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डेली न्यूज़

  • 21 Nov, 2023
  • 61 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गिनी की खाड़ी में दूसरा समुद्री डकैती रोधी गश्ती दल

प्रिलिम्स के लिये:

गिनी की खाड़ी (GoG), INS सुमेधा, खाड़ी, समुद्री डकैती रोधी गश्त, सूचना संलयन केंद्र (IFC)

मेन्स के लिये:

समुद्री सुरक्षा सहयोग और देशों पर समुद्री डाकुओं का बोझ, समुद्री सुरक्षा और संबंधित चिंताएँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारतीय नौसेना ने हाल ही में अटलांटिक महासागर में गिनी की खाड़ी (GoG) में अपनी दूसरी समुद्री डकैती रोधी गश्त पूरी की, इस मिशन में अपतटीय गश्ती पोत INS सुमेधा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • सितंबर/अक्तूबर 2022 में INS तरकश द्वारा पहली GoG समुद्री डकैती रोधी गश्त शुरू की गई थी।

GoG में दूसरी समुद्री डकैती रोधी गश्त की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • INS सुमेधा ने GoG में 31-दिवसीय समुद्री डकैती रोधी गश्त का संचालन किया, जो अफ्रीका के पश्चिमी तट के साथ अटलांटिक महासागर में एक विस्तारित-रेंज परिचालन तैनाती पर है।
    • सुमेधा की तैनाती ने यह भी सुनिश्चित किया कि भारतीय नौसेना के संबंध सेनेगल, घाना, टोगो, नाइजीरिया, अंगोला तथा नामीबिया जैसी क्षेत्रीय नौसेनाओं के साथ मज़बूत हों।
  • INS सुमेधा की तैनाती का उद्देश्य संयुक्त प्रशिक्षण के माध्यम से क्षेत्रीय भागीदारों की क्षमताओं को बढ़ाना है, जो 'वसुधैव कुटुंबकम' यानी पृथ्वी एक परिवार है, के दर्शन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर ज़ोर देता है।
  • गश्ती दल का लक्ष्य भारतीय और विदेशी व्यापारिक जहाज़ों की सुरक्षा, क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा व स्थिरता में सुधार करना तथा समुद्री डकैती एवं हिंसक डकैती को हतोत्साहित करना एवं रोकना था।

गिनी की खाड़ी (GoG) के विषय में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • GoG पश्चिमी अफ्रीकी तट पर अटलांटिक महासागर का प्रवेश द्वार है, जो गैबॉन में केप लोपेज़ से लाइबेरिया में केप पालमास तक पश्चिम की ओर फैला हुआ है।
    • खाड़ी को समुद्र के उस हिस्से के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके इर्द-गिर्द भूमि का घेरा हो। इनका निर्माण प्लेट टेक्टोनिक्स के परिणामस्वरूप होता है और अक्सर जलडमरूमध्य के रूप में संकीर्ण जल मार्गों द्वारा समुद्र से जुड़े होते हैं।  
  • यह प्रमुख याम्योत्तर (Prime Meridian) तथा भूमध्य रेखा के जंक्शन पर 0°0'N एवं 0°0'E पर स्थित है।
  • गिनी की खाड़ी में गिरने वाली प्रमुख नदियों में वोल्टा एवं नाइजर शामिल हैं।
  • व्यापक समुद्री डकैती के कारण GoG विश्व की सबसे खतरनाक खाड़ियों में से एक है, जिसने अन्य अंतर्राष्ट्रीय देशों सहित पश्चिम अफ्रीका के कई देशों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
    • इस खाड़ी में प्रत्येक वर्ष समुद्री डाकुओं द्वारा लगभग 100 जहाज़ों को निशाना बनाया जाता  है।
  • GoG क्षेत्र में विश्व के कुल पेट्रोलियम भंडार का 35% से अधिक हिस्सा है।
    • यहाँ हीरा, यूरेनियम, तांबा आदि सहित कई खनिज पाए जाते हैं।
  • गिनी की खाड़ी क्षेत्र की प्रमुख आर्थिक गतिविधियों में पेट्रोलियम अन्वेषण, खनन एवं गैस फ्लेरिंग, बंदरगाह संचालन तथा मत्स्यपालन शामिल हैं। 
  • गिनी की खाड़ी के किनारे स्थित 16 तटीय देश- अंगोला, बेनिन, कैमरून, कोटे डी’ आइवर, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, कांगो गणराज्य, गिनी, इक्वेटोरियल गिनी, गिनी-बिसाऊ, गैबॉन, नाइजीरिया, घाना, साओ टोमे और प्रिंसिपे, टोगो एवं सिएरा लियोन हैं।

गिनी की खाड़ी भारत के लिये रणनीतिक रूप से कैसे महत्त्वपूर्ण है? 

  • गिनी की खाड़ी देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक प्रमुख स्रोत होने के कारण भारत के राष्ट्रीय हितों के लिये अत्यधिक रणनीतिक महत्त्व रखती है।
    • हाल के वर्षों में नाइजीरिया, भारत के लिये कच्चे तेल के मुख्य स्रोतों में से एक रहा है, वर्ष 2020 में यह भारत को कच्चे तेल तथा तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता था।
  • GoG भारत के लिये सुरक्षा चिंता का क्षेत्र भी रहा है, क्योंकि यह समुद्री डकैती, सशस्त्र डकैती, आतंकवाद एवं अंतर्राष्ट्रीय अपराध की चुनौतियों का सामना करता है।
    • भारत GoG में समुद्री डकैती की घटनाओं का शिकार होता रहा है, क्योंकि अतीत में कई भारतीय नागरिकों को समुद्री लुटेरों द्वारा बंधक बना लिया जाता था।

INS सुमेधा:

  • INS सुमेधा सरयू वर्ग के स्वदेशी रूप से विकसित नौसेना अपतटीय गश्ती जहाज़ (NOPV) में से तीसरा है, जिसे स्वतंत्र रूप से और बेड़े के संचालन हेतु कई भूमिकाओं के लिये तैनात किया गया है।
    • यह जहाज़ कई हथियार प्रणालियों, सेंसर, अत्याधुनिक नेविगेशन और संचार प्रणालियों एवं  एक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली से सुसज्जित है।
  • INS सुमेधा का उद्देश्य भारतीय नौसेना की बढ़ती समुद्री निगरानी और गश्त आवश्यकताओं को पूरा करना है।
    • इस जहाज़ की प्राथमिक भूमिका विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की निगरानी, समुद्री डकैती रोधी गश्त, बेड़े के संचालन, अपतटीय संपत्तियों को समुद्री सुरक्षा प्रदान करना और उच्च मूल्य वाली संपत्तियों का अनुरक्षण करना है।
  • समुद्री सुरक्षा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रदर्शित करते हुए इसने गिनी की खाड़ी में पहले भारत-यूरोपीय संघ संयुक्त अभ्यास में भाग लिया।
  • इसने ऑपरेशन कावेरी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और अप्रैल 2023 में युद्ध प्रभावित सूडान से भारतीय प्रवासियों को निकालने में योगदान दिया।

समुद्री सुरक्षा से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न   

प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल को-ऑपरेशन (IOR_ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना हाल ही में घटित समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।  
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


इन्फोग्राफिक्स

भू-अभियांत्रिकी

Geo-Engineering

और पढ़ें: भू-अभियांत्रिकी


भारतीय राजनीति

व्यभिचार और संबंधित पेचीदगियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय समितियाँ, कानूनी स्थायी बनाम विधायी कार्रवाई, भारत में व्यभिचार पर कानूनी स्थिति।

मेन्स के लिये:

व्यभिचार को अपराध घोषित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

गृह मामलों की संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 को बदलने के लिये प्रस्तावित कानून, भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 में व्यभिचार को एक अपराध के रूप में फिर से स्थापित किया जाना चाहिये।

भारत में व्यभिचार को लेकर कानूनी स्थिति क्या है?

  • व्यभिचार :
    • व्यभिचार एक विवाहित व्यक्ति (पुरुष या महिला) द्वारा अपने जीवनसाथी के अलावा किसी अन्य के साथ शारीरिक संबंध बनाने का स्वैच्छिक कार्य है।
  • भारत में कानूनी स्थिति:
    • वर्ष 2018 से पहले भारतीय दंड संहिता में धारा 497 शामिल थी, जो व्यभिचार को एक आपराधिक कृत्य के रूप में वर्गीकृत करती थी, जिसमें पाँच वर्ष तक की कैद, ज़ुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती थी।
      • विशेष रूप से धारा 497 के तहत केवल पुरुषों को दंड का सामना करना पड़ सकता था, जबकि महिलाओं को अभियोजन से छूट थी।
      • यह व्यभिचार की व्यापक परिभाषा के विपरीत है, जिसमें वैवाहिक जीवन से बाहर स्वैच्छिक शारीरिक संबंधों में शामिल दोनों लिंगों को शामिल किया गया है।
    • जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) के एक ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से धारा 497 को रद्द कर दिया।
      • सरकार  ने भेदभाव और संवैधानिक उल्लंघनों पर प्रकाश डाला, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 पर ज़ोर देते हुए क्रमशः समानता, गैर-भेदभाव और जीवन एवं स्वतंत्रता की रक्षा की।
    • हाल ही में गृह मामलों की संसदीय समिति ने भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 में व्यभिचार को एक अपराध के रूप में फिर से स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। 
      • हालाँकि यह एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का सुझाव देती है कि इसे लैंगिक-तटस्थता की स्थिति प्रदान की जाए जो पुरुषों और महिलाओं दोनों पर लागू हो।
      • यह तर्क दिया गया कि धारा 497 को भेदभाव के आधार पर रद्द कर दिया गया था तथा लैंगिक-तटस्थता से इस कमी को दूर किया जा सकेगा।

कानूनी स्थिति बनाम विधायी कार्रवाई:

  • गृह मामलों की संसदीय समिति का हालिया प्रस्ताव सर्वोच्च न्यायालय की कानूनी स्थिति को चुनौती प्रतीत होता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय देश के कानून के समान है। हालाँकि संसद सीधे तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन नहीं कर सकती है लेकिन उसके पास कानून पारित करने का अधिकार है जो निर्णय के आधार को संबोधित करता है, जिसका लक्ष्य पहचाने गए दोषों को दूर करना है, जबकि संभावित रूप से न्यायालय की टिप्पणियों के साथ संरेखित करने के लिये पूर्वव्यापी अथवा भावी कानूनों पर विचार करना होगा।
  • मद्रास बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2021) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी मान्य कानून को वैध ठहराने के लिये उसे प्रारंभिक निर्णय में पहचाने गए दोष का प्रभावी ढंग से समाधान करना होगा।
    • इसका तात्पर्य यह है कि यदि कानून द्वारा प्रस्तावित परिवर्तन पूर्व के निर्णय के दौरान हुए थे तो उन्हें उठाए गए मुद्दे को इस तरह से संबोधित करना चाहिये था कि दोष को उजागर होने से रोका जा सके। 

व्यभिचार को अपराध घोषित करने के पक्ष तथा विपक्ष में क्या तर्क हैं?

  • वैवाहिक पवित्रता का संरक्षण: समर्थकों का तर्क है कि व्यभिचार को अपराध घोषित करने से विवाह संस्था की सुरक्षा होती है, जिससे समाज के भीतर इसकी पवित्रता तथा पारंपरिक मूल्य बने रहते हैं।
  • निवारक प्रभाव: व्यभिचार को दंडनीय अपराध बनाना एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है, जो व्यक्तियों को विवाहेतर संबंधों में शामिल होने से हतोत्साहित कर सकता है, जिससे ऐसी घटनाओं में कमी आएगी।
  • कानूनी सहारा: व्यभिचार को अपराध घोषित करना वैवाहिक विश्वसनीयता के उल्लंघन को संबोधित करने के लिये एक कानूनी अवसर प्रदान करता है जो विश्वास तोड़ने वाले  कार्य के लिये पीड़ित पति अथवा पत्नी को सहारा प्रदान करता है।
  • नैतिक आधार: कुछ लोगों का तर्क है कि व्यभिचार नैतिक रूप से अनुचित है और इसलिये  सामाजिक मानदंडों तथा नैतिक मानकों को दर्शाते हुए कानून के तहत यह दंडनीय होना चाहिये।
  • व्यभिचार को अपराध घोषित करने के विरुद्ध तर्क:
    • स्वायत्तता और गोपनीयता: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि व्यभिचार को अपराध घोषित करने से वैवाहिक संबंधों में व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन हो सकता है। 
      • व्यभिचार को अपराध घोषित करना संवैधानिक सिद्धांतों, विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के रूप में देखा गया, जो पति-पत्नी दोनों की गरिमा और गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करता है।
      • यह सुझाव दिया गया कि ऐसे मामलों को दंडनीय अपराध के बजाय तलाक के आधार के रूप में संबोधित किया जाना चाहिये।
    • दीवानी बनाम आपराधिक मामला: आलोचकों का तर्क है कि व्यभिचार मुख्य रूप से एक दीवानी मामला है, जो विवाह में विश्वास के उल्लंघन पर केंद्रित है।
      • परिस्थितियों को देखते हुए इसे एक दंडनीय अपराध मानना उचित नहीं होगा, जिससे समस्या अनावश्यक रूप से बिगड़ सकती है।
    • रिश्तों पर प्रभाव: व्यभिचार को दंडनीय अपराध मानने से  तनावपूर्ण रिश्ते और भी खराब हो सकते हैं।
      • कानूनी अड़चनें भावनात्मक संकट को बढ़ा सकती हैं और पति-पत्नी के बीच मेल-मिलाप की संभावनाओं को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
    • कानूनी जटिलता: व्यभिचार में अक्सर रिश्तों के अंदर व्यक्तिपरक और सूक्ष्म परिस्थितियाँ शामिल होती हैं।
      • ऐसे मामलों पर कानून बनाने और मुकदमा चलाने का प्रयास कानूनी जटिलताओं को जन्म दे सकता है, जिससे न्यायिक प्रणाली पर व्यक्तिपरक मामलों का बोझ बढ़ सकता है।

निष्कर्ष: 

व्यभिचार की जटिलताओं से निपटने के लिये एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। कानूनी सुधार, विधायी कार्रवाइयों और सामाजिक जागरूकता को संतुलित करना एक निष्पक्ष तथा सामंजस्यपूर्ण कदम के रूप में महत्त्वपूर्ण हो सकता है।


भूगोल

लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व वर्षावनों का अस्तित्व

प्रिलिम्स के लिये:

लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व के वर्षावनों का अस्तित्व, भूमध्यरेखीय (उष्णकटिबंधीय) वर्षावन, जलवायु परिवर्तन, जीवाश्म विज्ञान

मेन्स के लिये:

लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व  वर्षावनों का अस्तित्व, संरक्षण

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज़ (BSIP) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व अर्ली इओसीन क्लाइमेट ऑप्टिमम (Early Eocene Climatic Optimum- EECO) के भूमध्यरेखीय (उष्णकटिबंधीय) वर्षावनों की जलवायु का खुलासा किया है, जो तब अस्तित्व में थी जब पृथ्वी वैश्विक स्तर पर गर्म थी।

  • इस अनुसंधान ने अतीत के स्थलीय भूमध्यरेखीय जलवायु डेटा की मात्रा निर्धारित करने हेतु प्लांट प्रॉक्सी को नियोजित करते हुए नवीन तकनीकों का उपयोग किया। इन तरीकों से उन तंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली जो प्राचीन वर्षावनों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बनाते थे।

प्लांट प्रॉक्सी क्या हैं?

  • पर्यावरण विज्ञान या जीवाश्म विज्ञान (जीवाश्मों के आधार पर पृथ्वी पर जीवन के इतिहास का अध्ययन) के संदर्भ में "प्लांट प्रॉक्सी" अप्रत्यक्ष साक्ष्य या संकेतक को संदर्भित करती है जिसका उपयोग वैज्ञानिक पूर्व की पर्यावरणीय स्थितियों को समझने के लिये करते हैं, विशेष रूप से पौधों के जीवन से संबंधित।
  • ये प्रॉक्सी प्रत्यक्ष साक्ष्य के विकल्प या स्टैंड-इन के रूप में कार्य करते हैं जो उपलब्ध नहीं हो सकते हैं या आसानी से पहुँच योग्य नहीं हो सकते हैं।
  • उदाहरण के लिये पराग कण अत्यधिक प्रतिरोधी होते हैं और इन्हें हज़ारों या लाखों वर्षों तक तलछट में संरक्षित किया जा सकता है। तलछट कोर या परतों में पराग के प्रकार तथा प्रचुरता का अध्ययन करके वैज्ञानिक उन पौधों के प्रकार का अनुमान लगा सकते हैं जो एक विशिष्ट अवधि के दौरान किसी विशेष क्षेत्र में मौजूद थे। 
  • यह प्लांट प्रॉक्सी वैज्ञानिकों को प्राचीन पारिस्थितिक तंत्रों के पुनर्निर्माण, दीर्घकालिक पर्यावरणीय परिवर्तनों को समझने और भूवैज्ञानिक समय के पैमाने पर जलवायु एवं वनस्पति में बदलाव को ट्रैक करने में मदद करती है।

अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • भूमध्यरेखीय वर्षावनों का लचीलापन:
    • लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले वैश्विक स्तर पर गर्मी और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के बावजूद भूमध्यरेखीय वर्षावन न केवल अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहे बल्कि फले-फूले भी।
    • पहले यह ज्ञात था कि पृथ्वी वर्तमान की तुलना में लगभग 13 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म थी और इस दौरान कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 1000 ppmv से अधिक थी।
    • जल विज्ञान चक्र में परिवर्तन के कारण मध्य और उच्च अक्षांश के वनों के अस्तित्व पर इसका काफी प्रभाव पड़ा, लेकिन भूमध्यरेखीय वन अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहे।
  • उच्च वर्षा की भूमिका:
    • अध्ययन में भूमध्यरेखीय वर्षावनों के अस्तित्व को बनाए रखने और उन्हें समृद्ध करने वाले एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में उच्च वर्षा पर प्रकाश डाला गया है।
    • उच्च वर्षा से पौधों की जल उपयोग दक्षता में वृद्धि होने की संभावना है, जिससे वनस्पतियों को अत्यधिक गर्मी और उच्च कार्बन डाइऑक्साइड स्तरों में कार्य करने की अनुमति मिलेगी।
  • इस अध्ययन के निहितार्थ:
    • EECO जैसे ऊष्म अवधि के दौरान भूमध्यरेखीय वर्षावनों की जलवायु गतिशीलता एवं लचीलेपन को समझना भविष्य के जलवायु पूर्वानुमानों के लिये महत्त्व रखता है तथा विषम जलवायु परिस्थितियों में उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व हेतु रणनीतियाँ बनाने में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

भूमध्यरेखीय वर्षावन क्या हैं?

  • परिचय:
    • भूमध्यरेखीय वर्षावन (Equatorial Rainforests) उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भूमध्य रेखा के पास पाए जाने वाले हरे-भरे, जैवविविधता वाले वन हैं।
    • ये वन आमतौर पर भूमध्य रेखा के उत्तर अथवा दक्षिण में 10 डिग्री अक्षांश के अंतर्गत स्थित होते हैं तथा इनमें समग्र वर्ष उच्च तापमान एवं भारी वर्षा की स्थिति बनी रहती है।

  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • जलवायु: इन वनों में ऊष्म तथा आर्द्र जलवायु की स्थिति होती है  जहाँ वर्ष भर लगातार उच्च तापमान होता है जो आमतौर पर औसत 25-27 डिग्री सेल्सियस (77-81 डिग्री फारेनहाइट) के आसपास होता है। यहाँ भारी वर्षा होती है, जो अमूमन सालाना 2,000 मिलीमीटर (80 इंच) से अधिक होती है, जिसके कारण इसे "वर्षावन" कहा जाता है।
    • जैवविविधता: भूमध्यरेखीय वर्षावन पृथ्वी पर सबसे विविध पारिस्थितिक तंत्रों में से हैं, जिनमें पौधों तथा जीवों की प्रजातियों की अविश्वसनीय रूप से समृद्ध विविधता पाई जाती है।
      • इन वनों में पेड़ों, पौधों, कीटों, पक्षियों, स्तनपायी जीवों तथा अन्य जीवों की असंख्य प्रजातियाँ मौजूद हैं, जिनमें से कई इन क्षेत्रों के लिये स्थानिक हैं।
    • वनस्पति तथा जीव: भूमध्यरेखीय वर्षावनों में ऊँचे वृक्ष पाए जाते हैं जो गहन छतरियों के रूप में वन के धरातल को छाया प्रदान करते हैं, जिससे एक बहुस्तरीय पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है।
      • इनमें विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रजातियाँ, जिनमें एपिफाइट्स (अन्य पौधों पर उगने वाले पौधे), लियाना (ऊपर की ओर जाने वाली लताएँ) तथा पेड़ों की कई प्रजातियाँ शामिल हैं जो  समृद्ध जैवविविधता में योगदान करती हैं।
    • महत्त्व: भूमध्यरेखीय वर्षावन पृथ्वी की जलवायु और कार्बन चक्र को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त वे अनगिनत प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं, स्वदेशी समुदायों का समर्थन करते हैं और औषधीय पौधों के संसाधनों के केंद्र हैं।
    • खतरे: दुर्भाग्य से इन वर्षावनों के निर्वनीकरण, कटाई, कृषि, खनन और अन्य मानवीय गतिविधियों जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है।
      • जलवायु परिवर्तन इन वनों में रहने वाली विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के लिये खतरा उत्पन्न करने के अलावा उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को नुकसान पहुँचाकर वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.  निम्नलिखित में से कौन-सी विषुवतीय वनों की अद्वितीय विशेषता है/विशेषताएँ हैं? (2013)

  1. ऊँचे, घनें वृक्षों की विद्यमानता जिनके किरीट निरंतर वितान बनाते हों।  
  2. बहुत-सी जातियों का सह-अस्तित्व हो।  
  3. अधिपादपों की असंख्य किस्मों की विघमानता हो।  

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


भारतीय राजनीति

जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

उप-वर्गीकरण, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC), अनुसूचित जनजाति

मेन्स के लिये:

जातियों का उप-वर्गीकरण, सुभेद्य वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री ने अनुसूचित जाति (SC) के अंतर्गत आने वाले सबसे पिछड़े समुदायों की पहचान तथा उनकी सहायता करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है, इसने अनुसूचित जाति (SC) के भीतर उप-वर्गीकरण के मुद्दे को चर्चा में ला दिया है।

  • इस निर्णय के परिणामस्वरूप उप-वर्गीकरण की वैधता, चुनौतियों तथा संभावित प्रभाव पर चर्चा शुरू हो गई है।

जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण क्या है?

  • परिचय:
    • जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण आरक्षण तथा सकारात्मक कार्रवाई के लिये अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की मौजूदा श्रेणियों के भीतर उप-समूह बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
    • उप-वर्गीकरण का उद्देश्य अंतर-श्रेणी असमानताओं का समाधान करना तथा समाज के सबसे वंचित एवं हाशिये पर रहने वाले वर्गों के बीच लाभ व अवसरों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना है।
  • उप-वर्गीकरण की वैधता:
    • ऐतिहासिक प्रयास:
      • सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचे इस मामले में कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहे पंजाब, बिहार तथा तमिलनाडु जैसे राज्यों ने उप-वर्गीकरण का प्रयास किया है।
    • संवैधानिक दुविधा: 
      • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य, 2004 के मामले में कहा कि केवल संसद के पास SC तथा अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूची बनाने एवं अधिसूचित करने का अधिकार है।
      • हालाँकि पंजाब राज्य और अन्य बनाम दविंदर सिंह एवं अन्य, 2020 के एक अन्य मामले में पाँच-न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया कि राज्य पहले से ही अधिसूचित SC/ST की सूचियों में "छेड़छाड़" किये बिना लाभ की मात्रा पर निर्णय ले सकते हैं। 
        • वर्ष 2004 और 2020 के फैसलों के बीच विरोधाभास के कारण वर्ष 2020 के फैसले को बड़ी बेंच को भेजा गया है।
      • संविधान के अनुच्छेद 16(4) में यह अधिकार दिया गया है कि राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई प्रावधान कर सकता है, यदि वे राज्य के तहत सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की आवश्यकता क्यों है?

  • व्यवसाय, शिक्षा, आय, सामाजिक स्थिति और क्षेत्रीय विविधता जैसे कारकों के आधार पर SC, ST और OBC श्रेणियों के भीतर एक महत्त्वपूर्ण भिन्नता और विविधता है।
    • SC, ST और OBC श्रेणियों के भीतर कुछ प्रमुख एवं प्रभावशाली उप-समूहों के अनुपातहीन तथा विषम प्रतिनिधित्व के प्रमाण हैं, जिन्होंने कमज़ोर तथा अधिक पिछड़े उप-समूहों को पीछे छोड़ते हुए आरक्षण के लाभ के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया है।
  • SC, ST और OBC श्रेणियों के भीतर विभिन्न उप-समूहों, जैसे कि तेलंगाना में मडिगा, बिहार में पासवान और उत्तर प्रदेश में जाटव द्वारा निष्पक्ष तथा पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये उप-वर्गीकरण एवं अलग कोटे की मांग की जा रही है। 

जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • SC, ST और OBC श्रेणियों के भीतर विभिन्न उप-समूहों की जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विश्वसनीय तथा अद्यतन डेटा की कमी है, जो उप-वर्गीकरण के उद्देश्य एवं वैज्ञानिक आधार को बाधित करता है।
  • SC, ST और OBC श्रेणियों के भीतर प्रमुख एवं प्रभावशाली उप-समूहों से कानूनी तथा राजनीतिक प्रतिक्रिया की संभावना है, जो उप-वर्गीकरण व आरक्षण लाभ के अपने हिस्से में कमी का विरोध कर सकते हैं।
  • SC, ST व OBC श्रेणियों के भीतर और अधिक विखंडन तथा विभाजन का खतरा है, जो उनकी सामूहिक पहचान एवं एकजुटता को कमज़ोर कर सकता है, साथ ही उनके राजनीतिक, सामाजिक सशक्तीकरण को कमज़ोर कर सकता है।

आगे की राह 

  • SC, ST और OBC के भीतर उप-समूहों की जनसंख्या एवं सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर एक व्यवस्थित एवं अद्यतन डेटा संग्रह प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
    • साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिये एक ठोस आधार प्रदान करने हेतु संपूर्ण जाति जनगणना आयोजित करना ।
  • सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता के व्यापक लक्ष्यों के साथ जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण को संतुलित करने एवं यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उप-वर्गीकरण समानता तथा  गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता हो।
  • सामाजिक न्याय और लाभों के समान वितरण को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका पर ज़ोर देते हुए उप-वर्गीकरण के पीछे के तर्क को स्पष्ट करने हेतु संचार रणनीतियाँ विकसित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित संगठनों/निकायों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग 
  2. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग 
  3. राष्ट्रीय विधि आयोग 
  4. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

उपर्युक्त में से कितने सांविधानिक निकाय हैं? 

(a) केवल एक 
(b) केवल दो 
(c) केवल तीन 
(d) सभी चार 

उत्तर: (a)


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल ऋण परिदृश्य में धोखाधड़ी वाले ऋण एप का खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल ऋण, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

मेन्स के लिये:

धोखाधड़ीपूर्ण प्रथाओं के उद्भव को लेकर चिंताएँ, बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित मुद्दे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स का प्रसार उधारकर्त्ताओं के लिये गंभीर जोखिम पैदा कर रहे है, जिसमें अत्यधिक ब्याज दरों के साथ ही मानसिक उत्पीड़न की घटनाएँ भी बढ़ रही हैं।

  • डिजिटल ऋण प्रदान करने में तेज़ी से वृद्धि के बावजूद नियामक शून्यता के कारण ऐसी घोटालेबाज़ एप्स के प्रसार में मदद मिलती है, जो बिना सोचे-समझे उपयोगकर्त्ताओं का शोषण करते हैं।

नोट: 

  • डिजिटल ऋण पारंपरिक भौतिक दस्तावेज़ीकरण या व्यक्तिगत बातचीत की आवश्यकता के बिना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या डिजिटल चैनलों के माध्यम से व्यक्तियों या व्यवसायों को ऋण या क्रेडिट प्रदान करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।

धोखाधड़ी वाले ऋण एप क्या हैं?

  • परिचय:
    • नकली ऋण एप्स अनधिकृत और अवैध डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म हैं जो कम आय और कमज़ोर वित्तीय स्थिति वाले लोगों को लक्षित कर 1,000 रुपए से 1 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करते हैं।
    • वे बिना किसी क्रेडिट जाँच, दस्तावेज़ या संपार्श्विक के तत्काल और बिना किसी परेशानी के ऋण प्रदान करने का दावा करते हैं।
  • परिचालन प्रक्रिया:
    • धोखाधड़ी करने वाले ऋण एप अक्सर स्वयं को ऋण कैलकुलेटर या एग्रीगेटर जैसे वैध वित्तीय उपकरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो वित्तीय सहायता चाहने वाले उपयोगकर्त्ताओं के विश्वास का फायदा उठाते हैं।
    • ये एप्स विशाल उपयोगकर्त्ता आधार का लाभ उठाते हुए इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर स्वतंत्र रूप से विज्ञापन जारी करते हैं।
      • हालाँकि चेतावनी के संकेत होने के बावजूद सावधानीपूर्वक जाँच न किये जाने के कारण वे अपने भ्रामक विज्ञापन जारी रखने सफल होते हैं।
      • चेतावनी के संकेत होने के बावजूद सावधानीपूर्वक जाँच का अभाव उन्हें अपने भ्रामक विज्ञापन जारी रखने की अनुमति देता है।
    • झूठे दावों और वादों से आकर्षित होकर उपयोगकर्त्ता इन भ्रामक एप्स का शिकार हो जाते हैं, जिससे उन्हें अत्यधिक ब्याज दरों के साथ ही उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है।
      • यदि उधारकर्त्ता समय पर ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो एप द्वारा उधारकर्त्ता और उसके संपर्कों के ज़रिये अपमानजनक तथा धमकी भरे संदेश, कॉल एवं ईमेल भेजना शुरू कर दिया जाता है। 
    • यह एप उधारकर्त्ता की तस्वीरों और वीडियो तक भी पहुँच सकता है तथा उन्हें ब्लैकमेल करने के लिये विकृत व अश्लील छवियाँ बना सकता है।
    • कुछ एप्स रिकवरी एजेंटों को कार्य पर रखकर शारीरिक हिंसा और उत्पीड़न का सहारा भी लेते हैं।
    • कुछ मामलों में अत्यधिक दबाव और अपमान के कारण कर्ज़दार आत्महत्या करने के लिये मजबूर हो जाते हैं।

  • डिजिटल ऋण का विकास और धोखाधड़ी करने वालों का उदय:
    • पिछले 11 वर्षों में डिजिटल ऋण बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2023 तक अनुमानित 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, यह लगभग 40% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है, इसमें से अधिकांश गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और बैंकों से समर्थित वास्तविक फिनटेक कंपनियों द्वारा संचालित है।
    • हालाँकि इस वृद्धि ने धोखेबाज़ों के लिये एक अवसर भी प्रदान किया है, अवैध ऋण बाज़ार संभावित रूप से 700-800 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है
      • बैंकों, NBFC और फिनटेक कंपनियों के नेतृत्व में वर्ष 2023 में डिजिटल ऋण 80 बिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है। यह बैंकों, NBFC और फिनटेक कंपनियों के बीच सहयोग बढ़ाने में योगदान देता है।

धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स को लेकर क्या चिंताएँ हैं?

  • विनियामक मानदंडों का अभाव:
    • हितधारक, सरकार और नियामक मानदंडों की अनुपस्थिति की कमी को उजागर करते हैं, जो ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म को अपेक्षित प्रयास (Minimal due Diligence) की अनुमति देता है।    
    • प्रवर्तन और जवाबदेही की कमी के चलते कई अवैध ऋण एप नकली या विदेशी पहचान का उपयोग कर बार-बार अपना नाम तथा व्यक्तिगत पहचान को परिवर्तित करते हैं ताकि कई चैनलों एवं मध्यस्थों के माध्यम से संचालन कर व अपनी पहचान छुपाकर कार्रवाई से बच सकें।
  • RBI के सीमित दिशा-निर्देश:
    • हालाँकि RBI ने सितंबर 2022 में डिजिटल ऋण देने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये लेकिन ये दिशा-निर्देश केवल बैंकों और NBFC जैसी विनियमित संस्थाओं पर लागू होते हैं। कारणवश धोखाधड़ी करने वाले एप्स पर काफी हद तक नियंत्रण लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • सोशल मीडिया कंपनियों की गंभीरता की कमी:
    • बढ़ते खतरे के बावजूद नकली ऋण एप्स के विज्ञापनों की सक्रिय रूप से निगरानी नहीं करने के लिये सोशल मीडिया कंपनियों की आलोचना की जाती है।

कुछ व्यक्तियों का तर्क है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का लालच कमज़ोर निरीक्षण में भूमिका निभाता है।

  • विनियामक अनिश्चितता का वैध एप्स पर प्रभाव:
    • विनियामक कार्रवाई कभी-कभी वैध ऋण देने वाले एप्स को प्रभावित करती है, जिससे अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • वैध NBFC की गलतबयानी:
    • वैध NBFC अवैध ऋण देने वाले एप्स द्वारा उनकी गलतबयानी के विषय में चिंता व्यक्त करते हैं।
      • कुछ धोखाधड़ी वाले एप्स पूरे क्षेत्र की प्रतिष्ठा को धूमिल कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता जागरूकता:
    • उपभोक्ता जागरूकता और सुरक्षा की कमी, कई उधारकर्त्ता ऋण एप्स की साख और शर्तों को सत्यापित नहीं करते तथा उनकी भ्रामक प्रथाओं का शिकार हो जाते हैं।

आगे की राह

  • नियामक ढाँचे को मज़बूत बनाना:
    • डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफाॅर्मों, विशेष रूप से मोबाइल एप के माध्यम से कार्य करने वाले प्लेटफाॅर्मों के लिये व्यापक कानूनी दिशा-निर्देश स्थापित करना।
      • अनियमित प्लेटफाॅर्मों सहित डिजिटल ऋण देने वाली संस्थाओं के व्यापक स्पेक्ट्रम को कवर करने के लिये RBI दिशा-निर्देशों का दायरा बढ़ाना।
    • धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स को विनियामक अंतराल का लाभ उठाने से रोकने के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिये सख्त उचित प्रक्रियाएँ लागू करना।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निगरानी बढ़ाना:
    • ऋण एप्स से संबंधित विज्ञापनों की सक्रिय निगरानी तथा विनियमन के लिये सोशल मीडिया कंपनियों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
      • धोखाधड़ी वाले एप्स की पहचान कर उन्हें हटाने के लिये कड़ी स्क्रीनिंग प्रक्रियाओं को लागू करने के लिये सोशल मीडिया कंपनियों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
      • उन सोशल मीडिया कंपनियों पर दंड लगाना जो अपने प्लेटफॉर्म पर नकली ऋण एप्स के प्रसार को रोकने में विफल रहती हैं।
  • उपभोक्ता शिक्षा तथा जागरूकता:
    • उपयोगकर्त्ताओं को धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स से संबंधित जोखिमों के बारे में शिक्षित करने हेतु  जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
      • उत्तरदायी ऋण प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये तथा व्यक्तियों को ऋण देने वाले प्लेटफाॅर्मों से जुड़ने से पहले उनकी वैधता को सत्यापित करने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • सीमा पार धोखाधड़ी वाले ऋण एप संचालन को ट्रैक करने तथा दंडित करने के लिये वैश्विक संगठनों एवं नियामकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
      • नियामक उपायों को सशक्त करने एवं डिजिटल ऋण चुनौतियों से निपटने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु संबद्ध विषय की वैश्विक विशेषज्ञता का उपयोग करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

  1. वे सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियों के अधिग्रहण में शामिल नहीं हो सकतीं। 
  2. वे बचत खाते की तरह मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकतीं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और ना ही 2

उत्तर: (b)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत ने 2023-34 में सर्वाधिक पेटेंट प्रदान किये

प्रिलिम्स के लिये:

भारत ने 2023-34 में सर्वाधिक पेटेंट प्रदान किये, भारतीय पेटेंट कार्यालय (IPO), विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO), पेटेंट सहयोग संधि (PCT), पेटेंट अधिनियम, 1970

मेन्स के लिये:

भारत ने 2023-34 में सर्वाधिक पेटेंट प्रदान किये, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय पेटेंट कार्यालय (IPO) ने नवंबर 2023 तक सबसे अधिक 41,010 पेटेंट प्रदान किये हैं।

  • वित्तीय वर्ष 2013-14 में 4,227 पेटेंट प्रदान किये गए थे। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारतीय पेटेंट आवेदनों में 31.6% की वृद्धि हुई, जिससे 11 वर्ष की वृद्धि की प्रवृत्ति जारी रही, जो शीर्ष 10 फाइलर्स में किसी भी अन्य देश से बेजोड़ थी।
  • भारत द्वारा पेटेंट प्रदान करने में वृद्धि, नवाचार, प्रौद्योगिकी तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता में देश की प्रगति को दर्शाती है। यह चुनौतियों का समाधान करके अवसर सृजित कर तथा प्रतिभा का प्रोत्साहन कर समाज, अर्थव्यवस्था एवं युवाओं पर भी प्रभाव डालता है।

नोट:

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के पेटेंट, डिज़ाइन और व्यापार चिह्न (CGPDTM) कार्यालय द्वारा शासित IPO, भारत में पेटेंट, डिज़ाइन तथा भौगोलिक संकेतों के प्रशासन एवं विनियमन के लिये उत्तरदायी है।

पेटेंट क्या है?

  • परिचय:
    • पेटेंट, आविष्कार के लिये एक वैधानिक अधिकार है जो सरकार द्वारा पेटेंटधारक को उसके आविष्कार के पूर्ण प्रकटीकरण के बदले में एक सीमित अवधि के लिये दिया जाता है तथा दूसरों को वह उत्पाद उसकी सहमति के बिना बनाने, उपयोग करने, बेचने, आयात करने अथवा उत्पादन की प्रक्रिया से बाहर कर देता है।
    • भारत में पेटेंट प्रणाली पेटेंट अधिनियम, 1970 द्वारा शासित होती है, जिसे पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 तथा पेटेंट नियम, 2003 द्वारा संशोधित किया गया है।
      • वर्तमान परिवेश के अनुरूप पेटेंट नियमों में नियमित रूप से संशोधन किया जाता है, सबसे हालिया पेटेंट (संशोधन) नियम, 2021 है।
  • पेटेंट की अवधि:
    • दिये गए प्रत्येक पेटेंट की अवधि आवेदन दाखिल करने की तिथि से 20 वर्ष की होती है।
    • हालाँकि, पेटेंट सहयोग संधि (PCT) के तहत राष्ट्रीय चरण के अंतर्गत दायर आवेदनों के लिये पेटेंट की अवधि PCT के तहत दी गई अंतर्राष्ट्रीय फाइलिंग तिथि से 20 वर्ष होगी।
    • अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट एक कानूनी संधि है, जिसमें 150 से अधिक देश शामिल हैं। यह प्रत्येक अनुबंधित देश में आविष्कारों की रक्षा के लिये पेटेंट आवेदनों को दाखिल करने हेतु एक एकीकृत प्रक्रिया प्रदान करती है।
    • ऐसा आवेदन किसी भी व्यक्ति द्वारा दायर किया जा सकता है जो PCT अनुबंधित राज्य या राष्ट्र का निवासी है और आमतौर पर अनुबंधित राज्य के राष्ट्रीय पेटेंट कार्यालय या आवेदक के विकल्प पर जिनेवा में WIPO के अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के साथ दायर किया जा सकता है।
  • पेटेंट योग्यता का मानदंड:
    • एक आविष्कार पेटेंट योग्य विषय-वस्तु है यदि वह निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करता है,
      • यह नवीन होना चाहिये।
      • इसमें आविष्कारी कदम होने चाहिये।
      • यह औद्योगिक अनुप्रयोग में सक्षम होना चाहिये।
      • इस पर पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3 और 4 के प्रावधान लागू नहीं होने चाहिये।
  • पेटेंट संरक्षण का दायरा:
    • पेटेंट संरक्षण एक क्षेत्रीय अधिकार है और इसलिये यह केवल भारत के क्षेत्र के भीतर ही प्रभावी है। वैश्विक पेटेंट की कोई अवधारणा नहीं है।
    • हालाँकि भारत में आवेदन दाखिल करने से आवेदक को भारत में दाखिल करने की तारीख से बारह महीने की समाप्ति के भीतर या उससे पहले कन्वेंशन देशों में या PCT के तहत उसी आविष्कार के लिये संबंधित आवेदन दाखिल करने में मदद मिलती है।
  • पेटेंट अधिनियम, 1970:
    • भारत में पेटेंट प्रणाली के लिये यह प्रमुख कानून वर्ष 1972 में लागू हुआ। इसने भारतीय पेटेंट और डिज़ाइन अधिनियम, 1911 का स्थान लिया।
    • अधिनियम को पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधित किया गया था, जिसमें उत्पाद पेटेंट को भोजन, दवाओं, रसायनों और सूक्ष्मजीवों सहित प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों तक बढ़ाया गया था।
    • संशोधन के बाद विशिष्ट विपणन अधिकार (EMR) से संबंधित प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया है और अनिवार्य लाइसेंस अनुदान का प्रावधान पेश किया गया है। अनुदान-पूर्व और अनुदान-पश्चात् विरोध से संबंधित प्रावधान भी पेश किये गए हैं।

पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित संधियाँ और कन्वेंशन क्या हैं?

  • वैश्विक:
    • भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होने के साथ-साथ बौद्धिक संपदा के व्यापार संबंधी पहलुओं पर समझौते (ट्रिप्स समझौते) के लिये प्रतिबद्ध है।
    • भारत विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organisation- WIPO) का भी सदस्य है, जो विश्व भर में बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये उत्तरदायी निकाय है।
    • भारत IPR से संबंधित निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण WIPO-प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों का भी सदस्य है:
      • पेटेंट प्रक्रिया के प्रयोजनों के लिये सूक्ष्मजीवों के जमाव की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पर बुडापेस्ट संधि
      • औद्योगिक संपत्ति की सुरक्षा के लिये पेरिस 
      • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की स्थापना पर अभिसमय
      • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय
      • पेटेंट सहयोग संधि
  • राष्ट्रीय:.
    • राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति 2016:
      • राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति 2016 को देश में IPR के भविष्य के विकास का मार्गदर्शन करने के लिये एक दृष्टि दस्तावेज़ के रूप में मई 2016 में अपनाया गया था।
      • इसका स्पष्ट आह्वान है “रचनात्मक भारत; इनोवेटिव इंडिया”
      • यह कार्यान्वयन, निगरानी और समीक्षा के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित करता है।
      • इसका उद्देश्य वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को भारतीय परिदृश्य में शामिल करना और अनुकूलित करना है।

आगे की राह

  • इनोवेशन इकोसिस्टम को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें इनोवेशन हब और इनक्यूबेशन केंद्रों की स्थापना एवं समर्थन करते हुए अनुसंधान तथा विकास में निवेश बढ़ाना शामिल है।
  • पेटेंट प्रक्रियाओं को सरल बनाना और भारतीय पेटेंट कार्यालय की क्षमता को बढ़ाना नवप्रवर्तकों को उनके अभूतपूर्व विचारों के लिये सुरक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • IPR पर शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के संचालन के माध्यम से नवप्रवर्तकों, विशेष रूप से युवाओं को सशक्त बनाना, पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया को उजागर कर सकता है, नवाचार एवं सुरक्षा की संस्कृति को बढ़ावा दे सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है।
  2. औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के विनियमन के लिये केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति मानती है कि भारत के पास IPR की सुरक्षा के लिये एक अच्छी तरह से स्थापित TRIPS अनुरूप विधायी, प्रशासनिक और न्यायिक ढाँचा है, जो अपनी विकास संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय शासन में प्रदान की गए लचीलेपन का उपयोग करते हुए अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करता है। यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है। अतः कथन 1 सही है।
  • DIPP (अब DPIIT यानी उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग) को भारत में IPR के कार्यान्वयन तथा भविष्य के विकास के समन्वय, मार्गदर्शन एवं देख-रेख के लिये नोडल एजेंसी के रूप में मान्यता प्राप्त है। DIPP वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आता है। अतः कथन 2 सही है।

इसलिये विकल्प (c) सही उत्तर है।

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है।
  2. भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है।
  3. पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने के पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुच्छेद 3(J) में पेटेंट योग्यता से "पौधों और पशुओं को संपूर्ण या किसी भी हिस्से में सूक्ष्मजीवों के अलावा बीज, किस्मों और प्रजातियों सहित पौधों तथा जीवों के उत्पादन या प्रवर्द्धन के लिये अनिवार्य रूप से जैव प्रक्रियाओं को शामिल नहीं किया गया है"। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारतीय ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 और माल का भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण तथा संरक्षण) अधिनयम, 1999 के अंतर्गत रजिस्ट्रार के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने एवं समाधान करने के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 2003 में बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड (IPAB) का गठन किया गया था। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • पादप विविधता संरक्षण पादप प्रजनक अधिकारों (PBR) के रूप में एक प्रजनक को पादप विविधता का कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। इस संबंध में भारत में पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
  • इसका उद्देश्य पौधों की किस्मों की सुरक्षा और पौधों के प्रजनकों एवं कृषक अधिकार संरक्षण के लिये एक प्रभावी प्रणाली की स्थापना करना है। अतः कथन 3 सही है।

अतः विकल्प C सही है।

मेन्स:

प्रश्न. वैश्वीकृत संसार में बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014)


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