पुलिस कमिश्नरी प्रणाली

संदर्भ:

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के दो महानगरों लखनऊ और नोएडा में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू की है, जिसके बाद दोनों ही महानगरों में नए पुलिस आयुक्तों की नियुक्ति की गई है। इस प्रणाली के अंतर्गत पुलिस आयुक्तों को अतिरिक्त उत्तरदायित्वों के साथ कुछ दांडिक शक्तियाँ (Magisterial Powers) भी प्रदान की जाती हैं। सरकार के अनुसार, इन दो महानगरों में इस प्रणाली से प्राप्त परिणामों के आधार पर इसे राज्य में बड़ी जनसंख्या वाले कुछ अन्य ज़िलों में भी लागू किया जा सकता है।

देश के कई राज्यों के अतिरिक्त विश्व के कई प्रगतिशील देशों में भी पुलिस कमिश्नरी प्रणाली को कानून-व्यवस्था बनाए रखने का सबसे प्रभावी माध्यम माना गया है। इसके साथ ही वर्ष 1983 में जारी छठी राष्ट्रीय पुलिस आयोग रिपोर्ट (National Police Commission Report) में भी 10 लाख से अधिक की आबादी वाले महानगरों के लिये इस प्रणाली को आवश्यक बताया गया था।

मुख्य बिंदु:

  • 13 जनवरी, 2020 को उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के बाद लखनऊ शहर के 10 पुलिस थानों को पुलिस आयुक्त के अधिकार क्षेत्र में रखा गया है जबकि ज़िले के अन्य थाना क्षेत्र पूर्व व्यवस्था की तरह एसपी (ग्रामीण/ Rural) के अंतर्गत रहेंगे।
  • इस व्यवस्था के अंतर्गत लखनऊ शहर में एक पुलिस आयुक्त (ADG रैंक के अधिकारी) के अतिरिक्त दो अपर आयुक्तों (IG रैंक) और 9 एसपी रैंक के अधिकारियों के साथ महिला सुरक्षा के मामलों के लिये एसपी रैंक की एक महिला अधिकारी की तैनाती भी की जाएगी।
  • नोएडा में एक पुलिस कमिश्नर, दो अपर पुलिस आयुक्त और पाँच एसपी रैंक अधिकारियों के साथ महिला सुरक्षा के मामलों के लिये एसपी रैंक की एक महिला अधिकारी की तैनाती की जाएगी।
  • पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (Bureau of Police Research and Development- BPRD) द्वारा वर्ष 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश के 15 राज्यों और 61 शहरों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू है।

ज़िला स्तर पर विधि व्यवस्था की वर्तमान प्रणाली:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद -7 की प्रविष्टि 1 और 2 के अनुसार, ‘लोक व्यवस्था’ और ‘पुलिस’ राज्य के विषय हैं।
  • अतः इन मामलों में नए कानून बनाने या कानूनों में संशोधन करने तथा विभिन्न समितियों/आयोगों की सिफारिशों को लागू करने का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों को सौंपा गया है।
  • स्वतंत्रता के बाद से लगभग सभी राज्यों में ज़िला स्तर पर विधि एवं व्यवस्था के संचालन के लिये ज़िलाधिकारी (District Magistrate-DM) और पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police-SP) की नियुक्ति कर नियंत्रण की दोहरी व्यवस्था (Dual system of Control) स्थापित की गई है।
  • ज़िला स्तर पर शांति व्यवस्था बनाए रखने एवं अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने हेतु नियंत्रण की इस व्यवस्था को नियंत्रण और संतुलन सिद्धांत (Check and Balance Theory) के अनुरूप एक प्रभावी माध्यम माना गया है।
  • इस व्यवस्था के अंतर्गत पुलिस विषम परिस्थितियों (दंगा, कर्फ्यू आदि) में भी ज़िलाधिकारी के आदेश के अनुसार कार्रवाई करती है।

कमिश्नरी प्रणाली :

  • इस प्रणाली के अंतर्गत पुलिस और कानून व्यवस्था की सारी शक्तियाँ पुलिस आयुक्त (Commissioner of Police) में निहित होती हैं तथा पुलिस आयुक्त एकीकृत पुलिस कमान का प्रमुख होता है।
  • कमिश्नरी प्रणाली में पुलिस आयुक्त अपने कार्यक्षेत्र में कानून-व्यवस्था बनाए रखने एवं अपने निर्णयों के लिये राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है।
  • इस प्रणाली में दंड प्रक्रिया संहिता (Code Of Criminal Procedure-CRPC) के तहत कुछ मामलों में अंतिम फैसला लेने का अधिकार पुलिस आयुक्त को दे दिया जाता है। जैसे- CrPC की धारा 107-116, 144, 145 आदि।
  • CrPC की धारा 20 के तहत पुलिस आयुक्त को दंडाधिकार की शक्तियाँ जबकि अपर आयुक्तों को CrPC की धारा 21 के तहत कुछ मामलों में दंडाधिकार की विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • कमिश्नरी प्रणाली में पुलिस आयुक्त को अपने कार्यक्षेत्र की सीमा के अंदर लाइसेंस जारी करने का भी अधिकार प्राप्त होता है। जैसे- शस्त्र लाइसेंस, होटल या बार लाइसेंस आदि।
  • पुलिस आयुक्त के पास क्षेत्र के किसी भी भाग में किसी भी प्रकार के आयोजन (सांस्कृतिक कार्यक्रम, कॉन्सर्ट, विरोध प्रदर्शन, धरना आदि) की अनुमति देने या न देने का अधिकार होता है।
  • इसके साथ ही विशेष परिस्थितियों में बल प्रयोग और संवेदनशील मामलों में रासुका {राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Act-NSA)}-1980 या गैंगस्टर एक्ट के तहत विभिन्न धाराओं का प्रयोग करने के लिये पुलिस आयुक्त का आदेश ही अंतिम एवं सर्वमान्य होता है।

भारत में कमिश्नरी प्रणाली का इतिहास:

आज भी देश के पुलिस तंत्र का आधार स्वतंत्रता से पूर्व ब्रितानी औपनिवेशिक सरकार द्वारा लागू पुलिस अधिनियम, 1861 (The Police Act, 1861) ही है।

  • भारत में सबसे पहले पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति ब्रिटिश शासन के अंतर्गत बंगाल के कोलकाता शहर में वर्ष 1856 में (पुलिस अधिनियम-1861 के लागू होने से पहले) की गई।
  • वर्ष 1856 में ही पुलिस अधिनियम (Police Act)-XII के तहत मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में पहले पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति की गई।
  • बम्बई (वर्तमान मुंबई) महानगर में पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति वर्ष 1864 में की गई। वर्तमान समय में महाराष्ट्र के लगभग 9 महानगरों में कमिश्नरी प्रणाली लागू है इसके साथ ही महाराष्ट्र रेलवे में भी कमिश्नर रेलवे (Commissioner Railway) के रूप में यह प्रणाली लागू है।

स्वतंत्रता के बाद भी देश की नौकरशाही में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं किये गए, परंतु समय के साथ महानगरों के विकास से महानगरों में रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न हुए और बड़ी संख्या में लोगो ने गाँवों से आकर महानगरों में बसना शुरू किया। महानगरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ने के कारण विधि व्यवस्था को बनाए रखने में आने वाली नई चुनौतियों को देखते हुए कमिश्नरी प्रणाली की आवश्यकता महसूस की गई तथा पुलिस प्रणाली में सुधार के लिये गठित समितियों ने भी कमिश्नरी प्रणाली की अनुशंसा की। जिसके पश्चात वर्ष 1978 में दिल्ली में पुलिस आयुक्त की नियुक्ति की गई।

  • वर्ष 1978 में ही उत्तर प्रदेश के कानपुर में कमिश्नरी प्रणाली को लागू करने का प्रयास किया गया परंतु यह प्रयास सफल नहीं रहा और पुनः पुरानी व्यवस्था लागू कर दी गई।

समितियों द्वारा पुलिस कमिश्नरी प्रणाली की अनुशंसा:

  • धर्मवीरा आयोग (Dharmaveera Commission): पुलिस तंत्र में सुधार के उद्देश्य से वर्ष 1977 में पूर्व राज्यपाल धर्मवीरा की अध्यक्षता में गठित छठें राष्ट्रीय पुलिस आयोग (6th National Police Commission) ने अपनी रिपोर्ट में 5 लाख या उससे अधिक की आबादी वाले महानगरों के लिये पुलिस कमिश्नरी प्रणाली की अनुशंसा की थी।
  • पद्मनाभैया समिति (2000): वर्ष 2000 में पद्मनाभैया समिति ने भी अन्य सुधारों के साथ अधिक जनसंख्या वाले महानगरों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया था।
  • वर्ष 2005 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पुलिस तंत्र में सुधार के लिये एक आयोग का गठन किया। आयोग द्वारा प्रस्तावित Draft Model Police Act में 10 लाख या उससे अधिक की आबादी वाले महानगरों के लिये पुलिस कमिश्नरी प्रणाली को आवश्यक बताया गया था।

कमिश्नरी प्रणाली की ज़रूरत क्यों?

  • वर्तमान समय में महानगरों में बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रशासन और प्रबंधन पर बढ़ रहा दबाव सर्वविदित है तथा जनसंख्या का यह भार महानगरों में अन्य कारकों से जुड़कर आए-दिन विधि-व्यवस्था के लिये नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। ऐसे में पुलिस तंत्र का एकीकृत होना अति आवश्यक है।
  • प्रशासन की दोहरी व्यवस्था में विधि-व्यवस्था का उत्तरदायित्व ज़िलाधिकारी और एसपी द्वारा साझा किया जाता है, इस व्यवस्था के अंतर्गत पुलिस किसी भी अप्रिय घटना की स्थिति में ज़िलाधिकारी द्वारा स्थिति के आकलन के बाद दिये गए आदेश के अनुसार कार्य करती है।
  • इस व्यवस्था में दोनों ही अधिकारियों से यह अपेक्षित होता है कि वे हर परिस्थिति में परस्पर समन्वय के साथ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करेंगे परंतु अनेक परिस्थितियों में ऐसा देखा गया है कि विभागों में परस्पर समन्वय की कमी और आरोप-प्रत्यारोप बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।
  • कमिश्नरी प्रणाली में प्रशासन की कोई द्वैध-व्यवस्था (Duality) नहीं होती है, अतः विषम परिस्थितियों में कठिन निर्णय लेने और उनके शीघ्र क्रियान्वन में आसानी होती हो।
  • कमिश्नरी प्रणाली में शीर्ष अधिकारी अपने निर्णयों और कार्यों के लिये सरकार के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अतः इस व्यवस्था से नौकरशाही में व्याप्त कमियों को दूर करने में मदद मिलती है।

कमिश्नरी प्रणाली की आलोचना:

  • जर्मन दार्शनिक मैक्स वेबर (Max Weber) के शब्दों में “राज्य (State) अपनी सीमा में रह रहे लोगों पर वैधानिक रूप से बल प्रयोग (Legitimate use of physical force) के एकाधिकार का दावा करता है” अर्थात् सरकारें जनता पर बल के प्रयोग को वैधानिकता प्रदान करती हैं।
  • सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और समाज के अन्य सदस्यों द्वारा समय-समय पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि सरकारें जनता पर दबाव बनाए रखने के लिये कमिश्नरी प्रणाली जैसे माध्यमों से पुलिस को सीधे अपने अधिकार में रखना चाहती हैं।
  • कमिश्नरी प्रणाली में किसी भी व्यक्ति के गिरफ़्तारी वारंट, जमानत, भीड़ पर बल प्रयोग (लाठीचार्ज, आँसू गैस) जैसे कई अन्य संवेदनशील मामलों में अंतिम आदेश देने का अधिकार पुलिस आयुक्त को दे दिया जाता है, ऐसे में अनेक परिस्थितियों में मानवाधिकार के हनन का भय बना रहता है।
  • कमिश्नरी प्रणाली में पुलिस आयुक्तों को दंडाधिकार एवं कई अन्य संवेदनशील मामलों में प्रशिक्षण और अनुभव की कमी होने के कारण अव्यवस्था का भय बना रहता है।
  • शक्ति के एक ही पद में निहित होने से आदेशों पर नियंत्रण और संतुलन (Check and Balance) की कमी होती है तथा अधिकारियों के निरंकुश होने एवं अपने अधिकारों के दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है।

आगे की राह:

  • पूर्व में भी मुंबई जैसे महानगरों में अपराध नियंत्रण और कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली के प्रभावी परिणाम देखने को मिले हैं। अतः लखनऊ और नोएडा जैसे महानगरों में यह व्यवस्था निस्संदेह सार्थक साबित होगी।
  • नोएडा में कमिश्नरी प्रणाली लागू होने से दिल्ली और नोएडा के पुलिस आयुक्तों और विभाग के अन्य अधिकारियों के बीच परस्पर समन्वय में बढ़ोतरी होगी जिससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region-NCR) में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में सहायता प्राप्त होगी।
  • कमिश्नरी प्रणाली के तहत पुलिस आयुक्त के सर्वोच्च अधिकारी होने के बाद भी वह अपने निर्णयों के लिये सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है, साथ ही पुलिस आयुक्त के आदेशों को जनता, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं आदि द्वारा अदालतों में भी चुनौती दी जा सकती है। यह व्यवस्था पुलिस के निरंकुश होने की आशंकाओं को दूर करती है।

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अभ्यास प्रश्न: विधि एवं व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।