अहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित बोड़फुकन
चर्चा में क्यों?
असम के प्रसिद्ध युद्ध नायक लाचित बोड़फुकन की 400वीं जयंती 23 से 25 नवंबर, 2022 तक नई दिल्ली में मनाई जाएगी।
लाचित बोड़फुकन:
- लाचित बोड़फुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। उन्होंने वर्ष 1671 में हुए सराईघाट के युद्ध (Battle of Saraighat) में अपनी सेना का प्रभावी नेतृत्त्व किया, जिससे मुगल सेना का असम पर कब्ज़ा करने का प्रयास विफल हो गया था।
- उनके प्रयासों से भारतीय नौसैनिक शक्ति को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा मिली।
- राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है।
- इस पदक को वर्ष 1999 में रक्षाकर्मियों हेतु बोड़फुकन की वीरता से प्रेरणा लेने और उनके बलिदान का अनुसरण करने के लिये स्थापित किया गया था।
- 25 अप्रैल, 1672 को उनका निधन हो गया।
अहोम साम्राज्य:
- परिचय:
- असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में वर्ष 1228 में स्थापित अहोम साम्राज्य ने 600 वर्षों तक अपनी संप्रभुता बनाए रखी।
- साम्राज्य की स्थापना 13वीं शताब्दी के शासक चाओलुंग सुकफा ने की थी।
- यंदाबू की संधि पर हस्ताक्षर के साथ वर्ष 1826 में प्रांत को ब्रिटिश भारत में शामिल किये जाने तक इस भूमि पर अहोमों ने शासन किया।
- अपनी बहादुरी के लिये विख्यात अहोम शक्तिशाली मुगल साम्राज्य के आगे नहीं झुके।
- राजनीतिक व्यवस्था:
- अहोमों ने भुइयाँ (ज़मींदारों) की पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त करके एक नए राज्य का निर्माण किया।
- अहोम राज्य बंधुआ मज़दूरी/बलात॒ श्रम (Forced Labour) पर निर्भर था। राज्य के लिये इस प्रकार की मज़दूरी करने वालों को पाइक (Paik) कहा जाता था।
- समाज:
- अहोम समाज को कुल/खेल (Clan/Khel) में विभाजित किया गया था। एक कुल/खेल का सामान्यतः कई गाँवों पर नियंत्रण होता था।
- अहोम साम्राज्य के लोग अपने स्वयं के आदिवासी देवताओं की पूजा करते थे, फिर भी उन्होंने हिंदू धर्म और असमिया भाषा को स्वीकार किया।
- हालाँकि अहोम राजाओं ने हिंदू धर्म अपनाने के बाद अपनी पारंपरिक मान्यताओं को पूरी तरह से नहीं छोड़ा।
- अहोम लोगों का स्थानीय लोगों के साथ विवाह के चलते उनमें असमिया संस्कृति को आत्मसात करने की प्रवृत्ति देखी गई।
- कला और संस्कृति:
- अहोम राजाओं ने कवियों और विद्वानों को भूमि अनुदान दिया तथा रंगमंच को प्रोत्साहित किया।
- संस्कृत के महत्त्वपूर्ण कृतियों का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया गया।
- बुरंजी (Buranjis) नामक ऐतिहासिक कृतियों को पहले अहोम भाषा में फिर असमिया भाषा में लिखा गया।
- सैन्य रणनीति:
- अहोम राजा राज्य की सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्त्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।
- पाइक दो प्रकार के होते थे: सेवारत और गैर-सेवारत। गैर-सेवारत पाइकों ने एक स्थायी सहायक सेना (Militia) का गठन किया, जिन्हें खेलदार (Kheldar- सैन्य आयोजक) द्वारा थोड़े ही समय में संगठित किया जा सकता था।
- अहोम सेना की समग्र टुकड़ी में पैदल सेना, नौसेना, तोपखाने, हाथी, घुड़सवार सेना और जासूस शामिल थे। युद्ध में इस्तेमाल किये जाने वाले मुख्य हथियारों में तलवार, भाला, बंदूक, तोप, धनुष और तीर शामिल थे।
- अहोम राजा युद्ध अभियानों का नेतृत्त्व करने से पहले शत्रु की युद्ध रणनीतियों को जानने के लिये उनके शिविरों में जासूस भेजते थे।
- अहोम सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध (Guerilla Fighting) में विशेषज्ञता प्राप्त थी। ये सैनिक दुश्मनों को अपने देश की सीमा में प्रवेश करने देते थे, फिर उनके संचार को बाधित कर उन पर सामने और पीछे से हमला कर देते थे।
- कुछ महत्त्वपूर्ण किले: चमधारा, सराईघाट, सिमलागढ़, कलियाबार, कजली और पांडु।
- उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी पर नाव का पुल (Boat Bridge) बनाने की तकनीक भी सीखी थी।
- इन सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि नागरिकों और सैनिकों के बीच आपसी समझ तथा धनाढ्य लोगों के बीच एकता ने हमेशा अहोम राजाओं के लिये मज़बूत हथियारों के रूप में काम किया।
- अहोम राजा राज्य की सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्त्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।
स्रोत: द हिंदू
जनसंख्या संबंधी रुझान
प्रिलिम्स के लिये:भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश, TFR, मातृ मृत्यु दर अनुपात मेन्स के लिये:भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) के अनुमान के अनुसार वर्ष 2022 में चीन पहली बार अपनी आबादी में पूर्ण गिरावट दर्ज करेगा और वर्ष 2023 में भारत की आबादी 1,428.63 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जो चीन की 1,425.67 मिलियन की आबादी से अधिक हो जाएगी।
जनसंख्या परिवर्तन के चालक:
- कुल प्रजनन दर (TFR):
- पिछले तीन दशकों में भारत के TFR में गिरावट आई है।
- वर्ष 1992-93 और 2019-21 के बीच यह 3.4 से घटकर 2 पर पहुँच गई, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गिरावट देखी गई।
- वर्ष 1992-93 में औसत ग्रामीण भारतीय महिला ने अपने शहरी समकक्ष (3.7 बनाम 2.7) की तुलना में एक अतिरिक्त बच्चे को जन्म दिया। वर्ष 2019-21 तक यह अंतर आधा (2.1 बनाम 1.6) हो गया था।
- 1 के TFR को "प्रतिस्थापन-स्तर प्रजनन क्षमता" माना जाता है।
- TFR एक विशेष अवधि/वर्ष के लिये सर्वेक्षणों के आधार पर 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा जन्म देने की औसत संख्या है।
- पिछले तीन दशकों में भारत के TFR में गिरावट आई है।
- मृत्यु दर में गिरावट:
- चीन के लिये क्रूड डेथ रेट (CDR) पहली बार वर्ष 1974 में 9.5 तक के इकाई अंक में पहुँचा जबकि भारत के लिये वर्ष 1994 में (9.8 तक) इसके बाद वर्ष 2020 में दोनों देशों के लिये यह दर घटकर क्रमशः 7.3 और 7.4 तक पहुँच गई।
- CDR 1950 में चीन के लिये 23.2 और भारत के लिये 22.2 था।
- CDR प्रतिवर्ष प्रति 1,000 आबादी पर मरने वाले व्यक्तियों की संख्या है।
- शिक्षा के स्तर में वृद्धि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और टीकाकरण कार्यक्रमों, भोजन एवं चिकित्सा देखभाल तक पहुँच व सुरक्षित पेयजल तथा स्वच्छता सुविधाओं के प्रावधान के परिणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी आ जाती है।
- चीन के लिये क्रूड डेथ रेट (CDR) पहली बार वर्ष 1974 में 9.5 तक के इकाई अंक में पहुँचा जबकि भारत के लिये वर्ष 1994 में (9.8 तक) इसके बाद वर्ष 2020 में दोनों देशों के लिये यह दर घटकर क्रमशः 7.3 और 7.4 तक पहुँच गई।
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा:
- वर्ष 1950 और 2020 के बीच जन्म के समय जीवन प्रत्याशा चीन की 43.7 से बढ़कर 78.1 वर्ष और भारत की 41.7 से बढ़कर 70.1 वर्ष हो गई।
- मृत्यु दर में कमी के कारण आमतौर पर जनसंख्या वृद्धि होती है। दूसरी ओर प्रजनन क्षमता में गिरावट जनसंख्या वृद्धि को धीमा कर देती है जिसके परिणामस्वरूप अंततः पूर्ण गिरावट आती है।
- वर्ष 1950 और 2020 के बीच जन्म के समय जीवन प्रत्याशा चीन की 43.7 से बढ़कर 78.1 वर्ष और भारत की 41.7 से बढ़कर 70.1 वर्ष हो गई।
चीन के लिये रुझानों के निहितार्थ:
- चीन का TFR वर्ष 2010 और 2000 की जनगणना में 1.2 से थोड़ा अधिक प्रति महिला जन्म 1.3 था, लेकिन 2.1 की प्रतिस्थापन दर से काफी नीचे था।
- वर्ष 2016 से चीन ने आधिकारिक तौर पर अपनी एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया जिसे वर्ष 1980 में पेश किया गया था।
- हालाँकि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2050 में चीन की कुल आबादी 1.31 बिलियन होने का अनुमान लगाया है, जो वर्ष 2021 के उच्चतम आबादी से 113 मिलियन से अधिक की गिरावट दर्शाता है।
- चीन की प्रमुख कामकाजी उम्र की आबादी में गिरावट आना चिंताजनक है क्योंकि यह एक दुष्चक्र बनाता है जिसमें आश्रितों का समर्थन करने के लिये काम करने वाले लोगों की संख्या कम हो जाती है लेकिन आश्रितों की संख्या बढ़ने लगती है।
- 20 से 59 आयु वर्ग की आबादी का अनुपात वर्ष 1987 में 50% को पार कर गया तथा वर्ष 2011 में 61.5% पर पहुँच गया।
- जैसे-जैसे यह चक्र बदलता है चीन की कामकाजी उम्र की आबादी वर्ष 2045 तक 50% से नीचे आ जाएगी।
- इसके अलावा जनसंख्या की औसत आयु जो वर्ष 2000 में 28.9 वर्ष और वर्ष 2020 में 37.4 वर्ष थी, वर्ष 2050 तक 50.7 वर्ष तक बढ़ने की उम्मीद है।
जनसंख्या नियंत्रण के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- भारत 1950 के दशक में राज्य प्रायोजित परिवार नियोजन कार्यक्रम वाले पहले विकासशील देशों में से एक बना।
- जनसंख्या नीति समिति की स्थापना वर्ष 1952 में की गई थी।
- केंद्रीय परिवार नियोजन बोर्ड की स्थापना वर्ष 1956 में की गई और इसका केंद्रीय बिंदु नसबंदी था।
- भारत सरकार ने पहली राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा वर्ष 1976 में की।
- राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 ने भारत के लिये एक स्थिर जनसंख्या प्राप्त करने की परिकल्पना की।
- इस नीति का लक्ष्य वर्ष 2045 तक स्थिर जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
- इसके तत्काल उद्देश्यों में गर्भनिरोधक, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे और कर्मियों संबंधी आवश्यक ज़रूरतों को पूरा करना और प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बुनियादी एकीकृत सेवा प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey-NFHS) बड़े पैमाने पर किया जाने वाला एक बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है जो पूरे भारत में परिवारों के प्रतिनिधि नमूने के रूप में किया जाता है।
- NFHS के दो प्रमुख लक्ष्य हैं:
- नीति और कार्यक्रम के उद्देश्यों के लिये आवश्यक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी डेटा प्रदान करना।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी महत्त्वपूर्ण उभरते मुद्दों पर जानकारी प्रदान करना।
- NFHS के दो प्रमुख लक्ष्य हैं:
- बढ़ती जनसंख्या दर की समस्याओं से निपटने में शिक्षा के महत्त्व को महसूस करते हुए शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 1980 से प्रभावी जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया।
- जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसे औपचारिक शिक्षा प्रणाली में जनसंख्या शिक्षा को शामिल करने के लिये तैयार किया गया है।
- यह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Funds for Population Activities- UNFPA) के सहयोग से और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की सक्रिय भागीदारी के साथ विकसित किया गया है।
आगे की राह
- भारत के लिये जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करने का एक अवसर है क्योंकि कुल आबादी में इसकी कार्यशील उम्र की आबादी का हिस्सा वर्ष 2007 में 50% तक पहुँच गया और अनुमान है कि वर्ष 2030 के मध्य तक यह 57% तक पहुँच जाएगा।
- लेकिन जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ युवा आबादी के लिये रोज़गार के सार्थक अवसरों के सृजन पर निर्भर करता है।
- इसके लिये उपयुक्त बुनियादी ढाँचे, अनुकूल सामाजिक कल्याण योजनाओं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है।
- पहले से ही 25-64 आयु वर्ग के लोगों के लिये कौशल की आवश्यकता है, जो यह सुनिश्चित कर उनकी उत्पादकता और आय को बेहतर किया जा सकता है।
- 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था में महिलाओं और लड़कियों की भागीदारी के लिये उपयुक्त नए कौशल एवं अवसरों की तत्काल आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 के अनुसार, निम्नलिखित में से किस एक वर्ष तक जनसंख्या स्थिरीकरण प्राप्त करना हमारा दीर्घकालिक उद्देश्य है? (2008) (a) 2025 उत्तर: (c) प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तार से बताइये। (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता
प्रिलिम्स के लिये:ऑस्ट्रेलिया की अवस्थिति और पड़ोस, आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, मुक्त व्यापार समझौता, CEPA, CECA, आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल, QUAD, UNCLOS मेन्स के लिये:द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार। आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, मुक्त व्यापार समझौता और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई संसद ने भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (Ind-Aus ECTA) को मंज़ूरी दी।
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (Ind-Aus ECTA):
- यह पहला मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है जिस पर भारत ने एक दशक से अधिक समय के बाद किसी प्रमुख विकसित देश के साथ हस्ताक्षर किये हैं।
- इस समझौते में दो मित्र देशों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों के क्षेत्र में सहयोग शामिल है तथा इस समझौते में निम्नलिखित क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है:
- वस्तु व्यापार, उत्पत्ति के नियम।
- सेवाओं में व्यापार।
- व्यापार की तकनीकी बाधाएँ (TBT)।
- स्वच्छता और पादप स्वच्छता (Sanitary and Phytosanitary) उपाय।
- विवाद निपटान, व्यक्तियों की आवाजाही।
- दूरसंचार, सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ।
- फार्मास्यूटिकल उत्पाद तथा अन्य क्षेत्रों में सहयोग।
- ECTA दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करने तथा इसमें सुधार के लिये एक संस्थागत तंत्र प्रदान करता है।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच ईसीटीए क्रमशः भारत और ऑस्ट्रेलिया द्वारा निपटाए गए लगभग सभी टैरिफ लाइनों को कवर करता है।
- भारत को अपनी 100% टैरिफ लाइनों पर ऑस्ट्रेलिया द्वारा प्रदान की जाने वाली अधिमान्य बाज़ार पहुँच से लाभ होगा।
- इसमें भारत के सभी निर्यात श्रम प्रधान क्षेत्र शामिल हैं जैसे- रत्न, आभूषण, कपड़ा, चमड़ा, जूते, फर्नीचर आदि।
- दूसरी ओर भारत, ऑस्ट्रेलिया को अपनी 70% से अधिक टैरिफ लाइनों पर अधिमान्य पहुँच की पेशकश करेगा, जिसमें ऑस्ट्रेलिया की निर्यात हेतु ब्याज दरें शामिल हैं जो मुख्य रूप से कच्चे माल जैसे- कोयला, खनिज अयस्क तथा वाइनआदि हैं।
- समझौते के तहत STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) से संबंधित भारतीय स्नातकों को अध्ययन के बाद विस्तारित कार्य वीज़ा दिया जाएगा।
- ऑस्ट्रेलिया में छुट्टियाँ बिताने के इच्छुक युवा भारतीयों को वीज़ा देने के लिये एक कार्यक्रम भी शुरू किया जाएगा।
- भारत के योग शिक्षकों और रसोइयों के लिये 1800 वार्षिक वीज़ा कोटा निर्धारित किया जाएगा।
- यह भी अनुमान है कि ECTA के परिणामस्वरूप 10 लाख नौकरियाँ सृजित होंगी।
भारत -ऑस्ट्रेलिया संबंध:
- भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रगाढ़ द्विपक्षीय संबंध हैं, जिनमें हाल के वर्षों में रूपांतरकारी बदलाव हुए हैं और अब ये एक सकारात्मक दिशा में विकसित होकर मित्रतापूर्ण साझेदारी में बदल गए हैं।
- दोनों देशों के बीच एक विशेष साझेदारी है, जिसमें बहुलवादी, संसदीय लोकतंत्र, राष्ट्रकुल परंपराएँ, बढ़ता आर्थिक सहयोग, लोगों-से-लोगों के बीच दीर्घकालिक संबंध तथा बढ़ते हुए उच्चस्तरीय परस्पर संपर्कों के साझा मूल्य शामिल हैं।
- भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी ‘इंडिया-आस्ट्रेलिया लीडर्स वर्चुअल समिट’ के दौरान आरंभ हुई, जो कि दोनों देशों के बहुपक्षीय तथा द्विपक्षीय संबंधों की आधारशिला है।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बढ़ते वाणिज्यिक संबंध दोनों देशों के बीच स्थिरता एवं विविधता के साथ तीव्रता से प्रगाढ़ होते द्वपक्षीय संबंध की मज़बूती में योगदान देते हैं।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया एक-दूसरे के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार बने हुए हैं।
- ऑस्ट्रेलिया, भारत का 17वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है तथा भारत. ऑस्ट्रेलिया का नौवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- वस्तु एवं सेवाओं दोनों क्षेत्रों में भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021 में 27.5 बिलियन डॉलर का आंँका गया है।
- वर्ष 2019 तथा वर्ष 2021 के बीच ऑस्ट्रेलिया को भारत का वस्तु निर्यात 135 प्रतिशत बढ़ा। भारत के निर्यातों में मुख्य रूप से परिष्कृत उत्पादों का एक व्यापक बास्केट शामिल है तथा वर्ष 2021 में यह 6.9 बिलियन डॉलर का था।
- वर्ष 2021 में ऑस्ट्रेलिया से भारत द्वारा किया गया माल का आयात 15.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें बड़े पैमाने पर कच्चा माल, खनिज और मध्यवर्ती सामान शामिल थे।
- भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ त्रिपक्षीय ‘सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव’ (SCRI) में शामिल है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं में लचीलेपन को बढ़ाने का प्रयास करता है।
- इसके अलावा भारत एवं ऑस्ट्रेलिया दोनों ही देश क्वाड ग्रुपिंग (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) के सदस्य हैंं, ताकि सहयोग को और बढ़ाया जा सके एवं साझा चिंताओं के कई मुद्दों पर साझेदारी विकसित की जा सके।
आगे की राह
- भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA दोनों देशों के बीच पहले से ही घनिष्ठ और रणनीतिक संबंधों को और मज़बूती प्रदान करेगा, वस्तुओं एवं सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाएगा, रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न करेगा तथा दोनों देशों के लोगों के जीवन स्तर को सुधरने के साथ-साथ लोगों के सामान्य कल्याण को सुनिश्चित करेगा।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही देश विवादों के बजाय एकतरफा या सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से एक स्वतंत्र, समावेशी और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र तथा समुद्र के सहकारी उपयोग हेतु संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) एवं शांतिपूर्ण समाधान हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न . निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन) के 'मुक्त व्यापार भागीदारों' में से हैं? (a) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (C) |
स्रोत: पी.आई.बी
भारत निर्वाचन आयोग
प्रिलिम्स के लिये:भारत निर्वाचन आयोग, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:भारत निर्वाचन आयोग और उसके कार्य |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अपने एक हालिया निर्णय में इस बात का दावा किया है कि चुनाव आयुक्तों/निर्वाचन आयुक्तों की स्वतंत्रता के मामले में सरकार द्वारा दी जाने वाली सेवाएँ केवल मौखिक हैं क्योंकि जहाँ 1950 के दशक में मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल 8 वर्ष से भी अधिक समय का हुआ करता था वहीं वर्ष 2004 से अब तक यह कार्यकाल घटकर 300 दिनों से भी कम का रह गया है।
भारत निर्वाचन आयोग:
- परिचय:
- भारत निर्वाचन आयोग जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
- चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 (राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है) को संविधान के अनुसार की गई थी। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में है।
- यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
- इसका राज्यों में पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है। इसके लिये भारत का संविधान अलग से राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान करता है।
- भारत निर्वाचन आयोग जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित है और इन मामलों हेतु एक आयोग की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 324: चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित है।
- अनुच्छेद 325: धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
- अनुच्छेद 326 लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
- अनुच्छेद 327: विधानसभाओं के चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति।
- अनुच्छेद 328: ऐसे विधानमंडल के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने के लिये राज्य के विधानमंडल की शक्ति।
- अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप पर रोक।
- ECI की संरचना:
- मूल रूप से आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त थे लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया।
- चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) तथा अन्य चुनाव आयुक्त, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर चुना जाता है वे भी इसमें शामिल होंगे।
- वर्तमान में इसमें CEC और दो चुनाव आयुक्त हैं।
- राज्य स्तर पर चुनाव आयोग की मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा मदद की जाती है जो IAS रैंक का अधिकारी होता है।
- आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल:
- राष्ट्रपति CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है।
- उनका छह साल का एक निश्चित कार्यकाल होता है या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो)।
- इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और समान वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
- निष्कासन:
- वे कभी भी त्यागपत्र दे सकते हैं या उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले भी हटाया जा सकता है।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया की तरह ही पद से हटाया जा सकता है।
- सीमाएँ:
- संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की गई है।
- संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों के कार्यकाल को निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
- संविधान ने सेवानिवृत्त हो रहे चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
ECI की शक्तियाँ और कार्य:
- प्रशासनिक:
- संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर देश भर में चुनाव निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करना।
- मतदाता सूची तैयार करना और समय-समय पर संशोधित करना तथा सभी पात्र मतदाताओं को पंजीकृत करना।
- राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना।
- चुनाव आयोग राजनीतिक दलों की आम सहमति से विकसित आदर्श आचार संहिता के सख्त पालन के माध्यम से राजनीतिक दलों के लिये चुनाव में समान अवसर सुनिश्चित करता है।
- यह चुनावों के संचालन हेतु चुनाव कार्यक्रम तय करता है, चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव।
- सलाहकार क्षेत्राधिकार और अर्द्ध-न्यायिक कार्य:
- संविधान के तहत संसद और राज्य विधानसभाओं के मौजूदा सदस्यों के चुनाव के बाद अयोग्यता के मामले में आयोग के पास सलाहकार अधिकार क्षेत्र है।
- ऐसे सभी मामलों में आयोग की राय राष्ट्रपति या राज्यपाल, जिसे ऐसी राय दी गई है, के लिये बाध्यकारी है।
- इसके अलावा चुनाव में भ्रष्ट आचरण के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों के मामले जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सामने आते हैं, को इस सवाल हेतु आयोग की राय के लिये भी भेजा जाता है कि क्या ऐसे व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया जाएगा और यदि हांँ, तो किस अवधि के लिये।
- आयोग के पास मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों को निपटाने की अर्द्ध-न्यायिक शक्ति निहित है।
- आयोग के पास ऐसे किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने की शक्ति है, जो समय के भीतर और कानून द्वारा निर्धारित तरीके से अपने चुनावी खर्चों का लेखा-जोखा करने में विफल रहा है।
- संविधान के तहत संसद और राज्य विधानसभाओं के मौजूदा सदस्यों के चुनाव के बाद अयोग्यता के मामले में आयोग के पास सलाहकार अधिकार क्षेत्र है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |
स्रोत: द हिंदू
धीमी जमा वृद्धि पर RBI की चिंता
प्रिलिम्स के लिये:मुद्रास्फीति, कोविड-19, रूस-यूक्रेन, परिसंपत्ति गुणवत्ता, NPA। मेन्स के लिये:धीमी जमा वृद्धि और परिसंपत्ति गुणवत्ता पर चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में RBI ने क्रेडिट ग्रोथ, एसेट क्वालिटी और नए जमाने के टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस को अपनाने के संबंध में डिपॉज़िट में पिछड़ने पर चिंता जताई है और बैंकों को सतर्क रहने की सलाह दी है।
बैंकों को सतर्क रहने की आवश्यकता:
- रिज़र्व बैंक ने कहा कि घरेलू समष्टि अर्थशास्त्र परिदृश्य को मज़बूत माना जा सकता है लेकिन वैश्विक चुनौतियों के प्रति यह संवेदनशील है।
- यह वर्तमान वैश्विक तीन स्रोतों से उत्पन्न हो रही हैं;
a. यूक्रेन में रूस की कार्रवाई ऊर्जा आपूर्ति और कीमतों को (विशेष रूप से यूरोप में) प्रभावित करती है।
b. चीन में ज़ीरो-कोविड नीति के कारण बार-बार लॉकडाउन लगने के कारण आर्थिक मंदी।
c. मुद्रास्फीति के दबाव के कारण जीवन यापन की लागत में वृद्धि।
इस प्रकार दुनिया भर में मौद्रिक नीतियों, विशेष रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को सख्त किया जा रहा है, जिससे उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय स्थिरता ज़ोखिम के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
डिपॉज़िट और क्रेडिट ग्रोथ:
- बैंकों की क्रेडिट-डिस्बर्सिंग बैंडविड्थ उनके इन-हाउस रिज़र्व द्वारा निर्धारित की जाती है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अधिक आर्थिक गतिविधि के साथ ऋण की मांग बढ़ती है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, कुल ऋण मांग वर्तमान में एक "असमान प्रोफाइल" है।
- शहरी मांग मज़बूत दिखाई दे रही है और ग्रामीण मांग जो सुस्त थी, उसने भी हाल ही में कुछ मज़बूती हासिल करना शुरू कर दिया है।
- सेवाओं, व्यक्तिगत ऋण, कृषि और उद्योग के नेतृत्व में वाणिज्यिक बैंक ऋण वृद्धि भी हो रही है।
- यह कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बैंक ऋण हेतु बढ़ती प्राथमिकता को दर्शाता है।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिये आरबीआई के नवीनतम साप्ताहिक आँकड़ों के अनुसार कुल डिपॉज़िट राशि साल-दर-साल आधार पर 11.4% की तुलना में 8.2% बढ़ी है, जबकि साल-दर-साल आधार पर 7.1% की वृद्धि की तुलना में क्रेडिट ऑफ-टेक में 17% की वृद्धि हुई है। .
- CRISIL के अनुसार ऐसा नहीं है कि डिपॉज़िट ग्रोथ कम गई है, लेकिन क्रेडिट ग्रोथ पिछली कुछ तिमाहियों में बढ़ी है।
- महामारी के दौरान कम आर्थिक गतिविधियों के कारण ऋण वृद्धि धीमी थी। अब आर्थिक गतिविधि के सामान्य स्थिति में लौटने के साथ विशेष रूप से पिछली तीन तिमाहियों में ऋण वृद्धि में तेज़ी आई है।
बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता की स्थिति:
- सकल गैर-निष्पादित संपत्ति (Non-Performing Assets-GNPA) में लगातार गिरावट आई है, शुद्ध NPA कुल संपत्ति का 1% तक गिर गया है।
- लिक्विडिटी कवर मज़बूत है और लाभदेयता बढ़ी है। हालाँकि बाज़ार सहभागियों ने व्यापक आर्थिक स्थिति के आलोक में कॉरपोरेट्स के संबंध में चिंता जताई है।
- संपत्ति की गुणवत्ता में सुधार का कारण पिछले कुछ वर्षों में कॉर्पोरेट इंडिया में हुआ डी-लीवरेजिंग है, जिसमें अधिकांश कॉर्पोरेट अपने ऋण स्तर में कटौती करने और अपने क्रेडिट प्रोफाइल में सुधार करने में सक्षम हुए हैं।
- नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड की स्थापना के कारण आगामी वित्त वर्ष के दौरान कॉर्पोरेट NPA में कमी आने की उम्मीद है, इससे उन कुछ पुराने कॉर्पोरेट ऋण NPA को खत्म किये जाने की उम्मीद है जो अभी भी बैंकों के पास हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) |