कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण को प्रत्येक राज्य की ज़रूरतों का आकलन करते समय जलवायु- संबंधी कारकों, जल-विज्ञान चक्र, अभियाँन्त्रिकी कारकों एवं भौगोलिक स्थिति पर बल देना चाहिये था।

क्या है कावेरी नदी जल विवाद ?

  • कावेरी एक  अंतर्राज्यीय नदी है। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी इस नदी के बेसिन में आते हैं। इन्हीं चारों राज्यों के बीच एवं विशेष रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच इस नदी के जल के बँटवारे को लेकर विवाद चला आ रहा है। 
  • इस ऐतिहासिक विवाद के समाधान के लिये 1924 में  मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज्य के बीच एक समझौता हुआ था।
  • उसके बाद भारत सरकार द्वारा 1972 में बनाई गई एक कमेटी की रिपोर्ट और विशेषज्ञों की सिफारिशों के बाद अगस्त 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चारों दावेदारों के बीच एक समझौता हुआ था।
  • इस बीच जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत इस मामले को सुलझाने के लिये आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार से एक न्यायाधिकरण के गठन किये जाने का निवेदन किया। 
  • केंद्र सरकार ने 2 जून 1990 को कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया। वर्ष 1991 में इसने एक अंतरिम फैसला दिया था। वर्ष 2007 में इसने अंतिम फैसला दिया। परन्तु कोई भी पक्ष इसके फैसले से संतुष्ट नहीं हुआ। तब से अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश चल रही है।
  • भारत में नदी जल विवाद एक गंभीर विषय है। लगभग इसी तरह की समस्या कुछ अन्य नदियों के जल के बँटवारे को लेकर भी है। प्रत्येक राज्य इसी देश का हिस्सा है और राज्यों के बीच इस तरह का विवाद किसी के हित में नहीं है।
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