भारत-जापान शिखर बैठक, 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत-जापान संबंध, क्वाड ग्रुपिंग, व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि। मेन्स के लिये:भारत-जापान संबंधों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जापानी प्रधानमंत्री द्वारा दोनों देशों (जापान और भारत) के बीच 14वें भारत-जापान वार्षिक शिखर बैठक (India-Japan Annual Summit) के लिये भारत की आधिकारिक यात्रा की गई।
- इस शिखर बैठक का आयोजन ऐसे महत्त्वपूर्ण समय पर हुआ जब दोनों देश अपने द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगांँठ मना रहे हैं और साथ ही भारत अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांँठ मना रहा है।
- इससे पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री ने गुजरात के अहमदाबाद मैनेजमेंट एसोसिएशन (AMA) में एक जापानी 'ज़ेन गार्डन- काइज़न अकादमी' (Zen Garden- Kaizen Academy) का उद्घाटन किया।
प्रमुख बिंदु
शिखर बैठक के प्रमुख बिंदु:
- जापान द्वारा निवेश:
- जापान द्वारा भारत में अगले पांँच वर्षों में 3.2 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा।
- जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (Japan International Cooperation Agency- JICA) द्वारा विभिन्न राज्यों में कनेक्टिविटी, जल आपूर्ति और सीवरेज, बागवानी, स्वास्थ्य देखभाल तथा जैव विविधता संरक्षण परियोजनाओं हेतु ऋण उपलब्ध कराया जाएगा।
- जापानी कंपनियों द्वारा विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार हेतु भारत में जोहकासौ प्रौद्योगिकी (Johkasou technology) शुरू करने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इसका उपयोग उन क्षेत्रों में किया जाता है जहांँ सीवेज का बुनियादी ढांँचा विकसित नहीं हुआ है।
- भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये सतत् विकास पहल:
- इसे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढांँचे के विकास पर नज़र रखने हेतु लॉन्च किया गया है, इसके अलावा इसमें चल रही परियोजनाओं और कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य देखभाल, नई एवं नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में संभावित भविष्य के सहयोग के साथ-साथ बांँस मूल्य शृंखला को मज़बूत करने के लिये भी एक पहल शामिल है।
- भारत-जापान डिजिटल साझेदारी:
- दोनों देशों द्वारा साइबर सुरक्षा पर इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाओं को बढ़ावा देते हुए डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के उद्देश्य से "भारत-जापान डिजिटल साझेदारी" पर चर्चा की गई।
- जापान द्वारा अपने आईसीटी क्षेत्र में कुशल भारतीय आईटी पेशेवरों को शामिल करने की आशा व्यक्त की गई है।
- स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी:
- इलेक्ट्रिक वाहनों, बैटरी सहित स्टोरेज सिस्टम, इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग से संबंधित बुनियादी ढांँचे, सौर ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन/अमोनिया सहित स्वच्छ पवन ऊर्जा से संबंधित योजनाओं पर विचारों का आदान-प्रदान और कार्बन रीसाइक्लिंग जैसे क्षेत्रों में सतत् आर्थिक विकास करने की दिशा में सहयोग हेतु भारत-जापान स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी (India-Japan Clean Energy Partnership- CEP) का स्वागत किया गया।
- इसका उद्देश्य भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना, इन क्षेत्रों में लचीलापन और भरोसेमंद आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण के साथ-साथ अनुसंधान एवं विकासमें सहयोग को बढ़ावा देना है।
- इसे एनर्जी डायलॉग (Energy Dialogue) के मौजूदा मैकेनिज़्म के माध्यम से लागू किया जाएगा।
- मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (MAHSR):
- भारत द्वारा MAHSR और भारत में विभिन्न मेट्रो परियोजनाओं पर जापान के सहयोग की सराहना की गई एवं पटना मेट्रो के लिये योजनाबद्ध प्रारंभिक सर्वेक्षण की आशा की गई।
- लोगों के मध्य जुड़ाव:
- भारतीय प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश तथा दोनों देशो के लोगों के मध्य संबंधों को औरअधिक मज़बूत करने एवं व्यापक बनाने के लिये एक्सपो 2025 ओसाका, कंसाई, जापान ( Expo 2025 Osaka, Kansai, Japan) में भारत की भागीदारी की पुष्टि की।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र:
- दोनों देशों के नेताओं ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- क्वाड:
- दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान और अमेरिका के बीच क्वाड ग्रुपिंग (QUAD Grouping) सहित क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारी के महत्त्व की पुष्टि की।
- जापानी प्रधानमंत्री द्वारा टोक्यो में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन की बैठक में पीएम मोदी को आमंत्रित किया गया।
- आतंकवाद:
- दोनों देश के प्रमुखों द्वारा 26/11 मुंबई और पठानकोट हमलों सहित भारत में आतंकवादी हमलों की निंदा की गई और पाकिस्तान से अपने क्षेत्र से बाहर संचालित आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ दृढ़ और अपरिवर्तनीय कार्रवाई करने तथा वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force-FATF) सहित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का पूरी तरह से पालन करने का आह्वान किया गया।
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT):
- जापानी प्रधानमंत्री द्वारा व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT) के समूह में शीघ्र शामिल होने के महत्त्व पर बल दिया गया।
- संधि का उद्देश्य हर जगह सभी के द्वारा सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाना है। संधि के अनुबंध 2 में सूचीबद्ध सभी 44 राज्यों द्वारा इसकी पुष्टि करने के बाद यह लागू हो जाएगा।
- भारत ने अभी तक संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
- जापानी प्रधानमंत्री द्वारा व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT) के समूह में शीघ्र शामिल होने के महत्त्व पर बल दिया गया।
- अन्य देशों में स्थिति:
- यूक्रेन: रूस- यूक्रेन संघर्ष पर वार्ता करते हुए अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर शांतिपूर्ण समाधान की मांग की गई।
- चीन: भारत ने जापान को लद्दाख की स्थिति तथा वहाँ सैनिकों को इकट्ठा करने के प्रयासों और सीमा संबंधी मुद्दों पर चीन के साथ भारत की बातचीत के बारे में सूचित किया।
- जापान के पीएम ने भारत को पूर्वी और दक्षिण चीन सागर के बारे में अपने दृष्टिकोण से भी अवगत कराया।
- अफगानिस्तान:
- अफगानिस्तान में प्रधानमंत्री ने शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिये सहयोग करने की अपनी मंशा व्यक्त की तथा मानवीय संकट को संबोधित करने, मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और वास्तव में एक प्रतिनिधि एवं समावेशी राजनीतिक प्रणाली की स्थापना सुनिश्चित करने के महत्त्व पर बल दिया।
- उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जो स्पष्ट रूप से “आतंकवादी कृत्यों में शामिल लोगों को आश्रय, प्रशिक्षण, योजना बनाने या वित्तपोषण के लिये अफगान क्षेत्र का उपयोग न करने” की मांग करता है।
- उत्तर कोरिया: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों (UNSCRs) का उल्लंघन करते हुए उत्तर कोरिया की बैलिस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण की दोनों प्रधानमंत्रियों ने निंदा की।
- म्याँमार: उन्होंने म्याँमार से आसियान की पाँच सूत्री सहमति को तत्काल लागू करने का आह्वान किया।
विगत वर्षों के प्रश्ननिम्नलिखित में से किस स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (ITER) परियोजना का निर्माण किया जाना है? (2008) (a) उत्तरी स्पेन उत्तर: (b) |
भारत और जापान के बीच अन्य हालिया घटनाक्रम:
- भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा हाल ही में चीन के आक्रामक राजनीतिक और सैन्य व्यवहार के मद्देनज़र चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिये एक त्रिपक्षीय ‘सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव’ (SCRI) शुरू करने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।
- वर्ष 2020 में भारत और जापान ने एक रसद समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जो दोनों देशों के सशस्त्र बलों को सेवाओं और आपूर्ति में समन्वय स्थापित करने की अनुमति देगा। इस समझौते को ‘अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते’ (ACSA) के रूप में जाना जाता है।
- वर्ष 2014 में भारत और जापान ने 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक भागीदारी' के क्षेत्र में अपने संबंधों को उन्नत किया था।
- अगस्त 2011 में लागू ‘भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (CEPA) वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं तथा व्यापार से संबंधित अन्य मुद्दों को शामिल करता है।
- जापान, भारत का 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है तथा दोनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार का सिर्फ पाँचवाँ हिस्सा है।
- रक्षा अभ्यास: भारत और जापान के रक्षा बलों के बीच विभिन्न द्विपक्षीय अभ्यासों का आयोजन किया जाता है, जिसमें JIMEX (नौसेना), SHINYUU मैत्री (वायु सेना), और धर्म गार्जियन (थल सेना) आदि शामिल हैं। दोनों देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मालाबार अभ्यास (नौसेना अभ्यास) में भी भाग लेते हैं।
- भारत और जापान दोनों ही G-20 और G-4 के सदस्य हैं।
- वे इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) के सदस्य देश भी हैं।
विगत वर्षों के प्रश्ननिम्नलिखित में से कौन से समूह में G20 के सदस्य सभी चार देश शामिल हैं? (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) |
आगे की राह
- अधिक सहयोग और सहभागिता दोनों देशों के लिये फायदेमंद साबित हो सकती है, क्योंकि भारत को जापान से परिष्कृत तकनीक की आवश्यकता है।
- ‘मेक इन इंडिया’ के क्षेत्र में बहुत बड़ी संभावना है। भारतीय कच्चे माल और श्रम के साथ जापानी डिजिटल प्रौद्योगिकी का विलय करके संयुक्त उद्यम बनाए जा सकते हैं।
- भौतिक के साथ-साथ डिजिटल स्पेस में एशिया और इंडो-पैसिफिक में चीन के बढ़ते प्रभुत्व से निपटने के लिये दोनों देशों के बीच करीबी सहयोग सबसे अच्छा उपाय है।
स्रोत: पी.आई.बी.
राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता पर संधि (BBNJ)
प्रिलिम्स के लिये:UNCLOS, BBNJ, IUCN मेन्स के लिये:BBNJ संधि, संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर-सरकारी सम्मेलन की चौथी बैठक (IGC-4) न्यूयॉर्क में आयोजित की गई, जिसमें राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) क्षेत्रों में समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग पर एक उपकरण का मसौदा तैयार किया गया था।
- IGC-4 संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के अंतर्गत आयोजित की गई है।
BBNJ संधि:
- "BBNJ संधि", जिसे "उच्च समुद्री संधि" के रूप में भी जाना जाता है, वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में वार्ता के तहत राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग पर एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- यह नया उपकरण UNCLOS के ढाँचे के अंतर्गत विकसित किया जा रहा है, जो समुद्र में मानव गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला मुख्य अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- यह उच्च समुद्री गतिविधियों का अधिक समग्रता के साथ प्रबंधन करेगा, जिससे समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग के बीच बेहतर संतुलन स्थापित किया जा सकेगा।
- BBNJ विशेष आर्थिक क्षेत्रों या देशों के राष्ट्रीय जल क्षेत्र से परे उच्च समुद्रों को शामिल करता है।
- इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के अनुसार, इन क्षेत्रों में "पृथ्वी की सतह का लगभग आधा हिस्सा" मौजूद है।
- इन क्षेत्रों को शायद ही जैव विविधता के लिये विनियमित और विस्तृत किया जाता है, इनमें सिर्फ 1% क्षेत्र का ही संरक्षण किया जाता हैं।
- फरवरी 2022 में शुरू किया गया वन ओशन समिट राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता के उच्चतम स्तर पर महत्त्वाकांक्षी परिणाम तथा BBNJ वार्ता में शामिल कई प्रतिनिधिमंडलों को एक साथ लाता है।
- यह वार्ता वर्ष 2015 में सहमत तत्त्वों के एक पैकेज के आसपास केंद्रित है, अर्थात्:
- विशेषतः एक साथ और समग्र रूप से राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता का संरक्षण तथा सतत् उपयोग एवं समुद्री आनुवंशिक संसाधन जिसमें लाभों के बँटवारे से संबंधित प्रश्न शामिल हैं।
- समुद्री संरक्षित क्षेत्रों सहित क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन।
- क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण आदि।
BBNJ के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन की आवश्यकता:
- राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे के क्षेत्रों में समुद्र का 95% हिस्सा शामिल है जो मानवता को अमूल्य पारिस्थितिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और खाद्य-सुरक्षा लाभ प्रदान करते हैं।
- हालांँकि जीवन से परिपूर्ण ये क्षेत्र अब बढ़ते खतरों के प्रति संवेदनशील हैं जिनमें प्रदूषण, अतिदोहन और जलवायु परिवर्तन जैसे पहले से ही दिखाई देने वाले प्रभाव शामिल हैं।
- आने वाले दशकों में समुद्री संसाधनों की बढ़ती मांग, जिसमे भोजन, खनिज या जैव प्रौद्योगिकी शामिल हैं, इस समस्या को और अधिक गंभीर बना सकते हैं।
- उच्च समुद्र अत्यंत जैव विविधता वाले क्षेत्र होते हैं और इसके प्रभावों को जाने बिना ही उनका दोहन किया गया है।
- उच्च समुद्रों के सतही जल में वैज्ञानिक अन्वेषण हुए हैं, जबकि गहरे समुद्र अर्थात् सतह के 200 मीटर नीचे शायद ही कोई अध्ययन कार्य किया गया हो।
- गहरे समुद्र तल, जिसे सबसे कठोर आवास माना जाता है, के विलुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
- 184 प्रजातियों (मोलस्क की) के मूल्यांकन में 62% प्रजातियाँ संकटग्रस्त रूप में सूचीबद्ध: 39 प्रजातियों को गंभीर रूप से संकटग्रस्त, 32 प्रजातियाँ को लुप्तप्राय और 43 को सुभेद्य रूप से सूचीबद्ध किया गया है।
- हिंद महासागर के गड्ढों और दरारों में 100% मोलस्क पहले से ही गंभीर रूप से संकटग्रस्त रूप में सूचीबद्ध हैं। यह उन्हें विलुप्त होने से बचाने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। फिर भी जमैका स्थित अंतर-सरकारी निकाय, अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण, गहरे समुद्र में खनन अनुबंधों की अनुमति दे रहा है।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS):
- समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) वर्ष 1982 का एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो समुद्री और समुद्री गतिविधियों के लिये कानूनी ढांँचा स्थापित करता है। इसे समुद्र का नियम ( Law of the Sea) भी कहा जाता है।
- यह समुद्री क्षेत्रों को पाँच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है जिसमे शामिल हैं- आंतरिक जल, प्रादेशिक सागर, सन्निहित क्षेत्र, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और उच्च समुद्र।
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार एवं ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करता है तथा समुद्री साधनों के प्रयोग के लिये नियमों की स्थापना करता है।
- यह तटीय राज्यों और महासागरों को नेविगेट करने वाले राज्यों को एक आधार प्रदान करता है।.
- यह न केवल तटीय राज्यों के अपतटीय क्षेत्रों के ज़ोन को बल्कि पाँच संकेंद्रित क्षेत्रों में राज्यों के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों हेतु विशिष्ट मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
प्रिलिम्स के लिये:एनसीएसटी, एसटी से संबंधित संवैधानिक प्रावधान। मेन्स के लिये:एनसीएसटी और उसके कार्य, अनुसूचित जनजाति। |
चर्चा में क्यों?
एक संसदीय समिति की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes-NCST) पिछले चार वर्षों से निष्क्रिय है तथा उसके द्वारा इन चार वर्षों में संसद (Parliament) के समक्ष एक भी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है।
प्रमुख बिंदु:
NCST के बारे में:
- स्थापना: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित कर की गई थी, अत: यह एक संवैधानिक निकाय है।
- उद्देश्य: अनुच्छेद 338A अन्य बातों के साथ-साथ NCST को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार को किसी अन्य आदेश के तहत STs को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्ति प्रदान करता है।
- संरचना: इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन पूर्णकालिक सदस्य (एक महिला सदस्य सहित) शामिल हैं।
- सदस्यों में कम-से-कम एक सदस्य महिला होनी चाहिये।
- कार्यकारी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और NCST के सदस्यों का कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तिथि से लेकर तीन वर्ष तक का होता है।
- सदस्य दो से अधिक कार्यकाल के लिये नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।
- इस आयोग के अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री तथा उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जबकि अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव पद का दर्जा दिया गया है।
NCST के कर्तव्य और कार्य:
- NCST को संविधान के तहत या अन्य कानूनों के तहत या अनुसूचित जनजाति के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जाँच एवं निगरानी का अधिकार है।
- अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।
- अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना एवं उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना जब आयोग उन सुरक्षा उपायों के कार्य पर रिपोर्ट देना उचित समझे।
- अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और विकास तथा उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जो राष्ट्रपति संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
NCST से संबंधित मुद्दे:
- लंबित रिपोर्ट:
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसकी केवल चार बार बैठक हुई है। शिकायतों के समाधान और इसे प्राप्त होने वाले मामलों की लंबित दर भी 50% के करीब है।
- जनशक्ति और बजटीय आवंटन में कमी:
- समिति ने जनशक्ति और बजटीय कमी के साथ आयोग के कामकाज पर निराशा व्यक्त की।
- आयोग में भर्ती, आवेदकों की कमी के कारण बाधित थी क्योंकि पात्रता को कई बार निर्धारित किया गया और कई उम्मीदवारों को आवेदन करने में सक्षम बनाने के लिये नियमों को बदल दिया गया था।
पैनल की सिफारिशें:
- रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये। इसमें अब और देरी का कोई कारण नहीं है, क्योंकि भर्ती नियमों को उपयुक्त रूप से संशोधित किया गया है।
- आयोग के लिये बजटीय आवंटन की समीक्षा करने की आवश्यकता है ताकि धन की कमी के कारण इसके कामकाज़ को नुकसान न पहुँचे।
भारत में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति:
- परिचय:
- वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को ‘बहिर्वेशित’ और ‘आंशिक रूप से बहिर्वेशित’ क्षेत्रों में ‘पिछड़ी जनजातियों’ के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत पहली बार ‘पिछड़ी जनजातियों’ के प्रतिनिधियों को प्रांतीय विधानसभाओं में आमंत्रित किया गया।
- संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है और इसलिये वर्ष 1931 की जनगणना में निहित परिभाषा का उपयोग स्वतंत्रता के बाद के आरंभिक वर्षों में किया गया था।
- हालाँकि संविधान का अनुच्छेद 366(25) अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है: “अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के अंदर कुछ वर्गों या समूहों से है, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
- 342(1): राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में तथा जहाँ यह एक राज्य है, वहाँ के राज्यपाल के परामर्श के बाद एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में जनजातियों या जनजातीय समुदायों या जनजातियों या जनजातीय समुदायों के समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकता है।
- अब तक लगभग 705 से अधिक जनजातियाँ ऐसी हैं जिन्हें अधिसूचित किया गया है। सबसे अधिक संख्या में आदिवासी समुदाय ओडिशा में पाए जाते हैं।
- कानूनी प्रावधान:
- संबंधित पहल:
- ट्राइफेड
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल परिवर्तन
- विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) का विकास
- वन धन विकास योजना
- संबंधित समितियाँ:
- शाशा समिति (2013)
- भूरिया आयोग (2002-2004)
- लोकुर समिति (1965)
अनुच्छेद 244: खंड (1) पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा राज्यों के अलावा किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण पर लागू होंगे, जो इस अनुच्छेद के खंड (2) के तहत छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं।
334: आरक्षण के लिये 10 वर्ष की अवधि (अवधि बढ़ाने हेतु कई बार संशोधित)।
विगत वर्षों के प्रश्नभारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची में किससे संबंधित प्रावधान हैं? (2015) (a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा
प्रिलिम्स के लिये:संवैधानिक प्रावधान और संबंधित पहल। मेन्स के लिये:बाल यौन शोषण से संबंधित मुद्दे और आवश्यक कदम, बच्चों से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की बेंच ने इस मुद्दे पर एक विभाजित फैसला दिया है कि क्या आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 155 (2) यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) की धारा 23 के तहत अपराध की जाँच पर लागू होगी।
- सीआरपीसी की धारा 155 (2) के अनुसार, एक पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना गैर-संज्ञेय अपराध की जाँच नहीं कर सकता है।
- POCSO की धारा 23 यौन अपराध पीड़िता की पहचान का खुलासा करने के अपराध से संबंधित है।
- न्यायाधीशों में से एक ने कहा कि एक बच्चे की पहचान का खुलासा करना जो यौन अपराधों का शिकार है या जो कानून का उल्लंघन करता है, बच्चे के सम्मान के अधिकार, शर्मिंदा न होने के अधिकार का मौलिक उल्लंघन है।
बाल यौन शोषण से संबंधित मुद्दे:
- बहुस्तरीय समस्या: बाल यौन शोषण एक बहुस्तरीय समस्या है जो बच्चों की शारीरिक सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, कल्याण और व्यवहार संबंधी पहलुओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
- डिजिटल प्रौद्योगिकियों के कारण प्रवर्द्धन: मोबाइल और डिजिटल प्रौद्योगिकियों ने बाल शोषण को और अधिक बढ़ा दिया है। ऑनलाइन चोरी, उत्पीड़न और चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे बाल शोषण के नए रूप भी सामने आए हैं।
- अप्रभावी विधान: हालाँकि भारत सरकार ने यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 (पॉक्सो अधिनियम) अधिनियमित किया है, लेकिन यह बच्चे को यौन शोषण से बचाने में विफल रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
- दोषसिद्धि की निम्न दर: POCSO अधिनियम के तहत दोषसिद्धि की दर केवल लगभग 32% है यदि कोई पिछले 5 वर्षों का औसत निकाले तो लंबित मामले लगभग 90% हैं।
- न्यायिक विलंब: कठुआ बलात्कार मामले में मुख्य आरोपी को दोषी ठहराने में 16 महीने लग गए, जबकि पॉक्सो अधिनियम में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मामले की पूरी सुनवाई तथा दोषसिद्धि की प्रक्रिया एक साल में पूरी करनी होगी।
- बच्चे के प्रति मित्रता का अभाव: बच्चे की आयु-निर्धारण से संबंधित चुनौतियाँ विशेष रूप से ऐसे कानून जो जैविक उम्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं, न कि मानसिक उम्र पर।
संबंधित पहल:
- बाल शोषण रोकथाम एवं जाँच इकाई
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- किशोर न्याय अधिनियम/देखभाल और संरक्षण अधिनियम, 2000
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (2006)
- बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम, 2016
संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान प्रत्येक बच्चे को सम्मान के साथ जीने का अधिकार (अनुच्छेद 21), व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21), निजता का अधिकार (अनुच्छेद 21), समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) और/या भेदभाव के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 15), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 और 24) की गारंटी देता है।
- 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21 A)।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों और विशेष रूप से अनुच्छेद 39 (F) द्वारा बच्चों को स्वस्थ तरीके से तथा स्वतंत्रता व सम्मान की स्थिति में विकसित होने के अवसर व सुविधाएंँ दी जाएंँ, बाल्यावस्था और युवावस्था में नैतिक एवं भौतिक शोषण से बचाया जाए, यह सुनिश्चित करने के लिये राज्य के दायित्व को निर्धारित किया गया।
आगे की राह
- बच्चों के लिये सुरक्षित वातावरण का निर्माण करते हुए दुर्व्यवहार के खिलाफ रोकथाम गतिविधियों को प्राथमिकता देना समय की मांग है।
- कानूनी ढांँचे, नीतियों, राष्ट्रीय रणनीतियों और मानकों के बेहतर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों के भागीदारों और स्थानीय सरकारों के साथ-साथ पुलिस तथा वकीलों को शामिल करने के लिये एक व्यापक आउटरीच प्रणाली विकसित करना आवश्यक है।
विगत वर्षों के प्रश्न:बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेशन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का/के अधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
स्रोत: द हिंदू
फिनलैंडाइज़ेशन
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में फ्राँस के राष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त होने पर फिनलैंडाइज़ेशन (Finlandization) यूक्रेन के लिये एक वास्तविक परिणाम हो सकता है।
फिनलैंडाइज़ेशन:
- यह मॉस्को (रूस) और पश्चिम के बीच सख्त तटस्थता की नीति को संदर्भित करता है जिसका पालन फिनलैंड ने शीत युद्ध के दशकों के दौरान किया था।
- तटस्थता का सिद्धांत मित्रता, सहयोग और पारस्परिक सहायता के समझौते (या YYA संधि फिनिश में “Ystävyys-, yhteistyö-ja avunantosopimus”) में निहित था, जिसे फिनलैंड ने अप्रैल 1948 में USSR के साथ हस्ताक्षरित किया था।
- संधि के अनुच्छेद 1 में लिखा है: “फिनलैंड या फिनिश क्षेत्र के माध्यम से सोवियत संघ, जर्मनी या किसी भी राज्य द्वारा सशस्त्र हमले का लक्ष्य बनना (अर्थात् अनिवार्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका) , फिनलैंड, एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अपने दायित्वों के लिये हमले को रोकने के लिये संघर्ष करेगा।
- फिनलैंड ऐसे मामले में अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिये अपने सभी उपलब्ध बलों (थल सेना, नौसेना और वायु सेना ) का उपयोग करेगा और फिनलैंड की सीमाओं के भीतर वर्तमान समझौते में परिभाषित दायित्वों के अनुसार सोवियत संघ की सहायता से ऐसा करेगा।
- ऐसे मामलों में सोवियत संघ अनुबंध करने वाले पक्षों के बीच आपसी समझौते के अधीन फिनलैंड को वह सहायता प्रदान करेगा जिसकी उसे आवश्यकता है।
रूस के साथ युद्ध समाप्त होने के बाद फिनलैंड का रुख:
- जब फिनलैंड ने सोवियत रूस के बाद एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किये तो वर्ष 1948 की संधि ने वर्ष 1992 तक फिनलैंड-रूस संबंधों का आधार निर्मित किया।
- यह विशेष रूप से वर्ष 1946 से वर्ष 1982 तक फिनलैंड की विदेश नीति के सिद्धांत के केंद्र में था तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में इसे "पासिकीवी-केकोनेन लाइन" (Paasikivi-Kekkonen Line) के रूप में जाना जाता है।
- फिनलैंड के दृष्टिकोण से, जिसकी राजधानी हेलसिंकी है तथा फिनलैंड की खाड़ी में स्थित है। संधि ने इसे बाल्टिक और पूर्वी यूरोपीय राज्यों के हमले से या यूएसएसआर में शामिल होने से बचाया।
- इसने देश को महान शक्तियों के बीच होने वाले संघर्ष से बाहर रखते हुए लोकतंत्र और पूंजीवाद के मार्ग पर चलने की अनुमति दी।
- फिनलैंड ने मार्शल प्लान में भाग नहीं लिया। इसने उन मामलों पर तटस्थ रुख अपनाया जिन पर सोवियत संघ और पश्चिम असहमत थे। यह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) तथा यूरोपीय सैन्य शक्तियों से अलग रहा एवं सोवियत ब्लॉक या वारसा संधि का हिस्सा बनने के लिये मास्को के दबाव को दूर करने हेतु इस स्थिति का इस्तेमाल किया।
- मार्शल प्लान एक यू.एस.प्रायोजित कार्यक्रम था जिसे 17 पश्चिमी और दक्षिणी यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्वास के लिये डिज़ाइन किया गया था ताकि स्थिर परिस्थितियों का निर्माण किया जा सके जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लोकतांत्रिक संस्थान जीवित रह सकें।
आगे की राह
- यूक्रेन को यूरोप सहित अपने आर्थिक और राजनीतिक संघों को स्वतंत्र रूप से चुनने का अधिकार होना चाहिये।
- यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं होना चाहिये। इसे अपने लोगों की व्यक्त इच्छा के अनुरूप सरकार बनाने के लिये स्वतंत्र होना चाहिये।
- यह राष्ट्र अधिकांश क्षेत्रों में पश्चिम के साथ सहयोग करता है लेकिन रूस के प्रति शत्रुता से सावधानी से बचता है।