डेली न्यूज़ (22 Aug, 2020)



आसियान-भारत नेटवर्क ऑफ थिंक टैंक

प्रिलिम्स के लिये

आसियान

मेन्स के लिये

आसियान-भारत नेटवर्क ऑफ थिंक टैंक का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने आसियान- इंडिया नेटवर्क ऑफ थिंक टैंक (ASEAN-India Network of Think Tanks-AINTT) की 6वीं गोलमेज बैठक में भाग लिया। आसियान का संबंध दक्षिण पूर्व के एशियाई देशों के संघ से है। AINTT की स्थापना भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के मध्य सहयोग के भविष्यगामी निर्देशों पर नीतिगत इनपुट प्रदान करने के लिये की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • भारत द्वारा उठाए गए मुद्दे:

    • इस बैठक के दौरान भारत ने उन समस्याओं पर प्रकाश डाला जो COVID-19 महामारी से निपटने की सशक्त प्रतिक्रिया में बाधा उत्पन्न कर रही थी। इसमें कहा गया कि कई देशों और पुराने ढंग के बहुपक्षीय संगठनों के व्यक्तिगत व्यवहार ने वैश्विक महामारी के लिये एक सामूहिक प्रतिक्रिया को बाधित किया।
      • भारत ने अप्रत्यक्ष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों चीन और अमेरिका के बीच मतभेदों के कारण महामारी पर एक बयान जारी कर सकने की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की विफलता का भी जिक्र किया।
      • भारत के इस संदर्भ में अमेरिका द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर यह आरोप लगाते हुए कि उसने चीन के इशारे पर COVID-19 को एक महामारी घोषित करने में देरी की, अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से बाहर हो गया, का मुद्दा भी शामिल था।
    • भारत के अनुसार, COVID-19 महामारी के बाद दुनिया के समक्ष उत्पन्न होने वाली सबसे बड़ी चुनौतियों में केवल अर्थव्यवस्था की बिगड़ती स्थिति ही शामिल नहीं है, बल्कि इसमें समाज को पहुँची क्षति और शासन के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ भी शामिल हैं।
      • इस महामारी ने वैश्विक मुद्दों और विश्व व्यवस्था के भविष्य की दिशाओं पर एक बहस भी छेड़ दी है।
  • भारत द्वारा दिये गए सुझाव:

    • भारत ने आसियान देशों का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के समाधान खोजने के लिये व्यापार, राजनीति और सुरक्षा की वर्तमान गतिविधियों से परे जाकर सोचने की ज़रूरत है।
    • भारत ने COVID महामारी से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिये अधिक से अधिक सहयोग का आग्रह और सामूहिक समाधानों का आह्वान किया।
    • इस सहयोग के भाग के रूप में भारत ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के संदर्भ में उपयोग की जाने वाली सामरिक स्वायत्तता के विचार को अपनाने का आग्रह किया।
    • इसका तात्पर्य उत्पादन सुविधाओं को चीन से स्थानांतरित करने या चीनी सामान पर कम से कम निर्भरता बनाए रखने जैसे पक्षों से है, क्योंकि इस महामारी के दौरान संपूर्ण विश्व ने यह अनुभव किया है कि वह चीनी सामान पर बहुत अधिक निर्भर है जो कि उनकी आत्म निर्भरता के कमज़ोर पक्ष को उजागर करता है।
    • सामरिक स्वायत्तता को किसी राज्य की उस क्षमता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके आधार पर वह अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाता है और बगैर किसी बाधा के अधिमानित विदेश नीति को अपनाता है।

स्रोत: द हिंदू


प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, खादी और ग्रामोद्योग आयोग

मेन्स के लिये

स्वरोज़गार और ग्रामीण विकास से संबंधित प्रश्न

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ (Khadi and Village Industries Commission- KVIC) के नेतृत्व में 'प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम’ (Prime Minister Employment Generation Program- PMEGP) के कार्यान्वयन में काफी प्रगति देखने को मिली है।

प्रमुख बिंदु:

  • हाल ही में जारी आंकड़ों (1 अप्रैल से 18 अगस्त तक) के अनुसार, चालू वित्तीय वर्ष के पहले पाँच महीनों में इस कार्यक्रम के तहत परियोजनाओं की स्वीकृति में 44% की वृद्धि देखने को मिली है।
  • 1 अप्रैल के बाद से ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ द्वारा बैंकों से वित्तपोषण हेतु 1.03 लाख आवेदनों को मंज़ूरी दी गई है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में मात्र 71,556 परियोजनाओं को वित्तपोषण के लिये मंज़ूरी दी गई थी।
  • चालू वित्तीय वर्ष में 'प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम’ के तहत प्राप्त आवेदनों की संख्या में 5% की वृद्धि देखने को मिली है।
  • इस वर्ष 1 अप्रैल से 18 अगस्त के बीच 'प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम’ के तहत ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ को 1,78,003 आवेदन प्राप्त हुए जबकि इसी अवधि के दौरान वर्ष 2019 में 1,68,848 आवेदन प्राप्त हुए थे।

'प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (Prime Minister Employment Generation Program-PMEGP)

  • ‘प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम’ केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
  • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री रोज़गार योजना (PMRY) और ग्रामीण रोज़गार सृजन कार्यक्रम को मिलाकर की गई थी।
  • ‘केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय’ के तहत संचालित इस योजना का क्रियान्वयन ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ (Khadi and Village Industries Commission- KVIC) द्वारा किया जाता है।

उद्देश्य:

  • स्वरोज़गार से जुड़े नए उपक्रमों/सूक्ष्म उद्यमों/परियोजनाओं के विकास को बढ़ावा देकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना।
  • ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ युवाओं के पलायन को रोकने के लिये देश में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गार युवाओं और कलाकारों के लिये स्थायी रोज़गार का प्रबंध करना।

पात्रता:

  • कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो।
  • इस कार्यक्रम के तहत केवल नई इकाइयों की स्थापना के लिये सहायता प्रदान की जाती है।
  • इस कार्यक्रम के तहत विनिर्माण क्षेत्र में 10 लाख से अधिक की परियोजनाओं और सेवा क्षेत्र में 5 लाख से अधिक की परियोजनाओं के लिये शैक्षणिक योग्‍यता के तौर पर लाभार्थी को आठवीं कक्षा उत्‍तीर्ण होना अनिवार्य है।
  • इसके साथ ही ऐसे स्वयं सहायता समूह जिन्हें किसी अन्य सरकारी योजना का लाभ न मिल रहा हो, ‘सोसायटी रजिस्‍ट्रेशन अधिनियम, 1860’ के तहत पंजीकृत संस्‍थान, उत्‍पादक कोऑपरेटिव सोसायटी और चैरिटेबल ट्रस्‍ट आदिइसके तहत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

सहायता:

  • इसके तहत सामान्य श्रेणी (General Category) के लाभार्थी ग्रामीण क्षेत्रों में परियोजना लागत का 25% और शहरी क्षेत्रों 15% सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं।
  • इस कार्यक्रम के तहत एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक/महिला, भूतपूर्व सैनिक, दिव्यांग, पहाड़ी और सीमा क्षेत्र, आदि से संबंधित आवेदक ग्रामीण क्षेत्रों में परियोजना लागत का 35% और शहरी क्षेत्रों में परियोजना लागत की25% सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं।

परियोजनाओं की मंज़ूरी में आई तेज़ी का कारण:

  • ‘केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय’ द्वारा 28 अप्रैल, 2020 को PMEGP परियोजनाओं की मंज़ूरी के लिये ‘ज़िला स्तरीय कार्य दल समिति’ (District Level Task Force Committee- DLTFC) की भूमिका को समाप्त करने के लिये परियोजना से जुड़े दिशा निर्देशों में बदलाव किया गया था।
  • PMEGP परियोजनाओं की मंज़ूरी प्रक्रिया में ज़िला कलेक्टर की अध्यक्षता में DLTFC के शामिल होने से इसमें बहुत अधिक समय लगता था।
  • केंद्रीय मंत्रालय द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, खादी और ग्रामोद्योग आयोग को इस योजना के तहत भावी उद्यमियों के आवेदनों को मंज़ूरी देने और ऋण प्राप्त करने हेतु इसे बैंकों को अग्रेषित करने का कार्य सौंपा गया।
  • परियोजनाओं की मंज़ूरी में ज़िला कलेक्टरों की भूमिका को समाप्त करने से इस कार्यक्रम का तीव्र कार्यान्वयन सुनिश्चित संभव हुआ है।

परियोजनाओं का वित्तपोषण:

  • अगस्त और अप्रैल के बीच में वित्तपोषण बैंकों द्वारा 11,191 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई और आवेदकों को 345.43 करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में वितरित किये गए।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में इसी अवधि के दौरान 9,161 परियोजनाओं के लिये मात्र 276.09 करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में वितरित किये गए थे।

महत्त्व:

  • चालू वित्तीय वर्ष में PMEGP परियोजनाओं के कार्यान्वयन में हुई वृद्धि का महत्त्व और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस अवधि के दौरान देश के अधिकांश भागों में COVID-19 महामारी के कारण लॉकडाउन के कारण व्यावसायिक गतिविधियाँ प्रभावित हुई थीं।
  • बड़ी संख्या में परियोजनाओं को स्वीकृति देना स्थानीय स्तर पर विनिर्माण को बढ़ावा देते हुए लोगों के लिये स्वरोज़गार और स्थायी आजीविका का सृजन करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

चुनौतियाँ:

  • इस कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से ही इसे संरचनात्मक मुद्दों और ‘गैर निष्पादित संपत्तियों (Non-Performing Assets- NPA)’ की बढ़ती संख्या जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा है।
  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 से वित्तीय वर्ष 2018-19 के बीच इस कार्यक्रम के तहत 10,169 रुपए आवंटित किये गए थे जिनमें से 1,537 करोड़ रुपए NPA में बदल गए।
  • इस कार्यक्रम के तहत MSME क्षेत्र के उद्यमों में 15% NPA की दर इसी क्षेत्र में वैश्विक NPA दर (11%) से बहुत अधिक है।
  • आमतौर पर केंद्र सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के लिये वार्षिक रूप से एक स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किया जाता है, परंतु इस योजना में ऐसे किसी लक्ष्य को निर्धारित नहीं किया गया है


आगे की राह:

  • खादी और ग्रामोद्योग आयोग अध्यक्ष के अनुसार, बैंकों द्वारा धनराशि स्वीकृत करने की प्रक्रिया में तेज़ी लानी चाहिये जिससे अधिक-से-अधिक लोगों को इस योजना का लाभ मिल सके।
  • परियोजनाओं के क्रियान्वयन और रोज़गार सृजन के लिये समय पर पूंजी का वितरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • वित्तीय सहायता के साथ सरकार द्वारा उद्यमियों को सही बाज़ार और सही उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता प्रदान करने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिये।

स्रोत: पीआईबी


राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स, शेकतकर समिति

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स के विस्तार के प्रस्ताव से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों

हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने सीमावर्ती और तटीय ज़िलों में राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स (National Cadet Corps- NCC) के विस्तार के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में NCC के विस्तार की घोषणा की थी।
  • NCC का पुनर्गठन वर्ष 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल डी. बी. शेकतकर (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की समिति (Committee of Experts- CoE) की प्रमुख सिफारिशों में से एक था।

शेकतकर समिति

  • लेफ्टिनेंट जनरल डी. बी. शेकतकर (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में रक्षा मंत्रालय ने रक्षा व्यय के पुनर्संतुलन और सशस्त्र बलों की लड़ाकू क्षमता बढ़ाने के उपायों हेतु सिफारिश करने के लिये एक समिति का गठन किया था जिसने
  • दिसंबर 2016 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • कुछ सिफारिशें इस प्रकार हैं:
    • शांति क्षेत्रों में सैन्य फर्म्स और सेना के पोस्टल प्रतिष्ठानों को बंद करना।
    • सेना में लिपिक कर्मचारियों और ड्राइवरों की भर्ती के लिये मानकों में वृद्धि।
    • राष्ट्रीय कैडेट कोर की दक्षता में सुधार।
    • प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में अनिर्दिष्ट पूंजीगत बजट के आत्मसमर्पण करने की वर्तमान प्रथा के विरुद्ध आधुनिकीकरण के लिये पर्याप्त पूंजीगत व्यय उपलब्ध कराने हेतु एक रक्षा बजट नियमावली की सिफारिश की गई है।

अन्य तथ्य:

  • विस्तार: 173 सीमावर्ती और तटीय ज़िलों के कुल एक लाख कैडेटों को NCC में शामिल किया जाएगा इनमें से एक-तिहाई संख्या लड़कियों की होंगी।
    • विस्तार योजना का कार्यान्वयन राज्यों के साथ साझेदारी में किया जाएगा।
  • प्रशिक्षण और प्रशासन: सेना सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित NCC यूनिट्स, नौसेना तटीय क्षेत्रों में स्थित NCC यूनिट्स और भारतीय वायु सेना, वायु सेना स्टेशनों के करीब स्थित NCC यूनिट्स को प्रशिक्षण और प्रशासनिक सहायता उपलब्‍ध कराएगी।
  • लाभ: यह युवाओं को सशस्त्र बलों में अपना करियर बनाने हेतु आपदा प्रबंधन और कौशल प्रशिक्षण के क्षेत्र में प्रशिक्षित करेगा।
    • इससे नौसेना, तटरक्षक बलों (Coast Guard) और मर्चेंट शिपिंग एवेन्यू में करियर के प्रति युवाओं की रुचि बढ़ेगी।
    • सीमा क्षेत्र में प्रशिक्षित कैडेट विभिन्न रूपों में सशस्त्र बलों के लिये सहायक की भूमिका निभा सकते हैं।

राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स

  • NCC का गठन वर्ष 1948 (एच. एन. कुंजरु समिति-1946 की सिफारिश पर) में किया गया था, और इसकी जड़ें ब्रिटिश युग में गठित युवा संस्थाओं, जैसे-यूनिवर्सिटी कॉर्प्स या यूनिवर्सिटी ऑफिसर ट्रेनिंग कॉर्प्स (University Corps or University Officer Training Corps) की हैं।
  • NCC रक्षा मंत्रालय के दायरे में आता है और इसका नेतृत्त्व थ्री स्टार सैन्य रैंक के महानिदेशक करते हैं।
  • यह हाई स्कूल और कॉलेज स्तर पर कैडेटों का नामांकन करता है तथा विभिन्न चरणों के पूरा होने पर प्रमाण पत्र भी प्रदान करता है।
    • NCC कैडेट विभिन्न स्तरों पर बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और इसमें सशस्त्र बलों तथा उनके कामकाज से संबंधित शैक्षणिक पाठ्यक्रम की बुनियादी बातें भी शामिल हैं।
    • विभिन्न प्रशिक्षण शिविर, साहसिक गतिविधियाँ और सैन्य प्रशिक्षण शिविर NCC प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
  • महत्त्व: NCC कैडेटों ने वर्षों से विभिन्न आपातकालीन स्थितियों के दौरान राहत प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • चल रही COVID-19 महामारी के दौरान 60,000 से अधिक NCC कैडेटों को देश भर में ज़िला और राज्य प्राधिकरण के साथ समन्वय में स्वैच्छिक राहत कार्य के लिये तैनात किया गया है।

स्रोत-द हिंदू


अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना

प्रिलिम्स के लिये:

अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना

मेन्स के लिये:

अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘कर्मचारी राज्‍य बीमा निगम' (Employees' State Insurance Corporation- ESIC) की 182वीं बैठक के दौरान ‘अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना’ (Atal Bimit Vyakti Kalyan Yojana- ABVKY) के पात्रता मानदंडों में महत्त्वपूर्ण बदलाव किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • ESIC, द्वारा किये गए ये बदलाव COVID-19 महामारी द्वारा प्रभावित श्रमिकों को राहत प्रदान करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कर्मचारी राज्य बीमा निगम, एक बहुआयामी सामाजिक प्रणाली है जो श्रमिक आबादी को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में कार्य करती है।

अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना:

  • अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना का प्रारंभ 1 जुलाई, 2018 को किया गया था।
  • योजना के तहत बीमित व्यक्तियों को बेरोज़गारी की दशा में नकद मुआवजा प्रदान किया जाता है।
  • योजना का कार्यान्वयन ‘कर्मचारी राज्‍य बीमा निगम' द्वारा किया जा रहा है।
  • योजना को प्रारंभ में दो वर्ष के लिये पायलट आधार पर शुरू किया गया था।

ESIC बैठक में लिये प्रमुख निर्णय:

  • ABVKY, योजना को एक वर्ष की अवधि अर्थात 30 जून 2021 तक के लिये विस्तारित करने का निर्णय लिया है।
  • जिन श्रमिकों ने COVID-19 महामारी के दौरान अपना रोज़गार खो दिया है, उन्हें योजना के तहत विद्यमान शर्तों एवं राहत की राशि में छूट देने का निर्णय लिया गया है।
  • योजना के तहत दी जाने वाली छूट की शर्तें 24 मार्च, 2020 से 31 दिसंबर 2020 तक की अवधि के लिये उपलब्ध रहेगी।
  • 1 जनवरी, 2021 से 30 जून, 2021 की अवधि के दौरान योजना मूल पात्रता शर्तों के साथ उपलब्ध होगी।

पात्रता मानदंडों में बदलाव:

मूल योजना के तहत मानदंड संशोधित मानदंड
  • योजना के तहत प्रतिदिन की औसत कमाई के 25% (पिछली चार योगदान अवधि के लिये) तक राहत प्रदान की जाती है।
  • बीमित व्यक्ति के जीवनकाल में एक बार में अधिकतम 90 दिनों की बेरोज़गारी के लिये भुगतान किया जाता है।
  • बेरोज़गारी के 90 दिनों के बाद राहत भुगतान किया जाएगा।
  • कर्मचारी के संबंध में योगदान, नियोक्ता द्वारा भुगतान या देय होना चाहिये।
  • बीमित व्यक्ति को दो वर्ष की न्यूनतम अवधि के लिये बीमा योग्य रोज़गार में होना चाहिये। बीमित व्यक्ति को पूर्ववर्ती चार योगदान अवधि के दौरान कम-से-कम 78 दिनों का योगदान होना चाहिये।
  • अधिकतम 90 दिनों की बेरोज़गारी के लिये, योजना के तहत भुगतान राशि को औसत मज़दूरी के 25% से बढ़ाकर 50% तक बढ़ा दिया गया है।
  • पहले बेरोज़गारी के 90 दिनों के बाद राहत भुगतान किये जाने के बजाय अब 30 दिनों के बाद भुगतान किया जाएगा।
  • बीमित व्यक्ति अंतिम नियोक्ता द्वारा अग्रेषित किये जा रहे दावे के बजाय सीधे ESIC शाखा कार्यालय में दावा प्रस्तुत कर सकता है और भुगतान सीधे बीमित व्यक्ति के बैंक खाते में किया जाएगा।
  • बीमित व्यक्ति को उसकी बेरोज़गारी से पूर्व कम-से-कम दो वर्ष की अवधि के लिये बीमा योग्य रोज़गार में होना चाहिये तथा उसका बेरोज़गारी से ठीक पहले की योगदान अवधि में 78 दिनों से कम का योगदान नहीं होना चाहिये। बेरोज़गारी से 2 वर्ष पहले की शेष तीन योगदान अवधियों में से एक में न्यूनतम 78 दिनों का योगदान होना चाहिये।

योजना के तहत अन्य शर्तें:

  • ऐसे कर्मचारी जो कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम- 1948 की धारा 2 (9) के तहत कवर हैं।
  • बीमित व्यक्ति (Insured Person- IP) को राहत का दावा करने की अवधि के दौरान बेरोज़गार होना चाहिये।
  • बेरोज़गारी का कारण दुराचार, सेवानिवृत्ति या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति नहीं होना चाहिये।
  • बीमित व्यक्ति के आधार कार्ड और बैंक खाते को उसके डेटाबेस से जोड़ा जाना चाहिये।
  • यदि बीमित व्यक्ति एक से अधिक नियोक्ता के लिये कार्य कर रहा है और उस कर्मचारी राज्य बीमा योजना के तहत कवर किया गया है, तो उसे केवल तभी बेरोज़गार माना जाएगा, जब वह सभी नियोक्ताओं के यहाँ बेरोज़गार है।
  • बीमित व्यक्ति एक ही अवधि के लिये किसी भी अन्य नकद मुआवज़े और ABVKY के तहत राहत का एक साथ लाभ नहीं ले सकेगा।

स्रोत: पीआईबी


पी-नोट्स के माध्यम से निवेश में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

पी-नोट्स, डेरीवेटिव,

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड

मेन्स के लिये:

पी-नोट्स के माध्यम से भारत में बढ़ता निवेश

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय पूंजी बाज़ारों में पी-नोट्स (P-Notes) के माध्यम से निवेश बढ़कर जुलाई, 2020 के अंत तक 63288 करोड़ रुपए हो गया है। पी-नोट्स के माध्यम से निवेश में यह लगातार चौथी मासिक वृद्धि है।

प्रमुख बिंदु:

  • निवेश से संबंधित आँकड़े
    • पी-नोट्स (P-Notes) के माध्यम से जुलाई 2020 के अंत तक 63288 करोड़ रुपए का निवेश हुआ। जिसके अंतर्गत इक्विटी में 52,356 करोड़ रुपए का, ऋणों में 10,429 करोड़ रुपए का, हाइब्रिड प्रतिभूतियों में 250 करोड़ रुपए का, डेरीवेटिव्स में 190 करोड़ रुपए का निवेश किया गया।
  • डेरीवेटिव (Derivative) एक वित्तीय साधन है जो अंतर्निहित परिसंपत्तियों से इसका मूल्य प्राप्त करता है।

  • जून 2020 के अंत में पी-नोट्स के माध्यम से निवेश 62138 करोड़ रुपए था।
  • इससे पहले मई एवं अप्रैल के अंत में निवेश क्रमशः 60027 करोड़ रुपए और 57100 करोड़ रुपए था।
  • मार्च 2020 के अंत में निवेश 15 वर्ष के निचले स्तर 48,006 करोड़ रुपए पर आ गया था।
    • मार्च 2020 के अंत में यह आंंकड़ा अक्तूबर 2004 के बाद से निवेश के सबसे निचले स्तर पर था जब भारतीय बाज़ारों में पी-नोट्स के माध्यम से निवेश का कुल मूल्य 44,586 करोड़ रुपए था।

पी-नोट्स (P-Notes):

  • पी-नोट्स या ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स (ODIs), पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPIs) द्वारा विदेशी निवेशकों, हेज़ फंड और विदेशी संस्थानों को जारी किये जाते हैं, जो सेबी में पंजीकृत हुए बिना भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करना चाहते हैं।
  • यद्यपि सेबी ने विदेशी निवेशकों द्वारा जारी किये जाने वाले प्रत्येक पी-नोट्स (Participatory Notes) के लिये 1,000 डॉलर का नियामक शुल्क लगाया है ताकि सट्टे (Speculation) के लिये पी-नोट्स का प्रयोग न किया जा सके है। अब, यह शुल्क प्रत्येक पी-नोट्स जारी करने वाले सभी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) पर लगाया जाता है।
    • सेबी, पी-नोट्स जारी करने वाले पर प्रत्येक तीन वर्ष में 1,000 डॉलर का शुल्क लगाता है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई FPI पाँच अलग-अलग निवेशकों को पी-नोट्स जारी करता है, तो उसे 5,000 डॉलर का भुगतान शुल्क के रूप में जमा करना पड़ता है।

वित्तीय बाज़ार (Financial Markets):

  • वित्तीय बाज़ारों को उनमें कारोबार किये गए वित्तीय साधनों की परिपक्वता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
    • मुद्रा बाज़ार (Money Market) में एक वर्ष से कम की परिपक्वता वाले वित्तीय उपकरणों का कारोबार किया जाता है। जैसे- ट्रेजरी बिल, वाणिज्यिक पत्र आदि।
    • पूंजी बाज़ार (Capital Market) में अधिक समय की परिपक्वता वाले उपकरणों का कारोबार होता है। जैसे- शेयर, डिबेंचर आदि।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


तुर्की द्वारा गैस भंडार की खोज और चोरा चर्च विवाद

प्रिलिम्स के लिये

ज़ोहर गैस भंडार, काला सागर, अपतटीय गैस क्षेत्र

मेन्स के लिये

मध्यपूर्व राजनीतिक अस्थिरता और तुर्की, वैश्विक राजनीति और प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति ने काला सागर (Black Sea) क्षेत्र में अब तक के सबसे प्राकृतिक बड़े गैस भंडार की खोज की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • तुर्की के राष्ट्रपति के अनुसार, काला सागर में ‘फ़तेह नामक ड्रिलिंग जहाज़’ द्वारा खोजा गया यह गैस भंडार 320 अरब क्यूबिक मीटर का है।

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  • तुर्की द्वारा वर्ष 2023 तक इस गैस भंडार से गैस निकालकर इसका प्रयोग प्रारंभ करने का लक्ष्य रखा गया है।
    • ध्यातव्य है कि वर्ष 2023 में ही तुर्की एक गणतांत्रिक देश के रूप में अपने 100 वर्ष पूरे करेगा।
  • तुर्की द्वारा खोजा गया गैस का यह भंडार तुर्की के तट से लगभग 100 नॉटिकल मील उत्तर में काला सागर में स्थित है।
  • तुर्की के ऊर्जा मंत्री के अनुसार, गैस का यह भंडार पानी की सतह से 2100 मीटर की गहराई में स्थित है, इस भंडार से गैस निकालने के लिये समुद्र की तलहटी से 1400 मीटर नीचे तक ड्रिलिंग की जाएगी।
  • तुर्की के राष्ट्रपति के अनुसार, वे क्षेत्र में तेल और गैस की खोज को तब तक जारी रखेगा जब तक तुर्की ऊर्जा के मामले में पूर्णरूप से एक निर्यातक देश नहीं बन जाता है।

महत्त्व:

  • यह गैस भंडार तुर्की द्वारा खोजा गया और वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर अब तक का सबसे बड़ा गैस भंडार है।
  • यह गैस भंडार तुर्की की अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने और देश के चालू खाता घाटे को कम करने में बहुत ही सहायक होगा।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में तुर्की का ऊर्जा आयात बिल 41 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था।
  • यदि तुर्की को मिले इस गैस भंडार से अनुमानित गैस को निकालने में सफलता प्राप्त होती है तो यह भविष्य में ऊर्जा ज़रूरतों के लिये तुर्की की रूस, ईरान और अज़रबैजान जैसे देशों पर निर्भरता को कम करेगा।
  • तुर्की की अर्थव्यवस्था की स्थिति COVID-19 महामारी से पहले ही अच्छी नहीं थी और इसी माह बढती महंगाई और चालू खाता घाटे तथा तुर्की की सरकार द्वारा सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध करने के प्रयासों के बीच तुर्की की आधिकारिक मुद्रा ‘लीरा’ (Lira) में बड़ी गिरावट देखी गई थी

क्षेत्रीय राजनीति पर प्रभाव:

  • तुर्की और ग्रीस:
    • तुर्की को ऐसे समय में यह सफलता प्राप्त हुई है जब पूर्वी भूमध्यसागर के विवादित जलक्षेत्र में तेल और गैस की खोज को लेकर तुर्की और ग्रीस के बीच तनाव काफी बढ़ गया है।
    • हाल ही में इस विवादित क्षेत्र में तुर्की द्वारा संभावित खनिज तेल और गैस भंडार की खोज के लिये एक जहाज़ भेजा गया था, जिसके बाद क्षेत्र में दोनों देशों के युद्धपोतों की सक्रियता बढ़ गई थी।
    • ग्रीस-तुर्की विवाद के बढ़ता हुआ देख फ्राँस ने क्षेत्र की निगरानी के लिये ग्रीस के समर्थन में पूर्वी भूमध्यसागर में अपना एक समुद्री जहाज़ भेजा था।
  • तुर्की और साइप्रस:
    • तुर्की द्वारा साइप्रस के तट के समीप ऊर्जा अन्वेषण की गतिविधियाँ दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बनी हुई हैं।
    • हाल ही में तुर्की ने साइप्रस के तट के नज़दीक गैस अन्वेषण के लिये युद्धपोतों की निगरानी में ड्रिलिंग जहाज़ भेजे थे।
    • तुर्की के अनुसार, उसके द्वारा इस क्षेत्र में ऊर्जा अन्वेषण का उद्देश्य अपने और साइप्रस में रहा रही तुर्की आबादी के हितों की रक्षा करना है।
    • साइप्रस की सरकार ने तुर्की पर साइप्रस के जल क्षेत्र और आर्थिक अधिकारों पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है।


चुनौतियाँ:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस भंडार से गैस के उत्पादन और आपूर्ति के लिये आवश्यक अवसंरचना विकास में बहुत बड़े निवेश की आवश्यकता होगी।
  • साथ ही इस भंडार से सफलतापूर्वक गैस के निष्कासन में लगभग एक दशक का समय लग सकता है।
  • तुर्की को इस भंडार से सफलतापूर्वक गैस निकालने के लिये अन्य देशों से तकनीकी सहायता भी लेनी पड़ सकती है क्योंकि तुर्की को ‘अपतटीय गैस भंडार’ (Offshore Gas Field) विकसित करने कोई अनुभव नहीं है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान परिस्थिति में 320 अरब क्यूबिक मीटर का यह गैस भंडार तुर्की के लिये एक बड़ी उपलब्धि है, परंतु यह इतना भी बड़ा नहीं है कि यह तुर्की को क्षेत्र में ऊर्जा के केंद्र के रूप में स्थापित कर दे या तुर्की की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से बदल दे।
  • तुर्की द्वारा खोजा गया यह गैस भंडार इसके निकट ही पूर्वी भूमध्यसागर में खोजे गए अन्य गैस भंडारों से काफी छोटा है।
    • यह गैस भंडार भूमध्यसागर के सबसे बड़े गैस भंडारों में से एक मिस्र (Egypt) के ‘ज़ोहर गैस भंडार’ (Zohr Gas Field) का एक-तिहाई (1/3) ही है।
    • एक अनुमान के अनुसार, ज़ोहर गैस भंडार में लगभग 850 अरब क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस होने की संभावना है।

चोरा चर्च विवाद:

  • हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदलने के निर्णय के लगभग एक माह बाद 21 अगस्त को तुर्की के राष्ट्रपति ‘रेसेप तईप एर्दोगन’ ने इस्तांबुल स्थित ऐतिहासिक ‘चोरा चर्च’ (Chora Church) को पुनः एक मस्जिद में बदलने का आदेश दिया है।

चोरा चर्च (Chora Church):

  • वर्तमान में यह चर्च जहाँ स्थित उस स्थान पर सबसे पहले चौथी शताब्दी के दौरान एक चर्च का निर्माण किया गया था।
  • वर्तमान भवन का निर्माण 11 शताब्दी में एक चर्च के रूप में किया गया था।
  • वर्ष 1453 में कस्तुनतुनिया या कॉन्सटेनटिनोपोल (Constantinople) पर ऑटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) की विजय के बाद वर्ष 1511 में इस चर्च को ‘कारी मस्जिद’ (Kariye Mosque) में बदल दिया गया था।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात धर्मनिरपेक्ष समर्थक गणराज्य के रूप में उभरते तुर्की में वर्ष 1945 में इसे एक संग्रहालय के रूप में बदल दिया गया।
  • जिसके बाद वर्ष 1958 में इसे आम जनता के लिये खोल दिया गया।

कारण:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, इन दोनों संग्रहालयों को मस्जिद में बदलने के पीछे एर्दोगन का उद्देश्य वर्तमान में देश में बढ़ती हुई महंगाई और COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक अनिश्चितता के बीच देश में रूढ़िवादी और राष्ट्रवादी खेमे का जनसमर्थन प्राप्त करना है।

वैश्विक प्रतिक्रिया:

  • तुर्की द्वारा हागिया सोफिया को एक मस्जिद के रूप में बदलने में विश्व के अधिकांश देशों ने इसका विरोध किया था।
  • ग्रीस के विदेश मंत्रालय ने तुर्की के इस निर्णय को धार्मिक उकसावे वाला कदम बताया है।

आगे की राह:

  • पिछले कुछ वर्षों में तुर्की मध्य पूर्व अपनी अपनी स्थिति मज़बूत करने और वैश्विक स्तर पर स्वयं को मुस्लिम देशों के लिये एक नए नेतृत्त्व के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहा है।
  • हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदलने के निर्णय के बाद इस गैस भंडार की खोज से तुर्की के राष्ट्रपति को मिलने वाला स्थानीय जन समर्थन बढ़ेगा, जिससे क्षेत्र में तेल की खोज से लेकर अन्य विवादित मुद्दों पर तुर्की की आक्रामकता में वृद्धि देखी जा सकती है।
  • फ्राँस सहित विश्व के अन्य देशों द्वारा भूमध्य सागर में क्षेत्राधिकार से जुड़े विवाद को सुलझाने का प्रयास किया जाना चाहिये।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस