डेली न्यूज़ (22 Dec, 2021)



मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या

प्रिलिम्स के लिये:

मैनुअल स्कैवेंजिंग, मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित सरकारी योजनाएँ।

मेन्स के लिये:

मैनुअल स्कैवेंजिंग, इसकी व्यापकता और इससे निपटने के प्रयास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय’ ने लोकसभा में सूचित किया कि वर्ष 2021 के दौरान अब तक ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ के कारण 22 लोगों की मौत हो चुकी है।

  • ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के राष्ट्रीय संयोजक के अनुसार, वर्ष 2016 और वर्ष 2020 के बीच मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण देश भर में 472 मौतें दर्ज की गईं।
    • ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन हेतु एक आंदोलन है।
  • संविधान का अनुच्छेद-21 'गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार' की गारंटी देता है। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।

प्रमुख बिंदु

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग:
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों तथा सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • कुप्रथा के प्रसार का कारण:
    • उदासीन रवैया: कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने में असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया गया है।
    • आउटसोर्स की समस्या: कई स्थानीय निकायों द्वारा सीवर सफाई जैसे कार्यों के लिये निजी ठेकेदारों से अनुबंध किया जाता है परंतु इनमें से कई फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर" (fly-By-Night Operator), सफाई कर्मचारियों के लिये उचित दिशा-निर्देश एवं नियमावली का प्रबंधन नहीं करते हैं। 
      • ऐसे में सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर इन कंपनियों या ठेकेदारों द्वारा मृतक से किसी भी प्रकार का संबंध होने से इनकार कर दिया जाता है। 
    • सामाजिक मुद्दा: मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित है।
      • यह प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।  
      • ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993’ के तहत  देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है, हालाँकि इसके साथ जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी जारी है।  
        • यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है।
  • उठाए गए कदम:
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:
      • यह अधिनियम सभी रूपों में हाथ से मैला ढोने के निषेध को सुदृढ़ करने का प्रयास करता है और हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास को सुनिश्चित करता है।
    • अत्याचार निवारण अधिनियम
      • यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ विशिष्ट अपराधों को गैर-कानूनी घोषित करता है।
    • सफाई कर्मचारियों का राष्ट्रीय आयोग:
      • आयोग सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक गैर-सांविधिक निकाय के रूप में कार्य कर रहा है, जिसका कार्यकाल समय-समय पर सरकारी प्रस्तावों के माध्यम से बढ़ाया जाता है।
    • स्वच्छ भारत अभियान
      • स्वच्छ भारत अभियान 2 अक्तूबर, 2014 को सरकार द्वारा देश की सड़कों को साफ करने और सामाजिक बुनियादी अवसंरचना के निर्माण हेतु शुरू किया गया एक राष्ट्रीय अभियान है।
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
      • इसमें सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके पेश करने और सीवर से होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्कैवेंजर्स को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव है।
      • यह मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन होगा।
    • सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
      • इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
      • सरकार ने सभी राज्यों के लिये अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इस ‘चुनौती’ का शुभारंभ किया है, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
    • 'स्वच्छता अभियान एप':
      • इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान और जियोटैग करने के लिये विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सेनेटरी शौचालयों से प्रतिस्थापित किया जा सके तथा हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने के लिये उनका पुनर्वास किया जा सके।
    • सर्वोच्च न्ययालय का निर्णय:
      • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश के तहत सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 से सीवेज का काम करने के दौरान मारे गए हैं और साथ ही सभी के परिवारों को 10 लाख रुपए मुआवज़ा प्रदान करने के भी निर्देश दिये गए थे।

आगे की राह

  • उचित पहचान: राज्यों को दूषित कीचड़ की सफाई में संलग्न श्रमिकों की पहचान करनी चाहिये और उनका एक उचित रिकॉर्ड बनाना चाहिये।
  • स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना: 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वच्छ भारत मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है और स्मार्ट शहरों एवं शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने की वकालत की गई थी।
  • सामाजिक संवेदनशीलता: हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना आवश्यक है कि हाथ से मैला ढोने की यह प्रथा जाति व्यवस्था में अंतर्निहित है। 
  • सख्त कानून की आवश्यकता: यदि कोई कानून राज्य एजेंसियों पर स्वच्छता सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक वैधानिक दायित्व निर्धारित करता है, तो इसके माध्यम से अधिकारियों द्वारा श्रमिकों की अधिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय रुपए का मूल्यह्रास

प्रिलिम्स के लिये:

अवमूल्यन बनाम मुद्रा का मूल्यह्रास, भारतीय रुपए का मूल्यह्रास।

मेन्स के लिये:

भारतीय रुपए के वर्तमान मूल्यह्रास का कारण और प्रभाव।

चर्चा में क्यों? 

सितंबर-दिसंबर 2021 की तिमाही में भारतीय मुद्रा में 2.2% की गिरावट आई। मुद्रा का यह मूल्यह्रास (Depreciation of Currency) देश के शेयर बाज़ार से 4 बिलियन डॉलर मूल्य के वैश्विक फंडों के बाहर निकलने के कारण है।

  • मुद्रा के मूल्य में आई इस गिरावट ने भारतीय रुपए को एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बना दिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • मूल्यह्रास के बारे में:
    • मुद्रा का मूल्यह्रास/अवमूल्यन अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है।
    • रुपए के मूल्यह्रास का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का कमज़ोर होना।
      • इसका मतलब है कि रुपया अब पहले की तुलना में कमज़ोर है।.
      • उदाहरण के लिये पहले एक अमेरिकी डाॅलर 70 रुपए के बराबर हुआ करता था। अब एक अमेरिकी डाॅलर 76 रुपए के बराबर है जिसका अर्थ है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन हुआ है यानी एक डॉलर को खरीदने में अधिक रुपए लगते हैं।
  • भारतीय रुपए के मूल्यह्रास का प्रभाव:
    • रुपए में गिरावट भारतीय रिज़र्व बैंक के लिये एक दोधारी तलवार (नकारात्मक एवं सकारात्मक) की भांँति होती है। 
      • सकारात्मक प्रभाव: एक कमज़ोर मुद्रा महामारी के समय नए आर्थिक सुधार के बीच निर्यात को प्रोत्साहित कर सकती है।
      • नकारात्मक प्रभाव: यह आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम उत्पन्न करता है और केंद्रीय बैंक के लिये ब्याज दरों को रिकॉर्ड स्तर पर लंबे समय तक बनाए रखना मुश्किल बना सकता है।

मुद्रा का अभिमूल्यन और अवमूल्यन

  • लचीली विनिमय दर प्रणाली (Floating Exchange Rate System) में बाज़ार की ताकतें (मुद्रा की मांग और आपूर्ति) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं।
  • मुद्रा अभिमूल्यन : यह किसी अन्य मुद्रा की तुलना में एक मुद्रा के मूल्य में वृद्धि है।
    • सरकार की नीति, ब्याज दर, व्यापार संतुलन और व्यापार चक्र सहित कई कारणों से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है।
    • मुद्रा अभिमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को हतोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा देश की वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है।
  • मुद्रा अवमूल्यन: यह एक लचीली विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है।
    • आर्थिक बुनियादी संरचना, राजनीतिक अस्थिरता या जोखिम से बचने के कारण मुद्रा अवमूल्यन हो सकता है।
    • मुद्रा अवमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को प्रोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा संबंधित देश की वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है।

अवमूल्यन और मूल्यह्रास

  • सामान्य तौर पर अवमूल्यन और मूल्यह्रास प्रायः एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग किये जाते हैं।
  • उन दोनों का एक ही प्रभाव है- मुद्रा के मूल्य में गिरावट जो आयात को अधिक महँगा बनाती है, और निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
  • हालाँकि उन्हें लागू करने के तरीके में अंतर है।
  • अवमूल्यन तब होता है जब किसी देश का केंद्रीय बैंक अपनी विनिमय दर को एक निश्चित या अर्द्ध-स्थिर विनिमय दर में कम करने का निर्णय लेता है।
  • मूल्यह्रास तब होता है जब एक मुद्रा के मूल्य में अस्थायी विनिमय दर में गिरावट होती है।
  • भारतीय रुपए के वर्तमान मूल्यह्रास का कारण:
    • रिकॉर्ड-उच्च व्यापार घाटा: उच्च आयात के बीच नवंबर में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर लगभग 23 बिलियन डॉलर हो गया।
      • यह बढ़ता व्यापार घाटा तेल की कीमतों में उछाल से प्रेरित है।
    • आरबीआई और फेडरल रिज़र्व के बीच नीतिगत अंतर: अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बेहतर विकास और फेडरल रिज़र्व (यूएस सेंट्रल बैंक) द्वारा पेश किये गए अनुकूल ब्याज की उम्मीदों के अनुरूप USD को मज़बूत करना।
      • रिज़र्व बैंक अपने भंडार का निर्माण करने और किसी भी अस्थिरता के लिये खुद को तैयार करने हेतु लगातार डॉलर खरीद रहा है।
    • पूंजी का बहिर्वाह: शेयरों से विदेशी पूंजी के पलायन ने बेंचमार्क ‘एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स इंडेक्स’ को अक्तूबर 2021 में अब तक के उच्चतम स्तर से लगभग 10% कम कर दिया है।
    • ओमीक्रोन संबंधी चिंताएँ: वर्तमान में ओमीक्रोन वायरस संस्करण संबंधी चिंताएँ वैश्विक बाज़ारों में हलचल मचा रही हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कीटनाशक अनुप्रयोग में ड्रोन का प्रयोग

प्रिलिम्स के लिये:

ड्रोन, ड्राफ्ट ड्रोन नियम, 2021

मेन्स के लिये:

वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना, कृषि में ड्रोन तकनीक का उपयोग और उसके फायदे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि में ड्रोन के अनुप्रयोग हेतु मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedures-SOPs) जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

  • मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) के बारे में: कीटनाशक के इस्तेमाल के लिये ड्रोन विनियमन हेतु  SOP में शामिल हैं :
    • वैधानिक प्रावधान, उड़ान अनुमति, क्षेत्र दूरी संबंधी प्रतिबंध, वन वर्गीकरण, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों पर प्रतिबंध, ड्रोन का पंजीकरण, सुरक्षा बीमा, पायलट प्रमाणन, संचालन योजना, हवाई उड़ान क्षेत्र, मौसम की स्थिति जैसे महत्त्वर्ण पहलू।
    • ऑपरेशन से पहले, बाद में और ऑपरेशन के दौरान आपातकालीन प्रबंधन योजना के लिये मानक संचालन प्रक्रियाएँ
  • कीटनाशकों के अनुप्रयोग में ड्रोन प्रौद्योगिकी:
    • कीटनाशक: कीटनाशक बड़ी संख्या में कीटों से फसलों की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण कृषि आदानों में से एक हैं तथा ये आवश्यक इनपुट के रूप में कार्य करते हैं जिससे किसानों को पर्याप्त लाभ मिलता है।
    • कीटनाशक का पारंपरिक छिड़काव: कीटनाशक स्प्रे के पारंपरिक तरीकों के कारण कई समस्याएँ पैदा होती हैं जैसे:
      • रसायनों का अत्यधिक प्रयोग स्प्रे की एकरूपता को कम करता है तथा अनावश्यक जमाव प्रदान करता है।
      • इनके अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप जल और मिट्टी प्रदूषण के साथ-साथ कीटनाशकों पर अधिक खर्च होता है।
      • पारंपरिक मैनुअल स्प्रेयर के साथ ऑपरेटरों की सुरक्षा भी एक प्रमुख चिंता का विषय है।
    • ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग: आधुनिक कृषि तकनीक के रूप में ड्रोन तकनीक के उपयोग का उद्देश्य कीटनाशकों और उर्वरक छिड़काव के माध्यम से उत्पादन को अधिक कुशल बनाना है।
      • इसका इस्तेमाल कृषि के कई क्षेत्रों में किया जा सकता है तथा यह न केवल क्षेत्र के भीतर रसायनों के समग्र उपयोग में कमी को सुनिश्चित करेगा बल्कि ऑपरेटरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखेगा।
  • कृषि में ड्रोन प्रौद्योगिकी के अन्य उपयोग और लाभ:
    • फसल निगरानी: ड्रोन मल्टी-स्पेक्ट्रल तथा फोटो कैमरों जैसी कई विशेषताओं से सुसज्जित हैं।
      • ड्रोन का उपयोग किसी भी वनस्पति या फसल क्षेत्र जो खरपतवार संक्रमण और कीटों से प्रभावित है, के स्वास्थ्य का आकलन करने के लिये किया जा सकता है।
      • इष्टतम पोषक तत्त्व वितरण: एक आकलन के आधार पर संक्रमण से लड़ने हेतु आवश्यक रसायनों की सटीक मात्रा को  छिड़काव किया जा सकता है इस प्रकार किसान के लिये समग्र लागत का अनुकूलन किया जा सकता है।
      • इससे वर्ष 2022 तक किसान की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी।
    • बेहतर फसल प्रबंधन: कई स्टार्ट-अप्स द्वारा ड्रोन प्लांटिंग सिस्टम भी विकसित किये गए हैं, जो ड्रोन को पॉड्स और मिट्टी में महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों को स्प्रे करने की अनुमति देती है। 
      • इस प्रकार यह तकनीक लागत को कम करने के अलावा फसल प्रबंधन की निरंतरता और दक्षता को बढ़ाती है।
      • इससे कृषि क्षेत्र की उत्पादकता के साथ-साथ दक्षता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
      • कृषि में ड्रोन का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोज़गार प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर भी दे सकता है।

भारत में ड्रोन विनियमन हेतु नियम:

स्रोत: पीआईबी


बहुराज्य सहकारी समितियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

बहुराज्यीय सहकारिता, संविधान (97वें संशोधन) अधिनियम, 2011, सहकारिता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

बहु राज्य सहकारी समितियाँ (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 में खामियाँ।

चर्चा में क्यों?

केंद्र ने "अधिनियम में खामियों को दूर करने" के लिये बहु राज्य सहकारी समितियाँ  (MSCS) अधिनियम, 2002 में संशोधन करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • बहु राज्य सहकारी समितियाँ (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के बारे में:
    • बहु राज्य सहकारी समितियाँ: हालाँकि सहकारी समितियाँ एक राज्य का विषय है, लेकिन कई समितियाँ जैसे कि चीनी और दूध बैंक, दूध संघ आदि हैं जिनके सदस्य व संचालन के क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं।
      • उदाहरण के लिये कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा पर अधिकांश चीनी मिलें दोनों राज्यों से गन्ना खरीदती हैं।
      • महाराष्ट्र में ऐसी सहकारी समितियों की संख्या सबसे अधिक 567 है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (147) और नई दिल्ली (133) में हैं।
      • ऐसी सहकारी समितियों को संचालित करने के लिये MSCS अधिनियम पारित किया गया था।
    • कानूनी क्षेत्राधिकार: उनके निदेशक मंडल में उन सभी राज्यों का प्रतिनिधित्त्व होता है जिनमें वे काम करते हैं।
      • इन समितियों का प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रण केंद्रीय रजिस्ट्रार के पास होता है और कानून यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार का कोई भी अधिकारी उन पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकता है।
      • केंद्रीय रजिस्ट्रार का विशेष नियंत्रण राज्य के अधिकारियों के हस्तक्षेप के बिना इन समितियों के सुचारु संचालन की अनुमति देने के लिये होता था।
  • संबद्ध चिंताएँ:
    • नियंत्रण और संतुलन की कमी: राज्य-पंजीकृत समाजों की प्रणाली में प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु कई स्तरों पर जाँच और संतुलन शामिल है, जबकि यह बहु-राज्य समाजों के मामले में मौज़ूद नहीं हैं।
      • केंद्रीय रजिस्ट्रार केवल विशेष परिस्थितियों में ही सोसायटियों के निरीक्षण की अनुमति दे सकता है।
      • आगे की जाँच समितियों को पूर्व सूचना देने के बाद ही की जा सकती है।
    • केंद्रीय रजिस्ट्रार का कमज़ोर संस्थागत ढाँचा: केंद्रीय रजिस्ट्रार का ज़मीनी बुनियादी ढाँचा कमज़ोर होने के साथ-साथ राज्य स्तर पर कोई अधिकारी या कार्यालय भी नहीं है तथा ज़्यादातर काम या तो ऑनलाइन या पत्राचार के माध्यम से किया जाता है।
      • इसके कारण शिकायत निवारण तंत्र बहुत खराब हो गया है।
      • इससे कई उदाहरण सामने आए हैं जब क्रेडिट समितियों ने इन खामियों का फायदा उठाते हुए पोंजी योजनाएँ शुरू की हैं।
  • संभावित सुधार/संशोधन:
    • संस्थागत बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: केंद्र सरकार को विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के बाद समाजों के बेहतर शासन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक संस्थागत बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना चाहिये। उदाहरण के लिये:
      • जनशक्ति में वृद्धि।
      • पारदर्शिता लाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
    • शामिल राज्य: ऐसी समितियों का प्रशासनिक नियंत्रण राज्य आयुक्तों में निहित होना चाहिये।

भारत में सहकारिता

  • परिभाषा
    • अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता गठबंधन (International Cooperative Alliance- ICA), सहकारिता (Cooperative) को "संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सामान्य ज़रूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु स्वेच्छा से एकजुट व्यक्तियों के स्वायत्त संघ" के रूप में परिभाषित करता है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 द्वारा भारत में काम कर रही सहकारी समितियों के संबंध में नया भाग- IXB जोड़ा गया।
      • संविधान के भाग III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में "संघ और संगठन" के बाद "सहकारिता" शब्द जोड़ा गया था।
        • यह सहकारी समितियाँ बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार (Fundamental Right) का दर्जा प्रदान करता है।
      • राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (DPSP- भाग IV) में "सहकारी समितियों के प्रचार" के संबंध में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
    • जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने 97वें संशोधन अधिनियम, 2011 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था।
      • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, भाग IX B (अनुच्छेद 243ZH से 243ZT) ने अपने सहकारी क्षेत्र पर राज्य विधानसभाओं की ’अनन्य विधायी शक्ति’ को ‘महत्त्वपूर्ण और पर्याप्त रूप से प्रभावित’ किया है।
      • साथ ही 97वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किये बिना संसद द्वारा पारित किया गया था।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राज्यों के पास विशेष रूप से उनके लिये आरक्षित विषयों पर कानून बनाने की विशेष शक्ति है (सहकारिता राज्य सूची का एक हिस्सा है)।
        • 97वें संविधान संशोधन के लिये अनुच्छेद 368(2) के तहत कम-से-कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता है।
        • चूँकि 97वें संविधान संशोधन के मामले में अनुसमर्थन नहीं किया गया था, इसलिये इसे रद्द कर दिया गया।
        • इसने भाग IX B के प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा, जो ‘बहु-राज्य सहकारी समितियों’ (MSCS) से संबंधित हैं।
        • इसने कहा कि ‘बहु-राज्य सहकारी समितियों’ का विषय केवल एक राज्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसमें विधायी शक्ति भारत संघ की होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस