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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हिंद-प्रशांत: रणनीतिक महत्त्व

  • 19 Sep 2019
  • 12 min read

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों से हिंद-प्रशांत क्षेत्र का मुद्दा विभिन्न करणों से लगातार चर्चा में बना रहता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, बदलते विश्व में हिंद-प्रशांत एक नई संकल्पना और विचार है। बहुत से देश और अंतर्राष्ट्रीय फोरम अपने आधिकारिक वक्तव्यों में इस शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं और वर्तमान समय में यह प्रवृत्ति बढ़ रही है।

भारत, फ्राँस और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों और संधारणीय मुद्दों की पहचान करने के लिये ट्रैक 1.5 डायलॉग आयोजित किये हैं। पेरिस में सम्पन्न वार्षिक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्राँसस के राष्ट्रपति इमैनुअल मेक्रों के बीच वार्ता का एक प्रमुख एजेंडा ‘नौवहन की स्वतन्त्रता और हिंद-प्रशांत में स्थिरता’ था।

क्या है ट्रैक 1.5 डायलॉग?

  • ट्रैक 1.5 डायलॉग का अर्थ है अनौपचारिक, गैर-आधिकारिक व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर के नीति निर्माता।
  • ये ट्रैक 1.5 चिंतन/डायलॉग प्रक्रियाएं ट्रैक 1 वार्ता तय करने और उसकी तैयारी के लिये कार्य करते हैं।
  • प्रथम स्तर (ट्रैक 1) में दो देशों के नेतृत्व (राजनीतिक और/या सैनिक) के बीच बातचीत शामिल है।

कैसे उपजा हिंद-प्रशांत शब्द?

  • यह एक नया विचार है। एक दशक पहले विश्व ने हिंद-प्रशांत के बारे में बात करना शुरू किया, लेकिन जितनी तेज़ी से यह आगे बढ़ा वह काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • इस शब्द की लोकप्रियता का एक कारण यह है कि हिन्द और प्रशांत महासागर रणनीतिक दृष्टि से आपस में जुड़े हैं।
  • यह भी कि वैश्विक महत्त्व का केंद्र एशिया में स्थानांतरित हो चुका है। इसका कारण है, हिन्द और प्रशांत महासागरों के समुद्री मार्ग। विश्व व्यापार का अधिकांश इन महासागरों से होकर गुजरता है।
    • शीतयुद्ध से पहले एक समय था जब विश्व के महत्त्व का केंद्र अटलांटिक के आरपार था अर्थात व्यापार अटलांटिक से होकर जाता था, लेकिन अब यह स्थानांतरित हो चुका है।
    • पहले एशिया-प्रशांत शब्द प्रयुक्त किया जाता था, जिससेकि भारत को बाहर रखा गया था।
    • हिंद-प्रशांत शब्द स्थिति में भारत के महत्त्व को दर्शाता है।
  • आतंकवाद और क्षेत्र में एक विशेष देश के दावे का भय हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये बड़ा खतरा है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विश्व की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ- अमेरिका, चीन, जापान और भारत शामिल हैं।
  • विभिन्न हितधारकों द्वारा हिंद-प्रशांत की व्याख्या विभिन्न तरीके से की जाती है।
    • भारत इस क्षेत्र को समावेशी, मुक्त, एकीकृत और संतुलित स्थान मानता है। भारत सतत रूप से हिन्द महासागर और प्रशांत के बीच रणनीतिक अंतर-संपर्क, सामान्य चुनौतियों और अवसरों पर बल देता रहा है।
    • इस क्षेत्र में आचरण के नियमों या व्यवहारों का महत्त्व प्रदर्शित करते हुए अमेरिका इसे एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत चाहता है, और इस प्रकार क्षेत्र में चीन की भूमिका को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है।
    • आसियान देश हिंद-प्रशांत को एक सहवर्तनक (संगी) मॉडल के रूप में देखते हैं।

नोट:

  • सहवर्तनवाद (Consociationalism) गहरे रूप से विभाजित समाजों में एक स्थिर लोकतंत्रीय प्रणाली है जो विभिन्न सामाजिक समूहों के कुलीनों के बीच शक्ति में हिस्सेदारी पर आधारित है।

भारत–प्रशांत पर भारत का दृष्टिकोण

  • भारत के विशेष सहभागियों में बहुत से जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, और इंडोनेशिया वास्तव में हिंद-प्रशांत को एशिया-प्रशांत प्लस भारत के रूप में देखते हैं। वे भारत को एशिया-प्रशांत की रणनीतिक गतिकी में जोड़ने की कोशिश करते हैं।
    • वे दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर में भारत की उपस्थिति मुख्य रूप से चीन का विरोध करने के लिये चाहते हैं।
  • लेकिन भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा की संरचना के लिये सहयोग चाहता है। सामान्य समृद्धि और सुरक्षा के लिये देशों को विचार-विमर्श द्वारा इस क्षेत्र के लिये एक सामान्य नियम आधारित व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता है।
  • भारत के लिये हिंद-प्रशांत एक स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी क्षेत्र है। इसमें यह भौगोलिक क्षेत्र के सारे देशों को शामिल करता है तथा साथ ही उन अन्य को भी जिनका इससे कोई हित जुड़ा है। इसके भौगोलिक विस्तार में भारत इस क्षेत्र में अफ्रीका के तटों से लेकर अमेरिका के तटों को समाहित करता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत एक नियम आधारित, मुक्त, संतुलित और स्थिर व्यापार पर्यावरण का समर्थन करता है जो कि व्यापार और निवेश में विश्व के समस्त देशों का उत्थान करे। भारत रीज़नल कॉम्प्रेहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) से जो चाहता है, यह उसके समान है।
  • चीन के विपरीत भारत एक एकीकृत आसियान चाहता है न कि विभाजित। चीन कुछ आसियान सदस्यों को एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करता है और इसके द्वारा ‘फूट डालो और राज करो’ पर अमल करते हुए सफल रणनीति अपनाता है।
  • भारत, अमेरिका के हिंद-प्रशांत संस्करण का समर्थन नहीं करता जो कि चीन के प्रभुत्व को नियंत्रित करना चाहता है। इसके विपरीत भारत ऐसे रास्तों की तलाश करता है जिसके द्वारा वह चीन के साथ मिलकर कार्य कर सके।
    • पहले यह क्षेत्र लगभग एक अमेरिकी सरोवर की तरह हुआ करता था। लेकिन अब यह भय है कि क्षेत्र एक चीनी सरोवर बन जाएगा। स्कारबोरौ शोल विवाद इसका एक उदाहरण है।
    • भारत क्षेत्र में किसी खिलाड़ी की प्रधानता नहीं चाहता। यह सुनिश्चित करने के लिये कि क्षेत्र में चीन अपना प्रभुत्व स्थापित न कर सके, भारत त्रिकोणीय जैसे भारत-ऑस्ट्रेलिया-फ़्रांस, भारत-ऑस्ट्रेलिया-इन्डोनेशिया, व्यवस्था चाहता है।

चीन: एक खतरा या चुनौती

  • चीन एशिया-प्रशांत देशों के लिये एक खतरा बन चुका है और साथ-ही-साथ हिन्द महासागर में भारतीय हितों के लिये खतरा बन रहा है।
    • हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका) पर चीन का नियंत्रण है और यह भारतीय तट से बहुत अधिक दूर नहीं है।
    • चीन, भारत के पड़ोसियों को सैनिक साजो-सामान की आपूर्ति कर रहा है, जैसे- म्यांमार को पनडुब्बियाँ, श्रीलंका को युद्धपोत, बांग्लादेश और थाइलैंड को सैन्य उपकरण। इस प्रकार वह इस क्षेत्र का औपनिवेशीकरण कर रहा है।
  • आसियान: आसियान के कुछ सदस्य देश चीन के प्रभाव में हैं और इस प्रकार हिंद-प्रशांत संकल्पना की दृष्टि से आसियान एकता के लिये खतरा हैं।
    • चीन आसियान का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और उसे सम्पूर्ण समूह द्वारा किनारे किया जाना मुश्किल है, इससे इस समूह के साथ भारत के संबंध और तनावपूर्ण बन सकते हैं।
  • दक्षिण पूर्व एशिया हिंद-प्रशांत के केंद्र में है और आसियान भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर देश की पूर्व की ओर देखो नीति के लिये। यह भी कि आसियान देश जानते हैं कि क्षेत्र में चीन के प्रति संतुलन कायम करने के लिये भारत की मौजूदगी आवश्यक है।
  • कई मतभेदों के बावजूद कुछ मुद्दों पर भारत चीन के हित समान हैं, जैसे- वैश्वीकरण, जलवायु परिवर्तन आदि।
    • इसके अलावा भारत और चीन कई अंतर्राष्ट्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स, एससीओ आदि के सदस्य हैं और सामान हित रखते हैं ।
    • इसलिये चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के महत्त्व के लिये खतरे की तुलना में दृष्टिकोण की दृष्टि से एक चुनौती अधिक माना जाता है।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र के देशों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत समुद्र एवं नभ में सामान्य स्थलों को प्रयोग करने का समान अधिकार होना चाहिये, जिसके लिये नौवहन की स्वतंत्रता, अबाधित व्यवसाय और विवादों का अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता होगी।
  • क्षेत्र में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिये सम्मान, परामर्श, अच्छा प्रशासन, पारदर्शिता, व्यवहार्यता और संवहनीयता के आधार पर संपर्क स्थापित करना महत्त्वपूर्ण होगा।
  • हिंद-प्रशांत सुरक्षा के लिये मैरीटाइम डोमैन अवेयरनेस (MDA) आवश्यक है।
    • MDA का अर्थ है उस प्रत्येक गतिविधि की अच्छी समझ जो समुद्री पर्यावरण से जुड़ी हो और जो सुरक्षा, संरक्षा, अर्थव्यवस्था या पर्यावरण पर असर डाल सकती हो।
  • बहुध्रुवीयता: क्षेत्र में देशों का सुरक्षा और शांति तथा कानून का पालन करने भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह क्षेत्र में बहुध्रुवीयता की सुविधा भी देगा।
    • क्षेत्र के अपेक्षाकृत छोटे देश चाहते हैं कि भारत उन्हें उनके आर्थिक विकल्पों साथ सैनिक रूप से भी विस्तृत करने में सहायता करे।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियों से निपटने हेतु भारत के लिये यह आवश्यक है कि उसके पास मज़बूत नौसैनिक क्षमता, बहुपक्षीय कूटनीति और देशों के साथ आर्थिक एकीकरण हो।
  • भारत को हिन्द महासागर के अपने विज़न अर्थात सागर- ‘सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीज़न’ पर टिके रहना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल को कम करने के भारत के के प्रयासों का तुलनात्मक विश्लेषण कीजिये।

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