मैप
जैव विविधता और पर्यावरण
स्काईग्लो
प्रिलिम्स के लिये:आकाश-प्रदीप्ति/स्काईग्लो, लाइट पॉल्यूशन, सर्केडियन क्लॉक, डार्क स्काई। मेन्स के लिये:स्काईग्लो और इसके निहितार्थ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन में पता चला है कि वर्ष 2011 और 2022 के बीच गैर-प्राकृतिक प्रकाश ने पारिस्थितिक, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक प्रभाव के साथ स्काईग्लो की चमक में प्रतिवर्ष 9.2-10% की वृद्धि की है।
- शोधकर्त्ताओं ने वैश्विक डेटाबेस का विश्लेषण किया कि किसी विशेष स्थान से दिखाई देने वाला सबसे धुँधला तारा क्या है, विदित हो कि डेटाबेस में वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत 51,000 से अधिक प्रविष्टियाँ थीं।
स्काईग्लो/आकाश-प्रदीप्ति
- स्काईग्लो शहरों में और उनके आस-पास रात के समय आकाश में प्रकाश की एक सर्वव्यापी चादर है जो सबसे चमकीले सितारों को छोड़कर सभी को अवरुद्ध कर सकती है।
- रात के समय रिहायशी इलाकों में आसमान का चमकना स्ट्रीट लाइट, सुरक्षित फ्लडलाइट और बाहरी सजावटी रोशनी स्काईग्लो का कारण बनता है।
- यह प्रकाश सीधे रात्रिचर (रात में सक्रिय) जीवों की आँखों पर पड़ता है तथा उन्हें मार्ग से भटकाने का कार्य करता है।
- स्काईग्लो' प्रकाश प्रदूषण के घटकों में से एक है।
स्काईग्लो परिदृश्य:
- वैश्विक:
- यूरोप में लगभग 6.5%, उत्तरी अमेरिका में 10.4% और शेष विश्व में 7.7% स्काईग्लो परिदृश्य देखा गया है।
- यह खोज महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उपग्रह आधारित आँकड़ों का खंडन करती है, जिसमें वृद्धि की वार्षिक दर लगभग 2% बताई गई थी।
- यह अंतर संभवतः उपग्रहों द्वारा पृथ्वी के समानांतर उत्सर्जित प्रकाश संबंधी करने और LED द्वारा उत्सर्जित नीली रोशनी का "पता लगाने" में असमर्थता के कारण है।
- भारत:
- वर्ष 2016 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 19.5% आबादी, जो कि G20 देशों में सबसे कम है, स्काईग्लो के उस स्तर का अनुभव करती है, जो कम-से-कम मिल्की वे आकाशगंगा को अदृश्य रखेगा तथा अधिकांश "मानव आँखों के लिये अँधेरे संबंधी अनुकूलन" को असंभव बना देगा
- इसके अंतर्गत मानव आँखों में कोन सेल्स (Cone Cells) को उत्तेजित करना शामिल है, जो केवल अच्छी तरह से प्रकाशित वातावरण में ही संभव है।
- वर्ष 2017 के एक अध्ययन से पता लगाया गया था कि वर्ष 2012 और 2016 के बीच भारत के प्रकाशित क्षेत्र (Lit Area ) में 1.07-1.09% की वृद्धि हुई थी और "स्थिर रूप से प्रकाशित क्षेत्रों" के औसत प्रकाश में 1.05-1.07% की वृद्धि हुई (दावानल की घटनाओं को इससे अलग रखते हुए)।
स्काईग्लो के निहितार्थ:
- ऊर्जा और धन की बर्बादी:
- ऐसे स्रोत जिनसे प्रकाश ऐसी जगह भी पहुँच रहा हो, जहाँ समय या स्थान तथा आवश्यकता का ध्यान नहीं रखा जा रहा हो, तब भी यह व्यर्थ ही है। ऊर्जा नष्ट करने के हानिकारक आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम होते हैं।
- वन्यजीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करना:
- प्रजनन, पोषण, नींद और शिकारियों से सुरक्षा जैसे जीवन-निर्वाह व्यवहारों को नियंत्रित करने हेतु पौधे व जानवर पृथ्वी पर दिन एवं रात के प्रकाश के दैनिक चक्र पर निर्भर करते हैं।
- वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि रात में कृत्रिम प्रकाश उभयचरों, पक्षियों, स्तनधारियों, कीड़ों और पौधों सहित कई जीवों पर नकारात्मक एवं घातक प्रभाव डालता है।
- उदाहरण: प्रकाशित समुद्र तट समुद्री कछुओं को घोसले से बाहर आने से रोकते हैं। कृत्रिम प्रकाश पौधों को मौसमी विविधताओं को महसूस करने से रोकता है।
- रात में कृत्रिम प्रकाश के संपर्क में आने पर क्लाउनफिश के अंडे परिपक्व नहीं हो पाते हैं, जिससे इनके बच्चे मर जाते हैं।
- मानव स्वास्थ्य को नुकसान:
- पृथ्वी पर अधिकांश जीवों की तरह मनुष्य एक सर्केडियन विधि का पालन करते हैं जिसे हम जैविक घड़ी या दिन-रात चक्र द्वारा शासित नींद-जागने के एक पैटर्न के रूप में उपयोग करते हैं। रात में कृत्रिम प्रकाश इस चक्र को बाधित कर सकता है।
- वर्ष 2009 की एक छोटी सी समीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि सर्केडियन व्यवधान, जिसने मेलाटोनिन के स्तर को बदल दिया, नाइट-शिफ्ट श्रमिकों के बीच स्तन कैंसर के जोखिम को 40% तक बढ़ा दिया।
- रात्रिकालीन आकाश का विलोपन तारों के स्थानीय संबंध को नष्ट करने का कार्य करता है, जो सांस्कृतिक और पारिस्थितिक ह्रास के रूप में कार्य करता है।
समाधान:
- शोधकर्त्ता प्रकाश स्रोतों को क्षितिज के तल के नीचे एक कोण पर प्रकाश डालने की सलाह देते हैं, ये स्रोतों के उत्सर्जन को कैप करते हैं और उनके आउटपुट को उस स्थान पर कुल चमक के अनुसार कैलिब्रेट करते हैं।
- जहाँ रोशनी बंद नहीं की जा सकती है, वहाँ ढाल का निर्माण किया जा सकता है ताकि वे आसपास के वातावरण और आकाश में प्रकाश न फैला सकें।
- इंटरनेशनल डार्क-स्काइज़ एसोसिएशन ने 130 से अधिक 'इंटरनेशनल डार्क स्काई प्लेसेस' को प्रमाणित किया है, जहाँ स्काईग्लो और प्रकाश के अतिचार को कम करने के लिये कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था को समायोजित किया गया है। हालाँकि लगभग सभी विकसित देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं।
- कम विकसित क्षेत्रों में अक्सर पर्याप्त प्रजातियों पाई जाती हैं और कम प्रकाश-प्रदूषित होते हैं, जो जानवरों के गंभीर रूप से प्रभावित होने से पूर्व प्रकाश समाधान हेतु निवेश करने का अवसर प्रदान करते हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
जीवाश्म से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण के जोखिम
प्रिलिम्स के लिये:स्वच्छ ऊर्जा, हरित संक्रमण, शुद्ध शून्य, जीवाश्म ईंधन। मेन्स के लिये:जीवाश्म से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण की चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल एन्वायरनमेंटल चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत का वित्तीय क्षेत्र अर्थव्यवस्था की बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता तथा स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण से उत्पन्न होने वाले जोखिमों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
अध्ययन के निष्कर्ष:
- संक्रमण के नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं:
- भारत का वित्तीय क्षेत्र जीवाश्म ईंधन से संबंधित गतिविधियों के लिये अत्यधिक जोखिम में है और जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण का इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- तेल और गैस निष्कर्षण खनन ऋण का 60% हिस्सा है।
- विनिर्माण क्षेत्र का 20% ऋण पेट्रोलियम रिफाइनिंग और संबंधित उद्योगों के लिये है।
- बिजली उत्पादन कार्बन उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है, जो कुल बकाया ऋण का 5.2% है।
- भारत का वित्तीय क्षेत्र जीवाश्म ईंधन से संबंधित गतिविधियों के लिये अत्यधिक जोखिम में है और जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण का इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- विशेषज्ञों की कमी:
- भारत के वित्तीय संस्थानों में ऐसे विशेषज्ञों की कमी है जिनके पास जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा में संक्रमण हेतु संस्थानों को उचित सलाह देने की विशेषज्ञता होती है।
- सर्वेक्षण किये गए दस प्रमुख वित्तीय संस्थानों में से केवल चार पर्यावरण, सामाजिक एवं शासन (ESG) जोखिमों पर जानकारी एकत्र करते हैं और ये फर्म भी व्यवस्थित रूप से उस डेटा को वित्तीय नियोजन में शामिल नहीं करते हैं।
- घाटे और तनाव को सहने की कम क्षमता:
- उच्च कार्बन उद्योग- विद्युत उत्पादन, रसायन, लौह एवं इस्पात तथा विमानन में भारतीय वित्तीय संस्थानों के बकाया ऋण का 10% हिस्सा है।
- हालाँकि ये उद्योग भी भारी ऋणग्रस्त हैं और इसलिये घाटे एवं तनाव को सहन करने की इनकी कम वित्तीय क्षमता है।
- यह संक्रमण से जुड़े भारत के वित्तीय क्षेत्र के जोखिम को उजागर करेगा।
- अधिक प्रदूषणकारी एवं अधिक महँगी ऊर्जा आपूर्ति:
- भारतीय बैंकों और संस्थागत निवेशकों के वित्तीय निर्णय देश को अधिक प्रदूषणकारी और अधिक महँगी ऊर्जा आपूर्ति की ओर ले जा रहे हैं।
- उदाहरण के लिये विद्युत क्षेत्र को दिये गए कुल बैंक ऋण का केवल 17.5% विशुद्ध रूप से नवीकरणीय ऊर्जा हेतु प्रदान किया गया है।
- नतीजतन भारत में विश्व औसत की तुलना में कार्बन-स्रोतों से अधिक विद्युत उत्पादन होता है।
- वर्तमान में कोयले का भारत के प्राथमिक ऊर्जा स्रोतों में लगभग 44% का योगदान है तथा विद्युत वितरण में इसका 70% हिस्सा है।
- देश के कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों की औसत आयु 13 वर्ष है और भारत में 91,000 मेगावाट की नई प्रस्तावित कोयला क्षमता पर काम चल रहा है, जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
- राष्ट्रीय विद्युत योजना 2022 के मसौदे के अनुसार, विद्युत् उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2030 तक घटकर 50% हो जाएगी।
- क्षमता:
- वर्तमान ऋण और निवेश पैटर्न से पता चलता है कि भारत का वित्तीय क्षेत्र संभावित संक्रमण जोखिमों से भलीभाँति अवगत है।
- हालाँकि जोखिम का दूसरा पक्ष स्थायी परिसंपत्तियों और गतिविधियों की ओर वित्त को स्थानांतरित करने का सुलभ अवसर है।
- वर्ष 2021 में भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से अपनी आधी बिजली ज़रूरतों (50%) को पूरा करने की योजना की भी घोषणा की है।
- इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये कम-से-कम एक ट्रिलियन डॉलर के वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. देश में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित वर्तमान स्थिति और प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों का विवरण दीजिये। प्रकाश उत्सर्जक डायोड (Light Emitting Diodes- LED) पर राष्ट्रीय कार्यक्रम के महत्त्व पर संक्षेप में चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016) प्रश्न. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र को बनाए रखा जाना चाहिये? आर्थिक विकास के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना, पन्ना टाइगर रिज़र्व, NGT, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना। मेन्स के लिये:केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP) पर एक बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें कहा गया कि यह केंद्र सरकार की "प्रमुख" परियोजना है और "बुंदेलखंड क्षेत्र" की जल सुरक्षा एवं सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है"।
- दिसंबर 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुल 44,605 करोड़ रुपए की लागत की KBLP परियोजना को मंज़ूरी दी।
- राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों के कारण परियोजना में देरी हुई है।
केन-बेतवा लिंक परियोजना:
- परिचय:
- केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Link Project- KBLP) नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है, इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मध्य प्रदेश की केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में हस्तांतरित करना है।
- यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के झाँसी, बांदा, ललितपुर और महोबा ज़िलों तथा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, पन्ना तथा छतरपुर ज़िलों में फैला हुआ है।
- इस परियोजना में 77 मीटर लंबा तथा 2 किमी. चौड़ा दौधन बांँध (Dhaudhan Dam) एवं 230 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण कार्य शामिल है।
- केन-बेतवा देश की 30 नदियों को जोड़ने हेतु शुरू की गई नदी जोड़ो परियोजनाओं (River Interlinking Projects ) में से एक है।
- केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Link Project- KBLP) नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है, इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मध्य प्रदेश की केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में हस्तांतरित करना है।
- महत्त्व:
- बहुउद्देश्यीय बाँध के निर्माण से न केवल जल संरक्षण में तेज़ी आएगी, बल्कि 103 मेगावाट जल-विद्युत के उत्पादन के साथ ही 62 लाख लोगों हेतु पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
परियोजना से संबंधित चिंताएँ:
- पर्यावरणीय:
- कुछ पर्यावरणीय और वन्यजीव संरक्षण संबंधी चिंताओं जैसे- पन्ना बाघ अभयारण्य के महत्त्वपूर्ण बाघ आवास क्षेत्र का हिस्सा इस परियोजना में आता है, के कारण राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) तथा अन्य उच्च अधिकारियों से अनुमोदन प्राप्त करने में हो रही देरी की वजह से यह परियोजना अटकी हुई है।
- आर्थिक:
- परियोजना के कार्यान्वयन और रखरखाव के साथ एक बड़ी आर्थिक लागत जुड़ी हुई है, जो परियोजना के कार्यान्वयन में देरी के कारण बढ़ रही है।
- सामाजिक:
- इस परियोजना के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप हुए विस्थापन के कारण पुनर्निर्माण और पुनर्वास में सामाजिक लागत भी शामिल होगी।
- इस बात की भी चिंता है कि यह परियोजना पन्ना ज़िले की जल सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है।
- वैधानिक:
- KBLP को दी गई स्वीकृति में वैधानिक समस्याएँ भी हैं।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 35(6) के प्रावधान के अनुसार, केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति द्वारा अनुमोदन वन्यजीवों के सुधार और बेहतर प्रबंधन हेतु आवश्यक साबित नहीं हुआ है।
नदियों को आपस में जोड़ने हेतु राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना:
- राष्ट्रीय नदी लिंक परियोजना ( (The National River Linking Project- NRLP)), जिसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के रूप में जाना जाता है, अंतर-बेसिन जल अंतरण परियोजनाओं के माध्यम से जल का हस्तांतरण जल 'अधिशेष' वाले बेसिनों (जहाँ बाढ़ आती है) से जल की कमी वाले बेसिनों में (जहाँ सूखा होता है) करने की कल्पना की गई है।
- राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan- NPP) के तहत राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency- NWDA) ने उपयोगिता रिपोर्ट (Feasibility Reports- FR) तैयार करने के लिये 30 लिंकों (प्रायद्वीपीय क्षेत्र के तहत 16 और हिमालयी क्षेत्र के तहत 14) की पहचान की है।
- जल की अधिकता वाले बेसिनों से जल की कमी वाले बेसिनों में जल स्थानांतरित करने के लिये यह NPP अगस्त 1980 में तैयार किया गया था।
केन और बेतवा नदी:
- केन और बेतवा नदियों का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश में है, ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं।
- केन नदी उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में यमुना नदी में मिलती है तथा बेतवा नदी से यह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर ज़िले में मिलती है।
- राजघाट, पारीछा और माताटीला बाँध बेतवा नदी पर निर्मित हैं।
- केन नदी पन्ना बाघ अभयारण्य से होकर गुज़रती है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केन-बेतवा नदी जोड़ने वाली परियोजना के वित्तपोषण को मंज़ूरी दी
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय पर्यटन दिवस
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय पर्यटन दिवस, इको-टूरिज़्म, भारत में पर्यटन मंत्रालय, सकल घरेलू उत्पाद, सतत् पर्यटन, स्वदेश दर्शन योजना, देखो अपना देश पहल, राष्ट्रीय हरित पर्यटन मिशन, राष्ट्रीय पर्यटन दिवस, विश्व पर्यटन दिवस। मेन्स के लिये:भारत में पर्यटन क्षेत्र की स्थिति, पर्यटन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में पर्यटन से संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
भारत की प्राकृतिक सुंदरता को पहचानने और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये पर्यटन के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है।
- भारत दुनिया भर के आगंतुकों के लिये शीर्ष पर्यटक आकर्षणों में से एक है। इसलिये सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से भारत में पर्यटन का काफी महत्त्व है।
भारत में पर्यटन क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- भारत पर्यटन का एक विविध पोर्टफोलियो प्रदान करता है, जिसमें इको-टूरिज़्म, परिभ्रमण, व्यवसाय, खेल, शैक्षिक, ग्रामीण और चिकित्सा यात्राएँ शामिल हैं।
- भारत में पर्यटन मंत्रालय पर्यटन को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिये देश की राष्ट्रीय नीतियों को तैयार करने हेतु ज़िम्मेदार है।
- यह स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ भी सहयोग करता है।
- अर्थव्यवस्था में योगदान:
- विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार, वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा और पर्यटन के कुल योगदान के मामले में भारत 6वें स्थान पर है।
- यात्रा और पर्यटन ने सकल घरेलू उत्पाद में 5.8% का योगदान दिया और इस क्षेत्र ने 32.1 मिलियन नौकरियाँ सृजित कीं, जो वर्ष 2021 की कुल नौकरियों के 6.9% के बराबर है।
- साथ ही भारत वर्तमान में विश्व आर्थिक मंच के यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (2021) में 54वें स्थान पर है।
- ग्लोबल डेटा के अनुसार, देश में अंतर्राष्ट्रीय आगमन वर्ष 2022 में 7.2 मिलियन और वर्ष 2023 में 8.6 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
- विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार, वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा और पर्यटन के कुल योगदान के मामले में भारत 6वें स्थान पर है।
- पर्यटन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- प्रशिक्षण और कौशल विकास का अभाव: यह देखते हुए कि पर्यटन उद्योग एक श्रम प्रधान क्षेत्र है, यह निर्विवाद है कि व्यावहारिक प्रशिक्षण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- लेकिन वर्षों से प्रशिक्षित जनशक्ति की उपलब्धता भारत में पर्यटन क्षेत्र के विकास के साथ तालमेल नहीं बिठा पाई है।
- संसाधनों का अतिदोहन: अस्थिर पर्यटन अक्सर प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक उपभोग के माध्यम से दबाव डालता है, विशेष रूप से भारत के हिमालयी क्षेत्रों में जहाँ संसाधन पहले से ही दुर्लभ हैं।
- अस्थिर पर्यटन स्थानीय भूमि उपयोग को भी प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप मृदा क्षरण, प्रदूषण में वृद्धि और लुप्तप्राय प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों का नुकसान होता है।
- बुनियादी सुविधा और सुरक्षा की कमी: यह भारतीय पर्यटन क्षेत्र के लिये एक बड़ी चुनौती है। इसमें बहु व्यंजन रेस्तराँ, बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं, सार्वजनिक परिवहन और स्वच्छता एवं पर्यटकों की सुरक्षा की कमी शामिल है।
- भारत में पर्यटन से संबंधित पहलें:
- प्रशिक्षण और कौशल विकास का अभाव: यह देखते हुए कि पर्यटन उद्योग एक श्रम प्रधान क्षेत्र है, यह निर्विवाद है कि व्यावहारिक प्रशिक्षण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में सतत् पर्यटन को बढ़ावा:
- ज़िम्मेदार, समावेशी, हरित पर्यटन (अधिकार): बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये पर्यटन प्रबंधन में शामिल सभी हितधारकों को विनियमों के सामान्य नियमन द्वारा शासित करने की आवश्यकता है।
- प्राकृतिक पारितंत्र में न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ हरित पर्यटन (Green Tourism) को बढ़ावा देना और संवहनीय अवसंरचना को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है ताकि आत्मीय आतिथ्य को संपोषण मिल सके।
- एकीकृत पर्यटन प्रणाली: देश भर में वांछित पर्यटन स्थलों और प्रमुख बाज़ारों एवं क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक व्यापक बाज़ार अनुसंधान एवं मूल्यांकन अभ्यास किया जा सकता है।
- इसके बाद फिर इन स्थानों का मानचित्रण करने और सोशल मीडिया के माध्यम से उनका प्रचार करने के लिये एक डिजिटल एकीकृत प्रणाली का विकास किया जा सकता है जो ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के मूल तत्त्व का संवर्द्धन करेगा।
- एक राज्य एक पर्यटन शुभंकर (One State One Tourism Mascot): राज्य के पशुओं को, विशेष रूप से बच्चों के बीच पर्यटन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये एक अभिनव उपकरण के रूप में विभिन्न राज्यों के पर्यटन विभागों हेतु एक विज्ञापन शुभंकर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- G20 की अध्यक्षता का लाभ उठाना: भारत के पास G20 की अध्यक्षता (दिसंबर 2022- नवंबर 2023) के दौरान स्वयं को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने का अवसर है।
- भारत के पास विभिन्न देशों के प्रतिनिधिमंडलों का स्वागत करते हुए ‘अतिथि देवो भव’ के अपने सदियों पुराने आदर्श को प्रदर्शित कर सकने का अवसर मौजूद होगा।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न1. विकास के विभिन्न पहलों और पर्यटन के नकारात्मक प्रभाव से पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे पुनः प्राप्त किया जा सकता है? (2019) प्रश्न 2. पर्यटन के कारण जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य अपनी पारिस्थितिक वहन की अधिकतम सीमा तक पहुँच रहे हैं। समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015) |
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
शासन व्यवस्था
न्यायपालिका का भारतीयकरण
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS)। मेन्स के लिये:भारत में न्यायपालिका संबंधी पहल, भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑनलाइन ई-निरीक्षण सॉफ्टवेयर के उद्घाटन के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों का अब चार भाषाओं- हिंदी, तमिल, गुजराती और ओडिया में अनुवाद किया जाएगा।
- इस पहल के परिणामस्वरूप न्यायपालिका का भारतीयकरण होगा जो कि समय की मांग है।
न्यायपालिका का भारतीयकरण:
- भारतीयकृत न्यायपालिका:
- CJI के अनुसार, न्यायालयों को वादी-केंद्रित होने की आवश्यकता है, जबकि न्याय वितरण का सरलीकरण प्रमुख चिंता होनी चाहिये।
- CJI ने निर्दिष्ट किया कि न्यायपालिका के भारतीयकरण का अर्थ न्याय वितरण प्रणाली का स्थानीयकरण है।
- भारत की सदियों पुरानी न्यायिक प्रणाली:
- भारत में विश्व की सबसे पुरानी न्यायिक प्रणाली है जो लगभग 5000 वर्ष पुरानी है।
- ऐतिहासिक काल से ही भारत में एक बहुत ही प्रभावी, विश्वसनीय और लोकतांत्रिक न्यायिक प्रणाली रही है, लेकिन वर्तमान निर्णयों में अधिकांश बयान/कथन पश्चिमी न्यायशास्त्र से लिये गए हैं।
- न्याय प्रदान करने की भारत की अपनी प्राचीन प्रणाली को बहुत कम मान्यता दी जाती है।
- संबंधित अनुशंसाएँ:
- मलिमथ समिति की रिपोर्ट: मलिमथ समिति (2000) ने सुझाव दिया कि संहिता की एक अनुसूची सभी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित की जानी चाहिये ताकि अभियुक्त अपने अधिकारों को जान सकें, साथ ही उन्हें कैसे लागू किया जाए और उन अधिकारों के उल्लंघन होने पर किससे संपर्क किया जाए।
- विधि आयोग, 1958: अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) को पहली बार वर्ष 1958 में विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- विधि आयोग की एक रिपोर्ट (1987) में सिफारिश की गई थी कि भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीश होने चाहिये, जबकि तब यह संख्या 10.50 थी।
न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिये पहल:
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC):
- लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ही मुख्य सहारा रहा है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय एकमात्र ऐसा न्यायालय है जिसने VC के माध्यम से अधिकतम मामलों की सुनवाई की है।
- लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ही मुख्य सहारा रहा है।
- AI आधारित सुपेस (SUPACE) पोर्टल:
- मई 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी शोध के साथ न्यायाधीशों की सहायता करने के उद्देश्य से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) आधारित सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंस इन कोर्ट एफिशिएंसी (Supreme Court Portal for Assistance in Court’s Efficiency- SUPACE) लॉन्च किया।
- न्याय वितरण और कानूनी सुधार हेतु राष्ट्रीय मिशन:
- मिशन न्यायिक प्रशासन में बकाया और लंबित मामलों के चरणबद्ध परिसमापन के लिये एक समन्वित दृष्टिकोण अपना रहा है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ कंप्यूटरीकरण, अधीनस्थ न्यायपालिका की शक्ति में वृद्धि, नीति एवं विधायी उपायों सहित न्यायालयों के लिये बेहतर बुनियादी ढाँचा शामिल है।
- ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों हेतु बुनियादी ढाँचे में सुधार:
- बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme- CSS) की शुरुआत के बाद से 9291.79 करोड़ रुपए जारी किये गए हैं।
- कोर्ट हॉल की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है।
- सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) का लाभ उठाना:
- सरकार ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सक्षम करने के लिये पूरे देश में ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना को लागू कर रही है।
- कंप्यूटरीकृत ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या अब तक बढ़कर 18,735 हो गई है।
भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ:
- लंबित मामलों की बड़ी संख्या: भारतीय न्यायालयों के समक्ष 30 मिलियन से अधिक मामले लंबित पड़े हैं।
- उनमें से 4 मिलियन से अधिक मामले उच्च न्यायालयों में लंबित हैं, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के पास 60,000 मामले लंबित हैं। यह आँकड़ा लगातार बढ़ रहा है और न्याय प्रणाली की अपर्याप्तता को प्रदर्शित करता है।
- विचाराधीन कैदी: भारतीय जेलों में बंद अधिकांश कैदी वे हैं जो अपने मामलों में निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं (यानी वे विचाराधीन कैदी हैं) और उन्हें निर्णयन की अवधि तक के लिये बंद रखा जाता है।
- अधिकांश आरोपितों को जेल में लंबी सज़ा काटनी पड़ती है (दोषी सिद्ध होने पर दी जाने वाली सज़ा की अवधि से अधिक समय तक) और न्यायालय में स्वयं का बचाव करने से संबद्ध लागत, मानसिक कष्ट एवं पीड़ा वास्तविक दंड की तुलना में अधिक महँगी और पीड़ादायी सिद्ध होती है।
- नियुक्ति/भर्ती में देरीः न्यायिक पदों को आवश्यकतानुसार यथाशीघ्र नहीं भरा जाता है। 135 मिलियन आबादी वाले देश में लगभग 25000 न्यायाधीश ही उपलब्ध हैं।
- उच्च न्यायालयों में रिक्तियों की संख्या लगभग 400 है और निचली न्यायालयों में करीब 35 फीसदी पद खाली पड़े हैं।
- CJI की नियुक्ति में पक्षपात और भाई-भतीजावाद: चूँकि CJI के पद के लिये उम्मीदवारों के मूल्यांकन के संबंध में कोई विशिष्ट मानदंड नहीं हैं, इसलिये इस मामले में भाई-भतीजावाद और पक्षपात आम बात है।
- परिणामतः न्यायिक नियुक्ति में कोई पारदर्शिता नहीं है और साथ ही वे किसी भी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
- ब्रिटिश शासन से प्रेरित भारतीय न्यायपालिका: भारत की वर्तमान न्यायिक प्रणाली की उत्पत्ति न्यायपालिका की औपनिवेशिक प्रणाली में देखी जा सकती है जो भारतीय आबादी की आवश्यकताओं के लिये बिल्कुल उपयुक्त नहीं है।
आगे की राह
- नियुक्ति प्रणाली में बदलाव: रिक्तियों को तुरंत भरे जाने की आवश्यकता है, और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक उपयुक्त समयसीमा स्थापित करना तथा अग्रिम सुझाव देना आवश्यक है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण कारक जो निर्विवाद रूप से भारत में एक बेहतर न्यायिक प्रणाली विकसित करने में सहायता कर सकता है, वह है AIJS।
- जाँच प्रक्रिया में सुधार: भारत में एक जाँच संबंधी सक्रिय नीति का अभाव है, जिसके कारण कई निर्दोष लोगों को गलत तरीके से आरोपित किया जाता है और दंडित किया जाता है।
- इसलिये भारत सरकार को न्याय प्रणाली में सभी हितधारकों को ध्यान में रखते हुए एक प्रभावी, सक्रिय और व्यापक जाँच नीति तैयार करने की आवश्यकता है।
- न्याय के लिये नवोन्मेषी समाधान: बड़ी मात्रा में लंबित मामलों के निपटान के समाधान के लिये केवल अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति काफी नहीं है, इसके लिये नवोन्मेषी समाधानों की भी आवश्यकता है।
- हाल ही में शुरू की गई पहल को एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि यह समझना आवश्यक है कि न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली अंग्रेज़ी भाषा सभी नागरिकों के समझ में नहीं आती है।
- इसे न्याय तक पहुँच तब तक नहीं माना जा सकता जब तक निर्णयों/फैसलों को आम जनता की समझ में आ जाने वाली भाषा में निर्गत नहीं किया जाता है।
- हाल ही में शुरू की गई पहल को एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि यह समझना आवश्यक है कि न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली अंग्रेज़ी भाषा सभी नागरिकों के समझ में नहीं आती है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत में कानूनी सेवा प्राधिकरण निम्नलिखित में से किस प्रकार के नागरिकों को मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (150 शब्द) |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
कृषि
कृषि अवसंरचना कोष
प्रिलिम्स के लिये:किसान उत्पादक संगठन (FPOs), स्वयं सहायता समूह (SHGs), प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS), नाबार्ड, पराली दहन, फसल विविधीकरण, वर्षा जल संचयन, जेनेटिक इंजीनियरिंग। मेन्स के लिये:कृषि अवसंरचना कोष (AIF), फसल कटाई बाद प्रबंधन से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund- AIF) ने फसल कटाई के बाद के अवसंरचना और सामुदायिक कृषीय संपत्ति जैसी कृषि परियोजनाओं के लिये 30,000 करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी जुटाई है।
कृषि अवसंरचना कोष:
- परिचय:
- AIF एक वित्तपोषण सुविधा है जिसे जुलाई 2020 में शुरू किया गया था।
- इसका उद्देश्य किसानों, कृषि-उद्यमियों, किसान समूहों जैसे किसान उत्पादक संगठनों (FPO), स्वयं सहायता समूहों (SHG), संयुक्त देयता समूहों (Joint Liability Groups- JLGs) आदि और कई अन्य को फसल कटाई के बाद प्रबंधन बुनियादी ढाँचे तथा देश भर में सामुदायिक कृषि संपत्ति का निर्माण करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- विशेषता:
- AIF 3% ब्याज सब्सिडी के रूप में सहायता प्रदान करता है, क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज़ (CGTMSE) कार्यक्रम के माध्यम से 2 करोड़ रुपए तक के ऋण के लिये क्रेडिट गारंटी देता है। अन्य केंद्र एवं राज्य सरकार के कार्यक्रमों के साथ विलय करने की सुविधा भी प्रदान करता है।
- AIF कृषि बुनियादी ढाँचे का निर्माण और आधुनिकीकरण करके फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने में काफी योगदान दे रहा है, जिसके अंतर्गत सब्जियों के लिये प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र, कृषि मशीनरी के किराये के लिये हाई-टेक हब/केंद्र शामिल हैं।
- प्रबंधन:
- इस फंड का प्रबंधन और देख-रेख एक ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाएगा। यह सभी योग्य संस्थाओं को इस फंड के तहत ऋण के लिये आवेदन करने में सक्षम बनाएगा।
- वास्तविक समय अर्थात् रियल टाइम निगरानी और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य एवं ज़िला स्तर की निगरानी समितियों का गठन किया जाएगा।
- इस फंड का प्रबंधन और देख-रेख एक ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाएगा। यह सभी योग्य संस्थाओं को इस फंड के तहत ऋण के लिये आवेदन करने में सक्षम बनाएगा।
पोस्ट-हार्वेस्ट मैनेजमेंट:
- परिचय:
- कटाई के बाद के प्रबंधन (Post-harvest Management) से तात्पर्य उन गतिविधियों तथा तकनीकों से है जिनका उपयोग फसलों की कटाई के बाद उन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये किया जाता है।
- इसमें सफाई, छँटाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग, भंडारण और परिवहन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
- कटाई के बाद के प्रबंधन का लक्ष्य फसलों की गुणवत्ता और सुरक्षा को बनाए रखने के साथ-साथ उनकी शेल्फ लाइफ को बढ़ाना है, ताकि बाद में वह बेचने और खाद्य योग्य हों।
- कटाई के बाद के प्रबंधन (Post-harvest Management) से तात्पर्य उन गतिविधियों तथा तकनीकों से है जिनका उपयोग फसलों की कटाई के बाद उन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये किया जाता है।
- चुनौतियाँ:
- ऋण तक सुविधाजनक पहुँच का अभाव: छोटे और सीमांत किसानों के लिये सुविधाजनक ऋण उपलब्ध नहीं है। नाबार्ड द्वारा वर्ष 2018 में किये एक सर्वेक्षण के अनुसार छोटे भूखंड आकार के स्वामी किसानों ने बड़े भूखंड आकार (> 2 हेक्टेयर) के स्वामी किसानों की तुलना में गैर-संस्थागत ऋणदाताओं से अधिक ऋण लिया था।
- यह इंगित करता है कि छोटे और सीमांत किसान बड़े किसानों की तुलना में ऋण के अनौपचारिक स्रोतों (जो अधिक ब्याज भी लेते हैं) पर अधिक निर्भरता रखते हैं।
- पराली दहन: मानव श्रम की कमी, खेत से फसल अवशेषों को हटाने की उच्च लागत और फसलों की यंत्रीकृत कटाई के कारण खेतों में अवशेषों को जलाने या ‘पराली दहन’ (Stubble Burning) की समस्या गहरी होती जा रही है जो उत्तर भारत में वायु प्रदूषण में प्रमुखता से योगदान करती है।
- आधारभूत बाधाएँ: अपर्याप्त कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण फार्म गेट से 30% से अधिक उत्पादन नष्ट हो जाता है।
- नीति आयोग के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वार्षिक फसल की कटाई के बाद लगभग 90,000 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
- मौसम के अनुकूल सड़कों और कनेक्टिविटी के अभाव में आपूर्ति अनियमित हो जाती है।
- ऋण तक सुविधाजनक पहुँच का अभाव: छोटे और सीमांत किसानों के लिये सुविधाजनक ऋण उपलब्ध नहीं है। नाबार्ड द्वारा वर्ष 2018 में किये एक सर्वेक्षण के अनुसार छोटे भूखंड आकार के स्वामी किसानों ने बड़े भूखंड आकार (> 2 हेक्टेयर) के स्वामी किसानों की तुलना में गैर-संस्थागत ऋणदाताओं से अधिक ऋण लिया था।
भारत कृषि से अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त कर सकता है?
- पारंपरिक और सीमांत तकनीकों का एकीकरण: पौधों के पोषक तत्त्वों हेतु वर्षा जल संचयन और जैविक अपशिष्टों का पुनर्चक्रण, कीट प्रबंधन आदि पारंपरिक तकनीकों के उदाहरण हैं जिनका उपयोग उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिये ऊतक संवर्द्धन, जेनेटिक इंजीनियरिंग जैसी सीमांत तकनीकों के पूरक के रूप में किया जा सकता है।
- कृषि अधिशेष प्रबंधन का उन्नयन: कटाई के बाद की देखभाल, बीज, उर्वरक और कृषि रसायन गुणवत्ता विनियमन हेतु अवसंरचनात्मक ढाँचे के उन्नयन एवं विकास कार्यक्रम की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, क्रय केंद्रों की ग्रेडिंग और मानकीकरण को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- बाज़ार एकीकरण के माध्यम से अतिरिक्त प्रतिलाभ प्राप्त करना: घरेलू बाज़ारों को सुव्यवस्थित करने और स्थानीय बाज़ारों को राष्ट्रीय एवं वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने के लिये अवसंरचनात्मक ढाँचों तथा संस्थानों को स्थापित करने की आवश्यकता है।
- घरेलू और वैश्विक बाज़ारों के बीच सहज एकीकरण की सुविधा के लिये और व्यापार उदारीकरण को और अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये भारत को एक नोडल संस्था की आवश्यकता है जो विश्व और घरेलू मूल्य विचलनों की बारीकी से निगरानी कर सके और बड़ी हानि से बचने के लिये समय पर और उचित उपाय कर सके।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रीलिम्स:प्रश्न. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है? ( 2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है? (2012) (a) नकदी फसलों और खाद्य फसलों दोनों की खेती उत्तरः (c) प्रश्न. सूक्ष्म सिंचाई के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. फसल विविधीकरण के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधीकरण के लिये अवसर कैसे प्रदान करती हैं? (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
BharOS सॉफ्टवेयर
प्रिलिम्स के लिये:BharOS ऑपरेटिंग सिस्टम, गूगल और iOS, आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम। मेन्स के लिये:BharOS ऑपरेटिंग सिस्टम और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में IIT मद्रास-इनक्यूबेटेड कंपनी ने BharOS विकसित किया है।
BharOS:
- परिचय:
- यह Android या iOS की तरह एक स्वदेशी मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) है। यह गोपनीयता और सुरक्षा पर केंद्रित है।
- एक मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम एक सॉफ्टवेयर है जो Google द्वारा Android और Apple द्वारा iOS जैसे स्मार्टफोन पर कोर इंटरफेस है, जो सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ताओं को अपने डिवाइस के साथ बातचीत करने और इसकी सुविधाओं तक पहुँचने में मदद करता है।
- BharOS भारत-आधारित उपयोगकर्त्ताओं के लिये एक सुरक्षित OS वातावरण बनाकर 'आत्मनिर्भर भारत' के विचार की दिशा में एक योगदान है।
- वर्तमान में BharOS सेवाएँ उन संगठनों को प्रदान की जा रही हैं जिन्हें गोपनीयता और सुरक्षा की अधिक आवश्यकता है तथा जिनके उपयोगकर्त्ता संवेदनशील जानकारी रखते हैं जिसके लिये मोबाइल पर प्रतिबंधित एप पर गोपनीय संचार की आवश्यकता होती है।
- ऐसे उपयोगकर्ताओं को निजी 5G नेटवर्क के माध्यम से निजी क्लाउड सेवाओं तक पहुँच की आवश्यकता होती है।
- यह Android या iOS की तरह एक स्वदेशी मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) है। यह गोपनीयता और सुरक्षा पर केंद्रित है।
- विशेषताएँ:
- नेटिव ओवर द एयर:
- BharOS नेटिव ओवर द एयर (NOTA) अपडेट की पेशकश करेगा, जिसका अर्थ है कि उपयोगकर्त्ताओं को अद्यतन जाँच करने और उन्हें स्वयं लागू करने के बजाय सुरक्षा अपडेट तथा बग फिक्स स्वचालित रूप से इंस्टॉल हो जाएंगे।
- नो डिफाल्ट एप :
- नो डिफाल्ट एप (NDA) सेटिंग का अर्थ है कि यूज़र्स को इस मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में पहले से इंस्टॉल एप्स को रखने या इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं है।
- NDA महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आज अन्य स्मार्टफोन के साथ आने वाले कई प्री-इंस्टॉल एप ब्लोटवेयर के रूप में कार्य करके डिवाइस को धीमा कर सकते हैं या बैटरी लाइफ को कम कर सकते हैं।
- BharOS के लिये NDA डिज़ाइन का उपयोग करने का निर्णय जान-बूझकर किया गया था क्योंकि यह उपयोगकर्त्ताओं को एप पर विश्वास और उनके फोन पर संग्रहीत डेटा के प्रकार के आधार पर उनके मोबाइल फोन में एप्स पर अधिक नियंत्रण प्रदान करेगा।
- नो डिफाल्ट एप (NDA) सेटिंग का अर्थ है कि यूज़र्स को इस मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में पहले से इंस्टॉल एप्स को रखने या इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं है।
- निजी एप स्टोर सेवाएँ:
- यह निजी एप स्टोर सेवाएँ (Private App Store Services- PASS) नाम से एक प्रणाली का उपयोग करेगा, जो उपयोगकर्त्ताओं के लिये सुरक्षित उन एप्स की जाँच और संयोजन करेगा।
- जब तक उपयोगकर्त्ता BharOS के मानकों को पूरा करते हैं, तब तक वे अन्य एप्स का उपयोग करने में सक्षम होंगे।
- नेटिव ओवर द एयर:
- महत्त्व:
- परियोजना का उद्देश्य स्मार्टफोन में विदेशी OS पर निर्भरता को कम करना और स्थानीय रूप से विकसित प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देना है।
- यह एक स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और आत्मनिर्भर भविष्य बनाने के लिये बड़ी उपलब्धि है।
- यह भारत को उन कुछ देशों के बराबर रखने की क्षमता रखता है जिनके पास वर्तमान में ऐसी उपलब्धियाँ हैं।
BharOS गूगल एंड्राइड से अलग:
- BharOS एंड्रॉइड ओपन-सोर्स प्रोजेक्ट (AOSP) पर आधारित है और कुछ हद तक गूगल एंड्रॉइड जैसा ही है। हालाँकि यह नियमित Google Android फोन की तरह Google सेवाओं के साथ पहले से लोड नहीं रहता है। इसलिये BharOS उपयोगकर्त्ता अपनी पसंद के एप्स को डाउनलोड कर सकते हैं, न कि कोई ऐसा एप जिसके लिये वे बाध्य हों।
- स्टॉक ऑपरेटिंग सिस्टम वाले एंड्रॉइड फोन में आमतौर पर क्रोम (Chrome) को डिफॉल्ट ब्राउज़र के रूप में सेट किया जाता है। BharOS के निर्माता ‘डक डक गो’ (DuckDuck Go) को डिफॉल्ट ब्राउज़र के रूप में स्थापित करने के लिये उसके साथ साझेदारी करने पर विचार कर रहे हैं।
- DuckDuckGo एक प्राइवेसी-फोकस्ड/निजता पर केंद्रित ब्राउज़र है, जिसमें कई ब्राउजिंग मोड हैं।