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डेली न्यूज़

  • 26 Mar, 2022
  • 51 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और ओमान: सहयोग कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

ओमान और उसके पड़ोसी देश, खाड़ी सहयोग परिषद, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), रक्षा अभ्यास, पोर्ट ऑफ डुकम, हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी।

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत के हित में देशों की नीतियाँ और राजनीति का प्रभाव, भारत-ओमान संबंध, भारत के लिये ओमान का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और ओमान ने वर्ष 2022-2025 की अवधि के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग कार्यक्रम (POC) पर हस्ताक्षर किये।

  • ओमान सरकार और भारत सरकार के बीच 5 अक्टूबर, 1996 को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग हेतु किये समझौते के अनुरूप 2022-2025 की अवधि के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग को लेकर पीओसी पर हस्ताक्षर किये गए।

Oman

सहयोग कार्यक्रम (POC):

  • औषधीय पौधे और प्रसंस्करण।
  • वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता निगरानी
  • आनुवंशिक संसाधनों के क्षेत्र में ज्ञान साझा करने के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक मंच का विकास।
  • सस्टेनेबिलिटी (इको-इनोवेट) एक्सेलेरेटर के क्षेत्र में छोटे एवं मध्यम आकार के उद्यमों (SMEs) के लिये तकनीकी विशेषज्ञता।
  • प्लास्टिक जैव-ईंधन और जैव-डीज़ल अनुसंधान (उदाहरण: निम्न-तापमान पर जैव-डीज़ल उत्पादन
  • उच्च मूल्य के उत्पादों का निष्कर्षण।
  • उद्योग को शिक्षा से जोड़ने वाले स्नातक कार्यक्रमों के लिये सॉफ्टवेयर का विकास।
  • ब्लॉकचेन और फिनटेक समाधान।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम- बिग-डेटा, कोडिंग और परीक्षण, एसटीईएम शिक्षण तथा  विज्ञान और प्रौद्योगिकी  से जुड़े अन्य क्षेत्र।

POC दस्तावेज़ के उद्देश्य:

  • दोनों देशों की भारतीय और ओमान संस्थानों द्वारा संयुक्त रूप से पारस्परिक हित पर आधारित संयुक्त वैज्ञानिक परियोजनाओं का समर्थन करना।
  • प्रौद्योगिकी विकसित करने के उद्देश्य से चयनित संयुक्त परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु वैज्ञानिकों, शोधकर्त्ताओं तथा विशेषज्ञों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना।
  • इससे अनुसंधान परिणामों का प्रसार होगा तथा अनुसंधान और विकास कार्यों के लिये उद्योगों के साथ संपर्क स्थापित होगा।
  • वैकल्पिक रूप से भारत और ओमान में वर्ष 2022 से 2025 की अवधि के दौरान पारस्परिक रूप से स्वीकार्य क्षेत्रों में प्रतिवर्ष कम-से-कम एक कार्यशाला आयोजित की जाएगी ।

भारत-ओमान संबंध के प्रमुख बिंदु:

  • भूमिका:
    • अरब सागर के दोनों देश एक-दूसरे से भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं तथा दोनों के बीच सकारात्मक एवं सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, जिसका श्रेय ऐतिहासिक समुद्री व्यापार संबंधों को दिया जाता है।
    • सल्तनत ऑफ ओमान (ओमान), खाड़ी देशों में भारत का रणनीतिक साझेदार है और खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council- GCC), अरब लीग तथा हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association- IORA) के लिये एक महत्त्वपूर्ण वार्ताकार है।
    • दिवंगत सुल्तान, काबूस बिन सईद अल सैद को भारत और ओमान के बीच संबंधों को मज़बूत करने तथा खाड़ी क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों को मान्यता देने हेतु गांधी शांति पुरस्कार 2019 दिया गया था।
  • रक्षा संबंध:
    •  संयुक्त सैन्य सहयोग समिति (JMCC):
      • JMCC रक्षा के क्षेत्र में भारत और ओमान के बीच जुड़ाव का सर्वोच्च मंच है।
      • JMCC की बैठक प्रतिवर्ष आयोजित होती है, लेकिन वर्ष 2018 में ओमान में आयोजित JMCC की 9वीं बैठक के बाद से इसका आयोजन नहीं किया जा सका।
    • सैन्य अभ्यास:
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
    • ओमान के साथ भारत अपने आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों के विस्तार को उच्च प्राथमिकता देता है। संयुक्त आयोग की बैठक (JCM) तथा संयुक्त व्यापार परिषद (JBC) जैसे संस्थागत तंत्र भारत व ओमान के बीच आर्थिक सहयोग को मज़बूती प्रदान करते हैं।
    • भारत, ओमान के शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में से एक है।
      • भारत, ओमान के लिये आयात का तीसरा सबसे बड़ा (UAE और चीन के बाद) स्रोत और वर्ष 2019 में इसके गैर-तेल निर्यात के लिये तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार (UAE और सऊदी अरब के बाद) था।
    • प्रमुख भारतीय वित्तीय संस्थानों की ओमान में उपस्थिति है। भारतीय कंपनियों ने ओमान में लोहा और इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, कपड़ा आदि क्षेत्रों में निवेश किया है।
    • भारत-ओमान संयुक्त निवेश कोष (OIJIF) जो भारतीय स्टेट बैंक और ओमान के स्टेट जनरल रिज़र्व फंड (SGRF) के बीच एक संयुक्त उपक्रम है तथा भारत में निवेश करने के लिये एक विशेष प्रयोजन वाहन है, का संचालन किया गया है।
  • ओमान में भारतीय समुदाय:
    • ओमान में करीब 6.2 लाख भारतीय रहते हैं, जिनमें से करीब 4.8 लाख कर्मचारी और पेशेवर हैं। ओमान में 150-200 से अधिक वर्षों से भारतीय परिवार रह रहे हैं।
    • यहाँ कई ऐसे भारतीय स्कूल हैं जो लगभग 45,000 भारतीय बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सीबीएसई (CBSE) पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।

भारत के लिये ओमान का सामरिक महत्त्व:

  • ओमान होर्मुज़ जलडमरूमध्य के प्रवेश द्वार पर है, जिसके माध्यम से भारत अपने तेल आयात के पाँचवें हिस्से का आयात करता है।
  • भारत-ओमान रणनीतिक साझेदारी की मज़बूती के लिये रक्षा सहयोग एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है। दोनों देशों के बीच रक्षा आदान-प्रदान एक ‘समझौता ज्ञापन’ फ्रेमवर्क द्वारा निर्देशित होते हैं जिसे हाल ही में वर्ष 2021 में नवीनीकृत किया गया था।
  • ओमान, खाड़ी क्षेत्र का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों सेनाएँ नियमित रूप से द्विपक्षीय अभ्यास और स्टाफ वार्ता आयोजित करती हैं, जिससे पेशेवर स्तर पर घनिष्ठ सहयोग और विश्वास को बल मिलता है।
  • ओमान ‘हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ (IONS) में भी सक्रिय रूप से भाग लेता है।
  • हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने हेतु एक रणनीतिक कदम के रूप में भारत ने सैन्य उपयोग और रसद समर्थन हेतु ओमान में दुकम के प्रमुख बंदरगाह तक पहुँच हासिल कर ली है। यह इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव एवं गतिविधियों का मुकाबला करने हेतु भारत की समुद्री रणनीति का हिस्सा है।
    • दुकम बंदरगाह ओमान के दक्षिण-पूर्वी समुद्र तट पर स्थित है।
    • यह रणनीतिक रूप से ईरान में चाबहार बंदरगाह के निकट स्थित है। मॉरीशस में सेशेल्स और अगालेगा में विकसित किये जा रहे ‘अज़म्पशन द्वीप’ के साथ दुकम भारत के सक्रिय समुद्री सुरक्षा रोडमैप में सही बैठता है।

आगे की राह

  • भारत के पास अपनी वर्तमान या भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त ऊर्जा संसाधन नहीं हैं। तेज़ी से बढ़ती ऊर्जा मांग ने ओमान जैसे देशों की दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी की आवश्यकता में योगदान दिया है।
  • ओमान का दुकम पोर्ट पूर्व में पश्चिम एशिया के साथ जुड़ने वाला अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन के मध्य में स्थित है।
  • भारत को दुकम पोर्ट औद्योगिक शहर के उपयोग के लिये ओमान के साथ जुड़ने और पहल करने की आवश्यकता है। 
  • भारत को इस क्षेत्र में रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाने और हिंद महासागर के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से में अपनी इंडो-पैसिफिक नीति को बढ़ावा देने के लिये ओमान के साथ मिलकर काम करना चाहिये।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है?

(a) ईरान
(b) सऊदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवैत

उत्तर: (a)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

लॉटरी पर कर अधिरोपण: सर्वोच्च न्यायालय

प्रिलिम्स के लिये:

ऑनलाइन गेमिंग, जुआ, कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम, 2021, ‘गेम ऑफ स्किल’, ‘गेम ऑफ चांस’, लॉटरी, सट्टेबाज़ी।

मेन्स के लिये:

निर्णय और मामले, ऑनलाइन गेमिंग और इसके प्रभाव, जुआ, सट्टेबाज़ी एवं लॉटरी से संबंधित कानून।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि एक राज्य विधायिका को अपने अधिकार क्षेत्र में अन्य राज्यों द्वारा आयोजित लॉटरी पर कर लगाने का अधिकार है।

  • इससे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम, 2021 के प्रमुख हिस्सों को खारिज करते हुए एक निर्णय दिया था, जिसमें ऑनलाइन जुआ और कौशल-आधारित गेमिंग (गेम ऑफ स्किल) प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (GST) अधिनियम, 2017 के तहत कर योग्य है।

इस निर्णय की पृष्ठभूमि:

  • यह फैसला कर्नाटक और केरल सरकारों द्वारा अपने संबंधित उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ दायर अपीलों पर दिया गया है, जिसमें केरल एवं कर्नाटक में नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर राज्यों द्वारा आयोजित और प्रचारित लॉटरी पर कर लगाने हेतु उनकी विधायिकाओं ने अधिनियमित कानूनों को रद्द कर दिया था।
  • उच्च न्यायालयों ने दोनों राज्यों द्वारा बनाए गए कर कानूनों को अमान्य और असंवैधानिक पाया था और यहाँ तक कि केरल एवं कर्नाटक को लॉटरी से कर के रूप में एकत्र किये गए धन को उत्तर-पूर्वी राज्यों को वापस करने का निर्देश दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • न्यायालय ने पाया कि 'लॉटरी' एक ‘जुआ गतिविधि’ है।
    • 'सट्टेबाज़ी और जुआ' संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची का विषय है।
    • ऐसे में राज्य सरकार को उन सभी गतिविधियों पर कर अधिरोपित करने की शक्ति प्राप्त है, जो लॉटरी सहित 'सट्टेबाज़ी और जुए' की प्रकृति की हैं।
    • सट्टेबाज़ी और जुआ एक प्रकार की व्यापक श्रेणी है जिसमें घुड़दौड़, व्हीलिंग व अन्य स्थानीय सट्टेबाज़ी एवं जुआ से संबंधित गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • अदालत ने कहा कि चूँकि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि लॉटरी भारत सरकार या राज्य सरकार या राज्य द्वारा अधिकृत है या राज्य सरकार या केंद्र सरकार की किसी एजेंसी या संस्था या किसी निजी अभिकर्त्ता द्वारा संचालित व आयोजित 'सट्टा और जुआ' है तथा राज्य विधानसभाओं के पास राज्य सूची की प्रविष्टि 62 के तहत लॉटरी पर कर लगाने का अधिकार है।
    • उक्त प्रविष्टि के तहत कराधान में सट्टेबाज़ी और जुआ जैसी गतिविधियों को शामिल किया जाता है जिसमें लॉटरी भी शामिल है, भले ही इनका संचालन किसी भी संस्था द्वारा किया जाता हो।

लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी से संबंधित केंद्रीय कानून: 

  • लॉटरी (विनियमन) अधिनियम, 1998:
    • इस अधिनियम के तहत भारत में लॉटरी को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान की गई है। लॉटरी का आयोजन राज्य सरकार द्वारा किया जाना चाहिये और लॉटरी के ड्रॉ का स्थान भी उस राज्य विशेष में ही होना चाहिये।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860:
    • यदि कोई सार्वजनिक स्थान पर अश्लील कार्य करता है या किसी भी सार्वजनिक स्थान या उसके आस-पास कोई अश्लील गीत गाता है या बोलता है तो संहिता में इससे संबंधित दंड का प्रावधान है
    • यदि सट्टेबाज़ी और जुए की गतिविधियों के विज्ञापन के लिये कोई अश्लील सामग्री का उपयोग करता है तो आईपीसी के प्रावधान लागू हो सकते हैं।
  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999:
    • इस अधिनियम के तहत लॉटरी, रेसिंग/राइडिंग से अर्जित आय के प्रेषण को प्रतिबंधित किया जाता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021:
    • इन नियमों के तहत कोई भी इंटरनेट सेवा प्रदाता, नेटवर्क सेवा प्रदाता या कोई भी सर्च इंजन ऐसी किसी भी सामग्री को उपलब्ध नहीं कराएगा जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुए (Gambling) का समर्थन करती हो।
  • आयकर अधिनियम, 1961:
    • भारत में वर्तमान कराधान नीति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी प्रकार के जुआ उद्योग को शामिल करती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सभी प्रकार से विनियमित एवं वैध जुआ भारत के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) द्वारा समर्थित है।

विगत वर्षों के प्रश्न 

भारतीय संसद को राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के किसी विषय या वस्तु पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है,  उस प्रस्ताव को निम्नलिखित में से किसके द्वारा पारित किया जाता है? (2016)

(a) लोकसभा की कुल सदस्यता के साधारण बहुमत द्वारा 
(b) लोकसभा की कुल सदस्यता के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा 
(c) राज्यसभा की कुल सदस्यता के साधारण बहुमत द्वारा 
(d) राज्यसभा के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा 

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू 


शासन व्यवस्था

निर्यात तत्परता सूचकांक 2021: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

निर्यात तत्परता सूचकांक, नीति आयोग, सकल घरेलू उत्पाद के घटक।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, संसाधन जुटाना, आर्थिक विकास दर में तेज़ी से वृद्धि हासिल करने के लिये निर्यात, निर्यात प्रोत्साहन के मुद्दों हेतु चुनौतियाँ और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग द्वारा जारी निर्यात तत्परता सूचकांक (Export Preparedness Index- EPI), 2021 के अनुसार, गुजरात को लगातार दूसरे वर्ष निर्यात तैयारियों के मामले में भारत का शीर्ष राज्य नामित किया गया है।

  • सूचकांक में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं, क्योंकि उच्च औद्योगिक गतिविधियों के साथ समुद्र तटीय बंदरगाहों वाले राज्य भारत के अधिकांश निर्यात के लिये ज़िम्मेदार हैं।

निर्यात तत्परता सूचकांक (EPI):

  • चुनौतियों और अवसरों की पहचान करना, सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता को बढ़ाना तथा निर्यात के लिये एक सुविधाजनक नियामक ढाँचे को प्रोत्साहित करना।
  • सूचकांक में 4 स्तंभ, 11 उप स्तंभ और 60 संकेतक शामिल हैं तथा इसमें 28 राज्य एवं 8 केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं।
  • चार स्तंभ: 
    • नीति: निर्यात और आयात के लिये रणनीतिक दिशा प्रदान करने वाली एक व्यापक व्यापार नीति।
    • बिज़नेस इकोसिस्टम: एक कुशल बिज़नेस इकोसिस्टम जो राज्यों को निवेश आकर्षित करने और स्टार्ट-अप शुरू करने हेतु व्यक्तियों के लिये एक सक्षम बुनियादी ढाँचा बनाने में मदद करता है।
    • निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र: कारोबारी माहौल का आकलन करना, जो निर्यात के लिये विशिष्ट हो।
    • निर्यात प्रदर्शन: यह एकमात्र आउटपुट-आधारित पैरामीटर है जो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात गतिविधियों की जाँच करता है।
  • ग्यारह उप-स्तंभ:
    • सूचकांक में 11 उप-स्तंभों- निर्यात प्रोत्साहन नीति; संस्थागत ढाँचा, व्यापारिक वातावरण, आधारभूत संरचना, परिवहन कनेक्टिविटी, वित्त तक पहुँच, निर्यात बुनियादी ढाँचा, व्यापार समर्थन अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना निर्यात विविधीकरण और विकास अभिविन्यास के आधार पर श्रेणी तैयार की गई है।
  • सूचकांक की विशेषताएँ: ईपीआई उप-राष्ट्रीय स्तर (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों) पर निर्यात को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण मुख्य क्षेत्रों की पहचान करने हेतु डेटा-संचालन का प्रयास है।
    • यह प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा किये गए विभिन्न योगदानों की जाँच कर भारत की निर्यात क्षमता पर प्रकाश डालता है।
  • भारतीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों का प्रदर्शन:

Indian-State

निर्यात तत्परता सूचकांक (EPI) का महत्त्व:

  • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात प्रदर्शन की जाँच: इस सूचकांक का उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात प्रदर्शन एवं निर्यात हेतु तैयारी की जांँच करना है। 
    • सूचकांक के पीछे निहित विचार इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को रैंकिंग प्रदान करने हेतु एक बेंचमार्क निर्मित करना है ताकि उन्हें इस क्षेत्र में एक अनुकूल निर्यात वातावरण को बढ़ावा देने में मदद मिल सके।
  • निर्यात में आने वाली बाधाओं की पहचान करने में सहांयक: सूचकांक नीति निर्माताओं और निर्यातकों को गति प्रदान करने, बाधाओं की पहचान करने तथा राज्य हेतु एक व्यवहार्य निर्यात की रणनीति बनाने और इसकी जांँच करने हेतु एक आवश्यक उपकरण है।
  • राज्य सरकार के लिये पथ-प्रदर्शक: सूचकांक राज्य सरकारों के लिये निर्यात प्रोत्साहन के संबंध में क्षेत्रीय प्रदर्शन को चिह्नित करने हेतु एक सहायक मार्गदर्शिका होगी और इस प्रकार निर्यात में सुधार एवं वृद्धि करने के बारे में महत्त्वपूर्ण नीतिगत अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।
  • राज्यों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा: इसका प्राथमिक लक्ष्य सभी भारतीय राज्यों ('तटीय', 'लैंडलॉक्ड', 'हिमालयी' और 'यूटी/सिटी-स्टेट्स') के बीच अनुकूल निर्यात-संवर्द्धन नीतियों को लागू कर प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना, नियमों को आसान बनाना, उप-राष्ट्रीय निर्यात को बढ़ावा देने व निर्यात के लिये आवश्यक बुनियादी ढांँचे का निर्माण तथा निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हेतु  रणनीतिक सिफारिशें प्रदान करना है।

भारतीय निर्यात के लिये चुनौतियाँ:

  • EPI भारत के निर्यात प्रोत्साहन प्रयासों के लिये तीन प्रमुख चुनौतियों की पहचान करता है।
    • निर्यात बुनियादी ढांँचे में भिन्नता और अंतर-क्षेत्रीय विभिद्ता।
    • राज्यों में कमज़ोर व्यापार समर्थन और विकास अभिविन्यास।
    • महत्त्वपूर्ण निर्यात को बढ़ावा देने हेतु अनुसंधान एवं विकास बुनियादी ढांँचे की कमी।

भारतीय निर्यात के संदर्भ में EPI:

  • निर्यात उन्मुख भारतीय अर्थव्यवस्था:
    • जीडीपी = निजी खपत + सकल निवेश + सरकारी निवेश + सरकारी खर्च + निर्यात-आयात।
    • इस प्रकार निर्यात जीडीपी मूल्यों को बढ़ाने के लिये एक आवश्यक घटक है।
    • निर्यात भारत के आर्थिक विकास का एक अविभाज्य घटक है क्योंकि पिछले एक दशक से निर्यात भारत के सकल घरेलू उत्पाद में औसतन लगभग 20% का योगदान कर रहा है।
  • कोविड-19 से रिकवरी: कोविड-19 महामारी ने मौजूदा आर्थिक ढाँचे को उलट दिया और वैश्विक व्यापार एवं अर्थव्यवस्था की सुभेद्यता को उजागर किया।
    • कोविड-19 महामारी के दो वर्ष बाद भी अर्थव्यवस्थाओं पर इसके प्रतिकूल प्रभाव से उबरना  बहुत चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। 
    • हालाँकि भारत ने निर्यात में काफी लचीलापन दर्शाया है और रिकॉर्ड स्तर पर उच्च विकास दर हासिल की है। भारत वित्त वर्ष 2021-22 की शुरुआत से निर्यात में सकारात्मक आँकड़े दर्ज कर रहा है और दिसंबर 2021 में भारत ने 37 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अब तक का सबसे अधिक निर्यात किया है, जो दिसंबर 2020 की तुलना में 37% अधिक है।

Covid-recovery

  • निर्यात बढ़ाने का सुझाव:
    • निर्यात अवसंरचना और बाज़ार संकेंद्रण: बेहतर निर्यात प्रदर्शन हेतु विश्वसनीय एवं कुशल निर्यात बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना आवश्यक है, जो लागत में कमी और निर्यात दक्षता में सुधार करने में मदद करेगा।
    • निर्यात विविधीकरण की आवश्यकता: यह निर्यात क्षेत्र में स्थिरता एवं विकास करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • निर्यात बुनियादी ढाँचे के विकास, उद्योग-अकादमिक संबंधों को मज़बूत करने और निर्यात में चुनौतियों का समाधान करने हेतु आर्थिक कूटनीति के लिये राज्य-स्तरीय जुड़ाव जैसी प्रमुख रणनीतियों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
    • निर्यात को बढ़ावा देने में निजी क्षेत्र भी अहम भूमिका निभा सकता है।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रश्न: फरवरी 2006 में लागू हुए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 के उद्देश्यों के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. अवसंरचनात्मक सुविधाओं का विकास।
  2. विदेशी स्रोतों से निवेश को बढ़ावा देना।
  3. केवल सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से इस अधिनियम का/के उद्देश्य है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

भारत में संस्थागत प्रसव

प्रिलिम्स के लिये:

जननी सुरक्षा योजना (JSY), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY), लक्ष्य कार्यक्रम, पोषण अभियान, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

महिलाएँ, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों से संबंधित मुद्दे, संस्थागत प्रसव के हालिया रुझान, संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम।

चर्चा में क्यों?

भारत को सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहन प्रदान करते हुए डेढ़ दशक हो गया है, लेकिन माताओं और शिशुओं के स्वास्थ्य संकेतकों में और इस तरह के प्रसवों की संख्या में उतना सुधार नहीं हुआ है।

संस्थागत प्रसव:

  • इसका अर्थ है प्रशिक्षित और सक्षम स्वास्थ्यकर्मियों की समग्र देख-रेख में एक चिकित्सा संस्थान में बच्चे को जन्म देना।
  • यह स्थिति को संभालने और माँ, बच्चे के जीवन को बचाने के लिये सुविधाओं की उपलब्धता का भी प्रतीक है।

भारत में संस्थागत प्रसव संबंधी हालिया रुझान: 

  • भारत में संस्थागत प्रसव की हिस्सेदारी वर्ष 2005-06 के 40.8% से बढ़कर वर्ष 2019-2021 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5) में 88.6% हो गई।
  • नौ लक्षित राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और असम ने इस अवधि के दौरान 50-64% अंक के बीच समान वृद्धि दर्ज की।
    • मध्य प्रदेश 64.5% अंक की वृद्धि के साथ सबसे आगे है।
    • इन राज्यों में भारत की लगभग आधी आबादी निवास करती है एवं यहाँ 60% से अधिक मातृ मृत्यु, 70% शिशु मृत्यु और 12% वैश्विक मातृ मृत्यु दर है।
  • मातृ मृत्यु दर (MMR), शिशु मृत्यु दर और नवजात मृत्यु दर (NMR) में संस्थागत जन्म के समान गति से सुधार नहीं हुआ है।
    • नौ फोकस राज्यों में उच्चतम एमएमआर जारी है, जिनमें से अधिकांश भारत के राष्ट्रीय औसत 103 से काफी आगे हैं।
  • भारत के राज्यों के दो समूहों में स्वास्थ्य सेवा वितरण और सेवा उपयोग में बहुत भिन्नता है- राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन करने वाले और पीछे रहने वाले।
    • समग्र रूप से देश वर्ष 2030 तक MMR को 70 तक कम करने के संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम हो सकता है, लेकिन जब तक कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, तब तक पिछड़ने वाले राज्यों का खराब प्रदर्शन जारी रह सकता है।

भारत में संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम:

  • जननी सुरक्षा योजना: वर्ष 2005 में जननी सुरक्षा योजना (JSY) के साथ संस्थागत प्रसव को पहली बार केंद्र सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया गया था। इस योजना के तहत अगर किसी महिला ने घर के बजाय किसी चिकित्सा सुविधा में बच्चे को जन्म दिया है तो उसे सीधे नकद राशि का हस्तांतरण किया जाता है। 
    • जननी सुरक्षा योजना एक 100% केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
  • जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): जून, 2011 में भारत सरकार ने जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (Janani Shishu Suraksha Karyakram- JSSK) शुरू किया।
    • यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य प्रसव और सीजेरियन ऑपरेशन तथा बीमार नवजात (जन्म के 30 दिन बाद तक) सहित गर्भवती महिलाओं को पूरी तरह से मुफ्त एवं कैशलेस सेवाएंँ प्रदान करने की एक पहल है।
    • वर्ष 2013 में "प्रसवपूर्व और प्रसव के बाद की अवधि के दौरान की जटिलताओं तथा एक वर्ष तक के बीमार शिशुओं" के इलाज की लागत को भी योजना के दायरे में लाया गया था।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA): एनीमिया के मामलों का पता लगाने और उसका इलाज करने के लिये चिकित्सा अधिकारियों की मदद से हर महीने की 9 तारीख को विशेष प्रसवपूर्व जाँच (AnteNatal Check-ups- ANC) पर ध्यान केंद्रित करने हेतु इसे शुरू किया गया है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): यह एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है जिसे 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
  • लक्ष्य कार्यक्रम: लक्ष्य (लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव) का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • पोषण अभियान: पोषण अभियान का लक्ष्य बच्चों (0-6 वर्ष) और गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है।
  • राज्य सरकार की योजनाएँ: राज्य स्तर पर इसी तरह की प्रोत्साहन-संचालित योजनाओं में मध्य प्रदेश में श्रमिक सेवा प्रसूति सहायता योजना, हरियाणा में जननी सुविधा योजना, पश्चिम बंगाल में आयुषमती योजना, असम और गुजरात में चिरंजीवी योजना तथा दिल्ली में ममता फ्रेंडली अस्पताल योजनाएँ शामिल हैं।

आगे की राह 

  • समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता: संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएंँ सुरक्षित जन्म सुनिश्चित करने हेतु पर्याप्त नहीं हैं। बुनियादी ढांँचे और मानव संसाधन की कमियों को दूर करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • उपयोग के वास्तविक पैटर्न पर केंद्रित एक बुनियादी अवसंरचना विकास परियोजना मौजूदा अंतराल को कम करने में मददगार हो सकती है।
  • कार्यबल को सुदृढ़ बनाना: उल्लेखनीय परिवर्तन लाने हेतु विभिन्न सरकारी योजनाओं के वितरण में शामिल कार्यबल को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • पात्रता मानदंड का विस्तार: ऐसी योजनाओं के लिये पात्रता मानदंड का विस्तार करने की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान में इसमें ऐसे कई लोग शामिल नहीं हैं, जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है।
    • कुछ योजनाएँ तभी लागू होती हैं जब माँ की आयु 19 वर्ष या उससे अधिक हो, कुछ केवल पहले बच्चे के लिये हैं और कुछ के लिये 'गरीबी रेखा से नीचे' का होना अनिवार्य है।
    • गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली एक 18 वर्षीय गर्भवती महिला सबसे अधिक असुरक्षित है।
  • योजना की निगरानी: योजना के परिणामों की बेहतर निगरानी के लिये एक आदर्श संस्थागत वितरण को परिभाषित करने की आवश्यकता है, इसलिये यह समझने हेतु परिणामों की निगरानी करने की आवश्यकता है कि योजना वास्तव में कितनी सफल है।
  • डेटा अंतराल को कम करना: भारत को भी डेटा अंतराल को कम करना चाहिये, प्रत्येक संस्थान को रुग्णता और मृत्यु दर डेटा को नियमित रूप से प्रकाशित करना चाहिये। स्वास्थ्य केंद्रों को भी इसके अधिक भार से निपटने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रश्न. ‘मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से-कौन सा/से सही है/हैं? (2019)

  1. गर्भवती महिलाएँ तीन महीने की डिलीवरी से पहले और तीन महीने की डिलीवरी के बाद सवैतनिक छुट्टी की हकदार हैं।
  2. क्रेच वाले उद्यमों में माँ को प्रतिदिन कम-से-कम छह बार शिशु गृहों में जाने की अनुमति होनी चाहिये।
  3. दो बच्चों वाली महिलाओं को कम अधिकार प्राप्त हैं।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
  3. बाज़रा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
  4. मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

आपराधिक कानूनों में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय दंड संहिता जैसे- आपराधिक कानून, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम

मेन्स के लिये:

न्यायपालिका, आपराधिक कानूनों में सुधार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सरकार द्वारा भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम जैसे आपराधिक कानूनों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की गई है।

  • इस क्रम में गृह मंत्रालय ने विभिन्न हितधारकों जैसे- राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, भारत के मुख्य न्यायाधीश, विभिन्न उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों आदि से सुझाव मांगे हैं।
  • इससे पूर्व 111वीं, 128वीं और 146वीं संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि देश की आपराधिक न्याय प्रणाली की व्यापक समीक्षा की आवश्यकता है।

प्रमुख बिंदु 

आपराधिक न्याय प्रणाली की पृष्ठभूमि: 

  • भारत में आपराधिक कानूनों का संहिताकरण (Codification) ब्रिटिश शासन के दौरान किया गया था जो कमोबेश 21वीं सदी में भी उसी तरह ही है।
  • लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले (Lord Thomas Babington Macaulay) को भारत में आपराधिक कानूनों के संहिताकरण का मुख्य वास्तुकार कहा जाता है।
  • भारत में आपराधिक कानून भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) आदि के तहत संचालित होते हैं।
  • आपराधिक कानून को राज्य एवं उसके नागरिकों के बीच संबंधों की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति माना जाता है।

सुधारों की आवश्यकता: 

  • औपनिवेशिक युग के कानून: आपराधिक न्याय प्रणाली ब्रिटिश औपनिवेशिक न्यायशास्त्र की प्रतिकृति है, जिसे राष्ट्र पर शासन करने और नागरिकों को दबाने के उद्देश्य से बनाया गया था।
  • अप्रभावी: आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य निर्दोषों के अधिकारों की रक्षा करना और दोषियों को दंडित करना था, लेकिन आजकल यह व्यवस्था आम लोगों के उत्पीड़न का एक साधन बन गई है।
  • मामलों की लंबितता: आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, न्यायिक प्रणाली में लगभग 3.5 करोड़ मामले लंबित हैं, विशेष रूप से ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में, जो कि ’न्याय में देरी यानी न्याय से वंचित होने’ की कहावत की वास्तविकता को दर्शाता है।
  • विचाराधीन कैदियों की अत्यधिक संख्या: भारत में दुनिया के सबसे अधिक विचाराधीन कैदी मौजूद है।
  • जाँच: भ्रष्टाचार, अत्यधिक कार्यभार और पुलिस की जवाबदेही न्याय के त्वरित और पारदर्शी वितरण में एक बड़ी बाधा है।
  • माधव मेनन समिति: इसने 2007 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (CJSI) में सुधारों पर विभिन्न सिफारिशों का सुझाव दिया गया था।
  • मलिमथ समिति की रिपोर्ट: इसने वर्ष 2003 में CJSI को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
    • इस समिति ने कहा था कि मौजूदा प्रणाली ‘अभियुक्तों के पक्ष में अधिक झुकी हुई है और इसमें अपराध पीड़ितों के लिये न्याय पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
    • इस समिति ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली (CJSI) में सुधार हेतु विभिन्न सिफारिशें प्रदान की हैं किंतु इन्हें लागू नहीं किया गया था।

सुधार की रूपरेखा क्या होनी चाहिये?

  • पीड़ितों का संरक्षण: पीड़ितों के अधिकारों की पहचान करने के लिये कानूनों में सुधार हेतु ‘पीड़ित होने के कारणों’ पर खासतौर पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
    •  उदाहरण: पीड़ित एवं गवाह संरक्षण योजनाओं का शुभारंभ, अपराध पीड़ित के बयानों का उपयोग, आपराधिक परीक्षणों में पीड़ितों की भागीदारी में वृद्धि, मुआवज़े एवं पुनर्स्थापन हेतु पीड़ितों की पहुँच में वृद्धि।
  • नए अपराधों और अपराधों के मौजूदा वर्गीकरण के पुनर्मूल्यांकन को आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये जो पिछले चार दशकों में काफी बदल गए हैं। 
    • उदाहरण: ‘डिग्री ऑफ पनिशमेंट’ (Degree of Punishments) हेतु आपराधिक दायित्व को बेहतर तरीके से वर्गीकृत किया जा सकता है। 
    • नए प्रकार के दंड जैसे- सामुदायिक सेवा आदेश, पुनर्स्थापन आदेश तथा पुनर्स्थापना एवं सुधारवादी न्याय के अन्य पहलू भी इसमें शामिल किये जा सकते हैं।
  • आईपीसी और सीआरपीसी को सुव्यवस्थित करना: अपराधों का वर्गीकरण भविष्य में अपराध प्रबंधन के अनुकूल तरीके से किया जाना चाहिये।
    • आईपीसी के कई अध्याय कई जगह अतिभारित हैं।
    • लोक सेवकों के विरुद्ध अपराध, प्राधिकार की अवमानना, सार्वजनिक शांति और अतिचार के अध्यायों को फिर से परिभाषित एवं संकुचित किया जा सकता है।
  • गैर-सैद्धांतिक अपराधीकरण को रोकना: किसी अधिनियम को अपराध के रूप में घोषित करने से पहले पर्याप्त बहस के बाद मार्गदर्शक सिद्धांतों को विकसित करने की आवश्यकता है।
    • गैर-सैद्धांतिक अपराधीकरण न केवल अवैज्ञानिक आधारों पर नए अपराधों के निर्माण की ओर ले जाता है, बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली में मनमानी भी करता है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बुखारेस्ट नाइन

प्रिलिम्स के लिये:

बुखारेस्ट नाइन, शीत युद्ध, यूरोपीय संघ और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन, ‘थ्री सी इनिशिएटिव’, ‘बी-9’ देशों की अवस्थिति।

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, रूस-यूक्रेन युद्ध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘बुखारेस्ट नाइन’ (बी-9) ने उत्तर-अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के पूर्व की ओर "विस्तार" के रूसी दावे को खारिज कर दिया।

  • उन्होंने रेखांकित किया कि नाटो एक ऐसा संगठन नहीं है जिसने पूर्व में "विस्तार" किया है, बल्कि इन देशों ने ही स्वतंत्र यूरोपीय राज्यों के रूप में पश्चिम में जाने का फैसला किया है।

Bucharest-Nine

‘बुखारेस्ट नाइन’ (बी-9):

  • ‘बुखारेस्ट नाइन’ (बी-9) पूर्वी यूरोप में नौ नाटो देशों का एक समूह है। ज्ञात हो कि पूर्वी यूरोप के ये देश शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन- नाटो का हिस्सा बन गए थे।
  • ‘बी-9’ या बुखारेस्ट नाइन 4 नवंबर, 2015 को स्थापित किया गया था।
  • इसका नाम रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट से लिया गया है।
  • B9 को नाटो गठबंधन में "पूर्वी पक्ष की आवाज़" (Voice of the Eastern Flank) के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह समूह क्लाउस इओहानिस जो रोमानिया के राष्ट्रपति रहे हैं तथा बुखारेस्ट में मध्य एवं पूर्वी यूरोप के राज्यों की उच्च स्तरीय बैठक में अगस्त 2015 में पोलैंड के राष्ट्रपति बने आंद्रेजेज़ डूडा द्वारा बनाया गया था।
  • B9 के सदस्य देशों में रोमानिया, पोलैंड, हंगरी, बुल्गारिया, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया तथा एस्टोनिया, लातविया व लिथुआनिया के तीन बाल्टिक गणराज्य शामिल हैं।
  • B9, नाटो के सदस्यों के बीच सहयोग, संबद्ध राज्यों के बीच संवाद और परामर्श को गहरा करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
    • पहले ये सभी नौ देश विघटित सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे, जिन्होंने बाद में लोकतंत्र का रास्ता चुना।
  • B9 के सभी सदस्य यूरोपीय संघ (EU) और NATO का हिस्सा हैं।
  • B9 देश वर्ष 2014 के बाद जब डोनबास में युद्ध शुरू हुआ तथा रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था तब से ये देश यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता के आलोचक रहे हैं।

थ्री सीज़ इनिशिएटिव

  • B9 को थ्री सीज़ इनिशिएटिव (3SI) के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिये।
  • 3SI यूरोप में सीमा पार ऊर्जा, परिवहन और डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विस्तार करने तथा एड्रियाटिक सागर, बाल्टिक सागर एवं काला सागर के बीच के क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये एक क्षेत्रीय प्रयास है।
  • बारह देश (ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया) जो सभी यूरोपीय संघ के सदस्य हैं, 3SI में भाग लेते हैं।

Seas-Initiative

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रश्न: देशों के एक समूह जिसे ब्रिक्स के रूप में जाना जाता है, के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. ब्रिक्स का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रियो डी. जेनेरियो में आयोजित किया गया था।
  2. दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स में शामिल होने वाला अंतिम देश था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c)
1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न: क्षेत्रीय सहयोग हेतु हिन्द महासागर तटीय सहयोग संघ (IOR-ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसे हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल रिसाव की दुर्घटनाओं के जवाब में स्थापित किया गया था।
  2. यह केवल समुद्री सुरक्षा के लिये बनाया गया गठबंधन है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


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