गोवावासियों का पासपोर्ट निरस्तीकरण
प्रिलिम्स के लिये:ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया (OCI), PIO, पासपोर्ट अधिनियम, 1967, नागरिकता मेन्स के लिये: |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा जारी एक ज्ञापन के कारण पिछले कुछ महीनों में गोवा के 100 से अधिक लोगों के पासपोर्ट निरस्त कर दिये गए हैं।
- इन लोगों, जो शायद ज्ञापन के बारे में नहीं जानते होंगे, पर पुर्तगाल के नागरिक बनने के बाद अपने पासपोर्ट सरेंडर करने का प्रयास करते समय महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाने का आरोप है।
पासपोर्ट क्यों निरस्त किये जा रहे हैं?
- गोवा का पुर्तगाली संबंध:
- गोवा एक पूर्व पुर्तगाली उपनिवेश है, जो वर्ष 1510 से वर्ष 1961 यानी लगभग 450 वर्षों तक पुर्तगाली शासन के अधीन रहा।
- पुर्तगाली कानून के अनुसार:
- 19 दिसंबर, 1961 (जिस दिन गोवा पुर्तगाली शासन से मुक्त हुआ था) से पहले गोवा में पैदा हुए लोगों और आने वाली दो पीढ़ियों के पास पुर्तगाली नागरिक के रूप में पंजीकरण कराने का विकल्प है।
- कई गोवावासियों ने सेंट्रल रजिस्ट्री में अपना जन्म स्थान लिस्बन लिखा है और पुर्तगाली नागरिकता हासिल कर ली है।
- पुर्तगाली पासपोर्ट UK और यूरोपीय संघ सहित कई देशों में वीज़ा-मुक्त प्रवेश प्रदान करता है।
- विदेशी रोज़गार और शैक्षिक अवसरों के आकर्षण ने गोवावासियों को पुर्तगाली नागरिकता लेने के लिये प्रेरित किया है।
- विदेश मंत्रालय का वर्ष 2022 का ज्ञापन:
- विदेश मंत्रालय ने 30 नवंबर, 2022 को एक ज्ञापन जारी किया, जिसके अनुसार विशेष रूप से "पूर्व भारतीय नागरिक द्वारा विदेशी राष्ट्रीयता प्राप्त करने के बाद भारतीय पासपोर्ट को जमा किया जाना था।
- ज्ञापन में पासपोर्ट जमा/सरेंडर प्रमाणपत्रों से संबंधित मामलों को वर्गीकृत किया गया है और एक विशेष श्रेणी के परिणामस्वरूप कुछ गोवावासियों के पासपोर्ट निरस्त कर दिये गए हैं।
- पासपोर्ट अधिनियम 1967 की धारा 10 (3) (b) के तहत दूसरे देश की नागरिकता का तथ्य छिपाकर प्राप्त किया पासपोर्ट रद्द किया जा सकता है, भले ही उसका उपयोग यात्रा के लिये न किया गया हो।
- विदेश मंत्रालय के इस ज्ञापन से पहले पासपोर्ट अधिकारी द्वारा भारतीय पासपोर्ट को सरेंडर करने और सरेंडर प्रमाणपत्र जारी करने पर ज़ुर्माना लगाया जाता था, जिसे वर्ष 2020 के केरल उच्च न्यायालय के निर्णय में अमान्य घोषित कर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि पासपोर्ट अधिकारी ज़ुर्माना नहीं लगा सकता है, बल्कि केवल पासपोर्ट अधिनियम के उल्लंघन के लिये मुकदमा चला सकता है।
- पासपोर्ट का निरसन और OCI कार्ड जारी करना:
- दोहरी नागरिकता: चूँकि भारत दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है। इसलिये आधिकारिक पुर्तगाली पासपोर्ट प्राप्त करने वाले गोवावासियों को अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी होगी।
- OCI स्थिति: भारतीय पासपोर्ट रद्द होने से ये व्यक्ति ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया (OCI) के लिये आवेदन करने में असमर्थ हो गए हैं।
- पासपोर्ट जारी करने वाले अधिकारियों द्वारा जारी 'सरेंडर सर्टिफिकेट' की अब तक उन लोगों को आवश्यकता रही है, जो OCI कार्ड के लिये आवेदन करना चाहते हैं।
- हालाँकि पासपोर्ट रद्द होने के कारण ये लोग इस सुविधा का लाभ नहीं उठा सके।
- विदेश मंत्रालय का वर्तमान ज्ञापन, पासपोर्ट अधिकारियों को उन मामलों में सरेंडर सर्टिफिकेट के बजाय 'निरस्तीकरण प्रमाणपत्र' जारी करने का निर्देश देता है, जहाँ जानकारी छिपाकर भारतीय पासपोर्ट प्राप्त किये गए थे।
- इससे पुर्तगाली नागरिकता प्राप्त करने वाले पूर्व पुर्तगाली क्षेत्रों के भारतीय नागरिकों को भारत की विदेशी नागरिकता (OCI) के लिये आवेदन करने की अनुमति मिल जाएगी।
- पासपोर्ट जारी करने वाले अधिकारियों द्वारा जारी 'सरेंडर सर्टिफिकेट' की अब तक उन लोगों को आवश्यकता रही है, जो OCI कार्ड के लिये आवेदन करना चाहते हैं।
- OCI स्टेटस भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों को अनिश्चित काल तक भारत में रहने और काम करने की अनुमति देता है।
गोवा में पुर्तगाली शासन:
- भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गोवा वर्ष 1510 से वर्ष 1961 तक एक पुर्तगाली उपनिवेश था।
- इस छोटे तटीय क्षेत्र को अफोंसो-डी-अल्बुकर्क ने जीत लिया, जो पूर्वी मसाला व्यापार के लिये एक महत्त्वपूर्ण व्यापार केंद्र बन गया।
- उल्लेखनीय रूप से गोवा ने 450 वर्षों तक केप ऑफ गुड होप के पूर्व में संपूर्ण पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी के रूप में कार्य किया।
- वर्ष 1940 के दशक में जैसे ही भारत, ब्रिटिशराज से स्वतंत्र हुआ, गोवा में भी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष शुरू हो गया।
- अंततः 19 दिसंबर, 1961 को अपने उपनिवेशीकरण की चार शताब्दियों से भी अधिक समय पश्चात् गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कर दिया गया।
भारत का विदेशी नागरिकता (OCI) कार्ड:
- परिचय:
- OCI की अवधारणा विशेष रूप से विकसित देशों में भारतीय प्रवासियों द्वारा दोहरी नागरिकता की मांग के जवाब में प्रस्तुत की गई थी।
- गृह मंत्रालय OCI को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो:
- 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद भारत का नागरिक था; या
- 26 जनवरी, 1950 को भारत का नागरिक बनने के योग्य था; या
- अन्य पात्रता मानदंडों के बीच ऐसे व्यक्ति का बच्चा या पोता है।
- OCI कार्ड नियमों की धारा 7A के अनुसार, कोई आवेदक OCI कार्ड के लिये पात्र नहीं है यदि वह, उसके माता-पिता या दादा-दादी कभी पाकिस्तान या बाँग्लादेश के नागरिक रहे हों।
- भारत सरकार ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 के माध्यम से वर्ष 2015 में भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) श्रेणी को OCI श्रेणी के साथ विलय कर दिया।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- OCI कार्ड योजना वर्ष 2005 में प्रवासी भारतीय दिवस के दौरान शुरू की गई थी।
- इसे अपने मूल देश के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावनात्मक लगाव और राष्ट्र के विकास में प्रवासी भारतीयों की भूमिका को स्वीकार करने के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
- OCI कार्ड के लाभ:
- भारत आने के लिये एक से अधिक बार प्रवेश, जीवनपर्यंत वीज़ा।
- ठहरने की किसी भी अवधि तक पुलिस प्राधिकारियों को रिपोर्ट करने से छूट, विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) से पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं।
- वित्तीय, आर्थिक और शैक्षिक क्षेत्रों में अनिवासी भारतीयों (NRI) के साथ समानता।
- सीमाएँ एवं प्रतिबंध:
- उन्हें मतदान का अधिकार नहीं है।
- वे कृषि अथवा कृषि भूमि नहीं खरीद सकते।
- अनुसंधान कार्य को छोड़कर सभी गतिविधियाँ जिनके लिये संबंधित भारतीय मिशन अथवा पोस्ट या FRRO से विशेष अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- कार्ड धारक चुनाव में भाग नहीं ले सकते अथवा सार्वजनिक पद धारण नहीं कर सकते, जो नागरिकता एवं विदेशी नागरिकता के बीच स्पष्ट सीमाएँ बनाए रखने पर सरकार के रुख को दर्शाता है।
- वर्तमान परिदृश्य:
- OCI कार्ड योजना, प्रवासी भारतीयों के साथ संबंधों को गहरा करने के भारत सरकार के प्रयास का एक प्रमुख तत्त्व रही है।
- मार्च 2020 तक गृह मंत्रालय ने 3.5 मिलियन से अधिक OCI कार्ड जारी किये थे।
- इनमें से अधिकांश संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया एवं कनाडा में विदेशी नागरिकों को जारी किये गए थे।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास पर भारतीय प्रवासियों की भूमिका तथा भारत की विदेश नीति पर इसके प्रभाव को लेकर चर्चा कीजिये। प्रवासी भारतीयों ने भारत को सॉफ्ट पावर बनाने एवं वैश्विक प्रतिष्ठा के निर्माण में किस प्रकार योगदान दिया है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संदर्भ मे निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति एवं अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2020) |
हाइड्रोकार्बन अन्वेषण एवं निष्कर्षण
प्रिलिम्स के लिये:हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोकार्बन अन्वेषण, हाइड्रोकार्बन लाइसेंसिंग नीति, ओपन एकरेज लाइसेंसिंग प्रोग्राम (OALP)। मेन्स के लिये:हाइड्रोकार्बन निष्कर्षण की भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ, निष्कर्षण विधियाँ और पर्यावरणीय प्रभाव, नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (NELP) की कमियाँ, हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP): कार्यविधि, चुनौतियाँ, लाभ। |
चर्चा में क्यों?
मानव द्वारा की गई हाइड्रोकार्बन निष्कर्षण प्रक्रिया की खोज ने दो औद्योगिक क्रांतियों को जन्म दिया। ये हाइड्रोकार्बन बड़े इंजनों को संचालित करते थे, जिससे वायु, जल एवं वातावरण प्रदूषित हुआ और अंततः यह ग्लोबल वार्मिंग का कारण बना।
- बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए दुनिया के लिये हाइड्रोकार्बन के उपयोग के कम हानिकारक तरीकों पर विचार करना आवश्यक है।
हाइड्रोकार्बन एवं उनका भंडारण क्या है?
- परिचय:
- हाइड्रोकार्बन हाइड्रोजन एवं कार्बन से निर्मित कार्बनिक यौगिक होते हैं। जबकि कार्बन परमाणु यौगिक की रूपरेखा बनाते हैं, हाइड्रोजन परमाणु विभिन्न प्रकार के विभिन्न विन्यासों में उनसे जुड़ते हैं।
- हाइड्रोकार्बन अन्वेषण भू-पर्पटी में पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे हाइड्रोकार्बन के भंडार की खोज है। इसे तेल एवं गैस अन्वेषण के नाम से भी जाना जाता है।
- केरोजेन कार्बनिक पदार्थों की गाँठें हैं और वे भूमिगत चट्टानों में हाइड्रोकार्बन के प्राथमिक स्रोत हैं।
- केरोजेन को तीन संभावित स्रोतों जैसे- झील (लैक्स्ट्रिन), एक बड़े समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, या स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के अवशेष से जमा किया जा सकता है।
- केरोजेन के आसपास की चट्टानें समय के साथ गर्म हो सकती हैं, अधिक सघन हो सकती हैं, जिससे केरोजेन पर बल पड़ता है परिणामस्वरूप यह टूट जाता है।
- लैक्स्ट्रिन केरोजेन से मोम जैसा तेल प्राप्त होता है, समुद्री केरोजेन, तेल एवं गैस तथा स्थलीय केरोजेन, हल्के तेल, गैस एवं कोयला।
- प्रकार: उनकी संरचना एवं बंधन के आधार पर हाइड्रोकार्बन को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:
- एल्काइन्स (संतृप्त):
- संरचना: कार्बन परमाणुओं के बीच एकल बंधन से मिलकर बनता है।
- सामान्य सूत्र: CnH2n+2। उदाहरण: मीथेन (CH4) तथा इथेन (C2H6)।
- गुण: गैर-प्रतिक्रियाशील; मुख्य रूप से ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
- एल्काइन्स (असंतृप्त डबल बॉण्ड ):
- संरचना: कार्बन परमाणुओं के बीच कम-से-कम एक दोहरा बंधन होता है।
- सामान्य सूत्र: CnH2n। उदाहरण: इथाइलीन (C2H4) और प्रोपलीन (C3H6)।
- गुण: रासायनिक संश्लेषण में दोहरे बंधन के कारण एल्काइन्स की तुलना में अधिक प्रतिक्रियाशील एवं प्लास्टिक के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है।
- एल्काइन्स ( असंतृप्त ट्रिपल बॉण्ड ):
- संरचना: कार्बन परमाणुओं के बीच कम-से-कम एक त्रि-बंध होता है।
- सामान्य सूत्र: CnH2n−2
- उदाहरणः एसिटिलीन (C2H2).
- गुण: अत्यंत प्रतिक्रियाशील; वेल्डिंग (ऑक्सी-एसिटिलीन टॉर्च) और रासायनिक बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में उपयोग किया जाता है।
- एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (एरेनेस):
- संरचना: इसमें बारी-बारी दोहरे बॉण्ड (एरोमैटिक के छल्ले) के साथ कार्बन परमाणुओं के छल्ले होते हैं।
- उदाहरण: बेंज़ीन (C6H6) और टोल्यूनि (C7H8)।
- गुण: अपने एरोमैटिक छल्लों के कारण स्थिर; रंग, डिटर्जेंट और विस्फोटकों के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
- एल्काइन्स (संतृप्त):
- निर्माण और भंडारण:
- हाइड्रोकार्बन प्राकृतिक रूप से पौधों, पेड़ों और जीवाश्म ईंधन में पाए जाते हैं। ऐसे यौगिक पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्राथमिक घटकों के रूप में कार्य करते हैं एवं इनका उपयोग ईंधन तथा प्लास्टिक के उत्पादन जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला में किया जा सकता है।
- अवसादी शैलों के नीचे कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस पाई जाती है।
- ये जलाशय तब बनते हैं जब अधिक प्रतिरोधी शैल एक कम प्रतिरोधी शैल पर चढ़ जाती है, जिससे वास्तव में एक आवरण का निर्माण हो जाता है जिससे उसके नीचे हाइड्रोकार्बन जमा हो जाते हैं।
- इनका निर्माण लाखों वर्षों में होता है। इनके निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- मृत पौधे और जानवर भूमिगत दफन हो जाते हैं जिससे हाइड्रोकार्बन बनने के लिये कार्बन की मात्रा उपलब्ध हो जाती है।
- अंततः दबे हुए मलबे के ऊपर मृदा की एक परत जम जाती है और मृदा शैल में परिवर्तित हो जाती है।
- तीव्र गर्मी और दबाव परिवर्तन इस मलबे को जीवाश्म ईंधन यानी कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस में बदल देते हैं।
- इसके निर्माण के लिये ऑक्सीजन और वायु की अनुपलब्धता एक प्रमुख शर्त है।
- चट्टानों से रिसाव न होने की स्थिति में कच्चा तेल तलछटी चट्टान के नीचे एकत्रित रहता है।
- प्राकृतिक गैस कम सघन होने के कारण कच्चे तेल के ऊपर तैरती है।
विश्व स्तर पर शीर्ष तेल उत्पादक एवं उपभोक्ता देश:
- शीर्ष 5 तेल उत्पादक और कुल विश्व तेल उत्पादन में हिस्सेदारी
देश |
विश्व का कुल हिस्सा |
संयुक्त राज्य अमेरिका |
22% |
सऊदी अरब |
11% |
रूस |
11% |
कनाडा |
6% |
चीन |
5% |
- शीर्ष 5 तेल उपभोक्ता और कुल विश्व तेल खपत का हिस्सा
देश |
विश्व का कुल हिस्सा |
संयुक्त राज्य अमेरिका |
20% |
चीन |
15% |
भारत |
5% |
रूस |
4% |
सऊदी अरब |
4% |
हाइड्रोकार्बन तक पहुँच और कैसे बाहर निकाला जाता है?
- हाइड्रोकार्बन तक पहुँच:
- उत्पादन के लिये एक कुआँ बनाना: प्रारंभिक कार्य एक उत्पादन कुएँ को ड्रिल करना है। इस स्थान को जल निकासी की मात्रा को अधिकतम करने के लिये चुना जाता है।
- कुआँ ड्रिलिंग मशीन से बनाया जाता है।
- केसिंग और सीमेंटिंग: छेद से संकरी स्टील की केसिंग को कुएँ में उतारा जाता है और गुफाओं से बचाने तथा तरल पदार्थ के घुसपैठ को रोकने के लिये सीमेंट के घोल से घेर दिया जाता है।
- ड्रिलिंग फ्लूइड, ड्रिल बिट के चारों ओर परिचालित होता है, जो ठंडा करने और रॉक कटिंग को हटाने में सहायता करता है।
- विस्फोट की रोकथाम: जिस दबाव पर ड्रिलिंग द्रव वितरित किया जाता है उसे सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाना चाहिये अन्यथा यह स्रोत चट्टान में हाइड्रोकार्बन को बाहर निकलने और तेल के ज्वालामुखी की तरह सतह पर फूटने के लिये मजबूर कर सकता है।
- मड-लॉगिंग: यह चट्टान की कटाई को गहराई से रिकॉर्ड करने और उनके गुणों का अध्ययन करने की प्रक्रिया है।
- ड्रिलिंग: यह ड्रिलिंग रिग द्वारा किया जाता है, जो ड्रिलिंग प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में बिजली आपूर्ति के लिये जनरेटर और बैटरी के साथ भी आता है।
- पानी के स्तंभ के माध्यम से उनकी स्थिरता और सहायता निष्कर्षण को बढ़ावा देने के लिये इन रिगों को अपतटीय क्षेत्र में भी स्थापित किया जा सकता है।
- उत्पादन के लिये एक कुआँ बनाना: प्रारंभिक कार्य एक उत्पादन कुएँ को ड्रिल करना है। इस स्थान को जल निकासी की मात्रा को अधिकतम करने के लिये चुना जाता है।
- हाइड्रोकार्बन निष्कर्षण:
- समापन चरण: यह बोरहोल से ड्रिल स्ट्रिंग को हटाकर और आवरण में छोटे छेद करके हाइड्रोकार्बन को बाहर निकालने की प्रक्रिया है।
- उत्पादन चरण: कुएँ के शीर्ष पर मौजूद सिस्टम वाल्वों का उपयोग करके हाइड्रोकार्बन के बहिर्वाह को नियंत्रित किया जाता है। पंप जैक का उपयोग कुएँ के नीचे से हाइड्रोकार्बन को ऊपर उठाने के लिये किया जाता है, जब हाइड्रोकार्बन को सतह पर लाने के लिये दबाव का अंतर बहुत कम होता है।
- उत्पादन को बनाए रखने के लिये आवश्यक तरीकों के आधार पर इसे तीन चरणों: प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक में विभाजित किया जा सकता है।
- प्राथमिक चरण प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है, जैसे जलाशय और कुएँ के बीच दबाव अंतर।
- द्वितीयक चरण में अंतर को बनाए रखने के लिये चट्टान में कृत्रिम दबाव उत्पन्न करना शामिल है।
- तृतीयक चरण शेष हाइड्रोकार्बन को निकालने के लिये भाप इंजेक्शन जैसी उन्नत पुनर्प्राप्ति विधियों का उपयोग किया जाता है।
- वेल प्लगिंग और डीकमीशनिंग:
- निष्कर्षण के लिये पूर्ण समाप्ति की आवश्यकता नहीं होती है, इसे तब रोक दिया जाता है जब यह लाभदायक नहीं रह जाता है। हाइड्रोकार्बन और गैस के निकास को रोकने के लिये परित्यक्त कुओं को बंद किया जाना चाहिये।
- डीकमीशनिंग, एक कुएँ की स्थायी सीलिंग, महँगी होती है और अक्सर ऑपरेटरों के लिये वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं होती है।
भारत में अवसादी बेसिन:
- भारत में 26 अवसादी बेसिन हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 3.4 मिलियन वर्ग किलोमीटर है।
- कुल अवसादी क्षेत्र का 49% भूमि पर, 12% उथले जल में और 39% गहरे जल क्षेत्र में स्थित है।
- हाइड्रोकार्बन संसाधनों की परिपक्वता के आधार पर इन बेसिनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- श्रेणी-I: बेसिन, जहाँ हाइड्रोकार्बन भंडार मौजूद है और इनका पहले से ही उत्पादन हो रहा है।
- श्रेणी- II: वे बेसिन, जिनमें वाणिज्यिक उत्पादन के लिये संभावित संसाधन उपलब्ध हैं।
- श्रेणी-III बेसिन, जिनमें संभावित संसाधन की खोज की जानी है।
भारत में हाइड्रोकार्बन निष्कर्षण से संबंधित नीतियाँ:
- हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP) को सरकार द्वारा एक अन्वेषण और उत्पादन नीति के रूप में अनुमोदित किया गया था, जिसने नवीन अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (NELP) का स्थान ले लिया।
- इस नीति का उद्देश्य अन्वेषण गतिविधि और निवेश को तेज़ करके घरेलू तेल और गैस उत्पादन को बढ़ाना है।
- नवीन नीति सरल नियमों, कर छूट, मूल्य निर्धारण और विपणन स्वतंत्रता का वादा करती है, जो वर्ष 2022-23 तक तेल तथा गैस उत्पादन को दोगुना करने की सरकारी रणनीति का हिस्सा है।
- इस नीति का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाने के साथ-साथ प्रशासनिक विवेकाधिकार को कम करना भी है।
- HELP भारत में अपस्ट्रीम E&P के लिये सरकारी नियंत्रण के समय से सरकारी समर्थन तक के सबसे बड़े बदलाव का प्रतीक है। ओपन एकरेज लाइसेंसिंग प्रोग्राम (OLAP) कंपनियों को अपनी पसंद के क्षेत्रों का पता लगाने के लिये डेटा प्रदान कर अन्वेषण पर प्रतिबंध हटा देता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. हाइड्रोकार्बन किसी देश की ऊर्जा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन ऊर्जा आयात पर अत्यधिक निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये एक चुनौती हो सकती है। इस संदर्भ में कच्चे तेल के आयात में कटौती के लिये की गई पहलों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में पाया जाने वाला पद 'वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट' निम्नलिखित में से किस एक पदार्थ की श्रेणी से संबंधित है: (2020) (a) कच्चे तेल उत्तर: (a) प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020)
निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 5 और 6 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. वहनीय (अफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य हैं। भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |
वित्त वर्ष 2024 में भारत का दलहन आयात 6 वर्ष के उच्चतम स्तर पर
प्रिलिम्स के लिये:दलहनी फसलें, (PM-AASHA), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), हिडन हंगर मेन्स के लिये:भारत के दलहन उत्पादन और आयात के वर्तमान रुझान, भारत के दलहन आयात से संबंधित मुद्दे और संबंधित सरकारी पहल। |
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
वित्त वर्ष 2024 में भारत का दलहन आयात 84% बढ़कर छह वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। इस उछाल का कारण देश में दलहनों का कम उत्पादन और लाल मसूर तथा पीली मटर पर आयात शुल्क माफ करने का सरकार का निर्णय है।
भारत में दलहन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति:
- भारत विश्वभर में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (विश्व खपत का 27%) और आयातक (14%) है।
- खाद्यान्न क्षेत्र में दलहन की हिस्सेदारी लगभग 20% है और देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7% -10% है।
- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक शीर्ष पाँच दलहन उत्पादक राज्य हैं।
- दलहन आयात में भारत की स्थिति:
- भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 4.65 मिलियन मीट्रिक टन दलहन का आयात किया (वर्ष 2022-23 में 2.53 मिलियन टन से अधिक), जो वर्ष 2018-19 के बाद सबसे अधिक है।
- मूल्य के संदर्भ में दलहन का आयात 93% बढ़कर 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- विशेष रूप से कनाडा से लाल मसूर का आयात दोगुना होकर यह 1.2 मिलियन टन हो गया।
- दिसंबर के बाद से शुल्क-मुक्त आयात के कारण रूस और तुर्किये से पीली मटर के आयात में वृद्धि दर्ज की गई है।
- भारत सहित दक्षिण एशियाई देश आमतौर पर कनाडा, म्याँमार, ऑस्ट्रेलिया, मोज़ाम्बिक और तंज़ानिया से दलहन का आयात करता है।
- भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 4.65 मिलियन मीट्रिक टन दलहन का आयात किया (वर्ष 2022-23 में 2.53 मिलियन टन से अधिक), जो वर्ष 2018-19 के बाद सबसे अधिक है।
- दलहन:
- आवश्यक तापमान: 20-27°C के बीच
- आवश्यक वर्षा: लगभग 25-60 सेमी.
- मृदा का प्रकार: बलुई-दोमट मृदा
- शाकाहारी भोजन में ये प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं।
- दलहनी फसलें होने के कारण अरहर को छोड़कर ये सभी फसलें वायु में मौजूद नाइट्रोजन को अवशोषित करके मृदा की उर्वरता बनाए रखने में सहायता करती हैं। इसलिये इन्हें अधिकतर अन्य फसलों के साथ चक्रानुक्रम में उगाया जाता है।
- दलहन की कृषि वर्ष भर की जाती है।
- रबी दालें (60% से अधिक योगदान): चना, बंगाली चना, मसूर, अरहर।
- रबी फसलों को बुआई के दौरान हल्की ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, वनस्पति से लेकर फली बनने तक ठंडी जलवायु और परिपक्वता/कटाई के दौरान गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
- खरीफ दालें: मूँग (हरा चना), उड़द (काला चना), तूर (अरहर दाल)।
- खरीफ दलहनी फसलों को बुआई से लेकर कटाई तक गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
भारत में दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये क्या पहलें की गई हैं?
- दलहन पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM):
- कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के नेतृत्व में NFSM-दलहन पहल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख सहित 28 राज्यों तथा 2 केंद्रशासित प्रदेशों में संचालित है।
- NFSM-दलहन के तहत प्रमुख हस्तक्षेप:
- विभिन्न हस्तक्षेपों के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से किसानों को सहायता।
- फसल प्रणाली का प्रमाणन (Cropping System Demonstrations)
- बीज उत्पादन और HYV/संकर का वितरण।
- इसके अतिरिक्त दलहन के लिये 150 बीज केंद्रों की स्थापना ने गुणवत्तापूर्ण दलहन बीजों की उपलब्धता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना:
- इस व्यापक अम्ब्रेला योजना (वर्ष 2018 में लॉन्च) में तीन घटक शामिल हैं:
- मूल्य समर्थन योजना (PSS): इस योजना के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर पूर्व-पंजीकृत किसानों से खरीद की जाती है।
- मूल्य कमी भुगतान योजना (PDPS): इस योजना के तहत मूल्य अंतर के लिये किसानों को मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।
- निजी खरीद स्टॉकिस्ट योजना (PPSS): यह योजना खरीद में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।
- इस व्यापक अम्ब्रेला योजना (वर्ष 2018 में लॉन्च) में तीन घटक शामिल हैं:
- अनुसंधान एवं विविधता के विकास में ICAR की भूमिका:
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) अनुसंधान और विकास प्रयासों के माध्यम से दलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ICAR निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करती है:
- दालों पर बुनियादी और रणनीतिक अनुसंधान।
- राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ सहयोगात्मक अनुप्रयुक्त अनुसंधान।
- स्थान-विशिष्ट उच्च उपज वाली किस्मों और उत्पादन पैकेज का विकास।
- वर्ष 2014 से वर्ष 2023 की अवधि के दौरान देश भर में व्यावसायिक खेती के लिये दालों की प्रभावशाली 343 उच्च उपज वाली किस्मों और संकर बीज को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की गई है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) अनुसंधान और विकास प्रयासों के माध्यम से दलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ICAR निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करती है:
दलहन आयात पर भारत की निर्भरता के पीछे क्या कारण हैं?
- फसल पद्धति में बदलाव:
- परंपरागत रूप से भारत में किसान दलहन के साथ फसल चक्र अपनाते हैं। हालाँकि विगत दशकों में निम्नलिखित कारणों से चावल तथा गेहूँ जैसी जल-गहन फसलों की खेती में बदलाव आया है।
- चावल तथा गेहूँ मुख्य भारतीय खाद्यान्न हैं, जिनकी खपत एवं मांग में वृद्धि हुई है।
- MSP में उत्पादन की औसत लागत पर उच्च लाभ के साथ विशिष्ट वस्तुओं की गारंटीकृत खरीद सरकारी प्रोत्साहन के उदाहरण हैं।
- कुछ क्षेत्रों में बेहतर सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता।
- परंपरागत रूप से भारत में किसान दलहन के साथ फसल चक्र अपनाते हैं। हालाँकि विगत दशकों में निम्नलिखित कारणों से चावल तथा गेहूँ जैसी जल-गहन फसलों की खेती में बदलाव आया है।
- कम लाभप्रदता:
- खाद्यान्नों की तुलना में दलहन प्राय: प्रति हेक्टेयर कम लाभ प्रदान करती हैं जो किसानों को इनके उत्पादन को लेकर हतोत्साहित करता है, विशेषकर उपजाऊ एवं सिंचित भूमि पर।
- जलवायु चुनौतियाँ:
- अनियमित वर्षा एवं सूखा दलहन उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, जो आमतौर पर वर्षा आधारित फसलें हैं।
- सीमित तकनीकी प्रगति:
- खाद्यान्न एवं नकदी फसलों की तुलना में दलहनों में अनुसंधान एवं विकास तथा रोगों एवं कीटों के प्रति संवेदनशीलता अधिक होती है।
दलहन के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के क्या उपाय हैं?
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना:
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दलहनों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करना जो चावल तथा गेहूँ जैसी अन्य फसलों के प्रति प्रतिस्पर्द्धी होती हैं।
- बीज, उर्वरक एवं दलहनों के लिये विशिष्ट अन्य कृषि आदानों हेतु सब्सिडी प्रदान करना।
- मौसम के उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये फसल बीमा योजनाएँ लागू करना।
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- फसल चक्र को बढ़ावा देना:
- मृदा स्वास्थ्य एवं सतत् कृषि हेतु फसल चक्र के दीर्घकालिक लाभों पर प्रकाश डालते हुए किसानों को दलहनों को अपनी फसल प्रणाली में पुनः शामिल करने के लिये प्रोत्साहित करना।
- अधिक उपज देने वाली प्रजातियाँ विकसित करना:
- विभिन्न क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुकूल सूखा प्रतिरोधी, अधिक उपज देने वाली दलहन किस्मों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
- किसानों को प्रशिक्षण एवं विस्तार कार्यक्रमों के माध्यम से इन उन्नत किस्मों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- सिंचाई अवसंरचना में सुधार:
- दलहन की कृषि हेतु उपयुक्त क्षेत्रों, विशेषकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना।
- जल संरक्षण के लिये ड्रिप सिंचाई जैसी जल-कुशल सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना।
- कीमतों में उतार-चढ़ाव को कम करना:
- फसल कटाई के बाद होने वाली हानि को कम करने और साथ ही पूरे वर्ष मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु दलहनों की भंडारण सुविधाओं में सुधार करना।
- सुव्यवस्थित आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: परिवहन लागत को कम करने एवं बिचौलियों द्वारा मूल्य में हेर-फेर को कम करने के लिये आपूर्ति शृंखला की दक्षता में वृद्धि करना।
- वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों को बढ़ावा देना:
- दाल, कदन्न और साथ ही अंडे जैसे प्रोटीन युक्त विकल्पों की खपत को बढ़ावा देकर आहार विविधीकरण (हिडन हंगर को समाप्त करना) को प्रोत्साहित करना।
NAFED क्या है?
- भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ लिमिटेड की स्थापना 2 अक्तूबर, 1958 को गांधी जयंती के शुभ अवसर पर की गई थी।
- यह बहु-राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीकृत है।
- यह भारत में कृषि उपज के विपणन हेतु सहकारी समितियों का एक शीर्ष संगठन है।
- यह वर्तमान में प्याज़, दालें एवं तिलहन जैसे कृषि उत्पादों के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. दलहन के आयात पर भारत की निर्भरता के संबंध में वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिये। दलहन उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता से संबंधित चुनौतियों एवं संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में दालों के उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. जल इंजीनियरी और कृषि-विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019) प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017) |