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जैव विविधता और पर्यावरण

अपतटीय एवं तटवर्ती तेल और गैस अन्वेषण

  • 24 Jan 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

MoEF&CC, अपतटीय एवं तटवर्ती तेल और गैस अन्वेषण

मेन्स के लिये:

समुद्री खनन का जैव-विविधता पर प्रभाव, अपतटीय एवं तटवर्ती तेल और गैस अन्वेषण से संबंधित पर्यावरणीय एवं आर्थिक मुद्दे

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEF&CC) ने तेल और गैस फर्मों को अपतटीय (OffShore) एवं तटवर्ती (On-Shore) ड्रिलिंग अन्वेषणों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी लेने से छूट देने हेतु एक अधिसूचना जारी की है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) अधिसूचना, 2006 में 16 जनवरी को एक अधिसूचना के माध्यम से संशोधन किया।
    • तटवर्ती ड्रिलिंग का अर्थ है पृथ्वी की सतह के नीचे गहरे गड्ढे खोदने के लिये ड्रिल करना, जबकि अपतटीय ड्रिलिंग समुद्रतल के नीचे ड्रिलिंग से संबंधित है।
    • इन ड्रिलिंग विधियों का उपयोग आमतौर पर पृथ्वी से तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों को निकालने के लिये किया जाता है।
  • अब अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस अन्वेषण तथा अपतटीय और तटवर्ती तेल विकास एवं उत्पादन संबंधी परियोजनाओं को अलग-अलग वर्गीकृत कर दिया गया है। ध्यातव्य है कि अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस के अन्वेषण के संबंध में सभी परियोजनाओं को अब B2 श्रेणी परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनके संभावित प्रभाव के आधार पर परियोजनाओं को 'ए' और 'बी' श्रेणियों में विभाजित किया गया है। श्रेणी ‘ए’ के तहत आने वाली परियोजनाओं को MoEF&CC से पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करनी होती है। जबकि श्रेणी ‘बी’ के तहत आने वाली परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (Environment Impact Assessment- EIA) से प्राप्त करनी होगी।
  • श्रेणी B को B1 और B2 श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ध्यातव्य है कि B2 के रूप में वर्गीकृत परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है।
  • गौरतलब है कि एक हाइड्रोकार्बन ब्लॉक के रूप में अपतटीय या तटवर्ती ड्रिलिंग साइट के विकास को श्रेणी ए के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि सभी अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस के अन्वेषण, विकास और उत्पादन परियोजनाओं को पहले श्रेणी ए परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया था जिनके लिये केंद्र सरकार से पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती थी।

इस निर्णय से पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव

  • बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में तेल और गैस की खोज सबसे जटिल परियोजना मानी जाती है। इसके परिणाम सिर्फ स्थानीय परिवेश तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि वैश्विक हैं।
  • इस तरह की परियोजनाओं से द्वीपों, प्रमुख मछली प्रजनन क्षेत्रों, निकटतम तटीय शहरों के साथ-साथ प्रवासी मार्गों के लिये एक बड़ा खतरा पैदा होता है।
  • इसके अतिरिक्त समुद्री खनन से समुद्री जैवविविधता को भी हानि होती है, ध्यातव्य है कि खनन के कारण तेल समुद्री जल में फैल सकता है जिससे समुद्री जीवों सहित वनस्पतियों को नुकसान होगा। तेल फैलने से तटीय के साथ स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी खतरा हो सकता है।

तेल एवं गैस के व्यापार और उत्पादन के संदर्भ में भारत की वर्तमान स्थिति

  • ध्यातव्य है कि भारत की निर्भरता आयातित तेल और प्राकृतिक गैस पर बढ़ रही है।
    • भारत की आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता वर्ष 2014-15 के 78.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 83.8 प्रतिशत हो गई है।
    • इसी प्रकार आयातित प्राकृतिक गैस पर भारत की निर्भरता वर्ष 2014-15 के 36.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 47.3 प्रतिशत हो गई है।
  • इसके अलावा भारत में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का उत्पादन कम हो रहा है। जहाँ वर्ष 2013-14 में कच्चे तेल का उत्पादन 37.79 मीट्रिक टन था वहीं 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर) के लिये इसका अनंतिम आँकड़ा (Provisional Figure) 25.99 मीट्रिक टन था।
  • मंत्रालय के वर्ष 2018 (अप्रैल-दिसंबर) के अनंतिम आँकड़ों के अनुसार, प्राकृतिक गैस का उत्पादन वर्ष 2013-14 के 35.1 बिलियन क्यूबिक मीटर (Billion Cubic Meters- BCM) से घटकर 24.65 BCM हो गया है।
  • ईरान से कच्चे तेल का आयात कम हो रहा है, हालाँकि यह देश भारत का प्रमुख तेल निर्यातक बना हुआ है। ध्यातव्य है कि नवंबर 2018 और नवंबर 2019 के बीच ईरान से कच्चे तेल के आयात में लगभग 89 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।

सरकार के इस कदम से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • अमेरिका-ईरान संघर्ष को देखते हुए देश के तेल एवं गैस की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।
  • इस कदम से तेल आयात पर राजकोषीय बजट के खर्च को कम किया जा सकता है।
  • पश्चिम एशिया की अस्थिर प्रकृति और अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंधों के कारण, भारत तेल आपूर्ति के लिये अन्य विकल्प की खोज में है। इस अधिसूचना को घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर जारी किया गया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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