भारतीय अर्थव्यवस्था
सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड योजना
प्रिलिम्स के लिये:सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड मेन्स के लिये:सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड योजना: विशेषताएँ, लाभ और हानि |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB) के लिये कैलेंडर की घोषणा की है, जो अक्तूबर 2021 से मार्च 2022 तक चार चरणों में जारी किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- शुरुआत: सरकार ने सोने की मांग को कम करने और घरेलू बचत के एक हिस्से (जिसका उपयोग स्वर्ण की खरीद के लिये किया जाता है) को वित्तीय बचत में बदलने के उद्देश्य से नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (Sovereign Gold Bond) योजना की शुरुआत की थी।
- निर्गमन: गोल्ड/स्वर्ण बॉण्ड सरकारी प्रतिभूति (GS) अधिनियम, 2006 के तहत भारत सरकार के स्टॉक के रूप में जारी किये जाते हैं।
- ये भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं।
- बॉण्ड की बिक्री वाणिज्यिक बैंकों, स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), नामित डाकघरों (जिन्हें अधिसूचित किया जा सकता है) और मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों जैसे कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड के ज़रिये या तो सीधे अथवा एजेंटों के माध्यम से की जाती है।
- पात्रता: इन बॉण्डों की बिक्री निवासी व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (HUFs), न्यासों/ट्रस्ट, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों तक ही सीमित है।
विशेषताएँ:
- विमोचन मूल्य: गोल्ड/स्वर्ण बॉण्ड की कीमत इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (India Bullion and Jewellers Association- IBJA) द्वारा 999 शुद्धता वाले सोने (24 कैरट) के लिये प्रकाशित मूल्य पर आधारित होती है।
- निवेश सीमा: गोल्ड बॉण्ड एक ग्राम यूनिट के गुणकों में खरीदे जा सकते हैं जिसमें विभिन्न निवेशकों के लिये एक निश्चित सीमा निर्धारित होती है।
- खुदरा (व्यक्तिगत) तथा हिंदू अविभाजित परिवारों (Hindu Undivided Families- HUFs) के लिये खरीद की अधिकतम 4 किलोग्राम है। ट्रस्ट एवं इसी तरह के निकायों के लिये प्रति वित्त वर्ष 20 किलोग्राम की अधिकतम सीमा लागू होती है।
- संयुक्त धारिता के मामले में 4 किलोग्राम की निवेश सीमा केवल प्रथम आवेदक पर लागू होती है।
- न्यूनतम स्वीकार्य निवेश सीमा 1 ग्राम सोना है।
- अवधि: इन बॉण्डों की परिपक्वता अवधि 8 वर्ष होती है तथा 5 वर्ष के बाद इस निवेश से बाहर निकलने का विकल्प उपलब्ध होता है।
- ब्याज दर: निवेशकों को प्रतिवर्ष 2.5 प्रतिशत की निश्चित ब्याज दर लागू होती है, जो छह माह पर देय होती है।
- आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधान के अनुसार, गोल्ड बॉण्ड पर प्राप्त होने वाले ब्याज पर कर/टैक्स अदा करना होगा।
लाभ:
- ऋण के लिये बॉण्ड का उपयोग संपार्श्विक (जमानत या गारंटी) के रूप में किया जा सकता है।
- किसी भी व्यक्ति को सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB) के विमोचन पर होने वाले पूंजीगत लाभ को कर मुक्त कर दिया गया है।
- विमोचन (Redemption) का तात्पर्य एक जारीकर्त्ता द्वारा परिपक्वता पर या उससे पहले बॉण्ड की पुनर्खरीद के कार्य से है।
- पूंजीगत लाभ (Capital Gain) स्टॉक, बॉण्ड या अचल संपत्ति जैसी संपत्ति की बिक्री पर अर्जित लाभ है। यह तब प्राप्त होता है जब किसी संपत्ति का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से अधिक हो जाता है।
SGB में निवेश के नुकसान:
- यह भौतिक स्वर्ण (जिसे तुरंत बेचा जा सकता है) के विपरीत एक दीर्घकालिक निवेश है।
- सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होते हैं लेकिन इनका ट्रेडिंग वॉल्यूम ज़्यादा नहीं होता, इसलिये परिपक्वता से पहले बाहर निकलना मुश्किल होगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
कृषि
वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट (GAP रिपोर्ट)
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट, विश्व खाद्य पुरस्कार, कुल कारक उत्पादकता मेन्स के लिये:उत्पादकता वृद्धि का महत्त्व और इसे प्रभावित करने वाले कारक तथा उनसे निपटने हेतु उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बीच वैश्विक कृषि उत्पादकता में उतनी तेज़ी से वृद्धि नहीं हो रही है जितनी तेज़ी से भोजन की मांग बढ़ रही है।
- यह रिपोर्ट विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन के वार्षिक सम्मेलन के संयोजन में जारी की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- कुल कारक उत्पादकता (Total Factor Productivity- TFP) वृद्धि:
- TFP 1.36% (2020-2019) की वार्षिक दर से बढ़ रही है।
- यह वैश्विक कृषि उत्पादकता सूचकांक से नीचे है जिसने वर्ष 2050 में खाद्य और जैव ऊर्जा के लिये उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को स्थायी रूप से पूरा करने हेतु 1.73% की वृद्धि का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित किया है।
- TFP 1.36% (2020-2019) की वार्षिक दर से बढ़ रही है।
- कुल कारक उत्पादकता (Total Factor Productivity- TFP) वृद्धि:
TFP और यील्ड (Yield) में अंतर:
- यील्ड:
- यील्ड या उपज एकल इनपुट के प्रति यूनिट उत्पादन को मापता है, उदाहरण के लिये एक हेक्टेयर भूमि पर काटी गई फसलों की मात्रा। यील्ड में उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से वृद्धि हो सकती है, इसके अलावा अधिक इनपुट लागू करके भी यील्ड में वृद्धि हो सकती है जिसे इनपुट गहनता कहा जाता है। अतः यील्ड में वृद्धि स्थिरता में सुधार का प्रतिनिधित्व कर सकती है या नहीं भी कर सकती है।
- TFP:
- TFP कई कृषि इनपुट और आउटपुट के बीच परस्पर क्रिया को प्रभावित करती है।
- TFP भूमि, श्रम, उर्वरक, चारा, मशीनरी और पशुधन जैसे कृषि आदानों के फसलों, पशुधन और जलीय कृषि उत्पादों में परिवर्तन को ट्रैक करती है कि कितनी कुशलता से इनमें परिवर्तन हो रहा है। TFP कृषि प्रणालियों की स्थिरता के मूल्यांकन और निगरानी के लिये एक शक्तिशाली मीट्रिक है।
- कम TFP वृद्धि के लिये उत्तरदायी कारक:
- TFP वृद्धि जलवायु परिवर्तन, मौसमी घटनाओं, राजकोषीय नीति में बदलाव, बाज़ार की स्थितियों, आधारभूत ढाँचे में निवेश और कृषि अनुसंधान तथा विकास से प्रभावित होती है।
- विभिन्न क्षेत्रों में स्थिति:
- शुष्क क्षेत्र (अफ्रीका और लैटिन अमेरिका): जलवायु परिवर्तन ने उत्पादकता वृद्धि को 34% तक कम कर दिया है।
- उच्च आय वाले देश (उत्तरी अमेरिका और यूरोप): इनमें मामूली TFP वृद्धि हुई है।
- मध्यम आय वाले देश (भारत, चीन, ब्राज़ील और तत्कालीन सोवियत गणराज्य): इन देशों में मज़बूत TFP विकास दर है।
- निम्न-आय वाले देश (उप-सहारा अफ्रीका): TFP प्रतिवर्ष औसतन 0.31% घट रही है।
- उत्पादकता वृद्धि का प्रभाव:
- वन क्षेत्रों का विनाश: विश्व की 36% भूमि का उपयोग कृषि हेतु किया जाता है। वृक्षारोपण या चरागाह के लिये वन और जैव विविधता वाले क्षेत्रों को नष्ट कर दिया जाएगा।
- आहार से संबंधित रोग: प्रत्येक वर्ष आहार से संबंधित बीमारियों के चलते लगभग 4 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है तथा अर्थव्यवस्था को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुक्सान होता है।
- मृदा निम्नीकरण: वर्ष 2050 तक पृथ्वी की 90 प्रतिशत मिट्टी अपरदन के कारण खराब हो सकती है।
- मीथेन उत्सर्जन: मानव प्रेरित गतिविधियों के कारण होने वाले कुल मीथेन उत्सर्जन में से 37% मीथेन उत्सर्जन मवेशियों और अन्य जुगाली करने वालों पशुओं से होता है।
- सिंचाई के जल की हानि: अकुशल सिंचाई विधियों के कारण 40% सिंचाई जल नष्ट हो जाता है।
- जलस्रोत समाप्त हो जाएंगे, जिससे प्रमुख कृषि भूमि अनुपयोगी हो जाएगी।
- सुझाव:
- कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
- विज्ञान और सूचना आधारित प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
- परिवहन, सूचना और वित्त के लिये बुनियादी ढाँचे में सुधार किया जाए।
- सतत् कृषि, आर्थिक विकास और बेहतर पोषण के लिये साझेदारी विकसित करना।
- स्थानीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक व्यापार का विस्तार और सुधार।
- फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान और खाद्यान्नों की बर्बादी को कम करना।
भारतीय परिदृश्य
- परिचय:
- मज़बूत TFP वृद्धि:
- भारत ने इस सदी में मजबूत TFP और उत्पादन वृद्धि देखी है।
- सबसे नवीनतम डेटा 2.81% की औसत वार्षिक TFP वृद्धि दर और 3.17% की उत्पादन वृद्धि (2010-2019) को दर्शाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- सदी के अंत तक भारत में ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान पाँच डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
- तापमान में तेज़ी से हो रही यह वृद्धि वर्षा के पैटर्न में बदलाव के साथ वर्ष 2035 तक भारत की प्रमुख खाद्य फसलों की पैदावार में 10% की कटौती कर सकती है।
- अन्य चुनौतियाँ:
- पर्यावरणीय स्थिरता के लिये चुनौतियों के अलावा भारत में छोटे पैमाने के किसानों को आर्थिक एवं सामाजिक स्थिरता के लिये विविध बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- भारत में 147 मिलियन जोत में से 100 मिलियन जोत आकार में दो हेक्टेयर से भी कम हैं। दो हेक्टेयर से कम जोत वाले लगभग 90% किसान सरकारी खाद्य राशन कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
- मज़बूत TFP वृद्धि:
- उठाए गए कदम:
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: मृदा की गुणवत्ता एवं सामर्थ्य के आधार पर फसल में आवश्यक पोषक तत्त्वों की उचित मात्रा के बारे में किसानों में जागरूकता पैदा करना।
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA): इसकी परिकल्पना जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत उल्लिखित आठ मिशनों में से एक के रूप में की गई है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों के माध्यम से सतत्/संवहनीय कृषि को बढ़ावा देना है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): सिंचाई आपूर्ति शृंखला जैसे- जल स्रोत, वितरण नेटवर्क और कृषि स्तर पर अनुप्रयोग में शुरू से अंत तक समाधान प्रदान करने के लिये 'हर खेत को पानी' आदर्श वाक्य के साथ इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015-16 के दौरान की गई थी।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस 2021
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस 2021, वाटर एंड क्लाइमेट गठबंधन, जल घोषणा-पत्र, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट, ग्लोबल हाइड्रोमेट्री सपोर्ट फैसिलिटी, सतत् विकास लक्ष्य। मेन्स के लिये:जल घोषणा-पत्र: आवश्यकता एवं महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस (World Meteorological Congress) 2021 ने वाटर एंड क्लाइमेट गठबंधन सहित एक जल घोषणा-पत्र (Water Declaration) का समर्थन किया है।
- इसने जल विज्ञान के लिये एक नई दृष्टि एवं रणनीति और संबंधित कार्य योजना को भी मंज़ूरी दी है।
विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस
- विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) का सर्वोच्च निकाय है। WMO मौसम विज्ञान, परिचालनात्मक जल विज्ञान और संबंधित भूभौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। भारत इसका सदस्य है। स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट नामक वार्षिक रिपोर्ट इसी के द्वारा तैयार की जाती है।
प्रमुख बिंदु
- चिंताएँ:
- विश्व स्तर पर केवल 40% देशों में प्रारंभिक बाढ़ और सूखा चेतावनी प्रणाली चालू है।
- WMO के लगभग 60% सदस्य देशों में हाइड्रोलॉजिकल मॉनिटरिंग क्षमताओं का अभाव है। विश्व स्तर पर तीन अरब से अधिक लोगों के पास अपने जल से संबंधित डेटा के लिये कोई गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली नहीं है।
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा जारी अनुमानों के अनुसार, अपने जल संसाधनों (जिसमें नदियाँ, झीलें और भूजल आदि शामिल है) की स्थिति के बारे में जानकारी की कमी के कारण दुनिया की लगभग आधी आबादी जोखिम में है।
- लगभग 107 देशों में जल संसाधन स्थायी रूप से प्रबंधित नहीं हैं।
- जल घोषणा-पत्र (Water Declaration):
- वर्ष 2030 तक बाढ़ और सूखे से संबंधित शीघ्र कार्रवाई करने के लिये प्रारंभिक चेतावनियाँ पृथ्वी पर हर जगह के लोगों को उपलब्ध होंगी।
- सतत् विकास एजेंडे के तहत विकसित जल और जलवायु कार्रवाई की नीतियों को एकीकृत किया जाएगा ताकि लोगों को इसका अधिकतम लाभ मिल सके।
- सदस्य इन लक्ष्यों को क्षमता विकास, ज्ञान के आदान-प्रदान और सूचना साझाकरण आदि के लिये साझेदारी के माध्यम से आगे बढ़ाएंगे।
- वाटर एंड क्लाइमेट गठबंधन (Water and Climate Coalition):
- गठबंधन को जल विज्ञान (हाइड्रोलॉजिकल), निम्न तापमंडल (क्रायोस्फीयर), मौसम विज्ञान एवं जलवायविक सूचनाओं के साझाकरण और पहुँच को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया है।
- इसका उद्देश्य भविष्य के जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ जनसांख्यिकीय एवं सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु लचीले जल अनुकूलन को बढ़ावा देना है।
- साथ ही जल से संबंधित संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से SDG 6 (सभी के लिये जल और स्वच्छता) की प्रगति में तेज़ी लाना भी है।
- जल विज्ञान कार्य योजना:
- प्रभाव आधारित पूर्व चेतावनी प्रणाली:
- बाढ़ प्रबंधन पर संबद्ध कार्यक्रम के माध्यम से सदस्यों द्वारा कार्यान्वित व्यापक एकीकृत बाढ़ प्रबंधन रणनीति के संदर्भ में बाढ़ पूर्वानुमान के लिये प्रभाव आधारित एंड-टू-एंड पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems- EWS) होनी चाहिये।
- कॉन्ग्रेस ने वैश्विक कवरेज के साथ फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम के भविष्य के विकास और कार्यान्वयन के लिये एक नई स्थिरता रणनीति को मंज़ूरी दी।
- जल संसाधन और गुणवत्ता मूल्यांकन:
- पानी के उपयोग एवं आवंटन और खाद्य उत्पादन के समर्थन के लिये एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) की अवधारणा को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिये और उसका पालन किया जाना चाहिये।
- सूखे के प्रभाव को कम करना:
- सदस्यों को सूखे की निगरानी, पूर्व चेतावनी, भेद्यता और प्रभाव आकलन, सूखा शमन, तैयारी एवं प्रतिक्रिया उपायों सहित एकीकृत सूखा प्रबंधन प्रणालियों को लागू करके सभी स्तरों पर सूखे के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना चाहिये।
- खाद्य सुरक्षा:
- क्षेत्रीय से लेकर स्थानीय तक सभी स्तरों पर सूचित अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के निर्णयों द्वारा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जाना चाहिये।
- उच्च गुणवत्ता डेटा:
- ग्लोबल हाइड्रोमेट्री सपोर्ट फैसिलिटी (Global Hydrometry Support Facility- HydroHub) द्वारा उन्नत वैज्ञानिक विश्लेषण के लिये उच्च गुणवत्ता वाले हाइड्रोलॉजिकल और हाइड्रोमेटोरोलॉजिकल डेटा की खोज, उपलब्धता एवं उपयोग में वृद्धि की जानी चाहिये।
- परिचालन जल विज्ञान का अनुसंधान और अनुप्रयोग:
- अनुसंधान और परिचालन जल विज्ञान अनुप्रयोगों के बीच कम अंतर होना चाहिये, परिचालन जल विज्ञान पृथ्वी प्रणाली विज्ञान की बेहतर समझ का उपयोग करता है।
- प्रभाव आधारित पूर्व चेतावनी प्रणाली:
संबंधित भारतीय पहल
- जल संरक्षण के लिये मनरेगा।
- जल क्रांति अभियान।
- जल शक्ति अभियान।
- राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम।
- नीति आयोग संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक।
- अटल भू-जल योजना।
- जल शक्ति मंत्रालय और जल जीवन मिशन।
- कमांड एरिया डेवलपमेंट।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
G7 डिजिटल व्यापार सिद्धांत
प्रिलिम्स के लिये:जी-7 मेन्स के लिये:डेटा स्थानीयकरण और डिजिटल व्यापार से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जी-7 (G7) धनी देशों ने सीमा पार डेटा उपयोग और डिजिटल व्यापार को नियंत्रित करने के लिये सिद्धांतों के एक संयुक्त सेट पर सहमति व्यक्त की।
- यह सौदा व्यापार बाधाओं को कम करने की दिशा में पहला कदम है और इससे डिजिटल व्यापार संबंधी एक सामान्य नियम पुस्तिका बन सकती है।
- इससे पहले भारत 47वें G7 शिखर सम्मेलन में अतिथि देश के रूप में शामिल हुआ था।
प्रमुख बिंदु
- डिजिटल व्यापार: इसे मोटे तौर पर वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार के रूप में परिभाषित किया जाता है जो सक्षम या डिजिटल रूप से वितरित किया जाता है, जिसमें फिल्मों तथा टीवी कार्यक्रमों के वितरण से लेकर पेशेवर सेवाओं तक की गतिविधियाँ शामिल हैं।
- G7 डिजिटल व्यापार सिद्धांत:
- ओपन डिजिटल मार्केट्स: डिजिटल और दूरसंचार बाज़ार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं निवेश के लिये प्रतिस्पर्द्धी, पारदर्शी, निष्पक्ष और सुलभ होना चाहिये।
- सीमा पार डेटा प्रवाह: डिजिटल अर्थव्यवस्था को अवसरों का उपयोग करने और वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापार का समर्थन करने के लिये डेटा को व्यक्तियों तथा व्यवसायों के विश्वास सहित सीमाओं के पार स्वतंत्र रूप से प्रवाहित करने में सक्षम होना चाहिये।
- कामगारों, उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिये सुरक्षा उपाय: उन श्रमिकों के लिये श्रम सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये जो सीधे तौर पर डिजिटल व्यापार में लगे हुए हैं या उनका समर्थन करते हैं।
- डिजिटल ट्रेडिंग सिस्टम: लालफीताशाही को कम करने और अधिक व्यवसायों के साथ व्यापार करने में सक्षम बनाने के लिये सरकारों तथा उद्योग को व्यापार से संबंधित दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण की दिशा में बढ़ना चाहिये।
- निष्पक्ष और समावेशी वैश्विक शासन: विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा डिजिटल व्यापार के लिये सामान्य नियमों पर सहमति और समर्थन प्रदान किया जाना चाहिये।
- इन नियमों से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में श्रमिकों, उपभोक्ताओं और व्यवसायों को लाभ होना चाहिये, जबकि वैध सार्वजनिक नीति उद्देश्यों हेतु प्रत्येक देश के विनियमन के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिये।
- महत्त्व:
- मध्यम मार्ग: यह सौदा यूरोपीय देशों में उपयोग की जाने वाली अत्यधिक विनियमित डेटा सुरक्षा व्यवस्था और संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिक खुले दृष्टिकोण के बीच एक मध्यम मार्ग निर्धारित करता है।
- गोपनीयता, डेटा संरक्षण, बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा और सुरक्षा को संबोधित करते हुए इस सौदे में सीमा पार डेटा प्रवाह में अनुचित बाधाओं को दूर करने की परिकल्पना की गई है।
- डिजिटल व्यापार को उदार बनाना: अभिजात वर्ग के वैश्विक समूह द्वारा किये गए समझौते को महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह सैकड़ों अरबों डॉलर के डिजिटल व्यापार को उदार बना सकता है।
- डिजिटल निर्यात के योगदान को और विस्तारित करने के लिये डेटा के सीमा पार प्रवाह को सक्षम बनाने, संसाधित तथा संग्रहीत करने के लिये ढाँचे को स्पष्ट करना आवश्यक होगा।
- मध्यम मार्ग: यह सौदा यूरोपीय देशों में उपयोग की जाने वाली अत्यधिक विनियमित डेटा सुरक्षा व्यवस्था और संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिक खुले दृष्टिकोण के बीच एक मध्यम मार्ग निर्धारित करता है।
- संबंधित मुद्दे:
- G7 देशों ने उन स्थितियों के संदर्भ में चिंता जताई है जहाँ डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताओं का उपयोग संरक्षणवादी और भेदभावपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है।
- यह कथन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत डेटा स्थानीयकरण के उपायों पर विचार कर रहा है।
- हाल ही में भारत ने डिजिटल और सतत् व्यापार सुविधा पर एशिया एवं प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक आयोग (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific – UNESCAP) वैश्विक सर्वेक्षण में 90.32 प्रतिशत स्कोर किया है।
- वर्ष 2018 में भारतीय अर्थव्यवस्था को डिजिटल व्यापार-सक्षम लाभों का आर्थिक मूल्य 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक होने का अनुमान है।
डेटा स्थानीयकरण
- परिचय: डेटा स्थानीयकरण का तात्पर्य किसी भी डिवाइस (जो भौतिक रूप से उसी देश की सीमाओं के भीतर मौजूद हो जहाँ डेटा की उत्पत्ति हुई है) पर डेटा को संग्रहीत करने से है। अभी तक इस डेटा का अधिकांश भाग भारत के बाहर क्लाउड में संग्रहीत है।
- स्थानीयकरण डेटा एकत्र करने वाली कंपनियों के लिये यह अनिवार्य करता है कि उपभोक्ताओं से संबंधित महत्त्वपूर्ण डेटा को उन्हें देश की सीमाओं के भीतर ही संग्रहीत और संसाधित करना होगा।
- डेटा स्थानीयकरण के लाभ:
- यह नागरिकों के डेटा को सुरक्षित करने और विदेशी निगरानी से डेटा को गोपनीयता बनाए रखने के साथ ही डेटा संप्रभुता प्रदान करता है। उदाहरण- फेसबुक ने मतदान को प्रभावित करने के लिये कैम्ब्रिज एनालिटिका के साथ उपयोगकर्त्ताओं के डेटा को साझा किया।
- डेटा तक निरंकुश पर्यवेक्षी पहुँच भारतीय कानून प्रवर्तन को बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने में मदद करेगी।
- डेटा स्थानीयकरण से नुकसान:
- कई स्थानीय डेटा केंद्रों को बनाए रखने के लिये बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण निवेश करना पड़ सकता है और वैश्विक कंपनियों के लिये इसकी लागत उच्च हो सकती है।
- स्प्लिंटरनेट या 'फ्रैक्चर्ड इंटरनेट' जहाँ संरक्षणवादी नीति का दूरगामी प्रभाव अन्य देशों को वाद/मुकदमेबाज़ी का अनुसरण करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
- भारतीय परिदृश्य:
- हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने तीन विदेशी कार्ड भुगतान नेटवर्क फर्मों को भारत में डेटा संग्रहण के मुद्दे पर नए ग्राहक बनाने से रोक दिया है।
- भारत डेटा सुरक्षा पर एक व्यापक कानून, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 पर विचार कर रहा है।
- विधेयक के अनुसार, केंद्र सरकार व्यक्तिगत डेटा की श्रेणियों को महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा के रूप में अधिसूचित करेगी जिसे केवल भारत में स्थित सर्वर या डेटा सेंटर में संसाधित किया जाएगा।
- न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति ने डेटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना और सीमा पार डेटा प्रवाह पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है।
- भारत ई-कॉमर्स पर किसी भी वैश्विक समझौते में शामिल होने का विरोध कर रहा है, प्रधानमंत्री ने हाल ही में आयोजित जी-20 सम्मेलन में सीमा पार डेटा प्रवाह को बढ़ावा देने वाले ओसाका ट्रैक (Osaka Track) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
आगे की राह
- वैश्विक साइबर सुरक्षा ढाँचा: गोपनीयता और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिये अच्छे नियामक ढाँचे का होना आवश्यक है।
- इस प्रकार डिजिटल व्यापार के मुक्त प्रवाह हेतु बातचीत के दौरान साइबर सुरक्षा के लिये एक वैश्विक ढाँचा स्थापित किया जाना चाहिये।
- नौकरशाही की बाधाओं को दूर करना: डिजिटल व्यापार के सकारात्मक प्रभाव को अधिकतम करने के लिये डिजिटल उद्यमों पर अनुचित लालफीताशाही, सीमा पार डेटा प्रवाह पर प्रतिबंध और कॉपीराइट में असंतुलन तथा मध्यवर्ती देयता नियमों जैसे मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
- भारत की भूमिका: भारत के लिये न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं में सुविधाजनक डिजिटल व्यापार नियमों को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाने का अवसर है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय इतिहास
आज़ाद हिंद सरकार
प्रिलिम्स के लिये:आज़ाद हिंद सरकार, सुभाष चंद्र बोस मेन्स के लिये:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 21 अक्तूबर को आज़ाद हिंद सरकार के गठन की वर्षगाँठ मनाई जाती है।
- यह दिन आज़ाद हिंद सरकार नामक भारत की पहली स्वतंत्र अनंतिम सरकार की घोषणा का प्रतीक है।
प्रमुख बिंदु:
- 21 अक्तूबर, 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आज़ाद हिंद (जिसे अरजी हुकुमत-ए-आज़ाद हिंद के रूप में भी जाना जाता है) की अनंतिम सरकार के गठन की घोषणा की, जिसमें वह स्वयं राज्य के प्रमुख, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री थे।
- अनंतिम सरकार ने न केवल बोस को जापानियों के साथ समान स्तर पर बातचीत करने में सक्षम बनाया, बल्कि इंडियन नेशनल आर्मी (INA) में शामिल होने और इसके समर्थन के लिये पूर्वी एशिया में भारतीयों को लामबंद करने में भी मदद की।
- सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर से ही स्वतंत्रता संग्राम को नेतृत्त्व प्रदान किया। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के परिणाम को भारत की स्वतंत्रता की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण अवसर माना।
- वर्ष 1940 में बोस को नज़रबंद कर दिया गया था लेकिन 28 मार्च, 1941 को वे बर्लिन भागने में सफल रहे। वहाँ के भारतीय समुदाय ने उन्हें नेताजी के रूप में सराहा। उनका स्वागत 'जय हिंद' से किया गया।
- वर्ष 1942 में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का गठन किया गया और भारत की आज़ादी के लिये इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के गठन का निर्णय लिया गया।
- रास बिहारी बोस के निमंत्रण पर सुभाष चंद्र बोस 13 जून, 1943 को पूर्वी एशिया आए। उन्हें इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का अध्यक्ष और INA का नेता बनाया गया, जिसे लोकप्रिय रूप से 'आज़ाद हिंद फौज' कहा जाता है।
- INA का गठन पहली बार मोहन सिंह और जापानी मेजर इवाइची फुजिवारा द्वारा किया गया था और इसमें मलय (वर्तमान मलेशिया) अभियान तथा सिंगापुर में जापान द्वारा बंदी बनाए गए ब्रिटिश-भारतीय सेना के सैनिक शामिल थे।
- नवंबर 1945 में INA के लोगों पर मुकदमा चलाने के ब्रिटिश कदम के कारण पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किये गए।
- उन्होंने प्रसिद्ध नारा 'दिल्ली चलो' दिया। उन्होंने भारतीयों को स्वतंत्रता का वादा करते हुए कहा, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' ।
सुभाष चंद्र बोस
- जन्म:
- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस (Prabhavati Dutt Bose) और पिता का नाम जानकीनाथ बोस (Janakinath Bose) था।
- उनकी जयंती 23 जनवरी को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाई जाती है।
- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस (Prabhavati Dutt Bose) और पिता का नाम जानकीनाथ बोस (Janakinath Bose) था।
- शिक्षा और प्रारंभिक जीवन:
- वर्ष 1919 में उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा पास की थी। हालाँकि बाद में बोस ने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया।
- सुभाष चंद्र बोस, विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे
- जबकि चितरंजन दास (Chittaranjan Das) उनके राजनीतिक गुरु थे।
- वर्ष 1921 में बोस ने चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र 'फॉरवर्ड' के संपादन का कार्यभार संभाला और बाद में अपना खुद का समाचार पत्र ‘स्वराज’ शुरू किया।
- कॉन्ग्रेस के साथ संबंध:
- उन्होंने बिना शर्त स्वराज (Unqualified Swaraj) अर्थात् स्वतंत्रता का समर्थन किया और मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट (Motilal Nehru Report) का विरोध किया जिसमें भारत के लिये डोमिनियन के दर्जे की बात कही गई थी।
- उन्होंने वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया और वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन तथा गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर का विरोध किया।
- वर्ष 1930 के दशक में वह जवाहरलाल नेहरू और एम.एन. रॉय के साथ कॉन्ग्रेस की वाम राजनीति में संलग्न रहे।
- वर्ष 1938 में बोस ने हरिपुरा में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव में जीत हासिल की।
- वर्ष 1939 में पुनः त्रिपुरी में उन्होंने गांधी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया के खिलाफ अध्यक्ष का चुनाव जीता। गांधी के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण बोस ने इस्तीफा दे दिया और कॉन्ग्रेस छोड़ दी। उनकी जगह राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया था।
- उन्होंने एक नई पार्टी 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की। इसका उद्देश्य अपने गृह राज्य बंगाल में राजनीतिक वामपंथ और प्रमुख समर्थन आधार को मज़बूत करना था।
- मृत्यु:
- कहा जाता है कि वर्ष 1945 में ताइवान में विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। हालाँकि उनकी मृत्यु के संबंध में अभी भी अस्पष्टता है।
स्रोत: पी.आई.बी
शासन व्यवस्था
सक्षम केंद्र: डीएवाई-एनआरएलएम
प्रिलिम्स के लिये:सक्षम केंद्र, दीनदयाल अंत्योदय योजना, मनरेगा, सक्षम एप्लीकेशन मेन्स के लिये:स्वयं सहायता समूहों की भूमिका, वित्तीय समावेशन में सक्षम केंद्रों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आज़ादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में 13 राज्यों के 77 ज़िलों में कुल 152 वित्तीय साक्षरता और सेवा वितरण केंद्र (सक्षम केंद्र) शुरू किये गए।
- ये केंद्र ग्रामीण विकास मंत्रालय के दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के तहत शुरू किये गए थे।
प्रमुख बिंदु
- सक्षम केंद्र:
- वित्तीय साक्षरता और सेवा वितरण केंद्र (CLF & SDG) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों (SHG), परिवारों की बुनियादी वित्तीय ज़रूरतों के लिये वन स्टॉप सॉल्यूशन/सिंगल विंडो सिस्टम के रूप में कार्य करेगा।
- उद्देश्य:
- वित्तीय साक्षरता प्रदान करना और एसएचजी सदस्यों तथा ग्रामीण गरीबों को वित्तीय सेवाओं (बचत, ऋण, बीमा, पेंशन आदि) के वितरण की सुविधा प्रदान करना।
- प्रबंधन:
- इन केंद्रों का प्रबंधन SHG नेटवर्क द्वारा प्रशिक्षित सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों (CRP) की मदद से किया जाएगा।
- सक्षम एप्लीकेशन:
- "सक्षम" नामक एक मोबाइल और वेब-आधारित एप्लीकेशन भी विकसित किया गया है।
- इसका उपयोग केंद्र के सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों द्वारा प्रत्येक एसएचजी और गाँव के लिये विभिन्न वित्तीय सेवाओं तक पहुँच बनाने, प्रमुख अंतराल की पहचान करने और तदानुसार प्रशिक्षण प्रदान करने तथा आवश्यक वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिये किया जाएगा।
- "सक्षम" नामक एक मोबाइल और वेब-आधारित एप्लीकेशन भी विकसित किया गया है।
- दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन:
- परिचय:
- यह जून 2011 में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है।
- लक्ष्य:
- इस योजना का उद्देश्य देश में ग्रामीण गरीब परिवारों हेतु कौशल विकास और वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच के माध्यम से आजीविका के अवसरों में वृद्धि कर ग्रामीण गरीबी को कम करना है।
- कार्यप्रणाली:
- इसमें स्व-सहायतित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सामुदायिक पेशेवरों के माध्यम से सामुदायिक संस्थाओं के साथ कार्य किया जाना शामिल है जो DAY-NRLM का एक अनूठा प्रस्ताव है।
- स्वयं-सहायता संस्थानों और बैंकों के वित्तीय संसाधनों तक पहुँच के माध्यम से अन्य सुविधाओं के साथ-साथ प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार से एक महिला सदस्य को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) में शामिल कर उनका प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, उनकी सूक्ष्म-आजीविका योजनाओं को सुविधाजनक बनाना व उन्हें सार्वभौमिक सामाजिक भागीदारी के माध्यम से आजीविका योजनाओं को लागू करने में सक्षम बनाना है।
- कार्यान्वयन:
- इसे राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और ब्लॉक स्तर पर समर्पित कार्यान्वयन सहायता इकाइयों के साथ विशेष प्रयोजन वाहनों (स्वायत्त राज्य सोसायटी) द्वारा एक मिशन मोड में लागू किया गया है, जो प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार को निरंतर और दीर्घकालिक समर्थन प्रदान करने के लिये पेशेवर मानव संसाधनों का उपयोग करता है।
- परिचय:
- परिणाम:
- मिशन ने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण सेवाओं की अंतिम बिंदु तक पहुँच में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।
- जमा, क्रेडिट, प्रेषण, वृद्धावस्था पेंशन एवं छात्रवृत्ति का वितरण, मनरेगा मज़दूरी का भुगतान और बीमा तथा पेंशन योजनाओं के तहत नामांकन सहित अंतिम बिंदु तक वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिये लगभग 1,518 SHG सदस्यों को बैंकिंग संवाददाता एजेंटों (BCAs) के रूप में तैनात किया गया है।
- ऐसी कृषि-पारिस्थितिकी प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये जो कि महिला किसानों की आय में वृद्धि करते हैं और उनकी इनपुट लागत तथा जोखिम को कम करते हैं, DAY-NRLM, महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (MKSP) को लागू कर रहा है।
- अपनी गैर-कृषि आजीविका रणनीति के हिस्से के रूप में DAY-NRLM स्टार्टअप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (SVEP) और आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना (AGEY) को लागू कर रहा है।
- SVEP का उद्देश्य स्थानीय उद्यमों को स्थापित करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमियों का समर्थन करना है।
- AGEY को अगस्त 2017 में शुरू किया गया था, जो दूरदराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने के लिये सुरक्षित, सस्ती और सामुदायिक निगरानी वाली ग्रामीण परिवहन सेवाएँ प्रदान करता है।
- DAY-NRLM की एक और उप-योजना है- दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDUGKY)। DDUGKY का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं में प्लेसमेंट से जुड़े कौशल प्रदान करना और उन्हें अर्थव्यवस्था के अपेक्षाकृत उच्च वेतन वाले रोज़गार क्षेत्रों में बनाए रखना है।
- यह मिशन, 31 बैंकों और राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में ग्रामीण युवाओं को लाभकारी स्वरोज़गार अपनाने के लिये कौशल प्रदान करने हेतु ग्रामीण स्वरोज़गार संस्थानों (RSETI) का समर्थन कर रहा है।
- मिशन ने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण सेवाओं की अंतिम बिंदु तक पहुँच में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।