सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी
प्रिलिम्स के लिये:आर्थिक विकास, क्रिप्टोकरेंसी, ब्लॉकचेन, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)। मेन्स के लिये:सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) - अवसर और संबद्ध जोखिम। |
चर्चा में क्यों?
हाल की रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का डिजिटल रुपया सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) चालू वित्त वर्ष में थोक व्यवसायों के साथ शुरू हो सकता है।
- RBI ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन का प्रस्ताव रखा, जो इसे CBDC लॉन्च करने में सक्षम करेगा।
सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC)
- परिचय:
- CBDC कागज़ी मुद्रा का डिजिटल रूप है और किसी भी नियामक संस्था द्वारा संचालित नहीं होने वाली क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत केंद्रीय बैंक द्वारा जारी और समर्थित वैध मुद्रा है।
- यह फिएट मुद्रा के समान है और फिएट मुद्रा के साथ वन टू वन विनिमय योग्य है।
- फिएट मुद्रा राष्ट्रीय मुद्रा है जो किसी वस्तु की कीमत जैसे सोने या चाँदी की कीमत पर नहीं आँकी जाती है।
- ब्लॉकचेन द्वारा समर्थित वॉलेट का उपयोग करके डिजिटल फिएट मुद्रा या CBDC का लेन-देन किया जा सकता है।
- हालाँकि CBDCs की अवधारणा सीधे बिटकॉइन से प्रेरित थी, यह विकेंद्रीकृत आभासी मुद्राओं और क्रिप्टो संपत्तियों से अलग है जो राज्य द्वारा जारी नहीं की जाती हैं और न ही 'कानूनी निविदा' है।
- उद्देश्य:
- इसका मुख्य उद्देश्य जोखिम का शमन और वास्तविक मुद्रा के प्रबंधन, पुराने नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने, परिवहन, बीमा एवं रसद से जुड़े लागत को कम करना है।
- यह धन हस्तांतरण के साधन के रूप क्रिप्टोकरेंसी से लोगों को दूर भी रखेगा।
- वैश्विक प्रवृति:
- बहामा अपनी राष्ट्रव्यापी CBDC सैंड डॉलर लॉन्च करने वाली पहली अर्थव्यवस्था है।
- नाइज़ीरिया एक और देश है जिसने वर्ष 2020 में ईनायरा (eNaira) शुरू किया है।
- चीन अप्रैल 2020 में डिजिटल मुद्रा e-CNY का संचालन करने वाली दुनिया की पहली बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
- कोरिया, स्वीडन, जमैका और यूक्रेन कुछ ऐसे देश हैं जिन्होंने अपनी डिजिटल मुद्रा का परीक्षण शुरू कर दिया है और कई और जल्द ही इसका अनुसरण कर सकते हैं।
CBDC के लाभ और चुनौतियाँ:
- लाभ:
- परंपरा और नवोन्मेष का संयोजन:
- CBDC मुद्रा प्रबंधन लागत को कम करके धीरे-धीरे आभासी मुद्रा की ओर एक सांस्कृतिक बदलाव ला सकता है।
- CBDC की परिकल्पना दोनों पक्षों के सर्वश्रेष्ठ को साथ लाने के लिये की गई है:
- जहाँ क्रिप्टोकरेंसी जैसे डिजिटल रूपों की सुविधा एवं सुरक्षा
- पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली का विनियमित, आरक्षित-समर्थित धन परिसंचरण शामिल है।
- सीमा-पार आसानी से भुगतान:
- CBDC एक विश्वसनीय संप्रभु समर्थित घरेलू भुगतान और निपटान प्रणाली को आंशिक रूप से कागजी मुद्रा को प्रतिस्थापित करने के लिये एक आसान साधन प्रदान कर सकता है।
- इसका उपयोग सीमा-पार भुगतान (Cross-Border Payments) के लिये भी किया जा सकता है; यह सीमा-पार भुगतानों के निपटान के लिये कोरेस्पोंडेंट बैंकों के महंगे नेटवर्क की आवश्यकता को समाप्त कर सकता है।
- वित्तीय समावेशन:
- बेहतर कर एवं नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु असंगठित अर्थव्यवस्था को संगठित क्षेत्र की ओर आगे बढ़ाने के लिये कई अन्य वित्तीय गतिविधियों के संबंध में भी CBDC के बढ़ते उपयोग की तलाश की जा सकती है।
- यह वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है।
- परंपरा और नवोन्मेष का संयोजन:
- चुनौतियाँ:
- गोपनीयता से संबद्ध मुद्दे :
- केंद्रीय बैंक संभावित रूप से उपयोगकर्त्ता से लेन-देन के संबंध में बड़ी मात्रा में डेटा को संगृहीत करेगा जो व्यक्ति की निजता/ गोपनीयता के लिये जोखिम उत्पन्न करता है।
- इसके गंभीर निहितार्थ हैं क्योंकि नकदी लेन-देन की तुलना में डिजिटल मुद्राओं का लेन-देन उपयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता की उस स्तर तक सुरक्षित करने में सक्षम नहीं हैं।
- साख का समझौता इसमें प्रमुख मुद्दा है।
- केंद्रीय बैंक संभावित रूप से उपयोगकर्त्ता से लेन-देन के संबंध में बड़ी मात्रा में डेटा को संगृहीत करेगा जो व्यक्ति की निजता/ गोपनीयता के लिये जोखिम उत्पन्न करता है।
- बैंकों की मध्यस्थता में कमी:
- यदि पर्याप्त रूप से बड़े और व्यापक-आधारित CBDCs में बदलाव आता है तो यह बैंक की साख मध्यस्थता में धन वापस करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- यदि ई-कैश लोकप्रिय हो जाता है और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) उस राशि की कोई सीमा नहीं रखता है जिसे मोबाइल वॉलेट में संग्रहीत किया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में कमज़ोर बैंक निम्न-लागत वाली जमा राशि को भी बनाए रखने के लिये संघर्ष कर सकते हैं।
- अन्य जोखिम:
- प्रौद्योगिकी का तीव्र अप्रचलन CBDCs पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा पैदा कर सकता है; परिणामस्वरूप उन्नयन की उच्च लागत को वहन करना पड़ सकता है।
- मध्यस्थों के परिचालन जोखिम के रूप में कर्मचारियों को CBDCs के अनुकूल कार्य करने के लिये फिर से प्रशिक्षित और तैयार करना होगा।
- उन्नत साइबर सुरक्षा जोखिम भेद्यता परीक्षण और फायरवॉल की सुरक्षा की लागत।
- CBDCs के प्रबंधन में केंद्रीय बैंक के लिये परिचालन बोझ और लागत।
- गोपनीयता से संबद्ध मुद्दे :
आगे की राह:
- CBDCs में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिये भुगतान और निपटान प्रणाली में सुधार के लिये इसका भुगतान-केंद्रित उपयोग होना चाहिये।
- तब यह मध्यस्थता के जोखिम और इसके प्रमुख मौद्रिक नीति प्रभावों से बचने के लिये मूल्य के भंडार के रूप में सेवा से दूर हो सकता है।
- केंद्रीय बैंक के पास एक केंद्रीकृत प्रणाली में संग्रहीत डेटा से उत्पन्न गंभीर सुरक्षा जोखिम को कम करने और डेटा उल्लंघनों को रोकने के लिये मज़बूत डेटा सुरक्षा प्रणाली को स्थापित करना होगा।
- अतः उच्च-स्तरीय तकनीक का उपयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जो CBDC के मुद्दे का समाधान प्रस्तुत करेगा।
- यदि भुगतान लेन-देन इसी प्रणाली का उपयोग करके किया जाता है, तो CBDC के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे को उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण बना रहेगा।
- RBI को प्रौद्योगिकी परिदृश्य को अच्छी तरह से आकलित करना होगा और CBDCs को शुरू करने के लिये उचित तकनीक के साथ सावधानी से आगे बढ़ना होगा।
- डिजिटल मुद्रा लेन-देन पर एकत्रित वित्तीय डेटा प्रकृति में संवेदनशील होगा अतः सरकार को नियामकों के संदर्भ में सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिये।
- इसके लिये बैंकिंग और डेटा सुरक्षा नियामकों के बीच घनिष्ठ संपर्क की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रिलिम्स: प्रश्न:“ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी” के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1और 3 उत्तर: (b)
प्रश्न. क्रिप्टोकरेंसी क्या है? यह वैश्विक समाज को कैसे प्रभावित करता है? क्या यह भारतीय समाज को भी प्रभावित कर रहा है? (मुख्य परीक्षा- 2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण
प्रिलिम्स के लिये:स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण, खुले में शौच मुक्त स्थिति, गोबर धन, स्वच्छ विद्यालय अभियान, स्वच्छ ऐप, बायोरेमेडिएशन। मेन्स के लिये:स्वच्छ भारत मिशन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (SBM-G) के तहत 1 लाख से अधिक गाँवों ने खुद को खुले में शौच मुक्त (ODF प्लस) घोषित किया।
- ये गाँव अपनी ओडीएफ स्थिति को बनाए हुए हैं तथा ठोस और/या तरल कचरे के प्रबंधन के लिये तंत्र मौजूद हैं। वे अपनी स्वच्छता यात्रा जारी रखेंगे क्योंकि वे अपने गाँवों को स्वच्छ, हरा-भरा और स्वस्थ बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
खुले में शौच मुक्त स्थिति:
- ODF: किसी क्षेत्र को ODF के रूप में अधिसूचित या घोषित किया जा सकता है यदि दिन के किसी भी समय, एक भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं करता है।
- ODF+: एक शहर को ODF+ घोषित किया जा सकता है, यदि किसी दिन किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच और/या पेशाब करते हुए नहीं पाया जाता है और सभी सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालय कार्यात्मक अवस्था में एवं सुव्यवस्थित हैं।
- ODF++: एक शहर को ODF++ घोषित किया जा सकता है, यदि वह पहले से ही ODF+ स्थिति में है और वहाँ मल कीचड़/सेप्टेज (Faecal sludge/Septage) और नालियों का सुरक्षित रूप से प्रबंधन तथा उपचार किया जाता है एवं किसी प्रकार के अनुपचारित कीचड़/सेप्टेज (Sludge/Septage) और नालियों की निकासी जल निकायों या खुले क्षेत्रों के नालों में नहीं होती है।
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (SBM-G)
- परिचय:
- इसे वर्ष 2014 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने के प्रयासों में तेज़ी लाने और स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये लॉन्च किया गया था।
- मिशन को राष्ट्रव्यापी अभियान/जनांदोलन के रूप में लागू किया गया था जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच को समाप्त करना था।
- स्वच्छ भारत मिशन (G) चरण- I:
- भारत में 2 अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की शुरुआत के समय ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 38.7 प्रतिशत दर्ज की गई थी।
- इस मिशन के अंतर्गत 10 करोड़ से ज़्यादा व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण किया गया जिसके परिमाणस्वरूप सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों ने स्वयं को 2 अक्तूबर, 2019 को ODF घोषित कर दिया।
- SBM (G) चरण- II:
- यह चरण I के तहत प्राप्त की गई उपलब्धियों की स्थिरता और ग्रामीण भारत में ठोस/तरल और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देता है।
- कार्यान्वयन: स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II को वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक की अवधि के लिये 1,40,881 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ एक मिशन के रूप में कार्यान्वित किया जाएगा।
- ODF प्लस के SLWM घटक की निगरानी निम्नलिखित चार संकेतकों के आधार पर की जाएगी-
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन
- जैव अपघटित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (जिसमें पशु अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है)
- धूसर जल प्रबंधन
- मलयुक्त कीचड़ प्रबंधन
- शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्य:
- शीर्ष पाँच प्रदर्शन करने वाले राज्य तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश हैं जहाँ अधिकतम गाँवों को ODF प्लस घोषित किया गया है।
स्वच्छ भारत मिशन का महत्त्व:
- ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन के तहत बुनियादी ढाँचों जैसे कि खाद के गड्ढे, सोखने वाले गड्ढे, अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाब, शोधन संयंत्र आदि का भी निर्माण किया जाएगा। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के इस चरण में घरेलू शौचालय एवं सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से रोज़गार सृजन तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करना जारी रहेगा।
- यह ग्रामीण भारत को ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने में मदद करेगा तथा देश में ग्रामीणों के स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार में मदद करेगा।
SBM के हिस्से के रूप में अन्य योजनाएँ:
- गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan- GOBAR-DHAN) योजना: इसे वर्ष 2018 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।
- इस योजना का उद्देश्य गाँवों को स्वच्छ रखना, ग्रामीण घरों की आय बढ़ाना और मवेशियों द्वारा उत्पन्न कचरे से ऊर्जा का उत्पादन करना है।
- व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL): SBM के तहत लोगों को शौचालय निर्माण के लिये लगभग 15 हज़ार रुपए मिलते हैं।
- स्वच्छ विद्यालय अभियान: शिक्षा मंत्रालय ने एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छ विद्यालय कार्यक्रम शुरू किया।
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U)
- परिचय:
- इसे 2 अक्तूबर, 2014 को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।
- पहला चरण:
- परिचय:
- इस कार्यक्रम में खुले में शौच का उन्मूलन, गंदे शौचालयों को फ्लश शौचालयों में बदलना, हाथ से मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और स्वस्थ स्वच्छता प्रथाओं के संबंध में लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना शामिल है।
- कार्यक्रम के तहत आवासीय क्षेत्रों में सामुदायिक शौचालय बनाए जाएंँगे जहाँ व्यक्तिगत घरेलू शौचालय बनाना मुश्किल है।
- उपलब्धियाँ:
- 4,324 शहरी स्थानीय निकायों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है, जो मिशन के लक्ष्य से कहीं अधिक 66 लाख से अधिक व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों और 6 लाख से अधिक सामुदायिक/सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से संभव हुआ है।
- डिजिटल सक्षमता जैसे कि स्वच्छता ऐप, वर्ष 2016 में MoHUA द्वारा शुरू किेया गया तथा डिजिटल शिकायत निवारण प्लेटफॉर्म ने नागरिक शिकायत निवारण के प्रबंधन के तरीके को पुनः लागू किया है।
- परिचय:
- द्वितीय चरण:
- परिचय:
- केंद्रीय बजट 2021-22 में घोषित SBM-U 2.0, SBM-U के पहले चरण का ही निरंतर कार्यान्वयन है। जिसके अंतर्गत भारत सरकार शौचालयों से मल, कीचड़ और सेप्टेज के सुरक्षित रोकथाम कर उनका परिवहन एवं उचित निपटान करने का प्रयास कर रही है।
- इसे 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2021 से 2026 पाँच वर्षों की अवधि के लिये लागू किया गया है।
- उद्देश्य:
- यह कचरे के स्रोत पर पृथक्करण, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक और वायु प्रदूषण में कमी, निर्माण एवं विध्वंस गतिविधियों से कचरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन तथा सभी पुराने डंप साइट के बायोरेमेडिएशन पर केंद्रित है।
- इस मिशन के तहत, सभी अपशिष्ट जल को जल निकायों में छोड़ने से पहले ठीक से उपचारित किया जा रहा है तथा सरकार अधिकतम पुन: उपयोग को प्राथमिकता देने का प्रयास कर रही है।
- परिचय:
आगे की राह:
- वहनीय जल-आपूर्ति के साथ अधिक अपशिष्ट जल उत्पन्न हो रहा है जिसे उपचारित करने और पुन: उपयोग करने की आवश्यकता है; जीवनशैली में बदलाव और पैकेज़्ड खाद्य उत्पादों के उपयोग के साथ, प्लास्टिक कचरे का खतरा ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ता जा रहा है, जिसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):मेन्स: Q. "जल, सफाई एवं स्वच्छता की ज़रूरतों को संबोधित करने वाली नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ समायोजित किया जाना है।" वॉश योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017) सामाजिक प्रभाव और प्रोत्साहन स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में कैसे योगदान दे सकता है? (2016) |
स्रोत:पी.आई.बी
भारत की पहली वाणिज्यिक SSA वेधशाला
प्रिलिम्स के लिये:अंतरिक्ष मलबा, प्रोजेक्ट नेत्रा, क्लियरस्पेस -1, अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA) मेन्स के लिये:अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA), अंतरिक्ष मलबा, अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भारत |
चर्चा में क्यों?
भारत की पहली वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA) वेधशाला उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थापित की जाएगी।
- वेधशाला की स्थापना बेंगलुरु स्थित अंतरिक्ष क्षेत्र के दिगंतारा द्वारा की जाएगी।
वेधशाला
- क्षेत्र में अपनी तरह की पहली वेधशाला होगी, जिसे स्टार्ट-अप की SSA क्षमताओं को बढ़ाने के लिये स्थापित किया गया है।
- इसे वैश्विक अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन कार्यों की सेवा के लिये रणनीतिक रूप से तैनात किया जाएगा।
- यह अंतरिक्ष में किसी भी गतिविधि पर नज़र रखने में सहायता करेगी, जिसमें अंतरिक्ष मलबे और क्षेत्र पर मंडराने वाले सैन्य उपग्रह शामिल हैं।
- वर्तमान में अंतरिक्ष मलबों की निगरानी में अमेरिका प्रमुख अभिकर्त्ता है।
- वेधशाला अंतरिक्ष के दायरे के ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक डेटा स्रोत के रूप में सेवा करके राष्ट्र की प्रगति में सहायक होगी।
- यह निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) से लेकर भू-तुल्यकालिक कक्षा (GEO) तक की कक्षाओं में उपग्रहों और मलबों की निगरानी के लिये अपने मिशन में अपने अंतरिक्ष-आधारित सेंसर को पूरक करने में सक्षम होगी।
अंतरिक्ष मलबे
- अंतरिक्ष मलबे में प्रयोग किये गए रॉकेट, निष्क्रिय उपग्रह, अंतरिक्ष निकायों के टुकड़े और एंटी-सैटेलाइट सिस्टम (ASAT) से उत्पन्न मलबा शामिल होता है।
- लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 27,000 किमी. प्रति घंटे की औसत गति से टकराती हुई ये वस्तुएँ गंभीर खतरा पैदा करती हैं, क्योंकि इस टक्कर में सेंटीमीटर आकार के टुकड़े भी उपग्रहों के लिये घातक साबित हो सकते हैं।
- अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों के लिये भी संभावित खतरा है और उनसे टकराने से उपग्रह निष्क्रिय हो सकते हैं।
- यदि कक्षा में बहुत अधिक अंतरिक्ष मलबा मौजूद है, तो इसके परिणामस्वरूप ‘डोमिनो इफेक्ट’ उत्पन्न हो सकता है, जहाँ अधिक-से-अधिक वस्तुएँ टकराएंँगी और इस प्रक्रिया में नए अंतरिक्ष मलबे का निर्माण होगा।
SSA के संबंध में भारत में वर्तमान परिदृश्य:
- अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA):
- SSA का अर्थ पृथ्वी की कक्षा में मौजूद पिंडों की निगरानी करना और अनुमान लगाना कि वे किसी भी नियत समय पर कहाँ होंगे।
- इसमें प्राकृतिक (उल्का) और मानव निर्मित (उपग्रह) एवं अंतरिक्ष मौसम पर नज़र रखने वाली सभी ऑब्जेक्ट्स की गति की निगरानी करना शामिल है।
- SSA को आम तौर पर तीन मुख्य क्षेत्रों को कवर करने के रूप में जाना जाता है:
- मानव निर्मित ऑब्जेक्ट्स की अंतरिक्ष निगरानी और ट्रैकिंग (SST)।
- अंतरिक्ष मौसम (SWE) निगरानी और पूर्वानुमान।
- नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट्स (NEO) मॉनिटरिंग (केवल प्राकृतिक अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट)।
- भारत की SSA क्षमता:
- भारत में श्रीहरिकोटा रेंज (आंध्र प्रदेश) में एक मल्टी ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रडार का उपयोग करता है, लेकिन इसकी एक सीमा है।
- इसके अलावा SSA भारत के लिये उत्तर अमेरिकी एयरोस्पेस डिफेंस कमांड (NORAD) और अन्य सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध डेटा पर निर्भर है।
- हालाँकि ये प्लेटफ़ॉर्म सटीक या व्यापक जानकारी प्रदान नहीं करते हैं।
- नोडल एजेंसी:
- SSA के प्रति इसरो के प्रयासों इसके मुख्यालय, बंगलुरु में SSA नियंत्रण केंद्र द्वारा समन्वित किया गया और इसको अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता और प्रबंधन निदेशालय द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
- संबंधित पहल:
- प्रोजेक्ट नेत्र: भारतीय उपग्रहों को अंतरिक्ष मलबों और अन्य खतरों से बचाने के लिये 'प्रोजेक्ट नेत्र' अंतरिक्ष में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली होगी।
- यह प्रोजेक्ट लागू होने के बाद भारत को अन्य अंतरिक्ष शक्तियों की तरह SSA में अपनी क्षमता का योगदान करेगा।
- इस परियोजना के तहत 1,500 किमी. की दूरी के साथ अंतरिक्ष मलबे की निगरानी करने वाला रडार और एक ऑप्टिकल टेलीस्कोप शामिल किया जाएगा।
- क्लियरस्पेस-1: वैश्विक स्तर पर वर्ष 2025 में लॉन्च होने वाली यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का ऑर्बिट से मलबे को खत्म करने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा।
- प्रोजेक्ट नेत्र: भारतीय उपग्रहों को अंतरिक्ष मलबों और अन्य खतरों से बचाने के लिये 'प्रोजेक्ट नेत्र' अंतरिक्ष में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली होगी।
आगामी SSA वेधशाला का महत्त्व:
- उपग्रहों से मलबा टकराने की दर में कमी:
- वेधशाला को 10 सेमी. (आकार में) जितनी छोटी ऑब्जेक्ट्स को ट्रैक करने की क्षमता के साथ डिज़ाइन किया गया है, यह उपग्रहों और अन्य अंतरिक्ष यान के बीच टकराव की संभावना को कम करने में सक्षम होगी, जिससे उनके स्थान की गति और प्रक्षेपवक्र की अधिक सटीक भविष्यवाणी की जा सकेगी।
- पहले से मौजूद RSOs को ट्रैक करना और उनकी पहचान करना:
- यह पहले से मौजूद रेजिडेंट स्पेस ऑब्जेक्ट्स (RSO) को ट्रैक करने और पहचानने की प्रभावशीलता में सुधार करेगा।
- स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा:
- स्वदेशी अनुकूल क्षमताओं के निर्माण और वैश्विक स्तर पर प्रतिसर्द्धा करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- इसके परिणामस्वरूप एक हाइब्रिड डेटा पूल का विकास होगा जो अंतरिक्ष उद्योग के वाणिज्यिक और रक्षा दोनों क्षेत्रों को सेवा प्रदान करेगा।
- अनुपूरक वैश्विक नेटवर्क का विकास :
- ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका के बीच समर्पित SSA सेंसर की कमी के कारण डेटा अंतराल देखा गया है
- यह वेधशाला भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर अंतरिक्ष गतिविधियों की निगरानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी तथा भारतीय संपत्तियों की सुरक्षा के लिये आवश्यक रियल-टाइम डेटा को रिले करेगी।
- डेटा अंतराल वाले इस हिस्से में ऑब्जेक्ट्स की निरंतर ट्रैकिंग करने के लिये SSA सेंसर के वैश्विक नेटवर्क को इस वेधशाला द्वारा पूरा किया जाएगा।
UPSC सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रिलिम्स: प्रश्न: भारत द्वारा प्रमोचित खगोलीय वेधशाला, ‘ऐस्ट्रोसैट’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से स
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: A. केवल 1 उत्तर:D व्याख्या:
मेन्स: प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे भविष्य में हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019) प्रश्न. भारत ने चंद्रयान व मंगल कक्षीय मिशनों सहित मानव-रहित अंतरिक्ष मिशनों में असाधारण सफलता प्राप्त की हैं, लेकिन मानव-सहित अंतरिक्ष मिशनों में प्रवेश का साहस नहीं किया है। मानव-सहित अंतरिक्ष मिशन लाँच करने में प्रौद्योगिकीय व सुप्रचालनिक सहित मुख्य रुकावटें क्या हैं? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौधौगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौधौगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
नोवा उत्सर्जन में धूल का निर्माण
चर्चा में क्यों ?
एसएन बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंस (SNBCBS) के वैज्ञानिकों ने नोवा वी1280 स्कॉर्पी नामक इंप्लोडिंग नोवा का अवलोकन किया और पाया कि एक महीने के बाद इसके चारों ओर एक मोटी धूल बन गई और लगभग 250 दिनों तक विद्यमान रही।
नोवा:
- नोवा एक खगोलीय घटना है जिसमें तारकीय (तारों से संबंधित) सतह पर अस्थायी रूप से एक भीषण विस्फोट होता है, जिससे उनकी चमक लाखों गुना बढ़ जाती है, फिर हफ्तों या महीनों में धीरे-धीरे कालापन बढ़ता जाता है।
- यह एक बाइनरी प्रणाली में होता है जिसमें एक श्वेत वामन और एक मुख्य अनुक्रम तारा होता है।
- एक बाइनरी तारा प्रणाली तब होती है जब दो तारे एक ही द्रव्यमान के केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
- चमकीले तारे को आधिकारिक तौर पर प्राथमिक तारे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जबकि दोनों के बीच का धुंधला तारा गौण होता है।
- श्वेत वामन ऐसे तारे हैं जिसमें एक बार परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग किये गये सभी हाइड्रोजन का संलयन हो चूका होता है।
- ऐसे तारों का घनत्त्व बहुत अधिक होता है। एक सामान्य श्वेत वामन हमारे सूर्य के आकार का आधा होता है और इसकी सतह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 1,00,000 गुना अधिक होता है।
- एक बाइनरी तारा प्रणाली तब होती है जब दो तारे एक ही द्रव्यमान के केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
ब्रह्मांडीय धूल
- ब्रह्मांडीय धूल में तारों के बीच की जगह में तैरते ठोस पदार्थ के छोटे कण होते हैं।
- नोवा उत्सर्जन के प्रतिकूल वातावरण में ब्रह्मांडीय धूल या अतिरिक्त-स्थलीय धूल का निर्माण कई वर्षों से एक जटिल प्रश्न रहा है। ऐसी सैकड़ों किलोग्राम धूल प्रतिदिन पृथ्वी पर गिरती है।
निष्कर्ष:
- धूल बनने के पूर्व और उसके बाद के चरणों के दौरान वहाँ हाइड्रोजन घनत्त्व, तापमान, चमक और मौलिक तत्वों की प्रचुरता जैसे धूल के मापदंडों का अनुमान लगाने के लिये वैज्ञानिकों ने सरल मॉडल का निर्माण किया।
- उन्होंने उत्सर्जन (इजेक्टा) में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे कुछ तत्त्वों के साथ-साथ छोटे अक्रिस्टलीय (Amorphous) कार्बन धूल के कणों तथा खगोलीय सिलिकेट के बड़े धूल कणों की प्रचुरता पाई है।
- नए तारों से उत्सर्जन (नोवा इजेक्शन) में धूल का बनना कोई सामान्य घटना नहीं है।
- तारों के बीच धूल (इंटरस्टेलर डस्ट) जिसे बनने में आमतौर पर कुछ हज़ार साल लगते हैं, ऐसा विस्फोट के बाद 30 से 100 दिनों के भीतर केवल कुछ ही नए तारों (नोवा) में देखा गया है, इसलिये ऐसी घटनाओं से नोवा में धूल बनने की प्रक्रिया का अध्ययन करने का अवसर मिल जाता है।
- प्रीडस्ट चरण/पूर्व-धूल में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे कुछ तत्त्वों के समस्थानिकों की प्रचुरता पाई गई।
- धूल- पश्चात (पोस्ट - डस्ट) चरण की अवस्था में हुए उत्सर्जन (इजेक्टा) में विद्यमान छोटे अक्रिस्टलीय कार्बन धूल के कणों और बड़े खगोलीय सिलिकेट धूल के कणों का मिश्रण पाया गया है।
- मिक्स्ड एरोमैटिक – ऐलीफैटिक संरचना वाले अक्रिस्टलीय कार्बनिक ठोस जैसे कुछ जटिल कार्बनिक यौगिक भी पाए गए जो तारों और ग्रहों में आणविक बादल के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अध्ययन का महत्त्व:
- अंतरिक्ष-धूल टकराव से विभिन्न ग्रहों के बीच अत्यधिक दूरी होने के बाद भी जीवों को ग्रह पर जीवन शुरू करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
- नए तारों की धूल के उनके अध्ययन से ऐसी धूल की प्रकृति और विशेषताओं एवं उनसे संबंधित प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिल सकती है।
- टीम ने सुझाव दिया है कि जैसे-जैसे V1280 स्कॉर्पी नोवा के धूल के आवरण का विस्तार जारी रहेगा, ये धूल के कण अंततः अंतरतारकीय/इंटरस्टेलर पदार्थ के साथ मिलते जाएंँगे। लेकिन इस प्रक्रिया में हज़ारों साल लगेंगे, जोकि ब्रह्मांडीय समय के पैमाने में एक छोटी सी समयावधि है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)निम्नलिखित में से किस वैज्ञानिक ने सिद्ध किया कि सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुना से कम द्रव्यमान वाले तारे मृतप्राय होने पर श्वेत वामन बन जाते हैं? (2009) (a) एडविन हबल उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |
स्रोत:पी.आई.बी.
उत्संस्करण
प्रिलिम्स के लिये:उत्संस्करण का अर्थ। मेन्स के लिये:उत्संस्करण और उसके परिणाम, उत्संस्करणका महत्त्व , भारत और उत्संस्करण। |
चर्चा में क्यों?
विभिन्न संस्कृतियों के अपने विशिष्ट संलयन के साथ भारत में ऐसे आदर्श हैं जो उत्संस्करण (Acculturation) की अवधारणा और उसके परिणामों की गहरी समझ प्रदान करते हैं।
उत्संस्करण का क्या अर्थ
- उत्संस्करण की अवधारणा वर्ष 1880 में अमेरिकी भू-विज्ञानी जॉन वेस्ले पॉवेल द्वारा अमेरिकी ब्यूरो ऑफ एथ्नोलॉजी की एक रिपोर्ट में गढ़ी गई थी।
- उन्होंने इसे परि-सांस्कृतिक अनुकरण के कारण लोगों में प्रेरित मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के रूप में परिभाषित किया, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न संस्कृतियों के साथ अंतः क्रिया हुई।
- वर्तमान समय में उत्संस्करण को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें एक संस्कृति का व्यक्ति या समूह दूसरी संस्कृति के संपर्क में आता है और अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हुए दूसरे के मूल्यों एवं प्रथाओं को अपनाता है।
- एक उपयुक्त उदाहरण श्वेत अमेरिकी समाज के भीतर अश्वेत अमेरिकियों का एकीकरण है।
- समाजशास्त्री उत्संस्करण को द्विपक्षीय प्रक्रिया के रूप में समझते हैं, जिसमें अल्पसंख्यक संस्कृति बहुमत के संस्कृति को अपनाती है और बहुसंख्यकों की संस्कृति भी अल्पसंख्यक की संस्कृति से प्रभावित होती है।
उत्संस्करण के विभिन्न परिणाम:
- आत्मसात:
- वर्ष 1918 में शिकागो में पोलिश प्रवासियों पर डब्ल्यू.आई. थॉमस और फ्लोरियन ज़्नानीकी द्वारा किये गए एक अध्ययन ने आत्मसात की अवधारणा की बेहतर समझ प्रदान की।
- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समूह एक नई संस्कृति को अपनाते हैं जो वस्तुतः अपनी मूल संस्कृति को पूर्णतः बदल देती है और इस प्रक्रिया में पूर्व संस्कृति के केवल कुछ तत्त्व ही बचते हैं।
- नई संस्कृति को आत्मसात करने के क्रम में, व्यक्ति या समूह अंततः उस संस्कृति से अप्रभेद्य हो जाते हैं जिसके साथ वे संपर्क में आए थे।
- यह तब होता है जब किसी की संस्कृति को तुलनात्मक रूप से कम महत्त्व दिया जाता है ऐसी स्थिति में इसे एक नए स्थान में अस्तित्त्व की रक्षा के लिये उच्च महत्त्व की संस्कृति को अपनाना बाध्यकारी हो जाता है।
- यह परिघटना ऐसे समाज में ज़्यादा देखी जा सकती है जो "मेल्टिंग पॉट्स" जैसी होती हैं अर्थात् जिसमें नई संस्कृति आसानी से समाहित हो जाती है।
- विभाजन:
- यह उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें एक व्यक्ति या समूह एक नए सांस्कृतिक समूह के संपर्क में आता है, लेकिन नई संस्कृति के पहलुओं को नहीं अपनाता है, क्योंकि वह दूसरी संस्कृति के मूल्यों और मानदंडों से 'दूषित' हुए बिना अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखना चाहते हैं।
- अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को बनाए रखते हुए एक नई संस्कृति की अस्वीकृति आमतौर पर सांस्कृतिक या नस्लीय रूप से भिन्न समाजों में होती है।
- एकीकरण:
- एकीकरण के तहत एक व्यक्ति या समूह अपनी मूल संस्कृति को बनाए रखते हुए एक नई संस्कृति को अपनाता है। यह तब होता है जब समाज के सुचारू कामकाज के लिये सांस्कृतिक अंगीकरण को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- अल्पसंख्यक समूहों के अपेक्षाकृत उच्च अनुपात वाले बहुसांस्कृतिक समाज में ऐसी रणनीति का उपयोग किया जाता है।
- इस रणनीति का उपयोग करने वाले व्यक्ति या समूह विभिन्न संस्कृतियों के मूल्यों और मानदंडों को सहजता से अपना सकते हैं, ये दोनों संस्कृतियों के समूहों के मध्य परस्पर अंतर्क्रिया करने के लिये अनुकूलित होते है।
- पार्श्वीकरण:
- यह तब होता है जब व्यक्ति/समूह एक नए सांस्कृतिक समूह के साथ मुश्किल से घुल-मिल पाते हैं।
- इस रणनीति के परिणामस्वरूप व्यक्ति या समूह को अलग-थलग कर दिया जाता है, उन्हें समाज में हाशिए पर धकेल दिया जाता है।
- एक ऐसे समाज में जहाँ सांस्कृतिक बहिष्कार का अभ्यास किया जाता है तो दोनों के बीच निर्मित बाधाओं के कारण एक अलग सांस्कृतिक समूह के साथ समन्वयन और एकीकरन लगभग असंभव हो जाता है।
- रूपांतरण:
- यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक नई संस्कृति के पहलुओं को अपनाने के साथ-साथ अपनी संस्कृति को भी महत्त्व दिया जाता है।
- यह इस अर्थ में एकीकरण से अलग है कि संस्कृतियों को एक नए रूप में समामेलित किया जाता है (एकीकृत करने और छोड़ने के बजाय दो अलग-अलग संस्कृतियों के नियम और आचरण का समामेलन )।
- इस प्रकार, दो संस्कृतियों का एक अनूठा मिश्रण एक नई संस्कृति को जन्म देता है जिसे दोनों व्यक्तियों/समूहों द्वारा स्वीकार किया जाता है।
भारत के संदर्भ में उत्संस्करण की प्रासंगिकता:
- भारत की विशिष्ट समिश्रित संस्कृति उत्संस्करण और उसके परिणामों को समझने में महत्त्वपूर्ण रूप से मदद करती है।
- फारसी संस्कृति ने भारतीय समाज के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित किया है; बिरयानी और फालूदा जैसे लोकप्रिय खाद्य पदार्थों की उत्पत्ति और केसर तथा जीरा जैसे मसाले फारसी मूल के हैं।
- उर्दू भाषा, अरबी, फारसी, तुर्की और हिंदी का मिश्रण, जो संस्कृतियों के समामेलन और रूपांतरण का एक उदाहरण है।
- केरल में ईसाई चर्चों की वास्तुकला जैसे कोट्टायम में चेरियापल्ली (छोटा चर्च) या चेंगन्नूर में पझाया सुरियानी पल्ली (पुराना सीरियाई चर्च) में हिंदू मंदिर स्थापत्य शैली के चिह्न हैं।
- हिंदू देवताओं के समान कमल के अंदर ईसाई देवताओं की मूर्तियाँ और चर्च की दीवारों पर खुदी हुई गाय, हाथी और बंदर जैसे जानवरों की मूर्तियाँ भारतीय समाज में हिंदू और ईसाई परंपराओं और संस्कृतियों के एकीकरण के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
निष्कर्ष:
- उत्संस्करण एक अनिवार्य सामाजिक प्रक्रिया है, क्योंकि प्रवास और विभिन्न संस्कृतियों के साथ अंतःक्रियाएँ हमेशा सभ्यता के विकास का हिस्सा रही हैं।
- उत्संस्करण हमें विभिन्न संस्कृतियों के नए पहलुओं को सीखने और समझने और उनके मतभेदों की सराहना करने की अनुमति देता है।
- अन्य संस्कृतियों के प्रति आक्रोश और यह विश्वास कि किसी की अपनी विरासत श्रेष्ठ है का परिणाम विभिन्न संस्कृतियों के हाशिए पर जाने और फिर उनका अलगाव हो सकता है जिससे अंततः समाज की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- शांतिपूर्ण समाज के लिये विभिन्न समूहों के बीच संस्कृतियों का सौहार्दपूर्ण आदान-प्रदान अनिवार्य है।
स्रोत: द हिंदू
यूरिया में आत्मनिर्भरता
प्रिलिम्स के लिये:लिक्विड नैनो यूरिया, पारंपरिक यूरिया की तुलना में लिक्विड नैनो यूरिया का महत्त्व। मेन्स के लिये:यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
भारत अगले चार वर्षों के भीतर अर्थात् वर्ष 2025 तक लिक्विड नैनो यूरिया के रूप में ज्ञात स्थानीय रूप से विकसित संस्करण के उत्पादन का विस्तार करके आयातित यूरिया पर अपनी निर्भरता समाप्त करने की उम्मीद कर रहा है।
लिक्विड नैनो यूरिया:
- यह एक नैनोकण के रूप में यूरिया है। यह पारंपरिक यूरिया के विकल्प के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करने वाला एक पोषक तत्त्व (लिक्विड) है।
- यूरिया सफेद रंग का एक रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरक है, जो कृत्रिम रूप से नाइट्रोजन प्रदान करता है जो पौधों के लिये एक आवश्यक प्रमुख पोषक तत्त्व है।
- नैनो यूरिया को पारंपरिक यूरिया के स्थान पर विकसित किया गया है और यह पारंपरिक यूरिया की न्यूनतम खपत को 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
- इसकी 500 मिली.की एक बोतल में 40,000 मिलीग्राम/लीटर नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग/बोरी के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्त्व प्रदान करेगा।
- यह स्वदेशी यूरिया है, जिसे सबसे पहले भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (IFFCO) द्वारा दुनिया भर के किसानों के लिये पेश किया गया था।
- प्रधानमंत्री ने गुजरात के कलोल में पहले लिक्विड नैनो यूरिया (LNU) संयंत्र का उद्घाटन किया है।
यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता:
- आपूर्ति शृंखला में कमी को पूरा करने के लिये भारत दशकों से यूरिया का आयात कर रहा है। भारत, यूरिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक होने के कारण, इसकी मांग यूरिया की अंतर्राष्ट्रीय कीमत को प्रभावित करती है।
- भारत यूरिया और डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है।
- DAP, यूरिया के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उर्वरक है।
- किसान आमतौर पर इस उर्वरक को बुवाई से ठीक पहले या शुरुआत में इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि इसमें फास्फोरस (P) की मात्रा अधिक होती है जो जड़ के विकास को प्रेरित करता है।
- आपूर्ति बाधित होने के कारण इस वर्ष 2022 में वैश्विक उर्वरक कीमतों में तेज़ वृद्धि से यूरिया और DAP प्रभावित हुए हैं।
- कृषि हमारी लगभग 70% आबादी का मुख्य आधार है, आपूर्ति में किसी भी तरह की कमी या उर्वरकों जैसे महत्त्वपूर्ण इनपुट की कीमत में वृद्धि का हमारे ग्रामीण क्षेत्र के समग्र आर्थिक प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है।
- यह संभावना है कि निकट भविष्य में यूरिया की मांग में कमी नहीं आने वाली है, इसलिये यूरिया के आयात पर हमेशा निर्भर उचित निर्णय साबित नहीं होगा।
- इस संबंध में वर्ष 2016 में सार्वजनिक क्षेत्र में कई ब्राउनफील्ड यूरिया संयंत्र स्थापित करने का निर्णय एक सार्थक कदम था।
- यूरिया में आत्मनिर्भरता से सरकार को करीब 40,000 करोड़ रुपए की बचत होगी।
भारत में उर्वरकों की स्थिति:
- परिचय
- भारत ने पिछले 10 वर्षों में प्रतिवर्ष लगभग 500 एलएमटी (LMT) उर्वरक की खपत की है।
- केंद्र का उर्वरक सब्सिडी भुगतान वित्त वर्ष 2011 में बजटीय राशि से 62% से बढ़कर3 लाख करोड़ रुपया हो गया है।
- चूंँकि गैर-यूरिया (MoP, DAP, कॉम्प्लेक्स) किस्मों की लागत अधिक होती है इसलिये कई किसान वास्तव में आवश्यकता से अधिक यूरिया का उपयोग करना पसंद करते हैं।
- सरकार ने यूरिया की खपत को कम करने के लिये कई उपाय किये हैं। इसने गैर-कृषि उपयोग हेतु यूरिया के अवैध प्रयोग को कम करने के लिये नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत की। जैविक और शून्य-बजट खेती को बढ़ावा दिया है।
- वर्ष 2018-19 और वर्ष 2020-21 के बीच भारत का उर्वरक आयात84 मिलियन टन से लगभग 8% बढ़कर 20.33 मिलियन टन हो गया।
- वित्तीय वर्ष 2021 में यूरिया की आवश्यकता का एक-चौथाई से अधिक आयात किया गया था।
- अधिक मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकता:
- भारत के कृषि उत्पादन में प्रतिवर्ष वृद्धि हुई है और इसके साथ ही देश में उर्वरकों की मांग भी बढ़ी है।
- आयात के बावजूद स्वदेशी उत्पादन लक्ष्य पूरा न होने के कारण मांग और उपलब्धता के बीच अंतर बना हुआ है।
संबंधित सरकारी पहल:
- नैनो यूरिया उत्पादन:
- आठ नए नैनो यूरिया संयंत्र, जिनकी केंद्र द्वारा निगरानी की जा रही है, नवंबर 2025 तक उत्पादन शुरू कर देंगे।
- ये कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और असम सहित कई राज्यों में स्थित हैं।
- नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea- NCU)
- उर्वरक विभाग (DoF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये शत-प्रतिशत यूरिया का उत्पादन ‘नीम कोटेड यूरिया’ (NCU) के रूप में करना अनिवार्य कर दिया है। ताकि मिट्टी की सेहत में सुधार हो, पौधों की सुरक्षा करने वाले रसायनों का उपयोग कम हो।
- नई यूरिया नीति 2015:
- नीति के उद्देश्य हैं-
- स्वदेशी यूरिया उत्पादन को बढ़ावा देना।
- यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
- भारत सरकार पर सब्सिडी के भार को युक्तिसंगत बनाना।
- नीति के उद्देश्य हैं-
- नई निवेश नीति, 2012:
- सरकार ने जनवरी 2013 में नई निवेश नीति (New Investment Policy- NIP), 2012 की घोषणा की जिसे वर्ष 2014 में यूरिया क्षेत्र में नए निवेश की सुविधा तथा भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये संशोधित किया गया।
- सिटी कम्पोस्ट के संवर्द्धन पर नीति:
- भारत सरकार ने सिटी कम्पोस्ट के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिये 1500 रुपए की बाज़ार विकास सहायता (Market Development Assistance) प्रदान करने हेतु वर्ष 2016 में उर्वरक विभाग द्वारा अधिसूचित सिटी कम्पोस्ट को बढ़ावा देने की नीति को मंज़ूरी दी।
- उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- उर्वरक विभाग ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और परमाणु खनिज निदेशालय (AMD) के सहयोग से इसरो के तहत राष्ट्रीय्र रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा "रॉक फॉस्फेट का रिफ्लेक्सेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी और पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके संसाधन मानचित्रण" पर तीन साल का पायलट अध्ययन शुरू किया।
- पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना:
- इसे रसायन और उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग द्वारा अप्रैल 2010 से लागू किया गया है।
- NBS के तहत, वार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडी की एक निश्चित राशि सब्सिडी वाले फॉस्फेटिक और पोटाशिक (P&K) उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर इसकी पोषक सामग्री के आधार पर प्रदान की जाती है।
आगे की राह
- DAP और म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) जैसे गैर-यूरिया उर्वरकों के लिये, हमें महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की ज़रूरत है कि सुनिश्चित कर सकें की हमारे किसानों को उचित मूल्य पर आवश्यक उर्वरकों की निर्बाध आपूर्ति मिलती रहे, हालाँकि अभी तक इन गैर-यूरिया उर्वरकों के कच्चे माल के लिये हम आयात पर निर्भर रहे हैं।
- उर्वरक क्षेत्र में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) को सार्वभौमिक बनाकर सब्सिडी वितरण तंत्र को सुव्यवस्थित करना समय की मांग है।
- दूसरे, उर्वरक सब्सिडी वितरण व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को सख्ती से रोकने की ज़रूरत है। इन कदमों से उर्वरक सब्सिडी के बोझ में काफी कमी आएगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (a) कोयला उत्पादन उत्तर: b व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। प्र. सब्सिडी किसानों के फसल प्रतिरूप, फसल विविधता और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती है? लघु और सीमांत किसानों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (मुख्य परीक्षा, 2017) |