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सामाजिक न्याय

राष्‍ट्रीय महिला आयोग के तत्त्‍वावधान में नए केंद्रीयकृत प्राधिकरण का प्रस्‍ताव

  • 05 Jun 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

राष्‍ट्रीय महिला आयोग की सिफारिशों को ध्‍यान में रखते हुए डब्ल्यूसीडी मंत्रालय ने सोशल मीडिया जैसे संचार माध्‍यमों के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी प्रगति को देखते हुए महिला अशिष्‍ट निरूपण (निषेध) अधिनियम [Indecent Representation of Women (Prohibition) Act - IRWA], 1986 में संशोधन करने का प्रस्‍ताव किया है।

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय डब्ल्यूसीडी मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा प्रस्तावित संशोधनों के मुताबिक, व्हाट्सएप और स्काइप जैसे डिजिटल मैसेजिंग प्लेटफार्मों पर महिलाओं को अश्लील तरीके से पेश करने संबंधी कृत्यों को अवैध घोषित किया जाना चाहिये।]

क्या संशोधन किये जाने चाहिये:

  • विज्ञापन की परिभाषा में संशोधन किया जाना चाहिये। इसके अंतर्गत डिजिटल स्‍वरूप या इलेक्‍ट्रॉनिक स्‍वरूप अथवा होर्डिंग या एसएमएस आदि के ज़रिये विज्ञापन को शामिल किया जाएगा है।
  • वितरण की परिभाषा में भी संशोधन किया जाना चाहिये। इसमें प्रकाशन, लाइसेंस या कंप्यूटर संसाधन का उपयोग कर अपलोड करने अथवा संचार उपकरण शामिल किये जाने चाहिये ।
  • प्रकाशन शब्‍द को परिभाषित करने के लिये नई परिभाषा को जोड़ना।
  • धारा-4 में संशोधन से कोई भी व्‍यक्ति ऐसी सामग्री को प्रकाशित या वितरित करने के लिये तैयार नहीं कर सकता, जिसमें महिलाओं का किसी भी तरीके से अशिष्‍ट निरूपण किया गया हो।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के अंतर्गत प्रदत्‍त दंड के समान दंड का प्रावधान।
  • राष्‍ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women-NCW) के तत्त्‍वावधान में केंद्रीकृत प्राधिकरण का गठन। इस प्राधिकरण की अध्‍यक्ष NCW की सदस्‍य सचिव होंगी और इसमें भारतीय विज्ञापन मानक परिषद, भारतीय प्रेस परिषद, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल होंगे तथा महिला मुद्दों पर कार्य करने का अनुभव रखने वाली एक सदस्य होगी।
  • केंद्रीयकृत प्राधिकरण को प्रसारित या प्रकाशित किये गए किसी भी कार्यक्रम या विज्ञापन से संबंधित शिकायत प्राप्‍त करने और महिलाओं के अशिष्‍ट निरूपण से जुड़े सभी मुद्दों की जाँच करने का अधिकार होगा। 

पृष्ठभूमि
प्रिंट मीडिया के साथ-साथ डिजिटल मिडिया जैसे कि इंटरनेट, एमएमएस, केबल टेलीविज़न आदि बहुत से नए माध्यमों में महिलाओं को आपत्तिजनक तरीके से पेश किया जाता है। इस प्रदर्शन पर रोक लगाने के ध्येय से इन संशोधनों को प्रस्तावित किया गया है। मूल विधेयक को सर्वप्रथम वर्ष 1986 में लाया गया था, उस समय इसमें विज्ञापनों एवं प्रकाशनों, लेखों, चित्रकला आदि माध्यमों में महिलाओं को आपत्तिजनक तरीके से पेश किये जाने पर रोक लगाने की व्यवस्था की गई थी।

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