डेली न्यूज़ (23 Apr, 2022)



आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर, डेंगू, जीका, येलो फीवर

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, रोग।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने आनुवंशिक रूप से इंजीनियर मच्छरों (Engineered Mosquitoes) का खुली हवा में एक अध्ययन किया जिसके आशाजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं।

  • इस अध्ययन का उद्देश्य जंगली एडीज़ इजिप्टी मच्छरों (Aedes Aegypti Mosquitoes) की आबादी को कम करना है, जो कि चिकनगुनिया, डेंगू, ज़ीका और येलो फीवर/पीत-ज्वर जैसे वायरस का वाहक हैं।
  • ब्राज़ील, पनामा, कैमन आइलैंड और मलेशिया में मच्छरों का पहले ही परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया था।

Genetically-Modified

आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर क्या हैं?

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) मच्छरों का उत्पादन दो प्रकार के जीन के लिये प्रयोगशाला में बड़े पैमाने पर जाता है:
    • स्व-सीमित जीन (Self-Limiting Gene) जो मादा मच्छरों को वयस्कता तक जीवित रहने से रोकता है।
    • फ्लोरोसेंट मार्कर जीन (Fluorescent Marker Gene) जो एक विशेष प्रकार के लाल प्रकाश की उपस्थिति में चमकता है। यह शोधकर्त्ताओं को जंगल में जीएम मच्छरों की पहचान करने में  सक्षम बनाता है।
  • प्रयोगशाला में उत्पादित जीएम मच्छर जब अंडे देते हैं तो इन अंडों में स्व-सीमित और फ्लोरोसेंट मार्कर जीन होते हैं।
  • जीएम मच्छर के स्व-सीमित जीन वाले अंडों को एक क्षेत्र में छोड़ दिया जाता है और जब वे परिपक्व हो जाते हैं तथा वयस्क अवस्था में विकसित हो जाते हैं, तो वे जंगली मादाओं के साथ मिलन के लिये सक्षम होते हैं एवं ये जीन संतानों स्थानांतरित हो जाते हैं।
    • नर मच्छरों में एक प्रोटीन (tTAV-OX5034 प्रोटीन) होता है जो मादा OX5034 मच्छरों के (जंगली मादा मच्छरों) के साथ संभोग करने पर मादा संतान को जीवित रहने से रोकता है।
  • मादा संतान वयस्क होने से पहले ही मर जाती है। परिणामतः क्षेत्र में एडीज़ इजिप्टी मच्छरों की संख्या कम हो जाती है।

संबंधित चिंताएँ:

  • किसी बीमारी के प्रसार को रोकने के लिये मच्छरों  की आबादी को नियंत्रित करने हेतु मच्छरों  को आनुवंशिक रूप से संशोधित करना कोई नया विचार नहीं है। इसी तरह के प्रयास एक दशक पहले भी  शुरू हुए थे, अब वैज्ञानिक बीमारियों को रोकने के लिये टिक  बनाने  का प्रयास कर रहे हैं। 
  • संशोधित मच्छरों से लोगों को नुकसान पहुँचाने से लेकर मच्छरों को खाने वाली प्रजातियों पर इसके प्रभाव और अन्य अनपेक्षित परिणामों जैसे घातक वायरस के उद्भव को लेकर भी चिंताएँ हैं ।
  • विशेषज्ञों का यह भी मानना ​​है कि संभावित प्रकोप को रोकने के लिये वायरस फैलाने वाले मच्छरों की आबादी को कम करना ही पर्याप्त नहीं है।

ज़ीका वायरस (Zika Virus):

  • ज़ीका वायरस एक मच्छर जनित फ्लेविवायरस है जिसे पहली बार वर्ष 1947 में युगांडा में बंदरों में पहचाना गया था। 
  • इसे बाद में वर्ष 1952 में युगांडा और संयुक्त गणराज्य तंजानिया में मनुष्यों में पहचाना गया। ज़ीका वायरस रोग का प्रकोप अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में दर्ज किया गया है।
  • ज़ीका वायरस रोग मुख्य रूप से एडीज़ मच्छरों द्वारा प्रसारित एक वायरस के कारण होता है और गर्भवती महिला से उसके भ्रूण में जा सकता है।
  • ज़ीका वायरस का यौन संचरण भी संभव है।
  • ज़ीका के लिये कोई टीका या दवा नहीं है। इसके बजाय लक्षणों से राहत पाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और इसमें बुखार व दर्द के निवारण के लिये आराम, पुनर्जलीकरण तथा एसिटामिनोफेन शामिल हैं।

डेंगू:

  • डेंगू का प्रसार मच्छरों की कई जीनस एडीज़ (Genus Aedes) प्रजातियों मुख्य रूप से एडीज़ इजिप्टी (Aedes Aegypti) द्वारा होता है।
  • इसके लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द तथा खसरे के समान त्वचा पर लाल चकत्ते शामिल हैं। 
  • डेंगू के टीके CYD-TDV या डेंगवाक्सिया (CYD-TDV or Dengvaxia) को लगभग 20 देशों में स्वीकृति प्रदान की गई है। 

चिकनगुनिया:

  • चिकनगुनिया मच्छर जनित वायरस के कारण होता है।
  • यह एडीज़ एजिप्टी (Aedes Aegypti) और एडीज़ एल्बोपिक्टस मच्छरों (Albopictus Mosquitoes) द्वारा फैलता है।
  • इसके लक्षणों में अचानक बुखार, जोड़ों का तेज़ दर्द, अक्सर हाथों और पैरों में दर्द, साथ ही इसमें सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, शरीर में सूजन या दाने हो सकते हैं।
  • चिकनगुनिया के उपचार के लिये न तो कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवा उपलब्ध है और न ही कोई वाणिज्यिक चिकनगुनिया (Commercial Chikungunya) टीका। 

पीत ज्वर (Yellow Fever):

  • पीत ज्वर मच्छरों से फैलने वाली बीमारी है। यह पीलिया (Jaundice) के समान होती है, इसीलिये इसे पीत/पीला (Yellow) ज्वर  के नाम से भी जाना जाता है।
  • पीत ज्वर के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, पीलिया, मांसपेशियों में दर्द, मतली, उल्टी और थकान शामिल हैं।
  • पीत-ज्वर को सामान्यतः ‘17D’ भी कहा जाता है। आमतौर पर यह टीका (Vaccine) सुरक्षित माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पीत ज्वर को एक अत्यंत प्रभावी टीके की सिर्फ एक खुराक से रोका जा सकता  है, जो सुरक्षित और किफ़ायती  होने के साथ-साथ इस बीमारी के खिलाफ निरंतर प्रतिरक्षा एवं जीवन भर सुरक्षा प्रदान करने के लिये पर्याप्त है।
  • हालाँकि इसके संबंध में किये गए अनुसंधानों एवं कुछ रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पीत ज्वर संबंधी टीकाकरण के बाद शरीर के कई तंत्रों के खराब होने या सही से काम न करने की बातें सामने आई हैं, यहाँ तक कि इसके कारण कुछ लोगों की मृत्यु तक हो गई।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों  के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ज़ीका वायरस रोग उसी मच्छर द्वारा फैलता है जो डेंगू का प्रसार करता है।
  2. ज़ीका वायरस रोग यौन संचरण द्वारा संभव है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, CITES, UNEP, IUCN

मेन्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसदीय स्थायी समिति ने प्रस्तावित वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • स्थायी समिति ने पाया है कि कुछ प्रजातियों, जिन्हें पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित किया गया है, को वन्यजीवों और पौधों की विभिन्न अनुसूचियों से बाहर रखा गया है तथा इन प्रजातियों को शामिल करने हेतु अनुसूचियों की संशोधित सूची की सिफारिश की गई है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन एवं विनियमन तथा जंगली जानवरों, पौधों व उनसे बने उत्पादों के व्यापार पर नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिनियम में पौधों और जानवरों को भी सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा प्रदान कर निगरानी की जाती है।
  • इस अधिनियम में कई बार संशोधन किया गया है, अंतिम संशोधन 2006 में किया गया था।

प्रमुख बिंदु:

  • CITES के प्रावधान: यह विधेयक वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के प्रावधानों को लागू करने का प्रयास करता है।
    • प्रबंधन प्राधिकरण, जो विशिष्ट प्रजातियों के व्यापार हेतु आयात या निर्यात का परमिट प्रदान करताहै।
      • अनुसूचित नमूने के व्यापार में संलग्न प्रत्येक व्यक्ति को लेन-देन का विवरण या रिपोर्ट   प्रबंधन प्राधिकरण को सौपना होगा।   
      • CITES के अनुसार, प्रबंधन प्राधिकरण नमूने के लिये पहचान चिह्न का प्रयोग कर सकता है। 
      • यह बिल किसी भी व्यक्ति को नमूने के पहचान चिह्न को संशोधित करने या हटाने से प्रतिबंधित करता है।  
      • इसके अतिरिक्त अनुसूचित जीवित पशुओं के नमूने रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रबंधन प्राधिकरण से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक होगा। 
    • वैज्ञानिक प्राधिकरण, व्यापार किये जा रहे जानवरों के अस्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव से जुड़े पहलुओं पर अपनी सलाह देता है।
  • अनुसूचियों की प्रासंगिकता: वर्तमान अधिनियम में विशेष रूप से संरक्षित पौधों (एक), विशेष रूप से संरक्षित जानवरों (चार) और कृमि प्रजातियों (एक) के लिये कुल छह अनुसूचियांँ हैं।
    • इसमें वे प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जो CITES द्वारा सूचीबद्ध वन्यजीवों एवं पौधों में सबसे अधिक संकटापन्न स्थिति में हैं।
    • अनुसूची II में ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्ती से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
    • अनुसूची III उन प्रजातियों की सूची है जिन्हें किसी पक्षकार के अनुरोध पर शामिल किया जाता है, जिनका व्यापार पक्षकार द्वारा पहले से ही विनियमित किया जा रहा है तथा शामिल की गईं प्रजातियों के अधारणीय एवं अत्यधिक दोहन को रोकने के लिये दूसरे देशों के सहयोग की आवश्यकता है।
    • यह कृमि (वर्मिन) प्रजातियों की अनुसूची को निष्कासित करता है। कृमि प्रजाति छोटे जानवरों को संदर्भित करती है जो बीमारियों में वृद्धि के साथ ही भोजन को नष्ट करती हैं।   
    • यह CITES के अंतर्गत परिशिष्टों में जंतु नमूनों की नवीन अनुसूची को शामिल करता है।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियांँ: यह बिल केंद्र सरकार को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आयात, व्यापार, कब्ज़े या प्रसार को विनियमित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।   
    • आक्रामक विदेशी प्रजातियांँ उन पौधों या जानवरों की प्रजातियों को संदर्भित करती हैं जो भारतीय मूल की नहीं हैं और जो वन्यजीव या इनके आवास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं| 
    • केंद्र सरकार किसी अधिकारी को आक्रामक प्रजातियों को ज़ब्त करने और उनका निपटान करने के लिये अधिकृत कर सकती है।  
  • अभयारण्यों का नियंत्रण: अधिनियम मुख्य वन्यजीव वार्डन को एक राज्य में सभी अभयारण्यों को नियंत्रित, प्रबंधित करने और बनाए रखने का काम सौंपता है।   
    • मुख्य वन्यजीव वार्डन की नियुक्ति राज्य सरकार करती है।   
    • बिल निर्दिष्ट करता है कि मुख्य वार्डन द्वारा की जाने वाली कार्रवाई अभयारण्य के लिये प्रबंधन योजनाओं के अनुसार होनी चाहिये।   
    • विशेष क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले अभयारण्यों के लिये संबंधित ग्राम सभा के साथ उचित परामर्श के बाद प्रबंधन योजना तैयार की जानी चाहिये।   
    • विशेष क्षेत्रों में अनुसूचित क्षेत्र या वे क्षेत्र शामिल हैं जहाँ अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 लागू है।
    • अनुसूचित क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र हैं जहां मुख्य रूप से आदिवासी आबादी रहती है, जिसे संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित किया गया है। 
  • संरक्षण रिज़र्व: अधिनियम के तहत राज्य सरकारें वनस्पतियों और जीवों तथा उनके आवास की रक्षा के लिये राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों को संरक्षण रिज़र्व के रूप में घोषित कर सकती हैं।: 
  • बिल केंद्र सरकार को भी एक संरक्षण रिज़र्व को अधिसूचित करने का अधिकार देता है। 
  • बंदी जानवरों का समर्पण: बिल किसी भी व्यक्ति को स्वेच्छा से किसी भी बंदी जानवर या पशु उत्पाद को मुख्य वन्यजीव वार्डन को सौंपने का प्रावधान करता है।   
    • ऐसी वस्तुओं को अभ्यर्पित करने वाले व्यक्ति को कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाएगा।   
    • अभ्यर्पित वस्तुएँ राज्य सरकार की संपत्ति होंगी।  
  • दंड: अधिनियम, प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कारावास की सज़ा तथा जुर्माने का प्रावधान करता है। विधेयक दंड के प्रावधानों में भी वृद्धि करता है।

    उल्लंघन के प्रकार  

   अधिनियम, 1972

    विधेयक, 2021

    सामान्य उल्लंघन

    25,000 रुपए तक

    1,00,000 रुपए तक

    विशेष रूप से संरक्षित जानवर

    कम-से-कम 10,000 रुपए

    कम-से-कम 25,000 रुपए

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत में फोन टैपिंग

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI), प्रवर्तन निदेशालय, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी।

मेन्स के लिये:

भारत में ‘फोन टैपिंग’ और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

फोन टैपिंग क्या है और भारत में फोन टैपिंग कैसे की जाती है?

  • फोन टैपिंग का तात्पर्य जानकारी प्राप्त करने के लिये गुप्त रूप से किसी संचार चैनल (विशेष रूप से टेलीफोन) की वार्ता को सुनना या रिकॉर्ड करना है। इसे कुछ देशों (मुख्य रूप से USA में) ‘वायर-टैपिंग’ (Wiretapping) या अवरोधन (Interception) के रूप में भी जाना जाता है।
  • फोन टैपिंग केवल अधिकृत तरीके से संबंधित विभाग की अनुमति लेकर ही की जा सकती है।
  • फोन टैपिंग यदि अनधिकृत तरीके से की जाती है तो यह अवैध है और इससे गोपनीयता भंग होने पर  ज़िम्मेदार व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार, ‘किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा’।
    •  एक नागरिक को व्यक्तिगत निजता के अलावा अपने परिवार, शिक्षा, विवाह, मातृत्व, बच्चे और वंश वृद्धि आदि के संबंध में गोपनीयता का अधिकार है।

फोन टैपिंग कौन कर सकता है?

भारत में फोन टैपिंग को नियंत्रित करने वाले कानून:

  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885: 
    • अधिनियम की धारा 5(2) के अनुसार, कोई भी सार्वजनिक आपातस्थिति होने पर या जन सुरक्षा के हित में केंद्र या राज्य सरकार  द्वारा फोन टैपिंग की जा सकती है।
    • यह आदेश तब जारी किया जा सकता है यदि केंद्र या राज्य सरकार  इस बात से संतुष्ट है कि "भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था अथवा किसी अपराध को रोकने के लिये" सार्वजनिक सुरक्षा के हित में ऐसा करना आवश्यक है|
  • अपवाद:
    • केंद्र सरकार या राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त संवाददाताओं के भारत में प्रकाशित होने वाले प्रेस संदेशों को इंटरसेप्ट नहीं किया जाएगा, जब तक कि इसकी उप-धारा के अंतर्गत उनके प्रसारण को प्रतिबंधित न किया गया हो।
    • सक्षम प्राधिकारी को लिखित रूप  में टैपिंग के कारणों की जानकारी देना अनिवार्य है। 

फोन टैपिंग हेतु प्राधिकार:

  • फोन टैपिंग करने का प्रावधान भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) नियम, 2007 की धारा 419A में किया गया है।
    • केंद्र सरकार के मामले में फोन टैपिंग भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव द्वारा दिये गए आदेश के तहत की जा सकती है।
    • राज्य सरकार के मामले में फोन टैपिंग राज्य सरकार के गृह विभाग के सचिव द्वारा दिये गए आदेश के तहत की जा सकती है।
  • आपातकालीन स्थिति में:
    • ऐसी स्थिति में एक ऐसे अधिकारी द्वारा आदेश जारी किया जा सकता है, जो भारत के संयुक्त सचिव के पद से नीचे का न हो और जिसे केंद्रीय गृह सचिव या राज्य के गृह सचिव द्वारा अधिकृत किया गया हो।
    • दूरदराज़ के क्षेत्रों में या संचालन संबंधी कारणों से यदि पूर्व निर्देश प्राप्त करना संभव नहीं है, तो केंद्रीय स्तर पर अधिकृत कानून प्रवर्तन एजेंसी के प्रमुख या दूसरे वरिष्ठतम अधिकारी के पूर्व अनुमोदन से कॉल को इंटरसेप्ट किया जा सकता है, साथ ही राज्य के स्तर पर अधिकृत अधिकारी पुलिस महानिरीक्षक के पद से नीचे का न हो।
    • प्राप्त आदेश के संबंध में तीन दिनों के अंदर सक्षम प्राधिकारी को सूचित करना अनिवार्य है, जिसे सात कार्य दिवसों के अंदर स्वीकृत या अस्वीकृत किया जा सकता है।  
      • यदि सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि निर्धारित सात दिनों के भीतर प्राप्त नहीं होती है, तो ऐसा अवरोधन (इंटरसेप्शन) स्वतः समाप्त हो जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में इंडियन टेलीग्राफ राइट ऑफ वे (संशोधन) नियम, 2021 को अधिसूचित किया।

उपचार:

  • अंतिम उपाय के रूप में:
    • कानून में स्पष्ट किया गया है कि इंटरसेप्शन का आदेश तभी दिया जाना चाहिये जब सूचना प्राप्त करने का कोई अन्य तरीका न बचा हो।
  • इंटरसेप्शन का नवीनीकरण: 
    • इंटरसेप्शन के निर्देश लागू रहते हैं, लेकिन यह अनुमति केवल 60 दिनों के लिये वैध होती है।
      • इंटरसेप्शन के निर्देश को परिवर्तित किया जा सकता है,लेकिन इसे 180 दिनों से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
  • आवश्यक कारण:
    • सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किये गए किसी भी आदेश में आवश्यक कारण होने चाहिये,और उसकी एक प्रति समीक्षा समिति को सात कार्य दिवसों के भीतर अग्रेषित की जानी चाहिये।  
      • केंद्र में समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव द्वारा की जाती है, जिसमें कानून और दूरसंचार सचिव सदस्य होते हैं।  
      • राज्यों में इसकी अध्यक्षता मुख्य सचिव द्वारा की जाती है, जिसमें कानून और गृह सचिव सदस्य होते हैं। 
        • समिति से अपेक्षा की जाती है कि सभी अवरोधन (इंटरसेप्शन) अनुरोधों की समीक्षा के लिये दो महीने में कम-से-कम एक बार बैठक अवश्य करे।
  • अभिलेखों को नष्ट करना: 
    • नियमों के तहत ऐसे निर्देशों से संबंधित रिकॉर्ड हर छह महीने में नष्ट कर दिये जाएंगे, जब तक कि ये कार्यात्मक आवश्यकताओं के लिये ज़रूरी न हों या होने की संभावना न हो।  
    • सेवा प्रदाताओं को भी अवरोधन (इंटरसेप्शन) बंद करने के दो महीने के भीतर अवरोधन (इंटरसेप्शन) के निर्देशों से संबंधित रिकॉर्ड को नष्ट करने की आवश्यकता होती है। 

आगे की राह

  • 'निजता के अधिकार' और 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' के बीच के संबंध को न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से देखा गया, साथ ही व्यक्तिगत संचार को भी टैप करने की आवश्यकता है। 
  • व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और गोपनीयता बनाए रखने की आवश्यकता सर्वोपरि है लेकिन जब सार्वजनिक आपातस्थिति या जनहित में सुरक्षा की बात आती है तो किसी व्यक्ति की गोपनीयता भंग करते हुए व एकत्रित की गई जानकारी की संवेदनशील प्रकृति के कारण गोपनीय रखते हुए न्यायालय द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये। 
  • न्यायालय द्वारा नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने के लिये एक निष्पक्ष एवं न्यायसंगत प्रक्रिया स्थापित की जाए ताकि अधिकारों का दुरुपयोग न हो।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पश्चिमी विक्षोभ

प्रिलिम्स के लिये:

पश्चिमी विक्षोभ, कैस्पियन सागर, भूमध्य सागर, भारत मौसम विज्ञान विभाग, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, शीत लहर।

मेन्स के लिये:

भौतिक भूगोल, पश्चिमी विक्षोभ और उसका असामान्य व्यवहार।

चर्चा में क्यों?

पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances-WD) की तीव्रता और स्थानों में बदलाव के कारण कुछ महीनों के दौरान दिल्ली में भारी वर्षा हुई तथा कभी-कभी लू की चपेट में आने के कारण शहर शुष्क भी रहा।

Wester-Disturbance

पश्चिमी विक्षोभ:

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ ऐसे तूफान हैं जो कैस्पियन या भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं तथा उत्तर-पश्चिम भारत में गैर-मानसूनी वर्षा के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
  • इन्हें भूमध्य सागर में उत्पन्न होने वाले एक ‘बहिरूष्ण उष्णकटिबंधीय तूफान’ के रूप में चिह्नित किया जाता है, जो एक निम्न दबाव का क्षेत्र है तथा उत्तर-पश्चिम भारत में अचानक वर्षा, बर्फबारी एवं कोहरे के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • पश्चिमी विक्षोभ का अर्थ इसके नाम में निहित है।
    • यह विक्षोभ ‘पश्चिम’ से  ‘पूर्व’ दिशा की ओर आता है।
      • ये विक्षोभ अत्यधिक ऊँचाई पर पूर्व की ओर चलने वालीवेस्टरली जेट धाराओं(Westerly Jet Streams) के साथ यात्रा करते हैं।
    • विक्षोभ का तात्पर्य ‘विक्षुब्ध’ क्षेत्र या कम हवा वाले दबाव क्षेत्र से है।
      • प्रकृति में संतुलन मौजूद है जिसके कारण एक क्षेत्र में हवा अपने दबाव को सामान्य करने की कोशिश करती है।
  • "बहिरूष्ण कटिबंधीय तूफान" शब्द तूफान, कम दबाव के क्षेत्र को संदर्भित करता है तथा "अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय" का अर्थ है उष्णकटिबंधीय के अतिरिक्त। चूंँकि पश्चिमी विक्षोभ की उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से बाहर होती है, इसलिये "बहिरूष्ण कटिबंधीय" शब्द उनके साथ जुड़ा हुआ है।
    • पश्चिमी विक्षोभ का संबंध उत्तरी भारत में वर्षा, हिमपात और कोहरे से जुड़ा है। यह पाकिस्तान व उत्तरी भारत में वर्षा एवं हिमपात के साथ आता है। पश्चिमी विक्षोभ अपने साथ जो नमी ले जाते हैं वह भूमध्य सागर और/या अटलांटिक महासागर से आती है।
    • पश्चिमी विक्षोभ सर्दी और मानसून पूर्व बारिश करते हैं तथा उत्तरी उपमहाद्वीप में रबी की फसल के विकास में महत्त्वपूर्ण है। 
    • पश्चिमी विक्षोभ हमेशा अच्छे मौसम के अग्रदूत नहीं होते हैं। कभी-कभी ये अचानक बाढ़, भूस्खलन, धूल भरी आंँधी, ओलावृष्टि और शीत लहर जैसी चरम मौसम की घटनाओं का कारण बन सकते हैं, लोगों की जान ले सकते हैं, बुनियादी ढांँचे को नष्ट कर सकते हैं तथा लोगों की आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं।

पश्चिमी विक्षोभ में बदलाव:

  • वर्ष 2021 के अक्तूबर माह में दिल्ली में 65 वर्षों में सबसे अधिक बारिश देखी गई, जिसे सफदरजंग मौसम वेधशाला ने सामान्य बारिश 28 मिमी के मुकाबले पश्चिमी विक्षोभ के कारण 122.5 मिमी बारिश दर्ज की।
  • फरवरी 2022 में कई पश्चिमी विक्षोभों के आने के कारण आसमान में बादल छाए रहे जिससे तापमान में कमी दर्ज की गई। तापमान में यह कमी पिछले 19 वर्षों में सबसे निम्नतम थी।
  • इस वर्ष जनवरी और फरवरी माह में भी अधिक बारिश दर्ज की गई थी। इसके विपरीत नवंबर 2021 और मार्च 2022 में वर्षा नहीं हुई थी तथा गर्मियों में मार्च 2022 के अंत में गर्म लहरों के साथ असामान्य रूप से वर्षा की शुरुआत देखी गई।
  • बादल छाए रहने से कई पश्चिमी विक्षोभों के कारण फरवरी 2022 में तापमान कम रहा था तथा 19 वर्षों में सबसे कम अधिकतम तापमान दर्ज किया गया था।
  • मार्च 2022 में सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ उत्तर पश्चिम भारत से दूर हो गया तथा बादल छाए रहने और बारिश के अभाव के कारण तापमान अधिक बना रहा।

पश्चिमी विक्षोभ में बदलाव के संभावित कारण:

  • पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति में वृद्धि हुई है लेकिन आंशिक रूप से गर्म वातावरण (ग्लोबल वार्मिंग) के चलते उनके कारण होने वाली वर्षा की स्थिति नहीं देखी गई।
  • पश्चिमी विक्षोभ कम दबाव वाले क्षेत्र होते हैं। कमज़ोर पश्चिमी विक्षोभ में वर्षण हेतु पर्याप्त नमी नहीं होती है।
  • र्षण के लिये नमी की आवश्यकता होती है तथा गर्म वातावरण के कारण वर्षण हेतु नमी की मात्रा कम उपलब्ध होती है।
  • साथ ही वातावरण में गर्माहट की वजह से पश्चिमी विक्षोभ की ऊँचाई बढ़ रही है। सामान्य तौर पर वे उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट में प्रवाहित होते हैं तथा भार में कमी के कारण उनका दवाब 200 हेक्टोपास्कल से भी ऊपर बढ़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव क्या हो सकते हैं, यह निर्धारित करने के लिये अगले कुछ वर्षों में विविधताओं की निगरानी करनी होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सरकारी आदेश 111

प्रिलिम्स के लिये:

उस्मान सागर और हिमायत सागर जलाशय।

मेन्स के लिये:

GO 111, संरक्षण।

चर्चा में क्यों?

पर्यावरणविद् और कार्यकर्त्ता हैदराबाद में ऐतिहासिक उस्मान सागर और हिमायत सागर जलाशयों की रक्षा करने वाले 25 वर्ष पुराने सरकारी आदेश (GO) 111 को वापस लेने के लिये तेलंगाना सरकार की आलोचना कर रहे हैं, उनका कहना है कि यह आसपास के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर देगा।

Nizam-Sagar-dam

दो झीलों की रक्षा करने वाला सरकारी आदेश:

  • 8 मार्च, 1996 को तत्कालीन (अविभाजित) आंध्र प्रदेश सरकार ने उस्मान सागर और हिमायत सागर झीलों के जलग्रहण क्षेत्र में 10 किमी. के दायरे में विकास या निर्माण कार्यों पर रोक लगाने के लिये GO 111 जारी किया था।
  • शासन ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों, आवासीय कालोनियों, होटलों आदि की स्थापना पर रोक लगा दी थी।
  • प्रतिबंधों का उद्देश्य जलग्रहण क्षेत्र की रक्षा करना तथा जलाशयों को प्रदूषण मुक्त रखना था।
    • झीलें लगभग 70 वर्षों से हैदराबाद को पानी की आपूर्ति कर रही थीं और उस समय ये झीलें शहर के लिये पीने के पानी का मुख्य स्रोत थीं।

 जलाशयों के निर्माण का कारण और समयावधि:

  • हैदराबाद को बाढ़ से बचाने के लिये कृष्णा की एक प्रमुख सहायक नदी मुसी (जिसे मूसा या मुचकुंडा के नाम से भी जाना जाता है) पर बाँध बनाकर जलाशयों का निर्माण किया गया था।
  • वर्ष 1908 में छठे निज़ाम महबूब अली खान (1869-1911) के शासनकाल के दौरान एक बड़ी बाढ़ (जिसमें 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे), के बाद बाँधों के निर्माण का प्रस्ताव आया था।
  • झीलें अंतिम निज़ाम, उस्मान अली खान (1911-48) के शासनकाल के दौरान अस्तित्व में आईं। उस्मान सागर वर्ष 1921 में तथा हिमायत सागर वर्ष 1927 में बनकर तैयार हुआ। उस्मान सागर में निज़ाम का गेस्टहाउस अब एक विरासत भवन है।

सरकार द्वारा GO 111 को वापस लेने का कारण:

  • शहर अब पानी की आपूर्ति हेतु इन दो जलाशयों पर निर्भर नहीं है तथा जलग्रहण क्षेत्र में विकास पर प्रतिबंधों को जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • हैदराबाद की पेयजल आवश्यकता 600 मिलियन गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) से अधिक है, जिसे कृष्णा नदी सहित अन्य स्रोतों से पूरा किया जा रहा है।

पर्यावरणविद् और कार्यकर्त्ताओं के विचार: 

  • पर्यावरणविद् और कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि ये जलाशय अभी भी शहर के लिये एक महत्त्वपूर्ण  जल स्रोत हैं।
  • मज़बूत  रियल एस्टेट लॉबी के कारण उनके चारों ओर एक विशाल कंक्रीट का जंगल बन जाएगा।
  • दो झीलों के आस-पास के क्षेत्र में पहले से ही 10,000 से अधिक अवैध निर्माण गतिविधियाँ जारी हैं।
  • शहर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित जलाशय दक्षिण-पश्चिम मानसून के समय गुणवत्तापूर्ण हवा प्रदान करते हैं। उन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का प्रदूषण हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा।
  • जुड़वांँ जलाशयों और पूरे क्षेत्र के बीच मुरुगावनी राष्ट्रीय उद्यान शहर के लिये गर्मी अवशोषण इकाई के रूप में कार्य करते हैं, अगर यहाँ कंक्रीट कार्य करने की अनुमति दी जाती है, तो शहर अर्बन हीट आइलैंड में परिवर्तित हो जाएगा।

कृष्णा नदी:

  • स्रोत: इसका उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर (सतारा) के निकट होता है। यह गोदावरी नदी के बाद प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
  • ड्रेनेज: यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले चार राज्यों- महाराष्ट्र (303 किमी), उत्तरी कर्नाटक (480 किमी) और शेष 1300 किमी तेलंगाना व आंध्र प्रदेश में प्रवाहित होती है।
  • सहायक नदियाँ: तुंगभद्रा, मल्लप्रभा, कोयना, भीमा, घटप्रभा, येरला, वर्ना, डिंडी, मुसी और दूधगंगा।

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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


कुरील द्वीप विवाद

प्रिलिम्स के लिये:

राजनयिक ब्लूबुक, कुरील द्वीप विवाद, कुरील द्वीप समूह से संबंधित संधियाँ और समझौते।

मेन्स के लिये:

द्वितीय विश्व युद्ध, अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते, कुरील द्वीप विवाद।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान द्वारा राजनयिक/डिप्लोमैटिक ब्लूबुक (Diplomatic Bluebook) के नवीनतम संस्करण में चार द्वीपों का वर्णन किया गया है जिनके स्वामित्व को लेकर जापान का रूस के साथ विवाद है।

  • यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बीच दोनों पक्षों ने अपने  सामान्य संबंधों को रेखांकित किया।
  • रूस इन द्वीपों को कुरील द्वीप समूह के रूप में संदर्भित करता है, जबकि जापान उन्हें उत्तरी क्षेत्र कहता है।
  • दक्षिण कोरिया के साथ उत्तरी क्षेत्रों को लेकर जापान का भी कुछ ऐसा ही विवाद है। दक्षिण कोरिया द्वारा इसे दोक्दो द्वीप (Dokdo Islands) कहा जाता है। 

राजनयिक/डिप्लोमैटिक ब्लूबुक:

  • जापान की डिप्लोमैटिक ब्लूबुक जापान की विदेश नीति और जापान में विदेश मंत्रालय द्वारा प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति पर एक वार्षिक रिपोर्ट है।
  • सितंबर 1957 में इसके पहले अंक के बाद से प्रतिवर्ष इसका प्रकाशन किया जाता है।

कुरील द्वीप समूह की भौगोलिक स्थिति और इसका महत्त्व: 

  • अवस्थिति:
    • कुरील द्वीप होक्काइदो जापानी द्वीप से रूस के कामचटका प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे तक फैले हुए हैं जो ओखोटस्क सागर को उत्तरी प्रशांत महासागर से अलग करते हैं। 
    • द्वीपों की यह शृंखला प्रशांत (रिंग ऑफ फायर) की परिक्रमा करते हुए भूगर्भीय रूप से अस्थिर बेल्ट का हिस्सा है तथा इसमें कम-से-कम 100 ज्वालामुखी स्थित हैं, जिनमें से 35 अभी भी सक्रिय हैं और कई गर्म झरने विद्यमान हैं।
  • महत्त्व:
    • प्राकृतिक संसाधन: द्वीप समृद्ध मछली पकड़ने के क्षेत्र हैं और माना जाता है कि तेल व गैस के अपतटीय भंडार भी हैं।
    • सांस्कृतिक महत्व: जापानी लोग विशेष रूप से होक्काइदो में द्वीपों से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं।

Russia-Japan-Talks

कुरील द्वीप विवाद ( Kuril Islands Dispute):

  • भूमिका: 
    • जापान और रूस के बीच कुरील द्वीप विवाद दक्षिण कुरील द्वीप समूह की संप्रभुता को लेकर है।
    • दक्षिण कुरील द्वीप समूह में एटोरोफू द्वीप (Etorofu Island), कुनाशीरी द्वीप (Kunashiri Island), शिकोटन (Shikotan) द्वीप और हबोमाई द्वीप (Habomai Island) शामिल हैं।
      • इन द्वीपों पर जापान द्वारा दावा किया जाता है लेकिन रूस द्वारा सोवियत संघ के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में इस पर कब्ज़ा कर लिया गया है। 
  • शिमोडा की संधि (1855):
    • वर्ष 1855 में जापान और रूस ने शिमोडा की संधि का समापन किया, जिसने जापान को चार सबसे दक्षिणी द्वीपों और शेष शृंखला का नियंत्रण रूस को दिया।
  • सेंट पीटर्सबर्ग की संधि (1875):
    • वर्ष 1875 में दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित सेंट पीटर्सबर्ग की संधि में रूस ने सखालिन द्वीप के निर्विरोध नियंत्रण के बदले कुरील का कब्ज़ा जापान को सौंप दिया।
    • हालाँकि द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में सोवियत संघ द्वारा इन द्वीपों को फिर से जब्त कर लिया गया था।
  • याल्टा समझौता (1945):
    • वर्ष 1945 में याल्टा समझौतों (वर्ष 1951 में जापान के साथ औपचारिक रूप से शांति संधि) के हिस्से के रूप में द्वीपों को सोवियत संघ को सौंप दिया गया था और जापानी आबादी को स्वदेश लाया गया तथा सोवियत संघ द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
  • सैन फ्रांसिस्को शांति संधि (1951): 
    • वर्ष 1951 में मित्र राष्ट्रों और जापान के बीच हस्ताक्षरित सैन फ्रांसिस्को शांति संधि में कहा गया है कि जापान को "कुरील द्वीपों पर सभी अधिकार एवं दावा" छोड़ देना चाहिये, लेकिन यह उन पर सोवियत संघ की संप्रभुता को भी मान्यता नहीं देता है।
      • द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल मुख्य राष्ट्र:
        • धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, इटली और जापान)
        • मित्र राष्ट्र (फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ तथा चीन)।
  • जापान-सोवियत संयुक्त घोषणा (1956):
    • द्वीपों पर विवाद ने द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त करने के लिये एक शांति संधि के समापन को रोक दिया है।
    • वर्ष 1956 में जापान-सोवियत संयुक्त घोषणा द्वारा जापान और रूस के बीच राजनयिक संबंध बहाल किये गए।
    • उस समय रूस ने जापान के निकटतम दो द्वीपों को देने की पेशकश की लेकिन जापान ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि दोनों द्वीपों में विचारधीन भूमि का केवल 7% ही हिस्सा था।

वर्तमान परिदृश्य:

  • समझौतों की एक लंबी शृंखला के बावजूद विवाद जारी है और जापान अभी भी दक्षिणी द्वीपों पर ऐतिहासिक अधिकारों का दावा करता है तथा सोवियत संघ वर्ष 1991 से रूस को उन द्वीपों को जापानी संप्रभुता में वापस करने के लिये बार-बार मनाने का प्रयास करता रहा है। 
  • वर्ष 2018 में रूसी राष्ट्रपति और जापानी प्रधानमंत्री ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के मौके पर मुलाकात की और जापानी प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 1956 की घोषणा के आधार पर बातचीत करने के लिये सहमत होने पर क्षेत्रीय विवाद को समाप्त करने का निर्णय लिया।
    • इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि जापान ने रूस के साथ शांति बनाए रखने के लिये दो द्वीपों को छोड़ दिया है।  
  • हालांँकि रूस ने संकेत दिया कि वर्ष 1956 में जापान और सोवियत संघ द्वारा हस्ताक्षरित संयुक्त घोषणा में न तो हबोमाई व शिकोटन को वापस करने के आधार का उल्लेख है, न ही यह स्पष्ट करता है कि द्वीपों पर किस देश की संप्रभुता है।  
  • इसके अलावा वर्ष 2019 में जापानी प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि उनका देश द्वीपों पर नियंत्रण वापस लेने के पक्ष में नहीं है।
  • जापान यह भी मानता है कि द्वीप राष्ट्र के क्षेत्र का एक अंतर्निहित हिस्सा हैं।  
  • इसलिये जापान ने उल्लेख किया कि क्षेत्रीय मुद्दे के समाधान के बाद उसका उद्देश्य शांति-संधि पर हस्ताक्षर करना है। 

स्रोत: द हिंदू


बृहस्पति का चंद्रमा यूरोपा

प्रिलिम्स के लिये:

बृहस्पति और उसके चंद्रमा, नासा। 

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा से संबंधित हाल के निष्कर्षों के निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने बृहस्पति के चंद्रमाओं में से एक यूरोपा पर पानी की मौजूदगी की संभावना व्यक्त की है जो सौरमंडल में जीवन के लिये एक प्रमुख उम्मीद है।

  • इससे पहले नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) के डॉन अंतरिक्षयान द्वारा बौने ग्रह सेरेस (Dwarf Planet Ceres) पर कथित तौर पर खारे पानी की भूमिगत उपस्थिति का पता लगया था। 
  • पूर्व के शोधों में वैज्ञानिकों को K2-18b के वातावरण में जलवाष्प की मौजूदगी के निशान भी मिले थे।

यूरोपा के बारे में:  

  • यूरोपा पृथ्वी के चंद्रमा से थोड़ा छोटा है और इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक-चौथाई है।
  • भले ही यूरोपा में ऑक्सीजन का वातावरण बहुत पतला है, फिर भी इसे सौरमंडल में सबसे आशाजनक स्थानों में से एक माना जाता है जहांँ वर्तमान वातावरण पृथ्वी से परे जीवन के लिये उपयुक्त हैं।
  • यह भी माना जाता है कि यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे पानी की मात्रा पृथ्वी की तुलना में दोगुनी है।
  • वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरोपा पर बर्फ की 15-25 किमी मोटी परत है जो एक समुद्र पर तैर रही है तथा जिसकी गहराई 60-150 किमी के बीच होने का अनुमान है।
  • दिलचस्प बात यह है कि इसका व्यास पृथ्वी से कम है, यूरोपा पर संभवतः पृथ्वी के सभी महासागरों की तुलना में पानी की मात्रा दोगुनी है।
  • वर्ष 2024 में नासा द्वाराअपना यूरोपा क्लिपर (Europa Clipper) लॉन्च किये जाने की उम्मीद है। 
    • मॉड्यूल बृहस्पति की परिक्रमा करेगा और चंद्रमा के वातावरण, सतह तथा इसके आंतरिक भाग पर डेटा एकत्र करने हेतु यूरोपा के पास से करीबी उड़ानों का संचालन करेगा।

निष्कर्ष:

  • यूरोपा की सतह पर ज़्यादातर ठोस बर्फ है और इसके नीचे पानी मौजूद है। 
  • डबल रीजेज़ (Double Ridges)- संरचनाएंँ जो यूरोपा की सतह पर सबसे आम हैं और पृथ्वी की ग्रीनलैंड बर्फ की चादर पर देखी गई हैं। 
  • चंद्रमा की डबल रीजेज़ संरचनाएँ पानी की उथले या उठे हुए स्थानों के ऊपर बनती हैं।

हाल के निष्कर्षों के निहितार्थ:

  • यूरोपा की डबल रीजेज़ चंद्रमा की संभावित आवासीय क्षमता को बढ़ाती हैं।
  • बर्फ का आवरण, जिसकी संभावित मोटाई मीलों तक है वैज्ञानिकों के लिये इसका सैंपल/नमूना लेना एक कठिन कार्य है लेकिन स्टैनफोर्ड टीम द्वारा एकत्र किये गए नए नमूनों के अनुसार, माना जाता है कि बर्फ के गोलाकार आवरण कम अवरोधक तथा अधिक गतिशील होते हैं।
    • इसका मतलब यह है कि बर्फ का गोला/आवरण बर्फ के एक निष्क्रिय ब्लॉक की तरह व्यवहार नहीं करता है, बल्कि विभिन्न भूवैज्ञानिक और हाइड्रोलॉज़िकल प्रक्रियाओं से गुज़रता है।
    • एक संभावना है कि यदि बर्फ के गोले में पानी की उपस्थिति है तो जीवन संभव है।
  • यूरोपा पर ये सभी परिस्थितियाँ यदि विद्यमान है तो  यदि तंत्र ग्रीनलैंड से समानता दिक्ताना है तथा यह  सुझाव दिया जाता है कि यूरोपा पर हर जगह पानी है।

बृहस्पति:

  • सूर्य से पाँचवीं पंक्ति में बृहस्पति, सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है जो अन्य सभी ग्रहों के मुकाबले दोगुने से अधिक बड़ा है।
    • बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून को जोवियन ग्रह या गैसीय विशालकाय ग्रह कहा जाता है। इनमें वायुमंडल की मोटी परत पाई जाती है जिसमें ज़्यादातर हीलियम और हाइड्रोजन गैस होती है।
  • बृहस्पति का प्रतिष्ठित ग्रेट रेड स्पॉट (Great Red Spot) पृथ्वी से भी बड़ा एक विशाल तूफान है जो सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है।
  • बृहस्पति लगभग हर 10 घंटे में एक बार घूर्णन (एक जोवियन दिवस) करता है, परंतु सूर्य की परिक्रमा (एक जोवियन वर्ष) करने में इसे लगभग 12 वर्ष लगते हैं। 
  • बृहस्पति के 75 से अधिक चंद्रमा हैं।
    • बृहस्पति के चार सबसे बड़े चंद्रमाओं को इटालियन खगोलशास्त्री गैलीलियो गैलीली जिन्होंने पहली बार वर्ष 1610 में इन ग्रहों को देखा था, के नाम पर गैलीलियन उपग्रह कहा जाता है। 
    • इनके नाम आयो, यूरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो हैं।
  • वर्ष 1979 में वॉयजर मिशन ने बृहस्पति की धुँधली वलय प्रणाली की खोज की।
  • नौ अंतरिक्षयानों को बृहस्पति पर भेजा जा चुका है। सबसे बाद में जूनो वर्ष 2016 में बृहस्पति पर पहुँचा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस