इन्फोग्राफिक्स
भारतीय अर्थव्यवस्था
ग्रामीण दैनिक मज़दूरी
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, ग्रामीण मज़दूरी, दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारत में दैनिक वेतन भुगतान पर डेटा जारी किया।
प्रमुख बिंदु
- कृषि श्रमिक:
- मध्य प्रदेश (MP) में ग्रामीण क्षेत्रों के पुरुष कृषि श्रमिकों को केवल 217.8 रुपए की दैनिक मज़दूरी प्रदान की गई, जबकि गुजरात में मार्च 2022 को समाप्त वर्ष में यह 220.3 रुपए थी।
- दोनों राज्यों में दैनिक मज़दूरी राष्ट्रीय औसत 323.2 रुपए से कम है।
- केरल 726.8 रुपए प्रति श्रमिकं की औसत मज़दूरी के साथ कृषि श्रमिकों को अधिक भुगतान करने वाले राज्यों में सबसे आगे है।
- केरल में उच्च मज़दूरी के चलते इसने कम भुगतान वाले राज्यों के कृषि श्रमिकों को आकर्षित किया है, इस कारण राज्य में प्रवासी श्रमिकों की संख्या लगभग 25 लाख है
- कृषि श्रमिकों को जम्मू-कश्मीर में प्रति व्यक्ति औसतन 524.6 रुपए, हिमाचल प्रदेश में 457.6 रुपए और तमिलनाडु में 445.6 रुपए मिलते हैं।
- मध्य प्रदेश (MP) में ग्रामीण क्षेत्रों के पुरुष कृषि श्रमिकों को केवल 217.8 रुपए की दैनिक मज़दूरी प्रदान की गई, जबकि गुजरात में मार्च 2022 को समाप्त वर्ष में यह 220.3 रुपए थी।
- गैर-कृषि श्रमिक:
- पुरुष गैर-कृषि श्रमिकों के मामले में सबसे कम मज़दूरी 230.3 रुपए मध्य प्रदेश में दी जाती है, जबकि गुजरात के श्रमिकों को 252.5 रुपए और त्रिपुरा में 250 रुपए दैनिक मज़दूरी प्राप्त होती है, ये सभी राष्ट्रीय औसत 326.6 रुपए से कम हैं।
- केरल फिर से गैर-कृषि श्रमिकों के वेतन में 681.8 रुपए प्रति व्यक्ति के साथ सबसे आगे है।
- मार्च 2022 को समाप्त वर्ष के लिये केरल के बाद जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु और हरियाणा का स्थान रहा।
- निर्माण कार्य में संलग्न ग्रामीण पुरुष श्रमिकों के मामले में भी गुजरात और मध्य प्रदेश में मज़दूरी राष्ट्रीय औसत 373.3 रुपए से कम है।
- गुजरात में निर्माण कार्य में संलग्न ग्रामीण पुरुष श्रमिकों की औसत मज़दूरी 295.9 रुपए है, जबकि मध्य प्रदेश में यह 266.7 रुपए और त्रिपुरा में 250 रुपए है।
- निर्माण कार्य में संलग्न श्रमिक:
- निर्माण कार्य में संलग्न ग्रामीण पुरुष श्रमिकों के लिये दैनिक मजदूरी केरल में 837.7 रुपए, जम्मू-कश्मीर में 519.8 रुपए, तमिलनाडु में 478.6 रुपए और हिमाचल प्रदेश में 462.7 रुपए थी।
ग्रामीण मज़दूरी से जुड़े मुद्दे:
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार का प्रमुख स्रोत कृषि है और यह रोज़गार मानसून, रबी और खरीफ उत्पादन से प्रभावित होते हैं।
- कम कृषि मूल्य के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में आय भी कम होती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश नई नौकरियाँ अकुशल श्रमिकों के लिये हैं, इसलिये मज़दूरी और कार्य की प्रकृति अनाकर्षक होती है।
- लैंगिक असमानता विद्यमान होने के कारण महिला श्रमिक को पुरुष श्रमिक की कमाई का केवल 70% भुगतान किया जाता है।
- मज़दूरी में वृद्धि किये बिना उत्पादकता में होने वाली वृद्धि से मज़दूरों के कल्याण को सकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं किया जा सकता है।
ग्रामीण सशक्तीकरण से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें:
- दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
- प्रधानमंत्री आवास योजना
आगे की राह
- बढ़ती युवा आबादी हेतु अच्छे रोज़गार सृजित करने की चुनौती से निपटने के लिये, मानव पूंजी में निवेश, उत्पादक क्षेत्रों के पुनरुद्धार और लघु उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के कार्यक्रमों सहित कई मोर्चों पर कार्रवाई की आवश्यकता होगी।
- ग्रामीण खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये और मूल्य शृंखलाओं को प्रसंस्करण को परिवहन से जोड़ने में कुशल होना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त अनुबंध खेती तथा खेतों और कारखानों के बीच सीधा संबंध ग्रामीण वित्तीय सुरक्षा के लिये काफी संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
- 650,000 गाँवों वाले ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटलीकरण और स्थानीय ई-गवर्नेंस के माध्यम से 800 मिलियन नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी।
- सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सक्रिय सहयोग से एक ग्रामीण ज्ञान मंच बनाया जा सकता है जिससे अत्याधुनिक तकनीक को गाँवों में लागू करने के साथ ही नई नौकरियों को सृजित करने में मदद मिलेगी।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग स्मार्ट और सटीक कृषि सुविधा के लिये किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011) (a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प D सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
RBI के गैर-अनुपालन संबंधी आदेशों पर चिंता
प्रिलिम्स के लिये:RBI, बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949, SEBI, IRDAI, SAT, अपीलीय न्यायाधिकरण, बैंकिंग लोकपाल। मेन्स के लिये:गैर-अनुपालन पर RBI के आदेशों पर चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
जनवरी 2020 से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कुछ निर्देशों के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये बैंकों से जुड़े 48 मामलों में 73.06 करोड़ रुपए का मौद्रिक जुर्माना लगाया है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क के अंतर्गत कतिपय उपबंधों का अनुपालन न करने पर बैंकों को दंडित करता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के आदेश संबंधी समस्याएँ:
- जानकारी तक विरल पहुँच:
- बैंकों के ग्राहकों और निवेशकों के पास बैंकों द्वारा RBI के निर्देशों का अनुपालन न करने के बारे में जानकारी तक विरल पहुँच है।
- अन्य वित्तीय नियामकों के मामलों के विपरीत RBI केवल उस इकाई का विवरण प्रदान करता है जिसे उल्लंघन के लिये दंडित किया जा रहा है।
- पक्षों की बात को अनसुना करना:
- RBI अपने आदेशों में न केवल कारण और विस्तृत स्पष्टीकरण देता है, बल्कि पक्षों की बात को अनसुना भी करता है।
- किसी भी गैर-अनुपालन के लिये दो अन्य नियामकों, बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority- IRDAI) तथा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) द्वारा जारी दंड आदेश अधिक विस्तृत हैं, साथ ही इसमें उल्लंघन और इसके तरीके के संचालन संदर्भ में अधिक जानकारी शामिल है।
- SEBI संबंधित पक्ष को सुनता है या कार्रवाई करने से पहले कम-से-कम उन्हें स्पष्टीकरण देने का कुछ अवसर देता है तथा संतुष्ट नहीं होने पर संबंधित पक्ष SEBI के फैसले को प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण में चुनौती भी दे सकता है।
- RBI अपने आदेशों में न केवल कारण और विस्तृत स्पष्टीकरण देता है, बल्कि पक्षों की बात को अनसुना भी करता है।
- RBI के आदेशों को चुनौती नहीं दी जा सकती:
- वर्तमान में, RBI एकमात्र ऐसी नियामक संस्था है जिसके पास अपीलीय निकाय नहीं है।
- चूँकि RBI में अपील नहीं कर सकते, इसलिये RBI के आदेशों को गुण-दोष के आधार पर चुनौती नहीं दी जाती। विनियामक प्रणाली में इस तरह की व्यवस्था के साथ RBI आसानी से कारण और स्पष्टीकरण दिये बिना केवल एक सरसरी या मुख्य आदेश पारित करके बच सकता है।
- लेकिन RBI के पास बैंकिंग लोकपाल की एक प्रणाली है जहाँ एक पीड़ित बैंक ग्राहक बैंक से विवाद या उसके अनुचित कार्यों और सेवाओं पर प्रश्न उठा सकता है।
- RBI के तर्क:
- जब RBI किसी बैंक में हुई किसी अनियमितता पर आदेश पारित करता है, तो वह आमतौर पर विनियमन के कुछ खंडों या उप-धाराओं का संदर्भ देता है जिसके तहत गैर-अनुपालन हुआ है। इसलिये पारित आदेश में और विस्तार की आवश्यकता नहीं होती है।
- RBI को अपने आदेशों में सभी विवरण सार्वजनिक नहीं करने चाहिये। इससे लोगों के मन में अनावश्यक भय पैदा हो सकता है और बैंकों पर से उनका विश्वास उठ सकता है।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949:
- यह भारत में बैंकिंग फर्मों को नियंत्रित करता है। इसे बैंकिंग कंपनी अधिनियम 1949 के रूप में पारित किया गया था और 1 मार्च, 1966 से इसे बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में बदल दिया गया था।
- यह अधिनियम RBI को वाणिज्यिक बैंकों को लाइसेंस जारी करने, शेयरधारकों की शेयरधारिता और मतदान अधिकारों को विनियमित करने, बोर्डों तथा प्रबंधन की नियुक्ति की निगरानी करने, बैंकों के संचालन को विनियमित करने, ऑडिट के लिये निर्देश देने, अधिस्थगन, विलय एवं परिसमापन को नियंत्रित करने का निर्देश जारी करने का अधिकार देता है। लोक कल्याण और बैंकिंग नीति के हित में आवश्यकता पड़ने पर बैंकों पर ज़ुर्माना लगाते हैं।
- वर्ष 2020 में सरकार ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 को बदलने के लिये एक अध्यादेश पारित किया, जिससे सभी सहकारी समितियाँ रिज़र्व बैंक की निगरानी में आ गईं, ताकि जमाकर्त्ताओं के हितों की ठीक से रक्षा की जा सके।
आगे की राह
- RBI के आदेशों को चुनौती देने के लिये सेबी के पास इसी तरह की एक अपीलीय व्यवस्था की आवश्यकता है।
- शासन और नीति विशेषज्ञों का कहना है कि हितधारकों को सूचित रखने की आवश्यकता है और एक अपीलीय प्राधिकरण इस उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है।
- नियामक के लिये स्पीकिंग ऑर्डर पारित करना बहुत महत्त्वपूर्ण है ताकि इसे पढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति इस मुद्दे को जान सके और समझ सके कि क्या गलत हुआ तथा इसे कैसे ठीक किया जा सकता है।
- RBI के एक विस्तृत आदेश से व्याख्या की संभावना बढ़ सकती है, जिसका अगर सही विश्लेषण नहीं किया गया तो बैंकिंग प्रणाली में विश्वास समाप्त हो सकता है।
- प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribunal- SAT) की तरह, RBI के आदेशों को चुनौती देने के लिये एक अपीलीय प्राधिकरण की आवश्यकता है। एक बार आदेश अपील योग्य होने के बाद, अपीलीय निकाय पूरी मेरिट पर गौर करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (B) सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 का मसौदा
प्रिलिम्स के लिये:पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 मेन्स के लिये:पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन करने के लिये पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 का मसौदा पेश किया है।
- यह मसौदा मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया है।
प्रस्तावित संशोधन:
- वहशीता (Bestiality) एक अपराध:
- मसौदे में 'वीभत्स क्रूरता' की नई श्रेणी के तहत अपराध के रूप में 'पशुओं' को शामिल किया गया है।
- "बेस्टियलिटी" का अर्थ है मनुष्य और पशु के बीच किसी भी प्रकार की यौन गतिविधि या यौन संसर्ग ।
- वीभत्स क्रूरता को "एक ऐसा कार्य जो पशुओं को अत्यधिक दर्द और पीड़ा देता है तथा आजीवन विकलांगता या मृत्यु का कारण बन सकता है", के रूप में परिभाषित किया गया है।
- मसौदे में 'वीभत्स क्रूरता' की नई श्रेणी के तहत अपराध के रूप में 'पशुओं' को शामिल किया गया है।
- वीभत्स क्रूरता के लिये दंड:
- न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उस क्षेत्र के पशु चिकित्सकों के परामर्श से न्यूनतम 50,000 रुपए का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है और इसे बढ़ाकर 75,000 रुपए किया जा सकता है, या ज़ुर्माना राशि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित की जा सकती है, जो भी अधिक हो, या अधिकतम एक वर्ष का कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- पशु हत्या के लिये दंड:
- ज़ुर्माने के साथ अधिकतम 5 वर्ष का कारावास।
- पशुओं के लिये स्वतंत्रता:
- मसौदे में एक नई धारा 3A को शामिल करने का भी प्रस्ताव है, जो पशुओं को 'पाँच प्रकार की स्वतंत्रताएँ' प्रदान करता है।
- किसी पशु को रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसकी देखभाल में रह रहे पशु के निम्नलिखित अधिकार हों:
- प्यास, भूख और कुपोषण से मुक्ति
- पर्यावरण के कारण होने वाली असुविधा से मुक्ति
- दर्द, चोट और बीमारियों से मुक्ति
- प्रजातियों के लिये सामान्य व्यवहार व्यक्त करने की स्वतंत्रता
- भय और संकट से मुक्ति
- सामुदायिक पशु:
- सामुदायिक पशुओं के मामले में स्थानीय सरकार उनकी देखभाल के लिये ज़िम्मेदार होगी।
- मसौदा प्रस्तावों में सामुदायिक पशु को "एक समुदाय में पैदा होने वाले पशु के रूप में पेश किया गया है, जिसके लिये वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत परिभाषित जंगली पशुओं को छोड़कर किसी स्वामित्व का दावा नहीं किया गया है।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960
- परिचय:
- इस अधिनियम का उद्देश्य ‘पशुओं को अनावश्यक दर्द पहुँचाने या पीड़ा देने से रोकना’ है, जिसके लिये अधिनियम में पशुओं के प्रति अनावश्यक क्रूरता और पीड़ा पहुँचाने के लिये दंड का प्रावधान किया गया है।
- वर्ष 1962 में इस अधिनियम की धारा 4 के तहत भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) की स्थापना की गई थी।
- यह अधिनियम पशुओं और पशुओं के विभिन्न रूपों को परिभाषित करने के साथ ही वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये पशुओं पर प्रयोग (experiment) से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- पहले अपराध के मामले में ज़ुर्माना जो दस रुपए से कम नहीं होगा लेकिन यह पचास रुपए तक हो सकता है।
- पिछले अपराध के तीन वर्ष के भीतर किये गए दूसरे या बाद के अपराध के मामले में ज़ुर्माना पच्चीस रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन यह एक सौ रुपए तक हो सकता है या तीन महीने तक कारावास की सज़ा या दोनों हो सकती है।
- यह वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये पशुओं पर प्रयोग से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- यह अधिनियम पशुओं की प्रदर्शनी और पशुओं का प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ अपराधों से संबंधित प्रावधान करता है।
- आलोचना:
- सज़ा की तीव्रता कम होने, "क्रूरता" की अपर्याप्त परिभाषा और अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखे बिना एक ही सज़ा लागू करने के कारण इस अधिनियम की 'प्रजातिवादी' होने के संबंध में आलोचना की गई है (सरल शब्दों में कहें तो, यह ऐसी धारणा है जिसमे मनुष्य एक बेहतर प्रजाति है जिसके पास अधिक अधिकार होने चाहिये)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
असम-मेघालय सीमा विवाद
प्रिलिम्स के लिये:असम-मेघालय सीमा विवाद, संविधान का अनुच्छेद 263 मेन्स के लिये:अंतर-राज्यीय-सीमा विवाद और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम के पश्चिम कार्बी आंगलोंग ज़िले और मेघालय के पश्चिम जयंतिया हिल्स के मुकरोह गाँव की सीमा से लगे इलाके में असम पुलिस एवं भीड़ के बीच कथित झड़प के दौरान छह लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।
- ये मौतें दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिये दूसरे चरण की बातचीत से पहले हुई हैं।
असम-मेघालय सीमा विवाद:
- परिचय:
- असम और मेघालय दोनों राज्य 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। फिलहाल उनकी सीमाओं पर 12 बिंदुओं पर विवाद है।
- असम-मेघालय सीमा विवाद ऊपरी ताराबारी, गज़ांग आरक्षित वन, हाहिम, लंगपीह, बोरदुआर, बोकलापारा, नोंगवाह, मातमुर, खानापारा-पिलंगकाटा, देशदेमोराह ब्लॉक I एवं ब्लॉक II, खंडुली और रेटचेरा के क्षेत्रों पर है।
- पृष्ठभूमि:
- ब्रिटिश शासन के दौरान अविभाजित असम में वर्तमान नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिज़ोरम शामिल थे।
- मेघालय को वर्ष 1972 में बनाया गया था, इसकी सीमाओं को वर्ष 1969 के असम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम के अनुसार सीमांकित किया गया था, तब से सीमा की एक अलग व्याख्या की गई है।
- वर्ष 2011 में मेघालय सरकार ने असम के साथ विवादित 12 क्षेत्रों की पहचान की थी, जो लगभग 2,700 वर्ग किमी में फैला हुआ था।
- ब्रिटिश शासन के दौरान अविभाजित असम में वर्तमान नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिज़ोरम शामिल थे।
- चिंता के प्रमुख बिंदु:
- असम और मेघालय के बीच विवाद का एक प्रमुख बिंदु असम के कामरूप ज़िले की सीमा से लगे पश्चिम गारो हिल्स में लंगपीह ज़िला है।
- लंगपीह ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान कामरूप ज़िले का हिस्सा था, लेकिन आज़ादी के बाद यह गारो हिल्स और मेघालय का हिस्सा बन गया।
- असम इसे मिकिर पहाड़ियों (असम में स्थित) का हिस्सा मानता है।
- मेघालय ने मिकिर हिल्स के ब्लॉक I और II पर सवाल उठाया है, जो अब कार्बी आंगलोंग क्षेत्र असम का हिस्सा है। मेघालय का कहना है कि ये तत्कालीन यूनाइटेड खासी एवं जयंतिया हिल्स ज़िलों के हिस्से थे।
- विवाद को हल करने का प्रयास:
- वर्ष 1985 में असम और मेघालय दोनों के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाई वी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक आधिकारिक समिति का गठन किया गया था।
- 1985 में, असम के मुख्यमंत्री और मेघालय के मुख्यमंत्री के तहत, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाई वी चंद्रचूड़ के तहत एक आधिकारिक समिति का गठन किया गया था।
- हालाँकि इससे कोई समाधान नहीं निकला।
- दोनों राज्य सरकारों ने पहले चरण में समाधान के लिये 12 में से छह विवादित क्षेत्रों की पहचान की:
- इसके अंतर्गत मेघालय में पश्चिम खासी हिल्स ज़िले और असम में कामरूप के बीच तीन क्षेत्र, मेघालय में रिभोई तथा कामरूप-मेट्रो के बीच दो एवं मेघालय में पूर्वी जयंतिया हिल्स और असम में काछार थे।
- विवादित क्षेत्रों में टीमों द्वारा कई बैठकों और दौरे के बाद दोनों पक्षों ने पाँच पारस्परिक रूप से सहमत सिद्धांतों के आधार पर रिपोर्ट प्रस्तुत की:
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, स्थानीय आबादी की जातीयता, सीमा से निकटता, लोगों की इच्छा और प्रशासनिक सुविधा।
- सिफारिशों का एक अंतिम प्रारूप संयुक्त रूप से बनाया गया था:
- पहले चरण में निपटारे के लिये 79 वर्ग किमी. विवादित क्षेत्र में से असम को 18.46 वर्ग किमी. तथा मेघालय को 18.33 वर्ग किमी. का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त होगा।
- शेष छह चरणों के लिये चर्चा का दूसरा दौर नवंबर 2022 के अंत तक शुरू होना है।
- मार्च 2022 में, इन सिफारिशों के आधार पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- शेष छह चरणों के लिये चर्चा का दूसरा दौर नवंबर 2022 के अंत तक शुरू होगा ।
विवाद को हल करने के लिये सुझाव:
- राज्यों के बीच सीमा विवादों को वास्तविक सीमा स्थानों के उपग्रह मानचित्रण का उपयोग करके सुलझाया जा सकता है।
- अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना अंतर-राज्यीय विवाद के समाधान के लिये एक विकल्प हो सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-राज्य परिषद से अपेक्षा की जाती है कि वह सामान्य विषयों पर पूछताछ करने तथा सलाह देने वाले सभी राज्यों के बीच बेहतर नीति समन्वय के लिये सिफारिशें करे।
- इसी तरह क्षेत्रीय परिषदों को भी प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों के लिये सामान्य चिंता के सामाजिक और आर्थिक योजनाओं, सीमा विवाद, अंतर-राज्य परिवहन आदि से संबंधित पर मामलों पर चर्चा करने की आवश्यकता है।
- भारत अनेकता में एकता वाला देश है। हालाँकि इस एकता को और मज़बूत करने के लिये केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों को सहकारी संघवाद के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
सीमा विवादों में शामिल भारत के अन्य राज्य:
- बेलागवी सीमा विवाद:
- बेलागवी सीमा विवाद महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के बीच है।
- बेलगाम या बेलागवी वर्तमान में कर्नाटक राज्य का हिस्सा है लेकिन महाराष्ट्र द्वारा इस पर अपना दावा किया जाता है।
- वर्ष 1957 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के कार्यान्वयन से आहत महाराष्ट्र ने कर्नाटक के साथ अपनी सीमा के पुन: समायोजन की मांग की।
- बेलागवी सीमा विवाद महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के बीच है।
- ओडिशा का सीमा विवाद:
- ओडिशा सीमा विवाद ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच है।
- ओडिशा व आंध्र प्रदेश के बीच कोटिया ग्राम पंचायत को लेकर वर्ष 1960 से विवाद बना हुआ है। इसमें कोटिया ग्राम पंचायत के 21 गाँवों को लेकर विवाद चल रहा है।
- वर्ष 2006 में ओडिशा ने अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदी वंसधारा (Inter-State River Vamsadhara) से संबंधित आंध्र प्रदेश के साथ चल रहे अपने जल विवादों के बारे में एक शिकायत दर्ज कराई।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतर-राज्य जल विवादों का समाधान करने में सांविधानिक प्रक्रियाएँ समस्याओं को संबोधित करने व हल करने में असफल रही हैं। क्या यह असफलता संरचनात्मक अथवा प्रक्रियात्मक अपर्याप्तता अथवा दोनों के कारण हुई है? विवेचना कीजिये। (मेन्स- 2013) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
9वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM Plus)
प्रिलिम्स के लिये:आसियान(ASEAN), सीमा पार आतंकवाद, खाद्य सुरक्षा मेन्स के लिये:भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने सिएम रीप, कंबोडिया में 9वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
- आतंकवाद संबंधी:
- भारत ने अंतरराष्ट्रीय और सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये तत्काल एवं दृढ़ वैश्विक प्रयासों का आह्वान किया तथा आतंकवाद को क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिये सबसे गंभीर खतरा बताया।
- अन्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
- इसमें भारत ने इस मंच का ध्यान वैश्विक कोविड-19 महामारी से उत्पन्न होने वाली अन्य सुरक्षा चिंताओं जैसे ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा की ओर दिलाया।
- समुद्री सुरक्षा के संबंध में:
- भारत एक मुक्त, खुले एवं समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत करता है और सभी देशों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान करता है।
- इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि दक्षिण चीन सागर में आचार संहिता पर चल रही आसियान-चीन वार्ता अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के साथ पूरी तरह से संगत होनी चाहिये और उन राष्ट्रों के वैध अधिकारों एवं हितों के प्रति पक्षपातपूर्ण नहीं होनी चाहिये जो इन चर्चाओं में शामिल नहीं हैं।
आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM Plus):
- परिचय:
- वर्ष 2007 में सिंगापुर में दूसरी आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM) ने ADMM Plus की स्थापना के लिये एक संकल्प अपनाया था।
- पहला ADMM Plus वर्ष 2010 में हनोई, वियतनाम में आयोजित किया गया था।
- ब्रुनेई वर्ष 2021 के लिये ADMM Plus फोरम का अध्यक्ष है।
- यह 10 आसियान देशों और आठ संवाद सहयोगी देशों के रक्षा मंत्रियों की वार्षिक बैठक है।
- दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN/आसियान) एक क्षेत्रीय संगठन है जिसे एशिया-प्रशांत के बाद के औपनिवेशिक देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये स्थापित किया गया था।
- वर्ष 2007 में सिंगापुर में दूसरी आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM) ने ADMM Plus की स्थापना के लिये एक संकल्प अपनाया था।
- सदस्यता:
- ADMM- plus देशों में दस आसियान सदस्य देश (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्याँमार और कंबोडिया) और आठ अन्य देश, अर्थात् ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूसी संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
- इसका उद्देश्य वार्ताओं और पारदर्शिता के माध्यम से रक्षा प्रतिष्ठानों के बीच आपसी विश्वास को बढ़ावा देना है।
- सहयोग के क्षेत्र:
- इसके सहयोग के क्षेत्र समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, मानवीय सहायता और आपदा राहत, शांति अभियान तथा सैन्य चिकित्सा आदि हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत निम्नलिखित में से किसका सदस्य है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये:(2018)
उपर्युक्त में से कौन आसियान (ASEAN) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं? (a) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (C) सही है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
CITES के पक्षकारों का 19वाँ सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:CITES, शीशम, समुद्री ककड़ी, रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल, CoP 19, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 मेन्स के लिये:CITES, COP-19 के परिणाम, संरक्षण प्रयास। |
चर्चा में क्यों?
पनामा सिटी में वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के लिये पक्षकारों के सम्मेलन (CoP) की 19वीं बैठक आयोजित की जा रही है।
- COP-19 को विश्व वन्यजीव सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है।
प्रमुख बिंदु
- इसमें 52 प्रस्तावों को प्रस्तुत किया गया है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर नियमों को प्रभावित करेगा: शार्क, सरीसृप, दरियाई घोड़ा, सोंगबर्ड्स, गैंडे, 200 पेड़ पर रहने वाली प्रजातियाँ, ऑर्किड, हाथी, कछुए आदि।
- भारत के शीशम (डाल्बर्गिया सिस्सू) को सम्मेलन के परिशिष्ट II में शामिल किया गया है, जिससे प्रजातियों के व्यापार के लिये CITES नियमों का पालन करने की आवश्यकता होती है।
- डाल्बर्गिया सिस्सू आधारित उत्पादों के निर्यात के लिये CITES नियमों को आसान बनाकर राहत प्रदान की गई। इससे भारतीय हस्तशिल्प निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- सम्मेलन ने कन्वेंशन के परिशिष्ट II में समुद्री खीरे (थेलेनोटा) को शामिल करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।
- वन्यजीव संरक्षण सोसाइटी-इंडिया (WCS- India) द्वारा सितंबर, 2022 में प्रकाशित एक विश्लेषण से पता चला है कि वर्ष 2015-2021 के दौरान भारत में समुद्री खीरे (Sea Cucumber) सबसे अधिक तस्करी की जाने वाली समुद्री प्रजातियाँ थीं।
- विश्लेषण के अनुसार, तमिलनाडु राज्य में इस अवधि के दौरान समुद्री वन्यजीवों की बरामदगी की सबसे अधिक संख्या दर्ज़ की गई थी। इसके बाद महाराष्ट्र, लक्षद्वीप और कर्नाटक का स्थान रहा।
- मीठे जल के कछुए बाटागुर कचुगा (रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल) को शामिल करने के भारत के प्रस्ताव को CITES के COP-19 में पार्टियों का व्यापक समर्थन मिला। इसे पार्टियों द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया और पेश किये जाने पर अच्छी तरह से स्वीकार किया गया।
- ऑपरेशन टर्टशील्ड, वन्यजीव अपराध पर अंकुश लगाने के भारत के प्रयासों की सराहना की गई
- भारत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कछुओं और मीठे जल के कछुओं की कई प्रजातियाँ जिन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय, लुप्तप्राय, कमज़ोर या निकट खतरे के रूप में पहचाना जाता है, उन्हें पहले से ही वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में शामिल किया गया है और उन्हें उच्च स्तर की सुरक्षा दी गई है।
- भारत ने मौजूदा सम्मेलन में हाथीदाँत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को फिर से खोलने के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान नहीं करने का फैसला किया है।
वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES):
- CITES, सरकारों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसमें वर्तमान में 184 सदस्य हैं, इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली पशुओं और पौधों की प्रजातियों के अस्तित्व को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये खतरे में न डाला जाए।
- इसका पहला सम्मेलन वर्ष 1975 में हुआ और भारत वर्ष 1976 में 25वाँ भागीदार देश बन गया।
- वे देश जो CITES में शामिल होने के लिये सहमत हुए हैं, उन्हें पार्टियों के रूप में जाना जाता है।
- यद्यपि CITES पार्टियों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है, दूसरे शब्दों में इन पार्टियों के लिये कन्वेंशन को लागू करना बाध्यकारी है लेकिन यह राष्ट्रीय कानूनों की जगह नहीं लेता।
- CITES के तहत आने वाली प्रजातियों के सभी आयात-निर्यात और पुन: निर्यात को परमिट प्रणाली के माध्यम से अधिकृत किया जाना चाहिये।
- इसके तीन परिशिष्ट हैं:
- परिशिष्ट-I:
- इसमें वे प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जो CITES द्वारा सूचीबद्ध वन्यजीवों एवं पौधों में सबसे अधिक संकटापन्न स्थिति में हैं।
- उदाहरणतः इसमें गोरिल्ला, समुद्री कछुए, अधिकांश ऑर्किड प्रजातियाँ एवं विशाल पांडा शामिल हैं। वर्तमान में इसमें 1082 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं।
- इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है एवं CITES इन प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है, सिवाय जब इसके आयात का उद्देश्य व्यावसायिक न होकर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये किया जाता हो।
- परिशिष्ट II:
- इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
- इस परिशिष्ट में अधिकांश CITES प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जिनमें अमेरिकी जिनसेंग, पैडलफिश, शेर, अमेरिकी मगरमच्छ, महोगनी एवं कई प्रवाल शामिल हैं। वर्तमान में 34,419 प्रजातियाँ इसमें सूचीबद्ध हैं।
- इसमें तथाकथित ‘एक जैसी दिखने वाली प्रजातियाँ (look-alike species)’ भी शामिल हैं अर्थात् ऐसी प्रजातियाँ जो एक समान दिखती हैं उन्हें व्यापार संरक्षण कारणों से सूचीबद्ध किया गया है।
- परिशिष्ट III:
- यह उन प्रजातियों की सूची है जिन्हें किसी पक्षकार के अनुरोध पर शामिल किया जाता है, जिनका व्यापार पक्षकार द्वारा पहले से ही विनियमित किया जा रहा है तथा शामिल की गईं प्रजातियों के अधारणीय एवं अत्यधिक दोहन रोकने के लिये दूसरे देशों के सहयोग की आवश्यकता है।
- इनमें मैप टर्टल, वालरस और केप स्टैग बीटल शामिल हैं। वर्तमान में इसमें 211 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं।
- इस परिशिष्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को केवल उपयुक्त परमिट या प्रमाण पत्र की प्रस्तुति पर ही अनुमति प्रदान की जाती है।
- प्रजातियों को केवल पक्षकारों के सम्मेलन द्वारा परिशिष्ट I और II में शामिल किया जा सकता है या हटाया जा सकता है अथवा उनके मध्य स्थानांतरित किया जा सकता है।
- परिशिष्ट-I: