जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन: बच्चों पर प्रभाव
चर्चा में क्यों:
नोट्रे डेम ग्लोबल एडेप्टेशन इनिशिएटिव (ND-GAIN) सूचकांक पर आधारित एक हालिया विश्लेषण ने विश्व के सभी बच्चों पर जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों को आकलित किया है।
- इस विश्लेषण का आकलन ‘सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल द्वारा किया गया। वर्ष 1919 में स्थापित सेव द चिल्ड्रेन संस्था अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो बाल अधिकारों के लिये प्रतिबद्ध है।
नोट्रे डेम ग्लोबल एडेप्टेशन इनिशिएटिव (ND-GAIN)
- ND-GAIN नोट्रे डेम पर्यावरण परिवर्तन पहल (ND-ECI) विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यक्रम का हिस्सा है।
- ND-GAIN द्वारा शामिल देशों के सूचकांक यह आकलन करता है कि कौन से देशों ने अतिवृष्टि, संसाधन-बाधाओं और जलवायु व्यवधान द्वारा उत्पन्न वैश्विक परिवर्तनों से निपटने के लिये बेहतर संरचना तैयार की है।
- यह सूचकांक 20 वर्षों से 180 से अधिक देशों की वार्षिक भेद्यता के आधार पर स्थानों का आकलन करता है और साथ ही यह भी आकलित करता है कि ये अनुकूलन के लिये कितने तैयार हैं।
- भेद्यता या संवेदनशीलता को छ: जीवन सहायक क्षेत्रों में मापा जाता है - खाद्य, जल, स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र सेवा, मानव आवास और बुनियादी ढाँचा।
- समग्र तत्परता को तीन घटकों में मापा जाता है- आर्थिक तत्परता, शासन तत्परता और सामाजिक तत्परता।
- 2018 के स्कोर के अनुसार , भारत 122वें स्थान पर अत्यधिक संवेदनशील देश के रूप में 48वें स्थान पर तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये बुनियादी संरचना के रूप में 70वें स्थान पर है।
प्रमुख बिंदु :
विश्लेषण:
- सर्वाधिक जलवायु जोखिम वाले देश:
- विश्व के 45 देशों में से उप-सहारा अफ्रीका के 35 देश सर्वाधिक जलवायु जोखिम में शामिल हैं।
- जलवायु जोखिम को जोखिम प्रभाव के प्रति संवेदनशीलता और अनुकूलन क्षमता के संयोजन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- चाड, सोमालिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, इरिट्रिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने हेतु सबसे कम सक्षम देश हैं।
- 35 अफ्रीकी देशों में 18 वर्ष से कम आयु के लगभग 490 मिलियन बच्चों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सबसे अधिक खतरा है।
- विश्व के 45 देशों में से उप-सहारा अफ्रीका के 35 देश सर्वाधिक जलवायु जोखिम में शामिल हैं।
- दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिति:
- 45 देशों के 750 मिलियन बच्चों में से तीन दक्षिण एशियाई देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) के 210 मिलियन बच्चों के जलवायु जोखिम से सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है।
- बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- बाढ़, सूखा, तूफान और अन्य चरम मौसमी घटनाओं से असुरक्षित बच्चों और उनके परिवारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
- मलेरिया और डेंगू बुखार जैसी विपदाएँ कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में प्लेग से पीड़ित बच्चों को प्रभावित करती है।
- चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि से नए स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं जबकि स्वास्थ्य प्रणाली एक सीमित मात्रा में है।
- वर्ष 2020 के प्रथम छ: महीने के दौरान जलवायु परिवर्तन से घटित आपदाओं के कारण लगभग 9.8 मिलियन लोग विस्थापित हुए थे।
- विश्व जलवायु संगठन की वैश्विक जलवायु रिपोर्ट ने यह पुष्टि की है कि उनमें से अधिकांश दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में से थे।
- बच्चे, भोजन की कमी, बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य खतरों जैसे- पानी की कमी या बढ़ता जलस्तर जोखिम या इन कारकों के संयोजन से प्रभावित होंगे।
- खाद्य उत्पादन पर जलवायु संकट से पड़ने वाले प्रभावो के अनेक साक्ष्य विद्यमान हैं जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय खाद्य में कमी होगी और यह मूल्य वृद्धि को बढ़ावा देगा ।
- जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक खाद्य आपूर्ति बाधित हो सकती है जिससे यह खाद्य आपूर्ति की पहुँच को कम कर सकते हैं और भोजन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।
- इस परिवर्तन से सबसे गरीब घरों के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे। वास्तव में, मोटापे, अल्प पोषण और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध के वैज्ञानिक प्रमाण मिले हैं।
- बाढ़, सूखा, तूफान और अन्य चरम मौसमी घटनाओं से असुरक्षित बच्चों और उनके परिवारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
भारतीय परिदृश्य :
- PwC 2020 रिपोर्ट के परिणाम:
- वंचित और असुरक्षित आबादी (बच्चों सहित), स्वदेशी लोग और कृषि या तटीय आजीविका पर निर्भर स्थानीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्परिणामों के प्रतिकूल परिणाम का खतरा अधिक है।
- बच्चे को जलवायु परिवर्तन का खामियाजा उठाना पड़ता हैं क्योंकि यह उनके अस्तित्व, संरक्षण, विकास और भागीदारी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है।
- बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के अन्य संभावित प्रभाव पड़ते हैं, जैसे- अनाथ, तस्करी, बाल श्रम, शिक्षा और विकास के अवसरों की हानि, परिवार से अलग होना, बेघर होना, भीख मांगना, आघात, भावनात्मक व्यवधान, बीमारियाँ आदि हैं।
- वंचित और असुरक्षित आबादी (बच्चों सहित), स्वदेशी लोग और कृषि या तटीय आजीविका पर निर्भर स्थानीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्परिणामों के प्रतिकूल परिणाम का खतरा अधिक है।
- अन्य संबंधित सूचकांकों में भारत का प्रदर्शन:
- जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक :
- जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक को जर्मनवॉच, न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क द्वारा वर्ष 2005 से वार्षिक आधार पर प्रकाशित किया जाता है। हाल ही में जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2021 में भारत को 10वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
- विश्व जोखिम सूचकांक (World Risk Index-WRI)- 2020 में भारत 181 देशों में 89वें स्थान पर था। बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्चात् भारत जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया में चौथा सबसे अधिक जोखिम वाला देश है।
- WRI को संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS), बुंडनिस एंटविक्लंग हिलफ़्ट और जर्मनी में स्टटगार्ट विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित किया गया है।
- भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का आकलन:MoES:
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences- MoES) द्वारा भारतीय क्षेत्र रिपोर्ट (Indian Region Report) के आधार पर जलवायु परिवर्तन पर आकलन प्रकाशित किया गया है। यह आने वाली शताब्दी में उपमहाद्वीप पर पड़ने वाले ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को लेकर भारत का पहला राष्ट्रीय पूर्वानुमान है।
- राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने एक संयुक्त फ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए भारत में अनुकूल नियोजन के लिये राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट जारी की है।इस रिपोर्ट ने झारखंड, मिज़ोरम, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल की पहचान ऐसे राज्यों के रूप में की है, जो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हैं।
- जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक :
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कुछ भारतीय पहल:
- भारत स्टेज चतुर्थ (BS-IV) को भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों के अनुसार बदलना।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- उजाला योजना,
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC), इत्यादि ।
आगे की राह
- अनुकूलित और संवेदनशील सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का मापन करना जैसे- गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिये अनुदान प्रदान करना, बच्चों और उनके परिवारों पर जलवायु परिवर्तन द्वारा पड़ने वाले प्रभावों की पहचान करना है।
- अधिक देशों को बाल अधिकारों पर सम्मेलन में अपनी प्रतिबद्धता बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि प्रत्येक बच्चे को गरीबी से संरक्षित किया जा सके, उदाहरण के लिये बच्चों के जीवन को बेहतर और लचीलापन बनाने के लिये सार्वभौमिक बाल लाभयोजनाओ को क्रियान्वित करना होगा ।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
CSF और शीप पॉक्स वैक्सीन
चर्चा में क्यों?
ICAR-इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IVRI) ने ‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ (CSF) और ‘शीप पॉक्स वैक्सीन’ के लिये एक पशु स्वास्थ्य सेवा कंपनी ‘हेस्टर बायोसाइंसेज़’ को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की है।
- इस प्रौद्योगिकी को राज्य के स्वामित्व वाले ‘एग्रीनोवेट इंडिया’ (AgIn) के माध्यम से स्थानांतरित किया गया, जो ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ (ICAR) के तहत कार्य करता है।
- ‘एग्रीनोवेट इंडिया’ बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण, व्यवसायीकरण और ‘फोर्जिंग पार्टनरशिप’ (Forging Partnerships) के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास परिणामों के विकास और प्रसार को बढ़ावा देता है, यह सार्वजनिक लाभ के लिये देश और इसके बाहर दोनों जगह कार्य करता है।
प्रमुख बिंदु:
‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ (CSF):
- CSF, जिसे ‘हॉग हैजा’ के नाम से भी जाना जाता है, यह सूअरों से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण बीमारी है।
- यह दुनिया में सूअरों से संबंधित आर्थिक रूप से सर्वाधिक हानिकारक महामारी संक्रामक रोगों में से एक है।
- यह Flaviviridae फैमिली के जीनस पेस्टीवायरस के कारण होता है, जो कि इस वायरस से निकटता से संबंधित है जो मवेशियों में ‘बोवाइन संक्रमित डायरिया’ और भेड़ों में ‘बॉर्डर डिज़ीज’ का कारण बनता है।
- इससे मृत्यु दर 100% है।
- यह दुनिया में सूअरों से संबंधित आर्थिक रूप से सर्वाधिक हानिकारक महामारी संक्रामक रोगों में से एक है।
- भारत में विकसित वैक्सीन:
- भारत में इस बीमारी को बड़ी संख्या में खरगोशों को मारकर तैयार किये गए एक ‘लैपिनाइज़्ड सीएसएफ वैक्सीन (वेइब्रिज स्ट्रेन, यूके) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- लैपिनाइज़ेशन का अर्थ है कि अपनी विशेषताओं को संशोधित करने के लिये खरगोशों के माध्यम से वायरस या वैक्सीन का ‘सीरियल पैसेज’ तैयार करना।
- इससे बचने के लिये ICAR-IVRI ने एक ‘सेल कल्चर CSF वैक्सीन (लाइव एटेन्यूटेड या जीवित ऊतक) विकसित की, जिसमें लैपिनाइज़्ड वैक्सीन वायरस का उपयोग एक बाह्य स्ट्रेन के माध्यम से किया गया।
- नया टीका टीकाकरण के 14 दिन से 18 महीने तक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा को प्रेरित करने के लिये पाया गया है।
- भारत में इस बीमारी को बड़ी संख्या में खरगोशों को मारकर तैयार किये गए एक ‘लैपिनाइज़्ड सीएसएफ वैक्सीन (वेइब्रिज स्ट्रेन, यूके) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
शीप पॉक्स:
- यह भेड़ों से संबंधित एक गंभीर वायरल बीमारी है और इसका वायरस बकरी (कार्पीपॉक्सीवायरस) से निकटता से संबंधित है।
- इस वायरस का संबंध ‘गांठदार त्वचा रोग’ ( lumpy Skin Disease) के वायरस से भी है।
- यह रोग प्रायः बहुत गंभीर एवं घातक होता है, जिसमें व्यापक रूप से त्वचा का विस्फोट होता है।
- इसका प्रभाव दक्षिण-पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों तक सीमित है।
- भारत में विकसित वैक्सीन:
- भेड़ों की आबादी में निवारक टीकाकरण के लिये ‘ICAR-IVRI’ द्वारा स्वदेशी स्ट्रेन का उपयोग करते हुए एक दुर्बल वायरस का प्रयोग करके ‘शीप पॉक्स वैक्सीन’ विकसित की गई।
- विकसित वैक्सीन में स्वदेशी शीप पॉक्स वायरस स्ट्रेन (SPPV Srin 38/00) का उपयोग किया गया है और यह ‘वेरो सेल लाइन’ में वृद्धि के लिये अनुकूलित है जो वैक्सीन उत्पादन को आसानी से मापन-योग्य बनाता है।
- यह 6 महीने से अधिक उम्र की भेड़ों के लिये शक्तिशाली और इम्युनोजेनिक है। यह टीकाकृत जानवरों की 40 महीने की अवधि तक रक्षा करता है।
सेल कल्चर (Cell Culture):
- सेल कल्चर वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशिकाओं में नियंत्रित परिस्थितियों, आमतौर पर उनके प्राकृतिक वातावरण के बाहर विशेष रूप से निर्मित परिस्थितियों और तापमान, आर्द्रता, पोषण और संदूषण की स्वतंत्रता की सटीक स्थितियों के तहत वृद्धि की जाती है।
- सेल कल्चर सिस्टम में बड़ी मात्रा में दुर्बल वायरल कणों के उत्पादन की क्षमता ने मानव और पशु दोनों से संबंधित वैक्सीन के उत्पादन के आधार के रूप में कार्य किया है।
वेरो सेल:
- वेरो सेल ‘सेल कल्चर’ में प्रयोग होने वाली कोशिकाओं की एक वंशावली हैं। वेरो सेल को एक अफ्रीकी ग्रीन मंकी के गुर्दे के उपकला कोशिकाओं से प्राप्त किया गया था।
- वेरो कोशिकाओं का उपयोग कई उद्देश्यों के लिये किया जाता है, जिनमें शामिल हैं,
- एस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) नामक ज़हर को पहले "वेरो टॉक्सिन" नाम दिया गया।
- वृद्धिशील वायरस की मेज़बान कोशिकाओं के रूप में।
- वेरो सेल का वंशक्रम सतत् और अगुणित होता है।
- एक सतत् सेल वंश को विभाजन के कई चक्रों के माध्यम से दोहराया जा सकता है।(अर्थात यह उम्र के साथ विघटित नहीं होता)।
- असुगुणन असामान्य संख्या में गुणसूत्र होने की एक विशेषता है।
लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन:
- लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन’ में रोगाणु के दुर्बल रूप का उपयोग किया जाता है।
- क्योंकि ये टीके प्राकृतिक संक्रमण से इतने मिलते-जुलते हैं कि वे रोकथाम में मदद करते हैं, ये एक मज़बूत और लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का निर्माण करते हैं।
- अधिकांश लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन की बस एक या दो खुराक एक रोगाणु और इसके कारण होने वाली बीमारी से सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
- इस दृष्टिकोण से ये वैक्सीन आमतौर पर कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को नहीं दिये जा सकते हैं।
- लाइव वैक्सीन का उपयोग खसरा, गलसुआ, रूबेला (MMR संयुक्त टीका), रोटावायरस, चेचक से प्रतिरक्षा के लिये किया जाता है।
स्रोत-पीआईबी
सामाजिक न्याय
ज़ीरोइंग इन ऑन मलेरिया एलिमिनेशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा विश्व मलेरिया दिवस 2021 से पूर्व ‘ज़ीरोइंग इन ऑन मलेरिया एलिमिनेशन' (Zeroing in on malaria elimination) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई थी।
- प्रत्येक वर्ष 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस (World Malaria Day) के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2021 के लिये विश्व मलेरिया दिवस की थीम ‘रीचिंग द ज़ीरो मलेरिया टारगेट’ (Reaching the Zero Malaria target) है।
- WHO द्वारा अपनी ‘ई-2025 पहल’ (E-2025 Initiative) के तहत ऐसे 25 देशों की पहचान की गई है जिन्हें वर्ष 2025 तक मलेरिया मुक्त देश बनाना है।
प्रमुख बिंदु:
मलेरिया:
- मलेरिया एक मच्छर जनित रक्त रोग (Mosquito Borne Blood Disease) है जो प्लास्मोडियम परजीवी (Plasmodium Parasites) के कारण होता है। यह मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
- इस परजीवी का प्रसार संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों (Female Anopheles Mosquitoes) के काटने से होता है।
- मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद, परजीवी शुरू में यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करते हैं उसके बाद लाल रक्त कोशिकाओं ( Red Blood Cells- RBCs) को नष्ट हैं जिसके परिणामस्वरूप RBC की क्षति होती है।
- ऐसी 5 परजीवी प्रजातियांँ हैं जो मनुष्यों में मलेरिया संक्रमण का कारण होती हैं, इनमें से 2 प्रजातियाँ - प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) और प्लास्मोडियम विवैक्स (Plasmodium vivax) है जिनसे मलेरिया संक्रमण का सर्वाधिक खतरा विद्यमान होता है।
- मलेरिया के लक्षणों में बुखार और फ्लू जैसे लक्षण शामिल होते हैं, जिसमें ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान महसूस होती है।
- इस रोग की रोकथाम एवं इलाज़ दोनों ही संभव है।
- इस परजीवी का प्रसार संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों (Female Anopheles Mosquitoes) के काटने से होता है।
- मलेरिया का टीका:
- RTS,S/AS01 जिसे मॉसक्यूरिक्स (Mosquirix) के नाम से भी जाना जाता है जो एक इंजेक्शन वैक्सीन है। इस टीके को एक लंबे वैज्ञानिक परीक्षण के बाद प्राप्त किया गया है जोकि सुरक्षित है। इस टीके के प्रयोग से मलेरिया का खतरा 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है तथा इसके परिणाम अब तक के टीकों में सबसे अच्छे देखे गए हैं।
- इसे ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline- GSK) कंपनी द्वारा विकसित किया गया था तथा वर्ष 2015 में यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी (European Medicines Agency) द्वारा अनुमोदित किया गया।
- RTS,S वैक्सीन मलेरिया परजीवी, प्लाज़्मोडियम पी. फाल्सीपेरम (Plasmodium (P.) falciparum) जोकि मलेरिया परजीवी की सबसे घातक प्रजाति है के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित करती है।
- RTS,S/AS01 जिसे मॉसक्यूरिक्स (Mosquirix) के नाम से भी जाना जाता है जो एक इंजेक्शन वैक्सीन है। इस टीके को एक लंबे वैज्ञानिक परीक्षण के बाद प्राप्त किया गया है जोकि सुरक्षित है। इस टीके के प्रयोग से मलेरिया का खतरा 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है तथा इसके परिणाम अब तक के टीकों में सबसे अच्छे देखे गए हैं।
ई -2025 पहल:
- वर्ष 2017 में WHO द्वारा ई-2025 पहल की शुरुआत की गई। इस पहल का उद्देश्य वर्ष 2020 तक ऐसे देशों के समूह का समर्थन करना है जो अपने यहाँ मलेरिया के मामलों को जीरो स्तर तक लाने हेतु प्रतिबद्ध है।
- इस पहल के द्वारा पांँच क्षेत्रों में से कुल 21 देशों की पहचान की गई जहाँ मलेरिया को खत्म करने की संभावनाएँ विद्यमान थी।
- ‘ज़ीरोइंग इन ऑन मलेरिया एलिमिनेशन' रिपोर्ट, ई -2025 पहल के तहत हुई अब तक मलेरिया उन्मूलन प्रगति को दर्शाती है।
- ई-2020 की सफलताओं को ध्यान में रखते हुए WHO द्वारा ऐसे 25 देशों के समूह की पहचान की गई है जो आने वाले पांँच वर्षों में अपने यहाँ मलेरिया को पूरी तरह से समाप्त करने में सक्षम है।
- ई -2025 पहल में शामिल देशों को WHO और उसके सहयोगियों से तकनीकी और अन्य सहयोग प्राप्त होगा। बदले में इस देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रमों का प्रतिवर्ष ऑडिट करें, मलेरिया उन्मूलन से संबंधित मंचों पर साझेदारी करे, निगरानी और आकलन करें तथा मलेरिया से संबंधित मामले के आंँकड़ों को समय-समय पर साझा करें।
- ई -2025 पहल में शामिल नए देशों का चुनाव में निम्नलिखित चार मानदंडों को आधार बनाया गया:
- सरकारी सहायता प्राप्त उन्मूलन योजना की स्थापना।
- हाल के वर्षों में संबंधित देश द्वारा मलेरिया के मामले में निर्धारित कमी को पूरा करना।
- संबंधित देश में मलेरिया उन्मूलन हेतु मज़बूत मलेरिया निगरानी और एक नामित सरकारी एजेंसी क्षमता का होना।
- संबंधित देश को डब्ल्यूएचओ मलेरिया उन्मूलन ओवरसाइट समिति (WHO Malaria Elimination Oversight Committee) द्वारा चयनित किया जाना।
भारतीय परिदृश्य:
- भारत में मलेरिया की स्थिति: WHO द्वारा प्रकाशित विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2020 में वैश्विक स्तर पर मलेरिया के अनुमानित मामले को दर्शाया गया है साथ ही रिपोर्ट में भारत में मलेरिया से संबंधित आंँकड़ों को भी प्रकाशित किया गया है जिनके अनुसार, भारत में मलेरिया के मामलों के कमी दर्ज़ की गई है।
- भारत एकमात्र ऐसे उच्च स्थानिक देश (High Endemic Country) है जहाँ मलेरिया के मामलों में वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 17.6% की गिरावट दर्ज की गई है।
- प्रमुख पहलें:
- वर्ष 2017 में, देश में मलेरिया उन्मूलन हेतु 5 वर्षीय राष्ट्रीय रणनीतिक योजना शुरू की गई जिसमें मलेरिया नियंत्रण से मलेरिया उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित किया गया। इस योजना में वर्ष 2022 तक भारत के 678 ज़िलों में से 571 ज़िलों में मलेरिया को समाप्त करने हेतु रोडमैप तैयार किया गया।
- हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (Malaria Elimination Research Alliance-India) की स्थापना की गई है जो मलेरिया नियंत्रण पर काम करने वाले भागीदारों का एक समूह है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय राजव्यवस्था
राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने 24 अप्रैल 2021 को 12वाँ राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (National Panchayati Raj Day) के रूप में मनाया गया।
- इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्वामित्व (SWAMITVA) योजना के अंतर्गत ई-संपत्ति कार्ड वितरण का शुभारंभ किया।
प्रमुख बिंदु
राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के विषय में:
- पृष्ठभूमि: पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस वर्ष 2010 में मनाया गया था। तब से भारत में प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है।
- इस दिवस पर दिये जाने वाले पुरस्कार:
- इस अवसर पर पंचायती राज मंत्रालय देश भर में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली पंचायतों/राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को पुरस्कृत करता है।
- यह पुरस्कार विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत दिये जाते हैं,
- दीन दयाल उपाध्याय पंचायत शक्तीकरण पुरस्कार।
- नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार।
- बाल सुलभ ग्राम पंचायत पुरस्कार।
- ग्राम पंचायत विकास योजना पुरस्कार।
- ई-पंचायत पुरस्कार (केवल राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को दिया गया)।
- ऐसा पहली बार हुआ है कि आयोजन के समय ही पुरस्कृत राशि पंचायतों के खाते में सीधे भेजी गई हो।
पंचायती राज:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख किया गया है और अनुच्छेद 246 में राज्य विधानमंडल को स्थानीय स्वशासन से संबंधित किसी भी विषय के संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया।
- स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र की स्थापना करने के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थान (Panchayati Raj Institution) को संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई और उन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
- पंचायती राज संस्थान भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन (Rural Local Self-government) की एक प्रणाली है।
- स्थानीय स्वशासन का अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन।
- देश भर के पंचायती राज संस्थानों (PRI) में ई-गवर्नेंस को मज़बूत करने के लिये पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) ने एक वेब-आधारित पोर्टल ई-ग्राम स्वराज (e-Gram Swaraj) लॉन्च किया है।
- यह पोर्टल सभी ग्राम पंचायतों को ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (Gram Panchayat Development Plans) को तैयार करने एवं क्रियांवयन के लिये एकल इंटरफेस प्रदान करने के साथ-साथ रियल टाइम निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा।
स्वामित्व योजना के विषय में:
- यह योजना पंचायती राज मंत्रालय, राज्य पंचायती राज विभाग, राज्य राजस्व विभाग और भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सहयोग से ड्रोन तकनीकी द्वारा नवीनतम सर्वेक्षण विधियों के उपयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में रिहायशी ज़मीनों के सीमांकन के लिये संपत्ति सत्यापन का समाधान करेगी।
- यह मैपिंग पूरे देश में चार वर्ष की अवधि में (वर्ष 2020 से वर्ष 2024 तक) पूरी की जाएगी।
73वें संवैधानिक संशोधन की मुख्य विशेषताएँ
- इस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में भाग-9 जोड़ा गया था।
- लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियादी इकाइयों के रूप में ग्राम सभाओं (ग्राम) को रखा गया जिसमें मतदाता के रूप में पंजीकृत सभी वयस्क सदस्य शामिल होते हैं।
- उन राज्यों को छोड़कर जिनकी जनसंख्या 20 लाख से कम हो ग्राम, मध्यवर्ती (प्रखंड/तालुका/मंडल) और ज़िला स्तरों पर पंचायतों की त्रि-स्तरीय प्रणाली लागू की गई है (अनुच्छेद 243B)।
- सभी स्तरों पर सीटों को प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरा जाना है [अनुच्छेद 243C(2)]।
- सीटों का आरक्षण:
- अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये सीटों का आरक्षण किया गया है तथा सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पद भी जनसंख्या में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनुपात के आधार पर आरक्षित किये गए हैं।
- उपलब्ध सीटों की कुल संख्या में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
- सभी स्तरों पर अध्यक्षों के एक तिहाई पद भी महिलाओं के लिये आरक्षित हैं (अनुच्छेद 243D)।
- कार्यकाल:
- पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित है लेकिन कार्यकाल से पहले भी इसे भंग किया जा सकता है।
- पंचायतों के नए चुनाव कार्यकाल की अवधि की समाप्ति या पंचायत भंग होने की तिथि से 6 महीने के भीतर ही करा लिये जाने चाहिये (अनुच्छेद 243E)।
- मतदाता सूची के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिये प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र चुनाव आयोग होंगे (अनुच्छेद 243K)।
- पंचायतों की शक्ति: पंचायतों को ग्यारहवीं अनुसूची में वर्णित विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजना तैयार करने के लिये अधिकृत किया गया है (अनुच्छेद 243G)।
- राजस्व का स्रोत (अनुच्छेद 243H): राज्य विधायिका पंचायतों को अधिकृत कर सकती है-
- राज्य के राजस्व से बजटीय आवंटन।
- कुछ करों के राजस्व का हिस्सा।
- राजस्व का संग्रह और प्रतिधारण।
- प्रत्येक राज्य में एक वित्त आयोग का गठन करना ताकि उन सिद्धांतों का निर्धारण किया जा सके जिनके आधार पर पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी (अनुच्छेद 243I)।
- छूट:
- यह अधिनियम सामाजिक-सांस्कृतिक और प्रशासनिक कारणों से नगालैंड, मेघालय तथा मिज़ोरम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों में लागू नहीं होता है। इन क्षेत्रों में शामिल हैं:
- आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान राज्यों में पाँचवीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित क्षेत्र।
- मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र जिसके लिये जिला परिषदें मौजूद हैं।
- पश्चिम बंगाल राज्य में दार्जिलिंग ज़िले के पहाड़ी क्षेत्र जिनके लिये दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल मौजूद है।
- संसद ने पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 [The Provisions of the Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act-PESA] के माध्यम से भाग 9 और 5वीं अनुसूची क्षेत्रों के प्रावधानों को बढ़ाया है।
- यह अधिनियम सामाजिक-सांस्कृतिक और प्रशासनिक कारणों से नगालैंड, मेघालय तथा मिज़ोरम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों में लागू नहीं होता है। इन क्षेत्रों में शामिल हैं:
- वर्तमान में 10 राज्य (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना) पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
‘क्रू-2’ मिशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ के तहत नासा और ‘स्पेसएक्स’ (SpaceX) के बीच सहयोग के हिस्से के रूप में चार अंतरिक्ष यात्रियों को फ्लोरिडा (अमेरिका) से अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) में भेजा गया है। इस मिशन को ‘क्रू-2’ (Crew-2) नाम दिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
‘वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ (CCP)
- नासा द्वारा शुरू किया गया ‘वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ (CCP) नासा और निजी उद्योग के बीच अंतरिक्ष यात्रियों को ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ (ISS) तक ले जाने और वहाँ से वापस लाने से संबंधित एक साझेदारी है।
- पूर्ववर्ती मानवीय अंतरिक्ष यान कार्यक्रमों के विपरीत, इस कार्यक्रम के तहत नासा एक ग्राहक के तौर पर वाणिज्यिक प्रदाताओं से उड़ानें खरीदता है और इसके तहत एजेंसी के पास अंतरिक्ष यान का स्वामित्व या संचालन नहीं होता है।
- यह कार्यक्रम नासा के लिये अंतरिक्ष यान की लागत को कम करने और अंतरिक्ष में मनुष्यों के लिये एक नया वाणिज्यिक बाज़ार स्थापित करने में सहायता कर रहा है।
- इस तरह निजी कंपनियों को ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ के लिये चालक दल परिवहन सेवाएँ प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित करके, नासा गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों के लिये अंतरिक्ष यान और रॉकेट बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
- नासा ने सितंबर 2014 में अंतरिक्ष यात्रियों को अमेरिका से अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) तक ले जाने हेतु एक परिवहन प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से ‘बोइंग’ और ‘स्पेसएक्स’ कंपनियों के साथ समझौता किया था।
नोट:
- कुछ दिन पूर्व भारत सरकार ने ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र’ (IN-SPACe) की स्थापना के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की घोषणा की थी।
स्पेसएक्स के साथ नासा की साझेदारी
- मई 2020 में नासा की स्पेसएक्स डेमो-2 परीक्षण उड़ान दो अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ (ISS) के लिये रवाना हुई थी।
- इस उड़ान का उद्देश्य इस तथ्य का परीक्षण करना था कि क्या स्पेसएक्स द्वारा निर्मित कैप्सूल का उपयोग नियमित रूप से अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस स्टेशन तक ले जाने और वहाँ से लाने के लिये किया जा सकता है या नहीं।
- ‘डेमो-2’ परीक्षण के पश्चात् नवंबर 2020 में ‘क्रू-1’ का आयोजन किया गया, जो कि नासा और स्पेसएक्स के बीच छ: ‘क्रू’ मिशनों में से पहला था। ये मिशन अंतरिक्ष यात्रा के लिये एक नए युग की शुरुआत करेंगे।
- ‘क्रू-1’, ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ के लिये एक ‘फाल्कन-9’ रॉकेट पर ‘स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन’ अंतरिक्ष यान की पहली परिचालन उड़ान थी।
- ‘क्रू-1’ टीम के सदस्य ‘एक्सपीडिशन-64’ के सदस्यों में शामिल हो गए और उन्होंने स्पेस स्टेशन में माइक्रोग्रैविटी का अध्ययन किया।
‘क्रू-2’ मिशन
- यह ‘स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन’ का दूसरा क्रू रोटेशन मिशन और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ पहला मिशन है।
- कुल चार अंतरिक्ष यात्रियों में से दो नासा से हैं, जबकि दो यात्री ‘जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी’ (JAXA) और ‘यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी’ (ESA) से हैं।
- ‘क्रू-2’ मिशन में शामिल अंतरिक्ष यात्री, ‘एक्सपीडिशन-65’ (इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 65वाँ दीर्घावधि अभियान) के सदस्यों में शामिल हो जाएंगे।
- सभी सदस्य कुल छ: माह तक स्पेस स्टेशन में रहेंगे, जिस दौरान वे ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में वैज्ञानिक परीक्षण करेंगे।
- इस दौरान अंतरिक्ष यात्रियों का प्राथमिक उद्देश्य ‘टिश्यू चिप्स’ अध्ययन शृंखला को जारी रखना होगा।
टिश्यू चिप्स
- ‘टिश्यू चिप्स’ मानव अंगों के छोटे मॉडल होते हैं, जिनमें कई प्रकार की कोशिकाएँ शामिल होती हैं, जो मानव शरीर में समान व्यवहार करती हैं।
- नासा के मुताबिक, ये ‘टिश्यू चिप्स’ संभावित रूप से सुरक्षित और प्रभावी दवाओं और टीकों की पहचान करने की प्रक्रिया को तेज़ कर सकते हैं।
- वैज्ञानिक अंतरिक्ष में इन ‘टिश्यू चिप्स’ का उपयोग उन रोगों का अध्ययन करने के लिये कर सकते हैं, जो विशिष्ट मानव अंगों को प्रभावित करते हैं और जिन मानव अंगों को पृथ्वी पर विकसित होने में महीने अथवा वर्षभर से भी अधिक समय लग सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS)
- यह एक रहने योग्य कृत्रिम उपग्रह है, जिसे ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में मानव निर्मित सबसे बड़ा ढाँचा माना जाता है। इसका पहला हिस्सा वर्ष 1998 में ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में लॉन्च किया गया था।
- यह लगभग 92 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है और प्रतिदिन पृथ्वी की 15.5 परिक्रमाएँ पूरी करता है।
- ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ कार्यक्रम पाँच प्रतिभागी अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक संयुक्त परियोजना है: नासा (अमेरिका), रॉसकॉसमॉस (रूस), जाक्सा (जापान), ESA (यूरोप) और CSA (कनाडा)। हालाँकि इसके स्वामित्व और उपयोग को अंतर-सरकारी संधियों और समझौतों के माध्यम से शासित किया जाता है।
- यह एक माइक्रोग्रैविटी और अंतरिक्ष पर्यावरण अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में कार्य करता है जिसमें चालक दल के सदस्य जीव विज्ञान, मानव जीव विज्ञान, भौतिकी, खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान और अन्य विषयों से संबंधित प्रयोग करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) के कारण ही ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में निरंतर मानवीय उपस्थिति संभव हो पाई है।
- इसके वर्ष 2030 तक संचालित रहने की उम्मीद है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ (Leaders' Summit on Climate) वर्चुअल तरीके से संपन्न किया गया।
- भारतीय प्रधानमंत्री सहित विश्व के 40 नेताओं को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया गया, ताकि वे मज़बूत जलवायु कार्रवाई (Stronger Climate Action) को रेखांकित करने हेतु अपना योगदान दे सके।
- इस शिखर सम्मेलन को नवंबर 2021 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़-26 (COP-26) के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में देखा जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 भागीदारी:
- भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 भागीदारी के बारे में:
- यह भारत और अमेरिका की जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा हेतु एक संयुक्त पहल है
- यह इस बात को प्रदर्शित करेगा कि राष्ट्रीय परिस्थितियों और सतत् विकास प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए वैश्विक स्तर पर समावेशी और लचीले आर्थिक विकास के साथ तीव्र जलवायु कार्रवाई को किस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है?
- उद्देश्य:
- स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030 निवेश को जुटाने, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने तथा भारत में हरित सहयोग को बढ़ाने के साथ अन्य विकासशील देशों हेतु सतत् विकास का खाका तैयार करने में सहायक होगा।
- इस पहल के दो मुख्य पक्ष:
- सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी।
- द क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबलाइज़ेशन डायलॉग।
अमेरिका का पक्ष:
- अमेरिकी प्रतिबद्धता:
- अमेरिका द्वारा वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GreenHouse Gas- GHG) के उत्सर्जन को आधा करने हेतु और अन्य देशों से ‘उच्च जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं को निर्धारित करने" का आह्वान किया गया है जिससे देश में ही रोज़गार सृजन और नवीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा मिलेगा साथ ही जलवायु परिवर्तन के अनुकूल प्रभाव को कम करने में देशों की मदद मिलेगी।
- विकासशील देशों हेतु अपने सार्वजनिक जलवायु वित्तपोषण को दोगुना करना और वर्ष 2024 तक विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन के लिये सार्वजनिक वित्तपोषण को तीन गुना बढ़ाना।
- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC):
- रास्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान के अनुसार, GHG उत्सर्जन को वर्ष 2005 के स्तर से 50-52% कम करना है।
- अमेरिका पेरिस समझौते (Paris Agreement) में फिर से शामिल हो गया है।
- रास्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान के अनुसार, GHG उत्सर्जन को वर्ष 2005 के स्तर से 50-52% कम करना है।
- भारत की प्रतिबद्धता:
- भारत ने अमेरिका के साथ मिलकर अपनी जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाया है जिसमें भारत द्वारा जलवायु कार्रवाई और स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु अमेरिका के साथ मिलकर 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करना शामिल है।
चीन का रुख:
- कार्बन न्यूट्रैलिटी:
- वर्ष 2030 तक चीन द्वारा कार्बन उत्सर्जन अपनी चरम सीमा पर होगा तथा वर्ष 2060 तक यह कार्बन न्यूट्रैलिटी (Carbon Neutrality) की स्थिति प्राप्त प्राप्त कर लेगा।
- चीन द्वारा अपनी ग्रीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) को बढ़ावा देने, कोयला आधारित बिजली उत्पादन परियोजनाओं को सख्ती से नियंत्रित करने और कोयले की खपत को कम करने के प्रयासों की घोषणा की गई है।
- वर्ष 2030 तक चीन द्वारा कार्बन उत्सर्जन अपनी चरम सीमा पर होगा तथा वर्ष 2060 तक यह कार्बन न्यूट्रैलिटी (Carbon Neutrality) की स्थिति प्राप्त प्राप्त कर लेगा।
- सामान्य परंतु विभेदित ज़िम्मेदारियाँ:
- इसने सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों के सिद्धांत पर भी ज़ोर दिया, जो लंबे समय तक प्रदूषक रहे विकसित देशों के लिये अधिक ज़िम्मेदारियाँ निर्धारित करता है।
भारत का रुख:
- उत्सर्जन:
- भारत द्वारा पहले ही NDC के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए देश में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को वैश्विक औसत से 60% कम निर्धारित किया गया है।
- प्रतिबद्धता:
- भारत द्वारा वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट (GW) के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
- विकास संबंधी चुनौतियों के बावजूद भारत ने स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, वनीकरण और जैव विविधता हेतु कई साहसिक कदम उठाए हैं। भारत उन कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हैं, जिसका NDCs 2°C के संगत स्तर पर बना हुआ है।
- भारत का मुख्य ज़ोर:
- भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) और आपदा प्रबंधन संरचना जैसी वैश्विक पहलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कुछ भारतीय पहलें:
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंड
- उजाला योजना
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)
आगे की राह:
- प्रत्येक देश, शहर, व्यापार और वित्तीय संस्थान को नेट-शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
- सरकारों के लिये यह और भी ज़रूरी है कि वे इस दीर्घकालिक महत्त्वाकांक्षा को ठोस कार्य-योजना के साथ समन्वित करे , क्योंकि कोविड -19 महामारी को दूर करने हेतु अरबों डॉलर खर्च किये जा चुके हैं। ऐसे समय में अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाकर हम भविष्य को फिर से पुनर्जीवित कर सकते हैं।
- जून 2021 में होने वाला जी-7 शिखर सम्मेलन विश्व के सबसे धनी देशों को आवश्यक वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का अवसर प्रदान करेगा जो COP-26 की सफलता को सुनिश्चित करने में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
सूक्ष्म वित्त संस्थाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सूक्ष्म वित्त संस्थाओं (Microfinance Institution) ने केंद्र से आग्रह किया है कि वे अपने कर्मचारियों और स्वयं सहायता समूह (SHG) के कर्मचारियों के लिये टीकाकरण को प्राथमिकता देने पर विचार करें।
- ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि COVID-19 संक्रमण की बढ़ती दूसरी लहर के बीच गरीबों के लिये ऋण की सुविधा उपलब्ध की जा सके।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- सूक्ष्म ऋण का अभिप्राय अलग-अलग देशों में भिन्न होता है। भारत में 1 लाख रुपए से कम के सभी ऋणों को माइक्रोलोन या सूक्ष्म ऋण माना जा सकता है।
- इसकी सेवाओं में सूक्ष्म ऋण,सूक्ष्म बचत और सूक्ष्म बीमा शामिल है।
- MFI वित्तीय कंपनियाँ उन लोगों को छोटे ऋण प्रदान करती हैं जो समाज के वंचित और कमजोर वर्गों से हैं तथा जिनके पास बैंकिंग सुविधाओं तक पहुँच उपलब्ध नहीं है।
- सूक्ष्म वित्त संस्थाएँ (MFI) उन कंपनियों को कहा जाता है जो निम्न आय वर्ग के लोगों को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिये सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज उपलब्ध कराते हैं।
- तथाकथित ब्याज दरें ज़्यादातर मामलों में सामान्य बैंकों द्वारा वसूल किये जाने वाली दरों से कम होती हैं। अतः कुछ लोगों ने इन माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं पर गरीब लोगों के पैसे में हेरफेर करके लाभ कमाने का आरोप लगाया है।
- पिछले कुछ दशकों में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र तेजी से बढ़ा है और वर्तमान में इनके पास भारत की गरीब आबादी के लगभग 102 मिलियन खाते (बैंकों और छोटे वित्त बैंकों सहित) हैं।
- गरीब लोगों के लिये विभिन्न प्रकार के वित्तीय सेवा प्रदाता उभरे हैं जैसे- गैर-सरकारी संगठन (NGO), सहकारिता, स्व-सहायता समूह , क्रेडिट यूनियन, सामुदायिक-आधारित विकास संस्थान, वाणिज्यिक और राज्य बैंक, बीमा तथा क्रेडिट कार्ड कंपनियाँ, डाकघर आदि।
- भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non Banking Finance Company) और MFIs का रिज़र्व बैंक के गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी -माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (रिज़र्व बैंक) निर्देश, 2011 द्वारा नियमन किया जाता है।
प्रमुख व्यवसाय मॉडल:
- संयुक्त देयता समूह:
- यह आमतौर पर एक अनौपचारिक समूह है जिसमें 4-10 व्यक्ति शामिल होते हैं जो आपसी गारंटी पर ऋण प्राप्त करते हैं।
- यह ऋण आमतौर पर कृषि उद्देश्यों या संबंधित गतिविधियों के लिये दिया जाता है।
- स्वयं सहायता समूह:
- यह समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का एक समूह है।
- इस समूह के अंतर्गत छोटे उद्यमी एक छोटी अवधि के लिये एक साथ आते हैं और अपनी व्यावसायिक जरूरतों हेतु एक सामान्य फंड बनाते हैं। इन समूहों को गैर-लाभकारी संगठनों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- इस संबंध में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा क्रियान्वित ‘स्वयं सहायता समूह का-बैंक’ लिंकेज कार्यक्रम उल्लेखनीय है, क्योंकि इससे SHG बैंकों से अपने पुनर्भुगतान का ट्रैक रिकॉर्ड प्रस्तुत करके ऋण ले सकते हैं।
- ग्रामीण मॉडल बैंक:
- इस मॉडल को वर्ष 1970 के दशक में एक बांग्लादेशी नोबेल विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस द्वारा प्रतिपादित किया गया।
- इस मॉडल ने भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (Regional Rural Bank) के निर्माण को प्रेरित किया है। इस प्रणाली का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना है।
- ग्रामीण सहकारिता:
- इसकी स्थापना स्वतंत्रता के दौरान की गई।
- इस प्रणाली में जटिल निगरानी संरचनाएँ थीं साथ ही इससे केवल ग्रामीण क्षेत्र में ऋण की सुविधा मुहैया कराई जाती थी। इसलिये इस प्रणाली को वह सफलता नहीं मिली जो इससे उम्मीद की गई थी।
लाभ
- ये बिना किसी ज़मानत के आसानी से ग्राहकों को अल्पावधिक ऋण प्रदान करती हैं।
- यह अर्थव्यवस्था के गरीब वर्गों को अधिक धन उपलब्ध कराती हैं, जिससे गरीब परिवारों की आय में बढ़ोतरी होती है और रोज़गार का भी सृजन होता है।
- यह महिलाओं, बेरोज़गारों और द्विव्यांगों समेत समाज के अल्प-वित्तपोषित समूहों को सेवाएँ प्रदान करती हैं।
- यह समाज के गरीब और असुरक्षित और कमज़ोर वर्गों को उनकी मदद के लिये उपलब्ध वित्तीय साधनों से अवगत कराती है और बचत की विधि विकसित करने में भी मदद करती है।
- सूक्ष्म-ऋण से लाभ प्राप्त करने वाले परिवार अपने बच्चों को बेहतर और निरंतर शिक्षा प्रदान करने में सक्षम होते हैं।
चुनौतियाँ
- खंडित डेटा:
- यद्यपि कुल ऋण खातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, किंतु ग्राहकों के गरीबी-स्तर पर इन ऋणों का वास्तविक प्रभाव से संबंधित कुछ स्पष्ट तथ्य मौजूद नहीं है, क्योंकि ग्राहकों के सापेक्ष गरीबी-स्तर में सुधार से संबंधित सूक्ष्म वित्त संस्थाओं का डेटा पूर्णतः खंडित है।
- कोरोना महामारी का प्रभाव:
- कोरोना वायरस महामारी ने सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को काफी अधिक प्रभावित किया है और इसके परिणामस्वरूप ऋण संग्रहण पर प्रारंभिक प्रभाव के साथ ऋण वितरण पर अभी तक कोई सार्थक बढ़ोतरी नहीं हो पाई है।
- सामाजिक उद्देश्यों की अनदेखी:
- विकास और लाभप्रदाता उनकी खोज में सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के सामाजिक उद्देश्य यानी समाज के वंचित वर्गों के जीवन में सुधार लाने संबंधी उद्देश्य, धीरे-धीरे हाशिये पर चले गए हैं।
- गैर-आय सृजन प्रयोजनों के लिये ऋण:
- गैर-आय सृजन उद्देश्यों के लिये उपयोग किये जाने वाले ऋणों का अनुपात रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किये गए अनुपात, MFI के कुल ऋण का 30 प्रतिशत, की तुलना में बहुत अधिक हो सकता है।
- ये ऋण प्रायः अल्प-अवधि के होते हैं और ग्राहकों की आर्थिक प्रोफ़ाइल को देखते हुए इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि वे जल्द ही स्वयं को एक खतरनाक ऋण जाल में पाएंगे, जहाँ उन्हें पहले ऋण के भुगतान के लिये दूसरा ऋण लेना पड़ेगा।
आगे की राह
- एमएफआई को एक एक स्थायी और स्केलेबल माइक्रो फाइनेंस मॉडल (Scalable Microfinance Model) बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो आर्थिक तथा सामाजिक दोनों के विषय में स्पष्ट हो।
- एमएफआई को ऋण का 'घोषित उद्देश्य' सुनिश्चित करना चाहिये कि जो अक्सर ऋण-आवेदन के चरण में ग्राहकों से पूछा जाता है तथा ऋण के कार्यकाल के अंत में सत्यापित होता है।
- RBI को सभी संस्थानों को सामाजिक प्रभाव स्कोरकार्ड के माध्यम से समाज पर उनके प्रभाव की निगरानी के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।