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डेली न्यूज़

  • 23 Feb, 2023
  • 57 min read
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भारत के प्रमुख पत्तन


भारतीय अर्थव्यवस्था

सागर परिक्रमा

प्रिलिम्स के लिये:

सागर परिक्रमा, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, पाक खाड़ी योजना, मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (FIDF)।

मेन्स के लिये:

भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र की स्थिति, भारत में मत्स्य क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?  

मत्स्य विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड ने 19 फरवरी, 2023 को सूरत, गुजरात में सागर परिक्रमा चरण III कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

प्रमुख बिंदु:  

  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मत्स्य पालन से संबंधित विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी का प्रसार करना, सतत् संतुलन पर ध्यान देने के साथ उत्तरदायित्त्वपूर्ण मत्स्य पालन को बढ़ावा देना और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा करना है। 
  • इस कार्यक्रम के पहले चरण की शुरुआत मार्च 2022 को मांडवी से की गई थी और इसका समापन 6 मार्च, 2022 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था।
  • इस अवसर पर मछुआरों और मत्स्य पालन से जुड़े लोगों में किसान क्रेडिट कार्ड वितरित किये गए थे।
  • साथ ही सतपती मछली बाज़ार का उद्घाटन अत्याधुनिक मानकों के अनुरूप किये जाने की भी घोषणा की गई थी।

सागर परिक्रमा:

  • परिचय: 
    • यह सभी मछुआरों, मत्स्य किसानों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये पूर्व-निर्धारित समुद्री मार्ग के माध्यम से सभी तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में आयोजित की जाने वाली एक नेविगेशन यात्रा है। 
  • महत्त्व: 
    • यह राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा और तटीय मछुआरा समुदायों की आजीविका एवं समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा हेतु समुद्री मत्स्य संसाधनों के उपयोग के साथ स्थायी संतुलन पर ध्यान केंद्रित करेगा। 

भारत में मत्स्य क्षेत्र की स्थिति:

  • परिचय:  
    • भारत विश्व में जलीय कृषि के माध्यम से मछली का उत्पादन करने वाला दूसरा प्रमुख देश है।
    • भारत विश्व में मछली निर्यातक चौथा सबसे बड़ा देश है क्योंकि यह वैश्विक मछली उत्पादन में 7.7% का योगदान देता है।
      • इसके अलावा भारत दुनिया में अंतर्देशीय मछली उत्पादन में पहले स्थान पर और समग्र मछली उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। 
    • वर्तमान में यह क्षेत्र देश में 2.8 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है। 
  • मत्स्य क्षेत्र से संबंधित पहल: 
  • भारत के मत्स्य क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ: 
    • अवैध, असूचित और अनियमित (Illegal, Unreported and Unregulated- IUU) मत्स्य पालन: IUU मत्स्यन भारत के मत्स्य क्षेत्र में एक बड़ी समस्या है और अक्सर इसका पता नहीं चल पाता है।  
      • IUU माध्यम द्वारा मछली पकड़ने से मछलियों के स्टॉक में गिरावट आ सकती है और यह वैध मछुआरों को भी हानि पहुँचा सकता है। 
    • इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण सुविधाओं और परिवहन जैसे पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप मत्स्य उत्पादन के बाद नुकसान उठाना पड़ता है और उच्च मूल्य वाले बाज़ारों तक पहुँच सीमित हो जाती है।
    • क्रेडिट तक सीमित पहुँच: भारत में छोटे पैमाने के मछुआरे अक्सर क्रेडिट हासिल करने के लिये संघर्ष करते हैं, जो व्यवसायों में निवेश करने और आजीविका में सुधार करने की उनकी क्षमता में बाधा डालता है।
    • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन भारत के मत्स्य क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है, जिससे मछली वितरण में परिवर्तन हो रहा है और मछली प्रजनन दर प्रभावित हो रही है।
    • यह चक्रवात और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को भी बढ़ाता है, जो मछली पकड़ने वाली नौकाओं और बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकता है।

आगे की राह

  • निरंतर मछली पकड़ने की प्रथाओं को बढ़ावा देना: सरकार मत्स्यन की अत्याधुनिक तकनीकों को बढ़ावा देकर एवं अत्यधिक मछली पकड़ने से बचने हेतु कोटा और प्रतिबंध व्यवस्था सुनिश्चित कर स्थायी मत्स्यन की प्रथाओं को बढ़ावा दे सकती है। इससे मछली के स्टॉक को दीर्घावधि तक बनाए रखने के साथ मछुआरों की आजीविका की रक्षा करेगा।
  • IUU मत्स्य पालन विनियमों को सुदृढ़ करना: सरकार को अवैध, असूचित और अनियमित मत्स्यन की घटनाओं को रोकने के लिये नियमों को मज़बूत करना चाहिये। इसमें मछली पकड़ने वाली नौकाओं की उपग्रह निगरानी और उल्लंघन करने वालों के लिये दंड जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, प्रसंस्करण संयंत्रों और परिवहन जैसे बुनियादी ढाँचे में निवेश से मत्स्य उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा नुकसान को कम किया जा सकेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)

  1. कृषि संपत्तियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी 
  2. कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद 
  3. खेतिहर परिवारों की उपभोग आवश्यकता 
  4. फसल के बाद का खर्च 
  5. पारिवारिक आवास का निर्माण एवं ग्राम कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


प्रश्न. ‘नीली क्रांति’ को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्य पालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (मुख्य परीक्षा- 2018)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय इतिहास

कीलादी निष्कर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

कीलादी निष्कर्ष, संगम युग

मेन्स के लिये:

कीलादी खोज और संगम युग का महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने संगम युग स्थल पर खुदाई के पहले दो चरणों के दौरान निष्कर्षों और उनके महत्त्व पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है। 

  • इसके अतिरिक्त शिवगंगा में कीलादी साइट संग्रहालय का भी निर्माण हो रहा है, जिसमें अब तक खोजी गई 18,000 से अधिक महत्त्वपूर्ण कलाकृतियाँ प्रदर्शित की जाएंगी।

कीलादी के बारे में मुख्य तथ्य:

  • कीलादी दक्षिण तमिलनाडु के शिवगंगा ज़िले की एक छोटी-सी बस्ती है। यह मंदिरों के शहर मदुरै से लगभग 12 किमी. दक्षिण-पूर्व में वैगई नदी के किनारे स्थित है। 
  • वर्ष 2015 से यहाँ की गई खुदाई से साबित होता है कि तमिलनाडु में वैगई नदी के तट पर संगम युग में एक शहरी सभ्यता मौजूद थी। 

प्रमुख निष्कर्ष: 

  • ASI द्वारा पहले की तीन सहित खुदाई के आठ चरणों में साइट पर 18,000 से अधिक कलाकृतियों का पता लगाया गया है और जल्द ही खोले जाने वाले संग्रहालय में इन अद्वितीय कलाकृतियों का प्रदर्शन किया जाएगा।
  • मिट्टी के बर्तनों के ढेर का पाया जाना मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग के अस्तित्त्व को दर्शाता है, जो ज़्यादातर स्थानीय रूप से उपलब्ध कच्चे माल से बनाए जाते हैं। यहाँ तमिल ब्राह्मी शिलालेखों के साथ 120 से अधिक बर्तनों की खोज की गई है।
    • कीलादी और अन्य स्थलों से खोजे गए एक हज़ार से अधिक खुदे हुए ठीकरे (बर्तन के टूटे हुए टुकड़े) स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हैं कि याह लिपि लंबे समय तक अस्तित्व में रही।
  • स्पिंडल वोर्ल्स, तांबे की सुइयाँ, टेराकोटा मुहर, धागे से लटकते पत्थर, टेराकोटा गोले और तरल मिट्टी के पात्र बुनाई उद्योग के विभिन्न चरणों को संदर्भित करते हैं। वहाँ रंगाई तथा काँच के मनके बनाने के उद्योग भी थे
  • सोने के आभूषण, तांबे की वस्तुएँ, अर्द्ध-कीमती पत्थर, पत्थर की चूड़ियाँ, हाथी दाँत की चूड़ियाँ और हाथी दाँत की कंघी कीलादी के लोगों की कलात्मक, सांस्कृतिक संपन्नता एवं समृद्ध जीवन-शैली को दर्शाती हैं। 
  • सुलेमानी और कार्नीलियन मनके वाणिज्यिक संबंधों के माध्यम से आयात का संकेत देते हैं, जबकि टेराकोटा और हाथी दाँत  से बने खेलने के पासे और हॉपस्कॉच (कूदने का बच्चों का खेल) जैसे साक्ष्य मनोरंजन के प्रति उनके शौक को दर्शाते हैं।

निष्कर्षों का महत्त्व:

  • संगम युग के साथ संबंध: 
    • संगम युग प्राचीन तमिलनाडु में इतिहास की एक अवधि है, जिसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक माना जाता था और इसका नाम तत्कालीन मदुरै के कवियों की प्रसिद्ध संगम सभाओं से लिया गया था।
    • ASI की एक हालिया रिपोर्ट ने इन पुरातात्त्विक निष्कर्षों के आधार पर संगम युग को 800 ईसा पूर्व तक पीछे पहुँचा दिया है।
    • कीलादी लौह युग (12वीं शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसा पूर्व) से आरंभिक ऐतिहासिक काल (छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व) तथा अनुवर्ती सांस्कृतिक विकास के बीच विलुप्त संबंधों को समझने के लिये यह महत्त्वपूर्ण साक्ष्य भी प्रदान कर सकता है।
  • सिंधु घाटी के साथ संभावित संबंध:
    • खोजी गई कीलादी कलाकृतियों ने शिक्षाविदों को वैगई घाटी सभ्यता के हिस्से के रूप में स्थल का वर्णन करने के लिये प्रेरित किया है। निष्कर्षों ने दोनों स्थानों के बीच 1,000 वर्षों के सांस्कृतिक अंतराल को स्वीकार करते हुए सिंधु घाटी सभ्यता के साथ तुलना पर चर्चा को भी पुनः सक्रिय किया है।
      • यह स्थान अवशिष्ट कड़ी के रूप में दक्षिण भारत के लौह युग की सामग्रियों से संपन्न है
    • तमिलनाडु राज्य पुरातत्त्व विभाग (TNSDA) के अनुसार, कीलादी में ईंट की संरचनाएँ, विलासिता की वस्तुएँ और आंतरिक तथा बाहरी व्यापार के प्रमाण एक शहरी सभ्यता की विशेषताएँ हैं।
    • इससे प्रारंभिक ऐतिहासिक काल के दौरान तमिलनाडु में शहरी जीवन और बस्तियों का प्रमाण मिलता है, इससे ऐसा बोध होता है कि यह एक व्यवसायी और परिष्कृत समाज था।

कीलादी को लेकर विवाद: 

  • सिंधु घाटी सभ्यता के साथ संभावित संबंधों की रिपोर्ट के बावजूद, तीसरे चरण में "कोई उल्लेखनीय खोज" नहीं हुई थी, जिसे उत्खनन खोजों के संबंध में कम सूचित करने के प्रयास के रूप में व्याख्यायित किया गया था।
  • मद्रास उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद तमिल सभ्यता के इतिहास के बारे में और अधिक जानने के लिये ASI के बजाय TNSDA चौथे चरण से खुदाई का कार्य कर रहा है।

संगम काल: 

  • 'संगम' शब्द संस्कृत शब्द संघ का तमिल रूप है जिसका अर्थ व्यक्तियों अथवा संस्था का समूह होता है।
  • तमिल संगम कवियों की एक अकादमी थी जो पांड्य राजाओं के संरक्षण में तीन अलग-अलग कालों और स्थानों पर विकसित हुई।
  • संगम साहित्य, जो ज़्यादातर तीसरे संगम से संकलित किया गया था, ईसाई काल की शुरुआत के दौरान लोगों की दैनंदिन स्थितियों के संबंध में विवरण प्रदान करता है।
    • यह सार्वजनिक और सामाजिक गतिविधियों जैसे- सरकार, युद्ध दान, व्यापार, पूजा, कृषि आदि से संबंधित धर्मनिरपेक्ष मामले से संबंधित है।
    • संगम साहित्य में प्रारंभिक तमिल रचनाएँ (जैसे तोल्काप्पियम), दस कविताएँ (पट्टुपट्टू), आठ संकलन (एट्टुटोगई) और अठारह लघु रचनाएँ (पदिनेंकिलकनक्कू) और तीन महाकाव्य शामिल हैं।

तमिल-ब्राह्मी लिपि: 

  • ब्राह्मी लिपि तमिलों द्वारा प्रयोग की जाने वाली सबसे पहली लिपि थी।
  • उत्तर प्राचीन और प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में उन्होंने एक नई कोणीय लिपि विकसित करना आरंभ किया, जिसे ग्रन्थ लिपि (Grantha Script) कहा जाता है, जिससे आधुनिक तमिल की उत्पत्ति हुई।

वैगई नदी: 

  • यह पूर्व की ओर बहने वाली नदी है।
  • वैगई नदी बेसिन कावेरी और कन्याकुमारी के बीच स्थित 12 बेसिनों में एक महत्त्वपूर्ण बेसिन है।
  • यह बेसिन पश्चिम में कार्डमम पहाड़ियों और पलानी पहाड़ियों से एवं पूर्व में पाक जलडमरूमध्य तथा पाक खाड़ी से घिरा है।
  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. दक्षिण भारत के राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से अधिक उपयोगी न होते हुए भी संगम साहित्य उस समय की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का अत्यंत प्रभावी शैली में वर्णन करता है। टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013)

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

आनुवंशिक सूचना और गोपनीयता

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक सूचना और गोपनीयता, DNA टेस्ट, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 14, गोपनीयता का अधिकार।

मेन्स के लिये:

आनुवंशिक सूचना और गोपनीयता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि बच्चों की सहमति के बिना डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) टेस्ट में उनकी आनुवंशिक जानकारी को गोपनीय रखने का अधिकार है।

  • यह फैसला एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर आया जिसने अपनी पत्नी पर व्यभिचारी संबंध का आरोप लगाते हुए अपने दूसरे बच्चे के पितृत्त्व पर सवाल उठाया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि इस आधार पर कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है क्योंकि माँ ने बच्चे को पितृत्त्व परीक्षण के अधीन करने से मना कर दिया।

फैसला:

  • आनुवंशिक जानकारी निजी और व्‍यक्तिगत होती है। यह किसी व्यक्ति की प्रकृति के विषय में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
  • यह व्यक्तियों को उनके स्वास्थ्य, गोपनीयता और पहचान के बारे में सूचित निर्णय लेने की अनुमति देता है।
  • तलाक की कार्यवाही में बच्चों को DNA परीक्षण से अपनी आनुवंशिक जानकारी की रक्षा करने का अधिकार है, क्योंकि यह गोपनीयता के उनके मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है।
  • यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत है।
  • यह ज़रूरी है कि कोई भी बच्चा घरेलू लड़ाई-झगड़े का केंद्र बिंदु न बने।
  • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, गोपनीयता, स्वायत्तता और पहचान के अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है।
    • यह कन्वेंशन यह स्वीकार करता है कि बच्चों सहित व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत सीमाओं को निर्धारित करने के लिये ज़िम्मेदार होते हैं और यह भी कि दूसरों का साथ पाने के लिये संबंधों को कैसे परिभाषित करते हैं।
    • साथ ही बच्चों को केवल बच्चे होने के कारण स्वयं के भाव को प्रभावित करने और समझने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिये।

भारत में आनुवंशिक सूचना की स्थिति: 

  • आनुवंशिक डेटा और गोपनीयता: 
    • ‘आनुवंशिक डेटा गोपनीयता’ किसी तीसरे पक्ष अथवा किसी और को उसकी अनुमति के बिना किसी व्यक्ति के आनुवंशिक डेटा का उपयोग करने से रोकती है।
    • प्रौद्योगिकी विकास ने गोपनीयता अधिकारों का उल्लंघन करते हुए DNA नमूनों से व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करना आसान बना दिया है।
    • हालाँकि आनुवंशिक अनुसंधान भविष्य के लिये कई संभावनाओं को उजागर करता है, लेकिन इसके गलत उपयोग के नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। किसी व्यक्ति के भौतिक अस्तित्व के ब्लूप्रिंट के रूप में आनुवंशिक डेटा के महत्त्व के कारण गोपनीयता की सुरक्षा काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • आनुवंशिक सूचना के लाभ: 
    • आनुवंशिक सूचना रोग, स्वास्थ्य और वंश के बारे में स्पस्ट विवरण प्रदान कर सकती है।
    • यह किसी व्यक्ति की अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता में वृद्धि कर सकती है, चिकित्सीय अनुसंधान में सहयता कर सकती है और रोग की रोकथाम के लिये शीघ्र हस्तक्षेप में सक्षम बना सकती है।
  • आनुवंशिक सूचना के नुकसान: 
    • आनुवंशिक डेटा के अंतर्गत किसी व्यक्ति के DNA और गुणसूत्र (Chromosomes) होते हैं और ये उसके स्वास्थ्य स्थिति तथा वंश के बारे में व्यक्तिगत जानकारी प्रदान कर सकते हैं। डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर आनुवंशिक परीक्षण हमेशा विश्वसनीय नहीं होते हैं और इसके परिणामस्वरूप निजी जानकारी का अनपेक्षित प्रकटीकरण हो सकता है। आनुवंशिक डेटा तक अनधिकृत पहुँच के नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं, इसके अंतर्गत नियोक्ताओं, बीमा प्रदाताओं और सरकार से अवांछित प्रतिक्रियाएँ आदि किसी व्यक्ति की गोपनीयता और जीवन को प्रभावित कर सकती हैं।
  • आनुवंशिक गोपनीयता की स्थिति: 
    • वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ एक हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति के साथ भेदभाव करने के मामले में फैसला सुनाया, जिसे स्वास्थ्य बीमा में आनुवंशिक विकार माना गया था।
    • आनुवंशिक भेदभाव अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो गारंटी प्रदान करता है कि सभी के साथ कानून के तहत उचित व्यवहार किया जाएगा।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य वनाम भारत संघ मामले में सर्वसम्मति से निर्णय किया कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
    • आनुवंशिक भेदभाव लगभग सभी देशों में अवैध है। वर्ष 2008 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने आनुवंशिक सूचना गैर-भेदभाव अधिनियम (Genetic Information Non-discrimination Act- GINA) पारित किया, यह एक ऐसा संघीय कानून है जो स्वास्थ्य देखभाल और नौकरियों में आनुवंशिक भेदभाव से लोगों को बचाता है।

आगे की राह 

  • कानूनी दृष्टिकोण से अधिक व्यापक गोपनीयता कानूनों और विनियमों को विशेष रूप से आनुवंशिक जानकारी के अनुरूप विकसित करने की आवश्यकता है। 
    • इसमें आनुवंशिक परीक्षण और डेटा साझा करने हेतु सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता के साथ ही अनधिकृत पहुँच या आनुवंशिक जानकारी के उपयोग हेतु दंड भी शामिल हो सकते हैं। 
  • एन्क्रिप्शन, सुरक्षित भंडारण और डेटा साझाकरण प्रोटोकॉल में तकनीकी प्रगति गोपनीयता सुरक्षा में सुधार के अवसर प्रदान कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये अंतर्निहित जानकारी प्रकट किये बिना एन्क्रिप्टेड जेनेटिक डेटा की गणना की अनुमति देने हेतु होमोमोर्फिक एन्क्रिप्शन तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  • नैतिक दृष्टिकोण से आनुवंशिक परीक्षण और डेटा साझाकरण के लाभों तथा जोखिमों के बारे में सार्वजनिक संवाद एवं शिक्षा को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण होगा।
    • इसमें पारदर्शिता, खुलापन और जवाबदेही को बढ़ावा देने के प्रयास शामिल हो सकते हैं कि कैसे आनुवंशिक डेटा एकत्रण, उपयोग और साझा किया जाता है, साथ ही आनुवंशिक परीक्षण एवं लाभों के लिये समान पहुँच को बढ़ावा देने की पहल भी शामिल है।

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसने अपने नागरिकों के लिये दत्त संरक्षण(डेटा प्रोटेक्शन) और प्राइवेसी के लिये ‘सामान्य दत्त संरक्षण विनियमन (जेनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन)’ नामक एक कानून अप्रैल 2016 में अपनाया और उसका 25 मई, 2018 से कार्यान्वयन शुरू किया? (2019)

(a) ऑस्ट्रेलिया
(b) कनाडा
(c) यूरोपीय संघ (यूरोपियन यूनियन) 
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (c)


प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया गया है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही और समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य के नीति निदेशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई  स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

RPA अधिनियम 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुसार, किसी चुनावी उम्मीदवार द्वारा योग्यता के संबंध में भ्रामक जानकारी प्रदान करना जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं है। 

  • न्यायालय के अनुसार, भारत में कोई व्यक्ति उम्मीदवार की शैक्षिक पृष्ठभूमि के आधार पर प्रतिनिधियों का चयन नहीं करता है।

मामला: 

  • वर्ष 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया था, जिसमें कहा गया था कि शैक्षणिक योग्यता से संबंधित झूठी जानकारी की घोषणा मतदाताओं के चुनावी अधिकारों के मुक्त अभ्यास में हस्तक्षेप नहीं करती है। इस संबंध में फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जानी थी।
  • याचिका में कहा गया है कि चुनावी उम्मीदवार धारा 123 (2) के तहत "भ्रष्ट आचरण" के तहत दोषी है क्योंकि अपनी उत्तरदायित्त्व (Liabilities) तथा नामांकन के अपने हलफनामे में शैक्षिक योग्यता सही होने का खुलासा न कर चुनावी अधिकारों के मुक्त अभ्यास में हस्तक्षेप किया है।
    • इसमें यह भी तर्क दिया कि धारा 123 (4) के तहत एक "भ्रष्ट आचरण" किया गया जिसमें उम्मीदवार द्वारा अपने चरित्र के बारे में तथ्य का झूठा बयान प्रकाशित करने और अपने चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने के लिये जान-बूझकर इसका उपयोग किया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए "अमान्य" घोषित कर दिया कि एक उम्मीदवार की योग्यता के बारे में गलत जानकारी प्रदान करना RPA, 1951 की धारा 123 (2) और धारा 123 (4) के तहत "भ्रष्ट आचरण" नहीं माना जा सकता है।

RPA, 1951 के तहत "भ्रष्ट आचरण":

  • अधिनियम की धारा 123: 
    • RPA अधिनियम की धारा 123 के अनुसार, "भ्रष्ट आचरण" वह है जिसमें एक उम्मीदवार चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये कुछ इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके अंतर्गत रिश्वत, अनुचित प्रभाव, झूठी जानकारी, और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारतीय नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच घृणा, "दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देना अथवा ऐसा प्रयास करना शामिल है।"
  • धारा 123 (2):
    • यह धारा 'अनुचित प्रभाव (undue influence)' से संबंधित है, जिसे "किसी भी चुनावी अधिकार के मुक्त अभ्यास के साथ उम्मीदवार (किसी परिस्थिति में उम्मीदवार द्वारा स्वयं अथवा कभी कभी उसके प्रतिनिधित्त्वकर्त्ताओं या संबद्ध व्यक्तियों) द्वारा किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित किया गया है।"
    • इसमें चोटिल करने/हानि पहुँचाने, सामाजिक अस्थिरता और किसी भी जाति अथवा समुदाय से निष्कासन की धमकी भी शामिल हो सकती है।
  • धारा 123 (4): 
    • यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली भ्रामक जानकारी के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने हेतु "भ्रष्ट आचरण" की परिभाषा को और व्यापक बनाता है।
    • अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक निर्वाचित प्रतिनिधि को कुछ अपराधों हेतु जैसे- भ्रष्ट आचरण के आधार पर, चुनाव खर्च घोषित करने में विफल रहने पर और सरकारी अनुबंधों या कार्यों में संलग्न होने का दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

अतीत में न्यायालय ने जिन प्रथाओं को भ्रष्ट आचरण के रूप में माना: 

  • अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन केस: 
    • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन मामले में माना कि धारा 123 (3) के अनुसार (जो इसे प्रतिबंधित करता है) अगर उम्मीदवार के धर्म, जाति, वंश, समुदाय या भाषा के नाम पर वोट मांगे जाते हैं तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा।
  • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ:  
    • वर्ष 1994 में 'एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ' में  सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि RPA अधिनियम, 1951 की धारा 123 की उपधारा (3) का हवाला देते हुए धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण सख्ती से प्रतिबंधित है।  
  • एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य:
    • वर्ष 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 के 'एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य' फैसले पर पुनर्विचार करते हुए यह माना कि मुफ्त उपहारों के वादों को एक भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता है।
    • हालाँकि इस मामले पर अभी फैसला होना है।

जनप्रतिनिधित्त्व कानून 1951: 

  • प्रावधान: 
    • यह चुनाव के संचालन को नियंत्रित करता है।
    • यह सदनों की सदस्यता हेतु योग्यताओं और अयोग्यताओं को निर्दिष्ट करता है,
    • यह भ्रष्ट प्रथाओं और अन्य अपराधों को रोकने के प्रावधान करता है।
    • यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • महत्त्व: 
    • यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारु संचालन हेतु महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रतिनिधि निकायों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लगाता है, इस प्रकार भारतीय राजनीति को अपराध की श्रेणी से बाहर कर देता है।
    • अधिनियम में प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करने तथा चुनाव खर्च का लेखा-जोखा रखने की आवश्यकता होती है। यह प्रावधान सार्वजनिक धन के उपयोग या व्यक्तिगत लाभ हेतु शक्ति के दुरुपयोग में उम्मीदवार की जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि जैसे भ्रष्ट आचरणों पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करता है तथा किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता हेतु आवश्यक है।
    • अधिनियम के तहत केवल वे राजनीतिक दल जो RPA अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत हैं, चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने हेतु पात्र हैं, इस प्रकार राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को ट्रैक करने एवं चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये यह एक तंत्र प्रदान करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
  2. वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में देवीलाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। 
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है, बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।  

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • वर्ष 1996 में जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक उम्मीदवार द्वारा लड़ी जाने वाली सीटों की संख्या को 'तीन' से 'दो' तक सीमित करने के लिये संशोधित किया गया था। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • वर्ष 991 में देवीलाल ने तीन लोकसभा सीटों, सीकर, रोहतक और फिरोजपुर सीटों से चुनाव लड़ा। अतः कथन 2 सही है।
  • जब भी कोई उम्मीदवार एक से अधिक निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है और एक से अधिक निर्वाचन-क्षेत्रों पर विजयी होता है, तो उम्मीदवार को केवल एक निर्वाचन-क्षेत्र को बनाए रखना होता है, जिससे बाकी निर्वाचन-क्षेत्रों पर उपचुनाव कराने के लिये मजबूर होना पड़ता है। परिणामी रिक्ति के खिलाफ उपचुनाव आयोजित किये जाने से सरकारी खजाने, सरकारी श्रमशक्ति एवं अन्य संसाधनों पर अपरिहार्य वित्तीय बोझ पड़ता है। अतः कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैवविविधता

प्रिलिम्स के लिये:

UNCLOS, BBNJ, IUCN, ट्रीटी ऑफ द हाई सी।

मेन्स के लिये:

BBNJ संधि, संरक्षण।

चर्चा में क्यों?

अंतर-सरकारी सम्मेलन (Intergovernmental Conference- IGC) के वर्तमान सत्र (फरवरी-मार्च 2023) के दौरान यानी राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction- BBNJ) के IGC-5 में भारत ने सदस्य देशों से महासागरों और उनकी जैवविविधता के संरक्षण एवं बचाव के लिये प्रतिबद्ध रहने का आग्रह किया है।

  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के तहत BBNJ को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत बाध्यकारी साधन के रूप में शीघ्रता से पूरा करने हेतु उच्च महत्त्वाकांक्षी गठबंधन का समर्थन किया।

प्रमुख बिंदु 

  • वर्ष 2014 के बाद से कई दौर की अंतर-सरकारी वार्ताएँ चल रही हैं, जिनमें से सबसे हालिया फरवरी-मार्च 2023 में हुई।
  • कई प्रमुख मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद वार्ता अभी भी चल रही है और फंडिंग, बौद्धिक संपदा अधिकार तथा संस्थागत तंत्र जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई है।
  • जैवविविधता प्रबंधन हेतु भारत का दृष्टिकोण विश्व स्तर पर स्वीकृत तीन सिद्धांतों के अनुरूप है: संरक्षण, सतत् उपयोग और समान लाभ साझा करना।  

राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैवविविधता संधि (BBNJ):

  • "BBNJ संधि" जिसे "ट्रीटी ऑफ द हाई सी" के रूप में भी जाना जाता है, UNCLOS के ढाँचे के तहत राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैवविविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग पर एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • BBNJ अनन्य आर्थिक क्षेत्रों या देशों के राष्ट्रीय जल से परे खुले समुद्र को शामिल करता है।
    • इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के अनुसार, ये क्षेत्र "पृथ्वी की सतह का लगभग आधा" हैं।
    • इन क्षेत्रों को शायद ही विनियमित किया जाता है और इनकी जैवविविधता हेतु कम-से- कम जानकारी प्राप्त या खोज की जाती है, विदित है कि इनमें से केवल 1% क्षेत्र ही संरक्षण का अधीन हैं।
  • फरवरी 2022 में वन ओशन समिट में लॉन्च किया गया, राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैवविविधता को लेकर उच्च महत्त्वाकांक्षी गठबंधन उच्चतम राजनीतिक स्तर पर एक आम और महत्त्वाकांक्षी परिणाम हेतु BBNJ वार्ता में शामिल कई प्रतिनिधिमंडलों को एक साथ लाता है। 
  • वार्ता वर्ष 2015 में सहमत तत्त्वों के एक पैकेज के आसपास केंद्रित है, अर्थात्: 
    • राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैवविविधता का संरक्षण एवं सतत् उपयोग, विशेष रूप से एक साथ और समग्र रूप से समुद्री आनुवंशिक संसाधन, जिसमें लाभों के बँटवारे को लेकर प्रश्न शामिल हैं।
    • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों सहित क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन।
    • क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण।

BBNJ के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन की आवश्यकता: 

  • राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों में जैवविविधता महासागर के स्वास्थ्य, तटीय लोगों की भलाई एवं ग्रह की समग्र स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों में समुद्र का 95% हिस्सा शामिल है और मानवता को अमूल्य पारिस्थितिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक एवं खाद्य-सुरक्षा लाभ प्रदान करता है। 
    • हालाँकि ये क्षेत्र अब प्रदूषण, अतिदोहन, और जलवायु परिवर्तन के पूर्व से ही दिखाई देने वाले प्रभावों सहित बढ़ते खतरों के प्रति संवेदनशील हैं।
    • आने वाले दशकों में भोजन, खनिज या जैव प्रौद्योगिकी के लिये समुद्री संसाधनों की बढ़ती मांग इस समस्या को और बढ़ा सकती है।
  • गहरे समुद्री तल, जिसे सबसे कठिन निवास स्थान माना जाता है, में विलुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो रही है।
    • 184 प्रजातियों (मोलस्क की) का मूल्यांकन किया गया है, 62% को खतरे के रूप में सूचीबद्ध किया गया है: 39 गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं, 32 लुप्तप्राय हैं और 43 कमज़ोर हैं। फिर भी जमैका स्थित अंतर-सरकारी निकाय इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी, गहरे समुद्र में खनन अनुबंधों की अनुमति दे रही है। 
  • राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों में होने वाली जैवविविधता वैश्विक समुद्रों में एक महत्त्वपूर्ण संसाधन बनी हुई है, इसके 60% से अधिक हिस्से को अभी भी प्रबंधित किया जाना है और संरक्षण के उद्देश्य से एक कानूनी ढाँचे के साथ विनियमित किया जाना है।

निष्कर्ष:

BBNJ जैसे कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन को अपनाने से राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों में समुद्री जैवविविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मज़बूत प्रतिबद्धता प्रदर्शित होगी, साथ ही या समझौते के कार्यान्वयन के लिये स्पष्ट जनादेश प्रदान करेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. किसी तटीय राज्य को अपने प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई को आधार-रेखा से मापित, 12 समुद्री मील से अनाधिक सीमा तक अभिसमय के अनुरूप सुस्थापित करने का अधिकार है।
  2. सभी राज्यों, चाहे वे तटीय हों अथवा भूमि-बद्ध भाग हों, के जहाज़ों को प्रादेशिक समुद्र से होकर बिना किसी रोकटोक यात्रा का अधिकार होता है।
  3. अनन्य आर्थिक क्षेत्र का विस्तार उस आधार रेखा से से 200 समुद्री मील से अधिक नहीं होगा, जहाँ से प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई मापी जाती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या: 

  • किसी तटीय राज्य को अपने प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई को आधार-रेखा से मापित, 12 समुद्री मील से अनाधिक सीमा तक अभिसमय के अनुरूप सुस्थापित करने का अधिकार है। अतः कथन 1 सही है।
  • इस अभिसमय के इनोसेंट पैसेज इन द टेरीटोरियल सी (INNOCENT PASSAGE IN THE TERRITORIAL SEA) के तहत सभी राज्यों के जहाज़ों को प्रादेशिक समुद्र से होकर बिना किसी रोकटोक यात्रा का अधिकार होता है। अतः कथन 2 सही है।
  • अनन्य आर्थिक क्षेत्र विशिष्ट कानूनी शासन के अधीन प्रादेशिक समुद्र से परे के क्षेत्र है, अनन्य आर्थिक क्षेत्र का विस्तार उस आधार रेखा से 200 समुद्री मील से अधिक नहीं होगा, जहाँ से प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई मापी जाती है। अतः कथन 3 सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में 15% का योगदान देगा: IMF

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, सकल घरेलू उत्पाद, रूस-यूक्रेन युद्ध, विश्व असमानता रिपोर्ट 2022, विशेष आर्थिक क्षेत्र।

मेन्स के लिये:

भारत के आर्थिक उत्थान के महत्त्वपूर्ण कारक, सतत् आर्थिक विकास में बाधाएँ। 

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत अकेले वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में 15% का योगदान देगा तथा विश्व अर्थव्यवस्था के अनुरूप "उज्ज्वल स्थल” (Bright Spot) बना रहेगा। 

भारत के आर्थिक उत्थान के लिये महत्त्वपूर्ण कारक:

  • विकास की संभावनाएँ: भारत ऐसे समय में "उज्ज्वल स्थल” बना हुआ है जब IMF ने वर्ष  2023 को अर्थव्यवस्था के लिये कठिन समय होने का अनुमान लगाया है; वैश्विक विकास दर वर्ष 2022 के 3.4% से घटकर वर्ष 2023 में 2.9% हो गई है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 (अप्रैल 2023 से मार्च 2024) के लिये भारत की विकास दर विश्व की बाकी अर्थव्यवस्थाओं की तरह थोड़ी धीमी गति से 6.1% रहने का अनुमान है, किंतु यह वैश्विक औसत से अधिक है।  
      • इस तरह वर्ष 2023 में भारत वैश्विक विकास में लगभग 15% का योगदान देगा।
  • डिजिटलीकरण: IMF के अनुसार, भारत ने महामारी पर काबू पाने और रोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये डिजिटलीकरण का उपयोग किया है, जबकि देश की राजकोषीय नीति आर्थिक परिस्थितियों के लिये उत्तरदायी रही है।
  • हरित अर्थव्यवस्था में निवेश: देश के राजकोषीय उत्तरदायित्त्व को सार्वजनिक वित्त के एक सशक्त सहारे के माध्यम से माध्यम अवधि के ढाँचे में तब्दील कर दिया गया है।
    • इसके अलावा, भारत हरित अर्थव्यवस्था में निवेश कर रहा है, जिसमें अक्षय ऊर्जा भी शामिल है, जो देश को स्वच्छ ऊर्जा की ओर ले जाने की क्षमता रखती है।
  • पूंजीगत व्यय: पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.3% होगी, तथा वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 के मध्य 37% से अधिक की वृद्धि के बाद यह सबसे बड़ी छलांग होगी।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत युवाओं का देश है। प्रतिवर्ष श्रम शक्ति में 15 मिलियन लोग जुड़ते हैं। मज़बूत निवेश के परिणामस्वरूप रोज़गार का सृजन होता है, जो कि भारत के लिये बहुत लाभकारी है। महिलाएँ भारत के विकास यात्रा में अहम योगदान दे सकती हैं।

सतत् आर्थिक विकास को प्राप्त करने में बाधाएँ:

  • समकालीन भू-राजनीतिक मुद्दे: उभरते बाज़ार (भारत सहित) भू-राजनीतिक जोखिम का खामियाजा सहन करते हैं, जिसमें आपूर्ति शृंखला में मांग और आपूर्ति के बीच अंतर का बढ़ना भी शामिल है।
  • अन्य तरीकों, जैसे कि आपूर्ति और मांग के बीच अंतर का विस्तार, के अलावा भारत जैसे उभरते बाज़ार भू -राजनीतिक जोखिम के बोझ को झेलते हैं।
    • उदाहरण के लिये रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य शृंखला काफी प्रभावित हुई है।
  • हालिया समय में बेरोज़गार में वृद्धि: भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (Centre for Monitoring Indian Economy- CMIE) के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर लगभग 8% (दिसंबर 2022) है। ऐसा इसलिये है क्योंकि रोज़गार दर, GDP दर से काफी कम है।
    • काम करने में सक्षम लोगों में से केवल 40% श्रम बल वास्तव में कार्यरत है अथवा काम की तलाश कर रहा है, इसमें महिलाओं की भागीदारी कम है।
  • अमीर-गरीब के बीच अंतर में वृद्धि: 'विश्व असमानता रिपोर्ट 2022' के अनुसार, भारत की शीर्ष 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा है, जबकि निचले 50% के संबंध में यही आँकड़ा गिरकर अब राष्ट्रीय आय का 13% हो गया है।
    • भारत की असमानता ज़्यादातर अपवार्ड मोबिलिटी (यह इंगित करता है कि किसी व्यक्ति की सामाजिक आर्थिक स्थिति कितनी बार बदलती है) के अवसर की कमी के कारण होती है।
  • व्यापक व्यापार घाटा: भारत के निर्यात में गिरावट आई है, भारत के व्यापार घाटे के साथ जुलाई 2022 में विकसित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे अमेरिका की तरह) और उच्चतर वस्तुओं की कीमतों में मंदी के रुझान के कारण यह रिकॉर्ड 31 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।
    • पूंजी बहिर्वाह और बढ़ता चालू खाता घाटा भारतीय रुपए को काफी प्रभावित कर रहा है।

सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की दिशा में भारत के कदम:

  • आर्थिक विकास लक्ष्यों का निर्धारण: भारत का प्रदर्शन न केवल इस बात पर निर्भर करता है कि यह वर्तमान की चुनौतियों का कितनी अच्छी तरह से निवारण करता है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिये इसकी क्या तैयारियाँ हैं।
  • भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसके नीति विकल्प सुदृढ़ होने के साथ ही आधुनिक तकनीकी समाधान की संभावनाओं से परिपूर्ण हों। इसके लिये भारत के आर्थिक विकास उद्देश्यों की स्पष्टता हर सफल योजना की नींव है।
  • राष्ट्र की महत्त्वाकांँक्षाओं को दर्शाने हेतु इन उद्देश्यों का साहसिक, ऊर्जावान होना आवश्यक है।
  • भारत में विनिर्माण, भारत एवं विश्व हेतु 'ज़ीरो डिफेक्ट 'ज़ीरो इफेक्ट' पर विशेष ज़ोर देते हुए मेक इन इंडिया पहल को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • बैंकिंग क्षेत्र में भी सुधार की आवश्यकता है जो केवल बड़े पैमाने पर निर्माण के बजाय छोटे पैमाने के विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद कर सके।
  • भारतीय महिलाओं की क्षमता को बढ़ाना: शिक्षा और महिलाओं के वित्तीय एवं डिजिटल समावेशन में लैंगिक अंतर को समाप्त करना तथा बंधनों को खत्म करना प्राथमिकताएँ होनी चाहिये।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्रों को मज़बूत करना: विदेशी निवेश व निर्यात बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास को समर्थन देने हेतु अधिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones- SEZ) की आवश्यकता है।
    • SEZ पर बाबा कल्याणी समिति ने सिफारिश की है कि SEZ में MSME निवेश को MSME योजनाओं से जोड़कर तथा क्षेत्र-विशिष्ट MSME की अनुमति देकर बढ़ावा दिया जाए।

Prosperity

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. शहरी क्षेत्रों में श्रमिक उत्पादकता (2004-05 की कीमतों पर प्रति कर्मचारी रुपए) में वृद्धि हुई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें कमी हुई।
  2. कार्यबल में ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिशत हिस्सेदारी में सतत् वृद्धि हुई।
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
  4. ग्रामीण रोज़गार की वृद्धि दर में कमी आई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. क्या आप सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल ही में V-आकार के पुनरुत्थान  का अनुभव किया है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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