डेली न्यूज़ (23 Apr, 2021)



बोआओ फोरम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण चीन के हैनान प्रांत के बोआओ में ‘बोआओ फोरम फॉर एशिया’ (Boao Forum for Asia- BFA) वार्षिक सम्मेलन 2021 का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया।

  • BFA इस वर्ष अपनी 20वीं वर्षगाँठ मना रहा है।

प्रमुख बिंदु: 

‘बोआओ फोरम फॉर एशिया’ (BFA) वार्षिक सम्मेलन 2021:

  • इस फोरम में 60 से अधिक देशों से आए 2500 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस फोरम का इस वर्ष का विषय ‘ए वर्ल्ड इन चेंज: इन हैंड टू स्ट्रेंथ ग्लोबल गवर्नेंस एंड एडवांस बेल्ट एंड रोड कोऑपरेशन ’है।
  • इस फोरम का मुख्य एजेंडा महामारी के बाद के समय में आपसी समझ को मज़बूत बनाना है तथा समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास और प्रभावी वैश्विक प्रशासन के लिये अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करना है।
  • इस अवसर पर एशियाई अर्थव्यवस्था पर एक वार्षिक रिपोर्ट जारी की गई जिसमें उन एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया था, जिन्होंने वर्तमान महामारी के बावजूद अच्छी प्रगति की है।
    • क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में वर्ष 2020 में सकल वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशिया का हिस्सा 47.3% तक पहुँच गया जो 2019 से 0.9 प्रतिशत अंक अधिक है।
    • इससे पता चलता है कि सभी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं का आर्थिक एकीकरण तेज़ी से हो रहा है।
      • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (RCEP) पर हस्ताक्षर करने से क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक विकास में मज़बूती आ रही है।
      • भारत RCEP का हिस्सा नहीं है।

बोआओ फोरम

  • बोआओ फोरम फॉर एशिया (BFA) एक गैर- लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसे वर्ष 2001 में 26 सदस्य राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से प्रारंभ किया गया था, जिसके वर्तमान में 29 सदस्य हैं।
    • भारत भी BFA का सदस्य है।
  • इसके वार्षिक सम्मेलन का आयोजन चीन के हैनान प्रांत के बोआओ में नियमित रूप किया जाता है।
  • BFA की स्थापना ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ की तर्ज पर की गई है, जिसकी वार्षिक बैठक का आयोजन स्विट्ज़रलैंड के दावोस में किया जाता है। इस प्रकार बोआओ फोरम को ‘पूर्व के दावोस' नाम से जाना जाता है।
  • BFA की स्थापना का उद्देश्य एशिया में आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना था। इसका मिशन अब एशिया और दुनिया के विकास के लिये सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रित करना है।
    • फोरम ने न केवल सर्वसम्मति से "बोआओ प्रस्तावों" को आगे बढ़ाने में अद्वितीय भूमिका निभाई है, बल्कि वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने और विश्व विकास एवं समृद्धि को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका अदा की है।
  • इसके पाँच केंद्रीय बिंदुओं में क्षेत्रों में नई अर्थव्यवस्था के जवाब में प्रौद्योगिकी नवाचार, स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति और मीडिया शामिल हैं।

स्रोत-द हिंदू


कोडेक्स कमेटी ऑन स्पाइसेस एंड कलिनरी हर्ब्स का पाँचवाँ सत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने कोडेक्स एलेमेंट्रिस कमीशन (Codex Alimentarius Commission) के अंतर्गत स्थापित कोडेक्स कमेटी ऑन स्पाइसेस एंड कलिनरी हर्ब्स (Codex Committee on Spices and Culinary Herbs) के पाँचवें सत्र का उद्घाटन किया।

प्रमुख बिंदु

कोडेक्स कमेटी ऑन स्पाइसेस एंड कलिनरी हर्ब्स के विषय में:

  • स्थापना: इसका गठन वर्ष 2013 में किया गया था।
  • अधिकारिक सीमा:
    • यह कमेटी मसालों और कलिनरी हर्ब्स से संबंधित वैश्विक मानकों का विकास व इन्हें प्रचारित करती है ।
    • मानकों के विकास की प्रक्रिया में दोहराव से बचने के लिये अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ परामर्श करना आवश्यक है।
  • मेज़बान:
    • भारत मेज़बान देश है और इस समिति के सत्र के आयोजन के लिये मसाला बोर्ड  भारत (Spices Board India) ने सचिवालय के रूप में काम किया।
      • भारतीय मसालों के विकास और विश्वव्यापी प्रचार के लिये मसाला बोर्ड (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) प्रमुख संगठन है।

कोडेक्स एलेमेंट्रिस कमीशन:

  • कोडेक्स एलेमेंट्रिस कमीशन के विषय में:
    • यह आयोग वर्ष 1963 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित एक अंतर-सरकारी निकाय है
      • इसकी बैठक FAO के मुख्यालय (रोम) में आयोजित होती है।
    • इसे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा और खाद्य व्यापार में उचित व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये स्थापित किया गया था।
    • इसका नियमित सत्र जिनेवा और रोम के बीच बारी-बारी से एक वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है।
  • सदस्य:
    • वर्तमान में इस कमीशन के कुल 189 (188 देश और यूरोपीय संघ) सदस्य हैं।
    • भारत इस कमीशन का सदस्य है।
  • खाद्य मानक:
    • कोडेक्स एलेमेंट्रिस अंतर्राष्ट्रीय खाद्य मानकों का एक संग्रह है जिसे CAC द्वारा अपनाया गया है।
    • कोडेक्स मानक सभी प्रमुख खाद्य पदार्थों (संसाधित, अर्द्ध-संसाधित और कच्चा) को कवर करते हैं।
      • इसके अलावा खाद्य उत्पाद के आगे के प्रसंस्करण में उपयोग की जाने वाली सामग्री की सीमा भी कवर की जाती है।
    • कोडेक्स प्रावधानों में सूक्ष्मजीव विज्ञानी मानदंडों, कीटनाशक, दूषित पदार्थ, लेबलिंग तथा प्रस्तुति, नमूने एवं जोखिम विश्लेषण के तरीकों सहित भोजन की स्वच्छता व पोषण संबंधी गुणवत्ता का उल्लेख किया गया है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के विषय में:

  • स्थापना:
    • यह एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है जिसे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (Food Safety and Standards Act), 2006 के अंतर्गत स्थापित किया गया।
    • इसका मुख्यालय दिल्ली में है।
  • प्रशासनिक मंत्रालय:
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
  • कार्य:
    • खाद्य सुरक्षा मानकों और दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिये नियमों का निर्धारण।
    • खाद्य व्यवसायों को खाद्य सुरक्षा लाइसेंस और प्रमाणन प्रदान करना।
    • खाद्य व्यवसायों में प्रयोगशालाओं के लिये प्रक्रिया और दिशा-निर्देशों का निर्धारण करना।
    • नीतियों को तैयार करने में सरकार को सुझाव देना।
    • खाद्य उत्पादों में दूषित पदार्थों के विषय में डेटा एकत्र करना, उभरते जोखिमों को पहचानना और तेज़ी से बचाव प्रणाली की शुरुआत करना।
    • खाद्य सुरक्षा के विषय में देश भर में सूचना नेटवर्क बनाना।
    • खाद्य सुरक्षा और खाद्य मानकों के विषय में जागरूकता को बढ़ावा देना।

स्रोत: पी.आई.बी.


कोयला गैसीकरण के माध्यम से उत्पादित यूरिया के लिये सब्सिडी नीति

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने तालचेर फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड (TFL) द्वारा कोयला गैसीकरण के माध्यम से उत्पादित यूरिया के लिये विशेष सब्सिडी नीति को मंज़ूरी दे दी है।

  • भारत में उर्वरको में व्यापक रुप से यूरिया का उपयोग किया जाता है। ।

प्रमुख बिंदु: 

TFL यूरिया परियोजना के बारे में:

  • क्षमता एवं स्थान: TFL  13,277 करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश से कोयला गैसीकरण प्रौद्योगिकी पर एक यूरिया आधारित प्लांट ओडिशा में स्थापित करेगा। इस प्लांट की वार्षिक क्षमता 1.27 मिलियन टन है। 
    • यह संयंत्र केवल कोयला गैसीकरण के माध्यम से नाइट्रोजन युक्त मिट्टी के लिये पोषक तत्त्व (यूरिया) का उत्पादन करेगा।
    • तालचेर फर्टिलाइज़र लिमिटेड (TFL) को सार्वजनिक क्षेत्र के चार उपक्रमों- गेल (GAIL), कोल इंडिया लिमिटेड (CIL), राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइज़र्स (RCF) और FCIL के एक संघ के रूप में शुरू किया गया था।

अपेक्षित फायदे:

  • इस परियोजना से किसानों के लिये उर्वरक की उपलब्धता में सुधार होगा जिससे पूर्वी क्षेत्र का विकास होगा और देश के पूर्वी हिस्से में यूरिया की आपूर्ति के लिये परिवहन सब्सिडी की बचत होगी। 
  •  इससे यूरिया के आयात को कम करके प्रतिवर्ष 12.7 लाख मीट्रिक टन की दर से विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी।
  • इस परियोजना से ‘मेक इन इंडिया’ पहल और आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी बढ़ावा मिलेगा साथ ही बुनियादी ढाँचे जैसे- सड़क, रेल आदि के विकास में सहायता मिलेगी। 
  • यह परियोजना संबंधित क्षेत्र से जुड़े सहायक उद्योगों को नए व्यापार अवसर भी प्रदान करेगी।

कोयला गैसीकरण:

  • कोयला गैसीकरण (Coal Gasification) को संश्लेषण गैस (Synthesis Gas) या  सिनगैस भी कहा जाता है, में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। सिनगैस (Syngas) हाइड्रोजन (H2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मिश्रण है। 
    • सिनगैस का उपयोग बिजली के उत्पादन और उर्वरक जैसे रासायनिक उत्पाद के निर्माण सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जा सकता है।
    • कोयले से प्राप्त हाइड्रोजन गैसीकरण का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है जैसे कि अमोनिया बनाने से हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी होगी।
  •  एंज़ाइम यूरीज़ अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड में यूरिया को विघटित कर देता है। 
  • कोयले का स्वस्थाने गैसीकरण या अंडरग्राउंड कोल गैसीफिकेशन (UGC) - यह  कोयले को गैस में परिवर्तित करने की एक तकनीक है जो खदानों की तली  में मौजूद होते है, जिसे कुओं के माध्यम से निकाला जा रहा है।
  • इस परियोजना में 20,000 करोड़ रु का निवेश किया जाएगा।भारत ने 2030 तक लक्ष्य निर्धारित किया है कि यह चार प्रमुख परियोजनाओं के तहत 100 मिलियन टन कोयला गैसीकरण का उत्पादन किया जाएगा। 

भारत में उर्वरक की खपत:

  •  FY20 में भारत की उर्वरक खपत लगभग 61 मिलियन टन थी, जिसमें से 55% यूरिया था और अनुमान है कि वित्त वर्ष 2015 में इसमें 5 मिलियन टन की वृद्धि हुई थी।
    •  चूँकि गैर-यूरिया (MoP, DAP, जटिल) किस्मों की लागत अधिक होती है, कई किसान वास्तव में ज़रूरत से ज़्यादा यूरिया का उपयोग करना पसंद करते हैं
    • सरकार ने यूरिया की खपत को कम करने के लिये कई उपाय किये हैं । इसने गैर-कृषि उपयोगों के लिये यूरिया के अवैध प्रयोग को कम करने के लिये नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत की । इसने जैविक और शून्य-बजट खेती को बढ़ावा दिया ।
  • यूरिया पर सब्सिडी: केंद्र प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन की लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करता है और सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचने की  आवश्यकता होती है।
  • गैर-यूरिया उर्वरकों के MRP को कंपनियों द्वारा नियंत्रित या नियत किया जाता है।  हालाँकि केंद्र इन पोषक तत्त्वों पर प्रतिटन सब्सिडी का भुगतान यह सुनिश्चित करने के लिये करता है कि उनकी कीमत “उचित स्तर” बनी रहे। 
  • गैर-यूरिया उर्वरकों के उदाहरण: Di-अमोनियम फॉस्फेट (DAP), पोटैशियम क्लोराइड (MOP)

स्रोत-पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2021

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की वर्ष 2021 की वार्षिक रिपोर्ट में भारत को दुसरे वर्ष भी यानी 2020 में भी धार्मिक स्वतंत्रता  का सर्वाधिक उल्लंघन करने के लिये  ‘कंट्रीज़ ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न’ (प्रमुख चिंता वाले देशों) की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

USCIRF के बारे में:

  • USCIRF 'अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम' (International Religious Freedom Act-IRFA)- 1998 के तहत स्थापित एक स्वतंत्र, द्विदलीय अमेरिकी संघीय आयोग है। USCIRF अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निगरानी करता है 
  • यह अमेरिकी प्रशासन  के लिये एक सलाहकार निकाय है।
  • USCIRF की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट कैलेंडर वर्ष 2020 के दौरान 26 देशों में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन और प्रगति का आकलन करती है तथा अमेरिकी नीति के लिये स्वतंत्र सिफारिशें करती है।
  • इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में स्थित है।

रिपोर्ट के बारे में

  • रिपोर्ट का मुख्य फोकस देशों के दो समूहों पर है:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1998 (IFRA) के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के आधार पर देशों को विशेष चिंता वाले देश (Countries of Particular Concern- CPC) तथा विशेष  निगरानी सूची (Special Watch List- SWL) में नामित करने के लिये अमेरिकी विदेश विभाग के सचिव को सिफारिश करता है। 
    • स्पेशल वॉच लिस्ट (SWL) सूची में उन देशों को शामिल किया जाता है, जिन देशों की सरकारों द्वारा गंभीर रूप से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जाता है या  जिन पर ऐसा करने का आरोप है। हालाँकि इन देशों में अभी तक CPC  सूची में शामिल देशों के स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है।
  • CPC के रूप में नामित देशों में धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघनों को संबोधित करने के लिये IRFA अमेरिकी विदेश सचिव को विशिष्ट तथा लचीले नीतिगत निर्णय लेने की शक्तियाँ प्रदान करता है। इसमें प्रतिबंध लगाना, देशों को प्रदान की जाने वाली छूट को समाप्त करना आदि शामिल है।
  • यह रिपोर्ट USCIRF को वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन या अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की निगरानी के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों का उपयोग करने के लिये आज्ञापित (Mandated) है और अमेरिकी विदेश विभाग को नीतियाँ बनाने की सिफारिश करता है।

USCIRF की नवीनतम सिफारिशें:

  • विशेष चिंता वाले देश (CPC): 
    •  CPC सूची में शामिल देशों रूस, सीरिया और वियतनाम तथा भारत के लिये सिफारिश करता है।
    • CPC सूची में पहले से ही शामिल देशों और फिर से पदनाम के लिये USCIRF द्वारा अनुशंसित बर्मा, चीन, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और वियतनाम को CPC के रूप में नामित किये जाने की सिफारिश की गई है।
  • विशेष निगरानी सूची (SWL):
    • USCIRF वर्ष 2020 में SWL के लिये 15 देशों अफगानिस्तान, अल्जीरिया, अज़रबैजान, बहरीन, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, क्यूबा, मिस्र, इंडोनेशिया, इराक, कज़ाखस्तान, मलेशिया, निकारागुआ, सूडान, तुर्की और उज़्बेकिस्तान की सिफारिश करता है।
  • विशेष चिंता का विषय (EPCs):
    • "विशेष चिंता के विषय" (EPC) के रूप में यह सात गैर-राष्ट्र गतिविधियों के पुन:एकीकरण की सिफारिश करता है- अल शबाब, बोको हराम, हौथिस, तहरीर अल-शाम (HTS), ग्रेटर सहारा में इस्लामिक स्टेट (ISGS), जमात नस्र अल-इस्लाम वाल मुस्किमिन (JNIM) और तालिबान

भारत की स्थिति

भारत में चिंता संबंधी प्रमुख क्षेत्र:

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA): यह अधिनियम दक्षिण एशियाई देशों के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को कुछ विशिष्ट मापदंडों के आधार पर फास्ट-ट्रैक नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है, इस तरह इस अधिनियम को धार्मिक आधार पर भेदभाव पूर्ण माना जा रहा है।
  • दिल्ली दंगे: इस रिपोर्ट में फरवरी 2020 में दिल्ली दंगों के दौरान धार्मिक बहुसंख्यक आबादी द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों पर किये गए हमलों का भी उल्लेख किया गया है।
  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC): रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में कुछ विशिष्ट लोगों को शामिल न किये जाने के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, जो कि असम में बनाए जा रहे निरोध शिविरों से स्पष्ट है।
  • धर्मांतरण विरोधी कानून: धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद, भारत के 28 राज्यों में से लगभग एक-तिहाई राज्यों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के कथित वर्चस्व से धार्मिक बहुसंख्यकों की रक्षा के लिये धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किये हैं, जो कि देश में धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा उत्पन्न करते हैं।
  • अल्पसंख्यकों के विरुद्ध दुष्प्रचार और हिंसा में बढ़ोतरी: सोशल मीडिया और अन्य प्रकार के संचार माध्यमों का उपयोग मुस्लिमों, ईसाइयों और दलितों समेत विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध नफरत और दुष्प्रचार फैलाने के लिये किया जा रहा है। 
    • गोहत्या जैसे विषय अभी भी नीति-निर्माण के केंद्र में बने हुए हैं, उदाहरण के लिये दिसंबर माह में कर्नाटक ने मवेशियों के वध के लिये उनकी बिक्री और खरीद तथा उनके परिवहन पर जुर्माने और कारावास की सज़ा देने हेतु एक पूर्ववर्ती विधेयक में संशोधन किया था।
  • जम्मू-कश्मीर में धार्मिक स्वतंत्रता: मुस्लिम बहुल जम्मू और कश्मीर में आवागमन और शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों ने धार्मिक स्वतंत्रता को भी प्रभावित किया है, इन प्रतिबंधों के कारण धार्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण दिवसों के आयोजन और प्रार्थना के लिये एकत्रित होने पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है।
    • लगभग 18 महीनों तक इंटरनेट शटडाउन, जो कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में लागू किया गया सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन है और अन्य संचार प्रतिबंधों ने धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 
  • नागरिक समाज के लिये सीमित स्थान: सरकारी अधिकारियों द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों समेत वकीलों, मीडियाकर्मियों और शिक्षाविदों को हिरासत में लेने के लिये गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और इसी तरह के अन्य कानूनों का प्रयोग किया जा रहा है।
    • सितंबर 2020 में सरकार द्वारा गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) पर और अधिक प्रतिबंध लागू करते हुए विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत प्रशासनिक खर्चों के लिये विदेशी अंशदान की मात्रा को सीमित किया जाना और सरकार द्वारा नामित बैंक में ही खाता शुरू करना आदि शामिल हैं।

USCIRF की सिफारिशें

  • इसके तहत अमेरिकी प्रशासन को ‘धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन’ के मामलों में विशिष्ट भारतीय व्यक्तियों और संस्थाओं पर लक्षित प्रतिबंध लागू करने की सिफारिश की गई है।
  • रिपोर्ट में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निंदा करने और धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत करने वाले धार्मिक संगठनों और मानवाधिकार समूहों का समर्थन करने की बात की गई है।
  • अमेरिकी प्रशासन को ‘क्वाड’ जैसे विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर अंतर-विश्वास वार्ताओं और सभी समुदायों के अधिकारों को बढ़ावा देना चाहिये।

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता को एक मौलिक अधिकार के रूप में उल्लेख किया गया है। 
    • अनुच्छेद 25 (अंतःकरण की स्वतंत्रता एवं धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता)।
    • अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता)।
    • अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि हेतु करों के संदाय को लेकर स्वतंत्रता)।
    • अनुच्छेद 28 (कुछ विशिष्ट शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने को लेकर स्वतंत्रता)।
  • इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा से संबंधित प्रावधान हैं।

स्रोत: द हिंदू


जेंडर बायस एंड इनक्लूज़न इन एडवरटाइज़िंग इन इंडिया रिपोर्ट: यूनिसेफ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ-UNICEF) और ‘गीना डेविस इंस्टीट्यूट ऑन जेंडर इन मीडिया’ (GDI) ने "जेंडर बायस एंड इनक्लूज़न इन एडवरटाइज़िंग इन इंडिया रिपोर्ट" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

  • शोध से पता चला है कि भारत में विज्ञापन वैश्विक बेंचमार्क से बेहतर होते हैं क्योंकि लड़कियों और महिलाओं को स्क्रीन शेयर करने और बोलने के समय के मामले में प्रतिनिधित्व की समानता है, परंतु उनका चित्रण लिंगभेद की समस्या से ग्रस्त है।
  • GDI एक गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन है जो मीडिया में लिंग प्रतिनिधित्व पर शोध करता है और महिलाओं के लिये समान प्रतिनिधित्व की वकालत करता है।

प्रमुख बिंदु:

लिंग विशिष्टता:

  • हालाँकि लड़कियों और महिलाओं की भारतीय विज्ञापनों में मज़बूत उपस्थिति है, परंतु वे ज़्यादातर महिला उपभोक्ताओं को घरेलू और सौंदर्य उत्पाद बेचने से संबंधित पारंपरिक विज्ञापनों में अधिक भूमिकाएँ निभा रही हैं।
  • प्रभाव:
    • बच्चों की देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारी का पारंपरिक हस्तांतरण महिलाओं के पक्ष में असमानतापूर्ण है और घरेलू काम करने वाले पुरुषों तथा भुगतान कार्यबल में काम करने वाली महिलाओं हेतु सशक्त मॉडल की कमी शामिल है।

रूढ़िवादी शारीरिक और मानसिक क्षमता :

  • निर्णयन क्षमता:
    • पुरुष पात्रों को महिला पात्रों की तुलना में उनके भविष्य के बारे में निर्णय लेने की अधिक स्वतंत्रता है (7.3% पुरुष पात्र/ 4.8% महिला पात्र), वहीं महिला पात्रों को पुरुष पात्रों की तुलना में घरेलू निर्णयों को लेने में अधिक स्वतंत्रता है (2.0% महिला पात्र/ 4.9% पुरुष पात्र)।
  • रंगभेद:
    • भारतीय विज्ञापनों में उन दो-तिहाई महिला पात्रों (66.9%) को रोल दिया जाता है जिनकी त्वचा चमकदार या मध्यम-रूप से चमकदार है- पुरुष पात्रों की तुलना में 52.1 प्रतिशत अधिक।
    • यह समस्या इस भेदभावपूर्ण धारणा को आगे बढ़ाती है कि चमकदार त्वचा अधिक आकर्षक होती है।
  • वस्तुकरण:
    • महिला पात्रों को पुरुष पात्रों की तुलना में "आश्चर्यजनक/बहुत आकर्षक" के रूप में दिखाए जाने की नौ गुना अधिक संभावना होती है (0.6% की तुलना में 5.9%)।
    • महिला पात्रों को आमतौर पर पतले रूप में दिखाया जाता है, लेकिन भारतीय विज्ञापनों में पुरुष चरित्र कई प्रकार के शारीरिक आकार के होते हैं।
  • प्रभाव:
    • वास्तविक दुनिया में यौन वस्तुकरण के गंभीर परिणाम होते हैं। जितनी अधिक लडकियाँ और महिलाएँ यौन वस्तुकरण से प्रभावित होती हैं उनकी अवसाद की दर उतनी ही अधिक होती है एवं शरीर के प्रति घृणा और शर्म जैसी चीजें सामने आती हैं, और इससे उनके अंदर शारीरिक विकार और अन्य व्यक्तिगत प्रभाव उत्पन्न होते हैं।

सुझाव:

  • शासी निकाय:
    • लड़कियों और महिलाओं के समान प्रतिनिधित्व हेतु बेंचमार्क के साथ विज्ञापन के लिये दिशा-निर्देश तय करना और सकारात्मक लैंगिक मानदंडों को बढ़ावा देना, जिसमें नेतृत्त्व क्षमता और शारीरिक व्यवहार शामिल हैं।
    • त्वचा के रंग से और जाति/वर्ग से संबंधित दिशा-निर्देश सुनिश्चित करना।
    • महिलाओं और लड़कियों के प्रतिगामी सौंदर्य मानदंडों के बजाय सुंदरता के विविध आयामों को बढ़ावा देना।
    • ब्रांड इक्विटी को बढ़ावा देने और उपभोक्ता आधार के विस्तार में मदद करने के लिये विज्ञापनदाताओं को लैंगिकता, चमकदार त्वचा और जाति/वर्ग बेंचमार्क में विविधतापूर्ण प्रतिनिधित्व की वकालत करना।
  • लेखकों के लिये:
    • लेखकों को लैंगिक प्रतिनिधित्व के प्रति अधिक संवेदनशील और जागरूक होने की आवश्यकता है।

भारत में लैंगिक समानता:

  • भारत में लैंगिक समानता में पिछले वर्षों में विधायी और नीतिगत उपायों, लड़कियों और किशोरों के लिये सामाजिक-सुरक्षा योजनाओं और लैंगिक संवेदनशीलता पर आधारित बजट के परिणामस्वरूप वृद्धि हुई है।
  • भारत ने प्राथमिक शिक्षा के नामांकन में लैंगिक समानता हासिल की है और महिला साक्षरता को 54% (2001) से 66% (2011) तक बढ़ाया है।
  • भारत वर्ष 2020 में वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक में 153 देशों में 108वें स्थान पर है, वहीं वर्ष 2015 में यह 155 देशों में 130वें स्थान पर था।
  • भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहाँ 5 वर्ष तक की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में अधिक है।
  • लिंग आधारित भेदभाव और हिंसा का सामान्यीकरण एक चुनौती बनी हुई है। कई महिलाओं को सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जाति संबंधी भेदभावों का सामना करना पड़ता है।
  • किशोरियों को कमज़ोरियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें खराब पोषण की स्थिति, देखभाल का बढ़ता बोझ, जल्दी शादी, प्रारंभिक गर्भावस्था, प्रजनन स्वास्थ्य और सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दे शामिल हैं, जबकि 56% किशोरियाँ एनीमिया से ग्रसित हैं।

आगे की राह:

  • विज्ञापनों में महिलाओं की गलत व्याख्या और अन्य हानिकारक परंपराएँ महिलाओं और युवा लड़कियों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। हालाँकि भारतीय विज्ञापनों में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व है, फिर भी वे रंगभेद और घर से बाहर रोज़गार पाने की आकांक्षा के मुद्दे पर कमज़ोर स्थिति में हैं।
  • इन विज्ञापनों में महिलाओं की भूमिका में स्पष्ट असमानता को ध्यान में रखकर समतामूलक समाज स्थापित किया जाना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू