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भारतीय अर्थव्यवस्था

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर प्रतिकूल उच्च शुल्क

  • 20 Jan 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र, संबंधित पहल, इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में विकास, भारतीय सेल्युलर और इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन।

मेन्स के लिये:

भारत का इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र और इससे संबंधित मुद्दे, संबंधित पहल, भारत का इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र बनाम अन्य देश।

चर्चा म क्यों?

हाल ही में इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों के आयात पर उच्च टैरिफ अपनाने की भारत की नीति प्रतिकूल साबित हो सकती है।

  • ICEA मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग का शीर्ष उद्योग निकाय है जिसमें निर्माता भी शामिल हैं।

Electronics

प्रमुख बिंदु:

  • उच्च शुल्क:
    • भारत ने वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से ज़ोखिम कम करने और घरेलू कंपनियों को बचाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों के आयात पर उच्च शुल्क लगाया है।
      • हालाँकि यह इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से अपनी योजनाओं के प्रतिकूल साबित हो सकता है।
  • भारत बनाम अन्य राष्ट्र: सभी देशों ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने, घरेलू क्षमताओं और प्रतिस्पर्द्धा में सुधार, निर्यात में वृद्धि एवं अपने बाज़ारों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जोड़ने  जैसी लगभग समान रणनीतियों को अपनाकर अपने भौगोलिक क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक सामानों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है।
    • चीन: वर्ष 1980 से चीन ने कार्यालयी और दूरसंचार उपकरण निर्यात के मामले में 35 से 1 सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। 
    • मेक्सिको: इसी प्रकार मेक्सिको, जो 1980 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद निर्यात के मामले में 37वें स्थान पर था पिछले दो दशकों में 11 वें स्थान पर बना हुआ है।
    • थाईलैंड: वर्ष 1980 में 45वें स्थान पर था, रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष 15 इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद निर्यातकों में भी इसने अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है।
    • तक अपनी रैंकिंग में सुधार किया है, जबकि वियतनाम, जो कि 1990 के दशक तक ऐसे किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद का निर्यात नहीं करता था, वह केवल 20 वर्षों में आठवें भारत: दूसरी ओर भारत जो 1980 के दशक में 40वें स्थान पर  था, 2019 तक 28वें स्थान पर पहुंँचा है।
  • उच्च टैरिफ और भारत का नुकसान:
    • हालांँकि सभी देशों ने घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु लगभग एक ही नीति का पालन किया है। भारत और बाकी देशों के बीच एक बड़ा अंतर टैरिफ पर निर्भरता का था।
    • यह इस तरह के उच्च टैरिफ का कारण है कि वैश्विक बाज़ारों के निवेशक और इलेक्ट्रॉनिक घटक निर्माता भारत से एक बाज़ार के रूप में दूरी बनाते हैं क्योंकि वैश्विक मूल्य शृंखला में भारत की भागीदारी कम रही है।
    • इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार के बावजूद निर्यात और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में इसकी भागीदारी कम रही है।
    • यहांँ तक ​​कि घरेलू बाजारों के लिये भी यह धारणा गलत है कि यह ज़्यादातर कंपनियों हेतु  फायदेमंद होगी क्योंकि यह तेजी से बढ़ रही है।
      • उदाहरण के लिये मोबाइल फोन के मामले में जहाँ सबसे बड़ी पीएलआई योजनाओं में से एक वर्तमान में चालू है, घरेलू बाज़ार का आकार वर्ष 2025-26 तक बढ़कर 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है, जबकि वैश्विक बाज़ार के 625 अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। ।
    • इस प्रकार वर्तमान में भारतीय घरेलू बाज़ार वैश्विक बाजार का लगभग 6.5% है, यदि विकास के पूर्वानुमान यथोचित रूप से मज़बूत रहे हैं, तो इसके 8.8% तक बढ़ने की संभावना है।
    • वर्तमान में भारत का बाज़ार इतना आकर्षक नहीं है कि वह मुख्य रूप से अपने घरेलू बाजार के आधार पर एफडीआई को आकर्षित कर सके।
  • पीएलआई योजना की प्रतिकूलता:
    • रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि प्रमुख कारणों में से एक कारण यह है कि यह इलेक्ट्रॉनिक घटकों के आयात पर एक उच्च शुल्क उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के लाभ को समाप्त कर सकता है।
    • हालाँकि भारत के बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार आकर्षक लग सकते हैं, लेकिन वैश्विक दृष्टि से वे बहुत छोटे हैं। इसके अलावा भारत उन लगभग 50% घटकों का उत्पादन नहीं करता है जिन पर टैरिफ में वृद्धि की गई है। इसलिये टैरिफ के भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की संभावना है।
    • यद्यपि विश्व स्तर पर अमेरिका जैसी कंपनियाँ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात पर टैरिफ बढ़ा रही हैं, भारत को अपने टैरिफ को कम-से-कम रखना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह एशियाई पड़ोस में अपने साथियों के बीच प्रतिस्पर्द्धी बना रहे।
  • संबंधित पहलें:

भारत का इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र:

  • भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र मज़बूती से आगे से बढ़ रहा है और वर्ष 2023-24 तक यह 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि को पार कर जाएगा।
  • घरेलू उत्पादन वर्ष 2014-15 में 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019-20 में लगभग 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर (25% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) हो गया है।
  • इस उत्पादन का अधिकांश भाग भारत में स्थित अंतिम असेंबल इकाइयों (अंतिम-मील उद्योग) में होता है और उन पर ध्यान केंद्रित करने से अति पिछड़े क्षेत्रों को विकसित करने में मदद मिलेगी, इस प्रकार औद्योगिकीकरण को प्रेरित किया जाएगा।
    • यह विचार अर्थशास्त्री अल्बर्ट ओ. हिर्शमन ने अपने 'असंतुलित विकास' के सिद्धांत में प्रतिपादित किया था।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 ने भी इसी प्रकार के विचार को प्रस्तुत किया है और ‘भारत में विश्व स्तरीय लिये असेंबलिंग क्षमता’ स्थापित करने का सुझाव दिया, विशेष रूप से ‘नेटवर्क उत्पादों’ में, इससे वर्ष 2025 तक चार करोड़ नौकरियाँ और वर्ष 2030 तक आठ करोड़ नौकरियाँ सृजित हो सकेंगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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