विविध
WHO: स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर दिशा-निर्देश
- 11 Mar 2019
- 54 min read
परिचय
मानव स्वास्थ्य के लिये स्वच्छता का महत्त्व
- मानसिक विकास एवं सामाजिक कल्याण में सुधार के साथ-साथ संक्रमण को रोकने के लिये स्वच्छता एवं स्वास्थ्य अत्यंत आवश्यक है।
- सुरक्षित स्वच्छता प्रणालियों की कमी के कारण संक्रमण और बीमारियाँ होती हैं, जिसमें डायरिया, उष्णकटिबंधीय बीमारियाँ जैसे- मिट्टी से फैलने वाले हेल्मिन्थ संक्रमण, सिस्टोसोमियासिस और ट्रेकोमा (कुकरे) तथा वेक्टर-जनित रोग जैसे कि वेस्ट नाइल वायरस, लसीका फाइलेरिया और जापानी इंसेफेलाइटिस शामिल हैं।
- विश्व स्तर पर पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग एक-चौथाई बच्चों को बार-बार दस्त और पर्यावरणीय आंत्र रोग प्रभावित करता है जिसे अस्वास्थकर स्थितियों में विकास की कमी (Stunting) से जोड़ा गया।
- सुरक्षित स्वच्छता प्रणालियों की कमी रोगाणुरोधी प्रतिरोध के उद्भव तथा प्रसार में योगदान करती है।
मानव विकास के मुद्दे के रूप में स्वच्छता
- दुनिया भर में बहुत से क्षेत्रों में लोग खुले में शौच करते हैं तथा उनके पास ऐसी सेवाएँ मौज़ूद नहीं होती हैं कि जो मल अपशिष्ट को पर्यावरण को दूषित करने से रोक सके।
- कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में आज भी ग्रामीण क्षेत्र इन सेवाओं से अछूते हैं, जबकि शहरी क्षेत्र तेज़ी से शहरीकरण के कारण स्वच्छता संबंधी ज़रूरतों के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न चुनौतियों के चलते सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा करने वाली स्वच्छता प्रणालियों को बनाए रखने के लिये निरंतर अनुकूलन की आवश्यकता होती है।
- यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता वर्ष के साथ 2008 में वैश्विक विकास एजेंडे की शुरुआत की जिसमें स्वच्छता को महत्त्व दिया गया, इस क्रम में 2010 में सुरक्षित जल एवं स्वच्छता के मानव अधिकार को मान्यता देने तथा 2013 में संयुक्त राष्ट्र के उपमहासचिव द्वारा खुले में शौच को समाप्त करने का आह्वान किया गया।
- स्वच्छता के सुरक्षित प्रबंधन के साथ ही अपशिष्ट जल उपचार एवं पुन: उपयोग आदि को सतत् विकास लक्ष्यों के तहत केंद्रीय स्थान दिया गया।
स्वच्छता का मानवाधिकार (UN, 2010)
स्वच्छता का मानवाधिकार सभी को स्वच्छता सेवाओं के अधिकार की प्राप्ति का प्रावधान करता है, जो गोपनीयता एवं गरिमा के साथ-साथ शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिये सुलभ एवं सस्ती, सुरक्षित, स्वच्छ, सामाजिक एवं सांस्कृतिक तौर पर स्वीकार्य सेवाएँ सुनिश्चित करता है। मानव अधिकार सिद्धांतों को सभी मानवाधिकार पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के संदर्भ में लागू किया जाना चाहिये, जिसमें स्वच्छता का अधिकार भी शामिल है:
- गैर-भेदभाव एवं समानता: सभी लोगों की बिना भेदभाव के (सबसे कमज़ोर तथा वंचित व्यक्तियों एवं समूहों को प्राथमिकता देते हुए) पर्याप्त स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- सहभागिता: हर किसी को भेदभाव के बिना स्वच्छता सेवाओं के उपयोग से संबंधित निर्णयों में भाग लेने के लिये सक्षम बनाया जाना चाहिये।
- सूचना का अधिकार: प्रासंगिक भाषाओं और मीडिया द्वारा नियोजित उपयुक्त कार्यक्रमों और परियोजनाओं के माध्यम से उन लोगों तक जो इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे, स्वच्छता संबंधी जानकारी स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
- जवाबदेही (निगरानी एवं न्याय तक पहुँच): स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने में किसी भी प्रकार की विफलता के लिये राज्य सरकार जवाबदेह है। राज्य सरकार द्वारा स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच (और पहुँच की कमी) की निगरानी की जानी चाहिये।
- स्थिरता: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि स्वच्छता सेवाओं तक सभी की पहुँच लंबी अवधि तक बनी रहे साथ ही सेवाओं की उपलब्धता में सभी समुदायों की आर्थिक स्थिति (ऐसे वर्गों को शामिल करते हुए जो यह खर्च उठाने में सक्षम नही हैं) और शारीरिक स्थिति (शारीरिक अक्षमता इत्यादि) को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।
स्वच्छता के मानवाधिकार को निम्नलिखित मानक तत्त्वों द्वारा परिभाषित किया गया है:
- उपलब्धता: सभी व्यक्तियों के लिये पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिये।
- अभिगम्यता या सुलभता: घरों, स्वास्थ्य एवं शैक्षणिक संस्थानों, सार्वजनिक संस्थानों एवं स्थलों तथा कार्यस्थलों के भीतर या आसपास के क्षेत्र में सभी के लिये स्वच्छता सेवाएँ सुलभ होनी चाहिये। इन सुविधाओं का लाभ उठाने की प्रक्रिया अथवा इन सेवाओं तक पहुँच के दौरान शारीरिक सुरक्षा का खतरा नहीं होना चाहिये।
- गुणवत्ता: स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग स्वच्छ तथा तकनीकी रूप से सुरक्षित होना चाहिये। साथ ही सफाई एवं हाथ धोने के लिये पानी तक पहुँच होना आवश्यक है।
- सामर्थ्यता: पानी, भोजन, आवास एवं स्वास्थ्य देखभाल जैसे मानवाधिकारों द्वारा गारंटीकृत अन्य आवश्यक आवश्यकताओं से समझौता किये बिना, स्वच्छता एवं सेवाओं को किफायती दाम में उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
- स्वीकार्यता: सेवाएँ, विशेष रूप से स्वच्छता सुविधाओं को सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य बनाया जाना चाहिये। इसका कारण यह है कि निजता एवं गरिमा को सुनिश्चित करने के लिये इसके निर्माण में अक्सर लिंग-विशिष्ट सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
सभी मानवाधिकार आपस में जुड़े हुए हैं और पारस्परिक रूप से मज़बूत हैं तथा कोई भी मानवाधिकार दूसरे मानवाधिकार पर वरीयता नहीं लेता है।
सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals-SDGs) एवं स्वच्छता (UN, 2015)
- स्वच्छ जल एवं स्वच्छता हेतु लक्ष्य क्रमांक 6 (विशेष रूप से स्वच्छता तथा पानी की गुणवत्ता पर क्रमशः लक्ष्य क्रमांक 6.2 और 6.3) तथा अच्छे स्वास्थ्य एवं कल्याण हेतु लक्ष्य क्रमांक 3, विशेष रूप से स्वच्छता के लिये प्रासंगिक हैं।
- कई अन्य लक्ष्य जिनमें गरीबी (विशेष रूप से बुनियादी सेवाओं तक पहुँच हेतु लक्ष्य क्रमांक 1.4), पोषण, शिक्षा, लैंगिक समानता, आर्थिक विकास, असमानताओं में कमी तथा स्थायी शहर शामिल हैं को स्वच्छता से बल मिलता है या उसकी प्राप्ति के लिये आवश्यक है।
- SDGs ने राज्यों के लिये कार्यान्वयन के सिद्धांतों को भी निर्धारित किया है, जिसमें वित्तपोषण में वृद्धि करना, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की क्षमता को मज़बूत करना, जोखिम में कमी के लिये रणनीतियों का समावेशन करना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का निर्माण तथा स्थानीय समुदायों की भागीदारी शामिल है।
- लक्ष्य क्रमांक 1 सूचनाओं के प्रवाह में सुधार एवं निगरानी क्षमताओं तथा आम-सहमति को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देता है, ताकि यह पहचानना संभव हो सके कि कौन से समूह पीछे छूट गए है।
सुरक्षित स्वच्छता
- सुरक्षित स्वच्छता प्रणाली को एक प्रणाली के रूप में परिभाषित किया गया है, जो स्वच्छता के अधिकार एवं नियंत्रण से स्वच्छता सेवा श्रृंखला के सभी चरणों में मानव द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट का निपटान, उसकी ढुलाई, उपचार तथा अंतिम निपटान के माध्यम से मानव संपर्क को अलग करता है।
उद्देश्य
- इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये सुरक्षित स्वच्छता प्रणालियों और प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
- ये स्वच्छता और स्वास्थ्य के बीच संबंधों पर साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं, साक्ष्य-सूचित सिफारिशें देते हैं तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्वच्छता नीतियों और कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिये मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
- ये दिशा-निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिये कि स्वास्थ्य जोखिमों की प्रभावी ढंग से पहचान कर उन्हें प्रबंधित किया जाए, इस विचार के साथ ही स्वच्छता नीति में स्वास्थ्य तथा अन्य भागीदारों की भूमिका को स्पष्ट करने और समर्थन देने की मांग भी करते हैं।
- दिशानिर्देशों को सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए स्थानीय संदर्भों के अनुकूल बनाया गया है।
सिफारिशें एवं बेहतर अभ्यास प्रक्रियाएँ
सिफारिशें
सिफारिश 1: शौचालयों तक सार्वभौमिक पहुँच एवं उपयोग सुनिश्चित करना, जिसमें सुरक्षित रूप से मल उत्सर्जन हो:
- यह सिफारिश मानवाधिकार सिद्धांतों के अनुरूप है तथा सतत् विकास लक्ष्य क्रमांक 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता) एवं क्रमांक 6.2 (सफाई और स्वच्छता) को सुदृढ़ करती है।
- शौचालय तक पहुँच का मतलब यह नहीं है कि इसका उपयोग किया जा रहा है या इसका उपयोग हर समय हर व्यक्ति द्वारा किया जाता है। खराब तरीके से निर्मित एवं प्रबंधित शौचालय पुनः खुले में शौच का कारण बन सकते हैं।
- शौचालय सभी के लिये सुलभ, वहन करने योग्य तथा निरंतर उपलब्ध होने चाहिये और मलोत्सर्जन कम-से-कम मानव संपर्क से दूर होना चाहिये।
- शहरी क्षेत्रों में पूर्ण कवरेज एवं सुरक्षित नियंत्रण किया जाना महत्त्वपूर्ण है तथा इसे शहर में व्यापक योजना एवं कार्यान्वयन के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये, क्योंकि मल-मूत्र का जलमार्ग, भूजल, पाइप एवं नालियों से मिलने का खतरा होता है।
- ऐसे साझा और सार्वजनिक शौचालय, जिनमें मल-मूत्र का निकास सुरक्षित रूप से होता हो, को ऐसे घरों के लिये प्रस्तावित किया जा सकता है जहाँ सुविधाएँ प्रदान करना संभव न हो।
सतत् विकास लक्ष्य (SDGs)
- SDG 6 - सभी के लिये जल एवं स्वच्छता की उपलब्धता तथा स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित करना।
- लक्ष्य 6.2 - 2030 तक सभी द्वारा पर्याप्त एवं समान सफाई और स्वच्छता तक पहुँच प्राप्त करना तथा खुले में शौच को समाप्त करना, महिलाओं एवं लड़कियों तथा कमज़ोर वर्गों के लोगों की ज़रूरतों पर विशेष ध्यान देना।
सिफारिश 2: संपूर्ण स्वच्छता सेवा श्रृंखला के साथ सुरक्षित प्रणालियों तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
- यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रणाली एवं सेवाएँ स्थानीय संदर्भ में कार्य करने हेतु चुनी जाएँ तथा निवेश एवं प्रणाली प्रबंधन स्थानीय स्तर के जोखिम आकलनों पर आधारित हो।
- स्वच्छता सेवाएँ प्राप्त करने के लिये स्वच्छता प्रणालियों को मल-मूत्र नियंत्रण, सफाई, ढुलाई, उपचार और अंतिम उपयोग या निपटान का प्रबंध करना चाहिये।
- जोखिम मूल्यांकन में श्रृंखला के साथ सभी समूहों जैसे- उपयोगकर्त्ताओं, स्थानीय समुदायों, सफाई कर्मियों और व्यापक समुदायों के लिये संभावित जोखिमों का आकलन किया जाना चाहिये।
सिफारिश 3: स्थानीय रूप से वितरित सेवाओं तथा व्यापक विकास कार्यक्रमों एवं नीतियों के एक भाग के रूप में स्वच्छता को संबोधित किया जाना चाहिये।
- ऐसी जगहों पर जहाँ स्थान की कमी हो तथा स्वच्छता सेवाओं के लिये अन्य स्थानीय मुद्दे बाधक हों, वहाँ उच्च लागत और बुनियादी ढाँचे से संबंधित जटिलताओं से बचने के लिये स्वच्छता सेवाओं को स्थानीय योजना प्रक्रिया में ही शामिल किया जाना चाहिये।
- स्वच्छता हस्तक्षेप को जल एवं अन्य स्वच्छता उपायों के साथ समन्वित किया जाना चाहिये, साथ ही स्वच्छता से होने वाले स्वास्थ्य लाभों को अधिकतम करने के लिये बच्चों के मल तथा घरेलू पशुओं के प्रबंधन एवं उनके मल का सुरक्षित निपटान करना चाहिये।
- वस्तुतः स्वच्छता एक प्राथमिक बाधा है, किंतु द्वितीयक बाधाएँ जैसे- सुरक्षित जल, साबुन से हाथ धोना, पशु अपशिष्ट प्रबंधन तथा मक्खी नियंत्रण पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- उपरोक्त सभी मुद्दों का जल, सफाई एवं स्वच्छता (WASH) के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण के हस्तक्षेप द्वारा एक साथ समाधान किया जा सकता है।
WASH दृष्टिकोण
WASH ‘जल, सफाई एवं स्वच्छता’ का संक्षिप्त रूप है। WASH तक सार्वभौमिक, सस्ती एवं स्थायी पहुँच अंतर्राष्ट्रीय विकास हेतु एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है तथा सतत् विकास लक्ष्य 6 का केंद्रबिंदु है।
सिफारिश 4: स्वास्थ्य क्षेत्र को सार्वजनिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिये सुरक्षित स्वच्छता सुनिश्चित करने हेतु मुख्य कार्यों को पूरा किया जाना चाहिये।
- स्वच्छता की बहु-क्षेत्रीय प्रकृति को समायोजित करने एवं कार्रवाई की सुविधा के लिये समग्र स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, कृषि, विकास, सार्वजनिक कार्यों तथा पर्यावरण कार्यक्रमों सहित कई हितधारकों के बीच समन्वय की आवश्यकता है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित प्राधिकारी वर्ग को स्वच्छता मानदंडों तथा मानकों के विकास में योगदान करना चाहिये, जिसमें सुरक्षा मानकों के विकास (या संशोधन) तथा कार्यान्वयन में योगदान शामिल हैं।
- स्वास्थ्य प्रभाव को अधिकतम करने तथा उसमें निरंतरता बनाए रखने के लिये स्वच्छता सेवाओं एवं निगरानी को स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल किया जाना चाहिये।
- स्वच्छता को बढ़ावा देना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है जिसे समुदाय, स्कूल और संपूर्ण जनसंख्या से जुड़ी पहलों तथा अभियानों में यथासंभव हो शामिल किया जाना चाहिये।
अच्छी प्रथाएँ (Good Practice Actions)
- सरकार के नेतृत्व वाली बहु-क्षेत्रीय स्वच्छता नीतियों, नियोजन प्रक्रियाओं एवं समन्वय को परिभाषित करना।
- यह सुनिश्चित करना कि स्वच्छता कानून, नियमों और मानकों में स्वास्थ्य जोखिम प्रबंधन पूरी तरह से परिलक्षित होता हो।
- समर्पित कर्मचारियों एवं रिसोर्सिंग के माध्यम से तथा स्वास्थ्य सेवाओं के भीतर स्वच्छता पर कार्रवाई के माध्यम से स्वास्थ्य क्षेत्र की भागीदारी को बनाए रखना।
- सुधारों को प्राथमिकता देने एवं प्रणाली के प्रदर्शन को प्रबंधित करने के लिये स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य-आधारित जोखिम मूल्यांकन करना।
- स्वच्छता सेवाओं को विपणन के योग्य बनाना तथा स्वच्छता सेवाओं एवं व्यवसाय मॉडल को विकसित करना।
- सुरक्षित स्वच्छता प्रणालियों के लिये कई हितधारकों से इनपुट प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, लेकिन राष्ट्रीय एवं स्थानीय सरकारें उनकी प्रभावी योजना, वितरण, रखरखाव, विनियमन तथा निगरानी पर केंद्रित होती हैं।
कार्यान्वयन संरचना के घटक
वितरण के आधार पर सेवाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
- शौचालय निर्माण, हार्डवेयर की आपूर्ति, मलीय गाद या कंटेनरों को हटाना तथा सार्वजनिक शौचालय जैसी ग्राहक सेवाओं का प्रावधान जो उपयोगकर्त्ताओं को प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करती हैं और साथ ही सामुदायिक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करती हैं।
- सार्वजनिक सेवाएँ, जिसमें सीवरेज एवं ड्रेनेज सिस्टम का संचालन और रखरखाव तथा मलीय गाद का उपचार शामिल है। ये सुविधाएँ प्रयोग के क्रम में समुदाय को सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती हैं।
- सार्वजनिक सेवाएँ आमतौर पर स्थानीय अधिकारियों, जनोपयोगी सेवा प्रदाता उद्योगों या निजी क्षेत्र उप-निबंधन द्वारा वितरित की जाती हैं तथा स्थानीय कर राजस्व, जल आपूर्ति एवं सरकारी सब्सिडी के माध्यम से वित्तपोषित की जाती हैं।
- अवसंरचना विकास, जिसमें सीवरेज, जल निकासी, मलीय गाद अंतरण स्टेशन एवं अपशिष्ट जल उपचार संयत्रों के डिज़ाइन एवं निर्माण, प्राथमिक जल आपूर्ति प्रणाली या मलिन बस्तियों का विकास शामिल हैं।
- अवसंरचना विकास समुदाय को सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है, लेकिन इसके लिये बड़े निवेश की आवश्यकता होती है।
प्रवर्तन एवं अनुपालन
- मानकों तथा नियमों के अनुपालन हेतु व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें प्रोत्साहन, संवर्द्धन एवं प्रतिबंध भी शामिल होते हैं।
- प्रथम दृष्टया बाध्यकारी साधनों, जैसे कि सूचना प्रसार, तकनीकी सहायता, संवर्द्धन एवं पुरस्कार का उपयोग किया जाना चाहिये।
- स्वच्छता मानकों की निगरानी तथा उन्हें लागू करने की आवश्यकता है। निरीक्षण और अभियोजन की क्षमता का निर्धारण यह तय करने के लिये किया जाना चाहिये कि क्या यह अनुमानित मांगों का सामना करने के लिये पर्याप्त है।
समन्वय एवं भूमिका
- मुख्य हितधारकों के बीच संवाद स्थापित करने के लिये एक बहु-क्षेत्रीय मंच स्थापित करना तथा समन्वित योजनाओं की कार्यवाई में विकास एवं निगरानी को प्रमुखता देना।
- सुरक्षित स्वच्छता प्रणालियों एवं सेवाओं के समन्वय तथा कार्यान्वयन के लिये राजनीतिक नेतृत्व को भी स्वच्छता की प्रगति की चुनौतियों को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्राधिकरण तथा स्वच्छता में उनकी भूमिका
- पर्यावरणीय स्वास्थ्य में पेयजल सुरक्षा, स्वच्छता, वायु प्रदूषण, कार्यस्थल पर स्वास्थ्य तथा रासायनिक सुरक्षा जैसे विषय शामिल हैं।
- इसे गतिविधियों के व्यापक समूह के एक हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिये जिसमें शिक्षा एवं स्वच्छता को बढ़ावा देना, अंतिम उपाय के रूप में अपराधियों को दंडित करना शामिल है।
- लोगों के लिये वांछित परिवर्तन को अपनाना व्यवहार्य होना चाहिये, ताकि प्रवर्तन एवं संवर्द्धन को सेवाओं के विकास तथा सूचना अभियान के साथ समन्वित किया जा सके।
- पर्यावरणीय स्वास्थ्य कर्मचारियों को अपनी भूमिका पूरी तरह से निभाने में सक्षम बनाने तथा इसके साथ ही विशेषज्ञों एवं ठेकेदारों को प्रबंधित करने के लिये उन्हें प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन के लिये पर्याप्त संसाधनों के आवंटन हेतु वकालत कर सकने में सक्षम बनाया जाना चाहिये।
स्थानीय स्तर पर स्वच्छता प्रदान करना
मूलभूत सेवा के रूप में स्वच्छता
- किसी भी वातावरण में पर्याप्त जल की आपूर्ति एवं साफ-सफाई की अच्छी आदतों के साथ ही स्वच्छता से अधिकतम स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
- उच्च घनत्व (शहरी) वाले क्षेत्रों में पर्यावरण स्वच्छता, भूमि उपयोग पैटर्न, आवंटित आवासों का पैटर्न, जल आपूर्ति सेवाओं का स्तर, जल निकासी एवं ठोस अपशिष्ट प्रबंधन निकटता से जुड़े हुए हैं तथा इसे स्वतंत्र रूप से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है।
- इसलिये साफ-सफाई की योजना तथा उसका कार्यान्वयन इन अन्य बुनियादी सेवाओं के साथ समन्वित होना चाहिये।
स्वच्छता व्यवहार में बदलाव
- सफाई एवं अच्छी स्वच्छता प्राप्त करने के लिये सक्रिय उपयोगकर्त्ता की भागीदारी आवश्यक है। विभिन्न हितधारकों द्वारा कई व्यवहारों को स्वच्छता सेवा श्रृंखला के साथ संबोधित करने की आवश्यकता होती है जिसमें विशिष्ट रणनीतियों की भी ज़रूरत पड़ सकती है।
- व्यवहार परिवर्तन को स्वच्छता के एक अभिन्न अंग के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि बुनियादी ढाँचे एवं सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने से वांछित सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम हासिल नहीं होंगे।
स्थानीय निगरानी
- ये औपचारिक या अनौपचारिक सामुदायिक नेता या स्वास्थ्य, कृषि या अन्य क्षेत्रों के कर्मचारी हो सकते हैं जिनकी सामुदायिक उपस्थिति होती है।
- बजट को किसी प्रयोजन के लिये कार्यक्रमबद्ध किया जाना चाहिये तथा निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिये।
स्वच्छता सेवाएँ एवं व्यावसायिक मॉडल विकसित करना
डिज़ाइनिंग सेवाएँ
- स्वच्छता सेवाओं के लिये प्रत्येक क्षेत्र में प्रचलित भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखना चाहिये तथा स्वच्छता सुधारों को अपनाने से पहले इन कारकों का आकलन किया जाना चाहिये।
- जैसे-जैसे शहरों का विकास होता है, शहरी क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत स्वच्छता प्रणालियों की आवश्यकता बढ़ती है जैसे- छोटे सीवरेज सिस्टम एवं मलीय गाद निस्तारण सुविधाएँ तथा उपचार स्थल।
वित्तपोषण
- लोग शौचालय, स्वच्छता एवं ऑनसाइट उपचार तथा स्वच्छता के कुछ हिस्सों में सीधे लाभ पहुँचाने वाली सेवाओं हेतु भुगतान करने के लिये तैयार हैं।
- शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता शुल्क को जल के शुल्क के साथ जोड़ा जा सकता है, खासकर यदि सभी स्वच्छता सेवाओं को एक ही सेवा प्रदाता द्वारा प्रबंधित किया जाता हो।
- उन्हें स्थानीय करों में भी शामिल किया जा सकता है।
- कम घनत्व वाले ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ प्रमुख ध्यान स्वच्छता को बढ़ावा देने तथा स्वयं निर्मित शौचालयों का सुरक्षित एवं सतत् उपयोग है, वहाँ गतिविधियों के लिये सरकारी बजट का उपयोग करने के आलावा अन्य विकल्प बहुत कम हैं।
विशेष स्वच्छता जोखिमों का प्रबंधन
आपात स्थिति में स्वच्छता
- ये दिशा-निर्देश आपदा प्राथमिकता योजना में स्वच्छता को तत्काल प्राथमिक कार्रवाई के रूप में शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- दिव्यांग लोगों, बच्चों के लिये प्रावधान तथा महिलाओं की निजता, सुरक्षा एवं मासिक धर्म स्वच्छता की आवश्यकताएँ महत्त्वपूर्ण हैं। अतः आपात स्थिति के दौरान जब महिलाएँ एवं लड़कियाँ विशेष रूप से कमज़ोर होती हैं, तब सावधानीपूर्वक योजना के क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है।
आँत रोग के प्रकोप एवं महामारी के दौरान स्वच्छता
- हैजा, आँत की बीमारी या महामारी के प्रकोप के दौरान स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में स्वच्छता
- स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ संक्रामक घटकों और ज़हरीले रसायनों के कारण विशेष रूप से उच्च स्वच्छता जोखिम प्रदर्शित करती हैं।
- स्वास्थ्य देखभाल सुविधा स्वच्छता एवं स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी के तहत होनी चाहिये, इसके प्रबंधन की ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य देखभाल सुविधा प्रबंधकों एवं संबंधित कर्मचारियों के नौकरी के विवरण में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट होनी चाहिये।
WHO 2008 के अनुसार, अस्पताल में भर्ती रोगियों के लिये शौचालयों की अनुशंसित संख्या 1:20 तथा कम-से-कम दो शौचालय बाहरी रोगियों के लिये होने चाहिये।
स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन
परिचय
- स्वच्छता कार्यक्रमों ने ऐतिहासिक रूप से विभिन्न सामग्रियों की व्यवस्था के माध्यम से तथा स्वास्थ्य शिक्षा या स्वास्थ्य संवर्द्धन के विभिन्न प्रारूपों की सहायता से स्वच्छता प्रथाओं को प्रभावित करने की कोशिश की है।
- लोग स्वास्थ्य में सुधार करने की इच्छा के अलावा कई कारणों से शौचालय का उपयोग तथा उससे संबंधित स्वच्छता आदतों का चयन करते हैं।
- स्वच्छता साधनों, घरों में स्वच्छता प्रथाओं तथा स्वच्छता योजनाओं के लिये उत्तरदायी संस्थानों के कार्य में सुधार और तेज़ी लाने हेतु व्यवहार परिवर्तन को स्वच्छता कार्यक्रमों के एक आवश्यक घटक के रूप में देखा जाता है।
किसी विशिष्ट स्थिति के आधार पर, उपयोगकर्त्ता का वांछित व्यवहार:
- खुले में शौच की प्रवृत्ति को रोकना तथा सुरक्षित स्वच्छता सेवाओं को अपनाना।
- साबुन, हैंडवाश से हाथ धोना।
- खाली न किये जा सकने वाले गड्ढे युक्त शौचालयों हेतु ऐसे गड्ढों का निर्माण जिन्हें भर जाने की स्थिति में खाली करने की बजाय ढक दिया जाए और नए गड्ढों का निर्माण कर दिया जाए।
- इस तरह की सुविधाओं के नियमित रूप से प्राप्ति सुनिश्चित करना तथा उपमृदा स्तर तक तरल अपशिष्टों की घुसपैठ या अन्य सुरक्षित निपटान मार्ग तक अपशिष्टों का पहुँचना।
- जहाँ उपलब्ध हो, वहाँ सीवरेज सिस्टम से जुड़ना एवं सेवा शुल्क देना।
- खाद्य उत्पादन एवं बिक्री में अपशिष्ट जल एवं मलीय गाद से निपटने की सुरक्षित प्रथा।
स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन के लिये संस्थागत और सरकारी उत्तरदायित्व
- स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन के लिये वित्तीय एवं मानव संसाधनों की आवश्यकता होती है, पर्याप्त संसाधनों की कमी की वज़ह से सतत् स्वच्छता या घरेलू स्वच्छता सेवाओं को सुनिश्चित करने में विफल हो सकते हैं।
- स्वास्थ्य अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि स्वच्छता से संबंधित सभी कार्रवाइयों में व्यवहार परिवर्तन की एक मज़बूत रणनीति शामिल हो।
- व्यवहार परिवर्तन का कार्य बुनियादी ढाँचे एवं सेवाएँ प्रदान करने वाले संगठनों के साथ समन्वय में ही किया जाना चाहिये।
- इसमें तकनीकी और विशेषज्ञता प्राप्त संगठनों, जैसे- विश्वविद्यालय तथा सामाजिक विपणन एवं डिज़ाइन एजेंसियों को शामिल किया जा सकता है।
स्वच्छता व्यवहार और निर्धारक तत्त्व
- स्वच्छता व्यवहारों को प्रभावित करने के लिये सफल गतिविधियों को डिज़ाइन करने हेतु मौजूदा स्वच्छता व्यवहारों एवं उनके निर्धारक तत्त्वों की सीमाओं को समझना महत्त्वपूर्ण है।
- स्वच्छता को प्रभावी बनाने के लिये विभिन्न प्रकार के अंतर-संबंधित व्यवहार महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें सुविधाओं का निरंतर उपयोग तथा उनके रखरखाव एवं देखभाल तथा बच्चों के मल का स्वच्छता से निपटान शामिल हैं।
- शौचालयों का उपयोग करने के लिये इन तक पहुँच आवश्यक है, लेकिन यह इनके निरंतर उपयोग की गारंटी नहीं देता है। मौजूदा सुविधाओं का उपयोग न करने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
♦ सुविधाएँ उपयोगकर्त्ताओं, विशेषकर महिलाओं, वृद्धों या विकलांग लोगों के लिये पर्याप्त रूप से सुलभ नहीं हों।
♦ इन्फ्रास्ट्रक्चर या स्ट्रक्चर टूटा-फूटा, गंदा या उपयोग करने के लिये असुविधाजनक हो।
♦ जब स्वच्छता के विकल्प अनाकर्षक या अस्वच्छ तरीके से व्यवस्थित किये जा रहे हों तब लोग खुले में शौच करने के लिये विवश हो सकते हैं।
♦ कई बार आवश्यकता के समय सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं, जैसे कि जब लोग घर से दूर होते हैं (स्कूल, कार्यस्थल, सार्वजनिक स्थान) या रात में जब सुविधाएँ बंद हों।
♦ उपयोगकर्त्ता गड्ढे भरने तथा भविष्य में रखरखाव पर दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में चिंतित हो सकते हैं तथा इस प्रकार वे सुविधा का उपयोग करने से बचते हैं।
- हितों के निर्धारक व्यावहारिक तौर पर सकारात्मक यानी वे व्यावहारिक परिणाम को बढ़ावा देने वाले हो सकते हैं या नकारात्मक हो सकते हैं यानी वे व्यावहारिक परिणाम में बाधा डालने का कार्य करते हैं।
- व्यवहार निर्धारक तत्त्व समाज, समुदाय, व्यक्ति, आदि विभिन्न स्तरों पर पाए जाते हैं तथा इसमें ऐसे कारक शामिल होते हैं जिन्हें संदर्भ, प्रौद्योगिकी एवं सामाजिक अनुभवों से संबंधित माना जा सकता है।
- व्यवहार के व्यक्तिगत-स्तर के निर्धारकों में शौचालय निर्माण एवं उपयोग, लागत एवं लाभ, स्वच्छता के लिये प्रेरणा एवं इच्छा आदि से संबंधित ज्ञान शामिल है।
- घरेलू स्तर के निर्धारकों में भूमिकाओं एवं ज़िम्मेदारियों तथा घर के भीतर श्रम के विभाजन को शामिल किया जा सकता है।
- सामुदायिक स्तर के निर्धारकों में शौचालय के उपयोग एवं सुविधाओं के प्रबंधन तथा रखरखाव के लिये सामाजिक मानदंड शामिल हैं।
- व्यवहार निर्धारक तत्त्व उस संदर्भ से संबंधित होते हैं जिसमें यह व्यवहार किया जाता है जैसे- जलवायु, भूगोल और विभिन्न सामग्रियों तक पहुँच, आर्थिक निर्धारक में सब्सिडी की उपलब्धता या जुर्माना और / या दंड लागू करना।
- स्वच्छता प्रौद्योगिकियों के माध्यम से भी व्यवहार निर्धारित कर सकते हैं, उदाहरण के लिये उपयोग में आसानी, स्थान तथा लागत।
बदलते व्यवहार
मुख्य दृष्टिकोण
आमतौर पर सफाई एवं स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन के लिये उपयोग में लाए जाने वाले विभिन्न व्यवहार परिवर्तन दृष्टिकोण-
- सूचना, शिक्षा एवं संचार दृष्टिकोण (IEC)
♦ मैसेजिंग जो कि संदेश का आदान-प्रदान एवं जागरूकता का प्रसार, पारंपरिक सूचना, शिक्षा एवं संचार (IEC) पहल की आधारशिला है। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवहार परिवर्तन में अक्सर IEC दृष्टिकोण का उपयोग किया जाता है।
♦ IEC में मास मीडिया, समूह या पारस्परिक संचार एवं भागीदारी जैसी गतिविधियों को शामिल किया जा सकता है।
- समुदाय आधारित दृष्टिकोण
♦ स्वच्छता के लिये समुदाय आधारित दृष्टिकोण लोगों के सामूहिक एकत्रीकरण पर केंद्रित है।
♦ सामूहिक प्रक्रियाओं का उपयोग स्थानीय समस्याओं पर साझा समझ विकसित करने, कार्रवाइयों द्वारा किसी सामूहिक समझौते पर पहुँचने तथा किसी विशिष्ट व्यवहार हेतु मानदंड तय करने के लिये किया जाता है।
♦ ये मानदंड प्रवर्तित व्यवहार के अनुपालन के लिये नए सामाजिक दबाव बनाने में मदद करते हैं।
♦ समुदाय आधारित संपूर्ण स्वच्छता (CLTS) पहल का उद्देश्य समुदाय आधारित गतिविधियों को बढ़ावा देना है, जिसका नेतृत्व प्रशिक्षित प्रशिक्षकों द्वारा किया जाता है, जो व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते है तथा संबंधित समुदाय में खुले में शौच के प्रति घृणा एवं शर्म का भाव पैदा कर समुदाय के स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्रोत्साहित करने का कार्य करते हैं।
♦ CLTS कार्यक्रमों को कई देशों में लागू किया गया है तथा निरंतर स्वच्छता के माध्यम से परिणामों को बेहतर बनाने के लिये इसे कई तरीकों से विकसित किया गया है जिसमें शामिल हैं:
- हाशिये पर स्थित घरों के लिये सब्सिडी प्रदान करना।
- हाशिये पर स्थित समूहों एवं घरों को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करने हेतु पहल।
- बुनियादी तौर पर सुरक्षा उपायों से प्रबंधित स्वच्छता के द्वारा प्रगति हेतु प्रोत्साहित करने के लिये सामाजिक एवं वाणिज्यिक-विपणन आधारित दृष्टिकोण जैसे आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेपों पर ध्यान देना।
- खुले में शौच की प्रवृत्ति में पुनः हो रही बढ़ोतरी के कारणों को समझना।
व्यवहार के मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक सिद्धांतों को शामिल करने वाले दृष्टिकोण हैं
- हाल के वर्षों में मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सिद्धांतों पर आधारित मॉडल एवं रूपरेखा विकसित की गई है तथा इन्हें सफाई एवं स्वच्छता को बढ़ावा देने और व्यवहार में परिवर्तन करने के लिये लागू किया गया है।
- मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सिद्धांत पर आधारित दृष्टिकोण अक्सर विशिष्ट व्यवहार परिवर्तन तकनीकों (BCTs) से जुड़े होते हैं।
- ये व्यवहार परिवर्तन हस्तक्षेप के सबसे छोटे खंड होते हैं तथा उन तंत्रों को संदर्भित करते हैं जिनके माध्यम से हस्तक्षेप या कार्यक्रम की गतिविधियाँ व्यवहार निर्धारकों को व्यवहार में बदलाव लाने के लिये प्रेरित करती हैं।
- साक्ष्य बताते हैं कि एक या सीमित संख्या में तकनीकों का उपयोग करने वाले हस्तक्षेपों की तुलना में कई BCTs का उपयोग अधिक प्रभावी साबित होता है।
व्यवहार परिवर्तन रणनीति डिज़ाइन के चरण
मौजूदा व्यवहार का दस्तावेज़ीकरण
- स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन रणनीति बनाते समय लक्षित आबादी के भीतर स्वच्छता की स्थिति तथा व्यवहारों पर उपलब्ध जानकारी को इकठ्ठा करना आवश्यक है।
- इसमें प्रकाशित एवं प्राचीन साहित्य (Grey Literature) की समीक्षा करना तथा वैश्विक एवं स्थानीय विशेषज्ञों से परामर्श करना शामिल है।
व्यावहारिक कारकों को समझना
- संदर्भ विशिष्ट अनुसंधान (जिसमें मात्रात्मक, गुणात्मक एवं भागीदारी के तरीके शामिल हो सकते हैं) वास्तविक आबादी के व्यवहार को समझने के लिये उपयोगी है।
- ये परीक्षण विशिष्ट संदेश रणनीतियों या विशिष्ट निर्धारकों का सुझाव दे सकते हैं जिसमें आबादी के भीतर सबसे अधिक परिवर्तन का लाभ उठाने की क्षमता विद्यमान होती है।
स्वच्छता व्यवहार में बदलाव हेतु हस्तक्षेप
- स्वच्छता व्यवहार निर्धारकों को समझने के लिये एक रूपरेखा का उपयोग करके पिछले दो चरणों में एकत्र की गई जानकारी की तुलना या उसे व्यवस्थित किया जा सकता है।
स्वच्छता व्यवहार में बदलाव हेतु हस्तक्षेप का परीक्षण, अनुकूलन तथा वितरण-
- व्यापक जनसमूहों के समक्ष पेश करने से पहले व्यावहारिक परीक्षणों के परिणामों का ध्यान संभावित कार्यक्रम के विकास एवं परिवर्तन को सूचित करना होता है।
- उपयोग में लाए गए दृष्टिकोण के बावजूद, अग्रपंक्ति के उन श्रमिकों पर ध्यान दिया जाना चाहिये जो स्वच्छता व्यवहार गतिविधियों के प्रत्यक्ष वितरण से जुड़े हुए हैं।
सफलता के लिये निगरानी एवं शिक्षा
- स्वच्छता व्यवहार में बदलाव हेतु किये जाने वाले हस्तक्षेप की निगरानी एवं पर्यवेक्षण को सामान्य उद्देश्यों के लिये हितधारकों को व्यवस्थित करने तथा प्रगति के आकलन के लिये व्यवस्था बनाने में मदद करनी चाहिये।
- ये प्रयास व्यवस्थित शिक्षा (Learning) के माध्यम से भविष्य की रणनीतियों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए सुधार को सूचित कर सकते हैं।
मल-मूत्र से संबंधित रोगजनक/रोगाणु
परिचय
- स्वच्छता हस्तक्षेप एवं मानव मल-मूत्र के सुरक्षित निपटान में विभिन्न प्रकार के माइक्रोबियल खतरों के संचरण को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
- यह अध्याय इन दिशा-निर्देशों के अंतर्गत विचार किये गए रोगजनक खतरों के चार मुख्य समूहों (जीवाणु, विषाणु, प्रोटोजोआ और हेल्मिन्थ्स) की विशेषताओं को रेखांकित करता है तथा उनके संचरण मार्गों एवं स्वच्छता से संबंधित संक्रमण का परीक्षण करता है।
जीवाणु
- जीवाणु छोटे (आमतौर पर 0.2-2 माइक्रोमीटर) एकल कोशिका वाले जीव होते हैं, जिनमें से कई अनुकूल परिस्थितियों में एक मेज़बान के बाहर स्वच्छंद रूप से अपने को गुणात्मक रूप में बढ़ाने में सक्षम होते हैं।
- यहाँ अधिकांश जीवाणु अंत्र-संबंधी माने जाते हैं एवं गुहा-द्वार मार्ग से संचरित होते हैं तथा मुख्य रूप से जठरांत्र शोथ का कारण बनते हैं। ये कुछ गंभीर बीमारियाँ पैदा कर सकते हैं तथा दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाले हो सकते हैं।
- जीवाणु प्रतिसूक्ष्मजीवी प्रतिरोध (AMR) विकसित कर सकते हैं, जहाँ वे एंटीबायोटिक दवाओं, जैवनाशियों आदि के प्रतिरोधी बन जाते हैं।
विषाणु
- विषाणु एक साधारण संक्रामक एजेंट हैं, जिसमें प्रोटीन पेटिका में केवल आनुवंशिक सामग्री (DNA or RNA) शामिल होते हैं।
- वे यहाँ पाए जाने वाले सबसे छोटे (आमतौर पर 20-100 नैनोमीटर) जीव हैं एवं वे अंतःकोशिकीय जीव हैं (यानी उन्हें प्रजनन के लिये अतिसंवेदनशील मेज़बान कोशिका के भीतर होना चाहिये)।
- विषाणु बहुत अधिक संख्या में उत्पन्न हो सकते हैं और पानी में लंबी दूरी तक पहुँच सकते हैं।
प्रोटोजोआ
- परजीवी प्रोटोजोआ जटिल और अपेक्षाकृत बड़े (आमतौर पर 3-20 माइक्रोमीटर) एकल कोशिका वाले जीव होते हैं जो किसी उपयुक्त मेज़बान के बाहर प्रतिकृति (Replicate) नहीं बना सकते हैं।
हेल्मिन्थ्स
- हेल्मिन्थ्स (जिन्हें परजीवी कृमियों के रूप में भी जाना जाता है) में फीता कृमि (सेस्टोड्स), पर्णकृमि (ट्रैमाटोड्स) तथा गोलकृमि (नेमाटोड्स) शामिल होते हैं।
- वे बहु-कोशिकीय, जटिल जीव हैं। कुछ हेल्मिन्थ्स, जिन्हें मृदा-संचरित हेल्मिन्थ्स (STH) के रूप में संदर्भित किया जाता है, गुहा-द्वार मार्ग (पर्यावरण में परिपक्वता की अवधि के बाद) द्वारा संचारित किया जा सकता है। कुछ संक्रमण प्रजननक्षम कीड़ों के अंडे के अंतर्ग्रहण या संक्रामक लार्वा द्वारा त्वचा में प्रवेश के कारण होता है।
स्वच्छता से जुड़े माइक्रोबियल पहलू
- रोग संचरण में खराब स्वच्छता एवं मल-मूत्र की भूमिका विशिष्ट रोगज़नक़ पर निर्भर करती है। सबसे सरल वर्गीकरण में तीन प्राथमिक तरीके हैं जिनमें मानव मल-मूत्र संक्रमण को बढ़ा सकता है:
♦ पर्यावरण में अंत्र-संबंधी रोगजनकों के स्रोत के रूप में।
♦ मल-मूत्र पर निर्भर जीवनचक्र में योगदान देकर।
♦ वेक्टर (रोगवाहक) प्रजनन को आसान बनाकर।
वातावरण में अंत्र-संबंधी रोगजनकों के स्रोत के रूप में मलोत्सर्जन
- अंत्र-संबंधी रोगजनक आंत को वासस्थल बनाते हैं, संक्रमित व्यक्तियों के भीतर ये तीव्र गति से बढ़ते हैं, तथा बाद में मल के साथ उत्सर्जित होते हैं।
- प्रत्येक उत्सर्जित संक्रामक रोगजनक में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अंतर्ग्रहण किये जाने पर एक नए संक्रमण का कारण बनने की क्षमता होती है। संभावित जोखिम मार्ग में निम्नलिखित शामिल हैं:
♦ उंगलियाँ: रोगजनक, मल या मल- दूषित सतहों या लोगों के स्पर्श के माध्यम से उंगलियों में स्थानांतरित हो सकते हैं, तत्पश्चात् मुँह या नाक में या भोजन से स्पर्श के परिणामस्वरूप संक्रमण का कारण बनते हैं।
♦ भोजन: सिंचाई के लिये अपशिष्ट जल का उपयोग, उर्वरक के लिये मल कीचड़ या दूषित जल के उपयोग से पैदा होने वाली उपज दूषित हो सकती है। अतः कच्चे या कम पकाए गए भोज्य पदार्थ में ये संक्रामक रोगजनक उपस्थित हो सकते हैं।
♦ पीने का पानी: सतह एवं भूजल स्रोतों से लिया जाने वाला पेयजल मलीय रोगजनकों से दूषित हो सकता है।
♦ स्वच्छता एवं घरेलू जल: धुलाई एवं भोजन बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला दूषित जल भी संभावित रूप से जोखिमयुक्त हो सकता है।
♦ सतही जल: दूषित सतही जल में खेलने या स्नान करने से अनायास ही जलग्रहण के कारण यह संक्रमण उत्पन्न कर सकता है। इसी प्रकार, व्यावसायिक जोखिम (जैसे-मछली पकड़ना, वाहन धोना) आदि से सतही जल ग्रहण के कारण संक्रमण हो सकता है।
- सुरक्षित स्वच्छता प्रणाली का केंद्रबिंदु तथा इसका उद्देश्य सभी जोखिमों को कम करना है।
- स्वच्छता हस्तक्षेप द्वारा माइक्रोबियल खतरों के संपर्क में आने की संभावना को कम किया जा सकता है, लेकिन इस कमी की सीमा रोगजनक, व्यवस्था एवं लोगों पर निर्भर करेगी।
पर्यावरण में रोगजनकों की दृढ़ता या सातत्य
- पर्यावरण में रोगजनकों के जीवन-काल का आकलन स्वास्थ्य जोखिम मूल्यांकन का एक प्रमुख घटक है।
उपचार एवं नियंत्रण
- अपशिष्ट जल एवं मल-कीचड़ उपचार प्रक्रियाएँ मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये आवश्यक बचाव उपाय हैं।
- कुछ उपचार प्रक्रियाएँ मल में रोगज़नक़ विषाणुओं पर अपेक्षाकृत कम प्रभावी होती हैं (किसी भी चार रोगजनक समूहों में से 90% मे यह कमी देखी गई )।
- माइक्रोबियल में हो रही कमी को स्पष्टतः देखने के लिये वे प्रायः बैक्टीरिया संकेतकों पर भरोसा करते हैं और अन्य रोगजनक समूहों पर कम ध्यान देते हैं।
- रोगजनकों को निष्क्रिय करने वाले तंत्र को परिभाषित करने की आवश्यकता है तथा उन तंत्रों की सीमाओं की पहचान भी होनी चाहिये।
रोगजनकों को निष्क्रिय करने वाले तंत्र में सामान्यतः शामिल हैं
- समय:- कई प्रणालियों में समय के साथ प्राकृतिक निष्क्रियता एक महत्त्वपूर्ण उपचार तंत्र है। निष्क्रियता प्राप्ति आवश्यक समय, तापमान तथा विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करेगी।
- अवसादन तथा ठोस पदार्थों का विभाजन: अवसादन की प्रक्रियाएँ आमतौर पर जमे हुए ठोस पदार्थों को हटाने के लिये डिज़ाइन की जाती हैं। अपशिष्ट स्थिरीकरण के अंतर्गत तालाबों में, अवसादन की प्रक्रिया द्वारा बड़े रोगजनकों को हटाया जा सकता है।
- सौर विकिरण: कई रोगजनक, विशेष रूप से विषाणुओं को सौर विकिरण द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता है। पानी की गहराई, स्पष्टता और अनावरित समय द्वारा निराकरण की सीमा निर्धारित होगी।
- थर्मल उपचार: जब भंडारण को किसी थर्मल प्रक्रिया के साथ जोड़ दिया जाता है तो रोगजनक में कमी हेतु उपचार करते समय इसमें पर्याप्त न्यूनता आ सकती है। न्यूनता सुनिश्चित करने के लिये यह आवश्यक है कि कचरे का तापमान उपयुक्त स्तर पर होना चाहिये।
- निस्पंदन: प्राकृतिक वेटलैंड से फिल्टर बेड (filter beds) तक भौतिक निस्पंदन प्रक्रियाएँ रोगजनकों को प्रभावी ढंग से हटा सकती हैं। निष्कासन फिल्टर छिद्र के आकार एवं फिल्टर आव्यूह की जैविक गतिविधियों पर निर्भर करता है।
- रासायनिक रोगाणुनाशन: रासायनिक रोगाणुनाशन को बढ़ाने से रोगजनक तेज़ी से कम होंगे, हालाँकि परिणाम रोगजनक-विशिष्टता तथा मात्रा, जल आव्यूह एवं यौगिक सामग्री पर निर्भर करेगा। pH को बढ़ाने के लिये चूने का उपयोग करना आपातकालीन परिस्थिति में एक उपयोगी रणनीति है।
- उपसतह में क्षीणता: स्वच्छता से संबंधित कई प्रौद्योगिकियाँ उपसतह में रोगजनक क्षीणता पर निर्भर करती हैं। उपसतह में रोगजनकों की नियति मिट्टी में उनके अस्तित्व एवं मिट्टी के कणों द्वारा धारित विशेषताओं से निर्धारित होती है जिसे मुख्य रूप से स्थानीय जलवायु परिस्थितियों, मिट्टी की प्रकृति और विशेषताओं द्वारा निर्धारित किया जाता है।