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शासन व्यवस्था

नए सहकारिता मंत्रालय का गठन

  • 07 Jul 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सहकारिता,  भारत शासन अधिनियम 1935, मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार  

मेन्स के लिये:

भारत में सहकारिता से संबंधित प्रावधान और इसकी आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा 'सहकार से समृद्धि' (सहकारिता के माध्यम से समृद्धि) के दृष्टिकोण को साकार करने और सहकारिता आंदोलन को एक नई दिशा देने के लिये एक अलग 'सहकारिता मंत्रालय' बनाया है।

  • इस कदम से सरकार ने समुदाय आधारित विकासात्मक भागीदारी के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता का संकेत दिया है। यह वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2021 में की गई बजट घोषणा को भी पूरा करता है।

प्रमुख बिंदु:

सहकारिता मंत्रालय का महत्त्व:

  • यह देश में सहकारिता आंदोलन को मज़बूत करने के लिये एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढाँचा प्रदान करेगा।
  • यह सहकारी समितियों को जमीनी स्तर तक पहुँचाने वाले एक जन आधारित आंदोलन के रूप में मज़बूत करने में मदद करेगा।
  • यह सहकारी समितियों के लिये  'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' के लिये प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (MSCS) के विकास को सक्षम करने के लिये काम करेगा।

‘सहकारिता' के विषय में:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) के अनुसार, सहकारिता सहकारी व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ है जो संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये स्वेच्छा से एकजुट होते हैं।
  • सहकारी समितियाँ कई प्रकार की होती हैं जैसे उपभोक्ता सहकारी समिति (Consumer Cooperative Society), उत्पादक सहकारी समिति (Producer Cooperative Society), ऋण सहकारी समिति (Credit Cooperative Society), आवास सहकारी समिति (Housing Cooperative Society) और विपणन सहकारी समिति (Marketing Cooperative Society)।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने वर्ष 2012 को सहकारिता का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था।
  • भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसने विश्व के सबसे बड़े सहकारी आंदोलन की नींव रखी।
  • भारत में एक सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल बहुत प्रासंगिक है जहाँ प्रत्येक सदस्य ज़िम्मेदारी की भावना के साथ काम करता है।

सहकारिता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 ने भारत में काम कर रही सहकारी समितियों के संबंध में भाग IXA (नगरपालिका) के ठीक बाद एक नया भाग IXB जोड़ा।
  • संविधान के भाग-III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में "यूनियन (Union) और  एसोसिएशन (Association)" के बाद "सहकारिता" (Cooperative) शब्द जोड़ा गया था। यह सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार का दर्जा देकर सहकारी समितियाँ बनाने में सक्षम बनाता है।
  • राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (Directive Principles of State Policy-भाग IV) में "सहकारी समितियों के प्रचार" के संबंध में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया था।

भारत में सहकारी आंदोलन

स्वतंत्रता पूर्व भारत में सहकारी आंदोलन:

  • सहकारिता की शुरुआत सबसे पहले यूरोप में हुई थी और ब्रिटिश सरकार में विशेष रूप से साहूकारों के उत्पीड़न से भारत में गरीब किसानों के दुखों को कम करने के उद्देश्य से इसे अपनाया गया। 
  • सहकारी समिति शब्द तब अस्तित्व में आया जब पुणे और अहमदनगर (महाराष्ट्र) के किसानों ने साहूकारों के खिलाफ एक आंदोलन चलाया, जो किसानों से अत्यधिक ब्याज दर वसूल रहे थे।
  • ब्रिटिश सरकार ने आगे चलकर तीन अधिनियम- दक्कन कृषि राहत अधिनियम (1879), भूमि सुधार ऋण अधिनियम (1883) और कृषक ऋण अधिनियम (1884) पारित किये।
    • वर्ष 1903 में बंगाल सरकार के सहयोग से बैंकिंग में पहली क्रेडिट सहकारी समिति का गठन किया गया था। इसे ब्रिटिश सरकार के फ्रेंडली सोसाइटीज़ एक्ट ( Friendly Societies Act) के तहत पंजीकृत किया गया था।
  • लेकिन सहकारी साख समिति अधिनियम, 1904 के अधिनियमन ने सहकारिता को एक निश्चित संरचना और आकार प्रदान किया ।
  • वर्ष 1919 में, सहकारिता एक प्रांतीय विषय बन गया और भारत शासन अधिनियम, 1935 (Government of India Act, 1935) में प्रांतों का वर्गीकरण किया गया जो मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (Montague-Chelmsford Reforms) के तहत अपने स्वयं के सहकारी कानून बनाने हेतु अधिकृत हैं। 
    • वर्ष 1942 में ब्रिटिश भारत सरकार ने एक से अधिक प्रांतों की सदस्यता वाली सहकारी समितियों को कवर करने हेतु बहु-इकाई सहकारी समिति अधिनियम बनाया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सहकारी आंदोलन:

  • स्वतंत्रता प्रति के बाद सहकारिता पंचवर्षीय योजनाओं का एक अभिन्न अंग बन गई।
  • वर्ष 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) ने सहकारी कर्मियों के प्रशिक्षण एवं सहकारी विपणन समितियों की स्थापना के लिये सहकारिता पर एक राष्ट्रीय नीति की सिफारिश की थी।
  • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम अधिनियम, 1962 के तहत ‘राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम’ (NCDC) के रूप में एक सांविधिक निकाय की स्थापना की गई।
  • वर्ष 1984 में भारत की संसद द्वारा एक ही प्रकार के समाज को शासित करने वाले विभिन्न कानूनों को समाप्त करने हेतु बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम को लागू किया गया।
  • भारत सरकार द्वारा वर्ष 2002 में सहकारिता पर एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा की गई।

सहकारिता का महत्त्व:

  • यह उस क्षेत्र को कृषि ऋण और धन प्रदान करता है जहाँ राज्य तथा निजी क्षेत्र की पहुँच अप्रभावी है।
  • यह कृषि क्षेत्र के लिये रणनीतिक इनपुट प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता रियायती दरों पर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
  • यह उन गरीबों का एक संगठन है जो सामूहिक रूप से अपनी समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं।
  • यह वर्ग संघर्षों और सामाजिक दूरियों को कम करता है।
  • यह नौकरशाही की बुराइयों और राजनीतिक गुटबाज़ी को कम करता है;
  • यह कृषि विकास की बाधाओं को दूर करता है;
  • यह लघु और कुटीर उद्योगों के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करता है।

चुनौतियाँ: 

  • कुप्रबंधन एवं हेरफेर: 
    • व्यापक संख्या में सदस्यता कुप्रबंधन का एक कारण होती है जब तक कि ऐसी सहकारी समितियों के प्रबंधन हेतु कुछ सुरक्षित तरीकों का उपयोग नहीं किया जाता है। 
    • शासी निकायों के चुनावों में धन इतना शक्तिशाली उपकरण बन गया कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के शीर्ष पद सामान्यत: सबसे अमीर किसानों के पास जाते थे जिन्होंने अपने लाभ के लिये संगठन में हेरफेर किया था।
  • जागरुकता की कमी: 
    • लोगों को आंदोलन के उद्देश्यों, सहकारी संस्थाओं के नियमों और विनियमों के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है।
  • प्रतिबंधित क्षेत्रों तक पहुँच: 
    •  इनमें से अधिकांश समितियाँ कुछ सदस्यों तक ही सीमित हैं और उनका संचालन केवल एक या दो गाँवों तक ही सीमित है। 
  • कार्यात्मक क्षमता में कमी: 
    • सहकारी आंदोलन को प्रशिक्षित कर्मियों की अपर्याप्तता का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह 

  • प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ नए क्षेत्र उभर रहे हैं और सहकारी समितियाँ लोगों को उन क्षेत्रों तथा प्रौद्योगिकियों से परिचित कराने में एक बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।
  • सहकारिता आंदोलन का सिद्धांत गुमनाम रहते हुए भी सभी को एकजुट करना है। सहकारिता आंदोलन में लोगों की समस्याओं को हल करने की क्षमता है।
  • हालाँकि सहकारी समितियों में अनियमितताएँ हैं जिन्हें रोकने के लिये नियमों का और सख्त कार्यान्वयन होना चाहिये।
  • सहकारी समितियों को मज़बूत करने के लिये किसानों के साथ-साथ इनका भी बाज़ार से संपर्क होना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.

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