भारतीय इतिहास
पराक्रम दिवस: नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, यह प्रतिवर्ष 23 जनवरी को मनाई जाती है।
- सुभाष चंद्र बोस की वर्षगाँठ को चिह्नित करने के लिये वर्ष भर के कार्यक्रमों की योजना बनाने हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति भी गठित की गई है।
- हाल ही में भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा किये गए उत्कृष्ट कार्यों को मान्यता देने हेतु ‘सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार’ की स्थापना की गई है।
प्रमुख बिंदु
जन्म
- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था।
परिचय
- वर्ष 1919 में बोस ने भारतीय सिविल सेवा (ICS) परीक्षा पास की, हालाँकि कुछ समय बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
- वे स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।
- उनके राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे।
कॉन्ग्रेस के साथ संबंध
- उन्होंने बिना शर्त स्वराज (Unqualified Swaraj) अर्थात् स्वतंत्रता का समर्थन किया और मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया जिसमें भारत के लिये डोमिनियन (अधिराज्य) के दर्जे की बात कही गई थी।
- उन्होंने वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया और वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन तथा गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने का विरोध किया।
- वर्ष 1930 के दशक में वह जवाहरलाल नेहरू और एम.एन. रॉय के साथ कॉन्ग्रेस की वाम राजनीति में संलग्न रहे।
- बोस ने वर्ष 1938 में हरिपुरा में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव जीता।
- इसके पश्चात् वर्ष 1939 में उन्होंने त्रिपुरी में गांधी जी द्वारा समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या के विरुद्ध पुनः अध्यक्ष पद का चुनाव जीता।
- गांधी जी के साथ वैचारिक मतभेद के कारण, बोस ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कॉन्ग्रेस से अलग हो गए। उनकी जगह राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया था।
- कॉन्ग्रेस से अलग होकर उन्होंने ‘द फॉरवर्ड ब्लॉक’ नाम से एक नया दल बनाया। इसके गठन का उद्देश्य अपने गृह राज्य बंगाल में वाम राजनीति के आधार को और अधिक मज़बूत करना था।
भारतीय राष्ट्रीय सेना
- जुलाई 1943 में वे जर्मनी से जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचे, जहाँ उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा ‘दिल्ली चलो’ जारी किया और 21 अक्तूबर, 1943 को ‘आज़ाद हिंद सरकार’ तथा ‘भारतीय राष्ट्रीय सेना’ के गठन की घोषणा की।
- भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन पहली बार मोहन सिंह और जापानी मेजर इविची फुजिवारा (Iwaichi Fujiwara) के नेतृत्त्व में किया गया था तथा इसमें मलायन (वर्तमान मलेशिया) अभियान के दौरान सिंगापुर में जापान द्वारा कैद किये गए ब्रिटिश-भारतीय सेना के युद्ध बंदियों को शामिल किया गया था।
- साथ ही इसमें सिंगापुर की जेल में बंद भारतीय कैदी और दक्षिण-पूर्व एशिया के भारतीय नागरिक भी शामिल थे। इसकी सैन्य संख्या बढ़कर 50,000 हो गई थी।
- INA ने वर्ष 1944 में इम्फाल और बर्मा में भारत की सीमा के भीतर मित्र देशों की सेनाओं का मुकाबला किया।
- नवंबर 1945 में ब्रिटिश सरकार द्वारा INA के सदस्यों पर मुकदमा चलाए जाने के तुरंत बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
जैव विविधता और पर्यावरण
पर्यावरण बनाम विकास परिचर्चा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India- NHAI) ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में दावा किया है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 को संसद द्वारा न केवल पर्यावरण संरक्षण बल्कि ‘विदेशी शक्तियों के लिये उदाहरण’ हेतु पारित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2013 के केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक नोटिफिकेशन, जिसमें 100 किमी. से अधिक लंबाई के राष्ट्रीय राजमार्गों को 40 मीटर से अधिक चौड़ा करने के लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट में छूट मांगी गई थी, के खिलाफ एक एनजीओ ‘यूनाइटेड कंज़र्वेशन मूवमेंट’ (United Conservation Movement) द्वारा याचिका दायर की गई।
- ‘यूनाइटेड कंज़र्वेशन मूवमेंट’ पर्यावरणीय संस्थाओं का एक समूह है, जिसने पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी घाट, एक टाइगर रिज़र्व और साथ ही एक वन्यजीव क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों के संदर्भ में NHAI परियोजनाओं को चुनौती दी है।
NHAI का दावा:
- NHAI ने यह आरोप लगाया है कि कई गैर-सरकारी संगठन विदेशी शक्तियों के इशारे पर अधिनियम के मानदंडों को बनाए रखने के लिये याचिका दायर करते हैं।
- अपने भारतीय प्रतिरूपों के माध्यम से ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ (Amnesty International) और ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़’ (Peoples Union for Civil liberties) जैसी विदेशी संस्थाओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट याचिका दायर की है।
- संविधान का अनुच्छेद- 32 (संवैधानिक उपचार का अधिकार): यह एक मौलिक अधिकार है, जिसमें कहा गया है कि व्यक्तियों को संविधान द्वारा प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार है।
- अपने भारतीय प्रतिरूपों के माध्यम से ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ (Amnesty International) और ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़’ (Peoples Union for Civil liberties) जैसी विदेशी संस्थाओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट याचिका दायर की है।
- NHAI ने आरोप लगाया है कि भारत में कई संगठन, जो पर्यावरणीय कार्रवाई और मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्य करते हैं, सक्रिय रूप से विकास परियोजनाओं का विरोध करने, सरकारी नीतियों को चुनौती देने और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहते हैं।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 एक ऐसा अधिनियम है जो जून 1972 (स्टॉकहोम सम्मेलन) में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन से प्रभावित था।
न्यायालय का निर्णय:
- उच्च न्यायालय ने NHAI के अध्यक्ष को निर्देश दिया है कि आपत्ति दर्ज करने के तरीके का विश्लेषण करने और पूछताछ के लिये एक वरिष्ठ अधिकारी को नामित किया जाए।
- उच्च न्यायालय ने ‘यूनाइटेड कंज़र्वेशन मूवमेंट’ से अपने संविधान तथा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में की गई गतिविधियों से संबंधित विवरण प्रदान करने को भी कहा है।
विकास बनाम पर्यावरण:
पर्यावरण का महत्त्व:
- पर्यावरण का आर्थिक महत्त्व कुछ पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं से स्पष्ट होता है। इसमें शामिल हैं:
- प्रावधान सेवाएँ (खाद्य, सिंचाई, पेयजल)।
- विनियमन सेवाएँ (जलवायु विनियमन, जल गुणवत्ता विनियमन)।
- सांस्कृतिक सेवाएँ (मनोरंजन और धार्मिक सेवाएँ)।
- सहायक सेवाएँ (पोषक तत्त्व, रिसाइक्लिंग, मृदा निर्माण)।
- लाखों परिवार विकासात्मक गतिविधियों, उत्पादन और उपभोग के लिये इन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का उपयोग करते हैं।
विकास के साथ पर्यावरण का संबंध:
- आर्थिक विकास के वांछित स्तर को प्राप्त करने के लिये तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण अपरिहार्य है।
- माना जाता है कि प्रति व्यक्ति आय में पर्याप्त वृद्धि के लिये यह आवश्यक है।
- हालाँकि इन आय अर्जन करने वाली गतिविधियों की वजह से प्रदूषण जैसे नकारात्मक पर्यावरणीय परिणाम उत्पन्न होते हैं।
- व्यापक रूप से बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन और गरीबी में कमी जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये पर्यावरण की गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है।
- यह माना जाता है कि वित्तीय और तकनीकी क्षमताओं में वृद्धि के साथ-साथ आय के स्तर में क्रमिक वृद्धि द्वारा पर्यावरण की गुणवत्ता को बहाल किया जा सकता है।
- वास्तविकता यह है कि विकासात्मक गतिविधियाँ पर्यावरण की गुणवत्ता को खराब करती हैं।
पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करने वाले विकासीय कारक:
पर्यावरणीय अनुपालन का अभाव:
- पर्यावरणीय सिद्धांतों की उपेक्षा इस बात का गंभीर संकेत है कि प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से कई बार जन-धन की हानि होती है।
- किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक खतरों से होने वाले जोखिम का वैज्ञानिक रूप से पता लगाने के लिये किये जाने वाले कार्य कभी-कभी ही सही भावना से किये जाते हैं।
- अनियमित खदान और पहाड़ियों में ढलान की मिट्टी के अवैज्ञानिक कटाव का खतरा बढ़ने से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
सब्सिडी का बुरा प्रभाव:
- समाज के कमज़ोर वर्गों के कल्याण के लिये सरकार बड़ी मात्रा में सब्सिडी प्रदान करती है।
- ऊर्जा और बिजली जैसी सेवाओं में सब्सिडी प्रदान करने से इनके अति प्रयोग से पर्यावरणीय स्थिरता प्रभावित होती है।
- इसके अलावा सब्सिडी राजस्व आधार को कम करती है और सरकार की नई स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की क्षमता को सीमित करती है।
पर्यावरणीय संसाधनों तक पहुँच:
- सभी को प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच प्राप्त है और कोई भी उपयोगकर्त्ता पर्यावरणीय गिरावट की पूरी लागत वहन नहीं करता है, इसके परिणामस्वरूप संसाधनों का अत्यधिक उपयोग होता है।
जनसांख्यिकी गतिशीलता की जटिलता:
- बढ़ती जनसंख्या अविकसितता और पर्यावरणीय गिरावट के बीच संबंधों को बढ़ाती है।
- इसके अलावा गरीबी के कारण बड़े परिवार तथा पलायन की समस्या उत्पन्न होती है, जो शहरी क्षेत्रों को पर्यावरणीय रूप से अस्थिर बनाता है।
- दोनों परिणामों की वजह से संसाधनों पर दबाव बढ़ता है और इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट आती है, उत्पादकता कम हो जाती है और गरीबी बढ़ जाती है।
आगे की राह:
- विकास मानवता के सामने सबसे बड़ी ज़रूरत के साथ-साथ एक चुनौती बना हुआ है। हालाँकि पिछली सदी में अभूतपूर्व आर्थिक और सामाजिक प्रगति के बावजूद गरीबी, अकाल और पर्यावरणीय गिरावट जैसी समस्याएँ अभी भी वैश्विक स्तर पर बनी हुई हैं।
- इसके अलावा अब तक की विकासात्मक प्रगति ने पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपूरणीय क्षति को दर्शाना शुरू कर दिया है।
- इस प्रकार पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन किये बिना विकास लक्ष्यों का पालन किया जाना चाहिये।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अरुणाचल प्रदेश में चीन के नए गाँव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में बुम ला दर्रे से 5 किलोमीटर की दूरी पर चीन द्वारा तीन गाँवों का निर्माण किये जाने की खबरें सामने आई हैं।
- बुम ला दर्रा भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच आधिकारिक सहमति वाले बार्डर पर्सनल मीटिंग (BPM) के चार पॉइंट्स में से एक है।
- इससे पहले वर्ष 2020 में चीन ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण एक रेलवे लाइन पर काम शुरू किया था जो सिचुआन प्रांत को तिब्बत में निंगची से जोड़ेगा, यह रेलवे लाइन भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास है।
प्रमुख बिंदु:
पिछले वर्ष निर्मित नया गाँव:
- नवंबर 2020 तक की सैटेलाइट इमेज दर्शाती हैं कि अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबानसिरी ज़िले में त्सारी चू नदी के तट पर एक पूर्ण विकसित गाँव का निर्माण किया गया है।
- यह गाँव वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पार कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- पहले इस क्षेत्र में चीन ने सैन्य बैरकों का स्थायी निर्माण किया था।
- यह क्षेत्र वर्ष 1959 से चीन के नियंत्रण में है।
- यह मैकमोहन रेखा से कम-से-कम 2 किमी. दक्षिण में (भारतीय क्षेत्र में) स्थित है, जिसे चीन मान्यता नहीं देता है। वर्ष 1962 के युद्ध के बाद भारत ने इस क्षेत्र में गश्त बंद कर दी।
- चीन के अनुसार, वह मैकमोहन रेखा को इसलिये अस्वीकार करता है क्योंकि वर्ष 1914 में शिमला में आयोजित कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले तिब्बती प्रतिनिधियों ने मैकमोहन लाइन को मानचित्र पर दर्शाया था जो कि ऐसा करने के लिये अधिकृत नहीं थे।
असहमति के अन्य स्थान:
- वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के संपूर्ण क्षेत्र में लगभग दो दर्जन ऐसे स्थान हैं जिनकी स्थिति को लेकर भारत और चीन के बीच आपसी सहमति नहीं है।
- वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC):
- इसे तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
- पूर्वी क्षेत्र जो अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम तक फैला है (1346 किमी.)।
- मध्य क्षेत्र का विस्तार उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश में है (545 किमी.)।
- पश्चिमी क्षेत्र के अंतर्गत लद्दाख आता है (1597 किमी.)।
- अरुणाचल प्रदेश का मामला:
- भारत द्वारा किया जाने वाला दावा LAC से अलग है। यह वह रेखा है जिसे सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा जारी नक्शे पर आधिकारिक रूप में दर्शाया गया था तथा इसमें अक्साई चिन (चीन के कब्ज़े में) भी शामिल है। अरुणाचल प्रदेश भारत का एक 'अभिन्न और अविछिन्न' भाग है।
- चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत के रूप में दावा करता है।
चीन का इरादा:
- विश्लेषकों ने गाँव के निर्माण को उस क्षेत्र में चीन के दावे को मज़बूत करने के कदम के रूप में देखा है। चीन द्वारा हाल ही में विवादित सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिक बस्तियों के निर्माण पर ज़ोर दिया गया है। उदाहरण के लिये भूटान से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में भी चीन द्वारा इस प्रकार के निर्माण किये गए हैं।
भारत पर प्रभाव:
- सुरक्षा संबंधी मुद्दे:
- सीमा के निकट गाँव की स्थापना करना काफी हद तक चीन के लिये सैन्यकर्मियों और सैन्य सामग्री के परिवहन की क्षमता तथा सीमा क्षेत्र में रसद आपूर्ति की सुविधा को बढ़ाएगा।
- अरुणाचल प्रदेश की सीमा के आस-पास प्रत्यक्ष गतिरोध की स्थिति में चीन लाभप्रद स्थिति में हो सकता है, जैसा कि डोकलाम या हाल ही में लद्दाख में गतिरोध के दौरान देखा गया था।
- डोकलाम मुद्दा: दरअसल विवादित स्थान डोलाम पठार पर स्थित है, जिसे भारतीय विदेश मंत्रालय और नई दिल्ली स्थित भूटान के दूतावास के बयानों में डोकलाम क्षेत्र कहा गया है।
- डोलाम पठार और डोकलाम पठार अलग-अलग हैं। डोकलाम पठार को लेकर चीन और भूटान के बीच विवाद है, इसकी भारत के साथ संलग्नता नहीं है।
- डोकलाम पठार, डोलाम पठार के उत्तर-पूर्व में 30 किमी. दूर स्थित है। डोकलाम को चीनी भाषा मंदारिन में डोंगलांग कहा जाता है।
- डोकलाम क्षेत्र कीप (Funnel) के आकार जैसी घाटी के उत्तरी छोर के निकट है, जिसे चुम्बा घाटी कहा जाता है।
- यह घाटी चीन के तिब्बत क्षेत्र में फैली है और वहाँ इसका विस्तार चौड़ाई में 54 किमी. तक है, जबकि मुहाने पर इसकी चौड़ाई केवल 11 किमी. है।
- यह बटांग ला है, जो गंगटोक के पूर्व में स्थित है। कीप जैसी आकार की चुम्बा घाटी का क्षेत्रफल इसके सिरे से आधार तक कुल 70 किमी. है।
- डोकलाम मुद्दा: दरअसल विवादित स्थान डोलाम पठार पर स्थित है, जिसे भारतीय विदेश मंत्रालय और नई दिल्ली स्थित भूटान के दूतावास के बयानों में डोकलाम क्षेत्र कहा गया है।
भारत द्वारा हाल ही में उठाए गए कदम:
- भारत सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Border Area Development Programme) का 10% धन केवल चीन की सीमा से लगे अपने बुनियादी ढाँचे में सुधार पर खर्च करेगा।
- सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation) ने अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी नदी के ऊपर दापोरीजो पुल (Daporijo Bridge) का निर्माण सिर्फ 27 दिनों के रिकॉर्ड समय में पूरा किया।
- यह भारत और चीन के बीच LAC तक जाने वाली सड़कों को जोड़ता है।
- हाल ही में रक्षा मंत्री ने अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले में नेचिफु (Nechiphu) में एक सुरंग की नींव रखी।
- यह सैनिकों को तवांग की तरफ से LAC तक पहुँचने में लगने वाले समय को कम कर देगा, जिसे चीन अपना क्षेत्र बताता है।
- अरुणाचल प्रदेश में BRO पहले से ही ‘से ला दर्रा’ (Se La Pass) के तहत एक सुरंग का निर्माण कर रहा है जो तवांग को अरुणाचल और गुवाहाटी के बाकी हिस्सों से जोड़ती है।
- अरुणाचल प्रदेश सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्रों से शहरी केंद्रों की ओर जनसंख्या के पलायन (विशेष रूप से चीन सीमा के साथ लगे क्षेत्रों से) को रोकने के लिये केंद्र सरकार से पायलट विकास परियोजनाओं की मांग की है।
- हाल ही में रक्षा मंत्री ने अरुणाचल प्रदेश के निचली दिबांग घाटी में स्थित सिसेरी नदी पुल (Sisseri River Bridge) का उद्घाटन किया, जो दिबांग घाटी (Dibang Valley) और सियांग (Siang) को जोड़ता है।
- अरुणाचल प्रदेश के सबसे पूर्वी गाँव विजय नगर (चांगलांग ज़िला) में भारतीय वायु सेना ने वर्ष 2019 में एक रनवे का उद्घाटन किया।
- भारतीय सेना ने वर्ष 2019 में अपने पहले एकीकृत युद्ध समूह (Integrated Battle Group) के साथ अरुणाचल प्रदेश और असम में 'हिम विजय' (HimVijay) सैन्य अभ्यास किया।
- भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 में असम के डिब्रूगढ़ को अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट से जोड़ने वाले देश के सबसे लंबे सड़क और रेल पुल 'बोगीबील पुल' (Bogibeel Bridge) का उद्घाटन किया था।
- यह भारत-चीन सीमा के आस-पास के क्षेत्रों में सैनिकों और उपकरणों की त्वरित आवाजाही की सुविधा प्रदान करेगा।
आगे की राह
- भारत को अपने हितों की रक्षा के लिये सीमा के पास चीन द्वारा किये जाने वाले किसी भी नए विकास से सतर्क रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा इसे अपने सीमा क्षेत्रों में मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की आवश्यकता है ताकि सैन्यकर्मियों और अन्य सैन्य सामानों को यहाँ आसानी से पहुँचाया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
यातायात उल्लंघन प्रीमियम
चर्चा में क्यों?
भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) द्वारा यातायात प्रबंधन के लिये गठित एक कार्यसमूह ने ‘यातायात उल्लंघन प्रीमियम’ (Traffic Violation Premium) शुरू करने की सिफारिश की है।
- इससे पहले सितंबर 2019 में, IRDAI ने मोटर इंश्योरेंस प्रीमियम को यातायात उल्लंघन के साथ संबद्ध करने वाली प्रणाली की स्थापना हेतु एक कार्यसमूह का गठन किया था।
प्रमुख बिंदु
प्रीमियम के विषय में:
- वाहन मालिकों को वाहन से जुड़े यातायात उल्लंघन के आधार पर बीमा प्रीमियम का भुगतान करना पड़ सकता है।
- कार्यसमूह ने मोटर बीमा में इसके लिये एक पाँचवीं धारा ‘‘यातायात उल्लंघन प्रीमियम’’ को जोड़ने का सुझाव दिया गया है। इस प्रीमियम को मोटर के खुद के नुकसान, तीसरे पक्ष के मूल एवं अतिरिक्त बीमा और अनिवार्य व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा प्रीमियम के अलावा रखे जाने का सुझाव दिया गया है।
- प्रीमियम की गणना:
- यातायात उल्लंघन के मामलों की गणना विभिन्न यातायात अपराधों की आवृत्ति और गंभीरता को आधार मानते हुए की जाती है।
- यातायात उल्लंघन प्रीमियम की राशि ड्राइविंग आदतों पर निर्भर करेगी जिसका निर्धारण चालानों की संख्या तथा उनके प्रकार के आधार पर किया जाएगा।
- यातायात उल्लंघन प्रीमियम वाहन के पंजीकृत मालिक (चाहे वह कोई व्यक्ति हो अथवा इकाई) द्वारा देय होगा।
- अंको (पॉइंट्स) की गणना:
- कार्यसमूह द्वारा उपलब्ध कराई गई अपराधों की तालिका के अनुसार, शराब पीकर गाड़ी चलाने पर 100 अंकों का ज़ुर्माना लगेगा, जबकि गलत पार्किंग के लिये 10 अंकों का ज़ुर्माना होगा। प्रीमियम की राशि की गणना इन अंकों के आधार पर की जाएगी।
- डेटा संग्रहण:
- ट्रैफिक चालान का डेटा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) द्वारा संग्रहीत किया जाएगा और इसे दैनिक आधार पर भारतीय बीमा सूचना ब्यूरो (Insurance Information Bureau of India- IIB) के साथ साझा किया जाएगा।
- IIB का उद्देश्य बीमाकर्त्ताओं, नियामक और सरकारी एजेंसियों सहित बीमा क्षेत्र के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी हितधारकों को एक पूर्ण, सुसंगत एवं संक्षिप्त तरीके से सूचना समर्थन प्रदान करना है।
- ट्रैफिक चालान का डेटा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) द्वारा संग्रहीत किया जाएगा और इसे दैनिक आधार पर भारतीय बीमा सूचना ब्यूरो (Insurance Information Bureau of India- IIB) के साथ साझा किया जाएगा।
- प्रक्रिया:
- यह प्रीमियम वाहन पर है न कि चालक पर। इसका तात्पर्य यह है कि जब कोई नया वाहन खरीदा जाएगा तो इसके लिये यातायात उल्लंघन का अंक शून्य से शुरू होगा और इसके मालिक द्वारा वाहन का बीमा कराए जाने पर किसी भी यातायात उल्लंघन के प्रीमियम का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी, भले ही उस वाहन मालिक द्वारा पूर्व में कोई यातायात उल्लंघन किया गया हो (चाहे वह किसी और के स्वामित्त्व वाले वाहन चालक के रूप में किया गया यातायात उल्लंघन हो या स्वयं के किसी भी प्रकार की श्रेणी के वाहन द्वारा)।
- हालाँकि यदि कोई व्यक्ति मोटर बीमा का नवीनीकरण कराता है, तो यातायात उल्लंघन प्रीमियम के लिये उसके यातायात उल्लंघन अंकों का भी मूल्यांकन किया जाएगा जिसका भुगतान करना आवश्यक होगा।
- बिक्री के बाद वाहन बीमा हस्तांतरण के मामले में, वाहन स्वामित्व हस्तांतरण की तिथि से यातायात उल्लंघन प्रीमियम की शुरुआत शून्य से होगी।
- प्रयुक्त तकनीक:
- भारतीय बीमा सूचना ब्यूरो (IIB) यातायात उल्लंघन डेटा को प्राप्त करने, उल्लंघन करने वाले प्रत्येक वाहन के यातायात उल्लंघन अंकों की गणना करने और सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली एकीकरण के माध्यम से सभी सामान्य बीमाकर्त्ताओं को यह जानकारी उपलब्ध कराने के लिये विभिन्न राज्यों की यातायात पुलिस और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के साथ समन्वय स्थापित करेगा।
भारत में सड़क दुर्घटनाएँ:
- सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) द्वारा जारी ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएँ- 2018 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 4.67 लाख सड़क दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 1.51 लाख नागरिक मारे गए।
- विश्व सड़क सांख्यिकी- 2018 के अनुसार, विश्व के 199 देशों में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों की संख्या में भारत पहले स्थान पर था। इसके बाद क्रमशः चीन तथा अमेरिका का स्थान था।
सरकार द्वारा किये गए अन्य उपाय:
- सरकार ने पहले से ही संशोधित मोटर वाहन अधिनियम 2019 में विभिन्न प्रकार के यातायात उल्लंघनों के मामले में भारी ज़ुर्माने का प्रावधान किया है। इसके अलावा, भारत सरकार महानगर और स्मार्ट शहरों में इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (ntelligent Traffic Management System) पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, इकोनॉमिक टाइम्स एवं टाइम्स ऑफ इंडिया
जैव विविधता और पर्यावरण
भारत का आर्कटिक नीति मसौदा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने एक नया आर्कटिक नीति मसौदा तैयार किया है, जिसका उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान, स्थायी पर्यटन और खनिज तेल एवं गैस की खोज को बढ़ावा देना है।
प्रमुख बिंदु
नीति के बारे में
- नोडल निकाय: भारत ने आर्कटिक में घरेलू वैज्ञानिक अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा देने और विभिन्न वैज्ञानिक निकायों के बीच समन्वय हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान का नेतृत्त्व करने के लिये गोवा स्थित नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) को एक नोडल निकाय के रूप में नामित किया है।
- उद्देश्य
- आर्कटिक में वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा देना: भारतीय विश्वविद्यालयों में पृथ्वी विज्ञान, जैविक विज्ञान, भू-विज्ञान, जलवायु परिवर्तन आदि विषयों के पाठ्यक्रम में आर्कटिक को शामिल करना और आर्कटिक में वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा देना।
- योजनाबद्ध अन्वेषण: पेट्रोलियम अनुसंधान संस्थानों में खनिज/तेल और गैस की खोज के लिये आर्कटिक से संबंधित कार्यक्रमों हेतु प्रभावी योजना तैयार करना।
- आर्कटिक पर्यटन को बढ़ावा देना: विशेष क्षमता के निर्माण और जागरूकता द्वारा आर्कटिक क्षेत्र में पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्रों को प्रोत्साहित करना।
आर्कटिक के बारे में
- आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
- आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को शामिल किया जाता है।
आर्कटिक पारिस्थितिकी पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
- समुद्र का बढ़ता स्तर: बर्फ के पिघलने और समुद्री जल के तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण समुद्र स्तर, लवणता का स्तर और अवक्षेपण पैटर्न प्रभावित होता है।
- टुंड्रा का ह्रास: टुंड्रा क्षेत्र का दलदल में बदलना, पर्माफ्रॉस्ट के विगलन, अचानक आने वाले तूफानों के कारण तटीय इलाकों को होने वाली क्षति और वनाग्नि की वजह से कनाडा एवं रूस के आंतरिक भागों में भारी तबाही के मामलों में वृद्धि हुई है।
- टुंड्रा: टुंड्रा पारिस्थितिक तंत्र आर्कटिक में और पहाड़ों की चोटी पर पाया जाने वाला वह क्षेत्र है, जहाँ वृक्ष नहीं पाए जाते हैं, प्रायः यहाँ की जलवायु ठंडी होती है और वर्षा भी बहुत कम होती है।
- जैव विविधता के लिये खतरा: आर्कटिक क्षेत्र की अभूतपूर्व समृद्ध जैव विविधता गंभीर खतरे की स्थिति में है।
- बर्फबारी में कमी और उच्च तापमान के कारण आर्कटिक समुद्री जीवन, पौधों और पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो रहा है, जबकि कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों के जीव इस क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो रहे हैं।
- विलक्षण संस्कृतियों का विलुप्त होना: आर्कटिक में लगभग 40 अलग-अलग स्वदेशी समूह निवास करते हैं, जिनकी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और जीवनयापन का तरीका अलग-अलग है। तापमान में बढ़ोतरी के कारण इन विभिन्न समूहों की विशिष्ट संस्कृति पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
आर्कटिक का वाणिज्यिक महत्त्व
- संसाधन: आर्कटिक क्षेत्र शिपिंग, ऊर्जा, मत्स्य पालन और खनिज संसाधनों में संपूर्ण विश्व के समक्ष विशाल वाणिज्यिक एवं आर्थिक अवसर प्रस्तुत करता है।
- वाणिज्यिक नेवीगेशन
- उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR): यह एक छोटे ध्रुवीय चाप के माध्यम से उत्तरी अटलांटिक महासागर को उत्तरी प्रशांत महासागर से जोड़ता है, जो कि रूस और स्कैंडिनेवियाई देशों के व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।
- इस मार्ग के खुलने से रॉटर्डम (नीदरलैंड) से योकोहामा (जापान) की दूरी में 40% की कटौती (स्वेज नहर मार्ग की तुलना में) होगी।
- यह परिवहन अवधि और ईंधन की खपत को कम करने, पर्यावरण उत्सर्जन को सीमित करने तथा समुद्री डकैती के जोखिम को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।
- तेल और प्राकृतिक गैस भंडार
- एक अनुमान के अनुसार, विश्व में अब तक न खोजे गए नए प्राकृतिक तेल और गैस के भंडारों में से 22% आर्कटिक क्षेत्र में हैं, साथ ही अन्य खनिजों के अतिरिक्त ग्रीनलैंड में विश्व के 25% दुर्लभ मृदा धातुओं के होने का अनुमान है। बर्फ के पिघलने के बाद इन बहुमूल्य खनिज स्रोतों तक आसानी से पहुँचा जा सकेगा।
- उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR): यह एक छोटे ध्रुवीय चाप के माध्यम से उत्तरी अटलांटिक महासागर को उत्तरी प्रशांत महासागर से जोड़ता है, जो कि रूस और स्कैंडिनेवियाई देशों के व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।
संबंधित मुद्दे
- इस क्षेत्र में नौचालन की स्थिति खतरनाक है और यह गर्मियों में प्रतिबंधित है।
- गहरे पानी वाले बंदरगाहों की कमी, बर्फ तोड़ने वाले जहाज़ों की आवश्यकता, ध्रुवीय परिस्थितियों के लिये प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी और उच्च बीमा लागत आर्कटिक के संसाधनों के दोहन हेतु कठिनाइयों को बढ़ाता है।
- इसके अलावा खनन और गहरे समुद्र में ड्रिलिंग कार्य में भारी आर्थिक और पर्यावरणीय जोखिम बना रहता है।
- अंटार्कटिका के विपरीत आर्कटिक ‘ग्लोबल कॉमन’ का हिस्सा नहीं है और न ही इसे नियंत्रित करने वाली कोई विशिष्ट संधि मौजूद है।
आर्कटिक क्षेत्र संबंधी विवाद
- इस क्षेत्र में विस्तारित महाद्वीपीय भागों और समुद्र की तलहटी में संसाधनों पर अधिकार के दावों के लिये रूस, कनाडा, नॉर्वे और डेनमार्क के बीच टकराव है।
- हालाँकि रूस इस क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति है, जिसके पास सबसे लंबा आर्कटिक समुद्र तट, आधी आर्कटिक आबादी और एक मज़बूत सामरिक नीति है।
- रूस यह दावा करते हुए कि उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) उसके क्षेत्रीय जल के भीतर है, अपने बंदरगाहों और बर्फ तोड़ने वाले जहाज़ों के उपयोग समेत वाणिज्यिक यातायात से भारी लाभांश की उम्मीद करता है।
- रूस ने अपने उत्तरी सैन्य ठिकानों को भी सक्रिय कर दिया है, इसके अलावा वह अपने परमाणु सशस्त्र पनडुब्बी बेड़े को नवीनीकृत करने के साथ-साथ अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन भी कर रहा है, जिसमें पूर्वी आर्कटिक में चीन के साथ एक संयुक्त अभ्यास भी शामिल है।
- अपने आर्थिक लाभ को देखते हुए चीन ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना’ (BRI) के विस्तार के रूप में एक ‘ध्रुवीय सिल्क रोड’ की अवधारणा प्रस्तुत की है और साथ ही उसने इस क्षेत्र में बंदरगाहों, ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे एवं खनन परियोजनाओं में भारी निवेश किया है।
आर्कटिक क्षेत्र में भारत का हित
- पर्यावरणीय हित
- भारत की व्यापक समुद्री तटरेखा समुद्र की धाराओं, मौसम के पैटर्न, मत्स्य पालन और मानसून पर आर्कटिक वार्मिंग के प्रभाव के प्रति हमें संवेदनशील बनाती है।
- आर्कटिक अनुसंधान से भारत के वैज्ञानिक समुदाय को हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर का अध्ययन करने में मदद मिलेगी।
- वैज्ञानिक हित
- शोध केंद्र: भारत ने वर्ष 2007 में आर्कटिक महासागर में अपना पहला वैज्ञानिक अभियान शुरू किया और ग्लेशियोलॉजी, एट्रोसोनिक विज्ञान तथा जैविक विज्ञान जैसे विषयों में अध्ययन करने के लिये जुलाई 2008 में नॉर्वे के स्वालबार्ड में ‘हिमाद्री’ नाम से एक शोध केंद्र खोला।
- हिमालयी ग्लेशियरों का अध्ययन: आर्कटिक के बदलावों पर हो रहे वैज्ञानिक अनुसंधान, जिसमें भारत का अच्छा रिकॉर्ड रहा है, तीसरे ध्रुव (हिमालय) में जलवायु परिवर्तन को समझने में सहायक होगा।
- रणनीतिक हित
- चीन का मुकाबला: आर्कटिक क्षेत्र में चीन की सक्रियता के रणनीतिक निहितार्थ और वर्तमान में रूस के साथ इसके आर्थिक तथा रणनीतिक संबंधों में हो रही वृद्धि सर्वविदित है, अतः वर्तमान में इसकी व्यापक निगरानी की आवश्यकता है।
- आर्कटिक परिषद की सदस्यता: भारत को आर्कटिक परिषद (Arctic Council) में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है, जो आर्कटिक पर्यावरण और विकास के पहलुओं पर सहयोग के लिये प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।
आगे की राह
- वर्तमान में यह बहुत आवश्यक है कि आर्कटिक परिषद में भारत की उपस्थिति को आर्थिक, पर्यावरणीय, वैज्ञानिक और राजनीतिक पहलुओं को शामिल करने वाली सामरिक नीतियों के माध्यम से मज़बूती प्रदान की जाए। इस प्रकार नया आर्कटिक नीति मसौदा तैयार करना मौजूदा समय में काफी महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
डिजिटल कॉपीराइट भुगतान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गूगल ने ऑनलाइन समाचार सामग्री के लिये डिजिटल कॉपीराइट भुगतान (Digital Copyright Payments) हेतु फ्राँसीसी प्रकाशकों के एक समूह के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- समाचार प्रकाशकों के साथ रॉयल्टी के बँटवारे को लेकर ऑस्ट्रेलियाई सरकार और विश्व के बड़े तकनीकी प्लेटफॉर्म्स (गूगल और फेसबुक) के बीच रस्साकशी चल रही है।
प्रमुख बिंदु:
गूगल-फ्रेंच सौदा:
- फ्राँस, यूरोपीय संघ के कॉपीराइट नियमों को राष्ट्रीय कानून के रूप में लागू करने वाला पहला देश बना, जिसके चलते नेबरिंग राइट्स लॉ (Neighbouring Rights Law) प्रभाव में आया।
- नेबरिंग राइट्स (Neighbouring Rights): विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के अनुसार, नेबरिंग राइट्स जनता के लिये काम करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के कानूनी अधिकारों की रक्षा करते हैं। वे व्यक्ति और संस्थाएँ जो लोगों को ऐसी विषय सामग्री उपलब्ध कराने में सहायता करती हैं, कॉपीराइट के तहत काम करने से प्रतिबंधित हैं, इसमें पर्याप्त रचनात्मकता या तकनीकी तथा संगठनात्मक कौशल शामिल है।
- EU द्वारा अपनाए गए नए दिशा-निर्देश यह सुनिश्चित करते हैं कि मीडिया संस्थानों को उनके मूल कंटेंट (मुख्य रूप से समाचार) जिसे फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी तकनीकी संस्थानों द्वारा प्रसारित किया जाता है, को उचित रायल्टी प्रदान की जाए।
- नए कानून के तहत गूगल को प्रकाशकों और समाचार एजेंसियों की मूल सामग्री का पुन: उपयोग करने के बदले उचित भुगतान करने के बारे में उनसे बातचीत के लिये विवश होना पड़ा।
यूरोपीय संघ कॉपीराइट नियम:
- यह एक ऐसा व्यापक ढाँचा स्थापित करने का प्रयास करता है जहाँ कॉपीराइट सामग्री, कॉपीराइट धारक, प्रकाशक, प्रदाता और उपयोगकर्त्ता सभी उन नियमों से लाभान्वित हो सकते हैं, जिन्हें डिजिटल युग के अनुकूल बनाया गया है।
- यह शिक्षा, अनुसंधान और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु कॉपीराइट सामग्री का उपयोग करने का व्यापक अवसर प्रदान करता है।
- नागरिकों के लिये कॉपीराइट-सुरक्षित सामग्री की बेहतर सीमा पार और ऑनलाइन पहुँच।
- कॉपीराइट बाज़ार के बेहतर कामकाज के लिये उचित नियम जो उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री के निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया का मुद्दा:
- गूगल ने ऑस्ट्रेलिया से अपने सर्च इंजन को हटाने को कहा है और फेसबुक ने कहा है कि यदि रॉयल्टी भुगतान के प्रस्तावित मानदंडों को लागू किया जाता है तो वह ऑस्ट्रेलियाई उपयोगकर्त्ताओं को अपनी साईट पर समाचार लिंक पोस्ट या साझा करने से रोक सकता है।
- रायल्टी भुगतान: रॉयल्टी किसी व्यक्ति को दिया जाने वाला वह कानूनी रूप से बाध्यकारी भुगतान है, जो कि उसके द्वारा बनाई गई ओरिज़नल या मूल संपत्ति (कॉपीराइट , फ्रेंचाइजी, और प्राकृतिक संसाधनों सहित) के उपयोग के लिये दी जाती है।
- प्रौद्योगिकी कंपनियों का तर्क :
- ऑस्ट्रेलियाई मीडिया उद्योग प्रत्येक डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा लाए गए ट्रैफिक द्वारा पहले से ही लाभान्वित हो रहा है।
- ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों द्वारा प्रस्तावित नए नियमों से इन कंपनियों को व्यापक वित्तीय और परिचालन जोखिम का सामना करना पड़ सकता है।
- अधिकारियों द्वारा प्रस्तावित भारी जुर्माने को एक अतिरिक्त हतोत्साहक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
- इस मुद्दे पर फ्राँसीसी और ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण में मूलभूत अंतर यह है कि ऑस्ट्रेलिया की तरह समझौतों के लिये विवश करने की बजाय फ्राँस ने भुगतान की इस मांग को विशेष रूप से कॉपीराइट से जोड़कर प्रस्तुत किया है।
भारत के लिये महत्त्व:
- डिजिटल प्रौद्योगिकियों ने रचनात्मक सामग्री के उत्पादन, वितरण और इसकी खपत के तरीकों को बदल दिया है।
- यूरोपीय संघ का नए दिशा-निर्देश और ऑस्ट्रेलिया में कॉपीराइट रॉयल्टी को लेकर चल रही रस्साकशी भारत सहित विश्व भर में कॉपीराइट नियमों को अद्यतन करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है ताकि डिजिटल उत्पादकों को भी कॉपीराइट भुगतान में सक्षम बनाने हेतु नीतियों और कानूनों का समन्वयन किया जा सके।
- FICCI-EY रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में वर्ष 2020 के लिये देश में ऑनलाइन समाचार साइटों, पोर्टलों और एग्रीगेटर्स हेतु कुल उपयोगकर्त्ताओं की संख्या लगभग 300 मिलियन बताई गई है।
- भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन समाचार की मांग वाला देश है जहाँ इसके उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 282 मिलियन है।
- ड्राफ्ट कॉपीराइट (संशोधन नियम), 2019 भारतीय कंटेंट क्रिएटर्स और उपयोगकर्त्ताओं के हितों को सुरक्षित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
- भारत में मौजूदा कॉपीराइट कानून:
- भारत में कॉपीराइट से जुड़े मामलों को कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और कॉपीराइट नियम, 2013 द्वारा शासित किया जाता है।
- 'कॉपीराइट नियम, 2013' को अंतिम बार कॉपीराइट संशोधन नियम, 2016 के माध्यम से वर्ष 2016 में संशोधित किया गया था।
- भारत में मौजूदा कॉपीराइट कानून:
ड्राफ्ट कॉपीराइट (संशोधन नियम), 2019
- शामिल एजेंसी: इसे ‘उद्योग संवर्द्धन और आतंरिक व्यापार विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा जारी किया गया था।
- उद्देश्य : इस संशोधन को इसलिये लागू किया जा रहा है ताकि कॉपीराइट अधिनियम को अन्य प्रासंगिक विधानों के समतुल्य लाया जा सके और कॉपीराइट अधिनियम तथा वर्तमान डिजिटल युग में तकनीकी प्रगति के बीच समन्वय सुनिश्चित किया जा सके।
- ड्राफ्ट नियमों में प्रस्ताव:
- एक अपीलीय बोर्ड का गठन:
- कॉपीराइट बोर्ड की जगह एक अपीलीय बोर्ड (Appellate Board) का गठन।
- बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 के प्रावधानों के अनुसार नियुक्त किया जाएगा।
- शुल्क निर्धारण योजनाएँ:
- यह उन तरीकों को भी संशोधित करने का प्रस्ताव करता है जिसकी सहायता से कॉपीराइट सोसायटी (Copyright Societies) अपनी टैरिफ योजनाओं (Tariff Schemes) को सुनिश्चित करती हैं।
- एक अपीलीय बोर्ड का गठन:
- कॉपीराइट सोसायटी: यह एक कानूनी निकाय है जो वाणिज्यिक प्रबंधन के क्षेत्र में रचनात्मक लेखकों को उनके हितों की सुरक्षा का आश्वासन देती है।
- ये सोसाइटी लाइसेंस जारी करती हैं और टैरिफ स्कीम के अनुसार रॉयल्टी जमा करती हैं।
- DPIIT ने संशोधनों में प्रस्ताव दिया है कि कॉपीराइट सोसायटी टैरिफ का निर्धारण करते समय “क्रॉस-सेक्शनल टैरिफ तुलना (Cross-Sectional Tariff Comparisons), आर्थिक अनुसंधान, लेखन के उपयोग की प्रकृति और विस्तार, उपयोग संबंधी अधिकारों का व्यावसायिक मूल्य एवं लाइसेंस-धारियों को लाभ" आदि पहलुओं पर विचार कर सकती है।
- प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार, कॉपीराइट सोसायटी द्वारा अपनी वेबसाइट पर प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये ‘वार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट’ (The Annual Transparency) का प्रकाशन अनिवार्य किया जाना चाहिये।
आगे की राह
- सभी हितधारकों के हितों का ध्यान रखना: यह भारत को एक टिकाऊ कानूनी ढाँचे के तहत रचनात्मक सामग्री के ऑनलाइन निर्माण और वितरण के लिये अपनी प्राथमिकताओं को संतुलित करने का अवसर प्रदान करता है।
- परिवर्तन के साथ तालमेल: भारत को यह मानना चाहिये कि कॉपीराइट कानूनों को इंटरनेट के उपयोग में होने वाले परिवर्तन और बाज़ार के डिजिटलाइज़ेशन तथा वैश्वीकरण के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये गतिशील होना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय इतिहास
श्री नारायण गुरु
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु (Sree Narayana Guru) की कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद, "नॉट मैनी, बट वन" (Not Many, But One) लॉन्च किया है।
प्रमुख बिंदु
जन्म:
- श्री नारायण गुरु का जन्म 22 अगस्त, 1856 को केरल के तिरुवनंतपुरम के पास एक गाँव चेमपज़ंथी (Chempazhanthy) में मदन असन और उनकी पत्नी कुट्टियम्मा (Kuttiyamma) के घर हुआ था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
- उनका परिवार एझावा (Ezhava) जाति से संबंध रखता था और उस समय के सामाजिक मान्यताओं के अनुसार इसे 'अवर्ण’' (Avarna) माना जाता था।
- उन्हें बचपन से ही एकांत पसंद था और वे हमेशा गहन चिंतन में लिप्त रहते थे। वह स्थानीय मंदिरों में पूजा करने के लिये प्रयासरत रहते थे, जिसके लिये भजनों तथा भक्ति गीतों की रचना करते रहते थे।
- छोटी उम्र से ही उनका आकर्षण तप की ओर था जिसके चलते वे संन्यासी के रूप में आठ वर्षों तक जंगल में रहे थे।
- उनको वेद, उपनिषद, साहित्य, हठ योग और अन्य दर्शनों का ज्ञान था।
महत्त्वपूर्ण कार्य:
- जातिगत अन्याय के खिलाफ:
- उन्होंने "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" (ओरु जति, ओरु माथम, ओरु दैवम, मानुष्यानु) का प्रसिद्ध नारा दिया।
- उन्होंने वर्ष 1888 में अरुविप्पुरम में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनाया, जो उस समय के जाति-आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ था।
- उन्होंने एक मंदिर कलावन्कोड (Kalavancode) में अभिषेक किया और मंदिरों में मूर्तियों की जगह दर्पण रखा। यह उनके इस संदेश का प्रतीक था कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है।
- धर्म-परिवर्त्तन का विरोध:
- उन्होंने लोगों को समानता की सीख दी, उन्होंने इस बात को महसूस किया कि असमानता का उपयोग धर्म परिवर्तन के लिये नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इससे समाज में अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है।
- श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1923 में अलवे अद्वैत आश्रम (Alwaye Advaita Ashram) में एक सर्व-क्षेत्र सम्मेलन का आयोजन किया, जिसे भारत में इस तरह का पहला कार्यक्रम बताया जाता है। यह एझावा समुदाय में होने वाले धार्मिक रूपांतरणों को रोकने का एक प्रयास था।
श्री नारायण गुरु का दर्शन:
- श्री नारायण गुरु बहुआयामी प्रतिभा, महान महर्षि, अद्वैत दर्शन के प्रबल प्रस्तावक, कवि और एक महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे।
साहित्यिक रचनाएँ:
- उन्होंने विभिन्न भाषाओं में अनेक पुस्तकें लिखीं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं: अद्वैत दीपिका, असरमा, थिरुकुरल, थेवरप्पाथिंकंगल आदि।
राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान:
- श्री नारायण गुरु मंदिर प्रवेश आंदोलन में सबसे अग्रणी थे और अछूतों के प्रति सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे।
- श्री नारायण गुरु ने वयकोम सत्याग्रह (त्रावणकोर) को गति प्रदान की। इस आंदोलन का उद्देश्य निम्न जातियों को मंदिरों में प्रवेश दिलाना था। इस आंदोलन की वजह से महात्मा गांधी सहित सभी लोगों का ध्यान उनकी तरफ गया।
- उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीयता के सार को समाहित किया और दुनिया की विविधता के बीच मौजूद एकता को रेखांकित किया।
विज्ञान में योगदान:
- श्री नारायण गुरु ने स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, व्यापार, हस्तशिल्प और तकनीकी प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया।
- श्री नारायण गुरु का अध्यारोप (Adyaropa) दर्शनम् (दर्शनमला) ब्रह्मांड के निर्माण की व्याख्या करता है।
- इनके दर्शन में दैवदशकम् (Daivadasakam) और आत्मोपदेश शतकम् (Atmopadesa Satakam) जैसे कुछ उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि कैसे रहस्यवादी विचार तथा अंतर्दृष्टि वर्तमान की उन्नत भौतिकी से मिलते-जुलते हैं।
दर्शन की वर्तमान प्रासंगिकता:
- श्री नारायण गुरु की सार्वभौमिक एकता के दर्शन का समकालीन विश्व में मौजूद देशों और समुदायों के बीच घृणा, हिंसा, कट्टरता, संप्रदायवाद तथा अन्य विभाजनकारी प्रवृत्तियों का मुकाबला करने के लिये विशेष महत्त्व है।
मृत्यु:
- श्री नारायण गुरु की मृत्यु 20 सितंबर, 1928 को हो गई। केरल में यह दिन श्री नारायण गुरु समाधि (Sree Narayana Guru Samadhi) के रूप में मनाया जाता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
एनबीएफसी के विनियमन के लिये 4- टियर स्ट्रक्चर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFC) के विनियमन में प्रगतिशील वृद्धि के साथ एक चार स्तरीय संरचना का निर्माण करके एक सख्त नियामक ढांँचा प्रस्तावित किया गया है।
- इस ढाँचे में 180 से 90 दिनों के अतिदेय (Overdue) पर बेस लेयर (Base Layer) की गैर-निष्पादित संपत्तियों (Non Performing Assets- NPAs) के वर्गीकरण का भी प्रस्ताव दिया गया है।
- इससे पहले वर्ष 2020 में RBI ने NBFCs को तरलता सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से कई उपायों की घोषणा की थी।
- नोट:
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय III (B), (C) और अध्याय V के अंतर्गत निहित प्रावधानों के तहत RBI के गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण (DNBS) विभाग को NBFCs के विनियमन और पर्यवेक्षण की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- RBI के नियामक और पर्यवेक्षक ढाँचे द्वारा अन्य वस्तुओं के साथ-साथ NBFCs का पंजीकरण, उनकी विभिन्न श्रेणियों का विवेकपूर्ण विनियमन, NBFCs द्वारा जमा की स्वीकृति के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करना तथा आंतरिक एवं बाह्य रूप से इस क्षेत्र की निगरानी और पर्यवेक्षण करना शामिल है।
- जमा लेने वाली NBFCs और ‘सिस्टमेटिकली इंपोर्टेंट ‘नॉन-डिपॉज़िट एक्सेप्टिंग कंपनीज़’ (Systemically Important Non-Deposit Accepting) के विनियमन और पर्यवेक्षण की अधिक आवश्यकता है।
- विनियमन और पर्यवेक्षण का मुख्य केंद्र तीन बिंदुओं पर है, जिनमें जमाकर्त्ता का संरक्षण, उपभोक्ता संरक्षण और वित्तीय स्थिरता शामिल हैं।
- RBI को दंडात्मक कार्रवाई करने के लिये RBI अधिनियम, 1934 के तहत भी अधिकार प्राप्त है, जिसमें पंजीकरण प्रमाण पत्र को रद्द करना, जमा स्वीकार करने से संबंधित प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करना, आपराधिक मामले दर्ज करना या गंभीर मामलों में कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के तहत याचिका दायर करना शामिल है।
प्रमुख बिंदु:
उद्देश्य:
- प्रस्तावित ढांँचे का उद्देश्य वित्तीय स्थिरता की रक्षा करना तथा इस बात को सुनिश्चित करना है कि छोटी NBFCs आसान नियमों के साथ आगे बढ़ रहीं हों।
NBFCs का प्रस्तावित वर्गीकरण (चार स्तरीय संरचना): प्रस्तावित नियामक ढाँचे के अनुसार, NBFCs का नियामक और पर्यवेक्षी ढांँचा चार-स्तरीय संरचना पर आधारित है जो इस प्रकार है:
- बेस लेयर:
- बेस लेयर की NBFCs को एनबीएफसी-बेस लेयर (NBFC-BL)) के रूप में जाना जाएगा।
- इस लेयर की NBFCs के लिये कम-से-कम विनियामक हस्तक्षेप को मंज़ूरी प्रदान की गई है।
- मिडिल लेयर:
- मिडिल लेयर में NBFCs को NBFC- मिडिल लेयर (NBFC-ML) के रूप में जाना जाएगा
- बेस लेयर की तुलना में इस लेयर के लिये नियामक व्यवस्था सख्त होगी।
- ‘सिस्टमेटिक रिस्क स्पिल ओवर्स (Systemic Risk Spill-Overs) को कम करने के लिये इस लेयर में शामिल होने वाली NBFCs के लिये प्रतिकूल विनियामक मध्यस्थता बैंक द्वारा की जा सकता है।
- अपर लेयर:
- अपर लेयर की NBFCs को NBFC- अपर लेयर (NBFC-UL) के रूप में जाना जाएगा जो एक नई नियामक संरचना को आमंत्रित करेगा।
- यह लेयर NBFCs द्वारा संचालित होगी जिसमें जोखिम को व्यवस्थित करने और वित्तीय स्थिरता को प्रभावित करने की क्षमता है।
- वर्तमान में इस लेयर के समान कोई नहीं लेयर है अत: यह विनियमन के लिये एक नई लेयर होगी। इस लेयर में शामिल होने वाली NBFCs के लिये विनियामक ढांँचा उपयुक्त और उचित संशोधनों के साथ बैंक जैसा ही होगा।
- यदि यह पाया गया कि NBFC-UL द्वारा लगातार चार वर्षों तक वर्गीकरण के मानदंडों को पूरा नहीं किया गया है, तो यह संवर्द्धित नियामक ढांँचे से बाहर हो जाएगा।
- टॉप लेयर:
- आदर्श रूप से इस परत को रिक्त मान लिया जाता है।
- इस बात की भी संभावना है कि पर्यवेक्षी निर्णय (Supervisory Judgment) व्यवस्थित रूप से कुछ NBFCs को उच्च विनियमन/पर्यवेक्षण के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण NBFCs की टॉप लेयर से बाहर कर सकते हैं।
- ये NBFCs अपर लेयर के शीर्ष पर एक अलग समूह के रूप में स्थापित होंगी। पिरामिड के आकार में यह टॉप लेयर तब तक रिक्त रहेगी जब तक कि पर्यवेक्षक विशिष्ट NBFCs पर विचार नहीं करेंगे।
- पर्यवेक्षी निर्णय के अनुसार, यदि अपर लेयर में शामिल कुछ NBFCs को अत्यधिक जोखिम उठाने के रूप में देखा जाता है, तो उन्हें उच्च और पूर्व निर्धारित नियामक/पर्यवेक्षी आवश्यकताओं के लिये रखा जा सकता है।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC)
- एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) ‘कंपनी अधिनियम, 1956’ के तहत पंजीकृत एक कंपनी है जिसके माध्यम से सरकार, स्थानीय प्राधिकरण या अन्य विपणन योग्य प्रतिभूतियों द्वारा जारी शेयर/बॉन्ड /डिबेंचर/सिक्योरिटी का अधिग्रहण एवं व्यवसाय संबंधी अग्रिम ऋण दिये जाते हैं। ये कंपनी लीजिंग, खरीद-बिक्री, बीमा व्यवसाय, चिट व्यवसाय जैसी प्रकृति की होती हैं लेकिन इनमें कोई भी ऐसी संस्था शामिल नहीं होती है, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि गतिविधि, औद्योगिक गतिविधि, किसी सामान की खरीद या बिक्री (प्रतिभूतियों के अलावा) एवं अचल संपत्ति की खरीद/ निर्माण से संबंधित सेवाएँ प्रदान करना है।
- एक गैर-बैंकिंग संस्थान जो कि एक कंपनी होती है तथा जो किसी भी योजना या व्यवस्था का एकमुश्त या किस्तों में अंशदान या किसी अन्य तरीके से जमा करने के मुख्य व्यवसाय में शामिल है वह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी भी होती है।
- NBFCs की विशेषताएंँ
- NBFCs मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकता।
- NBFCs भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं बनते हैं और स्वयं चेक जारी नहीं कर सकते हैं।
- NBFCs के जमाकर्त्ताओं को जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम की जमा बीमा सुविधा उपलब्ध नहीं है।