संयुक्त राष्ट्र दिवस 2024
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र दिवस, द्वितीय विश्व युद्ध, संयुक्त राष्ट्र चार्टर, ECOSOC, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), ICJ, सुरक्षा परिषद मेन्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र दिवस प्रत्येक वर्ष 24 अक्तूबर को द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रभावी होने की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र दिवस प्रत्येक वर्ष 24 अक्तूबर को द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रभावी होने की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
- इस दिवस का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय निकाय के लक्ष्यों और उपलब्धियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- इस संधि पर 26 जून, 1945 को सैन फ्रांसिस्को में अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अंत में हस्ताक्षर किये गए तथा यह 24 अक्तूबर, 1945 को लागू हुई।
- भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है और उसने 30 अक्तूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुसमर्थन किया था।
- संयुक्त राष्ट्र का पूर्ववर्ती राष्ट्र संघ था, जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्साय की संधि के तहत "अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने तथा शांति और सुरक्षा प्राप्त करने के लिये" की गई थी।
- इस संधि पर 26 जून, 1945 को सैन फ्रांसिस्को में अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अंत में हस्ताक्षर किये गए तथा यह 24 अक्तूबर, 1945 को लागू हुई।
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र का चार्टर संयुक्त राष्ट्र के आधारभूत दस्तावेज़ के रूप में कार्य करता है। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक साधन है, और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों के लिये यह बाध्यकारी है।
- इसमें अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रमुख सिद्धांतों को रेखांकित किया गया है, जिसमें सभी देशों के समान अधिकार तथा राष्ट्रों के बीच बल प्रयोग पर प्रतिबंध शामिल हैं।
- इसके गठन के बाद से इसमें तीन बार - वर्ष 1963, 1965 और 1973 में संशोधन किया गया है।
- संयुक्त राष्ट्र का चार्टर संयुक्त राष्ट्र के आधारभूत दस्तावेज़ के रूप में कार्य करता है। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक साधन है, और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों के लिये यह बाध्यकारी है।
- महत्त्व: संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने, मानवीय सहायता प्रदान करने, मानवाधिकारों की रक्षा करने और अंतर्राष्ट्रीय कानून को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- यह 75 वर्षों से अधिक समय से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, शांति और विकास में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंग कौन-कौन से हैं?
- महासभा: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) संगठन का मुख्य नीति-निर्माण अंग है। सभी सदस्य देशों से मिलकर बनी यह महासभा संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा कवर किये गए अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के पूरे स्पेक्ट्रम पर बहुपक्षीय चर्चा के लिये एक अनूठा मंच प्रदान करती है।
- संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से प्रत्येक को समान वोट का अधिकार होता है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य होते हैं।
- पाँच स्थायी सदस्य (चीन, फ्राँस, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) और दस अस्थायी सदस्य दो वर्ष के कार्यकाल के लिये चुने जाते हैं।
- भारत आठ बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रह चुका है।
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद: ECOSOC में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्वाचित 54 सदस्य शामिल होते हैं।
- यह आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर समन्वय, नीति समीक्षा, नीति संवाद और सिफारिशों के लिये प्रमुख निकाय है।
- ट्रस्टीशिप काउंसिल: संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंगों में से एक, इसकी स्थापना ट्रस्ट क्षेत्रों के प्रशासन की निगरानी के लिये की गई थी, क्योंकि वे उपनिवेशों से संप्रभु राष्ट्रों में परिवर्तित हो रहे थे।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय: ICJ एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय है जो 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के बीच विवादों का निपटारा करता है।
- न्यायालय दो प्रकार के मामलों पर निर्णय दे सकता है: "विवादास्पद मामले" राज्यों के बीच कानूनी विवाद होते हैं और "सलाहकार कार्यवाही" संयुक्त राष्ट्र के अंगों और कुछ विशेष एजेंसियों द्वारा संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकार राय के लिये अनुरोध होते हैं।
- सचिवालय: महासचिव की नियुक्ति संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सुरक्षा परिषद की सिफारिश के आधार पर की जाती है और वह संगठन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
नोट:
- संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से पांच अर्थात् UNGA, UNSC, ECOSOC, ट्रस्टीशिप काउंसिल और संयुक्त राष्ट्र सचिवालय न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्थित हैं।
- हालाँकि, ICJ नीदरलैंड के हेग में स्थित है।
संयुक्त राष्ट्र से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- शक्ति संरेखण: संयुक्त राष्ट्र को धनी और विकासशील देशों के बीच शक्ति असंतुलन से जूझना पड़ रहा है, जिससे उसके लक्ष्यों को क्रियान्वित करना कठिन हो रहा है। ये संरेखण संगठन की निष्पक्ष रूप से कार्य करने और वैश्विक मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने की क्षमता को चुनौती देते हैं।
- सुरक्षा और आतंकवाद: संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद और वैचारिक संघर्षों सहित उभरती सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है। पारंपरिक खतरों को संबोधित करते हुए, इसे मानव सुरक्षा, गरीबी और बीमारी जैसे व्यापक मुद्दों से भी निपटना होगा, संघर्ष की रोकथाम और वैश्विक सुरक्षा में अपनी भूमिका का विस्तार करना होगा।
- शांति स्थापना: आधुनिक शांति स्थापना को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर आंतरिक संघर्षों में जहां लड़ाके अक्सर संयुक्त राष्ट्र की तटस्थता की उपेक्षा करते हैं। चुनौती संघर्ष क्षेत्रों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए तेजी से तैनात करने योग्य टीमों का उपयोग करते हुए, पारंपरिक शांति स्थापना से शांति-पालन में संक्रमण में निहित है।
- मानवाधिकार चुनौतियाँ: संयुक्त राष्ट्र को विशेष रूप से संघर्ष के बाद के देशों में राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण की चुनौती का सामना करना पड़ता है। यह सुनिश्चित करना कि ये प्रणालियाँ अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन करें, वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के दीर्घकालिक संरक्षण और संवर्द्धन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- वित्तीय बाधाएँ और ऋणशेष: संयुक्त राष्ट्र सदस्य राज्यों के मूल्यांकन योगदान में देरी के कारण वित्तीय अस्थिरता से जूझ रहा है, जिससे इसकी परिचालन प्रभावशीलता और वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की क्षमता में बाधा आ रही है।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार के प्रस्ताव क्या हैं?
- स्थायी सदस्यता एवं समावेशी प्रतिनिधित्व का विस्तार:
- P5 से परे स्थायी सदस्यों की संख्या में विस्तार करने तथा वीटो शक्ति को संबोधित करने से अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण तथा लोकतांत्रिक सुरक्षा परिषद का निर्माण हो सकता है।
- यह संभावित रूप से अधिक से अधिक देशों, विशेष रूप से अफ्रीका जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों को निर्णय लेने में सहयोग करेगा।
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अकुशलता को कम करना:
- संयुक्त राष्ट्र की प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने तथा नौकरशाही जटिलताओं को कम करने से इसकी कार्यकुशलता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र सुधार में भारत की भूमिका:
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों, मानवीय सहायता कार्यक्रमों और विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों में योगदान के माध्यम से वैश्विक शांति, सुरक्षा और विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को निरंतर प्रदर्शित किया है।
- भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट चाहता है तथा इस बात पर बल देता है कि ऐसा कदम परिषद को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण तथा 21 वीं सदी की आवश्यकताओं के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाएगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र को अपने उद्देश्यों को पूरा करने में किन मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये प्रस्तावित सुधारों का विश्लेषण कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. संयुक्त राष्ट्र के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सQ. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक परिषद् (ECOSOC) के प्रमुख प्रकार्य क्या हैं? इसके साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिए) (2017) |
माइक्रोफाइनेंस संस्थाएँ
प्रिलिम्स के लिये:माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI), वित्तीय समावेशन, SHG, सहकारी समितियाँ, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS), कंपनी अधिनियम, 2013, NBFC-MFI, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) मेन्स के लिये:भारत में वित्तीय समावेशन, गरीबी उन्मूलन और सतत् आर्थिक विकास में माइक्रोफाइनेंस संस्थानों का महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्तीय सेवा सचिव ने इस बात पर बल दिया है कि वित्तीय समावेशन में माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं (MFI) की प्रभावी भूमिका के बावजूद इन्हें रेकलेस लेंडिंग से बचना चाहिये।
नोट:
- कई MFI अत्यधिक ब्याज दरों (लगभग 24% प्रतिवर्ष औसत) और उच्च प्रसंस्करण शुल्क के कारण जाँच के दायरे में हैं साथ ही उधारकर्त्ताओं की आय और पुनर्भुगतान क्षमताओं का आकलन करने में भी यह कम प्रभावी बने हुए हैं। सा-धन (Sa-Dhan) की एक रिपोर्ट के अनुसार ब्याज दरों में मामूली कटौती से कम आय वाले परिवारों की पुनर्भुगतान राशि पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है।
माइक्रोफाइनेंस संस्थाएँ क्या हैं?
- परिचय: MFI ऐसी वित्तीय कंपनियाँ हैं जो उन लोगों को छोटे ऋण एवं अन्य वित्तीय सेवाएँ प्रदान करती हैं जिनकी बैंकिंग सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
- माइक्रोफाइनेंस का लक्ष्य निम्न आय वाले और बेरोज़गार लोगों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करना है।
- यह वित्तीय समावेशन के लिये एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करती हैं तथा हाशिये पर स्थित और निम्न आय वर्ग के लोगों (विशेषकर महिलाओं) को सामाजिक समानता एवं सशक्तीकरण में मदद करती हैं।
- नियामक ढाँचा:
- RBI द्वारा NBFC-MFI ढाँचे (2014) के तहत MFI को विनियमित किया जाता है जिसमें ग्राहक संरक्षण, उधारकर्त्ता सुरक्षा, गोपनीयता एवं ऋण मूल्य निर्धारण शामिल है।
- MFI की स्थिति:
- भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है तथा 29 राज्यों, 4 केंद्रशासित प्रदेशों और 563 ज़िलों में 168 माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI) कार्यरत हैं।
- ये संस्थाएँ 3 करोड़ से अधिक ग्राहकों को सेवा प्रदान करती हैं।
- माइक्रोफाइनेंस के अंतर्गत व्यवसाय मॉडल:
- स्वयं सहायता समूह (SHGs): SHGs 10-20 सदस्यों वाले अनौपचारिक समूह हैं जो SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम के माध्यम से बैंक ऋण प्राप्त करने में सामूहिक भूमिका निभाते हैं।
- MFI: MFI सूक्ष्म ऋण और बचत, बीमा और धनप्रेषण जैसी अन्य वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं।
- ऋण आमतौर पर संयुक्त ऋण समूहों (JLG) के माध्यम से दिये जाते हैं, जो समान गतिविधियों में शामिल 4-10 व्यक्तियों के अनौपचारिक समूह होते हैं और यह संयुक्त रूप से ऋण चुकाते हैं।
- माइक्रोफाइनेंस ऋणदाताओं की श्रेणियाँ:
माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं (MFI) के समक्ष कौन सी चुनौतियाँ हैं?
- नियामक कार्रवाई: RBI ने कुछ माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFI) को अत्यधिक ब्याज दरों के कारण ऋण जारी करने से प्रतिबंधित कर दिया है जिससे उनकी परिचालन और विकास क्षमता प्रभावित हो रही है।
- RBI ने MFI को ऋण देने की प्रथाओं का पुनर्मूल्यांकन करने तथा ऋण देने में सामर्थ्य पर बल देने का निर्देश दिया है।
- वित्तीय साक्षरता का अभाव: कई उधारकर्त्ताओं के पास ऋण की शर्तों को समझने के लिये आवश्यक वित्तीय साक्षरता का अभाव होने से ऋण चूक का जोखिम बढ़ जाता है एवं गरीबी का चक्र बना रहता है।
- उधारकर्त्ताओं का अति-ऋणग्रस्त होना: उधारकर्त्ता प्रायः कई लघु वित्त संस्थाओं से ऋण ले लेते हैं, जिसके कारण उन पर अत्यधिक ऋण हो जाता है।
- RBI के अनुसार मार्च 2024 तक 12% से अधिक माइक्रोफाइनेंस ग्राहकों के पास चार या अधिक सक्रिय ऋण थे, जो कुछ राज्यों में 18% तक थे जिससे चूक का जोखिम बढ़ने के साथ MFI की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।
- बाह्य वित्तपोषण पर निर्भरता: MFI अक्सर बैंकों और निवेशकों से बाह्य वित्तपोषण पर निर्भर रहते हैं, जिससे आर्थिक मंदी के दौरान मुश्किलें पैदा होती हैं।
माइक्रोफाइनेंस ऋण से संबंधित RBI दिशानिर्देश (2022)
- 3 लाख रुपए तक की आय वाले परिवारों के लिये माइक्रोफाइनेंस ऋण बिना किसी जमानत के उपलब्ध है।
- संस्थाओं के पास लचीले पुनर्भुगतान और घरेलू आय मूल्यांकन के लिये नीतियाँ होनी चाहिये।
- प्रति उधारकर्त्ता ऋणदाता पर लगी सीमा हटाना; पुनर्भुगतान मासिक आय के 50% से अधिक नहीं हो सकता है।
- NBFC-MFI ऋणों का 75% माइक्रोफाइनेंस के रूप में योग्य होना चाहिये (85% से कम)।
- संस्थाओं को आय विसंगतियों एवं घरेलू आय की रिपोर्ट करनी होगी।
- माइक्रोफाइनेंस ऋणों पर कोई पूर्व-भुगतान अर्थदंड नहीं; विलंब शुल्क केवल अतिदेय राशि पर लागू होगा।
माइक्रोफाइनेंस से संबंधित सरकारी योजनाएँ कौन सी हैं?
आगे की राह
- MFI को अत्यधिक ब्याज दरों से बचने और उधारकर्त्ताओं की पुनर्भुगतान क्षमताओं का आकलन करने के लिये ज़िम्मेदार उधार प्रथाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये, जिससे अति-ऋणग्रस्तता के जोखिम को कम किया जा सके।
- उधारकर्त्ताओं के बीच वित्तीय साक्षरता बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है ताकि वे सूचित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें, जिससे डिफाॅल्ट जोखिम कम हो सके।
- मालेगाम समिति (2010) की सिफारिशों को लागू करना चाहिये जैसे ब्याज दरों पर सीमा लगाना, NBFC-MFI के लिये श्रेणी बनाना, अति-ऋणग्रस्तता को रोकने के लिये एकाधिक ऋणों पर नज़र रखना, पारदर्शिता बढ़ाना आदि।
- शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करना चाहिये तथा ऋण देने के लिये आचार संहिता तैयार करना चाहिये।
- RBI द्वारा निर्धारित नियामक ढाँचे का सख्ती से पालन करने से विश्वास बढ़ेगा और इस क्षेत्र की प्रतिष्ठा में सुधार होगा।
- इसके अतिरिक्त वित्तपोषण स्रोतों में विविधता लाने से बाहरी पूंजी पर निर्भरता कम हो सकती है जबकि मज़बूत समर्थन प्रणालियों से उधारकर्त्ताओं को उनके ऋणों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में सहायता मिल सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में सूक्ष्म वित्त संस्थानों के समक्ष कौन सी चुनौतियाँ हैं और इनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्समाइक्रोफाइनेंस कम आय वर्ग के लोगों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना है। इसमें उपभोक्ता और स्वरोज़गार करने वाले दोनों शामिल हैं। माइक्रोफाइनेंस के तहत दी जाने वाली सेवा/सेवाएँ हैं (2011)
सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: महिला स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त प्रदान करने से लैंगिक असमानता, निर्धनता एवं कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ने में किस प्रकार सहायता मिल सकती है? उदाहरण सहित समझाइये। (2021) |
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की अनुमति देना
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, महत्त्वपूर्ण निर्णय, संवैधानिक पीठ, केंद्र-राज्य संबंध, औद्योगिक अल्कोहल, 7वीं अनुसूची, उत्पाद शुल्क, वस्तु और सेवा कर (GST) मेन्स के लिये:भारत में संघवाद, सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय, सहकारी संघवाद, संघवाद के लिये चुनौतियाँ, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंध। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने का अधिकार है, इस फैसले में वर्ष 1990 के फैसले (सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1989) को खारिज कर दिया गया, जिसमें केंद्र सरकार के नियंत्रण का समर्थन किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ क्या है?
- परिचय:
- सर्वोच्च न्यायालय में संविधान पीठ में पाँच या उससे अधिक न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें केवल विशिष्ट कानूनी मामलों के लिये ही आमंत्रित किया जाता है। ये पीठें कोई नियमित प्रक्रिया नहीं हैं।
- गठन के लिये परिस्थितियाँ:
- अनुच्छेद 145(3): अनुच्छेद 143 के तहत महत्त्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्नों या संदर्भों से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने के लिये आवश्यक न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच है।
- विवादित निर्णय: जब विभिन्न तीन न्यायाधीशों की पीठों से परस्पर विवादित निर्णय सामने आते हैं, तो मुद्दे को हल करने के लिये एक विशेष संविधान पीठ का गठन किया जाता है।
औद्योगिक अल्कोहल:
- औद्योगिक अल्कोहल मूलतः अशुद्ध अल्कोहल है जिसका उपयोग औद्योगिक विलायक के रूप में किया जाता है।
- इथेनॉल में बेंज़ीन, पिरिडीन, गैसोलीन आदि जैसे रसायनों को मिलाने से (इस प्रक्रिया को विकृतीकरण कहा जाता है) यह औद्योगिक अल्कोहल में बदल जाता है, जिससे इसकी कीमत काफी कम हो जाती है जो यह मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त हो जाता है।
- अनुप्रयोग: फार्मास्यूटिकल्स, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन और सफाई संबंधी तरल पदार्थों में उपयोग किया जाता है।
- कभी-कभी इसका उपयोग अवैध शराब, सस्ते और खतरनाक नशीले पदार्थ के निर्माण में भी किया जाता है, जिनके सेवन से अंधापन और मृत्यु सहित गंभीर खतरे उत्पन्न होते हैं।
औद्योगिक अल्कोहल पर सर्वोच्च न्यायालय पीठ ने क्या फैसला दिया है?
- परिभाषा का विस्तार: बहुमत वाली पीठ ने सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में वर्ष 1990 के फैसले को पलट दिया है, जिसमें "मादक शराब" की परिभाषा को पीने योग्य शराब तक सीमित कर दिया गया था तथा राज्यों को औद्योगिक शराब पर कर लगाने से रोक दिया गया था।
- बहुमत की राय: खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि "नशीली शराब" में सिर्फ मादक पेय या पीने योग्य शराब ही शामिल नहीं है। सभी प्रकार की शराब जो सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, इस परिभाषा के अंतर्गत आती है।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शराब, अफीम और नशीली दवाओं जैसे पदार्थों का दुरुपयोग किया जा सकता है तथा फैसला सुनाया कि संसद मादक शराबों पर राज्य की शक्तियों को खत्म नहीं कर सकती है, और कहा कि "नशीली" का अर्थ "जहरीला" भी हो सकता है, जिससे व्यापक वर्गीकरण की अनुमति मिलती है।
- असहमतिपूर्ण राय: न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन के संबंध में बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त की और तर्क दिया कि केवल इसलिये कि "औद्योगिक अल्कोहल" का संभावित दुरुपयोग हो सकता है, प्रविष्टि 8 - सूची II को ऐसे "औद्योगिक अल्कोहल" को शामिल करने के लिये नहीं बढ़ाया जा सकता है।
- राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की अनुमति देने से अल्कोहल विनियमन के पीछे विधायी मंशा की गलत व्याख्या हो सकती है।
औद्योगिक अल्कोहल विनियमन पर केंद्र बनाम राज्यों के तर्क:
- केंद्र सरकार का तर्क:
- औद्योगिक अल्कोहल को संघ सूची की प्रविष्टि 52 के अंतर्गत "उद्योग" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे केंद्र को सार्वजनिक हित में समझे जाने वाले उद्योगों को विनियमित करने की अनुमति मिल गई है।
- इसमें कहा गया है कि औद्योगिक शराब का व्यापार, वाणिज्य, आपूर्ति और वितरण समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33(A) के अंतर्गत आते हैं, जो केंद्रीय निगरानी की अनुमति देता है।
- केंद्र का कहना है कि औद्योगिक शराब उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1961 के अधिकार क्षेत्र में आती है, तथा दावा किया कि यह विनियमन के लिये “क्षेत्र पर कब्जा कर लेती है”। इसलिये, राज्य इस विषय पर अपने नियमन लागू नहीं कर सकते।
- केंद्र का तर्क है कि औद्योगिक अल्कोहल ने विनियमन के "क्षेत्र पर अधिकार कर लिया है" जो उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1961 के अधीन है। इसलिये राज्य इस विषय पर अपने कानूनों को लागू करने में असमर्थ हैं।
- राज्यों का तर्क:
- राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अंतर्गत विनियमन के लिये तर्क देने के साथ मदिरा पर कर लगाने के अधिकार पर बल दिया गया, जिसमें औद्योगिक मदिरा भी शामिल है।
- राज्यों द्वारा अवैध उपभोग से निपटने और राजस्व उत्पन्न करने के लिये प्राधिकार बनाए रखने की आवश्यकता (विशेष रूप से GST के कार्यान्वयन के बाद) है।
राज्यों के लिये शराब पर कर लगाने का महत्त्व
- राजस्व सृजन: शराब पर कर लगाना राज्यों के लिये राजस्व का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। उदाहरण के लिये वर्ष 2023 में कर्नाटक ने भारत निर्मित शराब (IML) पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (AED) 20% तक बढ़ा दिया।
- वित्तीय निर्भरता: महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्य अपने राजस्व का एक प्रमुख हिस्सा शराब करों से प्राप्त करते हैं, जो उनके कुल उत्पाद शुल्क राजस्व का लगभग 30-40% है।
- लोक सेवाओं का वित्तपोषण: शराब पर कर का उपयोग स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सहित आवश्यक लोक सेवाओं के वित्तपोषण के लिये किया जाता है।
उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951
- उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 भारत में औद्योगिक विकास और विनियमन के लिये विधिक और वैचारिक ढाँचा प्रदान करता है।
- इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य:
- देश में उद्योगों के विकास को नियंत्रित और निर्देशित करना,
- निष्पक्ष संसाधन वितरण को बढ़ावा देना,
- आर्थिक शक्ति संकेन्द्रण से बचना,
- संतुलित एवं नियंत्रित औद्योगिक विस्तार को महत्त्व देना।
- यह अधिनियम केन्द्र सरकार को निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान करता है:
- कुछ उद्योगों के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को विनियमित करना
- नये उद्योगों की स्थापना पर प्रतिबंध लगाना
- उद्योगों को संचालन हेतु लाइसेंस प्रदान करना
- आम लोगों के सर्वोत्तम हित में उद्योग निर्माण और संचालन
- आर्थिक शक्ति को कुछ ही हाथों में केंद्रित होने से रोकने के लिये कदम उठाना
इसी तरह के अन्य मामले कौन से हैं?
- चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1956:
- सर्वोच्च न्यायालय ने उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (IDRA) की धारा 18-G के तहत विशेष केंद्रीय अधिकार क्षेत्र का दावा करने वाली चुनौती के खिलाफ गन्ना उद्योग को विनियमित करने वाले उत्तर प्रदेश के कानून को बरकरार रखा।
- इस निर्णय से केंद्र सरकार के कानूनों की उपस्थिति में भी उद्योगों के संबंध में कानून बनाने के राज्यों के अधिकार की पुष्टि होने के साथ संघीय शासन के लिये मिसाल कायम हुई।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (IDRA) की धारा 18-G के तहत विशेष केंद्रीय अधिकार क्षेत्र का दावा करने वाली चुनौती के खिलाफ गन्ना उद्योग को विनियमित करने वाले उत्तर प्रदेश के कानून को बरकरार रखा।
- सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1989:
- इसमें सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अनुसार राज्यों की शक्तियाँ "मादक शराब" को विनियमित करने तक सीमित हैं, जो औद्योगिक शराब से अलग हैं।
- मूलतः सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केवल केंद्र ही औद्योगिक अल्कोहल (जो मानव उपभोग के लिये नहीं है) पर शुल्क या कर लगा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय वर्ष 1956 में चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में अपनी ही पूर्व संविधान पीठ के निर्णय पर विचार करने में विफल रहा।
- इसमें सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अनुसार राज्यों की शक्तियाँ "मादक शराब" को विनियमित करने तक सीमित हैं, जो औद्योगिक शराब से अलग हैं।
इस निर्णय का क्या प्रभाव होगा?
- लंबित मुकदमे: इस निर्णय से राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए सुरक्षात्मक करों या विशेष शुल्कों से संबंधित चल रहे मुकदमें प्रभावित होंगे क्योंकि पूर्व के निर्णयों में ऐसे शुल्कों पर रोक लगा दी गई थी।
- राज्यों की नियामक शक्ति: अब राज्यों के पास औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन और कराधान का अधिकार है, जिससे राज्यों में विभिन्न कर व्यवस्थाएँ लागू होने की संभावना है।
- राजस्व सृजन: राजस्व स्रोतों को बढ़ाने के लिये राज्य इस निर्णय का लाभ (विशेष रूप से GST के बाद) उठा सकते हैं, क्योंकि पहले उन्हें औद्योगिक अल्कोहल पर कर लगाने से प्रतिबंधित किया गया था।
- उद्योग जगत का दृष्टिकोण: उद्योग इस फैसले को सकारात्मक रूप से देख रहे हैं और उनका सुझाव है कि इससे भारत में निर्मित विदेशी शराब (IMFL) क्षेत्र के लिये विनियामक नियंत्रण और कराधान स्पष्ट होने से निर्माताओं के लिये अस्पष्टता कम हो गई है।
- परिचालन लागत: संभवतः राज्य औद्योगिक अल्कोहल पर कर बढ़ा सकते हैं, जिससे इस पर निर्भर उद्योगों की परिचालन लागत प्रभावित होगी, जिससे मूल्य निर्धारण में असमानता पैदा हो सकती है।
निष्कर्ष
- सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले से राज्यों को औद्योगिक शराब को विनियमित करने का अधिकार मिलने से उन्हें कर लगाने तथा उत्पादन और वितरण पर स्थानीय नियंत्रण बढ़ाने की अनुमति मिल गई है।
- यह निर्णय GST के बाद राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को मज़बूत करता है, अवैध उपभोग को रोकने के लिये सख्त विनियमन को सक्षम बनाता है तथा इससे स्थानीय लोक स्वास्थ्य प्रभावों के प्रबंधन में राज्यों के विधायी अधिकारों पर प्रकाश पड़ता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में राज्यों के राजस्व सृजन एवं लोक स्वास्थ्य प्रबंधन के आलोक में औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। |