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डेली न्यूज़

  • 28 Jul, 2023
  • 46 min read
भारतीय राजनीति

संसद से सांसदों का निलंबन

प्रिलिम्स के लिये:

संसद से सांसदों का निलंबन, लोकसभा, राज्यसभा, संसद सदस्य, पीठासीन अधिकारी, अध्यक्ष

मेन्स के लिये:

संसद से सांसदों का निलंबन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राज्यसभा के एक सांसद (संसद सदस्य) को आसन के निर्देशों का "उल्लंघन" करने के लिये निलंबित कर दिया गया है।

मणिपुर मुद्दे पर राज्यसभा में विपक्ष का विरोध जारी है। वे इस मामले पर प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया की मांग कर रहे हैं और परिणामस्वरूप इसमें शामिल सांसदों में से एक को निलंबित कर दिया गया।

सांसदों के निलंबन की प्रक्रिया:

  • सामान्य सिद्धांत: 
    • सामान्य सिद्धांत यह है कि व्यवस्था बनाए रखना पीठासीन अधिकारी- लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की भूमिका और कर्तव्य है ताकि सदन सुचारु रूप से चल सके।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यवाही उचित तरीके से संचालित हो, अध्यक्ष/सभापति को किसी सदस्य को सदन से बाहर जाने के लिये विवश करने का अधिकार है।
  • प्रक्रिया और आचरण के नियम: 

लोकसभा  

राज्यसभा 

नियम 373: 

  • प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों की नियम संख्या 373 के अनुसार, "अध्यक्ष किसी सदस्य का आचरण अमर्यादित पाए जाने पर उसे तुरंत सदन से हटने का निर्देश दे सकता है। जिन सदस्यों को हटने का आदेश दिया गया है वे तुरंत ऐसा करेंगे और शेष दिन की बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे।
  • गंभीर मामलों या अध्यक्ष के आदेश का उल्लंघन करने वाले सदस्यों से निपटने के लिये अध्यक्ष नियम 374 और 374A का सहारा लेता है।

नियम 255:  

  • लोकसभा अध्यक्ष की तरह राज्यसभा के सभापति को नियम संख्या 255 के तहत "किसी भी सदस्य का आचरण अमर्यादित पाए जाने पर तुरंत उसे सदन से बाहर जाने का निर्देश देने" का अधिकार है।
  • लोकसभा अध्यक्ष के विपरीत राज्यसभा सभापति के पास किसी सदस्य को निलंबित करने का अधिकार नहीं है। इसलिये सदन किसी अन्य प्रस्ताव के माध्यम से निलंबन समाप्त कर सकता है।
  • अध्यक्ष "उस सदस्य का नाम बता सकता है जो अध्यक्ष के अधिकारों की अवहेलना करता है या निरंतर और जान-बूझकर कार्य में बाधा डालकर सभा के नियमों का दुरुपयोग करता है"।
  • ऐसी स्थिति में सदन, सदस्य को शेष सत्र से अधिक की अवधि के लिये सदन की सेवा से निलंबित करने का प्रस्ताव रख सकता है।

Rule 374:  

  • अध्यक्ष यदि आवश्यक समझे तो ऐसे सदस्य का नाम ले सकता है, जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या लगातार और जान-बूझकर सदन के कामकाज में बाधा डालकर सदन के नियमों का दुरुपयोग करता है।
  • यदि किसी सदस्य को अध्यक्ष द्वारा इस प्रकार नामित किया जाता है, तो अध्यक्ष एक प्रस्ताव के माध्यम से तुरंत यह प्रश्न रखेगा कि सदस्य (ऐसे सदस्य का नाम लेते हुए) को सत्र के शेष समय से अधिक की अवधि के लिये सदन की सेवा से निलंबित कर दिया जाए।

Rule 256:  

  • इसमें सदस्यों के निलंबन का प्रावधान है।
  • सभापति किसी सदस्य को सत्र के शेष समय से अधिक की अवधि के लिये सभा से निलंबित कर सकता है।

नियम 374A:  

  • नियम 374A को दिसंबर 2001 में नियम पुस्तिका में शामिल किया गया था।
  • घोर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में अध्यक्ष द्वारा नामित किये जाने पर सदस्य लगातार पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये स्वतः निलंबित हो जाएगा। 


 

  • निलंबन की शर्तें:
    • निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिये होती है।
    • निलंबित सदस्य कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते हैं या समितियों की बैठकों में शामिल नहीं हो सकते हैं।
    • वह चर्चा अथवा किसी प्रकार के नोटिस देने हेतु पात्र नहीं होगा।
    • वह अपने प्रश्नों का उत्तर पाने का अधिकार खो देता है।

न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप:

  • संविधान का अनुच्छेद 122 कहता है कि संसदीय कार्यवाही पर न्यायालय के समक्ष सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
  • हालाँकि न्यायालयों ने विधायिका के प्रक्रियात्मक कामकाज में हस्तक्षेप किया है, जैसे-
    • महाराष्ट्र विधानसभा ने अपने 2021 के मानसून सत्र में 12 भाजपा विधायकों को एक साल के लिये निलंबित करने का प्रस्ताव पारित किया।
    • यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया, जिसने माना कि मानसून सत्र के शेष समय के बाद भी प्रस्ताव कानून में अप्रभावी था।

आगे की राह 

  • प्रचार या राजनीतिक कारणों से नियोजित संसदीय अपराधों और जान-बूझकर गड़बड़ी से निपटना मुश्किल है।
  • इसलिये विपक्षी सदस्यों को संसद में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिये और उन्हें अपने विचार रखने तथा सम्मानजनक तरीके से खुद को व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • जान-बूझकर व्यवधान और महत्त्वपूर्ण मुद्दे को उठाने के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 


शासन व्यवस्था

साइबर अपराध

प्रिलिम्स के लिये:

साइबर अपराध, संविधान की सातवीं अनुसूची, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्रिप्टो-करेंसी, बड़े पैमाने पर ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम

मेन्स के लिये:

साइबर अपराध, संबंधित चुनौतियाँ और उससे निपटने के उपाय

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने के लिये सिस्टम को मज़बूत करने हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

साइबर अपराध:

  • परिचय: 
    • साइबर अपराध को ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित किया जाता है जहाँ कंप्यूटर अपराध का माध्यम होता है या अपराध करने के लिये एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
    • भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, साइबर अपराध राज्य सूची के अंतर्गत आता है।
    • इसमें अवैध या अनधिकृत गतिविधियाँ शामिल हैं जो विभिन्न प्रकार के अपराध करने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाती हैं।
    • साइबर अपराध में अपराधों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है, यह व्यक्तियों, संगठनों के साथ-साथ सरकारों को भी प्रभावित कर सकता है।
  • प्रकार: 
    • डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल-ऑफ-सर्विस (DDoS) अटैक:  इसका प्रयोग किसी ऑनलाइन सेवा को अनुपलब्ध बनाने और विभिन्न स्रोतों से वेबसाइट पर अत्यधिक ट्रैफिक के माध्यम से नेटवर्क को बाधित करने के लिये किया जाता है।
    • बॉटनेट: यह कंप्यूटर का एक ऐसा नेटवर्क है जिसे दूर बैठे हैकर्स द्वारा बाह्य रूप से नियंत्रित किया जाता है। रिमोट हैकर्स या तो स्पैम भेजते हैं या इन बॉटनेट के माध्यम से अन्य कंप्यूटरों पर हमला करते हैं।
    • पहचान की चोरी (Identity Theft): यह साइबर अपराध तब होता है जब कोई अपराधी किसी उपयोगकर्ता की व्यक्तिगत या गोपनीय जानकारी तक पहुँच प्राप्त कर लेता है, जिसके परिणामस्वरूप वह प्रतिष्ठा धूमिल करने या फिरौती मांगने की कोशिश करता है।
    • साइबर स्टॉकिंग: इस प्रकार के साइबर अपराध में ऑनलाइन उत्पीड़न शामिल होता है जहाँ उपयोगकर्ता को ढेर सारे ऑनलाइन संदेशों और ईमेल का सामना करना पड़ता है। सामान्यतः साइबर स्टॉक किसी उपयोगकर्ता को डराने के लिये सोशल मीडिया, वेबसाइट और सर्च इंजन का उपयोग करते हैं।
    • फिशिंग: यह एक प्रकार का सोशल इंजीनियरिंग हमला है जिसका उपयोग अक्सर उपयोगकर्ता का डेटा चुराने के लिये किया जाता है, जिसमें लॉगिन क्रेडेंशियल और क्रेडिट कार्ड नंबर शामिल हैं। ऐसा तब होता है जब एक हमलावर एक विश्वसनीय संस्था के रूप में किसी पीड़ित को ईमेल, त्वरित संदेश या टेक्स्ट संदेश के माध्यम से धोखा देता है।

भारत में साइबर सुरक्षा से संबंधित चुनौतियाँ:

  • लाभ-उन्मुख अवसंरचना की मानसिकता:  
    • उदारीकरण के बाद से सूचना प्रौद्योगिकी (IT), बिजली और दूरसंचार क्षेत्र में निजी क्षेत्र द्वारा वृहत निवेश किया गया है। 
    • ऑपरेटर सुरक्षात्मक बुनियादी ढाँचे में निवेश नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे केवल लाभदायक बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि साइबर हमले की तैयारियों पर निवेश से अच्छा मुनाफा नहीं हो सकता है।
    • सभी ऑपरेटर लाभ पर अधिक केंद्रित हैं और अवसंरचना में निवेश नहीं करना चाहते क्योंकि वहाँ उनके लिये लाभ के अवसर नहीं हैं।
  • पृथक प्रक्रियात्मक संहिता का अभाव:  
    • साइबर या कंप्यूटर संबंधी अपराधों की जाँच के लिये कोई पृथक प्रक्रियात्मक संहिता मौजूद नहीं है।
  • साइबर हमलों की अंतर्राष्ट्रीय (ट्रांस-नेशनल) प्रकृति: 
    • अधिकांश साइबर अपराध प्रकृति में ट्रांस-नेशनल होते हैं। विदेशी क्षेत्रों से साक्ष्य एकत्र करना न केवल कठिन बल्कि एक धीमी प्रक्रिया भी है।
  • डिजिटल पारितंत्र का विस्तार:
    • पिछले कुछ वर्षों में भारत अपने विभिन्न आर्थिक घटकों के डिजिटलीकरण के मार्ग पर आगे बढ़ा है और इसने इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक अपना स्थान बनाया है।
    • 5G और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी नवीनतम प्रौद्योगिकियाँ इंटरनेट से जुड़े पारितंत्र के कवरेज में वृद्धि करेंगी।
    • डिजिटलीकरण के आगमन के साथ उपभोक्ता एवं नागरिक डेटा को डिजिटल प्रारूप में संग्रहीत किया जाएगा और लेन-देन ऑनलाइन माध्यम से संपन्न होगा, जो भारत को हैकर्स तथा साइबर अपराधियों के लिये एक सक्षम ब्रीडिंग ग्राउंड बना सकता है।
  • सीमित विशेषज्ञता और प्राधिकार:
    • क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित अपराधों की कम रिपोर्टिंग की जाती है क्योंकि ऐसे अपराधों को हल करने की क्षमता सीमित रहती है।
    • यद्यपि अधिकांश राज्य स्तरीय साइबर लैब हार्ड डिस्क और मोबाइल फोन का विश्लेषण करने में सक्षम हैं, फिर भी उन्हें केंद्र सरकार द्वारा ‘इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के परीक्षक’ (Examiners of Electronic Evidence) के रूप में मान्यता दिया जाना अभी शेष है। जब तक उन्हें मान्यता प्राप्त नहीं प्राप्त होगी, वे इलेक्ट्रॉनिक डेटा पर विशेषज्ञ राय नहीं दे सकते।

भारत में साइबर अपराधों से निपटने के लिये किये जाने वाले उपाय:

  • साइबर सुरक्षा जागरूकता अभियान:
    • सरकारों को विभिन्न स्तरों पर साइबर धोखाधड़ी के संबंध में बड़े पैमाने पर साइबर सुरक्षा जागरूकता अभियान चलाने, मज़बूत, अद्वितीय पासवर्ड एवं सार्वजनिक वाई-फाई का उपयोग करने आदि में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
  • साइबर बीमा:  
    • ऐसी साइबर बीमा पॉलिसियाँ विकसित की जानी चाहिये जो विभिन्न व्यवसायों और उद्योगों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप हों। अनुकूलित नीतियाँ यह सुनिश्चित करने में सहायता करेंगी कि संगठनों के पास उनके सामने आने वाले सबसे प्रासंगिक साइबर जोखिमों के लिये कवरेज है।
      • साइबर बीमा साइबर घटनाओं से होने वाले नुकसान के खिलाफ वित्तीय कवरेज प्रदान करता है तथा इन घटनाओं के वित्तीय प्रभाव को कम करके संगठन अधिक तेज़ी से सुचारु रूप से अपना संचालन जारी रख सकते हैं।
  • डेटा संरक्षण कानून:
    • डेटा को नई मुद्रा कहा जाता है, इसलिये भारत में एक सख्त डेटा सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है।
      • इस संदर्भ में यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन और भारत का व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।
  • सहयोगात्मक त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र:
    • भारत जैसे देश में जहाँ नागरिक साइबर अपराध के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, एक सहयोगात्मक त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता है।
      • यह तंत्र सभी पक्षों को संगठित करेगा तथा कानून लागू करने वालों को त्वरित कार्रवाई करने तथा नागरिकों एवं व्यवसायों को तेज़ी से बढ़ते खतरे से बचाने में सक्षम बनाएगा।
      • इस संदर्भ में भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र साइबर सुरक्षा जाँच को केंद्रीकृत करने, प्रतिक्रिया उपकरणों के विकास को प्राथमिकता देने तथा इस खतरे को रोकने के लिये निजी कंपनियों को एक साथ लाने में सहायता करेगा।

भारत में साइबर अपराधों से निपटने हेतु सरकार की पहल:

  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): यह केंद्र पूरे देश में सभी प्रकार के साइबर अपराधों से निपटने के प्रयासों का समन्वय करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर फोरेंसिक प्रयोगशाला: यह ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों तरीकों से सभी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश पुलिस के जाँच अधिकारियों को प्रारंभिक चरण की साइबर फोरेंसिक सहायता प्रदान करती है।
  • साइट्रेन पोर्टल (CyTrain Portal): साइबर अपराध जाँच, फोरेंसिक और अभियोजन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से पुलिस अधिकारियों, न्यायिक अधिकारियों तथा अभियोजकों की क्षमता निर्माण हेतु एक विशाल ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम (MOOC) मंच।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: एक ऐसा मंच जहाँ जनता साइबर अपराध की घटनाओं की रिपोर्ट कर सकती है, जिसमें महिलाओं एवं बच्चों के प्रति अपराधों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • नागरिक वित्तीय साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली: यह वित्तीय धोखाधड़ी की तत्काल रिपोर्टिंग और टोल-फ्री हेल्पलाइन के माध्यम से ऑनलाइन साइबर शिकायतें दर्ज करने में सहायता हेतु एक प्रणाली है।
  • महिलाओं एवं बच्चों के प्रति साइबर अपराध निवारण (CCPWC) योजना: साइबर अपराधों की जाँच में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमताओं को विकसित करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • संयुक्त साइबर समन्वय दल: राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच, विशेष रूप से साइबर-अपराधों से संबंधित बहु-क्षेत्राधिकार वाले क्षेत्रों में समन्वय बढ़ाने के लिये इस दल का गठन करना।
  • पुलिस के आधुनिकीकरण के लिये केंद्रीय सहायता: आधुनिक हथियार, उन्नत संचार/फोरेंसिक उपकरण तथा साइबर पुलिसिंग उपकरण प्राप्त करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।

निष्कर्ष

  • सूचना साझा करने तथा साइबर सुरक्षा अनुसंधान एवं विकास में संयुक्त प्रयासों को मज़बूत कर वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है क्योंकि अधिकांश साइबर हमले सीमाओं के पार से होते हैं।
  • कॉरपोरेट्स या संबंधित सरकारी विभागों के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वे अपने संगठनों में कमियों का पता लगाएँ और उन कमियों को दूर करें तथा एक स्तरित सुरक्षा प्रणाली बनाएँ जिसमें विभिन्न स्तर पर सुरक्षा खतरे की खुफिया जानकारी साझा की जा सके। 

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट 2023: यूनेस्को

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट 2023, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, कोविड-19 महामारी, सतत् विकास लक्ष्य 4

मेन्स के लिये:

वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट 2023

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट 2023 जारी की है, जिसका शीर्षक- ‘टेक्नॉलॉजी इन एजुकेशन: अ टूल ऑन हूज़ टर्म्स’ ने उन स्कूलों में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध का समर्थन किया है जहाँ प्रौद्योगिकी एकीकरण से सीखने में सुधार नहीं होता है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • स्मार्टफोन के उपयोग को प्रतिबंधित करने हेतु तर्क:
    • रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि “14 देशों में केवल मोबाइल डिवाइस से निकटता के कारण छात्रों का ध्यान भटकता है और सीखने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, फिर भी चार में से एक से भी कम ने स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है।”
    • इसने 2 से 17 वर्ष की आयु के बीच के युवाओं के एक अध्ययन का हवाला दिया जिससे पता चला कि अधिक समय तक स्क्रीन देखना खराब स्वास्थ्य, कम जिज्ञासा, आत्म-नियंत्रण और भावनात्मक स्थिरता, उच्च चिंता एवं अवसाद का निदान से संबंधित है।
  • पहुँच में असमानता:
    • कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन सीखने की ओर तेज़ी से बदलाव के कारण दुनिया भर में कम-से-कम आधे अरब छात्र वंचित रह गए, जिसका सबसे गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकी का सीमित अनुकूलन:  
    • तकनीकी परिवर्तन की तेज़ गति शिक्षा प्रणालियों को अनुकूलित करने के लिये दबाव डालती है।
    • डिजिटल साक्षरता तथा आलोचनात्मक विचार कौशल विशेष रूप से जनरेटिव AI के विकास के साथ महत्त्वपूर्ण हैं।
    • हालाँकि अनुकूलन के प्रयास अभी भी प्रगति पर हैं, केवल सीमित संख्या में देशों के पास AI के लिये परिभाषित कौशल और पाठ्यक्रम हैं।  
  • डेटा प्राइवेसी:  
    • बच्चों का डेटा उजागर किया जा रहा है, फिर भी केवल 16% देश कानून द्वारा शिक्षा में डेटा गोपनीयता की स्पष्ट गारंटी देते हैं।
      • एक विश्लेषण में ज्ञात हुआ कि महामारी के दौरान अनुशंसित 163 शिक्षा प्रौद्योगिकी उत्पादों में से 89% बच्चों का सर्वेक्षण कर सकते हैं। 
      • इसके अलावा महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने वाली 42 में से 39 सरकारों ने ऐसे उपयोगों को बढ़ावा दिया जो बच्चों के अधिकारों को जोखिम में डालते थे या उनका उल्लंघन करते थे। 
  • लागत पर विचार:  
    • कई देश प्रौद्योगिकी खरीद के दीर्घकालिक वित्तीय निहितार्थों को नज़रअंदाज करते हैं और एडटेक मार्केट (EdTech Market) का विस्तार जारी है, जबकि मूलभूत शिक्षा की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हुई हैं।
    • प्रौद्योगिकी को प्राय: राष्ट्रीय बजट की दीर्घकालिक लागतों को ध्यान में रखते हुए अंतर को कम करने के लिये लाया जाता है।
      • निम्न-आय वाले देशों में मूलभूत डिजिटल शिक्षा की ओर बढ़ने तथा निम्न-मध्यम- आय वाले देशों में सभी स्कूलों को इंटरनेट से जोड़ने की लागत राष्ट्रीय SDG (सतत् विकास लक्ष्य) 4 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये उनके वर्तमान वित्तपोषण अंतर में 50% का इज़ाफा करेगी।

सिफारिशें 

  • लर्निंग (अधिगम) टेक्नोलॉजी की प्रभावशीलता में कठोर और निष्पक्ष प्रमाण की आवश्यकता है। शिक्षा में प्रौद्योगिकी एकीकरण के बारे में जानकारीपूर्ण निर्णय लेने के लिये नीति निर्माताओं के पास विश्वसनीय साक्ष्य होने चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से अधिगम अनुभवों को बढ़ाना चाहिये और छात्रों तथा शिक्षकों का समर्थन करना चाहिये न कि व्यक्तिगत रूप से शिक्षक के नेतृत्व वाले निर्देश को प्रतिस्थापित करना चाहिये।
  • शिक्षा का अधिकार सार्थक संबद्धता से जुड़ा हुआ है, यह हाशिये पर रहने वाले समुदायों तक पहुँच बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ वर्ष 2030 तक सभी स्कूलों को इंटरनेट से जोड़ने के लिये मानक स्थापित करने का आह्वान करता है।
  • जबकि प्रौद्योगिकी शिक्षा में संभावित लाभ प्रदान करती है, हालाँकि दीर्घकालिक लागतों पर विचार करना आवश्यक है।

यूनेस्को:

  • यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है। यह शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति स्थापित करने का प्रयास करती है। 
  • यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समूह (UNSDG) का सदस्य है। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों एवं संगठनों के इस समूह का उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करना है। 
  • यूनेस्को का मुख्यालय पेरिस में अवस्थित है एवं विश्व में इसके 50 से अधिक क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
  • इसमें 194 सदस्य और 12 सहयोगी सदस्य हैं, यह सामान्य सम्मेलन एवं कार्यकारी बोर्ड द्वारा शासित होता है।
    • यूनेस्को के सदस्य देशों में शामिल तीन देश- कुक द्वीप (Cook Islands), निउए (Niue) एवं फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में से तीन देश- इज़रायल,लिचेंस्टीन,संयुक्त राज्य अमेरिका यूनेस्को के सदस्य देश नहीं हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

8वीं भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा नीति वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

8वीं भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा नीति वार्ता, व्यापक रणनीतिक साझेदारी, परमाणु अप्रसार संधि, 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता, म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट, क्वाड

मेन्स के लिये:

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध, चुनौतियाँ और आगे की राह

चर्चा में क्यों? 

8वीं भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा नीति वार्ता (DPT) कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित की गई।

वार्ता के प्रमुख बिंदु:

  • भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की समीक्षा की तथा द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को और मज़बूत करने के लिये नई पहल की खोज की।
  • दोनों पक्षों ने आपसी विश्वास एवं समझ, सामान्य हितों तथा साझा मूल्यों के आधार पर व्यापक रणनीतिक साझेदारी को लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
  • भारत ने अपने जहाज़ निर्माण तथा रखरखाव योजनाओं में ऑस्ट्रेलियाई सशस्त्र बलों के साथ सहयोग करने की सामर्थ्य एवं क्षमता के साथ भारतीय रक्षा उद्योग की क्षमता पर प्रकाश डाला।
  • दोनों पक्ष हाइड्रोग्राफी समझौते (Hydrography Agreement) को शीघ्र अंतिम रूप देने पर सहमत हुए।

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध:

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: 
    • भारत और ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार स्वतंत्रता-पूर्व काल में राजनयिक संबंध स्थापित किये, जब वर्ष 1941 में सिडनी में भारत के महावाणिज्य दूतावास को व्यापार कार्यालय के रूप में खोला गया था।
    • वर्ष 2014 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत के साथ यूरेनियम आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो भारत के "त्रुटिहीन" अप्रसार रिकॉर्ड की मान्यता में परमाणु अप्रसार संधि पर गैर-हस्ताक्षरकर्ता देश के साथ अपनी तरह का पहला समझौता था।
  • रणनीतिक संबंध: 
    • वर्ष 2020 में भारत-ऑस्ट्रेलिया नेताओं के वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी से व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया।
    • वर्ष 2022 और 2023 में भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन तथा विदेश मंत्रियों की बैठक सहित उच्च स्तरीय भागीदारी एवं मंत्रिस्तरीय यात्राओं की एक शृंखला शुरू हुई। दूसरे भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान कई प्रमुख घोषणाएँ की गईं, जिनमें शामिल हैं:
      • कौशल के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये प्रवासन तथा गतिशीलता साझेदारी व्यवस्था पर आशय पत्र।
  • रक्षा सहयोग: 
  • संयुक्त सैन्य अभ्यास: 
  • चाइना फैक्टर: 
    • ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध कई कारणों से तनावपूर्ण हो गए, जिनमें ऑस्ट्रेलिया द्वारा 5G नेटवर्क से हुआवेई पर प्रतिबंध लगाना, कोविड-19 की उत्पत्ति की जाँच करना और शिनजियांग एवं हॉन्गकॉन्ग में चीन के मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करना शामिल है।
    • चीन ने ऑस्ट्रेलियाई निर्यात पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाकर सभी मंत्रिस्तरीय संपर्क समाप्त कर दिये।
    • भारत को सीमा पर चीनी आक्रामकता का सामना करना पड़ रहा है जो गलवान घाटी में होने वाली झड़प जैसी घटनाओं से उजागर हुआ है।
    • ऑस्ट्रेलिया तथा भारत दोनों नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करते हैं, वे इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय पहुँच बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो समावेशी हो, अग्रिम आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा दें।
    • क्वाड  (भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान) में देशों की भागीदारी साझा चिंताओं के आधार पर उनके हितों के अभिसरण का एक उदाहरण है।
  • बहुपक्षीय सहयोग:
  • आर्थिक सहयोग: 
    • आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA): 
      • यह एक दशक में विकसित देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला मुक्त व्यापार समझौता है जो दिसंबर 2022 में लागू हुआ।
    • सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव (SCRI): 
      • भारत और ऑस्ट्रेलिया जापान के साथ त्रिपक्षीय व्यवस्था में भागीदार हैं जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के लचीलेपन को बढ़ाना चाहता है।
    • द्विपक्षीय व्यापार: 
      • ऑस्ट्रेलिया भारत का 17वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और भारत, ऑस्ट्रेलिया का 9वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
      • भारत और ऑस्ट्रेलिया के मध्य द्विपक्षीय व्यापार (अप्रैल-नवंबर 2022) 18,903 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा है।
      • अप्रैल 2000 से सितंबर 2022 तक 1,060.27 मिलियन अमेरिकी डॉलर की संचित FDI राशि के साथ ऑस्ट्रेलिया भारत में FDI इक्विटी प्रवाह में 29वें स्थान पर है।
  • शिक्षा क्षेत्र में सहयोग: 
    • मार्च 2023 में शैक्षिक योग्यता की पारस्परिक मान्यता ( Mutual Recognition of Educational Qualifications- MREQ) के लिये सहयोग पर हस्ताक्षर किये गए थे। यह भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच छात्रों की गतिशीलता को सुविधाजनक बनाएगा।
    • डीकिन विश्वविद्यालय और वोलोंगोंग विश्वविद्यालय भारत में परिसर खोलने की योजना बना रहे हैं।
    • 1 लाख से अधिक भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं, जिससे ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्र विदेशी छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा समूह बनकर उभरा है।
  • स्वच्छ ऊर्जा में सहयोग:
    • वर्ष 2022 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा के एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर कर देशों ने अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों जैसे- अल्ट्रा लो-कॉस्ट सौर एवं स्वच्छ हाइड्रोजन की लागत को न्यूनतम करने के लिये साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की।
    • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के तहत प्रशांत महाद्वीपीय देशों को 10 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (AUD) की सहायता प्रदान करने की घोषणा की।
    • दोनों देशों ने तीन वर्ष की भारत-ऑस्ट्रेलिया दुर्लभ खनिज निवेश साझेदारी के लिये 5.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का वचन दिया।

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को लेकर चुनौतियाँ:

  • ऑस्ट्रेलिया में अडानी कोयला खदान परियोजना पर विवाद था, हालाँकि कुछ कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया, जिससे दोनों देशों के आपसी संबंधों में तनाव उत्पन्न हो गया।
  • ऑस्ट्रेलिया में काम करने के इच्छुक भारतीय कामगारों और छात्रों के लिये वीज़ा प्रतिबंधों को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।
  • खालिस्तान समर्थकों द्वारा हाल ही में भारतीय प्रवासियों और मंदिरों पर किये गए हमलों ने तनाव उत्पन्न कर दिया है।

आगे की राह

  • साझा मूल्यों, विभिन्न प्रकार की रुचियों, भौगोलिक उद्देश्यों के कारण हाल के वर्षों में भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध मज़बूत हुए हैं।
  • दोनों देश एक ऐसा हिंद-प्रशांत क्षेत्र चाहते हैं जो मुक्त, खुला, समावेशी और नियम पूर्वक शासित हो; किसी भी विवाद को बिना किसी दबाव या एकतरफा कार्रवाई के सुलझाया जाना चाहिये।
  • भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन जैसी पहल, भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच नए सिरे से संबंध, इंडो-पैसिफिक में नियम-आधारित आदेश सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये दोनों देशों के बीच संबंधों को और मज़बूत करने का अवसर प्रदान करते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिए:

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2.  कनाडा
  3.  चीन
  4.  भारत
  5.  जापान
  6.  यू.एस.ए.

उपर्युत्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुक्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं?

(a) केवल 1, 2, 4 और 5    
(b) केवल 3, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4 और 5   
(d) केवल 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c) 

व्याख्या

  • एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के छह साझेदारों अर्थात् पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, कोरिया गणराज्य, जापान, भारत के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

फुल-रिज़र्व बैंकिंग बनाम फ्रैक्शनल-रिज़र्व बैंकिंग

प्रिलिम्स के लिये:

फुल-रिज़र्व बैंकिंग, फ्रैक्शनल-रिज़र्व बैंकिंग, बैंक संचालन, जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम

मेन्स के लिये:

भारत में बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित मुद्द

चर्चा में क्यों?  

अर्थशास्त्रियों के बीच फुल-रिज़र्व बैंकिंग (100% रिज़र्व बैंकिंग) बनाम फ्रैक्शनल-रिज़र्व बैंकिंग का मुद्दा  चर्चा का विषय बना हुआ है।

  • हालाँकि दोनों प्रणालियों के अपने समर्थक और आलोचक हैं, आर्थिक विकास तथा वित्तीय स्थिरता पर उनके संभावित प्रभाव का आकलन करने के लिये उनके बीच महत्त्वपूर्ण अंतर को समझना आवश्यक है।

फुल-रिज़र्व बैंकिंग बनाम फ्रैक्शनल-रिज़र्व बैंकिंग:

  • फुल-रिज़र्व बैंकिंग: जमा की सुरक्षा
    • फुल-रिज़र्व बैंकिंग के तहत बैंकों को ग्राहकों से प्राप्त मांग जमा को उधार देने से सख्ती से प्रतिबंधित किया जाता है जिससे प्रतिबंध के जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • इसके बजाय उन्हें केवल संरक्षक के रूप में कार्य करते हुए इन जमाओं का 100% हमेशा अपने कक्ष (Vaults) में रखना चाहिये।
    • बैंक इस सेवा के लिये शुल्क लेकर जमाकर्ताओं के पैसे के सुरक्षित रक्षक के रूप में कार्य करते हैं।
      • बैंक केवल सावधि जमा के रूप में प्राप्त धन को उधार दे सकते हैं।
  • फ्रैक्शनल-रिज़र्व बैंकिंग: क्रेडिट और जोखिम का विस्तार:
    • फ्रैक्शनल-रिज़र्व बैंकिंग प्रणाली, जो वर्तमान में चलन में है, बैंकों को उनकी रिज़र्व में रखी नकदी से अधिक धन उधार देने की अनुमति देती है।
      • यह प्रणाली उधार देने के लिये इलेक्ट्रॉनिक मनी पर बहुत अधिक निर्भर करती है।
    • यदि कई जमाकर्ता एक साथ नकदी की मांग करते हैं तो बैंक बंद होना एक संभावित जोखिम है।
    • बैंक बंद होने से कई जमाकर्ताओं द्वारा एक साथ नकदी की मांग करने का संभावित जोखिम है।
      • हालाँकि केंद्रीय बैंक तत्काल संकट को टालने के लिये आपातकालीन नकदी प्रदान कर सकता है।
  • अलग-अलग दृष्टिकोण:  
    • फ्रैक्शनल-रिज़र्व बैंकिंग के समर्थकों का तर्क है कि यह अर्थव्यवस्था को केवल जमाकर्ताओं की वास्तविक बचत पर निर्भर होने से मुक्त करके निवेश तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
      • दूसरी ओर, फुल-रिज़र्व बैंकिंग के समर्थकों का तर्क है कि यह फ्रैक्शनल-रिज़र्व प्रणाली में निहित संकटों को रोकता है तथा अधिक स्थिर अर्थव्यवस्था की ओर ले जाता है।  

मांग जमा और सावधि जमा के बीच अंतर:

  • मांग जमा: 
    • मांग जमा से तात्पर्य बैंक खाते में रखी धनराशि से है जिसे बिना किसी नोटिस या जुर्माने के किसी भी समय निकाला जा सकता है।
      • इन्हें "चालू खाते" के रूप में भी जाना जाता है। 
    • यह रोज़मर्रा के लेन-देन और भुगतान के लिये उच्च तरलता तथा अनुकूलन प्रदान करता है।
      • चूँकि ग्राहक मांग पर धनराशि निकाल सकते हैं, बैंक आमतौर पर इन खातों पर बहुत कम या कोई ब्याज नहीं देते हैं। 
  • सावधि जमा: 
    • सावधि जमा एक निश्चित अवधि के लिये बैंक खाते में रखी गई धनराशि है, जिसे आमतौर पर "अवधि" या "कार्यकाल" के रूप में जाना जाता है।
      • खाताधारक अवधि समाप्त होने तक धनराशि नहीं निकालने के लिये सहमत होते हैं।
    • पैसे को लॉक करने के बदले में बैंक खाताधारक को मांग जमा की तुलना में अधिक ब्याज दर से पुरस्कृत करता है
      • हालाँकि परिपक्वता तिथि से पहले धनराशि निकालने पर आमतौर पर जुर्माना लगता है।

बैंक से धन निकालने की होड़

  • परिचय:  
    • बैंक संचालन उस स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ बड़ी संख्या में जमाकर्ता एक साथ बैंक से अपना धन बैंक की सॉल्वेंसी या स्थिरता संबंधी चिंताओं के कारण निकालते हैं।
  • प्रभाव:  
    • चलनिधि संकट: आकस्मिक और बड़े पैमाने पर धन की निकासी से बैंक के लिये चलनिधि संकट (Liquidity Crisis) उत्पन्न हो सकता है।
      • बैंक के पास सभी निकासी अनुरोधों को पूर्ण करने हेतु पर्याप्त नकदी भंडार नहीं हो सकता है, जिससे जमाकर्ताओं के बीच घबराहट बढ़ सकती है।
    • संक्रामक प्रभाव: किसी एक बैंक पर निर्भर रहने वाला बैंक प्रभावित हो सकता है, जिससे सिस्टम में शामिल अन्य बैंकों में भय उत्पन्न हो सकता है।
      • यदि इस संक्रामक प्रभाव पर तुरंत काबू नहीं पाया गया तो यह व्यापक वित्तीय संकट का कारण बन सकता है।
    • भरोसे की कमी: एक बैंक के दिवालिया होने से संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली से आम जनता का भरोसा गिर सकता है, जिससे वित्तीय संस्थानों में भरोसे की कमी हो सकती है।
      • इसके परिणामस्वरूप जमा पूंजी में दीर्घकालिक कमी हो सकती है, जिससे बैंकों को ऋण प्रदान करना और आर्थिक विकास का समर्थन करना कठिन हो जाएगा।
    • इससे अर्थव्यवस्था के अनौपचारिकीकरण में वृद्धि हो सकती है।

नोट:  

भारत में जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) एक निश्चित सीमा (वर्तमान में प्रति बैंक पर प्रति जमाकर्त्ता 5 लाख रुपए) तक बैंक जमा के लिये जमा बीमा प्रदान करता है। हालाँकि बैंक के विफल होने की स्थिति में इस सीमा से अधिक धनराशि वाले जमाकर्ताओं को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

स्रोत: द हिंदू


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