पंचायती राज संस्थानों को संवैधानिक दर्जा तथा संरक्षण प्रदान किया गया।
इसके लिये ‘पंचायत’ नाम से नया भाग-IX जोड़ा गया तथा 11वीं अनुसूची भी जोड़ी गई जिसमें 29 विषय थे।
74वाँ संशोधन अधिनियम 1992:
संशोधन-
शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा तथा संरक्षण दिया गया। इसके तहत भाग-IX (क) के नाम से एक नया भाग जोड़ा गया। इसे नगरपालिका कहा गया तथा एक नई अनुसूची-12वीं अनुसूची जोड़ी गई और उसके तहत 18 विषय रखे गए।
77वाँ संशोधन अधिनियम 1995:
संशोधन-
अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के मामले में आरक्षण देने की व्यवस्था की गई। उस संशोधन से प्रोन्नति के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।
80वाँ संशोधन अधिनियम 2000:
संशोधन-
इस संशोधन के तहत केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के बँटवारे की वैकल्पिक व्यवस्था की गई। यह व्यवस्था 10वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर की गई थी जिसमें यह कहा गया था कि केंद्रीय करों और शुल्कों का 29% राज्यों के बीच बाँट दिया जाना चाहिये।
81वाँ संशोधन अधिनियम 2000:
संशोधन-
इस संशोधन के तहत राज्यों को अधिकृत किया गया कि वह किसी वर्ष खाली पड़ी हुई आरक्षित सीटों को अलग से रिक्त सीटें माने तथा उन्हें अगले किसी वर्ष में भरे जाने की व्यवस्था करें। इस तरह की अलग से रिक्त पड़ी सीटों को उस वर्ष भरी जाने वाली सीटों, जो कि 50% आरक्षण की सीमा को पूरा करती हैं के साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये।
इस तरह इस संशोधन में बैकलॉग पदों (Vacancies) में आरक्षण की 50% की सीमा को समाप्त कर दिया गया।
82वाँ संशोधन अधिनियम 2000:
संशोधन-
अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिये केंद्र एवं राज्यों की लोक सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण के संदर्भ में परीक्षा में अर्हता के अंकों में छूट देने या मूल्यांकन के मानकों में ढील देने की व्यवस्था की गयी।
84वाँ संशोधन अधिनियम 2001:
संशोधन-
लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में सीटों के पुनर्निर्धारण पर अगले 25 वर्षो (वर्ष 2026 तक) तक के लिये प्रतिबंध बढ़ा दिया गया। इसका उद्देश्य जनसंख्या को सीमित करने के उपायों को प्रोत्साहित करना था।
दूसरे शब्दों में लोकसभा तथा विधानसभाओं में सीटों की संख्या को वर्ष 2026 तक वही रखा गया।
यह व्यवस्था की गई कि राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण तथा युक्तिकरण वर्ष 1991 की जनगणना के आधार पर ही होगा।
85वाँ संशोधन अधिनियम 2001:
संशोधन-
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सरकारी सेवकों को पदोन्नति में आरक्षण के संदर्भ में ‘परिणामिक वरिष्ठता’ (Consequential Seniority) को जून 1995 से पूर्वव्यापी प्रभाव से मानने की व्यवस्था की गई।
86वाँ संशोधन अधिनियम 2002:
संशोधन-
अनुच्छेद 21(A) के तहत प्रारंभिक शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया। तथा नीति-निदेशक तत्वों के अनुच्छेद 45 की विषय वस्तु को बदल दिया गया।
अनुच्छेद 21(A) में एक नया मौलिक कर्त्तव्य जोड़ा गया।
87वाँ संशोधन अधिनियम 2003:
संशोधन-
राज्यों में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण तथा युक्तिकरण का आधार वर्ष 2001 की जनगणना को बनाया गया। इससे पहले 84वें संशोधन के तहत वर्ष 1991 की जनगणना को आधार बनाया गया था।
89वाँ संशोधन अधिनियम 2003:
संशोधन-
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये राष्ट्रीय आयेाग को दो भागों में विभाजित कर दिया गया-
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (अनुच्छेद 388)
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग [अनुच्छेद 388 (A)]
91वाँ संशोधन अधिनियम 2003:
संशोधन-
मंत्रिपरिषद के आकार को सीमित करने के लिये दल बदलुओं को सार्वजनिक पद प्राप्त करने से रोकने तथा दल-बदल कानून को और मजबूत करने हेतु निम्नलिखित प्रावधान किये गए।
केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा की कुल क्षमता या सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
संसद के किसी भी सदन का किसी भी राजनीतिक दल का सदस्य यदि दल-बदल के आधार पर अयोग्य ठहराया जाता है तो वह सदस्य मंत्री बनने के लिये भी अयोग्य या निरर्हक होगा।
किसी राज्य में मंत्रियों की कुल संख्या मुख्यमंत्री सहित उस राज्य की विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी। परंतु किसी राज्य के मुख्यमंत्री सहित मत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम नहीं होगी।
राज्य विधायिका के किसी भी सदन का सदस्य चाहे वह किसी भी राजनितिक दल से हो यदि दल-बदल के आधार पर अयोग्य ठहराया जाता है तो वह मंत्री बनने के लिये भी अयोग्य होगा।
संसद या राज्य विधानमंडलों के किसी भी सदन का कोई भी पार्टी का सदस्य, यदि दल-बदल के आधार पर यदि अयोग्य करार दिया जाता है तो वह सदस्य लाभ के किसी राजनीतिक पद के लिये भी अयोग्य माना जाएगा।
लाभप्रद राजनीतिक पद (Remanerative Political Post) का अर्थ/ अभिप्राय निम्नलिखित से है-
केंद्र अथवा राज्य सरकार के अधीन ऐसा कोई भी पद जिसके लिये उस सरकार के लोक राजस्व से वेतन या पारिश्रमिक दिया जाता हो।
केंद्र अथवा राज्य सरकार के पूर्णतः या अंशतः मालिकाना, स्वामित्व के अधीन किसी निकाय का कार्यालय तथा उसी निकाय द्वारा वेतन अथवा पारिश्रमिक भुगतान किया जाता है, सिवाय जहाँ वेतन या पारिश्रमिक क्षतिपूरक प्रकृति का हो [(अनुच्छे 361-(1B)]
दसवीं अनुसूची में वर्णित विधायक दल के 1/3 सदस्यों को दल-बदल से अयोग्य घोषित होने से रोकने वाले प्रावधान को समाप्त कर दिया गया इसका अर्थ यह हुआ कि दल-बदलुओं के बीच फूट के आधार पर उन्हें कोई संरक्षण प्राप्त नहीं होगा।
92वाँ संशोधन अधिनियम 2003:
संशोधन-
आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाएँ जोड़ी गई। वे है- बोडो, डोगरी, मैथिली, और संथाली। इनके साथ ही संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाओं की कुल संख्या बढ़कर 22 हो गई।
93वाँ संशोधन अधिनियम 2005:
संशोधन-
राज्य को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो या SCs या STs के लिये सरकारी एवं निजी सभी तरह के शैक्षणिक संस्थानों में (राज्य द्वारा सहायता प्राप्त अथवा गैर सहायता प्राप्त) विशेष प्रावधान करने का अधिकार दिया गया। इनमें अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थान शामिल नहीं है- [अनुच्छेद-15 (5)]।
यह संशोधन उच्चतम न्यायालय द्वारा इनामदार मामले (2005) में दिये गए फैसले को निरस्त करने के लिये किया गया था। इस केस में कोर्ट ने निर्णय दिया कि राज्य अल्पसंख्यकों एवं गैर-अल्पसंख्यकों के गैर सहायता प्राप्त निजी एवं प्रोफेशनल कॉलेजों में अपनी आरक्षण नीति को थोप नहीं सकता कोर्ट ने घोषणा की कि निजी गैर-सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण असंवैधानिक हैं।
96वाँ संशोधन अधिनियम 2011:
संशोधन-
‘उरिया’ शब्द को ‘उड़िया’ शब्द से प्रतिस्थापित कर दिया गया। आठवीं अनुसूची में शामिल ‘उड़िसा’ भाषा को अब ‘ओडिया’ कहा जाएगा।
97वाँ संशोधन अधिनियम 2011:
संशोधन-
सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा तथा संरक्षण दिया गया। संविधान में तीन निम्नलिखित बदलाव किये गए।
सहकारी समिति बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया (अनुच्छेद-19)।
सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिये उन्हें नीति-निदेशक तत्त्वों में शामिल किया गया।
संविधान में सहकारी समिति के नाम से एक नया भाग IX-B (Part IX-B) जोड़ा गया।
99वाँ संशोधन अधिनियम 2014:
संशोधन-
उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नए निकाय “राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग” (National Judicial Appintment Commission-NJAC) की स्थापना की गई।
हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में इस संशोधन को असंवैधानिक एवं शून्य घोषित करते हुए कॉलेजियम प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया।
100वाँ संशोधन अधिनियम 2014:
संशोधन-
भारत और बांग्लादेश के बीच वर्ष 1974 का भूमि सीमा समझौता तथा इसके प्रोटोकॉल वर्ष 2011 के अनुपालन में भारत द्वारा कुछ भू-भागों का अधिग्रहण एवं कुछ अन्य भू-भागों को बांग्लादेश को हस्तांतरण किया गया। (भूखंडों का आदान- प्रदान तथा अवैध अधिग्रहण को हस्तांतरित कर)।
इस उद्देश्य के लिये, संविधान की प्रथम अनुसूची में चार राज्यों के क्षेत्रें (असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय एवं त्रिपुरा) हो संबंधित प्रावधानों में संशोधन किया गया।
101वाँ संशोधन अधिनियम 2017:
संशोधन-
वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरुआत की गई।
यह (GST) एक अप्रत्यक्ष कर है जो भारत में वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लगता है।
यह एक व्यापक बहुचरणीय, गंतव्य आधारित कर है। यह इस संदर्भ में व्यापक जो यह कुछ ही करों को छोड़कर अन्य सभी अप्रत्यक्ष करों को समाहित करता है।
102वाँ संशोधन अधिनियम 2018:
संशोधन-
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन गठित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
संविधान में अनुच्छेद 338 तथा 338(A) के साथ 388(B) को भी शामिल किया गया जिनका संबंध राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से है।
103वाँ संशोधन अधिनियम 2019:
संशोधन
स्वतंत्र भारत में पहली बार आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था की गई।
अनुच्छेद 16 में संशोधन कर सार्वजनिक रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई।