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डेली न्यूज़

  • 21 Aug, 2020
  • 64 min read
शासन व्यवस्था

स्वच्छ सर्वेक्षण 2020

प्रिलिम्स के लिये

स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 संबंधी आँकड़े, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी

मेन्स के लिये

स्वच्छ सर्वेक्षण का उद्देश्य और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) द्वारा आयोजित स्वच्छ महोत्सव में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने वार्षिक स्वच्छता शहरी सर्वेक्षण के पांचवें संस्करण- स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 (Swachh Survekshan 2020) के परिणामों की घोषणा की।

सर्वेक्षण के प्रमुख बिंदु

  • आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा किये गए इस वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण में मध्‍यप्रदेश के इंदौर (Indore) शहर को लगातार चौथी बार (1 लाख से अधिक जनसंख्या की श्रेणी में) देश के सबसे स्वच्छ शहर का दर्जा प्राप्त हुआ है।
    • वहीं इस श्रेणी में सूरत और नवी मुंबई को क्रमशः दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त हुआ।
  • गंगा नदी के तट पर बसे शहरों में वाराणसी को सबसे स्‍वच्‍छ शहर का पुरस्‍कार मिला, जिसके बाद कानपुर, मुंगेर, प्रयागराज और हरिद्वार का स्थान है।
  • 100 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) वाले राज्यों की श्रेणी में छत्तीसगढ़ को देश के सबसे स्वच्छ राज्य का दर्जा प्रदान किया गया, जबकि दूसरा और तीसरा स्थान क्रमशः महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश को प्राप्त हुआ।
  • 100 से कम शहरी स्थानीय निकायों वाले राज्यों की श्रेणी में झारखंड को देश के सबसे स्वच्छ राज्य का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके बाद हरियाणा, उत्तराखंड, सिक्किम, असम और हिमाचल प्रदेश का स्थान है।
  • नई दिल्ली को देश की सबसे ‘स्‍वच्‍छ राजधानी शहर’ की श्रेणी में स्थान प्राप्त हुआ।
  • जालंधर छावनी बोर्ड को देश के सबसे स्‍वच्‍छ छावनी बोर्ड की श्रेणी में पहला स्थान प्राप्त हुआ, जबकि दिल्ली छावनी बोर्ड और मेरठ छावनी बोर्ड ने क्रमश: दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त किया।

वार्षिक स्वच्छ सर्वेक्षण 2020

  • वार्षिक स्वच्छ सर्वेक्षण, एक अखिल भारतीय स्वच्छता सर्वेक्षण है जो भारत के शहरों, कस्बों और राज्यों को स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन और समग्र स्वच्छता के आधार पर मूल्यांकित करता है।
  • स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 देश के वार्षिक स्वच्छ सर्वेक्षण का पांचवाँ संस्करण है।
  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में आयोजित वार्षिक स्वच्छ सर्वेक्षण के पांचवें संस्करण में कुल 4242 शहरों को शामिल किया गया, जिसमें 62 छावनी बोर्ड और 97 गंगा नदी के किनारे बसे शहर भी शामिल हैं।

पृष्ठभूमि

  • शहरी स्वच्छता की स्थिति में सुधार करने के लिये शहरों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoUHA) ने वर्ष 2016 में शहरों की वार्षिक रैंकिंग की शुरुआत की थी।
  • वर्ष 2016 में आयोजित किये गए पहले स्वच्छ सर्वेक्षण में कुल 73 शहरों को शामिल किया गया था और आने वाले वर्षों में इस सर्वेक्षण के दायरे को विस्तृत किया गया और इसके अंतर्गत कई अन्य शहर भी शामिल किये गए।
    • वर्ष 2017 में आयोजित दूसरे स्वच्छ सर्वेक्षण में 434 शहर शामिल थे, जबकि वर्ष 2018 में आयोजित तीसरे स्वच्छ सर्वेक्षण में 4203 शहर शामिल किये गए और वर्ष 2019 में आयोजित सर्वेक्षण के चौथे संस्करण में 4237 शहर शामिल किये गए।

उद्देश्य

  • इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य व्यापक पैमाने पर नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना और कस्बों और शहरों को रहने के लिये एक बेहतर स्थान बनाने की दिशा में एक साथ काम करने के महत्त्व के बारे में समाज के सभी वर्गों के बीच जागरूकता पैदा करना है।
  • इसके अलावा इस सर्वेक्षण का उद्देश्य देश के सभी कस्बों और शहरों में सबसे स्वच्छ शहर बनने के लिये स्‍वस्‍थ प्रतिस्पर्द्धा की भावना को बढ़ावा देना भी है।
  • वर्ष 2016 में इस वार्षिक स्वच्छ सर्वेक्षण की शुरुआत एक स्वच्छता निगरानी उपकरण के रूप में की गई थी, किंतु वर्तमान में यह समय के साथ स्वच्छता के संस्थायन (Institutionalization) पर केंद्रित एक उपकरण के रूप में विकसित हो गया है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

न्यूनतम मज़दूरी से संबंधित मुद्दे

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, ड्राफ्ट कोड ऑन वेज (सेंट्रल) रूल्स, 2020,न्यूनतम वेतन सीमा

मेन्स के लिये:

न्यूनतम मज़दरी के निर्धारण हेतु मानदंड, विभिन्न राज्य सरकारों के समक्ष न्यूनतम मज़दरी के निर्धारण में समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) द्वारा ड्राफ्ट कोड ऑन वेज (सेंट्रल) रूल्स, 2020 ( Draft Code on Wages (Central) Rules, 2020) में वर्तमान न्यूनतम वेतन (Minimum Wage) निर्धारण मानदंड को अस्पष्ट बताया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • 7 जुलाई 2020 को, केंद्र सरकार ने आधिकारिक राजपत्र में वेजेज़ (सेंट्रल) रूल्स, 2020 पर ड्राफ्ट कोड प्रकाशित किया एवं इसे आपत्तियों तथा सुझावों को आमंत्रित करने वाले पब्लिक डोमेन (Public Domain) में रखा।
  • न्यूनतम वेतन का निर्धारण:
    • उपभोग इकाइयों की संख्या (Number of Consumption Units): वेतन संहिता (Wage Code) 3 वयस्क खपत इकाइयों के बराबर मानक श्रमिक वर्ग परिवार को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण करता है।
    • एक मानक श्रमिक परिवार में सिर्फ 3 वयस्क उपभोग इकाइयाँ शामिल हैं।
    • पुरुष कर्मचारी को 1 उपभोग इकाई, उसकी पत्नी को 0.8 उपभोग इकाई और दो बच्चों को 0.6 उपभोग इकाई के रूप में गिना जाता है।
    • एक परिवार के सदस्यों की खाद्य आवश्यकताओं के बारे में ऐसी धारणा त्रुटिपूर्ण लगती है। इसके अलावा, इस अवधारणा में ऐसे परिवारों पर विचार नहीं किया जाता जो घर के बड़े सदस्यों पर आश्रित है।
  • व्यय: भोजन, कपड़े, आश्रय, ईंधन, बिजली, बच्चों की शिक्षा और चिकित्सा आवश्यकताओं के लिये किये गए खर्चों के अनुमान पर विचार करके कोड के तहत न्यूनतम मज़दूरी तय की गई है। इसमें आकस्मिकताओं और विविध मदों पर खर्च भी शामिल है।
    • हालाँकि न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये निर्धारित मानदंड वर्तमान समय में एक परिवार की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये किये गए सभी खर्चों को ध्यान में नहीं रखते हैं।
    • उदाहरण के लिये इसमें परिवहन, मोबाइल फोन बिल और इंटरनेट कनेक्शन बिल पर किये गए खर्च पर विचार नहीं किया जाता है।
  • वस्त्र: मानक श्रमिक परिवार वर्ग को प्रति वर्ष 66 मीटर कपड़े की आवश्यकता वास्तविक रूप से कम है।
    • इसमें ठंडे क्षेत्रों के लोगों की अतिरिक्त कपड़ों की आवश्यकताओं को भी ध्यान में नहीं रखा गया है।
  • आवास: आवास किराया खर्च का कुल 10% भोजन और कपड़ों पर खर्च किया जाएगा, जो कि सोचने में काफी अव्यावहारिक है क्योंकि महानगरीय क्षेत्रों एवं उसके आसपास के परिवार के लिये एक अच्छे आवास का किराया कम से कम 5000 रूपए प्रति माह होगा।।
    • मज़दूरी के निर्धारण का आधार: मसौदा कोड के तहत न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण दैनिक आधार पर किया गया है।
    • हालाँकि, ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा है कि मासिक आधार पर न्यूनतम मज़दूरी के निर्धारण की तुलना में एक दिन के आधार पर मज़दूरी का निर्धारण श्रमिकों के लिये नुकसानदेह हो सकता है।

न्यूनतम वेतन सीमा/मज़दूरी का निर्धारण (Fixation of Floor Wage):

  • वेतन संहिता, 2020 न्यूनतम वेतन सीमा/मज़दूरी की अवधारणा को प्रस्तुत करती है जो केंद्र सरकार को श्रमिकों के न्यूनतम जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम वेतन सीमा तय करने का अधिकार प्रदान करती है।
    • यह एक आधारभूत मज़दूरी दर है जिसके नीचे न्यूनतम मज़दूरी राज्य सरकारों द्वारा तय नहीं की जा सकती है।
    • वेतन संहिता विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम वेतन सीमा निर्धारित करने की अनुमति देती है। हालाँकि इसने उन क्षेत्रों में एक आर्थिक शंका को उत्पन्न किया है जिन क्षेत्रों में मज़दूरी अधिक है परंतु कम दी जाती है।
    • इसके अलावा, वेतन नियम केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन सीमा दरों के निर्धारण के लिये सटीक मानदंडों की रूपरेखा प्रस्तुत नहीं करते हैं।

सुझाव:

  • न्यूनतम वेतन सीमा के निर्धारण की सटीक विधियों को बताते हुए यह वेतन संहिता लागू होने के बाद उचित स्तर पर फ्लोर वेज को स्थापित करने में सक्षम करेगा।

न्यूनतम वेतन के संशोधन की आवधिकता को ठीक करना-

  • न्यूनतम वेतन के दो घटक मूल वेतन एवं महंगाई भत्ता हैं। कागजी तौर पर हर 5 वर्षों में मूल वेतन के संशोधन का सुझाव दिया गया है इसका एक हिस्सा प्रस्तावित न्यूनतम वेतन नियमों से गायब है।
  • श्रमिकों और नियोक्ताओं के प्रतिनिधि संगठनों के साथ परामर्श करके नियमों को परिभाषित करना और साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण पर भरोसा करना ।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तीस्ता नदी जल विवाद और भारत-बांग्लादेश संबंध

प्रिलिम्स के लिये

तीस्ता नदी, नदी जल विवाद

मेन्स के लिये

तीस्ता नदी जल विवाद और भारत-बांग्लादेश संबंध

चर्चा में क्यों?

तीस्ता नदी (Teesta River) के प्रबंधन संबंधी एक परियोजना के लिये बांग्लादेश चीन से लगभग 1 अरब डॉलर के ऋण पर चर्चा कर रहा है। ध्यातव्य है कि भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी में पानी के बँटवारे को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। ऐसे में इस वार्ता के निहितार्थ तथा भारत-बांग्लादेश के संबंधों पर इसके प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है।

प्रमुख बिंदु

  • बांग्लादेश की इस परियोजना का उद्देश्य तीस्ता नदी के बेसिन का कुशल प्रबंधन करना, बाढ़ को नियंत्रित करना और ग्रीष्मकाल में जल संकट से निपटना है।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि बांग्लादेश और चीन के बीच इस तरह की ऋण संबंधी चर्चा ऐसे समय में चल रही है जब लद्दाख में हुए गतिरोध के चलते भारत और चीन के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।

तीस्ता नदी जल विवाद

  • हिमालय से उत्पन्न होने वाली और सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल से होकर असम में ब्रह्मपुत्र नदी (बांग्लादेश में जमुना नदी) में विलय होने वाली तीस्ता नदी के जल का बंटवारा भारत और बांग्लादेश के बीच संभवतः सबसे बड़ा विवाद है।
  • तीस्ता नदी सिक्किम के लगभग पूरे मैदानी इलाके को कवर करने के साथ-साथ बांग्लादेश के लगभग 2,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भी कवर करती है, जिसके कारण यह इन क्षेत्रों में रहने वाले हज़ारों लोगों की जल संबंधी आवश्यकता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • वहीं पश्चिम बंगाल के लिये भी तीस्ता नदी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितनी सिक्किम और बांग्लादेश के लिये, इसे उत्तर बंगाल में आधा दर्जन ज़िलों की जीवन रेखा माना जाता है।
  • गौरतलब है कि दोनों देश सितंबर 2011 में जल-साझाकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने की अंतिम प्रक्रिया में थे, किंतु पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर आपत्ति जताई और इस समझौते को रद्द कर दिया गया।
  • वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद जून 2015 में उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बांग्लादेश का दौरा किया और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को विश्वास दिलाया कि वे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग के माध्यम से तीस्ता पर एक ‘निष्पक्ष समाधान’ तक पहुँच सकते हैं। इस दौरे के पाँच वर्ष बाद भी तीस्ता नदी के जल बँटवारे का मुद्दा अभी तक सुलझ नहीं सकता है।

भारत-बांग्लादेश संबंध: हालिया परिदृश्य

  • भारत और बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की शुरुआत वर्ष 1971 में हो गई थी, जब भारत ने बांग्लादेश राष्ट्र का समर्थन करते हुए अपनी शांति सेना भेजी थी। इसी कारण दोनों के मध्य एक भावनात्मक संबंध भी बना हुआ है।
  • बांग्लादेश के साथ भारत का एक मज़बूत संबंध रहा है, खासतौर पर बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद से।
  • बांग्लादेश को भारत के साथ अपनी आर्थिक एवं विकास संबंधी साझेदारी से काफी लाभ प्राप्त हुआ है, बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
  • बीते एक दशक में दोनों देशों के बीच होने वाले द्विपक्षीय व्यापार में तेज़ी से वृद्धि दर्ज की गई है, आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में भारत से बांग्लादेश में 9.21 बिलियन डॉलर का निर्यात हुआ था और जबकि बांग्लादेश से भारत में 1.04
  • बिलियन डॉलर का आयात हुआ था।
  • भारत प्रत्येक वर्ष चिकित्सा उपचार, पर्यटन, रोज़गार और मनोरंजन आदि के लिये बांग्लादेशी नागरिकों को 15 से 20 लाख वीज़ा जारी करता है।
  • भारत के लिये बांग्लादेश सुरक्षा और पूर्व तथा पूर्वोत्तर राज्यों में शांति व्यवस्था बनाए रखने की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है। किसी भी देश के लिये यह आवश्यक होता है कि उसके पड़ोसी देशों के साथ उसके रिश्ते अच्छे और मज़बूत रहें, खासकर
  • एशियाई क्षेत्र में जहाँ आतंकवाद एक बड़ा खतरा है।
  • भारत के लिये बांग्लादेश 'पड़ोस पहले' (Neighbourhood first) की नीति में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार रहा है।
  • पिछले पाँच महीनों में भारत और बांग्लादेश ने महामारी से निपटने संबंधी कदमों पर काफी सहयोग किया है।

NRC और CAA को लेकर चिंता

  • भारत-बांग्लादेश के संबंध भले ही शुरुआत से बहुत अच्छे रहे हों, परंतु बीते कुछ वर्षों में इनमें कुछ तनाव भी आया है, जिसमें प्रस्तावित देशव्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और बीते वर्ष दिसंबर माह में पारित हुआ नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • बीते दिनों बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर संदेह व्यक्त करते हुए कहा था कि ‘हालाँकि CAA और NRC भारत के आंतरिक विषय हैं, किंतु CAA का कदम आवश्यक है।’
  • बीते वर्ष जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत के दौरे पर आई थीं, तो दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बैठक के दौरान NRC भी चर्चा की गई थी और बांग्लादेशी पक्ष ने NRC के संबंध में अपनी चिंताएँ भी ज़ाहिर कीं। इस विषय पर भारतीय प्रधानमंत्री ने यह भरोसा दिया था कि बांग्लादेश पर NRC का प्रभाव नहीं पड़ेगा और यह भारत का आंतरिक विषय है।


चीन-बांग्लादेश संबंधों का विकास

  • आँकड़े बताते हैं कि चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और आयात का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। वर्ष 2019 में दोनों देशों के बीच लगभग 18 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि दोनों देशों (चीन और बांग्लादेश) के बीच होने वाला द्विपक्षीय व्यापार अधिकांशतः चीन के पक्ष झुका हुआ है।
  • हाल ही में चीन ने बांग्लादेश से आयातित होने वाली 97 प्रतिशत वस्तुओं पर शून्य शुल्क की घोषणा की थी। बांग्लादेश में इस कदम का व्यापक रूप से स्वागत किया गया था और उम्मीद जताई जा रही है कि इससे बांग्लादेश से चीन में होने वाले निर्यात में बढ़ोतरी होगी।
  • चीन ने बांग्लादेश को लगभग 30 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया है। गौरतलब है कि बीते दिनों भारत ने भी बांग्लादेश को 10 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की थी, जिससे बांग्लादेश को भारत की वित्तीय सहायता 30 बिलियन डॉलर पर पहुँच गई है, इस प्रकार बांग्लादेश भारत से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है।
  • इसके अलावा, चीन के साथ बांग्लादेश के मज़बूत रक्षा संबंध स्थिति को जटिल बनाते हैं। वर्तमान में बांग्लादेश के लिये चीन सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है, हालाँकि इसका एक ऐतिहासिक पक्ष भी है।
    • दरअसल बांग्लादेश की स्वतंत्रता प्राप्ति के के बाद पाकिस्तान सेना के कई अधिकारी, जो चीनी हथियारों से अच्छी तरह से वाकिफ थे, बांग्लादेश सेना में शामिल हो गए और इसलिये बांग्लादेशी सेना में चीनी हथियारों को प्राथमिकता दी जाती है।
  • बांग्लादेश की सेना चीनी उपकरणों से लैस है, जिनमें टैंक, मिसाइल लॉन्चर, लड़ाकू विमान और कई हथियार प्रणालियाँ शामिल हैं। हाल ही में बांग्लादेश ने चीन से दो पनडुब्बियाँ भी खरीदी थीं।
  • ध्यातव्य है कि बांग्लादेश की सेना में चीन की पहुँच भारत के लिये सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय हो सकता है।

आगे की राह

  • ध्यातव्य है कि तीस्ता नदी जल विवाद भारत के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है, हालाँकि अगले वर्ष होने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव से पूर्व इस मुद्दे को संबोधित करना काफी मुश्किल होगा।
  • भारत और बांग्लादेश को दोस्ती और सहयोग के माध्यम से अपनी भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रबंधन करना चाहिये। यह आवश्यक है कि दोनों देश अल्पकालिक लाभ हेतु अपने दीर्घकालिक हितों के साथ समझौता न करें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नेपाल द्वारा बाउंड्री वर्किंग ग्रुप की बैठक का प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये

बाउंड्री वर्किंग ग्रुप, कैलाश मानसरोवर मार्ग

मेन्स के लिये:

भारत-नेपाल सीमा विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद के समाधान पर चर्चा के लिये नेपाल द्वारा अगस्त के अंत या सितंबर की शुरुआत में दोनों देशों के बीच ‘बाउंड्री वर्किंग ग्रुप’ (Boundary Work Group- BWG) की बैठक के आयोजन का प्रस्ताव किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत और नेपाल के बीच सीमा रेखा को लेकर बढ़े विवाद के बीच हाल में द्विपक्षीय संबंधों में सुधारों के प्रयास तेज़ हुए हैं।
  • गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद बढ़ने के बाद 15 अगस्त, 2020 को नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने भारतीय प्रधानमंत्री से टेलीफोन से बातचीत की थी।
  • दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच हुई वार्ता के पश्चात 17 अगस्त को नेपाल में भारत सरकार के सहयोग से चल रही परियोजनाओं की समीक्षा के लिये दोनों देशों के शीर्ष अधिकारियों के बीच ‘निगरानी तंत्र’ (Oversight Mechanism- OSM) की बैठक का आयोजन किया गया था।

पृष्ठभूमि:

  • गौरतलब है कि मई, 2020 में भारतीय रक्षा मंत्री द्वारा उत्तराखंड के धारचूला (Dharchula) को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से जोड़ने वाले कैलाश मानसरोवर मार्ग के उद्घाटन के बाद नेपाल ने इसका विरोध किया था।
  • इसके पश्चात मई माह में ही नेपाल सरकार द्वारा अपने देश का एक विवादित राजनीतिक मानचित्र जारी किया था, जिसमें उसने उत्तराखंड के कालापानी (Kalapani), लिंपियाधुरा (Limpiyadhura) और लिपुलेख (Lipulekh) को अपने संप्रभु क्षेत्र का हिस्सा बताया था।
  • जून, 2020 में नेपाल की संसद के निचले सदन में इस विवादित मानचित्र को बहुमत से संवैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई थी।

‘बाउंड्री वर्किंग ग्रुप’ (Boundary Work Group- BWG):

  • ‘बाउंड्री वर्किंग ग्रुप’, भारत और नेपाल सरकार द्वारा गठित एक संयुक्त एजेंसी है।
  • इस एजेंसी का गठन वर्ष 2014 में किया गया था।
  • BWG के गठन का उद्देश्य भारत नेपाल सीमा पर निर्माण से संबंधित कार्य करना है, जिसमें- सीमा स्तंभों की मरम्मत, दोनों देशों की सीमा के बीच निर्धारित ‘नो-मेन्स लैंड’ (No-Man’s Land) की सफाई/निगरानी और अन्य तकनीकी कार्य शामिल हैं।

पूर्व में आयोजित ‘बाउंड्री वर्किंग ग्रुप’ की बैठकें:

  • इस एजेंसी की स्थापना के बाद से अब तक इसकी 6 बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।
  • BWG की अंतिम बैठक 28 अगस्त, 2019 को देहरादून में आयोजित की गई थी।
  • वर्ष 2017 में आयोजित एक बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने अगले पाँच वर्षों में सीमा कार्य को पूरा करने और इसके निष्पादन की प्रक्रिया पर एक व्यापक योजना तैयार की थी।

बाउंड्री वर्किंग ग्रुप की बैठकों का महत्त्व:

  • BWG की बैठक, दोनों पक्षों के बीच आयोजित की जाने वाली विदेश सचिव स्तर की बैठकों से अलग होती है, हालाँकि सीमा कार्य की समीक्षा करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण तंत्र है।
  • BWG बैठकों में भारतीय पक्ष का नेतृत्व ‘भारत के महासर्वेक्षक’ (The Surveyor General of India) द्वारा किया जाता है।
  • BWG से प्राप्त जानकारियाँ सरकारों के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि इन जानकारियों को ज़मीनी स्तर पर किये गए सर्वेक्षणों के आधार पर तैयार किया जाता है।

प्रभाव:

  • 15 अगस्त को दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच हुई वार्ता और 17 अगस्त को दोनों पक्षों के बीच आयोजित बैठकों के बाद सीमा विवाद को सुलझाने के लिये द्विपक्षीय वार्ता का रास्ता और भी आसान हुआ है।
  • दोनों पक्ष BWG के कार्यों की समीक्षा के लिये उपग्रहों से प्राप्त तस्वीरों, ड्रोन सर्वेक्षण जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर सकेंगे।
  • दोनों देशों के बीच BWG की इस बैठक को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित किये जाने की उम्मीद है, हालाँकि पिछले तीन महीनों के दौरान द्विपक्षीय संबंधों में आए तनाव के बीच यह बैठक बहुत ही महत्त्वपूर्ण होगी।

आगे की राह:

  • 15 अगस्त को भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों की टेलीफोन वार्ता के दौरान दोनों नेताओं ने भविष्य में द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा जारी रखने पर सहमति व्यक्त की थी, जो द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति के लिये एक सकारात्मक संकेत है।
  • हालाँकि हाल के वर्षों में चीन के साथ नेपाल की बढ़ती निकटता को देखते हुए भारत को अपनी विदेशी नीति पर विचार करना चाहिये।
  • भारत और नेपाल के संबंध की मज़बूती में सरकारों के साथ-साथ दोनों देशों के नागरिकों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, ऐसे में भारत सरकार को नेपाल में शुरू की गई विकास योजनाओं को समय से पूरा करने का प्रयास करना चाहिये तथा इस बात पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये कि इन योजनाओं का लाभ नेपाल की आम जनता तक पहुँच सके।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

वित्तीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय रणनीति

प्रिलिम्स के लिये

नेशनल सेंटर फॉर फाइनेंशियल एजुकेशन,

वित्तीय समावेशन एवं वित्तीय साक्षरता पर तकनीकी समूह,

कंपनी अधिनियम, 2013

मेन्स के लिये:

वित्तीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय रणनीति

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय रूप से जागरूक एवं सशक्त भारत के निर्माण हेतु वित्तीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय रणनीति: 2020-2025 (National Strategy for Financial Education: 2020-2025) जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

  • वित्तीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय रणनीति (NSFE) का यह दूसरा संस्करण है, पहला संस्करण वर्ष 2013 में जारी किया गया था।

वित्तीय साक्षरता (Financial literacy):

  • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Organization for Economic Co-operation & Development- OECD) के अनुसार, वित्तीय निर्णय लेने के लिये या व्यक्तिगत वित्तीय कल्याण हासिल करने के लिये इसे वित्तीय जागरूकता, ज्ञान,कौशल, दृष्टिकोण और आवश्यक व्यवहार के संयोजन के रूप में परिभाषित किया जाता है।

वित्तीय शिक्षा (Financial Education):

  • इसे उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके द्वारा वित्तीय उपभोक्ता/ निवेशक वित्तीय उत्पादों, अवधारणाओं एवं जोखिमों से संबंधित अपनी जानकारी में सुधार करते हैं और सूचना, निर्देश या उद्देश्य के माध्यम से वित्तीय जोखिमों एवंअवसरों के बारे में अधिक जागरूक बनने के लिये कौशल एवं आत्मविश्वास विकसित करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त सूचित विकल्प बनाने के लिये या यह जानने के लिये कि मदद के लिये कहाँ जाना है और वित्तीय कल्याण में सुधार करने के लिये अन्य प्रभावी कार्रवाई करना है।

नेशनल सेंटर फॉर फाइनेंशियल एजुकेशन (NCFE):

  • यह कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत RBI, SEBI, IRDAI और PFRDA द्वारा प्रवर्तित गैर लाभकारी कंपनी है।
  • यह धन का बेहतर प्रबंधन करने और भविष्य की योजना बनाने के लिये पर्याप्त ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण एवं व्यवहार विकसित करने हेतु जनसंख्या के विभिन्न वर्गों को सशक्त बनाने के लिये बहु-हितधारक के नेतृत्त्व वाले दृष्टिकोण पर ज़ोर देती है।
  • इसने देश में वित्तीय शिक्षा के प्रसार के लिये 5’C दृष्टिकोण की सिफारिश की है।
    • सामग्री (Content): जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के लिये वित्तीय साक्षरता सामग्री।
    • क्षमता (Capacity): वित्तीय शिक्षा प्रदाताओं के लिये क्षमता एवं आचार संहिता का विकास करना।
    • समुदाय (Community): विकसित समुदाय द्वारा वित्तीय साक्षरता को स्थायी रूप से प्रसारित करने के लिये नेतृत्व करना।
    • संचार (Communication): वित्तीय शिक्षा संदेशों के प्रसार के लिये तकनीक, मीडिया एवं संचार के नवीन तरीकों का उपयोग करना।
    • सहयोग (Collaboration): वित्तीय साक्षरता के लिये अन्य हितधारकों के प्रयासों को कारगर बनाना।

रणनीतिक उद्देश्य (Strategic Objectives):

  • वित्तीय शिक्षा के माध्यम से जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के बीच वित्तीय साक्षरता की अवधारणा को एक महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल का हिस्सा बनाना।
  • सक्रिय बचत व्यवहार को प्रोत्साहित करना।
  • वित्तीय लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को पूरा करने के लिये वित्तीय बाज़ारों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • साख अनुशासन विकसित करना और आवश्यकतानुसार औपचारिक वित्तीय संस्थानों से क्रेडिट प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • सुरक्षित तरीके से डिजिटल वित्तीय सेवाओं के उपयोग में सुधार करना।
  • प्रासंगिक एवं उपयुक्त बीमा कवर के माध्यम से विभिन्न जीवन चरणों में जोखिम का प्रबंधन करना।
  • उपयुक्त पेंशन योजनाओं के माध्यम से वृद्धावस्था एवं सेवानिवृत्ति की योजना तैयार करना।
  • शिकायत निवारण के तरीके, अधिकार और कर्तव्य के बारे में ज्ञान देना।
  • वित्तीय शिक्षा में प्रगति का आकलन करने के लिये अनुसंधान एवं मूल्यांकन के तरीकों में सुधार करना।
  • इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि प्रगति के आकलन के लिये एक मज़बूत निगरानी एवं मूल्यांकन ढाँचे को अपनाया जाना चाहिये।
    • TGFIFL, वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (Financial Stability and Development Council- FSDC) की देखरेख में समय-समय पर निगरानी एवं NSEF के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार होगा।
    • TGFIL को FSDC द्वारा नवंबर 2011 में स्थापित किया गया था।

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2019-2024 की अवधि के लिये वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय रणनीति (National Strategy for Financial Inclusion- NSFI) भी जारी की है।

  • यह एक महत्त्वाकांक्षी रणनीति है जिसका उद्देश्य मार्च, 2022 तक कम नकदी वाले समाज की ओर बढ़ने हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचा तैयार करने के लिये सभी टियर-II से टियर-VI केंद्रों में डिजिटल वित्तीय सेवाओं के विभिन्न तरीकों के लिये पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना है।

आगे की राह:

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विमानों में ब्लैक बॉक्स

प्रिलिम्स के लिये

ब्लैक बॉक्स

मेन्स के लिये

विमानों में ब्लैक बॉक्स का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोझीकोड (केरल) में दुर्घटनाग्रस्त हुए बोइंग 737-800 विमान के ब्लैक बॉक्स मिले हैं। ये बॉक्स जाँचकर्ताओं को उन महत्त्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी जुटाने में मदद करेंगे जो दुर्घटना की वजह बनीं।

प्रमुख बिंदु

  • ब्लैक बॉक्स के बारे में: एक ब्लैक बॉक्स, जिसे तकनीकी रूप से एक इलेक्ट्रॉनिक फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (Electronic Flight Data Recorder) के रूप में जाना जाता है, एक नारंगी रंग का भारी रिकॉर्डिंग उपकरण होता है जिसे विमान में रखा जाता है। उड़ान के दौरान विमान से जुड़ी सभी तरह की गतिविधियों को संचित करने अर्थात् रिकॉर्ड करने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।
    • किसी भी वाणिज्यिक विमान या कॉर्पोरेट जेट में ब्लैक बॉक्स होना अनिवार्य होता है इन्हें विमान के पिछले हिस्से में रखा जाता है।
    • आमतौर पर ब्लैक बॉक्स से पुनर्प्राप्त डेटा का विश्लेषण करने में कम से कम 10-15 दिन लगते हैं।
    • ब्लैक बॉक्स का उपयोग विमानों के अलावा रेलवे, कार आदि वाहनों में भी किया जाता है।
  • आविष्कार: वर्ष 1958 में FDR/CVR प्रोटोटाइप का निर्माण करने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डेविड वॉरेन थे।
  • भाग: "ब्लैक बॉक्स" दो अलग-अलग उपकरणों से बना होता है: फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR)।
    • FDR विमान की गति, ऊँचाई, शीर्ष पर गति और ईंधन के प्रवाह जैसी चीजों को रिकॉर्ड करता है।
    • CVR में कॉकपिट में हुई बातचीत को रिकॉर्ड किया जाता है।
  • प्रौद्योगिकी:
    • पुराने ब्लैक बॉक्स में चुंबकीय टेप का इस्तेमाल किया जाता था, इस तकनीक की शुरुआत पहली बार वर्ष 1960 में की गई थी। मैग्नेटिक टेप सामान्य टेप रिकॉर्डर की तरह काम करता है।
    • इन दिनों, ब्लैक बॉक्स सॉलिड-स्टेट मेमोरी बोर्ड (Solid state memory boards) का उपयोग किया जाता हैं, इनकी शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी। सॉलिड स्टेट मेमोरी बोर्ड में मेमोरी चिप्स के स्टैक्ड एरे (Stacked Arrays) का उपयोग किया जाता है जो कि मज़बूत होते हैं।
    • FDR में क्रैश-सर्वाइवल मेमोरी यूनिट्स (CSMU) शामिल होती हैं, जो अत्यधिक गर्मी, दुर्घटना से होने वाली झनझनाहट और बहुत अधिक दबाव का सामना करने में सक्षम होती हैं।
    • ब्लैक बॉक्स को ऐसी परिस्थितियों में खोजे जाने में सक्षम बनाने के लिये, जहाँ वे पानी के नीचे हों, विमान एक बीकन (प्रकाशस्तंभ) से लैस होते हैं जो 30 दिनों तक अल्ट्रासाउंड सिग्नल भेज सकता है।
    • एक विमान दुर्घटना की जाँच करने के अन्य तरीके
    • एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) कर्मियों के माध्यम से।
    • दुर्घटना से पहले ATC और पायलटों के बीच हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग से।
    • हवाई अड्डे पर मौजूद विभिन्न डेटा रिकॉर्डर के माध्यम से, जो रनवे पर सटीक बिंदु और विमान के उतरने की गति के बारे में बताएंगे।
  • सीमाएँ:
    • कुछ मामलों में जैसे- मलेशियाई एयरलाइंस MH-370 उड़ान की तरह, ब्लैक बॉक्स नहीं मिले।
    • अभी भी वीडियो रिकॉर्डिंग क्षमताओं की कमी है।
  • विकल्प: इस संदर्भ में ऐसा प्रयास किया जा रहा है कि विमान से जुड़े आवश्यक डेटा को वास्तविक समय में एक ग्राउंड बेस्ड स्टेशन पर सीधे प्रसारित किया जा सके, इससे दुर्घटना में ब्लैक बॉक्स के नष्ट होने की संभावना और खोज की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी और वास्तविक समय में प्राप्त जानकारी अधिक भरोसेमंद भी साबित होगी।

विमान सुरक्षा (Aircraft Security)

  • इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में इंटरनेशनल सिविल एविएशन (शिकागो कन्वेंशन) के प्रशासन एवं प्रबंधन के लिये स्थापित किया गया था।
    • 7 दिसंबर, 1944 को शिकागो (अमेरिका) में भारत सहित 52 देशों द्वारा शिकागो सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये गए।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा का समन्वय करता है, हवाई क्षेत्र के नियम निर्धारित करता है, विमान पंजीकरण और सुरक्षा, बचाव एवं स्थिरता को सुनिश्चित करता है तथा हवाई यात्रा के संबंध में हस्ताक्षरकर्त्ता देशों के अधिकारों को स्पष्ट करता है।

नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो

  • नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS), नागरिक उड्डयन मंत्रालय (भारत) का एक संलग्न कार्यालय है।
  • यह भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा के लिये नियामक प्राधिकरण है।
  • एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) नागरिक उड्डयन मंत्रालय का एक प्रभाग है जो भारत में विमान दुर्घटनाओं और घटनाओं की जाँच करता है।
  • हाल ही में, लोकसभा ने विमान (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया, जो विमान अधिनियम, 1934 में संशोधन करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रासायनिक उद्योग की कमियाँ: TIFAC

प्रिलिम्स के लिये

प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद

मेन्स के लिये

भारतीय रासायनिक उद्योग से संबंधित विषय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (Technology Information Forecasting and Assessment Council-TIFAC) की एक रिपोर्ट ने भारतीय रासायनिक उद्योग की कमियों को उजागर किया है जो कि चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा में बाधा साबित हो रही हैं।

प्रमुख बिंदु

  • भारत के पास लागत प्रभावी और कम प्रदूषणकारी तरीके से प्रमुख रसायनों के निर्माण के लिये पर्याप्त तकनीकी, संयंत्र और बुनियादी ढाँचा नहीं है।
  • भारत ने कई प्रमुख सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredient- API) का निर्माण बंद कर दिया है।
    • भारत ने एस्कॉर्बिक एसिड (Ascorbic Acid), एस्पार्टेम (Aspartame) और एंटीबायोटिक्स जैसे रिफैम्पिसिन (Rifampicin), डीऑक्सीसाइक्लिन (Doxycycline), टैज़ोबैक्टम एसिड (Tazobactam Acid) और यहाँ तक कि स्टेरॉयड के लिये API का निर्माण बंद कर दिया है।
    • एटोरवास्टेटिन (Atorvastatin), क्लोरोक्वीन (Chloroquine), गैबापेंटिन (Gabapentin), सिप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin), सेफलोस्पोरिन (Cephalosporins), इम्यूनोसप्रेसेन्ट (Immunosuppressants) जैसी सक्रिय दवा सामग्री का उत्पादन भी रोक दिया गया है।
  • भारत 67% रासायनिक इंटरमीडिएट और API के आयात के लिये चीन पर निर्भर है।
    • भारत API के लिये अमेरिका और इटली पर भी निर्भर है।
  • रासायनिक उद्योग क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) की आपूर्ति के लिये लगभग पूरी तरह से चीन पर निर्भर है।
    • हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन एक मलेरियारोधी दवा है। यह क्लोरोक्विन (Chloroquine) का एक यौगिक/डेरिवेटिव (Derivative) है, जिसे क्लोरोक्विन से कम विषाक्त (Toxic) माना जाता है।
    • रूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) और लूपस (Lupus) जैसी कुछ अन्य बीमारियों के मामलों में भी डॉक्टर की सलाह पर इस दवा का उपयोग किया जाता है।
  • निर्माता उस कीमत को प्राप्त करने में असमर्थ हैं जिस पर चीन द्वारा रसायनों का उत्पादन किया जाता है।
    • भारत में विलायक और रसायन निर्माण लागत चीन की तुलना में 15% अधिक है।
  • कुल दवा निर्यात मिश्रण में भारतीय थोक दवाओं और सक्रिय दवा सामग्री की हिस्सेदारी वर्ष 2008 के 42% से घटकर 20108 में 20% हो गई।

सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients)

  • ये दवा निर्माण में बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं, इन्हें बल्क ड्रग्स (Bulk Drugs) भी कहा जाता है।
  • चीन का हुबेई प्रांत API विनिर्माण उद्योग का केंद्र है।

फार्मास्युटिकल इंटरमीडिएट (Pharmaceutical Intermediates)

  • ये ऐसे रासायनिक यौगिक हैं जो API के बिल्डिंग ब्लॉक का निर्माण करते हैं और API के उत्पादन के दौरान उप-उत्पाद के रूप में उत्पादित होते हैं।

TIFAC विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संगठन और थिंक-टैंक है।

सुझाव

  • API अणुओं के निर्बाध संश्लेषण के लिये निर्धारित लक्ष्य के साथ मिशन मोड केमिकल इंजीनियरिंग की आवश्यकता है।
  • भारत में सामान्य बुनियादी ढाँचे के साथ मेगा ड्रग मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर का निर्माण करने की ज़रूरत है।
  • बड़ी क्षमता वाले किण्वन क्षेत्र में निवेश करने और लागत अनुकूलन के लिये जैव उत्प्रेरक (Biocatalysis) हेतु एक प्रौद्योगिकी मंच का विकास करना।
    • जैव उत्प्रेरक का तात्पर्य रासायनिक प्रतिकियाओं को तीव्र करने हेतु जैविक स्रोतों से प्राप्त प्राकृतिक पदार्थों (जैसे एंजाइम) के उपयोग से है।
  • रासायनिक क्षेत्रों में काम करने वाली भारतीय कंपनियों को सरकारी प्रोत्साहन प्रदान करना।

आगे की राह

  • TIFAC द्वारा प्रस्तुत विभिन्न सिफारिशें दवा क्षेत्र में भारत की आयात निर्भरता को कम करके इसे आत्मनिर्भर बनने में मददगार साबित हो सकती है।
  • प्रमोशन ऑफ बल्क ड्रग्स पार्क्स और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव्स (Promotion of Bulk Drug Parks and Production Linked Incentives) जैसी योजनाओं को बढ़ावा देने की ज़रूरत है ताकि थोक दवाओं की विनिर्माण लागत को कमकरके घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके।

स्रोत-द हिंदू


सामाजिक न्याय

अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में महिलाएँ

प्रीलिम्स के लिये

विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकेतक

मेन्स के लिये

वैश्विक और भारत के संदर्भ में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकेतकों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकेतक (Science and Technology Indicators-STI), 2018 के अनुसार, भारत की निजी क्षेत्र की शोध कंपनियाँ सरकार द्वारा वित्तपोषित प्रमुख वैज्ञानिक एजेंसियों की तुलना में मुख्य अनुसंधान और विकास गतिविधियों में अधिक संख्या में महिलाओं को नियोजित करती हैं।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2018 तक भारत में R&D के क्षेत्र में 3,41,818 वैज्ञानिक थे, जिनमें से लगभग 2,03,759 उच्च शिक्षा के क्षेत्र में या सरकारी संस्थानों द्वारा नियुक्त कर लिये गए।
  • निजी क्षेत्र की R&D कंपनियों में कार्यरत 20,351 महिलाओं में से लगभग चार में से तीन “R&D गतिविधियों” में शामिल थीं।
  • हालाँकि प्रमुख वैज्ञानिक एजेंसियों (सरकारी) में कार्यरत 23,008 महिलाओं में से आधी से कम ‘R&D गतिविधियों’ की श्रेणी में शामिल थीं।
  • इसके अलावा, निजी क्षेत्र के R&D प्रतिष्ठानों में प्रत्येक छह पुरुष वैज्ञानिकों पर एक महिला वैज्ञानिक कार्यरत है। हालाँकि प्रमुख वैज्ञानिक एजेंसियों में प्रत्येक चार पुरुष पर एक महिला का अनुपात है।
  • मेडिकल साइंस और नेचुरल साइंस के बाद ’इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी’ में सबसे अधिक वैज्ञानिक (निजी एवं सार्वजनिक वित्त पोषित संगठनों सहित) कार्यरत थे।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकेतक (Science and Technology Indicators-STI)

  • STI भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थिति का एक आवधिक संकलन है।
  • इसे राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रबंधन सूचना प्रणाली (National Science and Technology Management Information System), विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के एक विभाग द्वारा तैयार किया गया है।
  • R&D में महिलाओं की कम भागीदारी के कारण:
    • सरकारी फर्मों की तुलना में निजी कंपनियों के नियोक्ता और प्रबंधक महिला कर्मचारियों को रोज़गार देने और प्रोन्नति को बढ़ावा देने के प्रति अधिक उत्तरदायी है।
    • डॉक्टरेट और प्रोफेशनल स्टेज के बीच महिलाओं की संख्या में आने वाली भारी गिरावट के लिये सामाजिक और पारिवारिक दबाव प्रमुख कारण होता है, जो कि पेशेवर कैरियर के साथ असंगत दिखाई पड़ता है।
    • महिलाओं की नियुक्ति के संदर्भ में पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण का झुकाव भी देखने को मिलता हैं, इस स्तर पर बहुत सी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है, साथ ही महिलाओं पर करियर के स्थान पर परिवार को महत्त्व देने की महत्त्वाकांक्षा का भार भी डाला जाता है।
  • वैश्विक संदर्भ में बात करें तो:
    • STEM में महिलाएँ:
      • 2014-16 के यूनेस्को के आँकड़ों से पता चलता है कि केवल 30% महिला छात्र ही उच्च शिक्षा में STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) से संबंधित क्षेत्रों का चयन करती हैं।
      • विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी (3%), प्राकृतिक विज्ञान, गणित और सांख्यिकी (5%) तथा इंजीनियरिंग एवं संबद्ध क्षेत्रों में (8%) महिलाओं का रुझान काफी कम है।
    • एक पेशे के रूप में अनुसंधान:
      • यूनेस्को द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं पर तैयार की गई वर्ष 2018 की फैक्ट शीट के अनुसार, केवल 28.8% शोधकर्त्ता महिलाएँ हैं।
    • नोबल पुरस्कारों में भागीदारी:
      • वर्ष 1901 से 2019 के बीच, भौतिकी, रसायन और चिकित्सा के क्षेत्र में अभी तक 616 विद्वानों को 334 नोबल पुरस्कार दिये गए हैं, जिनमें से सिर्फ 20 महिलाओं द्वारा जीते गए हैं।
    • एबेल पुरस्कारों में भागीदारी:
      • वर्ष 2019 में अमेरिकी गणितज्ञ करेन हलेनबेक 16 पुरुष गणितज्ञों के बाद एबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला बनीं।
      • एबेल पुरस्कार नॉर्वे के राजा द्वारा एक या अधिक उत्कृष्ट गणितज्ञों को प्रतिवर्ष दिया जाने वाला एक नॉर्वेजियन पुरस्कार है।
    • फ़ील्ड्स मेडल्स (Fields Medals) में भागीदारी:
      • 1936 के बाद से 59 पुरुषों की तुलना में अब तक केवल एक महिला गणितज्ञ को फील्ड्स मेडल मिला है, अभी तक केवल ईरान की दिवंगत मरियम मिर्जाखानी को इस सम्मान से सम्मानित किया गया है।
      • गणितज्ज्ञों की अंतर्राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस द्वारा प्रत्येक चार वर्ष में उत्कृष्ट गणितीय उपलब्धि के लिये फील्ड्स मेडल प्रदान किया जाता है।
  • राष्ट्रीय संदर्भ में बात करें तो
    • STEM में महिलाएँ:
      • विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के नामांकन में वर्ष 2010-11 से वृद्धि हुई है।
      • 2015-16 में नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, स्नातक (UG) पाठ्यक्रमों में 9.3% छात्राओं ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया, जबकि अन्य की भागीदारी 15.6% रही। इसके अलावा 4.3% छात्राओं ने चिकित्सा विज्ञान में अपना नामांकन कराया, जबकि अन्य की भागीदारी मात्र 3.3% ही रही।
    • एक पेशे के रूप में अनुसंधान:
      • भारत में केवल 13.9% महिलाएँ ही शोधकर्त्ता के रूप में कार्य करती हैं। मास्टर और डॉक्टरेट स्तर पर, महिला नामांकन समग्र नामांकन से कम रहा है।
    • तकनीकी पेशों में उपस्थिति:
      • नीति आयोग की रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि 620 से अधिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में, जिनमें IIT, NIT, ISRO और DRDO भी शामिल हैं, वैज्ञानिक और प्रशासनिक कर्मचारियों के बीच महिलाओं की उपस्थिति 20.0%, पोस्ट-डॉक्टरल शोध छात्रों के बीच 28.7% और PhD विद्वानों के बीच 33.5% थी।
    • जेंडर गैप इंडेक्स (Gender Gap Index):
      • ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2020 के अनुसार, 153 देशों में भारत वर्ष 2018 के अपने 108वें स्थान से फिसलकर 112वें स्थान पर आ गया है।
      • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद लिंग अंतराल को खत्म करने में लगभग सौ साल लगेंगे।
    • कार्य सहभागिता:
      • विश्व बैंक के अनुसार, भारत महिला श्रम शक्ति भागीदारी में 181 देशों में से 163वें स्थान पर है।
      • इसके अलावा, भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जहाँ महिलाओं की कार्य सहभागिता दर में तेज़ी से गिरावट आई है, उदाहरण के लिये वर्ष 2004-5 में यह दर 29% थी, जबकि 2011-12 में 22% और वर्ष 2017-18 में 17% थी।
    • कार्य में असमानता:
      • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, पिछले साल जितने भी लोगों की नौकरियाँ गई इ=उनमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं की थी। वर्ष 2018 में खोई गई 11 मिलियन नौकरियों में से 8.8 मिलियन नौकरियाँ महिलाओं ने खोई।
      • भारतीय महिलाओं को समान काम के लिये पुरुषों की तुलना में 34% कम वेतन मिलता है।
  • विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने की पहल
    • विज्ञान ज्योति योजना (Vigyan Jyoti Scheme):
      • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा विज्ञान ज्योति योजना शुरू की गई है।
      • इस योजना का उद्देश्य स्टेम शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाना है।
      • इस योजना के अंतर्गत छात्राओं के लिये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में विज्ञान शिविर का आयोजन किया जाएगा, साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कॉर्पोरेट, विश्वविद्यालयों तथा डीआरडीओ जैसे शीर्ष संस्थानों में कार्यरत सफल महिलाओं से शिविर के माध्यम से संपर्क स्थापित करवाया जाएगा।
    • GATI योजना:
      • जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशनस (GATI) STEM में लिंग समानता का आकलन करने के लिये एक समग्र चार्टर और रूपरेखा तैयार करेगा।
    • किरण योजना (KIRAN Scheme)
      • केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किरण योजना (KIRAN Scheme) की शुरुआत की गई।
      • किरण (KIRAN) का पूर्ण रूप ‘शिक्षण द्वारा अनुसंधान विकास में ज्ञान की भागीदारी’ (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing) है।
      • KIRAN विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लैंगिक समानता से संबंधित विभिन्न मुद्दों/चुनौतियों का समाधान कर रही है।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao Beti Padhao-BBBP) योजना:
      • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय BBBP योजना के लिये एक नोडल मंत्रालय है, जो मानव संसाधन विकास और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से ‘बाल लिंगानुपात’ (Child Sex Ratio-CSR) तथा एस.आर.बी. में कमी लाने का प्रयास करता है।
    • 28 फरवरी 2020 को ‘वूमन इन साइंस’ थीम के साथ राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (NSD) मनाया गया।
      • इस अवसर पर CSIR- सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CDRI), लखनऊ की एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. निती कुमार को SERB महिला उत्कृष्टता पुरस्कार-2020 से सम्मानित किया गया।
    • उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) की रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार, देश में लिंग अंतराल पिछले वर्ष अर्थात् 2017-18 की तुलना में कम हो गया है।
    • शी-बॉक्स जैसी पहल से कार्य स्थल की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की बेहतर भागीदारी को बढ़ावा मिला है।

आगे की राह

  • विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक भागीदारी में असमानताएँ सामाजिक-आर्थिक मुद्दों से जन्म लेती हैं, व्यवहार में परिवर्तन लाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  • साथ ही, राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं का बढ़ता प्रतिनिधित्व महिलाओं के प्रति रूढ़िवादिता को खत्म करने में एक लंबा सफर तय कर सकता है।
  • शासन और प्रशासन के सामूहिक प्रयासों से ही बेहतर कार्यबल की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।
  • नौकरियों में समावेशी वृद्धि होनी चाहिये और नई नौकरियों को बेहतर कार्य स्थितियों के साथ सुरक्षित किये जाने की आवश्यकता है, जिसमें सामाजिक सुरक्षा लाभ भी शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू


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