भूगोल
भारत का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट
चर्चा में क्यों?
तेलंगाना के पेद्दापल्ली ज़िले के रामागुंडम में नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड ( National Thermal Power Corporation Limited- NTPC) द्वारा भारत का सबसे बड़ा (उत्पादन क्षमता के मामले में) फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट ( Solar Power Plant) विकसित किया जा रहा है।
- यह परियोजना वर्ष 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy ) क्षमता के 175 गीगावाट के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है जिसमें 100 गीगावाट (GW) सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता भी शामिल है।
प्रमुख बिंदु:
फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट:
- यह जल निकायों की सतह पर फोटोवोल्टिक पैनलों (Photovoltaic Panels) की तैनाती को संदर्भित करता है, जो भारत में प्रयोग होने वाली भूमि आधारित सौर ऊर्जा उत्पादन क्षेत्रों का एक व्यवहार्य विकल्प है।
- दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में जलाशय मौजूद हैं जो फ्लोटिंग सोलर विधि द्वारा अक्षय ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु अत्यधिक अनुकूल हैं।
- भविष्य की परियोजनाएँ:
- दक्षिण भारत के रामागुंडम में स्थित 447 MW क्षमता का थर्मल प्लांट NTPC द्वारा विकसित किये जा रहे नवीकरणीय (सौर) ऊर्जा संयंत्रों में से एक होगा जो अपनी पूरी क्षमता के साथ मार्च 2023 तक चालू हो जाएगा।
- अगले तीन महीनों में संचालित होने वाले अक्षय ऊर्जा संयंत्रों में विशाखापत्तनम के पास स्थित 25MW क्षमता का सिम्हाद्री थर्मल पावर प्लांट (Simhadri Thermal Power Plant) तथा केरल के कायमकुलम में 92 MW क्षमता का फ्लोटिंग सोलर प्लांट शामिल हैं।
लाभ:
- भूमि अधिग्रहण का मुद्दा: अक्षय ऊर्जा संयंत्र मालिकों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियांँ- भूमि अधिग्रहण, ग्रिड कनेक्टिविटी, संयंत्रों का रखरखाव और ऑफ-टेक (Off-Take) हैं।
- फ्लोटिंग सोलर प्लांट उच्च जनसंख्या घनत्व और उपलब्ध भूमि के उपयोग के मध्य उत्पन्न प्रतिस्पर्द्धा को संतुलित करते हैं। भूमि का उपयोग अन्य उद्देश्यों हेतु किया जा सकता है, जैसे खेती या निर्माण कार्य।
- कूलिंग इफेक्ट: जल स्रोत एक कूलिंग इफेक्ट (Cooling Effect) उत्पन्न करते हैं, जिससे सौर फोटोवोल्टिक पैनलों की कार्य क्षमता में 5-10% की वृद्धि होती है।
- समय के साथ यह महत्त्वपूर्ण लागत, बचत में तब्दील हो रही है।
- अन्य लाभ: ग्रिड इंटरकनेक्शन की लागत में कमी, जल के वाष्पीकरण में कमी, जल की गुणवत्ता में सुधार तथा एल्गी प्रस्फुटन (Algal Blooming) में कमी।
चुनौतियाँ:
- अधिक लागत: सामान्यतः ज़मीन पर स्थापित सोलर प्लांट्स की तुलना में फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट की अभियांत्रिकी और निर्माण लागत अधिक होती है।
- सुरक्षा से संबंधित मुद्दे: चूंँकि फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट में पानी और बिजली दोनों शामिल होते हैं, इसलिये केबल प्रबंधन और इन्सुलेशन परीक्षण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है, खासकर जब केबल पानी के संपर्क में हों।
- क्षति और संक्षारण: फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट के कई हिस्सों में निरंतर घर्षण और यांत्रिक टूट-फूट होती रहती है।
- प्लांट्स के निर्माण में सही तकनीकी के अभाव के कारण वे विफल साबित हो सकते हैं।
- तटीय वातावरण या क्षेत्रों में स्थापित होने से नमी के कारण इनके गिरने और संक्षारण का खतरा बना रहता है।
- वाटर-बेड टोपोग्राफी की समझ: फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट्स को विकसित एवं स्थापित करने हेतु वाटर-बेड टोपोग्राफी (Water-bed Topography) और इसकी उपयुक्तता को समझने की आवश्यकता होती है।
अन्य सौर ऊर्जा पहलें:
- नेशनल सोलर मिशन: सौर ऊर्जा ने भारत के जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Climate Change) में शामिल राष्ट्रीय सौर मिशन के साथ अपना केंद्रीय स्थान बनाया है।
- INDCs लक्ष्य: इसके तहत वर्ष 2022 तक ग्रिड से जुड़े 100 GW सौर ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।
- यह राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Intended Nationally Determined Contributions- INDCs) के अंतर्गत गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी इलेक्ट्रिक पावर की स्थापित क्षमता प्राप्त करने तथा वर्ष 2030 तक वर्ष 2005 के स्तर पर अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33% से 35% तक कम करने के लक्ष्य के अनुरूप है।
- ISA का शुभारंभ: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांँस के राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के 21वें सत्र (COP-21) में फ्रांँस के पेरिस में की गई थी।
- सरकारी योजनाएँ: इसमें सौर पार्क योजना, नहर बैंक और नहर शीर्ष योजना, बंडलिंग योजना, ग्रिड कनेक्टेड सौर रूफटॉप योजना आदि शामिल है।
- ‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ परियोजना: भारत के पास एक महत्तवाकांक्षी क्रॉस-बॉर्डर पावर ग्रिड 'वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड', योजना है जो बिजली की मांग को पूरा करने के लिये क्षेत्र में उत्पन्न सौर ऊर्जा को स्थानांतरित करना चाहता है।
राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड (NTPC):
- एनटीपीसी लिमिटेड विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (Public Sector Undertaking- PSU) है।
- यह भारत का सबसे बड़ा ऊर्जा संचयन समूह है। इसकी स्थापना वर्ष 1975 में ऊर्जा विकास में तेज़ी लाने के उद्देश्य से की गई थी।
- इसका कार्य नवाचार और तीव्रता के साथ किफायती, कुशल एवं पर्यावरण अनुकूल तरीके से विश्वसनीय ऊर्जा का उत्पादन करना है।
- मई 2010 में इसे महारत्न कंपनी का दर्जा प्राप्त हुआ।
- यह नई दिल्ली में अवस्थित है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
दूरसंचार कंपनियों के लिये लाइसेंस शर्तों में संशोधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunication) ने दूरसंचार कंपनियों (Telecom Company) के लिये लाइसेंस शर्तों में संशोधन किया है। ये नए मानदंड 15 जून, 2021 से लागू किये जाएंगे।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मार्च 2021 में आयात को कम करने और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिये दूरसंचार क्षेत्र हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentive) योजना को मंज़ूरी दी।
प्रमुख बिंदु
नए लाइसेंस की शर्तें:
- उद्देश्य:
- दूरसंचार उत्पादों और उपकरणों की खरीद के समय रक्षा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के मानदंडों को शामिल करना।
- प्रावधान:
- यदि टेलीकॉम कंपनियाँ उपकरणों की खरीद करके अपने मौजूदा नेटवर्क को अपग्रेड करना चाहती हैं तो उन्हें विश्वसनीय स्रोतों से ही टेलीकॉम उत्पादों की खरीद करनी होगी, जिसके लिये उन्हें निर्दिष्ट प्राधिकारी (National Cyber Security Coordinator) से अनुमति लेनी होगी।
- नए मानदंड पहले से उपयोग किये जा रहे उपकरणों के वार्षिक रखरखाव अनुबंध या उन्नयन को प्रभावित नहीं करेंगे।
विश्वसनीय दूरसंचार उत्पाद:
- विश्वसनीय दूरसंचार उत्पाद के विषय में:
- यह एक ऐसा उत्पाद, कंपनी या तकनीक है जिसे किसी राष्ट्र की सरकार द्वारा अपने महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये सुरक्षित माना जाता है।
- वर्गीकरण:
- भारत के सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने दिसंबर 2020 में दूरसंचार उत्पादों तथा उनके स्रोतों को 'विश्वसनीय' और 'गैर-विश्वसनीय' श्रेणियों के तहत वर्गीकृत करने के इरादे से दूरसंचार क्षेत्र में नए राष्ट्रीय सुरक्षा निर्देश (National Security Directive) को मंज़ूरी दी थी।
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक (National Cyber Security Coordinator) को विश्वसनीय और गैर-विश्वसनीय दूरसंचार उपकरण स्रोतों तथा उत्पादों की सूची पर निर्णय लेने के लिये अधिकृत प्राधिकारी बनाया गया है।
- इसके निर्णय उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (Deputy National Security Advisor) की अध्यक्षता वाली समिति की मंज़ूरी के आधार पर लिये जाएंगे।
- विशेषज्ञ समिति में डिप्टी NSA के अलावा अन्य विभागों और मंत्रालयों के सदस्य होंगे और स्वतंत्र विशेषज्ञों के साथ-साथ उद्योग के दो सदस्य भी होंगे।
प्रभाव:
- हुआवेई और ZTE दोनों कथित रूप से जालसाज़ी तथा चीनी सरकार के लिये जासूसी करने हेतु वैश्विक जाँच के अधीन हैं एवं इन्हें कई देशों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है।
- नई नीति भविष्य में संभावित रूप से हुआवेई (Huawei) और ZTE जैसे चीनी दूरसंचार उपकरण विक्रेताओं के लिये भारत के खरीदारों को उपकरण मुहैया कराना कठिन बना सकती है।
महत्त्व:
- दूरसंचार उपकरण दूरसंचार, कनेक्टिविटी और डेटा ट्रांसफर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसका सीधा प्रभाव भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ता है। अतः इस बदलाव से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने में मदद मिलेगी।
- स्थानीय उपकरणों की मांग बढ़ेगी, जिससे मेक-इन-इंडिया (Make-in-India) और आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) को बढ़ावा मिलेगा।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: इसरो
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (Japan Aerospace Exploration Agency- JAXA) ने पृथ्वी अवलोकन, चंद्र सहयोग और उपग्रह नेविगेशन में सहयोग की समीक्षा की।
प्रमुख बिंदु
सहयोग के विषय में:
- वे "अंतरिक्ष स्थिति संबंधी जागरूकता और पेशेवर विनिमय कार्यक्रम" में सहयोग के अवसर तलाशने पर भी सहमत हुए।
- दोनों एजेंसियों ने उपग्रह डेटा का उपयोग करके चावल फसल क्षेत्र और वायु गुणवत्ता निगरानी पर सहयोगी गतिविधियों के लिये एक कार्यान्वयन व्यवस्था पर हस्ताक्षर किये।
- भारत और जापान पहले से ही एक संयुक्त चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण (LUPEX) मिशन पर काम कर रहे हैं।
- LUPEX का लक्ष्य वर्ष 2024 तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर और रोवर भेजना है।
अन्य देशों के साथ समझौते:
- दोनों देशों ने इस बात पर चर्चा की कि ऑस्ट्रेलिया गगनयान (Gaganyaan) मानव मिशन में बुनियादी ज़रूरतों के लिये भारत की सहायता करेगा।
- भारत और इटली ने पृथ्वी के अवलोकन, अंतरिक्ष विज्ञान और रोबोटिक तथा मानव अन्वेषण में अवसरों का पता लगाने का फैसला किया है।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ने एक संशोधित समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जो व्यापक रणनीतिक साझेदारी का निर्माण करेगा।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की कुछ उपलब्धियाँ
- इसरो का चंद्रमा के लिये यह पहला मिशन था, जो अंतर्राष्ट्रीय पेलोड और सहयोग का एक अनुकरणीय उदाहरण है।
- इस मिशन ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है, जिसने इसरो-नासा द्वारा संयुक्त रूप से चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- मेघा-ट्रोपिक्स (MEGHA-TROPIQUES) नामक इंडो-फ्रेंच संयुक्त उपग्रह मिशन वर्ष 2011 में मानसून, चक्रवात आदि जैसे उष्णकटिबंधीय वातावरण तथा जलवायु के अध्ययन के लिये शुरू किया गया था।
सरल:
- सरल (SARAL- Satellite for ALTIKA and ARGOS) वर्ष 2013 में इंडो-फ्रेंच द्वारा एल्टीमेट्री (Altimetry) का उपयोग करके अंतरिक्ष से समुद्र का अध्ययन करने के लिये इस मिशन को लॉन्च किया गया था।
- ISRO और NASA पृथ्वी विज्ञान के अध्ययन के लिये NISAR (NASA ISRO Synthetic Aperture Radar) नामक एक संयुक्त उपग्रह मिशन को साकार करने में जुटे हैं।
- यह मिशन पृथ्वी का अवलोकन करेगा और इसके बदलते पारिस्थितिकी तंत्र का पता लगाएगा।
- यह विश्व का सबसे महँगा इमेजिंग उपग्रह है और दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों का इरादा वर्ष 2022 तक इस उपग्रह को लॉन्च करना है।
- यह नैनो सैटेलाइट (Nano Satellites) विकास पर एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम है, जो अन्वेषण और बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर प्रथम संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on the Exploration and Peaceful Uses of Outer Space) की 50वीं वर्षगाँठ (UNISPACE 50) मनाने के लिये ISRO की एक पहल है।
तृष्णा:
- इसरो और फ्राँसीसी अंतरिक्ष एजेंसी CNES ने जल चक्र की निगरानी के लिये तृष्णा (TRISHNA) जैसे उन्नत उपग्रहों को विकसित करने में भागीदारी की है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
मध्याह्न भोजन योजना का विस्तार
चर्चा में क्यों?
शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि सभी सरकारी स्कूल राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा परिकल्पित मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार के एक हिस्से के रूप में आगामी शैक्षणिक वर्ष में मुफ्त नाश्ता प्रदान करना शुरू करें।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक मज़बूत शिक्षा प्रणाली की स्थापना हेतु ‘भोजन और पोषण’ संबंधी क्षेत्रों में वित्तपोषण की समस्या की पहचान की गई है।
प्रमुख बिंदु:
आवश्यकता:
- शोध से पता चलता है कि सुबह का पौष्टिक नाश्ता संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाकर विशिष्ट विषयों के अध्ययन के लिये लाभकारी सिद्ध हो सकता है, इसलिये इन घंटों में मध्याह्न भोजन के अलावा एक हल्का लेकिन स्फूर्तिदायक नाश्ता प्रदान करके इस योजना का लाभ उठाया जा सकता है।
चुनौतियाँ:
- फंडिंग की अत्यधिक कमी के कारण योजना में देरी होने की संभावना है।
- मध्याह्न भोजन योजना पर केंद्र का मौजूदा खर्च लगभग 11000 करोड़ रुपए है। मुफ्त नाश्ते में 4000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बजट शामिल होगा लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग ने वर्ष 2020-21 के बजट में लगभग 5000 करोड़ रुपए की कटौती की।
मध्याह्न भोजन योजना
- मध्याह्न भोजन योजना (शिक्षा मंत्रालय के तहत) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो वर्ष 1995 में शुरू की गई थी।
- यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये दुनिया का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है।
- इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।
उद्देश्य:
- इसके अन्य उद्देश्य भूख और कुपोषण समाप्त करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति में वृद्धि, जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं को ज़मीनी स्तर पर रोज़गार प्रदान करना।
गुणवत्ता की जाँच:
- एगमार्क गुणवत्ता वाली वस्तुओं की खरीद के साथ ही स्कूल प्रबंधन समिति के दो या तीन वयस्क सदस्यों द्वारा भोजन का स्वाद चखा जाता है।
खाद्य सुरक्षा:
- यदि खाद्यान्न की अनुपलब्धता या किसी अन्य कारण से किसी भी दिन स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।
विनियमन:
- राज्य संचालन-सह निगरानी समिति (SSMC) पोषण मानकों और भोजन की गुणवत्ता के रखरखाव के लिये एक तंत्र की स्थापना सहित योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करती है।
राष्ट्रीय मानक:
- प्राथमिक (I- V वर्ग) के लिये 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक (VI-VIII वर्ग) के लिये 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन के पोषण मानकों वाला पका हुआ भोजन।
कवरेज:
- सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल, मदरसा और मकतब सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत समर्थित हैं।
विभिन्न मुद्दे तथा चुनौतियाँ:
- भ्रष्टाचार की घटनाएँ: नमक के साथ सादा चपाती परोसने, दूध में पानी मिलाने, फूड प्वाइज़निंग आदि के कई उदाहरण सामने आए हैं।
- जातिगत पूर्वाग्रह और भेदभाव: जातिगत पूर्वाग्रह के चलते कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति के अनुसार अलग-अलग बिठाने की घटनाएँ भी सामने आईं हैं।
- कोविड-19: कोविड-19 ने बच्चों और उनके स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी अधिकारों के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न किया है।
- कुपोषण के खतरे: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों में बाल कुपोषण के सबसे बुरे स्तर के आँकड़े सामने आए हैं।
- दुनिया में बौनेपन के शिकार कुल बच्चों के 30% बच्चे भारत में हैं और पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 50% बच्चे अल्पवज़न के हैं।
- वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020: ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट- 2020 के अनुसार, भारत उन 88 देशों में शामिल है, जिनके वर्ष 2025 तक वैश्विक पोषण लक्ष्य से चूक जाने की संभावना है।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2020: ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2020 में 107 देशों में से भारत को 94वें स्थान पर रखा गया है। इस सूचकांक में भारत में भूख का स्तर "गंभीर" श्रेणी में रखा गया है।
आगे की राह:
- जब बच्चे कुपोषित या अस्वस्थ होंगे तो वे आशानुरूप सीखने में असमर्थ होंगे। इसलिये बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य (मानसिक स्वास्थ्य सहित) के लिये मिड डे मील सहित पौष्टिक नाश्ता प्रदान किया जाएगा। योजना का विस्तार बच्चों को स्कूलों से जोड़ने और नामांकन में सुधार कर भूख को रोकने में मदद करेगा।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय इतिहास
भारतीय स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में दांडी मार्च
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के 75वें वर्ष के जश्न की शुरुआत करते हुए दांडी मार्च (12 मार्च) को रवाना किया गया। इस अवसर पर 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' (Azadi Ka Amrit Mahotsav) की भी शुरुआत की गई है।
प्रमुख बिंदु:
वर्ष 2021 के दांडी मार्च के विषय में:
- यह पदयात्रा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी के नवसारी तक 81 यात्रियों के साथ शुरू की गई है, 386 किलोमीटर की यह यात्रा 25 दिनों के बाद 5 अप्रैल, 2021 को पूरी होगी।
- वर्ष 1930 के दांडी मार्च में हिस्सा लेने वाले लोगों के वंशजों को सम्मानित किया जाएगा।
- यात्रा में शामिल लोग महात्मा गांधी के दांडी मार्च में शामिल उन 78 अनुयायियों की याद में दो अतिरिक्त मार्गों के साथ उसी मार्ग (अहमदाबाद से दांडी) से गुज़रेंगे जिस मार्ग पर वर्ष 1930 की दांडी यात्रा निकाली गई थी।
- गांधी से जुड़े छह स्थानों पर बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इनमें राजकोट, वड़ोदरा, बारडोली/बारदोली (सूरत), मांडवी (कच्छ) और दांडी (नवसारी) के साथ गांधीजी की जन्मभूमि पोरबंदर शामिल हैं।
- यात्रियों द्वारा रुक-रुक कर 21 स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने की भी योजना है।
वर्ष 1930 के दांडी मार्च के बारे में:
- दांडी मार्च, जिसे नमक मार्च (Salt March) और दांडी सत्याग्रह (Dandi Satyagraha) के नाम से भी जाना जाता है, मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन था।
- इसे 12 मार्च, 1930 से 6 अप्रैल, 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान के रूप में चलाया गया।
- गांधीजी ने 12 मार्च को साबरमती से अरब सागर तक दांडी के तटीय शहर तक 78 अनुयायियों के साथ 241 मील की यात्रा की गई, इस यात्रा का उद्देश्य गांधी और उनके समर्थकों द्वारा समुद्र के जल से नमक बनाकर ब्रिटिश नीति की अवहेलना करना था।
- दांडी की तर्ज पर भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा बंबई और कराची जैसे तटीय शहरों में नमक बनाने हेतु भीड़ का नेतृत्व किया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन संपूर्ण देश में फैल गया, जल्द ही लाखों भारतीय इसमें शामिल हो गए। ब्रिटिश अधिकारियों ने 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया। 5 मई को गांधीजी के गिरफ्तार होने के बाद भी यह सत्याग्रह जारी रहा।
- कवयित्री सरोजिनी नायडू द्वारा 21 मई को बंबई से लगभग 150 मील उत्तर में धरसना नामक स्थल पर 2,500 लोगों का नेतृत्व किया गया। अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर द्वारा दर्ज की गई इस घटना ने भारत में ब्रिटिश नीति के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश उत्पन्न कर दिया।
- गांधीजी को जनवरी 1931 में जेल से रिहा कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन से मुलाकात की। इस मुलाकात में लंदन में भारत के भविष्य पर होने वाले गोलमेज़ सम्मेलन (Round Table Conferences) में शामिल होने तथा सत्याग्रह को समाप्त करने पर सहमति दी गई।
- गांधीजी ने अगस्त 1931 में राष्ट्रवादी भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में इस सम्मेलन में हिस्सा लिया। यह बैठक निराशाजनक रही, लेकिन ब्रिटिश नेताओं ने गांधीजी को एक ऐसी ताकत के रूप में स्वीकार किया जिसे वे न तो दबा सकते थे और न ही अनदेखा कर सकते थे।
दांडी मार्च (पृष्ठभूमि):
- वर्ष 1929 की लाहौर कॉन्ग्रेस ने कॉन्ग्रेस कार्य समिति (Congress Working Committee) को करों का भुगतान न करने के साथ ही सविनय अवज्ञा कार्यक्रम शुरू करने के लिये अधिकृत किया था।
- 26 जनवरी, 1930 को "स्वतंत्रता दिवस" मनाया गया, जिसके अंतर्गत विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर देशभक्ति के गीत गाए गए।
- साबरमती आश्रम में फरवरी 1930 में कॉन्ग्रेस कार्य समिति की बैठक में गांधीजी को अपने अनुसार समय और स्थान का चयन कर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के लिये अधिकृत किया गया।
- गांधीजी ने भारत के वायसराय (वर्ष 1926-31) लॉर्ड इरविन को अल्टीमेटम दिया कि अगर उनके न्यूनतम मांगों को नज़रअंदाज कर दिया गया तो उनके पास सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा।
आंदोलन का प्रभाव:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन को विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग रूपों में शुरू किया गया, जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर विशेष ज़ोर दिया गया।
- पूर्वी भारत में चौकीदारी कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया गया, जिसके अंतर्गत नो-टैक्स अभियान (No-Tax Campaign) बिहार में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
- जे.एन. सेनगुप्ता ने बंगाल में सरकार द्वारा प्रतिबंधित पुस्तकों को खुलेआम पढ़कर सरकारी कानूनों की अवहेलना की।
- महाराष्ट्र में वन कानूनों की अवहेलना बड़े पैमाने पर की गई।
- यह आंदोलन अवध, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और असम के प्रांतों में आग की तरह फैल गया।
महत्त्व:
- इस आंदोलन के परिणामस्वरूप भारत में ब्रिटेन का आयात काफी गिर गया। उदाहरण के लिये ब्रिटेन से कपड़े का आयात आधा हो गया।
- यह आंदोलन पिछले आंदोलनों की तुलना में अधिक व्यापक था, जिसमें महिलाओं, किसानों, श्रमिकों, छात्रों और व्यापारियों तथा दुकानदारों जैसे शहरी तत्त्वों ने बड़े पैमाने पर भागीदारी की। अतः अब कॉन्ग्रेस को अखिल भारतीय संगठन का स्वरूप प्राप्त हो गया।
- इस आंदोलन को कस्बे और देहात दोनों में गरीबों तथा अनपढ़ों से जो समर्थन हासिल हुआ, वह उल्लेखनीय था।
- इस आंदोलन में भारतीय महिलाओं की बड़ी संख्या में खुलकर भागीदारी उनके लिये वास्तव में मुक्ति का सबसे अलग अनुभव था।
- यद्यपि कॉन्ग्रेस ने वर्ष 1934 में सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया, लेकिन इस आंदोलन ने वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष की प्रगति में महत्त्वपूर्ण चरण को चिह्नित किया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजव्यवस्था
ऑटोक्रेटाइज़ेशन गोज़ वायरल रिपोर्ट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्वीडन के वैरायटीज़ ऑफ डेमोक्रेसी (Varieties of Democracy- V-Dem) इंस्टीट्यूट की ऑटोक्रेटाइज़ेशन गोज़ वायरल (Autocratisation Goes Viral) नामक वार्षिक रिपोर्ट में भारत को "चुनावी निरंकुशता" वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- यह रिपोर्ट अमेरिकी थिंक टैंक, फ्रीडम हाउस (Freedom House) द्वारा प्रकाशित ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021’ (Freedom in the World 2021) रिपोर्ट में भारत को ‘स्वतंत्र’ (Free) से 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' (Partly Free) श्रेणी में शामिल करने के बाद आई है।
प्रमुख बिंदु:
वी-डेम के बारे में:
- वी-डेम इंस्टीट्यूट एक स्वतंत्र शोध संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 2014 में स्वीडिश राजनीतिक वैज्ञानिक स्टैफर्ड लिंडबर्ग द्वारा की गई थी।
- यह 202 देशों के लगभग 30 मिलियन डेटा बिंदुओं के डेटासेट के आधार पर वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र की स्थिति के बारे में अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करता है।
वैश्विक परिदृश्य:
- पिछले 10 वर्षों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र, मध्य एशिया, पूर्वी यूरोप और लैटिन अमेरिकी क्षेत्रों में ‘उदार लोकतांत्रिक’ (Liberal Democracies) की स्थिति में वैश्विक स्तर पर गिरावट आई है।
- भारत के अलावा जी-20 देशों में शामिल ब्राज़ील और तुर्की जैसे देश उन शीर्ष 10 देशों में शामिल हैं जिनका स्थान रैंकिंग में नीचे है।
भारत की स्थिति :
- भारत को पहले एक ‘चुनावी लोकतंत्र’ (Electoral Democracy) देश के रूप में वर्गीकृत किया गया था जिसे नवीनतम रिपोर्ट में ‘चुनावी निरंकुशता’ (Electoral Autocracy) के रूप में वर्गीकृत किया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत की स्थिति अब उतनी ही निरंकुश देश की है जितनी कि उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान की है। भारत में निरंकुशता की स्थिति बांग्लादेश और नेपाल दोनों देशों से खराब है ।
- वर्ष 2014 से देश में राजनीतिक अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट आई है, जिसमें मानवाधिकार संगठनों पर दबाव बढ़ने के साथ शिक्षाविदों और पत्रकारों को धमकी एवं धर्म के नाम पर मुसलमानों की हत्या सहित बड़े हमलों की आशंका में वृद्धि देखी गई है।
भारत की स्थिति में गिरावट के कारण:
- हाल ही में भारत सरकार द्वारा आलोचकों को चुप कराने तथा आतंकवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से राजद्रोह अधिनयम की धारा 124 A, मानहानि अधिनयम (धारा 499) का उपयोग किया गया है।
- सरकार ने नागरिक समाज संगठनों (Civil Society Organisations) के प्रवेश, निकास और कामकाज को प्रतिबंधित करने हेतु विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (Foreign Contributions Regulation Act- FCRA), 2010 का प्रयोग किया है।
- गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक,1967 जैसे कानूनों का बार- बार प्रयोग किया जाना।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
घुमंतू जनजातियाँ और संबंधित चुनौतियाँ
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री ने हाल ही में संसद को सूचित किया है कि वर्ष 2019 में देश में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिये विकास एवं कल्याण बोर्ड (DWBDNCs) का गठन किया गया था।
- कल्याण बोर्ड का गठन तीन वर्ष की अवधि के लिये किया गया था, जिसे अधिकतम पाँच वर्ष की अवधि के लिये बढ़ाया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
खानाबदोश/घुमंतू जनजातियों के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ
- रेनके आयोग (2008) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों की मानें तो भारत में लगभग 1,500 घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ और 198 विमुक्त जनजातियाँ हैं, जिनमें तकरीबन 15 करोड़ भारतीय शामिल हैं।
- ये जनजातियाँ अब भी सामाजिक एवं आर्थिक रूप से हाशिये पर मौजूद हैं और इसमें से कई जनजातियाँ अपने मूल मानवाधिकारों से भी वंचित हैं।
- सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा उनकी पहचान को लेकर है।
- बुनियादी अवसंरचना सुविधाओं का अभाव: इन समुदायों के सदस्यों के पास पेयजल, आश्रय और स्वच्छता आदि संबंधी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा ये स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित रहते हैं।
- स्थानीय प्रशासन का दुर्व्यवहार: विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत और अपराधिक धारणाओं के कारण आज भी उन्हें स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
- सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव: चूँकि इन समुदायों के लोग प्रायः यात्रा पर रहते हैं, इसलिये इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है। नतीजतन उनके पास सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव होता है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी नहीं जारी किया जाता है।
- इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में इन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के तहत शामिल किया जाता है।
- हालाँकि इन समुदायों के अधिकांश लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं होता और इसलिये वे सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
DWBDNCs का दायित्व
- आवश्यकता के अनुसार, विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों हेतु कल्याणकारी एवं विकास कार्यक्रम तैयार कर उन्हें कार्यान्वित करना।
- उन स्थानों/क्षेत्रों की पहचान करना जहाँ ये समुदाय निवास करते हैं।
- मौजूदा कार्यक्रमों तक इन समुदायों की पहुँच में मौजूद अंतराल का आकलन करना और उसकी पहचान करना, इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों/कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ सहयोग के माध्यम से यह सुनिश्चित करना कि मौजूदा कार्यक्रम इन समुदायों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करें।
- विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संदर्भ में भारत सरकार और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की योजनाओं की प्रगति की निगरानी तथा मूल्यांकन करना।
विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों से संबंधित योजनाएँ
- डीएनटी के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
- यह केंद्रीय प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) के उन छात्रों के कल्याण हेतु शुरू की गई थी, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं।
- इसके तहत पात्रता के लिये आय सीमा प्रतिवर्ष 2 लाख रुपए निर्धारित की गई है।
- यह योजना राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है। योजना का वित्तपोषण केंद्र और राज्य द्वारा 75:25 (केंद्र:राज्य) के अनुपात में किया जाता है।
- यह योजना विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के बच्चों विशेषकर बालिकाओं के बीच शिक्षा के प्रसार में सहायक है।
- डीएनटी बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना:
- वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/ केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
- योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत न आने वाले DNT छात्रों को छात्रावास की सुविधा प्रदान कर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाना है।
- इसके तहत पात्रता के लिये आय सीमा प्रतिवर्ष 2 लाख रुपए निर्धारित की गई है।
- केंद्र सरकार पूरे देश में प्रतिवर्ष अधिकतम 500 सीटें प्रदान करती है।
- योजना का व्यय केंद्र और राज्य के बीच 75:25 (केंद्र:राज्य) के अनुपात में साझा किया जाता है।
विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदाय
- विमुक्त जनजातियाँ वे हैं, जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान लागू किये गए आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत पूरी आबादी को जन्म से अपराधी घोषित कर दिया गया था।
- वर्ष 1952 में इस अधिनियम को निरस्त कर दिया गया और समुदायों को विमुक्त कर दिया गया।
- घुमंतू जनजातियाँ निरंतर भौगोलिक गतिशीलता बनाए रखती हैं, जबकि अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ वे हैं, जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवाजाही तो करती हैं, किंतु वर्ष में एक बार मुख्यतः व्यावसायिक कारणों से अपने निश्चित निवास स्थान पर ज़रूर लौटती हैं।
- घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों के बीच अंतर करने हेतु विशिष्ट जातीय या सामाजिक-आर्थिक मानकों को शामिल नहीं किया जाता है, बल्कि यह उनकी गतिशीलता से प्रदर्शित होती है।