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डेली न्यूज़

  • 25 Jan, 2022
  • 37 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नकारात्मक आयन प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

रेडियोधर्मिता, नकारात्मक आयन प्रौद्योगिकी।

मेन्स के लिये:

नकारात्मक आयन प्रौद्योगिकी से संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में परमाणु सुरक्षा और विकिरण संरक्षण प्राधिकरण (Authority for Nuclear Safety and Radiation Protection-ANVS), नीदरलैंड ने एक बयान जारी किया जिसमें कानूनी रूप से दी गई अनुमति से अधिक रेडियोधर्मिता वाले विभिन्न नकारात्मक आयन वाले परिधेय अर्थात् पहनने योग्य (Wearable) उत्पादों की पहचान की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • नकारात्मक आयन प्रौद्योगिकी व्यक्तिगत उत्पादों में नकारात्मक आयनों को लागू करती है और इसे वर्तमान में स्वास्थ्य को बनाए रखने, ऊर्जा को संतुलित करने तथा विकास में लगातार सुधार के साधन के रूप में विज्ञापित किया जा रहा है।
    • इस तकनीक का उपयोग कुछ सिलिकॉन रिस्टबैंड (silicone wristbands), क्वांटम या स्केलर-एनर्जी पेंडेंट (quantum or scalar-energy pendants) और किनेस्थिसियोलॉजी टेप (kinesthesiology tape) में किया जाता है।
      • सूर्य के प्रकाश, विकिरण, वायु और जल में ऑक्सीजन के क्षरण से भी ऋणात्मक आयन उत्पन्न होते हैं।
    • इन नकारात्मक आयनों को उत्पन्न करने वाले खनिजों में अक्सर यूरेनियम और थोरियम जैसे प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ शामिल होते हैं।
    • ऐसा माना जाता है कि नकारात्मक आयन सकारात्मक अनुभूति उत्पन्न करते हैं और दिमाग को संतुलित करते हैं। इनसे विभिन्न मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे कि तनाव में कमी, बेहतर नींद, श्वसन आदि। जबकि ये आयन प्रदूषकों पर भी कार्य कर सकते हैं, उन्हें नकारात्मक रूप से आवेशित कर सकते हैं और उन्हें सतह पर एकत्र कर सकते हैं।
  • संबंधित चिंताएँ:
    • इनमें से कुछ उत्पादों में पाया गया कि विकिरण पृष्ठभूमि स्तर से अधिक है और कुछ मामलों में लाइसेंस की आवश्यकता के लिये पर्याप्त है।
    • उत्पादों में उपयोग किये जाने वाले खनिजों में रेडियोधर्मिता के विभिन्न स्तर होते हैं, उपभोक्ता के लिये यह जानना मुश्किल हो सकता है कि ये वस्तुएँ कितनी रेडियोधर्मी हैं।
      • रेडियोधर्मिता स्वतः विकिरण उत्सर्जित करने की एक क्रिया है।
    • उत्पादों में रेडियोधर्मी पदार्थ पाए जाते है जिससे लगातार आयनकारी विकिरण का उत्सर्जन होता हैं, जिससे उत्पादों को प्रयोग करने वाले को पहचाना जा सकता है।
    • आयनकारी विकिरण के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और लंबे समय तक उत्पादों को पहनना स्वास्थ्य के लिये जोखिमपूर्ण हो सकता है जिसमें ऊतक और डीएनए क्षति शामिल है।
    • एक्सपोज़र गंभीर हानिकारक प्रभाव भी पैदा कर सकता है, जैसे: त्वचा की जलन, तीव्र विकिरण बीमारी जो कैंसर और बालों के झड़ने का कारण बनती है, सफेद रक्त कोशिकाओं की अस्थायी कमी, संभावित गुणसूत्र क्षति, संक्रमण के प्रतिरोध में कमी।
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA) के शोधकर्त्ताओं ने पाया कि मलेशिया और अन्य जगहों पर अंडरगारमेंट उद्योग ने विज्ञापन दिया कि उनके "नकारात्मक आयन अंडरगारमेंट्स" (Negative Ion Undergarments) में ट्रूमलाइन (Tourmaline), मोनाज़ाइट (Monazite) और ज़िरकोन (Zircon) होते हैं जिन्हें यूरेनियम व थोरियम के लिये  जाना जाता है।
  • प्रभाव:
    • "विकिरण संरक्षण और विकिरण स्रोतों की सुरक्षा: अंतर्राष्ट्रीय बुनियादी सुरक्षा मानक" (2014) में IAEA मानता है कि खिलौनों और व्यक्तिगत गहनों या शृंगार में विकिरण या रेडियोधर्मी पदार्थों का तुच्छ उपयोग होता है जिसके परिणामस्वरूप अनुचित गतिविधियों  में वृद्धि होती है।
    • IAEA ने "उपभोक्ता उत्पादों के लिये विकिरण सुरक्षा (2016)" शीर्षक से एक विशिष्ट सुरक्षा मार्गदर्शिका प्रकाशित की।
    • भारत में परमाणु ऊर्जा (विकिरण संरक्षण) नियम, 2004 में IAEA के अनुरूप प्रावधान हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय समाज

राष्ट्रीय बालिका दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बालिका दिवस

मेन्स के लिये:

बालिकाओं के अधिकार, संबंधित मुद्दे  तथा इन मुद्दों के समाधान हेतु उठाए जा सकने वाले कदम

चर्चा में क्यों?

हर साल 24 जनवरी को भारत राष्ट्रीय बालिका दिवस (National Girl Child Day) के रूप में मनाता है।

प्रमुख बिंदु

  • शुरुआत:
    • राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत पहली बार वर्ष 2008 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा की गई थी। 
    • इसका मुख्य उद्देश्य लड़कियों के प्रति समाज का नज़रिया बदलने, कन्या भ्रूण हत्या को कम करने और घटते लिंगानुपात के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
  • ‘सेव द गर्ल चाइल्ड’ वेबिनार:
    • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) द्वारा बालिकाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण सहित लड़कियों से संबंधित विभिन्न विषयों पर जागरूकता बढ़ाने के लिये यह वेबिनार आयोजित किया गया था।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2022:
    • इस अवसर पर 29 बच्चों को नवाचार, सामाजिक विज्ञान, शिक्षा, खेल, कला एवं संस्कृति में उनकी असाधारण उपलब्धियों और बहादुरी का प्रदर्शन करने के लिये पुरस्कार दिया गया।
    • इन्हें ऑनलाइन आयोजित एक कार्यक्रम में ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करते हुए डिजिटल प्रमाणपत्र और 1 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया गया। 

बालिकाओं से संबंधित मुद्दे 

  • कन्या बाल हत्या और भ्रूण हत्या:
    • भारत में कन्या भ्रूण हत्या की दर विश्व भर में कन्या भ्रूण हत्या की उच्चतम दरों में से एक है।
    • कन्या भ्रूण हत्या का कारण पुत्र को वरीयता देना, दहेज प्रथा और उत्तराधिकारी की पितृवंशीय आवश्यकता है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे कम लिंगानुपात (914) दर्ज किया गया है, जिसमें 3 मिलियन लापता लड़कियाँ शामिल थीं। इनकी संख्या वर्ष 2001 में 78.8 मिलियन की तुलना में वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन हो गई।
  • बाल विवाह:
    • प्रत्येक वर्ष, भारत में कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है, जिसके चलते भारत में बाल वधुओं की संख्या विश्वभर में सबसे अधिक (वैश्विक रूप से कुल संख्या का एक-तिहाई) है। वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16% किशोरियों की शादी हो चुकी है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 5 के अनुसार बाल विवाह में मामूली गिरावट दर्ज की गई है, जो वर्ष 2015-16 के 27% से घटकर में वर्ष 2019-20 में 23% हो गई है।
  • शिक्षा:
    • लड़कियाँ घर के कामों में अधिक व्यस्त रहती हैं और कम उम्र में ही स्कूल छोड़ देती हैं।
      • इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल में पढ़ रही लड़कियों की तुलना में स्कूल छोड़ चुकी लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक होती है या उनकी शादी पहले तय हो चुकी होती है। 
  • स्वास्थ्य और मृत्यु दर:
    • भारत में लड़कियों को अपने घरों के अंदर और बाहर अपने समाज में ही भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारत में असमानता का अर्थ है लड़कियों के लिये असमान अवसर।
    • भारत में पाँच साल से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में 8.3 फीसदी अधिक है। विश्व स्तर पर यह लड़कों के लिये 14% अधिक है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • बेटी बचाओ बेटी पढाओ: वर्ष 2015 में लिंग चयनात्मक गर्भपात और कम होते बाल लिंगानुपात (वर्ष 2011 में प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • सुकन्या समृद्धि योजना: बालिकाओं के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में यह योजना शुरू की गई। यह माता-पिता को लड़कियों के भविष्य के अध्ययन और विवाह पर होने वाले खर्च के लिये निवेश करने तथा धन एकत्रित करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
  • सीबीएसई उड़ान योजना: यह योजना सीबीएसई द्वारा प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्राओं के कम नामांकन और स्कूली शिक्षा और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के बीच शैक्षिक अंतराल को दूर करने के लिये शुरू की गई एक परियोजना है।
  • माध्यमिक शिक्षा के लिये लड़कियों हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने की राष्ट्रीय योजना (NSIGSE): यह वर्ष 2008 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य माध्यमिक स्तर पर 14-18 आयु वर्ग में लड़कियों के नामांकन को बढ़ावा देना है, विशेष रूप से ऐसी लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये, जिन्होंने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की है।

आगे की राह

  • बाल विवाह की समस्या का समाधान शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना है क्योंकि यह प्रथा एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है।
    • स्कूलों में स्किल एंड बिज़नेस ट्रेनिंग और सेक्स एजुकेशन से भी सहायता मिलेगी।
  • विवाह की उम्र में वृद्धि और नए कानून बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित करने के लिये बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है, जो कि दबावपूर्ण उपायों से कहीं अधिक प्रभावी होगा।
  • NFHS के निष्कर्ष लड़कियों की शिक्षा में अंतराल कम करने और महिलाओं एवं बच्चों की दयनीय पोषण स्थिति को दूर करने की तत्काल आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।

स्रोत-पी.आई.बी


जैव विविधता और पर्यावरण

नजफगढ़ झील के लिये पर्यावरण प्रबंधन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, पर्यावरण प्रबंधन योजना, नजफगढ़ झील, राष्ट्रीय आर्द्रभूमि प्राधिकरण, सारस क्रेन और अन्य पक्षी, मध्य एशियाई फ्लाईवे, माइक्रोकलाइमेट।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, नजफगढ़ झील और इसका महत्त्व, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने दिल्ली और हरियाणा को पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) को लागू करने का निर्देश दिया है, जिसे दोनों सरकारों ने नजफगढ़ झील, एक ट्रांसबाउंडरी  आर्द्रभूमि (वेटलैंड) के कायाकल्प और संरक्षण के लिये तैयार किया है।

  • इन कार्य योजनाओं से संबंधित कार्यान्वयन की निगरानी राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरणों के माध्यम से राष्ट्रीय आर्द्रभूमि प्राधिकरण द्वारा की जानी है।
  • इससे पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एकीकृत रूप से ईएमपी (EMP) को तैयार करने के लिये तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया था।

Najafgarh

प्रमुख बिंदु:

  • पर्यावरण प्रबंधन योजना:
    • आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत नजफगढ़ झील एवं उसके प्रभाव क्षेत्र को अधिसूचित करना सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।
      • ये नियम आर्द्रभूमि और उनके 'प्रभाव क्षेत्र' के भीतर कुछ गतिविधियों को प्रतिबंधित और विनियमित करते हैं।
    • इसमें भू-चिह्नित स्तंभों का उपयोग करके आर्द्रभूमि की सीमा का सीमांकन करने और हाइड्रोलॉजिकल मूल्यांकन तथा प्रजातियों की सूची की शुरुआत करने सहित तत्काल उपायों को सूचीबद्ध किया गया है।
    • दो से तीन वर्षों में लागू किये जाने वाले मध्यम अवधि के उपायों में नजफगढ़ झील से मिलने वाले प्रमुख नालों का स्वःस्थाने (in-situ) उपचार, जलपक्षी आबादी की नियमित निगरानी एवं बिजली उप-स्टेशनों जैसे प्रवाह अवरोधों को स्थानांतरित करना शामिल है।
      • इस झील को प्रवासी और निवासी जलपक्षी आवास के रूप में जाना जाता है।
    • यह अनुमानित आबादी के 15 वर्षों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र में सीवेज उत्पादन (sewage generation) का विस्तृत अनुमान और झील में प्रदूषण में योगदान करने वाले सभी नालों की पहचान का भी प्रस्ताव करता है।
  • नजफगढ़ झील:
    • यह राष्ट्रीय राजमार्ग-48 पर गुरुग्राम-रजोकरी सीमा के निकट दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में एक प्राकृतिक डिप्रेशन/अवतलित भूमि में स्थित है।
    • यह झील बड़े पैमाने पर गुरुग्राम और दिल्ली के आस-पास के गाँवों से निकलने वाले सीवेज (मल-जल) से भरी हुई है। झील का एक हिस्सा हरियाणा के अंतर्गत आता है।
    • झील में 281 पक्षी प्रजातियों की उपस्थिति की सूचना मिली है, जिनमें इजिप्टियन वल्चर, सारस क्रेन, स्टेपी ईगल, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल, इंपीरियल ईगल जैसे कई संकटग्रस्त और मध्य एशियाई फ्लाईवे के साथ प्रवास करने वाले पक्षी शामिल हैं।
  • संबंधित चिंताएँ:
    • बड़े पैमाने पर अतिक्रमण के कारण दिल्ली और गुरुग्राम में फैले जल निकाय केवल सात वर्ग किमी. तक सिमट कर रह गए हैं, जो कभी 226 वर्ग किमी. में फैला हुए थे।
      • इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के अनुसार, झील के पुनरुद्धार से 3.5 लाख की आबादी की सहायता के लिये एक दिन में लगभग 20 मिलियन गैलन पानी का उत्पादन होगा।
      • INTACH एक गैर-लाभकारी संगठन है जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है।
    • कई लाभों और विविध प्रजातियों के स्थायी आवासों का स्रोत होने के बावजूद नजफगढ़ झील अत्यधिक खंडित और रूपांतरित हो गई है, यहाँ विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य किये गए हैं, अपशिष्टों के निपटान हेतु इसका उपयोग किया गया है और साथ ही यह विभिन्न आक्रामक प्रजातियों से भी पीड़ित है।
    • नज़फगढ़ झील साहिबी नदी का प्राकृतिक बाढ़ का मैदान थी, यह अब एक नाले में परिवर्तित हो गई है। आर्द्रभूमि के क्षय से हरियाणा और दिल्ली की बस्तियाँ बाढ़ के उच्च जोखिम से प्रभावित हैं तथा इनके भू-जल स्तर में भी कमी आई है।
    • आर्द्रभूमि के भीतर हालिया निर्माण प्राकृतिक आर्द्रभूमि कार्यों को बाधित करते हुए क्षेत्र के भीतर उच्च भूकंपीयता और द्रवीकरण के कारण बने हैं।
  • महत्त्व:
    • नज़फगढ़ झील क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक बुनियादी ढाँचा है जो बाढ़ को बफर करना, अपशिष्ट जल का उपचार, भूजल को रिचार्ज (महत्त्वपूर्ण आबादी को पानी की आपूर्ति के लिये उच्च क्षमता के साथ) और कई पौधों, जानवरों एवं पक्षियों की प्रजातियों को आवास प्रदान करती है।
    • यह ऊष्मा और कार्बन सिंक होने के कारण माइक्रॉक्लाइमेट को नियंत्रित कर सकती है। वास्तव में यदि EMPs को ठीक से और पूरी तरह से लागू किया जाता है, तो यह झील जलवायु परिवर्तन के स्थानीय प्रभावों को कम करने की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की क्षमता का केंद्र बन सकती है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण:

  • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी तथा शीघ्र निपटान हेतु ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम’ (2010) के तहत स्थापित एक विशेष निकाय है।
  • ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ की स्थापना के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बाद एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया और साथ ही वह ऐसा करने वाला पहला विकासशील देश भी है।
  • ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम’ (2010) ने ट्रिब्यूनल को उन मुद्दों पर कार्रवाई करने हेतु एक विशेष भूमिका प्रदान की है, जहाँ सात निर्दिष्ट कानूनों (अधिनियम की अनुसूची I में उल्लिखित) के तहत विवाद उत्पन्न हुआ- जल अधिनियम, जल उपकर अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम, वायु अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम और जैविक विविधता अधिनियम।
  • NGT का मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।

आर्द्रभूमि:

  • आर्द्रभूमियांँ पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं। इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे अपशिष्ट-जल उपचार तालाब व जलाशय आदि शामिल हैं।
  • आर्द्रभूमियांँ कुल भू सतह के लगभग 6% हिस्से को कवर करती हैं। पौधों और जानवरों की सभी 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं।
  • यह जल एवं स्थल के मध्य का संक्रमण क्षेत्र होता है।
  • 2 फरवरी विश्व आर्द्रभूमि दिवस है। वर्ष 1971 में इसी तारीख को ईरान के रामसर में आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन को अपनाया गया था।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बुर्किना फासो में सैन्य शासन

प्रिलिम्स के लिये:

बुर्किना फासो तथा अन्य पश्चिमी अफ्रीकी देशों की स्थिति, संयुक्त राष्ट्र, अफ्रीकी संघ, ECOWAS, द पैट्रियटिक मूवमेंट फॉर सेफगार्ड एंड रिस्टोरेशन।

मेन्स के लिये:  

क्षेत्रीय समूह, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, अफ्रीका में हालिया तख्तापलट के कारण और उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बुर्किना फासो की सेना ने घोषणा की कि उसने राष्ट्रपति रोच काबोरे को अपदस्थ कर संविधान को निलंबित कर दिया है, साथ ही सरकार और राष्ट्रीय सभा को भंग कर दिया है और देश की सीमाओं को बंद कर दिया है।

  • सेना ने पिछले 18 महीनों में माली और गिनी में सरकारों को गिरा दिया है।
  • चाड के उत्तरी मैदान में में विद्रोहियों से लड़ते हुए राष्ट्रपति इदरिस डेबी की मृत्यु के बाद पिछले साल (2021) चाड में सेना ने भी पदभार संभाला।

Burkina-Faso

प्रमुख बिंदु

  • बुर्किना फासो:
    • एक पूर्व फ्राँसीसी उपनिवेश, बुर्किना फासो को वर्ष 1960 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से कई तख्तापलट सहित अस्थिरता का सामना करना पड़ा है।
    • बुर्किना फासो के नाम का शाब्दिक अर्थ है "ईमानदार पुरुषों की भूमि", इसे क्रांतिकारी सैन्य अधिकारी थॉमस शंकरा द्वारा चुना गया था, जिन्होंने वर्ष 1983 में सत्ता संभाली थी। वर्ष 1987 में उनकी सरकार को गिरा दिया गया और उन्हें मार दिया गया।
    • वर्ष 2015 से बुर्किना फासो इस्लामी विद्रोह से प्रभावित है यह विद्रोह पड़ोसी देश माली से फैला और इसने इसके महत्त्वपूर्ण पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुँचाया है।
    • भूमि आबद्ध देश बुर्किना फासो जो सोने का उत्पादक होने के बावजूद पश्चिम अफ्रीका के सबसे गरीब देशों में से एक है, ने वर्ष 1960 में फ्राँस से स्वतंत्रता के बाद से कई तख्तापलट का अनुभव किया है।
    • इस्लामी उग्रवादियों ने बुर्किना फ़ासो के एक क्षेत्र पर नियंत्रण प्राप्त कर लियाहै और कुछ क्षेत्रों के निवासियों को इस्लामी कानून के अपने कठोर संस्करण का पालन करने के लिये मजबूर किया है, जबकि विद्रोह को दबाने के लिये सेना के संघर्ष के चलते दुर्लभ राष्ट्रीय संसाधनों को समाप्त कर दिया है।
    • काबोरे को हाल के महीनों में उग्रवादियों द्वारा नागरिकों और सैनिकों की हत्याओं पर निराशा के बीच विरोध की लहरों का सामना करना पड़ा था, जिनमें से कुछ का संबंध इस्लामिक स्टेट और अल कायदा से है।
      • यह असंतोष नवंबर 2021 में बढ़ गया, जब मुख्य रूप से सुरक्षा बलों के 53 सदस्यों को संदिग्ध जिहादियों द्वारा मार डाला गया।
  • परिचय:
    • घोषणा में सुरक्षा की स्थिति में गिरावट का हवाला दिया गया और सेना ने पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र को एकजुट करने तथा चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने में काबोरे की अक्षमता के रूप में वर्णित किया है।
    • यह बयान पहले द पैट्रियटिक मूवमेंट फॉर सेफगार्ड एंड रिस्टोरेशन (Patriotic Movement for Safeguard and Restoration) या MPSR (फ्रेंच-भाषा का संक्षिप्त नाम) के नाम पर दिया गया था। MPSR में सेना के सभी वर्ग शामिल हैं।
    • MPSR ने कहा कि वह देश के विभिन्न वर्गों के साथ विचार-विमर्श के बाद एक उचित समय सीमा के भीतर संवैधानिक व्यवस्था की वापसी के लिये एक कैलेंडर का प्रस्ताव करेगा।
    • सेना ने बुर्किना फासो की सीमाओं को बंद करने की भी घोषणा की।
  • वैश्विक प्रतिक्रिया:
    • अफ्रीकी और पश्चिमी शक्तियों ने "तख्तापलट के इस प्रयास" की निंदा की है साथ ही यूरोपीय संघ ने राष्ट्रपति की "तत्काल" रिहाई की मांग की।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी राष्ट्रपति की रिहाई का आह्वान किया है और "सुरक्षा बलों के सदस्यों से बुर्किना फासो के संविधान एवं नागरिक नेतृत्व का सम्मान करने का आग्रह किया।"
    • संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने बुर्किना फासो में सेना द्वारा सरकार बनाए जाने के किसी भी प्रयास की कड़ी निंदा की है और तख्तापलट का नेतृत्व करने वालों से अपने हथियार डालने का आह्वान किया है।
    • अफ्रीकी संघ और क्षेत्रीय ब्लॉक, पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय ( Economic Community of West African States-ECOWAS) ने भी सत्ता के जबरदस्ती अधिग्रहण की निंदा की है, ECOWAS ने कहा कि यह सैनिकों को अपदस्थ राष्ट्रपति की सहायता के लिये ज़िम्मेदार ठहराता है।
      • अफ्रीकी संघ एक महाद्वीपीय निकाय है जिसमें अफ्रीकी महाद्वीप से संबंधित 55 राज्य शामिल हैं।
      • ECOWAS पंद्रह सदस्य देशों से बना है जो पश्चिमी अफ्रीकी क्षेत्र में स्थित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को प्रोत्साहन

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति (NPE) 2019, डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना।

मेन्स के लिये:

इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, संबंधित मुद्दे और भारत को आत्मनिर्भर बनाने में इसकी भूमिका।

चर्चा में क्यों?

भारत में वर्ष 2026 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन हासिल करने की संभावना है, जो कि राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति (NPE) 2019 के अनुसार निर्धारित वर्ष 2025 तक 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य से कम है।

  • यह अनुमान भारत सेल्यूलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) के सहयोग से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय (MeitY) द्वारा जारी "वर्ष 2026 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर सस्टेनेबल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग एंड एक्सपोर्ट्स" नामक 5 वर्षीय रोडमैप और विज़न दस्तावेज़ के अनुसार है।
    • ICEA मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग का शीर्ष औद्योगिक निकाय है जिसमें निर्माता भी शामिल हैं।
  • यह रोडमैप दो-भाग वाले विज़न दस्तावेज़ का दूसरा खंड है - जिसमें से पहला शीर्षक "भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में वृद्धि और वैश्विक मूल्य शृंखला (GVCs) में हिस्सेदारी" को नवंबर 2021 में जारी किया गया था।

प्रमुख बिंदु:

  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का विकास:
    • दस्तावेज़ के अनुसार, लक्ष्य में कमी होने के बावजूद अभी भी वर्तमान स्तर से 400% की वृद्धि का लक्ष्य है।
    • मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग के मौजूदा 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक उत्पादन को पार करने की उम्मीद है, जो इस महत्त्वाकांक्षी वृद्धि का लगभग 40% होने की उम्मीद है।
  • प्रमुख अपेक्षित उत्पाद:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में भारत के विकास का नेतृत्त्व करने वाले प्रमुख उत्पादों में मोबाइल फोन, आईटी हार्डवेयर (लैपटॉप, टैबलेट), उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स (टीवी और ऑडियो), औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक घटक,  LED लाइटिंग, रणनीतिक इलेक्ट्रॉनिक्स, पीसीबीए (Printed Circuit Board Assembly) पहनने और सुनने योग्य व दूरसंचार उपकरण शामिल हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • उद्योगों को गुणात्मक (गैर-टैरिफ, बुनियादी ढाँचे से संबंधित) और मात्रात्मक (टैरिफ, मुक्त व्यापार समझौते आदि से संबंधित) पहलुओं में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सुझाव:
    • वर्ष 2025-26 तक इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्राथमिक लक्ष्य प्रोत्साहन के माध्यम से पैमाने के निर्माण और लागत अक्षमताओं को दूर करना होगा।
    • दस्तावेज़ों में अगले 1,000 दिनों के भीतर मौजूदा नीतियों के संबंध में 'तेज़ी से बदलाव' का आह्वान किया गया है, जिसमें आयात शुल्क में स्थिरता, भारत में बिना विनिर्माण आधार वाले घटकों के लिये आयात शुल्क में कमी, कौशल का विकास और भारत में घटक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने हेतु प्रमुख विदेशी निर्माताओं को प्रोत्साहित करना शामिल है।
    • यह इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में कुल घरेलू मूल्यवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता का मज़बूती से समर्थन करता है, ताकि भारत अपनी वर्तमान स्थिति से एक ऐसी स्थिति में आ जाए जो चीन और वियतनाम के विकल्प के रूप में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये तैयार हो।
    • यह वैश्विक कंपनियों के अलावा भारतीय समर्थकों (चैंपियंस) की अग्रणी भूमिका का भी महत्त्वपूर्ण विवरण देता है - दोनों पहले से ही उत्पादन-सह प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का हिस्सा हैं।
      • 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम को आगे बढ़ाने के लिये सरकार द्वारा घोषित यूएसडी 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर पीएलआई योजना के अंतर्गत आता है। सरकार ने अगले 6 वर्षों में चार पीएलआई योजनाओं - सेमीकंडक्टर और डिज़ाइन, स्मार्टफोन, आईटी हार्डवेयर एवं घटकों में लगभग 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वादा किया है।
  • संबंधित पहल:

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग

  • परिचय:
    • भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन वर्ष 2015-16 के 37.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 67.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
      • हालाँकि कोविड -19 से संबंधित व्यवधानों ने वर्ष 2020-21 में विकास प्रक्षेपवक्र को प्रभावित किया और विनिर्माण उत्पादन में 67.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई।
    • इस दस्तावेज़ के अनुसार, रणनीति में पूरी तरह से बदलाव आया है जो आयात प्रतिस्थापन की दृष्टि से "मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड" के दृष्टिकोण से परे है।
    • इस नए दृष्टिकोण का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धात्मकता, पैमाने और निर्यात पर ध्यान केंद्रित करके भारत के विनिर्माण कौशल को बदलना है।
    • इसके अलावा आयात प्रतिस्थापन को जारी रखते हुए भारत का घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार अगले 4-5 वर्षों में मौजूदा USD65 बिलियन से 150-180 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
      • इस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये 120-140 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात महत्वपूर्ण है।
    • यह क्रमशः 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर अर्थव्यवस्था, 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था और MeitY (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) और वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा परिकल्पित 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर निर्यात लक्ष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • महत्त्व:
    • चीन में श्रम लागत में वृद्धि, भू-राजनीतिक व्यापार एवं सुरक्षा वातावरण और कोविड -19 का प्रकोप कई वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स अग्रणियों/प्रमुखों को वैकल्पिक विनिर्माण स्थलों की तलाश करने और अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने के लिये विवश कर रहा है।
    • भारत वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के लिये वैकल्पिक समाधान के प्रमुख दावेदारों में से एक है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में इतनी क्षमता है कि वह आगामी 3-5 वर्षों में भारत के शीर्ष निर्यात में शामिल हो सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात विदेशी मुद्रा आय और रोज़गार सृजन के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

स्रोत: द हिंदू


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