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शासन व्यवस्था
मनरेगा में सामाजिक अंकेक्षण
प्रिलिम्स के लिये:महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS), सामाजिक अंकेक्षण, अमृत सरोवर, जलदूत एप मेन्स के लिये:मनरेगा के कार्यान्वयन के मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, विकास से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा अनुरक्षित सामाजिक अंकेक्षण पर प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) का हालिया डेटा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) में सामाजिक अंकेक्षण की प्रगति और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।
मनरेगा में सामाजिक अंकेक्षण की प्रगति क्या है?
- सामाजिक अंकेक्षण पर MIS के आँकड़ों के अनुसार, 34 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 6 ने ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत किये गए कार्यों के सामाजिक अंकेक्षण को पूरा करने में 50% का आँकड़ा पार कर लिया है।
- सामाजिक अंकेक्षण में व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण का प्रदर्शन करते हुए ग्राम पंचायतों में 100% कवरेज हासिल कर केरल अग्रणी बनकर उभरा है।
- केरल के अलावा पाँच अन्य राज्यों ने सामाजिक अंकेक्षण कवरेज में 50 प्रतिशत का आँकड़ा पार कर लिया है, जिनमें बिहार (64.4 %), गुजरात (58.8 %), जम्मू-कश्मीर (64.1 %), ओडिशा (60.42 %) और उत्तर प्रदेश (54.97 %) शामिल हैं।
- केवल तीन राज्यों तेलंगाना (40.5%), हिमाचल प्रदेश (45.32%) और आंध्र प्रदेश (49.7%) ने 40% या अधिक गाँवों को कवर किया है।
- तेलंगाना के अलावा चुनाव वाले राज्यों में संख्या वास्तव में कम है जिनमें मध्य प्रदेश (1.73%), मिज़ोरम (17.5%), छत्तीसगढ़ (25.06%) और राजस्थान (34.74%) हैं।
सामाजिक अंकेक्षण क्या है?
- परिचय:
- सामाजिक अंकेक्षण आधिकारिक रिकॉर्ड की समीक्षा करने और यह निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है कि क्या राज्य द्वारा रिपोर्ट किये गए व्यय ज़मीन पर खर्च किये गए वास्तविक धन को दर्शाते हैं।
- सामाजिक अंकेक्षण मनरेगा अधिनियम, 2005 में अंतर्निहित भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र है।
- इसमें मनरेगा के तहत बनाए गए बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता, मज़दूरी में वित्तीय हेराफेरी और किसी भी प्रक्रियात्मक विचलन की जाँच करना शामिल है।
- उद्देश्य:
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से सामाजिक अंकेक्षण नागरिकों को सरकारी पहलों की दक्षता और प्रभावशीलता की जाँच तथा मूल्यांकन करने में सक्षम बनाता है।
- वैधानिक फ्रेमवर्क:
- मनरेगा के संदर्भ में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) की धारा 17 ग्राम सभा को कार्यों के निष्पादन की निगरानी और सामाजिक लेखा परीक्षा के लिये कानूनी आधार प्रदान करने का आदेश देती है।
- योजना नियम अंकेक्षण, 2011, जिसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजनाओं की लेखापरीक्षा नियम, 2011 के रूप में भी जाना जाता है, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के सहयोग से ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा विकसित किये गए थे।
- ये नियम देश भर में पालन किये जाने वाले सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रियाओं और सोशल ऑडिट यूनिट (SAU), राज्य सरकार एवं मनरेगा के फील्ड कार्यकर्त्ताओं सहित विभिन्न संस्थाओं के कर्त्तव्यों की रूपरेखा तैयार करते हैं।
- सामाजिक अंकेक्षण इकाइयाँ कार्यान्वयन प्राधिकारियों से स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं, जिससे कार्यक्रमों का निष्पक्ष मूल्यांकन सुनिश्चित होता है।
- सामाजिक अंकेक्षण इकाइयों की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिये वे गत वर्ष राज्य द्वारा किये गए मनरेगा व्यय के 0.5% के बराबर धनराशि के हकदार हैं।
- ऐसे मामलों में जहाँ राज्य नियमित सामाजिक अंकेक्षण करने में विफल रहते हैं, केंद्र के पास मनरेगा के तहत आवंटित धन के वितरण को रोकने का अधिकार है।
- कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
- सामाजिक अंकेक्षण के लिये वैधानिक फ्रेमवर्क विशेष रूप से स्थानीय समुदायों के बीच सीमित जागरूकता के चलते इस प्रक्रिया में उनकी सक्रिय भागीदारी को बाधित कर सकता है।
- सामाजिक अंकेक्षण इकाइयों के लिये सीमित वित्तीय संसाधन उनकी गतिविधियों के दायरे को सीमित करते हुए संपूर्ण और प्रभावी ऑडिट करने की उनकी क्षमता से समझौता कर सकते हैं।
- राजनीतिक प्रभाव सामाजिक अंकेक्षण की निष्पक्षता में बाधा डाल सकता है, जिससे मूल्यांकन प्रक्रिया की प्रामाणिकता व निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
- कार्यान्वयन प्राधिकारियों एवं सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों के सहयोग और समन्वय का अभाव।
- सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्टों के निष्कर्षों और सिफारिशों पर अनुवर्ती निरंतरता एवं कार्रवाई का अभाव।
- निहित स्वार्थों की वजह से धमकियों और उत्पीड़न का सामना करने वाले सामाजिक लेखा परीक्षकों और मुखबिरों के लिये सुरक्षा और समर्थन का अभाव।
मनरेगा:
- परिचय:
- MGNREGS वर्ष 2005 में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किये गए विश्व के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- मनरेगा एक वैधानिक फ्रेमवर्क है जो योजना के कार्यान्वयन को सक्षम बनाता है और ग्रामीण गरीबों को काम करने का अधिकार देती है।
- MGNREGS के तहत कुल 11.37 करोड़ परिवारों ने रोज़गार प्राप्त किया और (15 दिसंबर, 2022 तक) कुल 289.24 करोड़ व्यक्ति-दिवस रोज़गार उत्पन्न हुआ है।
- MGNREGS वर्ष 2005 में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किये गए विश्व के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- उद्देश्य:
- यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन के रोज़गार की गारंटी देती है जो सार्वजनिक कार्य-संबंधित अकुशल मज़दूरी करने के लिये तैयार हैं।
- गरीबों के आजीविका संसाधन आधार को मज़बूत करना।
- सक्रिय रूप से सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करना।
- पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को सशक्त बनाना।
- मनरेगा की उपलब्धियाँ
- मंत्रालय ने भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग करके वाटरशेड विकास सिद्धांतों (रिज टू वैली एप्रोच) के आधार पर ग्राम पंचायतों की एक एकीकृत समग्र योजना शुरू की है।
- इसे दिसंबर 2022 तक 2,62,654 ग्राम पंचायतों की योजनाओं को तीन वर्ष में पूरा करने के लक्ष्य के साथ डिज़ाइन किया गया है।
- मंत्रालय ने भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग करके वाटरशेड विकास सिद्धांतों (रिज टू वैली एप्रोच) के आधार पर ग्राम पंचायतों की एक एकीकृत समग्र योजना शुरू की है।
- राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि प्रबंधन प्रणाली (NeFMS)/डीबीटी:
- मनरेगा के तहत 99% मज़दूरों को उनकी मज़दूरी सीधे उनके बैंक/डाकघर खातों में प्राप्त हो रही है।
- यह पारदर्शिता तथा समय पर वेतन जारी करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- सेक्योर (SECURE):
- SECURE एक ऑनलाइन एप्लीकेशन है जिसे विशेष रूप से मनरेगा कार्यों के लिये अनुमान तैयार करने तथा अनुमोदन हेतु डिज़ाइन एवं विकसित किया गया है।
- कौशल विकास:
- परियोजना "उन्नति" का उद्देश्य मनरेगा श्रमिकों के कौशल-आधार को उन्नत करना और इस तरह उनकी आजीविका में सुधार करना है, ताकि वे वर्तमान आंशिक रोज़गार से पूर्ण रोज़गार की ओर बढ़ सकें।
- दिसंबर 2022 तक 27,383 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
- परियोजना "उन्नति" का उद्देश्य मनरेगा श्रमिकों के कौशल-आधार को उन्नत करना और इस तरह उनकी आजीविका में सुधार करना है, ताकि वे वर्तमान आंशिक रोज़गार से पूर्ण रोज़गार की ओर बढ़ सकें।
- कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये नई पहलें:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011) (a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य उत्तर: (d) |
जैव विविधता और पर्यावरण
कोयला वास्तविकताओं के साथ सतत् ऊर्जा लक्ष्यों को संतुलित करना
प्रिलिम्स के लिये:कोयला, सतत् विकास, नवीकरणीय ऊर्जा, पेरिस समझौता, ताप विद्युत संयंत्र मेन्स के लिये:अपने ऊर्जा श्रेणी में कोयले पर भारत की निर्भरता और इसका प्रभाव, भारत की नवीकरणीय ऊर्जा |
चर्चा में क्यों?
नवीकरणीय ऊर्जा के उभरते परिदृश्य में पारंपरिक और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं के बीच टकराव स्पष्ट है।
- कोयला, एक व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला परंतु अत्यधिक प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोत है, जिसे वैश्विक सतत् लक्ष्यों के लिये एक बड़ी बाधा के रूप में देखा जा रहा है।
- स्वच्छ विकल्पों को अपनाने के प्रयासों के बावजूद विश्व भर में सतत् विकास लक्ष्य हासिल करने के मार्ग में कोयला एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है।
ऊर्जा मिश्रण में कोयले की क्या भूमिका है?
- वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में कोयला:
- वर्ष 2022 में विश्व की कुल ऊर्जा में तेल, कोयला तथा गैस का हिस्सा क्रमशः 30%, 27% एवं 23% था, जबकि सौर व पवन ऊर्जा स्रोतों ने कुल मिलाकर केवल 2.4% का योगदान दिया।
- वैश्विक बिजली उत्पादन में कोयला एक-तिहाई से अधिक की आपूर्ति करता है, भले ही यह सबसे अधिक कार्बन-सघन जीवाश्म ईंधन है।
- वर्ष 2022 में विश्व की कुल ऊर्जा में तेल, कोयला तथा गैस का हिस्सा क्रमशः 30%, 27% एवं 23% था, जबकि सौर व पवन ऊर्जा स्रोतों ने कुल मिलाकर केवल 2.4% का योगदान दिया।
- भारत के ऊर्जा क्षेत्र के संदर्भ में कोयला:
- भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत का केवल 10.4% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से है; वर्ष 2022 में कोयला तथा तेल-गैस की हिस्सेदारी क्रमशः 55.1% एवं 33.3% रही।
- वित्त वर्ष 2022-2023 के दौरान कोयले से चलने वाले ताप विद्युत संयंत्र (TPP) ने भारत की 74.3% बिजली का उत्पादन किया तथा मांग को पूरा करने के लिये TPP द्वारा उत्पादन लगातार बढ़ाया जा रहा है।
- भारत में TPP द्वारा उपयोग किया जाने वाला 96% कोयला घरेलू खदानों से आता है जिसके परिणामस्वरूप भारत में बिजली काफी कम दाम में उपलब्ध है।
- भारत की राष्ट्रीय विद्युत योजना का अनुमान है कि भारत में TPP क्षमता वित्त वर्ष 2023 के 212 गीगावाट से बढ़कर वित्त वर्ष 2032 तक 259-262 गीगावाट तक पहुँच जाएगी।
- भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा आपूर्ति वैश्विक औसत का 37% है, जो मानव विकास सूचकांक के अनुरूप बढ़ती ऊर्जा मांग को उजागर करती है।
- वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य के लक्ष्य को प्राप्त करने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्य के साथ इसे संतुलित करने के लिये देश को विद्युत क्षेत्र के उत्सर्जन को कम करने हेतु स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों को लागू करना जारी रखना चाहिये।
- पीक तथा ऑफ-पीक मांगों को पूरा करने के लिये निरंतर एवं किफायती आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु ताप विद्युत संयंत्र (TPP) का कुशल संचालन भारत के लिये आवश्यक है।
- 1750 में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत तथा 2021 के अंत के बीच जीवाश्म ईंधन व उद्योग से भारत का संचयी उत्सर्जन कुल वैश्विक उत्सर्जन का केवल 3.3% है, जो यूरोप (31%), अमेरिका (24.3%) और चीन (14.4%) की तुलना में बहुत कम है।
कोयले के पर्यावरणीय तथा सामाजिक प्रभाव क्या हैं?
- कोयले की गुणवत्ता तथा परिवहन:
- प्रमुख कोयला-खनन देशों की तुलना में भारतीय कोयले में फ्लाई ऐश का स्तर अधिक होता है।
- अधिक राख के साथ कोयला जलाने से बॉयलर ट्यूबों का क्षरण और विफलता होती है, जिससे संयंत्र की उपयोगिता, दक्षता तथा प्रदर्शन प्रभावित होता है, जो उत्सर्जन में वृद्धि करता है।
- बिना धुले कच्चे कोयले को 500 किमी. से अधिक दूर स्थित विद्युत संयंत्रों तक ले जाने से परिवहन प्रणाली बाधित होती है और इसके परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन तथा पर्यावरण प्रदूषण होता है।
- सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन:
- असम और मेघालय के अलावा भारतीय कोयले में चीनी विद्युत संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोयले की तुलना में सल्फर की मात्रा कम होती है।
- भारत में इसके ऊँचे ढेर और अनुकूल मौसम की स्थिति सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को दूर-दूर तक फैलने में मदद करती है।
- संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के अनुसार, ऐतिहासिक सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन ने शीतलन प्रभाव उत्पन्न किया है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है।
- असम और मेघालय के अलावा भारतीय कोयले में चीनी विद्युत संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोयले की तुलना में सल्फर की मात्रा कम होती है।
- फ्लू गैस डिसल्फराइज़र (FGDs):
- मौजूदा विद्युत संयंत्रों के FGD के साथ रेट्रोफिटिंग से विशिष्ट कोयले की खपत बढ़ जाती है, ऊर्जा दक्षता कम हो जाती है और उच्च उत्सर्जन तीव्रता तथा अस्थायी संयंत्र बंद हो जाते हैं।
- फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) एक ऐसी प्रक्रिया है जो निकास गैसों से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) को हटा देती है।
- परिचालित विद्युत संयंत्रों को बंद करने में असमर्थता के कारण भारत में FGD की रेट्रोफिटिंग में देरी हुई है।
- मौजूदा विद्युत संयंत्रों के FGD के साथ रेट्रोफिटिंग से विशिष्ट कोयले की खपत बढ़ जाती है, ऊर्जा दक्षता कम हो जाती है और उच्च उत्सर्जन तीव्रता तथा अस्थायी संयंत्र बंद हो जाते हैं।
- रोज़गार एवं उद्योग:
- कोयला क्षेत्र विद्युत, इस्पात, सीमेंट और एल्युमीनियम जैसे उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और लाखों व्यक्तियों को रोज़गार देता है।
- स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के परिणामस्वरूप रोज़गारों के संरक्षण और आर्थिक स्थिरता में असंतुलन हो सकता है।
- कोयला क्षेत्र विद्युत, इस्पात, सीमेंट और एल्युमीनियम जैसे उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और लाखों व्यक्तियों को रोज़गार देता है।
- ऊर्जा अभिगम और सामर्थ्य:
- कोयला विद्युत उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जिससे बड़ी आबादी के लिये अभिगम और सामर्थ्य सुनिश्चित होती है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन के लिये सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा अभिगम बनाए रखने पर विचार करना चाहिये।
- कोयला विद्युत उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जिससे बड़ी आबादी के लिये अभिगम और सामर्थ्य सुनिश्चित होती है।
सतत् विकास पर कोयले के प्रभाव को कम करने की रणनीतियाँ क्या हैं?
- थर्मल पावर प्लांट (TPP) की दक्षता में वृद्धि:
- मौजूदा कोयला आधारित TPP की दक्षता बढ़ाने के लिये अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
- उत्पादित विद्युत की प्रति यूनिट उत्सर्जन को कम करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों और परिचालन सुधारों को लागू करना।
- स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना:
- स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों के विकास और कार्यान्वयन के लिये संसाधन आवंटित कर प्रोत्साहित करना।
- उन प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता देना जो कार्बन उत्सर्जन को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करती हैं और समग्र पर्यावरणीय प्रदर्शन में सुधार करती हैं।
- स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों के विकास और कार्यान्वयन के लिये संसाधन आवंटित कर प्रोत्साहित करना।
- ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण:
- कोयले पर निर्भरता को कम करने के लिये सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तैनाती में तेज़ी लाना।
- ऐसी नीतियाँ विकसित करना जो विविध ऊर्जा मिश्रण को प्रोत्साहित करे, जिससे स्वच्छ विकल्पों की ओर क्रमिक परिवर्तन सुनिश्चित हो सकेगा।
- कोयले पर निर्भरता को कम करने के लिये सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तैनाती में तेज़ी लाना।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये वैश्विक सहयोग:
- बैटरी भंडारण के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की एक स्थिर और विविध आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करना।
- ग्रिड-स्केल बैटरी भंडारण के लिये आवश्यक अधिकांश महत्त्वपूर्ण सामग्रियों को शीर्ष तीन उत्पादकों, विशेष रूप से चीन द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- चीन जैसे देशों पर आयात निर्भरता से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये राजनयिक राह तलाशना।
- बैटरियाँ वर्ष 2030 के बाद ही लागत-प्रभावी हो सकती हैं, जिससे अंतरिम रूप से अन्य रणनीतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
- बैटरी भंडारण के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की एक स्थिर और विविध आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करना।
- परमाणु ऊर्जा विस्तार:
- कोयले के निम्न-कार्बन विकल्प के रूप में नाभिकीय ऊर्जा में निवेश हेतु समर्थन बढ़ाना।
- अधिक दक्षता और सुरक्षा के लिये छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों हेतु अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन।
- कोयले के निम्न-कार्बन विकल्प के रूप में नाभिकीय ऊर्जा में निवेश हेतु समर्थन बढ़ाना।
- पंपयुक्त भंडारण परियोजनाएँ एवं ग्रिड एकीकरण:
- सौर और पवन जैसे आंतरायिक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को पावर ग्रिड में कुशलतापूर्वक एकीकृत करने के लिये पंपयुक्त भंडारण परियोजनाओं को बढ़ावा देना।
- परिवर्तनीय ऊर्जा इनपुट के बेहतर प्रबंधन के लिये स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
- धुले हुए कोयले का अधिदेश:
- पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये खदानों से 500 किमी. से अधिक दूर स्थित TPP में धुले कोयले के उपयोग को अनिवार्य करने वाले नियम लागू करना।
- आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये टैरिफ निर्धारण प्रक्रिया में कोयला-धुलाई शुल्क को एकीकृत करना।
- इससे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन और पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है।
- निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहन:
- भारत में वर्तमान विद्युत संयंत्र क्षमता का लगभग 30% सुपरक्रिटिकल या अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल प्रौद्योगिकियों पर आधारित है।
- उन्नत अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल तकनीक (AUSC) सुपरक्रिटिकल तकनीक की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 15% कम करती है।
- एकीकृत गैसीकरण संयुक्त चक्र (IGCC) विद्युत संयंत्रों की क्षमता 46-48% है और वे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण कर सकते हैं।
- वर्ष 2030 से पहले IGCC या AUSC प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर स्थापित करने के लिये परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना।
- NTPC को शून्य-कार्बन विद्युत उत्पादन के लिये छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों हेतु कुछ विद्युत संयंत्र स्थलों का पुन: उपयोग करने के लिये प्रोत्साहन।
- निम्न-कार्बन विकास भारत के लिये एक विकल्प नहीं बल्कि एक आवश्यकता है, जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन और पेरिस समझौते में प्रस्तुत इसकी दीर्घकालिक कम-उत्सर्जन विकास रणनीति ('Long-term Low-Emissions Development Strategy)' में परिलक्षित होता है।
- मौजूदा TPP के लिये कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों का पता लगाने और उन्हें विकसित करने के लिये अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।
- नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन के लिये सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा अभिगम बनाए रखने पर विचार करना चाहिये।
- भारत में वर्तमान विद्युत संयंत्र क्षमता का लगभग 30% सुपरक्रिटिकल या अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल प्रौद्योगिकियों पर आधारित है।
- कण उत्सर्जन में कमी:
- विद्युत संयंत्र के प्रदूषकों के लिये 'श्रेणीबद्ध प्राथमिकता' दृष्टिकोण लागू करना, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर/कणिका पदार्थ में कमी को प्राथमिकता दी जाए।
- कणिका पदार्थ उत्सर्जन में 99.97% की कमी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये लागत प्रभावी इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर तैनात करना।
- विद्युत संयंत्र के प्रदूषकों के लिये 'श्रेणीबद्ध प्राथमिकता' दृष्टिकोण लागू करना, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर/कणिका पदार्थ में कमी को प्राथमिकता दी जाए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 Ans: (d) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-लिथुआनिया संबंध
प्रिलिम्स के लिये:क्लेपेडा बंदरगाह, बाल्टिक देश, सागरमाला परियोजना, भारत का ITEC कार्यक्रम, लिथुआनिया के पड़ोसी देश मेन्स के लिये:भारत-लिथुआनिया संबंधों के प्रमुख पहलू |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग राज्य मंत्री और लिथुआनिया गणराज्य के विदेश मंत्रालय में उप मंत्री ने भारत व लिथुआनिया के बीच समुद्री द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये नई दिल्ली में बैठक की।
बैठक के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- विनियस में रेज़िडेंट मिशन का उद्घाटन: विनियस में भारत के रेज़िडेंट मिशन के उद्घाटन की सराहना की गई, इसे लिथुआनिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया गया।
- द्विपक्षीय व्यापार वृद्धि: भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 तक 472 मिलियन अमेरिकी डॉलर की निरंतर वृद्धि का हवाला देते हुए द्विपक्षीय व्यापार के सकारात्मक प्रक्षेपवक्र पर ज़ोर दिया, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग में निरंतर वृद्धि का संकेत है।
- पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर पर सहयोग और क्लेपेडा पोर्ट के लाभ: चर्चा सहयोग के अवसरों की खोज, बंदरगाह बुनियादी ढाँचे के विकास में भारत की विशेषज्ञता का लाभ उठाने पर केंद्रित थी।
- इस सहयोग का उद्देश्य पूर्वी यूरोप में महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों के प्रवेश द्वार के रूप में लिथुआनिया की रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाना है।
- चर्चा का केंद्र बिंदु क्लेपेडा बंदरगाह के विशिष्ट फायदों पर आधारित था, विशेष रूप से इसकी वर्ष भर बर्फ मुक्त स्थिति पर।
- कंटेनर ट्रांसशिपमेंट के लिये अग्रणी बाल्टिक बंदरगाह के रूप में यह पूर्वी यूरोप के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों के लिये लाभप्रद भूमि संपर्क का दावा करते हुए व्यापार को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
- विविध निवेश अवसर: भारत ने व्यापक आर्थिक साझेदारी और सतत् विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पोर्ट आधुनिकीकरण (PPP), पोर्ट कनेक्टिविटी, तटीय शिपिंग, समुद्री प्रौद्योगिकी, सागरमाला परियोजना और डीकार्बोनाइज़ेशन पहल सहित विभिन्न क्षेत्रों में लिथुआनिया के लिये निवेश के अवसरों की एक शृंखला प्रस्तुत की।
भारत-लिथुआनिया संबंधों के प्रमुख पहलू क्या हैं?
- ऐतिहासिक संबंध
- भाषायी समानताएँ: लिथुआनियाई और संस्कृत भाषाएँ, भाषायी समानताएँ साझा करती हैं, जो प्राचीन संबंधों का संकेत हैं।
- पूर्व-ईसाई लिथुआनिया में प्रकृति की पूजा की जाती थी और वे देवताओं की त्रिमूर्ति - परकुनास, पैट्रिम्पास एवं पिकुओलिस का सम्मान करते थे।
- बौद्धिक आदान-प्रदान: 19वीं सदी के दार्शनिक विदुनास ने वेदांत से प्रेरित एक दार्शनिक प्रणाली का निर्माण करते हुए लिथुआनियाई और हिंदू आध्यात्मिक संस्कृति के बीच समानताएँ बनाईं।
- एंटानास पोस्का और माटस साल्सियस जैसे लिथुआनियाई यात्रियों ने 1930 और 1940 के दशक में संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति को गहराई से जाना।
- 1970 के दशक में संस्कृत, विनियस विश्वविद्यालय के शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गई, जिससे भारत और लिथुआनिया के बीच शैक्षणिक संबंधों को बढ़ावा मिला।
- भाषायी समानताएँ: लिथुआनियाई और संस्कृत भाषाएँ, भाषायी समानताएँ साझा करती हैं, जो प्राचीन संबंधों का संकेत हैं।
- राजनीतिक संबंध:
- मान्यता: भारत ने वर्ष 1991 में USSR से लिथुआनिया की स्वतंत्रता को स्वीकार किया तथा वर्ष 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित किये।
- दूतावास एवं वाणिज्य दूतावास: लिथुआनिया ने वर्ष 2008 में नई दिल्ली में अपना दूतावास स्थापित किया तथा वर्तमान में भारत में इसके तीन मानद वाणिज्य दूत हैं।
- भारत का एक मानद वाणिज्य दूत वर्ष 2014 से विनियस में कार्य कर रहा है।
- भारत-लिथुआनिया फोरम: इसकी शुरुआत वर्ष 2010 में हुई, जो संस्कृति, शिक्षा, व्यवसाय तथा विज्ञान को शामिल करते हुए बहुआयामी संबंधों को बढ़ावा देता है।
- व्यापार गतिशीलता:
- लिथुआनिया से प्रमुख भारतीय आयात: सब्जियाँ, लकड़ी तथा लकड़ी से निर्मित वस्तुएँ, कपड़ा, विद्युत मशीनरी और उपकरण, लोहा व इस्पात, ऑप्टिकल, फोटोग्राफिक एवं मापने के उपकरण।
- लिथुआनिया को प्रमुख भारतीय निर्यात: परमाणु बॉयलर और रिएक्टर, भेषजीय पदार्थ (Pharmaceutical Products), मछली, कार्बनिक रसायन, तंबाकू एवं निर्मित तंबाकू, कपड़ा, लोहा और इस्पात।
- सांस्कृतिक सहभागिता
- योग तथा आध्यात्मिक रुचि: लिथुआनियाई लोग भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं, विशेषकर योग में गहरी रुचि रखते हैं। लिथुआनिया में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
- भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (ITEC): 400 से अधिक लिथुआनियाई नामांकित आवेदकों ने भारत के ITEC कार्यक्रम के तहत विभिन्न पाठ्यक्रमों में भाग लिया, जिससे परस्पर विद्वत्ता एवं सहयोग को बढ़ावा मिला।
भारतीय राजव्यवस्था
राज्य विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियाँ
प्रिलिम्स के लिये:राज्य विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियाँ, सर्वोच्च न्यायालय (SC), संविधान का अनुच्छेद 200, अनुच्छेद 201, संविधान का अनुच्छेद 31A मेन्स के लिये:राज्य के विधेयकों, सरकारी नीतियों तथा विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनकी रूपरेखा तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दों पर राज्यपाल की शक्तियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा है कि जब राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति रोकता है तो उसके लिये संविधान के अनुच्छेद 200 में उल्लिखित विशिष्ट कार्रवाई का पालन करना अनिवार्य है।
- अनुच्छेद 200 का मुख्य पहलू यह है कि यह राज्यपाल को सहमति रोकने के अपने कारणों के बारे में सूचित करने तथा विधानमंडल को विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिये प्रेरित करने का आदेश देता है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?
- यदि कोई राज्यपाल किसी विधेयक को मंज़ूरी देने से इनकार करता है, तो उसे अनुच्छेद 200 का अनुपालन करना होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि यदि कोई राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति रोकने का फैसला करता है तो उसे विधेयक को पुनर्विचार के लिये विधायिका को वापस करना होगा।
- विधेयक के पुनर्मूल्यांकन के लिये विधानमंडल की आवश्यकता को संप्रेषित करने के आवश्यक कदम के बिना राज्यपाल द्वारा सहमति को रोकना संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- विधेयक पर अंतिम निर्णय निर्वाचित विधायिका का होता है तथा राज्यपाल का संदेश उन्हें सहमत होने के लिये बाध्य नहीं करता है। अर्थात् एक बार जब सदन लौटाए गए विधेयक को संशोधन के साथ अथवा बिना संशोधन के दोबारा पारित कर देता है तो राज्यपाल के पास सहमति देने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता है।
- किसी विधेयक को स्वीकार करने अथवा अस्वीकार करने का अंतिम अधिकार निर्वाचित विधानमंडल के पास है एवं राज्यपाल का संदेश विधायी निकाय को बाध्य नहीं करता है।
विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियाँ क्या हैं?
- अनुच्छेद 200:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 किसी राज्य की विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को सहमति के लिये राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को रेखांकित करता है, जो या तो सहमति दे सकता है, सहमति को रोक सकता है या राष्ट्रपति द्वारा विचार के लिये विधेयक को आरक्षित कर सकता है।
- राज्यपाल सदन या सदनों द्वारा पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले संदेश के साथ विधेयक को वापस भी कर सकता है।
- अनुच्छेद 201:
- इसमें कहा गया है कि जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित होता है, तो राष्ट्रपति विधेयक पर सहमति दे सकता है या उस पर रोक लगा सकता है।
- राष्ट्रपति विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिये राज्यपाल को उसे सदन या राज्य के विधानमंडल के सदनों को वापस भेजने का निर्देश भी दे सकता है।
- राज्यपाल के पास उपलब्ध विकल्प:
- वह राष्ट्रपति के विचार हेतु विधेयक को आरक्षित कर सकता है। आरक्षण अनिवार्य है जहाँ राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक राज्य उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता है। हालाँकि राज्यपाल विधेयक को आरक्षित भी कर सकता है यदि यह निम्नलिखित प्रकृति का हो:
- एक अन्य विकल्प सहमति को रोकना है, लेकिन ऐसा सामान्य रूप से किसी भी राज्यपाल द्वारा नहीं किया जाता है क्योंकि यह एक अत्यंत अलोकप्रिय कार्यवाही होगी।
- संविधान के प्रावधानों के खिलाफ
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का विरोध
- देश के व्यापक हित के खिलाफ
- गंभीर राष्ट्रीय महत्त्व का
- संविधान के अनुच्छेद 31A के तहत संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण से संबंधित हो।
- वह सहमति दे सकता है या विधेयक के कुछ प्रावधानों या विधेयक पर स्वयं पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हुए इसे विधानसभा को वापस भेज सकता है।
क्या राज्यपाल विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कर किसी विधेयक पर सहमति रोक सकता है?
- जबकि अनुच्छेद 200 को पढ़ने से पता चलता है कि राज्यपाल अपनी सहमति रोक सकता है, विशेषज्ञों का सवाल है कि क्या वह केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही ऐसा कर सकता है।
- संविधान में प्रावधान है कि राज्यपाल अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग अनुच्छेद 154 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है।
- बड़ा सवाल यह है कि विधानसभा द्वारा विधेयक पारित होने पर राज्यपाल को सहमति रोकने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिये।
लंबित विधेयकों से जुड़ी समस्याएँ क्या हैं?
- निर्णय लेने में देरी:
- विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने में राज्यपाल की विफलता से निर्णय लेने में देरी होती है, जो राज्य सरकार के प्रभावी कार्यकरण को प्रभावित करती है।
- जब राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर निर्णय लेने में विफल रहता है, तो इससे नीतियों और कानूनों के कार्यान्वयन में देरी होती है।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर करना:
- राज्यपाल, जिसे केंद्र द्वारा नियुक्त किया जाता है, राजनीतिक कारणों से राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को विलंबित या अस्वीकार करने के लिये अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर करता है।
- लोक धारणा:
- आम लोग प्रायः राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों को राज्य सरकार की अक्षमता या उसके भ्रष्टाचार के संकेत के रूप में देखते हैं, जो सरकार की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचा सकता है।
- उत्तरदायित्व की कमी:
- राज्यपाल अपनी सहमति रोके रखने के निर्णय का कारण बताने के लिये बाध्य नहीं है।
- उत्तरदायित्व की यह कमी शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को कमज़ोर करती है।
आगे की राह
- राज्यपालों को अनुच्छेद 200 के दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिये, विधेयकों के विषय में अपनी चिंताओं को तुरंत बताना चाहिये और उन्हें पुनर्विचार के लिये राज्य विधानसभा को वापस भेजना चाहिये। यह एक उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करता है और विधानसभा के अधिकार का सम्मान करता है।
- स्पष्ट दिशा-निर्देश और पारदर्शी प्रक्रियाएँ गलतफहमी से बचने में मदद कर सकती हैं। किसी विधेयक पर सहमति रोकते समय राज्यपालों को अपने निर्णयों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए पारदर्शी तर्क प्रदान करना चाहिये।
- विधायी प्रक्रिया में राज्यपालों की भूमिका पर निरंतर चर्चा और कानूनी स्पष्टता प्रक्रियाओं को और भी अधिक सुव्यवस्थित कर सकती है तथा संभावित संघर्षों से बच सकती है।
कानूनी अंतर्दृष्टि: COI का अनुच्छेद 200
https://www.drishtijudiciary.com/hin
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
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सामाजिक न्याय
महिलाओं और लड़कियों की लिंग-संबंधी हत्याएँ
प्रिलिम्स के लिये:महिलाओं और लड़कियों की लिंग संबंधी हत्याएँ, ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC), महिला हत्या/स्त्री हत्या, संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय ड्रग नियंत्रण कार्यक्रम (UNDCP) मेन्स के लिये:महिलाओं और लड़कियों की लिंग संबंधी हत्याएँ, केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का प्रदर्शन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) एवं UN वूमन ने जेंडर रिलेटेड किलिंग ऑफ वूमन एंड गर्ल (फेमिसाइड/फेमिनिसाइड) शीर्षक से एक अध्ययन जारी किया, जिसमें वर्ष 2022 में महिलाओं और लड़कियों की लिंग-संबंधी हत्याओं में वृद्धि का खुलासा हुआ है।
स्त्री हत्या/फेमीसाइड क्या है?
- महिला हत्या या स्त्री हत्या से तात्पर्य महिलाओं या लड़कियों की जान-बूझकर केवल इसलिये हत्या करना है क्योंकि वे महिला हैं। यह एक लिंग-आधारित अपराध है जिसकी जड़ें गहराई तक व्याप्त सामाजिक दृष्टिकोण और महिलाओं के प्रति भेदभाव में निहित हैं।
- स्त्री हत्या, मानव हत्या से इस मायने में भिन्न है कि यह विशेष रूप से व्यक्तियों को उनके लिंग के आधार पर लक्षित करती है, जिसमें अक्सर ऐसी स्थितियाँ शामिल होती हैं जहाँ महिलाओं को उनके सहयोगियों, परिवार के सदस्यों या व्यक्तियों द्वारा स्त्री-द्वेष, लिंग-आधारित हिंसा या महिलाओं का अवमूल्यन करने वाली सांस्कृतिक मान्यताओं जैसे कारणों से मार दिया जाता है।
अध्ययन के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- स्त्री हत्या/फेमीसाइड के रुझान:
- वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 में लगभग 89,000 महिलाओं और लड़कियों को जान-बूझकर मार दिया गया, जो पिछले दो दशकों में दर्ज सबसे अधिक वार्षिक संख्या है।
- वर्ष 2021 में चरम पर पहुँचने के बाद वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर हत्याओं की संख्या में गिरावट शुरू हो गई है, लेकिन महिलाओं की हत्याओं की संख्या में गिरावट नहीं हो रही है।
- अपराधी-पीड़ित असमानता:
- पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मामले में अंतरंग साथी या परिवार से संबंधित हत्याओं का शिकार होने की संभावना अधिक होती है।
- जबकि पूरे विश्व में अधिकांश हत्याएँ पुरुषों और लड़कों (वर्ष 2022 में 80%) की जाती हैं, महिलाएँ तथा लड़कियाँ घर में घरेलू हिंसा से असमान रूप से प्रभावित होती हैं: वे घर में हत्याओं के सभी पीड़ितों में से लगभग 53% और अंतरंग साथी हत्याओं के सभी पीड़ितों में से 66% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- महाद्वीपीय रुझान:
- अफ्रीका ने वर्ष 2022 में महिलाओं की अंतरंग साथी/परिवार-संबंधी हत्याओं की सबसे अधिक संख्या दर्ज की, जो 13 वर्षों में पहली बार एशिया से आगे निकल गई।
- अमेरिका में कम मामलों की रिपोर्ट करते हुए प्रति 100,000 महिला जनसंख्या पर ऐसी स्त्री हत्याओं की अपेक्षाकृत उच्च दर प्रदर्शित हुई।
- क्षेत्रीय विविधताएँ और हालिया परिवर्तन:
- वर्ष 2022 में अनुमानित 20,000 पीड़ितों के साथ अफ्रीका वर्ष 2013 के बाद पहली बार पीड़ितों की सबसे अधिक संख्या वाले क्षेत्र के रूप में एशिया से आगे निकल गया है।
- वर्ष 2022 में अफ्रीका अपनी महिला आबादी के आकार (प्रति 100,000 महिलाओं पर 2.8 पीड़ित) के सापेक्ष पीड़ितों की सबसे अधिक संख्या वाला क्षेत्र भी था।
- वर्ष 2010 और 2022 के दौरान हालाँकि उप-क्षेत्रों में मतभेदों के साथ तथा पश्चिमी व दक्षिणी यूरोप में कुछ असफलताओं के साथ, विशेष रूप से शुरुआत के बाद से वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान यूरोप में महिला अंतरंग साथी/परिवार से संबंधित हत्याओं की संख्या में (21% तक) औसत कमी देखी गई।
- भारत-विशिष्ट दृष्टिकोण:
- भारत में विगत एक दशक में लैंगिक आधार पर हुई हत्याओं में थोड़ी कमी देखी गई है, हालाँकि दहेज से संबंधित मौतें, ऑनर किलिंग तथा जादू-टोना के आरोप जैसे मुद्दे निरंतर बरकरार हैं।
- भारत में लिंग-संबंधी मौतों के प्रमुख कारण के रूप में दहेज-संबंधित कारण लगातार इस सूची में शीर्ष पर हैं, जिसमें ऑनर किलिंग तथा जादू-टोना-संबंधी हत्याओं का प्रतिशत कम है।
ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) क्या है?
- इसकी स्थापना वर्ष 1997 में हुई थी तथा वर्ष 2002 में इसे UNODC नाम दिया गया था।
- यह संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय ड्रग नियंत्रण कार्यक्रम (UNDCP) तथा वियना में स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अधीन अपराध रोकथाम तथा आपराधिक न्याय प्रभाग के सत्यह मिलकर ड्रग नियंत्रण एवं अपराध रोकथाम कार्यालय के रूप में कार्य करता है।