महिलाओं से संबंधित आँकड़े: एनएफएचएस 5
प्रिलिम्स के लिये:NFHS-5, बाल विवाह, एनीमिया, इंटरनेट का उपयोग मेन्स के लिये:राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS 2019-21) के नवीनतम आँकड़े जारी किये गए हैं।
- इससे पहले वर्ष 2020 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा NFHS-5 2019-20 के पहले चरण का डेटा जारी किया गया था, जिसमें भारत में महिलाओं से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर डेटा उपलब्ध कराया गया था।
प्रमुख बिंदु
- बाल विवाह की स्थिति:
- 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओं की हिस्सेदारी जिन्होंने 18 वर्ष की आयु से पहले शादी की थी, पिछले पाँच वर्षों में 27% से घटकर 23% हो गई है।
- बाल विवाह उच्च प्रजनन क्षमता, न्यूनतम मातृत्त्व एवं शिशु स्वास्थ्य और महिलाओं की निम्न सामाजिक स्थिति का एक प्रमुख निर्धारक है।
- पश्चिम बंगाल और बिहार में बालिका विवाह (प्रत्येक राज्य में लगभग 41% ऐसी महिलाएँ) का प्रचलन सबसे अधिक था।
- राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा में कम उम्र के विवाहों के अनुपात में सबसे अधिक कमी देखी गई।
- 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओं की हिस्सेदारी जिन्होंने 18 वर्ष की आयु से पहले शादी की थी, पिछले पाँच वर्षों में 27% से घटकर 23% हो गई है।
- बड़े पैमाने पर एनीमिया:
- 2015-16 के 53% की तुलना में 2019-21 में 15-49 आयु वर्ग की 57% महिलाओं में एनीमिया पाया गया था, जबकि पुरुषों का आँकड़ा 22.7% से बढ़कर 25% हो गया।
- 6-59 महीने (कुल 67.1%) आयु वर्ग के बच्चों के लिये सबसे अधिक वृद्धि (8.5%) देखी गई।
- बड़े राज्यों में एनीमिया से ग्रस्त महिलाओं की संख्या सबसे अधिक पश्चिम बंगाल में और सबसे कम केरल में दर्ज की गई।
- असम, मिज़ोरम, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में बच्चों में एनीमिया की दर सर्वाधिक चिंतनीय स्तर पर पहुँच गई है।
- सुविधाओं में सुधार:
- मणिपुर, मेघालय, असम और झारखंड को छोड़कर सभी राज्यों में 90% से अधिक आबादी के पास पेयजल के बेहतर स्रोत हैं।
- 2015-16 के बाद से बिहार, झारखंड आदि राज्यों में पेयजल तक पहुँच लगभग दोगुनी हो गई थी, लेकिन अधिकांश में यह 75% अंक से नीचे आ गया है।
- जिन महिलाओं के पास घर है:
- दिल्ली में एकल या संयुक्त रूप से घर या ज़मीन की स्वामित्त्व वाली महिलाओं की संख्या में पिछले पाँच वर्षों में काफी गिरावट आई है।
- जबकि 2015-16 में 35% महिलाओं के नाम पर घर या जमीन पंजीकृत थी, 2020-21 में घटकर यह 22.7% हो गया।
- जिन महिलाओं का बैंक खाता है:
- जिन महिलाओं के पास बैंक खाता है, उनमें 8% की वृद्धि हुई है और जिन महिलाओं के पास मोबाइल फोन है, उनमें 7 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है।
- इंटरनेट तक पहुँच:
- 85% पुरुषों की तुलना में इंटरनेट का उपयोग करने वाली महिलाओं का प्रतिशत लगभग 64% था। यह डेटा पिछले सर्वेक्षण में उपलब्ध नहीं था।
- घरेलू निर्णयों में भागीदारी:
- यह 2015-16 के लगभग 74 प्रतिशत से बढ़कर अब 92 प्रतिशत हो गया है। इसमें घरेलू निर्णयों में विवाहित महिलाओं की भागीदारी जैसे- स्वयं की स्वास्थ्य देखभाल, प्रमुख घरेलू खरीदारी और परिवार या रिश्तेदारों के यहाँ जाना आदि शामिल हैं।
- आउट-ऑफ-पॉकेट एक्सपेंडिचर:
- यह पांँच साल में 2,548 रुपए से बढकर 8,518 रुपए हो गया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में औसत आउट-ऑफ-पॉकेट एक्सपेंडिचर/अपनी जेब से किये गए खर्च में प्रति डिलीवरी महत्त्वपूर्ण सुधार देखा गया है।
- मोटापे में वृद्धि:
- पुरुषों और महिलाओं दोनों में मोटापा बढ़ा है। जहाँ 41.3% महिलाएंँ अधिक वज़न या मोटापे से ग्रस्त हैं, पुरुषों के संदर्भ में यह आंँकड़ा 38% है। हालांँकि अधिक वज़न या मोटापे से ग्रस्त पुरुषों के प्रतिशत में महिलाओं की तुलना में तेजी से वृद्धि हुई है।
- उच्च कुपोषण:
- पांँच साल से कम उम्र के अविकसित (उम्र के हिसाब से बहुत कम), वेस्टिंग (ऊंँचाई के हिसाब से कम वज़न) या कम वज़न वाले बच्चों की संख्या में गिरावट आई है।
- हालांँकि हर तीसरा बच्चा अभी भी जीर्ण अल्पपोषण (Chronic Undernourishment) से पीड़ित है, और हर पांँचवांँ बच्चा गंभीर रूप से कुपोषित है।
- स्टंटिंग: मेघालय में व्यापकता रही, उसके बाद बिहार का स्थान है, जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड में वर्ष 2015-16 के बाद से 5-7% की गिरावट दर्ज की गई।
- वेस्टिंग: बिहार में कम वज़न के बच्चों की संख्या सबसे अधिक तथा इसके बाद गुजरात का स्थान आता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) बड़े पैमाने पर किया जाने वाला एक बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है जो पूरे भारत में परिवारों के प्रतिनिधि नमूने के आधार पर किया जाता है।
- भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare- MoHFW) ने इस सर्वेक्षण के लिये समन्वय और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु मुंबई स्थित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (International Institute for Population Sciences- IIPS) को नोडल एजेंसी के रूप में गठित किया है।
- IIPS सर्वेक्षण के कार्यान्वयन के लिये कई फील्ड संगठनों (Field Organizations- FO) के साथ सहयोग करता है।
- सर्वेक्षण में भारत के राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान की गई है:
- प्रजनन क्षमता
- शिशु और बाल मृत्यु दर
- परिवार नियोजन की प्रथा
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य
- प्रजनन स्वास्थ्य
- पोषण
- एनीमिया
- स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सेवाओं का उपयोग और गुणवत्ता
- NFHS के प्रत्येक क्रमिक चरण के दो विशिष्ट लक्ष्य हैं:
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा अन्य एजेंसियों द्वारा नीति निर्माण व कार्यक्रम के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर अपेक्षित आवश्यक डेटा प्रदान करना।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर जानकारी प्रदान करना।
- NFHS के विभिन्न चरणों का वित्तपोषण USAID, बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यूनिसेफ, UNFPA तथा MoHFW (भारत सरकार) द्वारा किया गया है।
आगे की राह
- एनएफएचएस के निष्कर्ष बालिकाओं की शिक्षा में अंतराल को समाप्त करने और महिलाओं तथा बच्चों की दयनीय पोषण स्थिति को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं।
- वर्तमान समय में इन सेवाओं को सुलभ, वहनीय और सभी के लिये स्वीकार्य बनाने हेतु स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी स्वास्थ्य संस्थानों, शिक्षाविदों और अन्य भागीदारों द्वारा एकीकृत व समन्वित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
संविधान दिवस: 26 नवंबर
प्रिलिम्स के लिये:संविधान दिवस, आज़ादी का अमृत महोत्सव, राष्ट्रीय कानून दिवस मेन्स के लिये:संविधान दिवस का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' समारोह के एक भाग के रूप में 'संविधान दिवस' की पूर्व संध्या पर कानून और न्याय मंत्रालय ने 'भारतीय संविधान पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम' शुरू किया।
- ऑनलाइन पाठ्यक्रम का उद्देश्य मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों की समझ विकसित करने के लिये संवैधानिक मूल्यों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
- यह नागरिकों को गौरवशाली संवैधानिक यात्रा से परिचित कराने और जीवन के अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं गोपनीयता के मुद्दों सहित देश के सर्वोच्च कानून को समझने में भी मदद करेगा।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह हर वर्ष 26 नवंबर को मनाया जाता है।
- इसे राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
- इस दिन वर्ष 1949 में भारत की संविधान सभा ने औपचारिक रूप से भारत के संविधान को अपनाया जो 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।
- 19 नवंबर, 2015 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में मनाने के भारत सरकार के निर्णय को अधिसूचित किया।
- संविधान का निर्माण:
- वर्ष 1934 में एम.एन. रॉय ने पहली बार संविधान सभा के विचार का प्रस्ताव रखा।
- वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा के गठन के लिये चुनाव हुए।
- भारत के संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया। भारत की संविधान सभा ने संविधान के निर्माण से संबंधित विभिन्न कार्यों से निपटने के लिये कुल 13 समितियों का गठन किया।
- इनमें 8 प्रमुख समितियाँ थीं और शेष छोटी थीं। प्रमुख समितियों और उनके प्रमुखों की सूची नीचे दी गई है:
- मसौदा समिति- बी.आर. अंबेडकर
- संघ शक्ति समिति- जवाहरलाल नेहरू
- केंद्रीय संविधान समिति- जवाहरलाल नेहरू
- प्रांतीय संविधान समिति- वल्लभभाई पटेल
- मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों और जनजातीय तथा बहिष्कृत क्षेत्रों पर सलाहकार समिति- वल्लभभाई पटेल।
- प्रक्रिया समिति के नियम- राजेंद्र प्रसाद
- राज्य समिति (राज्यों के साथ बातचीत के लिये समिति)- जवाहरलाल नेहरू
- संचालन समिति- राजेंद्र प्रसाद
- भारत के संविधान के बारे में तथ्य:
- दुनिया का सबसे विस्तृत संविधान।
- एकात्मक विशेषताओं के साथ संघीय प्रणाली।
- सरकार का संसदीय स्वरूप।
- संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन का समय लगा।
- मूल रूप से भारत का संविधान अंग्रेज़ी और हिंदी में लिखा गया था।
- भारतीय संविधान की मूल संरचना भारत सरकार अधिनियम, 1935 पर आधारित है।
- भारत के संविधान में कई देशों के संविधान की विशेषताओं को अपनाया गया है।
भारतीय संविधान की मूल प्रतियाँ टाइप या मुद्रित नहीं थीं। वे हस्तलिखित हैं और अब उन्हें संसद के पुस्तकालय में हीलियम में रखा गया है। प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने भारत की संरचना की अनूठी प्रतियाँ लिखी थीं।
अन्य संबंधित स्मरणीय जानकारी:
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना
- भारतीय संविधान के महत्त्वपूर्ण लेख (भाग I और II)
- मौलिक अधिकार
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
- संसद
- प्रमुख संवैधानिक संशोधन
- आपातकालीन प्रावधान
स्रोत: पीआईबी
‘राष्ट्रीय दुग्ध दिवस’
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय दुग्ध दिवस, डॉ. वर्गीज कुरियन, ऑपरेशन फ्लड मेन्स के लिये:भारतीय डेयरी क्षेत्र: महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने 26 नवंबर को ‘राष्ट्रीय दुग्ध दिवस’ (NMD) मनाया।
- इस अवसर पर ‘राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार’ भी प्रदान किये गए और धामरोद, गुजरात एवं हेसरघट्टा, कर्नाटक में आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन) लैब भी शुरू की गई।
- प्रतिवर्ष 01 जून को ‘विश्व दुग्ध दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय दुग्ध दिवस:
- राष्ट्रीय दुग्ध दिवस ‘डॉ. वर्गीज कुरियन’ (भारत के ‘मिल्क मैन’) की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।
- ‘राष्ट्रीय दुग्ध दिवस-2021’ डॉ. कुरियन की 100वीं जयंती को संदर्भित करता है।
- यह दिवस एक व्यक्ति के जीवन में दूध के महत्त्व को रेखांकित करता है और इसका उद्देश्य दुग्ध से संबंधित लाभों को बढ़ावा देना तथा दूध एवं दुग्ध उत्पादों के महत्त्व के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना।
- राष्ट्रीय दुग्ध दिवस ‘डॉ. वर्गीज कुरियन’ (भारत के ‘मिल्क मैन’) की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।
- डॉ. वर्गीज कुरियन (1921-2012):
- उन्हें 'भारत में श्वेत क्रांति के जनक' के रूप में जाना जाता है।
- वह अपने 'ऑपरेशन फ्लड' के लिये काफी प्रसिद्ध हैं, जिसे दुनिया के सबसे बड़े कृषि कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने विभिन्न किसानों और श्रमिकों द्वारा चलाए जा रहे 30 संस्थानों की स्थापना की।
- उन्होंने ‘अमूल ब्रांड’ की स्थापना और सफलता में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्ही के प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत वर्ष 1998 में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया था।
- उन्होंने ‘दिल्ली दूध योजना’ के प्रबंधन में भी मदद की और कीमतों में सुधार किया। उन्होंने भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनने में भी मदद की।
- उन्हें ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ (1963), ‘कृषि रत्न’ (1986) और ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ (1989) सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
- वह भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार- पद्मश्री (1965), पद्मभूषण (1966) और पद्मविभूषण (1999) के प्राप्तकर्त्ता भी हैं।
- ऑपरेशन फ्लड:
- ऑपरेशन फ्लड का उद्देश्य:
- इसे 13 जनवरी, 1970 को लॉन्च किया गया था। यह विश्व का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम था।
- 30 वर्षों के भीतर ऑपरेशन फ्लड ने भारत में प्रति व्यक्ति दूध उत्पादन को दोगुना करने में मदद की, जिससे डेयरी फार्मिंग भारत का सबसे बड़ा आत्मनिर्भर ग्रामीण रोज़गार उत्पन्न करने वाला क्षेत्र बन गया।
- ऑपरेशन फ्लड ने किसानों को उनके द्वारा उत्पन्न संसाधनों पर सीधा नियंत्रण प्रदान किया , जिससे उन्हें अपने स्वयं के विकास को निर्देशित करने में मदद मिली। इससे न केवल बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ, बल्कि इसे अब ‘श्वेत क्रांति’ (White Revolution) के रूप में भी जाना जाता है।
- श्वेत क्रांति के चरण:
- चरण I (1970-1980): इस चरण को विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ द्वारा दान किये गए बटर आयल और स्किम्ड मिल्क पाउडर की बिक्री से प्राप्त धन से वित्तपोषित किया गया था।
- चरण II (1981 से 1985): इस चरण के दौरान दुग्धशालाओं की संख्या 18 से बढ़कर 136 हो गई, दूध की दुकानों का विस्तार लगभग 290 शहरी बाज़ारों में किया गया, एक आत्मनिर्भर प्रणाली स्थापित की गई जिसमें 43,000 ग्राम सहकारी समितियों के 42,50,000 दूध उत्पादक शामिल थे।
- चरण III (1985-1996): इस चरण में डेयरी सहकारी समितियों का विस्तार कर उन्हें सक्षम बनाया गया और कार्यक्रम को अंतिम रूप प्रदान किया गया। इसने दूध की बढ़ती मात्रा की खरीद और बाज़ार के लिये आवश्यक बुनियादी ढांँचे को भी मज़बूत किया।
- उद्देश्य:
- दूध उत्पादन को बढ़ाना।
- ग्रामीण आय में वृद्धि।
- उपभोक्ताओं के लिये उचित मूल्य।
- महत्त्व:
- इसने डेयरी किसानों को स्वयं के विकास के लिये निर्देशित करने में मदद की, उनके संसाधनों पर उन्हें नियंत्रण प्रदान किया।
- इसने 2016-17 में भारत को विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बनने में मदद की।
- वर्तमान में भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, जिसका वैश्विक उत्पादन 22% है।
- ऑपरेशन फ्लड का उद्देश्य:
भारतीय डेयरी क्षेत्र:
- परिचय:
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश होने के परिणामस्वरूप दुनिया का 22.0% से अधिक और एशिया के कुल दूध उत्पादन का 57% हिस्सा कवर करता है।
- भारत का दूध उत्पादन वर्ष 1951 के 17 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2018-2019 में 187.7 मिलियन टन हो गया है।
- महत्त्व:
- डेयरी एकमात्र कृषि उद्योग है जिसमें लगभग 70-80% अंतिम बाज़ार मूल्य को किसानों के साथ साझा किया जाता है और यह भारत में ग्रामीण घरेलू आय का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है।
- यह किसानों की आजीविका में सुधार, रोज़गार सृजन, कृषि औद्योगीकरण और व्यावसायीकरण का समर्थन करता है तथा लोगों में पोषण को बढ़ाता है।
- चुनौतियाँ:
- दूध और दुग्ध उत्पादों की उचित पैकेजिंग एवं लेबलिंग प्रणाली का अभाव।
- उद्यमियों की मानसिकता को समझने के लिये मार्केट इंटेलिजेंस की कमी।
- उपभोक्ता धारणा/ब्रांड निर्माण भी एक बड़ी चुनौती है।
- कोल्ड चेन (परिवहन) और भंडारण सुविधाएँ प्रभावी रूप से संचालन में नहीं हैं।
- संबंधित पहल:
- गोपाल रत्न पुरस्कार: यह मवेशी और डेयरी क्षेत्र के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार हैं, यह पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ स्वदेशी नस्ल को बढ़ावा देने और सर्वोत्तम प्रबंधन प्रथाओं का अभ्यास करने के लिये शुरू किया गया हैं।
- ई-गोपाला (उत्पादक पशुधन के माध्यम से धन का सृजन) एप: यह किसानों के प्रत्यक्ष उपयोग के लिये एक समग्र नस्ल सुधार, बाज़ार और सूचना पोर्टल है।
- डेयरी विकास पर राष्ट्रीय कार्ययोजना 2022: यह दूध उत्पादन बढ़ाने और डेयरी किसानों की आय को दोगुना करने का प्रयास करती है।
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम और राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: इसे देश में पशुओं में खुरपका-मुँहपका रोग (Foot & Mouth Disease- FMD) और ब्रुसेलोसिस को नियंत्रित करने तथा समाप्त करने के लिये शुरू किया गया था।
- पशु-आधार: यह पशुओं की क्षमता को ट्रैक करने के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक UID या पशु-आधार (Pashu Aadhaar) जारी करता है।
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन: इसे वर्ष 2019 में एकीकृत पशुधन विकास केंद्रों के रूप में 21 गोकुल ग्राम स्थापित करने के लिये लॉन्च किया गया था।
स्रोत: पीआईबी
एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र
प्रिलिम्स के लिये:स्मार्ट सिटी मिशन , एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र , केंद्र प्रायोजित योजनाएँ मेन्स के लिये:स्मार्ट सिटी मिशन के तहत स्थापित ICCC की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने राज्यों तथा छोटे शहरों को एक सेवा के रूप में एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCCs) प्रदान करने के लिये अपनी सिफारिश को अंतिम रूप देने का कार्य शुरू कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- स्मार्ट सिटी परियोजना का उद्देश्य 100 नागरिक अनुकूल और आत्मनिर्भर शहरी बस्तियों का विकास करना है तथा प्रत्येक शहर के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCCs) स्थापित करना है।
- ये ICCCs, अधिकारियों को रियल टाइम में विभिन्न सुविधाओं की स्थिति की निगरानी करने में सक्षम बनाने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।
- ICCCs का उद्देश्य शुरू में पानी और बिजली की आपूर्ति, स्वच्छता, यातायात परिचालन, एकीकृत भवन प्रबंधन, शहर की कनेक्टिविटी व इंटरनेट के बुनियादी ढाँचे का नियंत्रण एवं निगरानी करना था।
- हालाँकि ये केंद्र अब विभिन्न अन्य मापदंडों की भी निगरानी करेंगे तथा गृह मंत्रालय (MHA) के तहत अपराध एवं आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) नेटवर्क से भी जुड़े हुए हैं।
- MoHUA का उद्देश्य ICCC मॉडल को अंतिम रूप देना और छह प्रमुख राज्यों- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु में एक पायलट परियोजना को लागू करना है।
- अब तक इन ICCCs को 69 शहरों में परिचालित किया गया है, जिसमें अगरतला, इंदौर और वड़ोदरा इन केंद्रों के एक स्थायी व्यवसाय के लिये सर्वश्रेष्ठ मॉडल हैं।
- स्मार्ट सिटी मिशन:
- स्मार्ट सिटी मिशन के बारे में: यह भारत सरकार के आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के तहत एक अभिनव पहल है, जिसे नागरिकों के लिये स्मार्ट परिणाम प्राप्त करने के साधन के रूप में स्थानीय विकास और प्रौद्योगिकी के दोहन को सक्षम करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु क्रियान्वित किया जा रहा है।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य उन शहरों को बढ़ावा देना है जो मूल बुनियादी ढाँँचा प्रदान करते हैं और अपने नागरिकों को स्वच्छ एवं टिकाऊ वातावरण तथा 'स्मार्ट' समाधान के अनुप्रयोग द्वारा अच्छी गुणवत्ता युक्त जीवन प्रदान करते हैं।
- फोकस: सतत् और समावेशी विकास तथा कॉम्पैक्ट क्षेत्रों पर प्रभाव के लिये एक प्रतिकृति मॉडल का निर्माण करना जो अन्य महत्त्वाकांक्षी शहरों हेतु एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करेगा।
- रणनीति:
- पैन-सिटी (Pan-City) पहल जिसमें कम-से-कम एक स्मार्ट समाधान पूरे शहर में लागू किया जाता है।
- इन तीन मॉडलों की सहायता से क्षेत्रों का चरण-दर-चरण विकास किया जाता है:
- रेट्रोफिटिंग
- पुनर्विकास
- ग्रीनफील्ड
- कवरेज और अवधि: यह मिशन वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2019-20 तक पांँच वर्ष की अवधि के लिये 100 शहरों को कवर करता है।
- वित्तपोषण: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
टुंड्रा उपग्रह: रूस
प्रिलिम्स के लिये:टुंड्रा उपग्रह, S-400 ट्रायम्फ, अश्विन एडवांस्ड एयर डिफेंस इंटरसेप्टर मिसाइल मेन्स के लिये:टुंड्रा उपग्रह की विशेषताएँ एवं इसकी उपयोगिता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस ने एक सैन्य उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया है। इसे टुंड्रा उपग्रह माना जा रहा है, जो कुपोल या डॉम नामक रूस की प्रारंभिक चेतावनी मिसाइल-विरोधी प्रणाली का हिस्सा है।
प्रमुख बिंदु
- टुंड्रा उपग्रह के बारे में:
- टुंड्रा वर्ष 2015 और 2020 के बीच रूस द्वारा स्थापित मिसाइल प्रारंभिक चेतावनी उपग्रहों का एक समूह है।
- टुंड्रा उपग्रह परमाणु युद्ध की स्थिति में उपयोग किये जाने के लिये एक सुरक्षित आपातकालीन संचार पेलोड ले जाने में सक्षम हैं।
- उपग्रहों की टुंड्रा शृंखला ओको-1 प्रणाली के प्रारंभिक चेतावनी उपग्रहों को बदलने हेतु रूसी प्रारंभिक चेतावनी उपग्रहों की अगली पीढ़ी है।
- इस अंतिम ओको-1 उपग्रह (मिसाइल डिफेंस अर्ली वार्निंग प्रोग्राम) ने कथित तौर पर वर्ष 2014 के मध्य से काम करना बंद कर दिया, जिससे रूस ज़मीन पर आधारित ‘मिसाइल डिटेक्शन सिस्टम’ पर निर्भर हो गया।
- टुंड्रा उपग्रह EKS या ‘यूनिफाइड स्पेस सिस्टम’ (कभी-कभी कुपोल या डॉम के रूप में संदर्भित) का हिस्सा है, जिसमें भू-स्थिर कक्षा में कई उपग्रह भी शामिल होंगे।
- इसका अनावरण वर्ष 2019 में किया गया, कुपोल को बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रक्षेपण का पता लगाने और उन्हें उनके लैंडिंग साइट पर ट्रैक करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, हालाँकि इसका सटीक विन्यास अज्ञात है।
- भारत का एंटी-मिसाइल डिफेंस सिस्टम:
- S-400 ट्रायम्फ:
- परिचय
- भारत के पास S-400 ट्रायम्फ है, जो तीन खतरों (रॉकेट, मिसाइल और क्रूज़ मिसाइल) से सुरक्षा करती है। लेकिन इनका दायरा काफी लंबा होता है।
- खतरों को दूर करने के लिये इसमें बहुत बड़ा वायु रक्षा बुलबुला है।
- यह रूस द्वारा डिज़ाइन की गई सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है।
- रेंज और प्रभावशीलता:
- यह प्रणाली 400 किलोमीटर की सीमा के भीतर 30 किलोमीटर तक की ऊँचाई पर सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को भेद सकती है।
- यह प्रणाली 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह को एक साथ नष्ट कर सकती है।
- परिचय
- ‘पृथ्वी वायु रक्षा’ और ‘उन्नत वायु रक्षा’:
- परिचय:
- यह एक दो-स्तरीय प्रणाली है, जिसमें भूमि और समुद्र-आधारित दो इंटरसेप्टर मिसाइल- उच्च ऊँचाई अवरोधन के लिये पृथ्वी वायु रक्षा (PAD) मिसाइल और कम ऊँचाई अवरोधन के लिये उन्नत वायु रक्षा (AAD) मिसाइल शामिल हैं।
- रेंज
- यह 5,000 किलोमीटर दूर लॉन्च की गई किसी भी मिसाइल को इंटरसेप्ट करने में सक्षम है। इस प्रणाली में पूर्व चेतावनी और ट्रैकिंग रडार का एक ओवरलैपिंग नेटवर्क, साथ ही कमांड और कंट्रोल पोस्ट भी शामिल हैं।
- अश्विन एडवांस्ड एयर डिफेंस इंटरसेप्टर मिसाइल:
- परिचय
- यह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित एक स्वदेशी रूप से निर्मित उन्नत वायु रक्षा (AAD) इंटरसेप्टर मिसाइल है।
- यह कम ऊँचाई वाली सुपरसोनिक बैलिस्टिक इंटरसेप्टर मिसाइल का उन्नत संस्करण है।
- मिसाइल का अपना मोबाइल लॉन्चर, इंटरसेप्शन के लिये सुरक्षित डेटा लिंक, स्वतंत्र ट्रैकिंग क्षमताएँ तथा परिष्कृत रडार भी शामिल हैं।
- रेंज:
- यह एक एंडो-स्फेरिक (पृथ्वी के वायुमंडल के भीतर) इंटरसेप्टर का उपयोग करती है जो 60,000 से 100,000 फीट की अधिकतम ऊँचाई पर और 90 से 125 मील के बीच की सीमा में बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराती है।
- परिचय
- S-400 ट्रायम्फ:
- अन्य मिसाइल-रोधी रक्षा प्रणालियाँ:
स्रोत: द हिंदू
बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम
प्रिलिम्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोविड-19 मेन्स के लिये:मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने उन बच्चों के इलाज के लिये नए दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिनके कोविड -19 संक्रमण के संपर्क में आने के बाद उनमें मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (Multisystem Inflammatory Syndrome- MIS-C) विकसित हुआ था।
प्रमुख बिंदु
- मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम:
- MIS-C एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर के विभिन्न अंग सूजन से प्रभावित होते हैं। रोगी को हृदय संबंधी समस्याएंँ होती हैं, जिसकी गंभीरता की स्थिति में उपचार की आवश्यकता होती है।
- यह बच्चों और किशोरों में एक दुर्लभ लेकिन गंभीर हाइपरइंफ्लेमेटरी स्थिति है जो आमतौर पर कोविड-19 संक्रमण के 2-6 सप्ताह बाद उत्पन्न होती है।
- यह एक संभावित घातक स्थिति है जिसमें हृदय, फेफड़े, गुर्दे, मस्तिष्क, त्वचा, आंँखें, या जठरांत्र सहित शरीर के विभिन्न अंगों में सूजन हो सकती है।
- न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं के साथ MIS-C:
- हाल के एक अध्ययन में MIS-C सिंड्रोम से पीड़ित युवाओं में न्यूरोलॉजिकल लक्षणों जिसने स्ट्रोक या गंभीर एन्सेफेलोपैथी (मस्तिष्क की कोई भी बीमारी जो मस्तिष्क के कार्य या संरचना को परिवर्तित देती है)।जैसे खतरों को उत्पन्न किया।
- न्यूरोलॉजिकल लक्षणों में मतिभ्रम, भ्रम, और संतुलन तथा समन्वय की समस्याएंँ शामिल हैं।
- नए निष्कर्ष इस सिद्धांत को मज़बूत करते हैं कि सिंड्रोम वायरस के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के कारण उत्पन्न सूजन के बढ़ने से संबंधित है।
- MIS-C के कारण:
- MIS-C सिंड्रोम पर कम शोध हुए हैं, जिससे इस सिंड्रोम होने के कारणों पर विभिन्न सिद्धांत दिये जाते हैं।
- जबकि कुछ शोधकर्त्ताओं का मानना है कि MIS-C कोरोना वायरस की देरी से होने वाली प्रतिक्रिया है जो शरीर में बड़े पैमाने पर सूजन का कारण बनता है और परिणामस्वरूप अंगों को नुकसान पहुँचाता है।
- कुछ अन्य शोधकर्त्ताओं का मानना है कि यह बच्चों के प्रतिरक्षा तंत्र का वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने का परिणाम भी हो सकता है।
- यह एक आनुवंशिक घटक भी हो सकता है क्योंकि प्रत्येक बच्चा MIS-C विकसित नहीं करता है और उनमें दिखाई देने वाले लक्षण भी विविध प्रकार के होते हैं।
- उपचार के लिये डब्ल्यूएचओ दिशा-निर्देश:
- अस्पताल में भर्ती बच्चों (0-18 वर्ष की आयु) में कावासाकी रोग (सशर्त सिफारिश, बहुत कम निश्चितता) के लिये देखभाल के मानक के अलावा कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स (Corticosteroids) का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है।
- आमतौर पर यह स्टेरॉयड के रूप में जाना जाता है, कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स एक प्रकार की सूजन-रोधी दवा है।
- कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स के साथ-साथ सहायक देखभाल के परिणामस्वरूप या तो अंतःशिरा इम्युनोग्लोबुलिन प्लस सहायक देखभाल या अकेले सहायक देखभाल की तुलना में अधिक प्रभावी उपचार हुआ।
- यह उपचार कोविड-19 के साथ कावासाकी रोग से ग्रसित बच्चों के उपचार में भी प्रभावी पाया गया।
- गैर-गंभीर कोविड-19 वाले रोगियों के उपचार में कॉर्टिकोस्टेरॉयड का उपयोग नहीं करना क्योंकि उपचार से इससे कोई लाभ नहीं हुआ और यह हानिकारक भी साबित हो सकती है।
- अस्पताल में भर्ती बच्चों (0-18 वर्ष की आयु) में कावासाकी रोग (सशर्त सिफारिश, बहुत कम निश्चितता) के लिये देखभाल के मानक के अलावा कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स (Corticosteroids) का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है।
कावासाकी रोग (Kawasaki Disease):
- यह रक्त वाहिकाओं की एक तीव्र सूजन वाली बीमारी है जो मुख्यतः 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रभावित करती है।
- कोरोनरी धमनियों में सूजन जो हृदय को रक्त की आपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार होती है, के परिणामस्वरूप वृद्धि या एन्यूरिज़्म(धमनी की दीवार की सूजन) का निर्माण होता है, जिससे दिल का दौरा पड़ता है।
- लक्षण: बुखार,चकत्ते, कॉर्निया का लाल होना, होंठो का फटना एवं लाल होना और जीभ का लाल होना तथा गले में जलन व सूजन आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
STEM में महिलाओं की भागीदारी
प्रिलिम्स के लिये:भारत-इज़रायल महिला सम्मेलन मेन्स के लिये:STEM में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित‘ (STEM) के क्षेत्र में भारत-इज़रायल महिला सम्मेलन आयोजित किया गया।
- इस सम्मेलन के दौरान ‘STEM’ में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और लिंग-तटस्थ वेतन की शुरुआत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
STEM:
- परिचय:
- ‘STEM’ (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) की अवधारणा ‘यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन’ (NSF) द्वारा वर्ष 2001 में प्रस्तुत की गई थी।
- संगठन ने ‘STEM’ का प्रयोग सर्वप्रथम ज्ञान एवं कौशल को एकीकृत करने वाले पाठ्यक्रम में कॅरियर को संदर्भित किया था।
- यह एक अंतःविषयक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से 4 विशिष्ट विषयों- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में छात्रों को शिक्षित करने के विचार पर आधारित एक पाठ्यक्रम है।
- भारत उन देशों में से एक है जहाँ सबसे अधिक संख्या में वैज्ञानिक और इंजीनियर मौजूद हैं, पिछले कुछ वर्षों में ‘STEM’ की वृद्धि में काफी तेज़ी आई है।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और सुधार की भावना का विकास करना है।
- महत्त्व:
- एक मज़बूत STEM शिक्षा महत्त्वपूर्ण विचारक, समस्या समाधानकर्त्ता और अगली पीढ़ी के नवप्रवर्तनकर्त्ताओं का निर्माण करती है।
- ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ के अनुसार, अगले दशक में सृजित नौकरियों में से 80% के लिये किसी-न-किसी रूप में गणित एवं विज्ञान कौशल की आवश्यकता होगी।
प्रमुख बिंदु
- STEM में महिलाओं की भागीदारी:
- भारत में लगभग 43% महिलाएँ STEM में स्नातक हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक है। किंतु भारत में STEM क्षेत्र में नौकरियों के मामले में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 14% है।
- भारतीय STEM क्षेत्र में, प्राथमिक चिंता कभी भी महिला स्नातकों की संख्या के संदर्भ में नहीं रही है, बल्कि उन लोगों के अनुपात के संबंध में है जो अंततः STEM क्षेत्र में नौकरियाँ को प्राप्त करते हैं।
- विज्ञान और प्रोद्योगिकी ने आर्थिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, ऐसे में यह समाज में ‘STEM’ में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिये लिंग-तटस्थ भुगतान सुनिश्चित कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की अधिक भागीदारी महिलाओं की स्थिति को मज़बूत और प्रभावशाली बनाएगी, जिससे समाज में उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में वृद्धि होगी।
- कम भागीदारी का कारण:
- रूढ़िवादिता: ‘STEM’ क्षेत्र में महिलाओं की कमी न केवल कौशल की अपर्याप्तता के कारण है, बल्कि निर्दिष्ट रूढ़िवादी लैंगिक भूमिका का भी परिणाम है।
- पितृसत्ता: काम पर रखने या फेलोशिप और अनुदान आदि देने में पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया जाता है।
- समाज: रोल मॉडल की कमी, सामाजिक मानदंडों के अनुरूप होने का दबाव और घरेलू काम।
- तनाव: विवाह, प्रसव आदि से संबंधित तनाव।
- घरेलू ज़िम्मेदारी : घर चलाने और बुजुर्गों की देखभाल से संबंधित ज़िम्मेदारी।
- शारीरिक सुरक्षा: काम के दौरान शारीरिक सुरक्षा।
- उत्पीड़न: कार्यस्थल पर यौन और अन्य प्रकार के उत्पीड़न आदि।
- महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये पहल:
- विज्ञान ज्योति योजना:
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा विज्ञान ज्योति योजना शुरू की गई है।
- इस योजना का उद्देश्य स्टेम शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाना है।
- इस योजना के अंतर्गत छात्राओं के लिये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में विज्ञान शिविर का आयोजन किया जाएगा, साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कॉर्पोरेट, विश्वविद्यालयों तथा डीआरडीओ जैसे शीर्ष संस्थानों में कार्यरत सफल महिलाओं से शिविर के माध्यम से संपर्क स्थापित करवाया जाएगा।
- GATI योजना:
- जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (GATI) STEM में लिंग समानता का आकलन करने के लिये एक समग्र चार्टर और रूपरेखा तैयार करेगा।
- किरण योजना (KIRAN Scheme)
- केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किरण योजना (KIRAN Scheme) की शुरुआत की गई।
- किरण (KIRAN) का पूर्ण रूप ‘शिक्षण द्वारा अनुसंधान विकास में ज्ञान की भागीदारी’ (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing) है।
- KIRAN योजना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लैंगिक समानता से संबंधित विभिन्न मुद्दों/चुनौतियों का समाधान कर रही है।
आगे की राह
- समस्या को दो स्तरों पर संबोधित करने की आवश्यकता है- सामाजिक स्तर पर जिसके लिये दीर्घकालिक प्रयास की आवश्यकता होती है और नीति व संस्थागत स्तर पर, जिसे तत्काल प्रभाव से शुरू किया जा सकता है।
- STEM को बड़ी कंपनियों में लगातार लिंग असंतुलन को पाटने के लिये बुनियादी ढाँचे का समर्थन करने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये संस्थानों को प्रोत्साहित करने, निर्णय लेने में पारदर्शिता आदि में निवेश करने की तत्काल आवश्यकता है।
- हालाँकि पहले कदम के रूप में स्कूलों को 'बुद्धि संबंधी लैंगिक धारणाओं' को तोड़ने और लड़कियों को न केवल माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर विज्ञान लेने बल्कि STEM में अपना कॅरियर बनाने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- इससे न केवल महिलाओं को अपने सपनों को पूरा करने में मदद मिलेगी बल्कि विज्ञान को भी अन्य दृष्टिकोणों से लाभ होगा।
- जबकि स्थिति में निश्चित रूप से सुधार हो रहा है और STEM में महिलाओं की संख्या में वृद्धि इस बात का संकेत है, कि हमें एक लंबा रास्ता तय करना है।