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डेली न्यूज़

  • 28 Jun, 2021
  • 69 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

ऊर्जा परिवर्तन को आकार देने वाली भारतीय पहल

प्रिलिम्स के लिये

नवीकरणीय ऊर्जा ट्रांज़ीशन से जुड़ी विभिन्न पहलों से संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये

नवीकरणीय ऊर्जा और इससे बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री ने 'द इंडिया स्टोरी' पुस्तिका का शुभारंभ किया, जिसमें भारतीय ऊर्जा क्षेत्र में ट्रांज़ीशन को आकार देने वाली भारतीय पहलों का संकलन किया गया है।

  • इस पुस्तिका को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा नागरिक केंद्रित त्वरित ऊर्जा ट्रांज़ीशन पर आयोजित कार्यक्रम में लॉन्च किया गया था।
    • यह संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन (PMI) और ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (CEEW) के सहयोग से आयोजित किया गया था।
  • मंत्री द्वारा  एक वेबसाइट भी लॉन्च की गई, जो दुनिया भर से ऊर्जा ट्रांज़ीशन संबंधी ज्ञान संसाधनों के भंडार के रूप में कार्य करेगी।

प्रमुख बिंदु

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का विकास:

  • पिछले 6 वर्षों में भारत की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में ढाई गुना से अधिक की वृद्धि हुई है और यह 141 गीगा वाट (बड़े हाइड्रो सहित) से अधिक तक पहुँच गई है।
    • यह देश की कुल क्षमता का लगभग 37 प्रतिशत है।
  • भारत की स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 15 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है और यह 41.09 गीगावाट पर पहुँच गई है। 
  • भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता दुनिया में चौथी सबसे बड़ी क्षमता है। वास्तव में भारत का वार्षिक नवीकरणीय ऊर्जा वर्द्धन वर्ष 2017 से कोयला आधारित थर्मल पावर से अधिक रहा है।

नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश में सुगमता:

  • पिछले 7 वर्षों के दौरान भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है।
  • भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिये एक बहुत ही उदार विदेशी निवेश नीति अपनाई गई है, जिसमें इस क्षेत्र में स्वत: मार्ग के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी गई है।
    • ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
  • घरेलू और विदेशी निवेशकों को सहयोग एवं सुविधा प्रदान करने के लिये सभी मंत्रालयों में समर्पित ‘परियोजना विकास प्रकोष्ठों’ (PDC) और FDI प्रकोष्ठों की स्थापना की गई है।
    • ‘परियोजना विकास प्रकोष्ठों की स्थापना केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच समन्वय के माध्यम से निवेश योग्य परियोजनाओं के विकास हेतु की गई है और इस तरह भारत में निवेश योग्य परियोजनाओं की संख्या में बढ़ोतरी होगी, जिससे देश में विदेशी निवेश के प्रवाह में भी वृद्धि होती है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा निवेश संवर्द्धन और सुविधा बोर्ड (REIPFB) पोर्टल
    • इस पोर्टल को परियोजनाओं के विकास और भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नया निवेश लाने के लिये उद्योग एवं निवेशकों को एकमुश्त सहायता और सुविधा प्रदान करने हेतु विकसित किया गया है।

उद्योग की प्रतिबद्धताएँ:

  • भारतीय उद्योग के कई सदस्यों ने स्वेच्छा से नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी लक्ष्यों की घोषणा की है और कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट (CDP), रिन्यूएबल 100% (RE 100) और विज्ञान आधारित लक्ष्य (SBTs) के लिये प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
    • CDP एक वैश्विक प्रकटीकरण प्रणाली है, जो कंपनियों, शहरों, राज्यों और क्षेत्रों को उनके पर्यावरणीय प्रभावों को मापने और प्रबंधित करने में सक्षम बनाती है।
    • SBTs व्यवसायों द्वारा निर्धारित ग्रीनहाउस गैस कटौती लक्ष्य हैं।

ग्रीन टैरिफ

  • 'ग्रीन टैरिफ' नीति संबंधी नियम बनाए जा रहे हैं, जो बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को पारंपरिक ईंधन स्रोतों से बिजली की तुलना में सस्ती दर पर स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली की आपूर्ति करने में मदद करेगी।
    • सरकार उर्वरकों और रिफाइनिंग उद्योगों (ग्रीन हाइड्रोजन खरीद दायित्वों) के लिये दायित्वों के साथ ग्रीन हाइड्रोजन को भी बढ़ावा दे रही है। 

नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाने की पहल:

  • अपतटीय पवन ऊर्जा हेतु ‘व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण’ का विकल्प।
  • ‘ग्रीन टर्म अहेड मार्केट’ और ‘ग्रीन डे अहेड मार्केट’।
  • ओपन एक्सेस के माध्यम से RE सुविधा के लिये नियम।
  • ऊर्जा के गैर-पारंपरिक संसाधनों को बढ़ावा देने के लिये एक्सचेंजों के माध्यम से RE खरीद को भी अधिसूचित किया जाएगा।

भारत के ऊर्जा ट्रांज़ीशन को आकार देने वाली पहल:

  • विद्युतीकरण:
    • प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य): विश्वसनीय और सस्ती बिजली तक पहुँच के माध्यम से ग्रामीण और शहरी परिवारों को सशक्त बनाना।
    • हरित ऊर्जा कॉरिडोर (GEC): भारत के राष्ट्रीय ट्रांसमिशन नेटवर्क के साथ ग्रिड से जुड़ी अक्षय ऊर्जा को सिंक्रोनाइज़ करना।
    • राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन (NSGM) और स्मार्ट मीटर राष्ट्रीय कार्यक्रम (SMNP): भारत के बिजली क्षेत्र को एक सुरक्षित, अनुकूलित, टिकाऊ और डिजिटल रूप से सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र के अनुरूप बनाना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा:
    • राष्ट्रीय सौर मिशन: दुनिया के सबसे बड़े अक्षय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम के केंद्र में 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा की महत्त्वाकांक्षा वाला कार्यक्रम।
    • पवन ऊर्जा क्रांति: स्वच्छ ऊर्जा निर्माण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये भारत के मज़बूत पवन ऊर्जा क्षेत्र का लाभ उठाना।
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और सतत् कार्यक्रम: ईंधन आयात को कम करने, स्वच्छ ऊर्जा उपयोग बढ़ाने, कचरे का प्रबंधन करने और रोज़गार सृजित करने के लिये मूल्य शृंखला का निर्माण करना।
    • लघु जलविद्युत (SHP): दूरदराज़ के समुदायों को आर्थिक मुख्यधारा में एकीकृत करने के लिये जल शक्ति का उपयोग करना।
    • राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन: बहुमुखी स्वच्छ ईंधन की व्यावसायिक व्यवहार्यता की खोज करना।
    • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना: भारत को वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा मूल्य शृंखला में एकीकृत करना।
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और SAYAY: ईंधन आयात को कम करने, स्वच्छ ऊर्जा उपयोग बढ़ाने, कचरे का प्रबंधन करने और रोज़गार सृजित करने के लिये मूल्य शृंखला का निर्माण।
  • ऊर्जा दक्षता:
    • उजाला: नागरिकों के लिये सस्ती, ऊर्जा-कुशल प्रकाश व्यवस्था और उपकरण की सुविधा प्रदान करना।
  • स्वच्छ कुकिंग:
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना: स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन के लिये घरों में एलपीजी गैस पहुँचाना- ‘स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन’।
  • औद्योगिक डीकार्बोनाइज़ेशन
    • परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (PAT): ऊर्जा दक्षता में वृद्धि और औद्योगिक क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करना।
  • सतत् परिवहन:
    • FAME योजना: विश्वसनीय, सस्ती और कुशल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिये भारत के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना।
    • भारतीय रेलवे का गोइंग ग्रीन मिशन: पर्यावरण संरक्षण से प्रेरित, वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन कर रहा है।
    • सतत् विमानन: विमान और हवाई अड्डे के संचालन के साथ स्वच्छ ईंधन, ऊर्जा दक्षता और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण को एकीकृत करना।
  • जलवायु स्मार्ट सिटी:
    • स्मार्ट सिटी मिशन (SCM): 'स्मार्ट समाधान' के माध्यम से टिकाऊ और जलवायु अनुकूल शहरी आवास विकसित करना।
    • ग्रीन बिल्डिंग मार्केट: संसाधन कुशल, टिकाऊ और जलवायु अनुकूल भवनों का निर्माण।
  • शहरी गैस वितरण:
    • भारत का CNG और PNG नेटवर्क: वाहनों, घरों और उद्योगों के लिये 'हरित' जीवाश्म ईंधन के उपयोग में वृद्धि।
  • कूलिंग एक्शन:
    • इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान: एयर कंडीशनर उद्योग को एक स्थायी कूलिंग वैल्यू चेन बनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • कौशल:
    • स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स (SCGJ): भारत के सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये एक कुशल और विशिष्ट कार्यबल का निर्माण करना।
  • वैश्विक पहल:
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): सतत् मानव विकास हेतु सूर्य की अनंत ऊर्जा का दोहन करने के लिये प्रेरित करना।
    • स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय (CEM): वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था के लिये प्रौद्योगिकी संचालित संक्रमण हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
    • मिशन इनोवेशन (MI): बड़े पैमाने पर प्रभाव के लिये सफल स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के नवाचार में निवेश करना।

स्रोत- पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय एमएसएमई दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र, एमएसएमई के बारे में 

मेन्स के लिये: 

MSMEs क्षेत्र को बढ़ावा देने संबंधी पहलें, MSMEs का महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

हर वर्ष 27 जून को सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के कार्यान्वयन में सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों के योगदान को मान्यता देने हेतु सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यम (Micro, Small and Medium-sized Enterprises (MSMEs) दिवस का आयोजन  जाता है।

प्रमुख बिंदु: 

इतिहास:

  •  अप्रैल 2017 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से 27 जून को सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यम दिवस के रूप में नामित किया।
  • मई 2017 में ‘एनहेनसिंग नेशनल केपेसिटीज़ फॉर अनलेशिंग फुल पोटेंशियल्स ऑफ  एमएसएमई इन अचीविंग द एसडीजीज़ इन डेवलपिंग कंट्रीज़' (Enhancing National Capacities for Unleashing Full Potentials of MSMEs in Achieving the SDGs in Developing Countries') नामक एक कार्यक्रम शुरू किया गया ।
  • इसे संयुक्त राष्ट्र शांति और विकास कोष (United Nations Peace and Development Fund) के सतत् विकास उप-निधि के लिये 2030 एजेंडा द्वारा वित्तपोषित किया गया है।

महत्त्व:

  • संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि देशों द्वारा सतत् विकास लक्ष्यों की पहचान की जाए और उनके बारे में जागरूकता उत्पन्न की जाए।
    • 136 देशों के व्यवसायों के मध्य कोविड -19 के पड़ने वाले प्रभाव पर किये गए एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र सर्वेक्षण से पता चला है कि लगभग 62% महिला-नेतृत्व वाले छोटे व्यवसाय कोविड-19 संकट से प्रभावित हुए हैं, जबकि पुरुष-नेतृत्त्व वाले व्यवसायों के बीच यह संख्या आधे से भी कम है, वहीं महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों की महामारी से न बच पाने की संभावना 27 प्रतिशत अधिक है।
  •  औपचारिक और अनौपचारिक सभी फर्मों में MSMEs की भागीदारी 90% से अधिक है तथा कुल रोज़गार में औसतन 70% और सकल घरेलू उत्पाद में  50% हिस्सेदारी है जिस कारण से वे ग्रीन रिकवरी (Green Recovery) की स्थिति प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वर्ष 2021 की थीम:

  • एमएसएमई 2021: की टू एन इन्क्लूसिव एंड सस्टेनेबल रिकवरी (Key to an inclusive and sustainable recovery)

भारतीय अर्थव्यवस्था में MSMEs की भूमिका:

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान करते हैं।
  • निर्यात के संदर्भ में वे आपूर्ति शृंखला का एक अभिन्न अंग हैं और कुल निर्यात में लगभग 48 प्रतिशत का योगदान देते हैं।
  • इसके अलावा MSMEs रोज़गार सृजन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और देश भर में लगभग 110 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं।
    • विदित हो कि MSMEs ग्रामीण अर्थव्यवस्था से भी जुड़े हुए हैं और लगभग आधे से अधिक MSMEs ग्रामीण भारत में कार्यरत हैं।

MSME

MSMEs क्षेत्र को बढ़ावा देने संबंधी पहलें

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (M/oMSME) खादी, ग्राम और उद्योगों सहित MSME क्षेत्र के वृद्धि और विकास को बढ़ावा देकर एक जीवंत MSME क्षेत्र की कल्पना करता है।
  • MSMEs को प्रभावित करने वाले नीतिगत मुद्दों तथा इस क्षेत्र की कवरेज एवं निवेश सीमा को संबोधित करने के लिये वर्ष 2006 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSMED) अधिनियम को अधिसूचित किया गया था।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह नए सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना और देश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
  • पारंपरिक उद्योगों के उन्‍नयन एवं पुनर्निर्माण के लिये कोष की योजना (SFURTI): इस योजना का उद्देश्य कारीगरों और पारंपरिक उद्योगों को समूहों में व्यवस्थित करना और इस प्रकार उन्हें वर्तमान बाज़ार परिदृश्य में प्रतिस्पर्द्धी बनाने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा हेतु एक योजना (ASPIRE): यह योजना 'कृषि आधारित उद्योग में स्टार्टअप के लिये फंड ऑफ फंड्स', ग्रामीण आजीविका बिज़नेस इनक्यूबेटर (LBI), प्रौद्योगिकी व्यवसाय इनक्यूबेटर (TBI) के माध्यम से नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देती है।
  • MSME को वृद्धिशील ऋण प्रदान करने के लिये ब्याज सबवेंशन योजना: यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें सभी कानूनी MSMEs को उनकी वैधता की अवधि के दौरान उनके बकाया, वर्तमान/वृद्धिशील सावधि ऋण/कार्यशील पूंजी पर 2% तक की राहत प्रदान की जाती है।
  • सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी योजना: ऋण के आसान प्रवाह की सुविधा के लिये शुरू की गई इस योजना के अंतर्गत MSMEs को दिये गए संपार्श्विक मुक्त ऋण हेतु गारंटी कवर प्रदान किया जाता है।
  • सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (MSE-CDP): इसका उद्देश्य MSEs की उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता के साथ-साथ क्षमता निर्माण को बढ़ाना है।
  • क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन स्कीम (CLCS-TUS): इसका उद्देश्य संयंत्र और मशीनरी की खरीद के लिये 15% पूंजी सब्सिडी प्रदान करके सूक्ष्म और लघु उद्यमों (एमएसई) को प्रौद्योगिकी उन्नयन की सुविधा प्रदान करना है।
  • CHAMPIONS पोर्टल: इसका उद्देश्य भारतीय MSMEs को उनकी शिकायतों को हल करके और उन्हें प्रोत्साहन, समर्थन प्रदान कर राष्ट्रीय और वैश्विक चैंपियन के रूप में स्थापित होने में सहायता करना है।
  • MSME समाधान: यह केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/सीपीएसई/राज्य सरकारों द्वारा विलंबित भुगतान के बारे में सीधे मामले दर्ज करने में सक्षम बनाता है।
  • उद्यम पंजीकरण पोर्टल: यह नया पोर्टल देश में एमएसएमई की संख्या पर डेटा एकत्र करने में सरकार की सहायता करता है।
  • एमएसएमई संबंध: यह एक सार्वजनिक खरीद पोर्टल है। इसे केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा एमएसई से सार्वजनिक खरीद के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये शुरू किया गया था।

स्रोत-हिंदुस्तान टाइम्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हाई एल्टीट्यूड के लिये नई चीनी मिलिशिया इकाइयाँ

प्रिलिम्स के लिये:

स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, प्रमुख अभियान

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंध- चुनौतियाँ और उभरते मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीनी सेना ने हाई एल्टीट्यूड (High Altitudes) वाले युद्धक्षेत्र के लिये स्थानीय तिब्बती युवाओं को शामिल करते हुए नई मिलिशिया (Militia) इकाइयाँ बनाई हैं।

China

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • मिमांग चेटन (Mimang Cheton) नामक नई इकाइयाँ वर्तमान में प्रशिक्षण के दौर से गुज़र रही हैं तथा इन्हें भारत-चीन सीमा के पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्षेत्रों में सर्वाधिक ऊपरी हिमालय पर्वतमाला में तैनात किया जाना है।
    • उन्हें विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिये प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिसमें एक तरफ ड्रोन जैसे उच्च तकनीक वाले उपकरणों का उपयोग करना, साथ ही साथ खच्चरों और घोड़ों को हिमालयी रेंज में उन क्षेत्रों तक पहुँचने के लिये शामिल किया गया है जहाँ आधुनिक साधनों से नहीं पहुँचा जा सकता है।
  • उन्हें पूर्वी लद्दाख के पास तैनात किया गया है, जहाँ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ-साथ सिक्किम और भूटान के साथ हालिया सीमा तनाव है।
    • LAC वह सीमांकन है जो भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र को चीनी-नियंत्रित क्षेत्र से अलग करती है।
  • पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील (Pangong Tso Lake) के पास चुंबी घाटी और तिब्बत के रुतोग में विभिन्न स्थानों पर प्रशिक्षित इकाइयों को पहले ही तैनात किया जा चुका है।
  •  नई मिमांग चेटन इकाइयों की तैनाती भारत के कुलीन और दशकों पुराने स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF)  को दर्शाती है। 
    • जैसे SFF तिब्बतियों की जानकारी पर निर्भर रहते हैं वैसे ही मिमांग चेटन भी तिब्बतियों के स्थानीय ज्ञान के साथ-साथ स्थानीय लोगों के हाई एल्टीट्यूड सिकनेस के प्रतिरोध पर निर्भर करता है, जो अल्पाइन युद्ध में एक समस्या है।

उद्देश्य :

  • हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर:
    • नई इकाइयों का उपयोग हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर के साथ-साथ निगरानी के लिये भी किया जाएगा।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू:
    • इकाइयों की एक नई विशेषता यह है कि प्रशिक्षण पूरा होने पर उन्हें तिब्बत में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा “आशीर्वाद” दिया जा रहा है, जिसे PLA से जातीय तिब्बतियों तक अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक पहुँच के संकेत के रूप में व्याख्यायित किया जा रहा है। 
    • यह संभवतः तिब्बत क्षेत्र में कुछ लाभ प्राप्त करने के लिये PLA की एक नई रणनीति है।

सीमा पर चीन के हालिया घटनाक्रम:

  • रेलवे लाइन:
    • चीन ने तिब्बत में पहली बुलेट ट्रेन लाइन शुरू की है, जो ल्हासा को अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास  निंगची (Nyingchi) से जोड़ती है।
    • वर्ष 2006 में शुरू किये गए चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग (Qinghai-Tibet railway) के बाद यह तिब्बत के लिये दूसरा प्रमुख रेल लिंक है।
  • राजमार्ग:
    • वर्ष 2021 में चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के साथ विवादित सीमा को लेकर दूरदराज़ के क्षेत्रों में अपनी पहुंँच को और अधिक मज़बूत करने हेतु सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण राजमार्ग के निर्माण कार्य को पूरा कर लिया है।
  • नए गाँव :
    • जनवरी 2021 में अरुणाचल प्रदेश में बुमला दर्रे से 5 किलोमीटर दूर चीन द्वारा तीन गांँवों के निर्माण किये जाने की खबरें आई थीं।
    • वर्ष 2020 के कुछ उपग्रह चित्रों में भूटान की सीमा के अंतर्गत 2-3 किमी में निर्मित ‘पंगडा’ नामक एक नया गांँव देखा गया।
    • वर्ष 2017 में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों में मध्यम रूप से संपन्न गाँव बनाने की योजना शुरू की।
    • इस योजना के तहत भारत, भूटान, नेपाल और चीन की सीमाओं के साथ पहली और दूसरी सीमांकन रेखा वाले अन्य दूरदराज़ के इलाकों में 628 गाँव विकसित किये जाएंगे। 

भारत के लिये चिंता:

  • रणनीतिक स्थान:
    • चुंबी घाटी की सामरिक स्थिति को देखते हुए ऐसा विकास भारत के लिये चिंता का विषय है।
      • चुंबी घाटी पूर्व में भूटान और पश्चिम में सिक्किम के बीच स्थित चीनी क्षेत्र का 100 किलोमीटर का फैलाव है। 
    • घाटी की स्थिति लंबे समय से चिंता का विषय रही है कि इसका उपयोग सिलीगुड़ी कॉरिडोर में रणनीतिक संचार लिंक को घेरने करने के लिये संचालन शुरू करने हेतु किया जा सकता है।
      • सिलीगुड़ी कॉरिडोर पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर के आसपास स्थित भूमि का एक संकरा हिस्सा है। यह पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है, इसे चिकन नेक के रूप में भी जाना जाता है।
  • चीन की मज़बूत होती स्थिति:
    • ये घटनाक्रम मई 2020 में शुरू हुए सीमा गतिरोध और हवाई अड्डों, हेलीपैड, मिसाइल सुविधाओं तथा हवाई साइटों सहित LAC के साथ चीनी क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के तेज़ी से निर्माण की पृष्ठभूमि के खिलाफ आए हैं।

भारत द्वारा अपनी सीमा को मज़बूत करने के लिये उठाए गए कदम:

  • जम्मू और कश्मीर के गुलमर्ग में भारत का अपना हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल (High Altitude Warfare School- HAWS) है।
  • भारत, सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Border Area Development Programme- BADP) के 10 प्रतिशत कोष को केवल चीन सीमा पर बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये खर्च करेगा।
  • सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) ने अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी नदी पर दापोरिजो पुल का निर्माण किया।
    • यह भारत और चीन के बीच LAC तक जाने वाली सड़कों को जोड़ता है।
  • अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले के नेचिफू में एक सुरंग तवांग के माध्यम से LAC तक सैनिकों की आवाजाही में लगने वाले समय को कम करेगी, जिसे चीन अपना क्षेत्र होने का दावा करता है।
  • अरुणाचल प्रदेश में से ला पास (Se La pass) के नीचे एक सुरंग का निर्माण किया जा रहा है जो तवांग को बाकी अरुणाचल और गुवाहाटी से जोड़ती है।
  • अरुणाचल प्रदेश सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्रों से शहरी केंद्रों की ओर जनसंख्या के पलायन (विशेष रूप से चीन सीमा के साथ लगे क्षेत्रों से) को रोकने के लिये केंद्र सरकार से पायलट विकास परियोजनाओं की मांग की है। अरुणाचल प्रदेश सरकार ने भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये पायलट परियोजनाओं के रूप में 10 जनगणना शहरों (Census Towns) के चयन की सिफारिश की है।
  • वर्ष 2019 में अरुणाचल प्रदेश में निचली दिबांग घाटी में स्थित सिसेरी नदी पुल (Sisseri River Bridge) का उद्घाटन किया गया था, जो दिबांग घाटी को सियांग से जोड़ता है।
  • वर्ष 2019 में भारतीय वायु सेना ने अरुणाचल प्रदेश में भारत के सबसे पूर्वी गाँव-विजयनगर (चांगलांग ज़िले) में पुनर्निर्मित हवाई पट्टी का उद्घाटन किया।
  • वर्ष 2019 में भारतीय सेना ने अपने नए ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ (IBG) के साथ अरुणाचल प्रदेश और असम में 'हिमविजय' (HimVijay) अभ्यास किया था।
  • बोगीबील पुल जो भारत का सबसे लंबा सड़क-रेल पुल है, असम में डिब्रूगढ़ को अरुणाचल प्रदेश में पासीघाट से जोड़ता है। इसका उद्घाटन वर्ष 2018 में किया गया था।

स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SSF):

परिचय:

  • इसकी स्थापना वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद हुई थी।
  • यह कैबिनेट सचिवालय के दायरे में आता है जहाँ इसका नेतृत्त्व एक महानिरीक्षक (Inspector General) करता है जो मेजर जनरल रैंक का एक सैन्य अधिकारी होता है।
    • SFF में शामिल इकाइयाँ ‘विकास बटालियन’ (Vikas Battalion) के रूप में जानी जाती हैं।
  • वे उच्च प्रशिक्षित विशेष बल कर्मी होते हैं, ये विभिन्न प्रकार के कार्य कर सकते हैं जो आमतौर पर किसी विशेष बल इकाई द्वारा किये जाते हैं।
  • यह एक ‘कोवर्ट आउटफिट’ (Covert Outfit) थी जिसमें खम्पा समुदाय के तिब्बतियों को भर्ती किया जाता था किंतु अब इसमें तिब्बतियों एवं गोरखाओं दोनों को भर्ती किया जाता है।
    • महिला सैनिक भी SSF इकाइयों का हिस्सा बनती हैं।
  • SFF इकाइयाँ सेना का हिस्सा नहीं हैं परंतु वे सेना के संचालन नियंत्रण में कार्य करती हैं।

प्रमुख अभियान:

  • ऑपरेशन ईगल (वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध), ऑपरेशन ब्लूस्टार (वर्ष 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से संबंधित), ऑपरेशन मेघदूत (वर्ष 1984 में सियाचिन ग्लेशियर को सुरक्षित करना) और ऑपरेशन विजय (वर्ष 1999 में कारगिल में पाकिस्तान के साथ युद्ध) तथा देश में कई विद्रोहों के विरुद्ध अभियान।

आगे की राह:

  • भारत को अपने हितों की रक्षा करने के लिये अपनी सीमा के पास चीन द्वारा किसी भी नए विकास के मामले में पर्याप्त रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा इसे कुशल तरीके से कर्मियों और अन्य रसद आपूर्ति की आवाजाही सुनिश्चित करने हेतु अपने क्षेत्र के कठिन सीमा क्षेत्रों में मजबूत बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस

प्रीलिम्स के लिये:

नशा मुक्त भारत अभियान, वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट

मेन्स के लिये: 

नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने वाले प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking) के अवसर पर नशा मुक्त भारत अभियान ( Nasha Mukt Bharat Abhiyaan- NMBA) हेतु वेबसाइट लॉन्च की है।

  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु नोडल मंत्रालय है, जो देश भर में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम के लिये विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करता है।

प्रमुख बिंदु: 

  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग से मुक्त विश्व के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु कार्रवाई और सहयोग को मज़बूत करने के लिये संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) महासभा ने दिसंबर 1987 में 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में चिह्नित करने का निर्णय लिया।
  • वर्ष 2021 की थीम:
    • शेयर ड्रग्स फैक्ट्स टू सेव लाइव्स (Share Drug Facts to Save Lives)
  • संबंधित पहल:

भारतीय पहल

  •   नशा मुक्त भारत अभियान/ड्रग्स मुक्त भारत अभियान:
    • विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर 15 अगस्त, 2020 को देश के 272 ज़िलों में (स्वतंत्रता दिवस) नशा मुक्त भारत अभियान/ड्रग्स मुक्त भारत अभियान को शुरू किया गया था।
    • अभियान का मुख्य ध्येय नशे की समस्या के निवारक के रूप में कार्य करना, लोगों को नशे की लत के बारे में जागरूक करना, इस अभियान से जुड़े विभिन्न लोगों और संस्थाओं का क्षमता निर्माण, शैक्षणिक संस्थानों के साथ सकारात्मक साझेदारी तथा उपचार, पुनर्वास एवं परामर्श सुविधाओं में वृद्धि करना है।
  •  नशीली दवाओं की मांग में कमी हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वर्ष 2018-2025 की अवधि के लिये नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना  (National Action Plan for Drug Demand Reduction- NAPDDR) का कार्यान्वयन शुरू किया है।
    • इसका उद्देश्य शिक्षा, नशा मुक्ति और प्रभावित व्यक्तियों तथा उनके परिवारों के पुनर्वास को शामिल करते हुए एक बहु-आयामी रणनीति के माध्यम से नशीली दवाओं के दुरुपयोग के प्रतिकूल परिणामों को कम करना है।
    • यह केंद्र और राज्य सरकारों एवं  गैर-सरकारी संगठनों के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से नशा मुक्ति निवारक शिक्षा, जागरूकता पैदा करने, नशीली दवाओं पर निर्भर व्यक्तियों की पहचान करने, परामर्श, उपचार और पुनर्वास एवं सेवा प्रदाताओं के प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण पर केंद्रित है।
      • देश भर में 500 से अधिक स्वैच्छिक संगठन हैं, जिन्हें NAPDDR योजना के तहत आर्थिक रूप से सहायता प्रदान की जाती है।

स्रोत पी.आई.बी


भारतीय इतिहास

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय

प्रिलिम्स के लिये:

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, संन्यासी विद्रोह

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

27 जून को भारतीय प्रधानमंत्री ने ऋषि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay) को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी।

Bankim-Chandra-Chattopadhyay

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • वह भारत के महान उपन्यासकारों और कवियों में से एक थे।
  • उनका जन्म 27 जून, 1838 को उत्तर 24 परगना, नैहाटी, वर्तमान पश्चिम बंगाल के कंठपुरा गाँव में हुआ था।
  • उन्होंने संस्कृत में वंदे मातरम गीत की रचना की जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों के लिये प्रेरणास्रोत का कार्य किया।
  • वर्ष 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक मज़बूत विद्रोह हुआ परंतु बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और वर्ष 1859 में बी.ए. की परीक्षा पास की।
    • कलकत्ता के उपराज्यपाल ने उसी वर्ष बंकिम चंद्र चटर्जी को डिप्टी कलेक्टर नियुक्त किया।
  • वह बत्तीस वर्षों तक सरकारी सेवा में कार्यरत  रहे और वर्ष 1891 में सेवानिवृत्त हुए।
  • 8 अप्रैल, 1894 को उनका निधन हो गया।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

  • उनका महाकाव्य उपन्यास आनंदमठ, संन्यासी विद्रोह (1770-1820) की पृष्ठभूमि से प्रभावित था।
    • उन्होंने अपने साहित्यिक अभियान के माध्यम से बंगाल के लोगों को बौद्धिक रूप से प्रेरित किया।
    • भारत को अपना राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम आनंदमठ से मिला। 
  • उन्होंने वर्ष 1872 में एक मासिक साहित्यिक पत्रिका, बंगदर्शन की भी शुरुआत की, जिसके माध्यम से बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को एक बंगाली पहचान और राष्ट्रवाद के उद्भव को प्रभावित करने का श्रेय दिया जाता है।
    • बंकिम चंद्र चाहते थे कि यह पत्रिका शिक्षित और अशिक्षित वर्गों के बीच संचार के माध्यम के रूप में कार्य करे।
    • 1880 के दशक के अंत में पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया परंतु वर्ष 1901 में रवींद्रनाथ टैगोर के संपादक बनने के बाद इसे फिर से शुरू किया  गया।
    • हालाँकि इसने टैगोर के लेखन को उनके पहले पूर्ण उपन्यास चोखेर बाली सहित 'नया' बंगदर्शन की राष्ट्रवादी भावना का पोषण करते हुए अपने मूल दर्शन को बरकरार रखा।
    • बंगाल विभाजन (वर्ष 1905) के दौरान पत्रिका ने विरोध और असंतोष की आवाज़ को एक आधार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। टैगोर का अमार सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान तब पहली बार बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ था।

अन्य साहित्यिक योगदान:

  • उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया था और वह इस विषय में बहुत रुचि रखते थे, लेकिन बाद में बंगाली भाषा को जनता की भाषा बनाने की ज़िम्मेदारी ली। हालाँकि उनका पहला प्रकाशित काम एक उपन्यास है जो अंग्रेज़ी में था।
  • उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में कपालकुंडला (Kapalkundala) 1866, देवी चौधुरानी (Debi Choudhurani), ​​बिशाब्रीक्षा (द पॉइज़न ट्री), चंद्रशेखर (1877), राजमोहन की पत्नी और कृष्णकांतर विल शामिल हैं।

संन्यासी विद्रोह

  • संन्यासी विद्रोह बंगाल में वर्ष 1770-1820 के बीच हुआ था।
  • बंगाल में वर्ष 1770 के भीषण अकाल के बाद संन्यासी विद्रोह शुरू हुआ जिससे घोर अराजकता और दुर्दशा उत्पन्न हुई।
  • हालाँकि विद्रोह का तात्कालिक कारण हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के पवित्र स्थानों हेतु जाने वाले तीर्थयात्रियों पर अंग्रेज़ो द्वारा लगाए गए प्रतिबंध थे।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

साइबर कैपेबिलिटी एंड नेशनल पावर रिपोर्ट: IISS

प्रिलिम्स के लिये:

फाइव आईज़ इंटेलिजेंस अलायन्स

मेन्स के लिये:  

साइबर कैपेबिलिटी एंड नेशनल पावर रिपोर्ट से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

प्रभावशाली थिंक टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (International Institute for Strategic Studies- IISS) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आक्रामक साइबर कैपेबिलिटी चीन केंद्रित न होकर "पाकिस्तान-केंद्रित" (Pakistan-Focused) और "क्षेत्रीय रूप से प्रभावी" (Regionally Effective) है।

प्रमुख बिंदु: 

निरीक्षण के तहत शामिल देश:

  • रिपोर्ट में 15 देशों की  साइबर पावर का गुणात्मक मूल्यांकन (Qualitative Assessment) किया गया है।
  • फाइव आईज़ इंटेलिजेंस अलायन्स (Five Eyes intelligence alliance)  के चार सदस्य - अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया।
  • फाइव आईज़ देशों के तीन साइबर-सक्षम सहयोगी - फ्राँस, इज़रायल और जापान।
  • फाइव आईज़ और उनके सहयोगियों द्वारा साइबर खतरों के रूप में देखे जाने वाले चार देश - चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया।
  • साइबर पावर विकास के शुरुआती चरणों में शामिल चार देश - भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम।

मूल्यांकन के मानदंड:

  • कार्यप्रणाली प्रत्येक देश के साइबर पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषण करती है तथा इस बात का भी विशलेषण करती है कि यह किस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा और सैन्य मामलों के साथ जुड़ती है। देशों का मूल्यांकन सात श्रेणियों में किया जाता है:
    • रणनीति और सिद्धांत
    • शासन, आदेश और नियंत्रण
    • कोर साइबर-खुफिया क्षमता
    • साइबर सशक्तीकरण और निर्भरता
    • साइबर सुरक्षा और लचीलापन
    • साइबरस्पेस मामलों में वैश्विक नेतृत्व
    • आक्रामक साइबर क्षमता

 मुख्य अवलोकन:

  • रिपोर्ट में 15 देशों को साइबर पावर के तीन स्तरों में विभाजित किया है:
    • प्रथम स्तर: कार्यप्रणाली में सभी श्रेणियों में विश्व-अग्रणी ताकत वाले राज्य। अमेरिका इस स्तर में शामिल एकमात्र देश है।
    • द्वितीय स्तर: वे राज्य जिनके पास कुछ श्रेणियों में विश्व-अग्रणी ताकत है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, फ्रांँस, इज़राइल, रूस और यूनाइटेड किंगडम इस श्रेणी में हैं।
    • तृतीय स्तर: वे राज्य जिनके पास कुछ श्रेणियों में ताकत या संभावित ताकत है लेकिन अन्य में महत्त्वपूर्ण कमज़ोरियांँ हैं। भारत, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, मलेशिया, उत्तर कोरिया और वियतनाम इस श्रेणी स्तर में शामिल हैं।
  • यह रिपोर्ट कम-से-कम अगले दस वर्षों के लिये अमेरिकी डिजिटल-औद्योगिक श्रेष्ठता के संभावित स्थायित्व की पुष्टि प्रदान करती है। इसके दो कारण हो सकते हैं।
    • उन्नत साइबर प्रौद्योगिकियों और आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के लिये उनका शोषण करने में अमेरिका अभी भी चीन से आगे है।
    • वर्ष 2018 के बाद से अमेरिका और उसके कई प्रमुख सहयोगी कुछ पश्चिमी प्रौद्योगिकियों तक चीन की पहुँच को प्रतिबंधित करने पर सहमत हुए हैं।
      • ऐसा करके इन देशों ने चीन को आंशिक रूप से अलग करने का समर्थन किया है जो संभावित रूप से अपनी उन्नत तकनीक विकसित करने की चीन की क्षमता को बाधित कर सकता है।

भारत विशिष्ट अवलोकन:

  • अपने क्षेत्र की भू-रणनीतिक अस्थिरता और इसके सामने आने वाले साइबर खतरे के बारे में गहरी जागरूकता के बावजूद भारत ने साइबरस्पेस सुरक्षा के लिये अपनी नीति और सिद्धांत विकसित करने में केवल "मामूली प्रगति" की है।
  • भारत के पास कुछ साइबर-खुफिया और आक्रामक साइबर क्षमताएँ हैं लेकिन वे क्षेत्रीय रूप से मुख्य तौर पर पाकिस्तान पर केंद्रित हैं।
    • हालाँकि जून 2020 में विवादित लद्दाख सीमा क्षेत्र में चीन के साथ सैन्य टकराव, जिसके बाद भारतीय नेटवर्क के खिलाफ चीनी गतिविधियों में हुई तेज़ वृद्धि, ने साइबर सुरक्षा के बारे में भारतीय चिंताओं को बढ़ा दिया है।
  • भारत वर्तमान में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्राँस सहित प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों की मदद से नई क्षमता का निर्माण करके व संयम मानदंडों को विकसित करने के लिये ठोस अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की तलाश में अपनी कमज़ोरियों की भरपाई करने का लक्ष्य बना रहा है।
  • साइबर गवर्नेंस के संस्थागत सुधार के प्रति भारत का दृष्टिकोण "धीमा और वृद्धिशील" रहा है, जिसमें सिविल और सैन्य डोमेन में साइबर सुरक्षा के लिये प्रमुख समन्वय प्राधिकरण वर्ष 2018 और 2019 के अंत तक स्थापित किये गए।
    • प्रमुख प्राधिकरण मुख्य साइबर-खुफिया एजेंसी, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के साथ मिलकर काम करते हैं।
  • भारतीय डिजिटल अर्थव्यवस्था की शक्ति में एक जीवंत स्टार्टअप संस्कृति और एक बहुत व्यापक प्रतिभा पूल शामिल है।
    • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने में निजी क्षेत्र सरकार की तुलना में अधिक तेज़ी से आगे बढ़ा है।
  • देश साइबर कूटनीति में सक्रिय और दृश्यमान हैं, लेकिन भारत अब तक वैश्विक मानदंड स्थापित करने में सक्षम नहीं रहा है, इसके बजाय भारत प्रमुख देशों के साथ उत्पादक व्यावहारिक व्यवस्था स्थापित करना पसंद करता है।

राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन

  • वर्ष 2004 में स्थापित ‘राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन’ (NTRO) प्रधानमंत्री कार्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अधीन कार्यरत है और मुख्य तौर पर खुफिया जानकारी एकत्र करने पर केंद्रित है।
  • इस एजेंसी ने कई विषयों में विशेषज्ञता हासिल की है, जिसमें रिमोट सेंसिंग, डेटा एकत्रण और प्रसंस्करण, साइबर सुरक्षा, भू-स्थानिक सूचना एकत्र करना, क्रिप्टोलॉजी, रणनीतिक हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर विकास और निगरानी शामिल है।
  • नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर (NCIIPC), नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन के नियंत्रण में एक एजेंसी है, जिसका उद्देश्य सेंसर और उपग्रह, ड्रोन, वीसैट-टर्मिनल लोकेटर तथा फाइबर-ऑप्टिक केबल नोडल टैप पॉइंट जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करके एकत्र की गई खुफिया जानकारी से महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना व अन्य महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर खतरों की निगरानी, उनका अवरोधन और आकलन करना है।
  • राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के पास भी इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के समान ही ‘आचरण के मानदंड’ हैं।

आगे की राह

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत एक तृतीय-स्तरीय साइबर शक्ति है, जिसके पास अपनी महत्त्वपूर्ण डिजिटल-औद्योगिक क्षमता का उपयोग करने और अपनी साइबर सुरक्षा रणनीति में सुधार हेतु एक संपूर्ण समाजिक दृष्टिकोण अपनाकर दूसरी श्रेणी में पहुँचने का एक बेहतरीन अवसर है।
  • इसके अलावा ‘राजनीतिक इच्छाशक्ति’ और ‘भारतीय खुफिया एजेंसियों को व्यवस्थित करने से संबंधित रणनीति’ भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण हो सकती है। साइबर पावर बनने के लिये यह आवश्यक है कि भारत किस प्रकार स्वयं को अन्य देशों के साथ संरेखित करता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

अमेरिका का डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट

प्रिलिम्स के लिये:

अमेरिका के डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन, बौद्धिक संपदा को कवर करने वाले भारतीय कानून

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट (Digital Millennium Copyright Act- DMCA) 1998 के उल्लंघन हेतु कथित रूप से प्राप्त एक नोटिस पर केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के ट्विटर अकाउंट को एक घंटे के लिये बंद कर दिया गया था।

प्रमुख बिंदु

डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट:

  • यह अमेरिका में पारित एक कानून है और इंटरनेट पर बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) को मान्यता देने वाले विश्व के पहले कानूनों में से एक है। 
  • DMCA, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के सदस्य देशों द्वारा वर्ष 1996 में हस्ताक्षरित दो संधियों के कार्यान्वयन की देख-रेख करता है।
  • कोई भी सामग्री निर्माता जो यह मानता है कि उसकी मूल सामग्री को किसी भी रूप में किसी उपयोगकर्त्ता या वेबसाइट द्वारा बिना प्राधिकरण के कॉपी किया गया है, अपनी बौद्धिक संपदा की चोरी या उल्लंघन का हवाला देते हुए एक आवेदन दायर कर सकता है।
  • फेसबुक, इंस्टाग्राम या ट्विटर जैसे सोशल मीडिया बिचौलियों के मामले में सामग्री निर्माता सीधे मंच से संपर्क कर सकते हैं और मूल निर्माता होने का प्रमाण दे सकते हैं।
    • चूँकि ये कंपनियाँ उन देशों में काम करती हैं जो WIPO संधि की हस्ताक्षरकर्त्ता हैं, वे वैध और कानूनी DMCA टेकडाउन नोटिस (Takedown Notice) प्राप्त होने पर उक्त सामग्री को हटाने हेतु बाध्य हैं।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) संधियाँ:

  • WIPO के सदस्यों ने दो संधियों पर सहमति व्यक्त की थी अर्थात् WIPO कॉपीराइट संधि और WIPO प्रदर्शन और फोनोग्राम संधि।
    • भारत दोनों संधियों का सदस्य है।
  • दोनों संधियों के लिये सदस्य राष्ट्रों और हस्ताक्षरकर्त्ताओं को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में IP को सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता होती है, यह विभिन्न राष्ट्रों के नागरिकों द्वारा बनाई गई हो सकती है जो संधि के सह-हस्ताक्षरकर्त्ता होते हैं।
    • यह सुरक्षा किसी भी तरह से घरेलू कॉपीराइट धारक को दी जाने वाली सुरक्षा से कम नहीं होनी चाहिये।
    • यह संधि के हस्ताक्षरकर्त्ताओं को कॉपीराइट कार्य की सुरक्षा हेतु तकनीकी उपाय सुनिश्चित करने हेतु बाध्य करती है। साथ ही डिजिटल सामग्री को आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी सुरक्षा भी प्रदान करती है।

बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP)

  • यह संपत्ति की एक श्रेणी है जिसमें मानव बुद्धि की अमूर्त रचनाएँ और मुख्य रूप से कॉपीराइट, पेटेंट तथा ट्रेडमार्क शामिल हैं।
  • इसमें अन्य प्रकार के अधिकार भी शामिल हैं, जैसे- ट्रेड सीक्रेट, प्रचार अधिकार, नैतिक अधिकार इऔर अनुचित प्रतिस्पर्द्धा के खिलाफ अधिकार।
  • प्रत्येक वर्ष 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है।
  • WIPO संधियों के अलावा यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS Agreement) पर समझौते के तहत भी शामिल है।
    • भारत, विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है और इसलिये ट्रिप्स के लिये प्रतिबद्ध है।

    विश्व बौद्धिक संपदा संगठन

    परिचय:

    • यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुराने अभिकरणों में से एक है।
    • इसका गठन वर्ष 1967 में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
    • यह वर्तमान में 26 अंतर्राष्ट्रीय संधियों का संचालन करता है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
      • पेटेंट प्रक्रिया के प्रयोजनों के लिये सूक्ष्मजीवों के निक्षेप की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पर बुडापेस्ट संधि।
      • औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय (1883): विभिन्न देशों में बौद्धिक कार्यों के संरक्षण के लिये पहला कदम, जिसमें ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आविष्कार के पेटेंट शामिल थे।
      • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (1886): इसमें उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प कृतियाँ शामिल हैं।
      • मैड्रिड समझौता (1891): यहाँ से अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा फाइलिंग सेवा की शुरुआत हुई।
      • इंटिग्रेटेड सर्किट के संबंध में IP पर वाशिंगटन संधि।
      • ओलंपिक प्रतीक के संरक्षण पर नैरोबी संधि।
      • दृष्टिबाधित व्यक्तियों और दिव्यांगजनों द्वारा प्रकाशित कार्यों तक पहुँच की सुविधा के लिये मराकेश संधि।

    मुख्यालय:

    • जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड।

    सदस्य:

    • वर्तमान में भारत सहित विश्व के 193 देश WIPO के सदस्य हैं।

      प्रमुख कार्य:

      • बदलते विश्व के लिये संतुलित अंतर्राष्ट्रीय आईपी नियमों को आकार देने हेतु नीति मंच।
      • विभिन्न देशों की सीमाओं के पार बौद्धिक संपदा संरक्षण और विवादों को हल करने के लिये वैश्विक सेवाएँ देना भी इसके कार्यों में शामिल है।
      • बौद्धिक संपदा प्रणालियों को आपस में जोड़ने और ज्ञान साझा करने के लिये तकनीकी आधारभूत संरचना बनाना भी WIPO के ज़िम्मे है।
      • सभी सदस्य देशों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिये बौद्धिक संपदा का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिये सहयोग तथा क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाना।
      • WIPO बौद्धिक संपदा की जानकारी के लिये विश्वसनीय वैश्विक संदर्भ स्रोत का काम करता है।

      बौद्धिक संपदा को कवर करने वाले भारतीय कानून:

      स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


      आंतरिक सुरक्षा

      जम्मू में ड्रोन से हमला

      प्रिलिम्स के लिये:

      मानव रहित विमान अथवा ड्रोन

      मेन्स के लिये:

      ड्रोन के उपयोग संबंधी चिंताएँ और ड्रोन अटैक में हो रही बढ़ोतरी के कारण, ड्रोन विनियमन संबंधी नियम-कानून

      चर्चा में क्यों?

      हाल ही में ड्रोन (Drone) का इस्तेमाल पहली बार विस्फोटक उपकरणों को गिराने के लिये किया गया, जिससे जम्मू में वायु सेना स्टेशन के तकनीकी क्षेत्र के अंदर विस्फोट किया गया।

      ड्रोन

      • ड्रोन मानव रहित विमान (Unmanned Aircraft) के लिये एक आम शब्दावली है। मानव रहित विमान के तीन उप-सेट हैं- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट (Remotely Piloted Aircraft), ऑटोनॉमस एयरक्राफ्ट (Autonomous Aircraft) और मॉडल एयरक्राफ्ट (Model Aircraft)।
        • रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट में रिमोट पायलट स्टेशन, आवश्यक कमांड और कंट्रोल लिंक तथा अन्य घटक होते हैं।
      • युद्धक उपयोग के अलावा ड्रोन का उपयोग कृषि में कीटनाशकों का छिड़काव, पर्यावरणीय परिवर्तनों की निगरानी, ​​हवाई फोटोग्राफी और खोज तथा राहत कार्यों आदि के लिये किया जाता है।

      प्रमुख बिंदु:

      Rogue-Drones

      ड्रोन हमला और चिंताएँ :

      • पिछले दो वर्षों में भारतीय क्षेत्र में हथियारों, गोला-बारूद और ड्रग्स की तस्करी के लिये पाकिस्तान स्थित संगठनों द्वारा नियमित रूप से ड्रोन इस्तेमाल किये गए हैं।
        • ड्रोन काफी नीचे उड़ते हैं और इसलिये किसी भी रडार सिस्टम द्वारा इसका पता नहीं लगाया जा सकता है।
      • सरकारी आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में पाकिस्तान से लगी सीमा पर 167 ड्रोन देखे गए और वर्ष 2020 में ऐसे 77 ड्रोन देखे गए थे।
      • हाल के वर्षों में ड्रोन प्रौद्योगिकी के तेज़ी से प्रसार और इसके वैश्विक बाज़ार के तेज़ी से विकास के साथ दुनिया के सबसे सुरक्षित शहरों में भी ड्रोन हमले की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
      • ड्रोन सुरक्षा के लिये खतरा बन रहे हैं, विशेष रूप से संघर्ष क्षेत्रों में जहाँ गैर-राज्य पक्ष सक्रिय हैं और प्रौद्योगिकी तक आसान पहुँच रखते हैं।
        • उदाहरणार्थ: वर्ष 2019 में सऊदी अरब में ‘अरामको क्रूड ऑइल’ पर दोहरे ड्रोन हमले।
      • सामूहिक विनाश के हथियार इतने बड़े पैमाने पर मौत और विनाश करने की क्षमता वाले हथियार हैं कि शत्रु के हाथों में इनकी उपस्थिति को एक गंभीर खतरा माना जा सकता है।
      • सैन्य क्षेत्र में छोटे ड्रोन उस दर से बढ़ रहे हैं जिसने युद्धक्षेत्र कमांडरों और योजनाकारों को समान रूप से चिंतित कर दिया है।
        • कुछ घटनाओं में छोटे ड्रोन भी विस्फोटक आयुध से लैस थे, उन्हें संभावित घातक निर्देशित मिसाइलों में परिवर्तित करने के लिये इस प्रकार के परिष्करण का प्रदर्शन किया गया।

      ड्रोन अटैक बढ़ने की वजह:

      • सस्ता एवं सुलभ:
        • ड्रोन अटैक के मामलों में बढ़ोतरी का प्राथमिक कारण यह है कि पारंपरिक हथियारों की तुलना में ड्रोन अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं और काफी विनाशकारी हो सकते हैं।
      • दूर से नियंत्रित करना सक्षम
        • युद्ध के उद्देश्यों के लिये ड्रोन का उपयोग करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे दूर से नियंत्रित किया जा सकता है और यह हमलावर पक्ष के किसी भी सदस्य को खतरे में नहीं डालता है।
      • प्रयोग करने में आसान
        • सुगम संचालन और शत-प्रतिशत क्षति पहुँचाने की ड्रोन की क्षमता ही सभी देशों को अपनी सेना को ड्रोन-विरोधी युद्ध तकनीक से लैस करने पर मजबूर करती है।

      भारत में ड्रोन संचालन से संबंधित नियम

      • मानव रहित विमान प्रणाली (UAS) नियम, 2020:
        • यह सरकार द्वारा अधिसूचित नियमों का एक समूह है जिसका उद्देश्य मानव रहित विमान यानी ड्रोन के उत्पादन, आयात, व्यापार, स्वामित्व, ड्रोन पोर्ट (ड्रोन के लिये हवाई अड्डे) और इसके संचालन को विनियमित करना है।
        • यह व्यवसायों द्वारा ड्रोन के उपयोग के लिये एक रूपरेखा तैयार करता  है।
      • नेशनल काउंटर रोग ड्रोन दिशा-निर्देश, 2019 (National Counter Rogue Drones Guidelines)
        • इन दिशा-निर्देशों के तहत किसी संपत्ति की महत्ता, अविनियमित उपयोग से उठने वाले संभावित खतरों का मुकाबला करने के लिये कई उपायों का सुझाव दिया गया है।
        • राष्ट्रीय महत्त्व के महत्त्वपूर्ण स्थानों के लिये दिशा-निर्देशों में एक ऐसे मॉडल की तैनाती का आह्वान किया गया है जिसमें रडार, रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) डिटेक्टर, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल और इन्फ्रारेड कैमरे जैसे प्राइमरी और पैसिव पहचान साधन शामिल हों।
        • इसके अलावा रेडियो फ्रीक्वेंसी जैमर, ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) स्पूफर्स, लेज़र और ड्रोन कैचिंग नेट जैसे सॉफ्ट किल और हार्ड किल उपायों को प्रयोग करने का भी सुझाव दिया गया है।

      अन्य पहल:

      • निर्देशित-ऊर्जा हथियार (Directed-Energy Weapon):
        • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने दो ड्रोन-विरोधी निर्देशित-ऊर्जा हथियार (DEW) सिस्टम विकसित किये हैं,जिसमें 2 किमी की दूरी पर हवाई लक्ष्य को निशाना बनाने के लिये 10 किलोवाट और 1 किमी की रेंज के लिये 2 किलोवाट लेज़र के साथ एक कॉम्पैक्ट ट्राइपॉड-माउंटेड है। लेकिन इनका अभी बड़ी संख्या में उत्पादन होना बाकी है।
      • स्मैश-2000 प्लस (Smash-2000 Plus):
        • सशस्त्र बल अब इज़रायली `स्मैश-2000 प्लस' कम्प्यूटरीकृत अग्नि नियंत्रण और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक साईट्स जैसी  अन्य प्रणालियों का भी सीमित संख्या में आयात कर रहे हैं जिसे दिन और रात दोनों स्थितियों में छोटे शत्रु ड्रोन के खतरे से निपटने के लिये बंदूकों और राइफलों पर लगाया जा सकता है।

      आगे की राह:

      • ड्रोन हमले को ध्यान में रखते हुए नागरिक उड्डयन मंत्रालय संभावित रूप से मानव रहित विमान प्रणालियों के लिये मौजूदा नियमों को और अधिक कठोर बनाने पर विचार कर सकता है।
      • वर्तमान ड्रोन नियम, निर्माता या आयातक से अंतिम उपयोगकर्त्ताओं तक ड्रोन के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिये पर्याप्त हैं। हालांकि दुश्मन ड्रोन हमेशा गैर-अनुपालक होंगे। इनकी रोकथाम के लिये कड़े नियमों की आवश्यकता है।

      स्रोत: द हिंदू


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