शासन व्यवस्था
वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2023
प्रिलिम्स के लिये:विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट 2023, बियॉन्ड बेसिक्स, एनजीओ प्रथम। मेन्स के लिये:भारत में शिक्षा की स्थिति, शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट 2023 |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एनजीओ प्रथम द्वारा ‘बियॉन्ड बेसिक्स’ शीर्षक से 18वीं शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report - ASER) 2023 जारी की गई, जिसमें छात्रों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों, उनकी बुनियादी और व्यावहारिक पढ़ने तथा गणित क्षमताओं एवं डिजिटल जागरूकता व कौशल पर चर्चा की गई।
शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) क्या है?
- ASER एक वार्षिक, नागरिक-नेतृत्व वाला घरेलू सर्वेक्षण है जिसका उद्देश्य यह समझना है कि ग्रामीण भारत में बच्चे स्कूल में नामांकित हैं या नहीं और क्या वे सीख रहे हैं?
- ASER भारत के सभी ग्रामीण ज़िलों में वर्ष 2005 से प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। यह भारत में नागरिकों के नेतृत्व वाला सबसे बड़ा सर्वेक्षण है।
- ASER सर्वेक्षण 3-16 वर्ष की आयु के बच्चों की नामांकन स्थिति और 5-16 वर्ष की आयु के बच्चों को राष्ट्रीय, राज्य तथा ज़िला स्तर पर बुनियादी शिक्षा एवं अंकगणितीय स्तर के प्रतिनिधि अनुमान उपलब्ध कराता है।
ASER 2023 की मुख्य बातें क्या हैं?
- नामांकन दर:
- कुल मिलाकर, 14-18 वर्ष के 86.8% बच्चे किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं।
- हालाँकि उम्र के हिसाब से उल्लेखनीय अंतर दिखाई देता है, 14 साल के 3.9% और 18 साल के 32.6% बच्चों ने नामांकन नहीं कराया है।
- 14-18 आयु वर्ग के अधिकांश छात्र कला/मानविकी स्ट्रीम में नामांकित हैं, आधे से अधिक (55.7%) ग्यारहवीं कक्षा या उच्चतर में इस स्ट्रीम में पढ़ रहे हैं।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science, Technology, Engineering, and Mathematics -STEM) स्ट्रीम में पुरुषों (36.3%) की तुलना में कम महिलाएँ केवल 5.6% ही व्यावसायिक प्रशिक्षण या संबंधित पाठ्यक्रम ले रहे हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण कॉलेज स्तर के छात्रों (16.2%) के बीच अधिक प्रचलित है।
- अधिकांश युवा छह महीने या उससे कम अवधि के अल्पावधि पाठ्यक्रम ले रहे हैं।
- बुनियादी योग्यताएँ:
- लगभग 25% युवा अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 स्तर का पाठ धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं।
- आधे से अधिक लोग विभाजन की समस्याओं (3 अंक में से 1 अंक) से जूझते हैं, 14-18 वर्ष के केवल 43.3% बच्चे ही ऐसी समस्याओं को सही ढंग से हल कर पाते हैं।
- भाषा और अंकगणित कौशल:
- महिलाओं (76%) ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में मानक II स्तर का पाठ पढ़ने में पुरुषों (70.9%) से बेहतर प्रदर्शन किया जबकि पुरुषों ने अंकगणित एवं अंग्रेज़ी पढ़ने में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
- केवल 57.3% अंग्रेज़ी में वाक्य पढ़ने में सक्षम थे तथा उनमें से लगभग तीन-चौथाई उनका अर्थ समझने में सक्षम थे।
- डिजिटल जागरूकता और कौशल:
- कुल युवाओं में से लगभग 90% के पास घर में स्मार्टफोन है तथा 19.8% महिलाओं की तुलना में 43.7% पुरुषों के पास स्वयं का स्मार्टफोन है।
- पुरुष अमूमन डिजिटल कार्यों में महिलाओं से बेहतर प्रदर्शन करते हैं एवं शिक्षा स्तर व बुनियादी पढ़ने की दक्षता की सहायता से डिजिटल कार्यों में यह प्रदर्शन बेहतर हो सकता है।
- मूलभूत संख्यात्मक कौशल:
- 14-18 आयु वर्ग के 50% से अधिक छात्रों को प्राथमिक विभाजन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा लगभग 45% को एक बच्चे के सोने व जागने के समय के आधार पर उसके सोने के घंटों की संख्या की गणना करने जैसे कार्यों में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- अपर्याप्त मूलभूत संख्यात्मक कौशल बजट प्रबंधन, छूट लागू करने तथा ब्याज दरों अथवा ऋण भुगतान की गणना सहित रोज़मर्रा की गणना में युवाओं की दक्षता में बाधा डालते हैं।
- अपर्याप्त मूलभूत संख्यात्मक कौशल बजट प्रबंधन, छूट लागू करने तथा ब्याज दरों अथवा ऋण भुगतान की गणना सहित रोज़मर्रा की गणना में युवाओं की दक्षता में बाधा डालते हैं।
- 14-18 आयु वर्ग के 50% से अधिक छात्रों को प्राथमिक विभाजन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा लगभग 45% को एक बच्चे के सोने व जागने के समय के आधार पर उसके सोने के घंटों की संख्या की गणना करने जैसे कार्यों में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- अनुशंसाएँ:
- 14-18 आयु वर्ग के लिये पहलों के कार्यान्वन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ मूलभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक कौशल में अंतराल को पाटने के लिये सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 अकादमिक रूप से पिछड़े के लिये 'कैच-अप' (Catch-up) कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल देती है।
- न केवल शैक्षणिक प्रदर्शन के लिये अपितु उनकी दैनंदिन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये युवाओं के बीच मूलभूत साक्षरता तथा संख्यात्मक कौशल में सुधार लाने के उद्देश्य से पहल की आवश्यकता है।
- 14-18 आयु वर्ग के लिये पहलों के कार्यान्वन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ मूलभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक कौशल में अंतराल को पाटने के लिये सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है।
- डिजिटल शिक्षा:
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स्मार्टफोन की उपलब्धता:
- लगभग 90% भारतीय युवाओं के पास अपने घर में स्मार्टफोन है तथा वे इसका उपयोग करना जानते हैं। यह इस जनसांख्यिकीय के बीच व्यापक डिजिटल कनेक्टिविटी को इंगित करता है।
- डिजिटल साक्षरता में लैंगिक अंतराल:
- डिजिटल साक्षरता में महत्त्वपूर्ण लैंगिक असमानता है। रिपोर्ट के अनुसार लड़कों की तुलना में लड़कियाँ स्मार्टफोन अथवा कंप्यूटर का उपयोग करने में कम दक्ष थी।
- लड़कों (43.7%) के पास स्वयं का स्मार्टफोन होने की संभावना लड़कियों (19.8%) की तुलना में दोगुनी से भी अधिक थी।
- निजी स्मार्टफोन स्वामित्व में एक उल्लेखनीय लैंगिक अंतराल है। लड़कों के पास अपना स्मार्टफोन होने की संभावना लड़कियों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।
- विभिन्न डिजिटल कार्यों में लड़कों ने लड़कियों से बेहतर प्रदर्शन किया।
- डिजिटल साक्षरता में महत्त्वपूर्ण लैंगिक असमानता है। रिपोर्ट के अनुसार लड़कों की तुलना में लड़कियाँ स्मार्टफोन अथवा कंप्यूटर का उपयोग करने में कम दक्ष थी।
- ऑनलाइन सुरक्षा जागरूकता:
- लड़कियों की तुलना में लड़के ऑनलाइन सुरक्षा सेटिंग्स से अधिक परिचित हैं। यह ऑनलाइन सुरक्षा प्रथाओं में लड़कियों को शिक्षित तथा सशक्त बनाने के लिये लक्षित प्रयासों की आवश्यकता का सुझाव देता है।
- शिक्षा के लिये स्मार्टफोन का उपयोग:
- लगभग दो-तिहाई लोग शैक्षणिक उद्देश्यों के लिये स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, जैसे कि पढ़ाई से संबंधित ऑनलाइन वीडियो देखना, शंका समाधान करना या नोट्स का आदान-प्रदान करना।
- मूल्यांकन के लिये सीमित कनेक्टिविटी:
- हालाँकि सर्वेक्षण का उद्देश्य स्मार्टफोन का उपयोग करके डिजिटल कौशल का आकलन करना था, लेकिन सभी युवा अच्छी कनेक्टिविटी वाला स्मार्टफोन नहीं ला सकते थे। लड़कियों की तुलना में लड़कों द्वारा मूल्यांकन के लिये स्मार्टफोन लाने की अधिक संभावना थी, जो पहुँच में विसंगतियों का संकेत देता है।
- गैर-नामांकित युवाओं के बीच शैक्षणिक गतिविधियाँ:
- एक चौथाई गैर-नामांकित युवाओं ने अपने स्मार्टफोन पर शैक्षणिक गतिविधियों में संलग्न होने की सूचना दी, जो औपचारिक शैक्षणिक व्यवस्था के बाहर सीखने में सहायता में डिजिटल उपकरणों की भूमिका पर बल देते हैं।
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भारत में प्रारंभिक शिक्षा के सामने आने वाली समस्याएँ क्या हैं?
- स्कूल का बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ:
- प्रतिधारण दर (Retention rates) में सुधार के बावजूद, स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता को लेकर चिंताएँ हैं। जबकि 95% स्कूलों में पीने का पानी और शौचालय की व्यवस्था है, 10% से अधिक स्कूलों में बिजली की व्यवस्था का अभाव है।
- इसके अतिरिक्त, डिजिटलीकरण की कमी है, 60% से अधिक स्कूलों में कंप्यूटर की कमी है और 90% में इंटरनेट सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
- निजी स्कूलों की ओर बदलाव:
- पिछले कुछ वर्षों में, निजी स्कूलों की ओर रुझान बढ़ा है। सरकारी डेटा इंगित करता है कि प्राथमिक श्रेणी में सरकारी स्कूलों की हिस्सेदारी वर्ष 2006 में 87% से घटकर मार्च 2020 में 62% हो गई है।
- शिक्षक की कमी और गुणवत्ता:
- स्कूलों में शिक्षकों की कमी है और छात्र-शिक्षक अनुपात(student-teacher ratio) अधिक है। संविदा शिक्षकों पर निर्भरता देखी गई है और बड़े पैमाने पर शिक्षकों की अनुपस्थिति है।
- शिक्षा की गुणवत्ता अलग-अलग होती है, जिसमें अच्छी तरह से वित्त पोषित, औपचारिक स्कूलों और अल्प-संसाधन वाले, अनौपचारिक स्कूलों के बीच स्पष्ट विभाजन होता है।
- सामाजिक विभाजन:
- जाति-वर्ग, ग्रामीण-शहरी, धार्मिक और लैंगिक विभाजन सहित सामाजिक विभाजन मौजूद हैं, जो प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं।
भारत बुनियादी शिक्षा को कैसे बढ़ावा दे सकता है?
- वित्त तथा संसाधन आवंटन में वृद्धि:
- सरकार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 में उल्लिखित सकल घरेलू उत्पाद के अनुशंसित दिशा में 6% आगे बढ़ते हुए शिक्षा के लिये अधिक धन आवंटित करना चाहिये।
- बुनियादी ढाँचे के विकास, शिक्षक प्रशिक्षण और स्कूलों में आवश्यक सुविधाओं के प्रावधान के लिये वित्त पोषण को प्राथमिकता देना।
- शिक्षक भर्ती एवं प्रशिक्षणः
- उच्च छात्र-शिक्षक अनुपात को कम करने के लिये पर्याप्त संख्या में योग्य शिक्षकों की भर्ती एवं प्रशिक्षण करना।
- शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु निरंतर व्यावसायिक विकास के लिये कार्यक्रम लागू करना।
- ड्रॉपआउट दरों को संबोधित करना:
- सामाजिक-आर्थिक कारकों, बुनियादी ढाँचे की कमी और शिक्षा की गुणवत्ता सहित छात्रों के स्कूल छोड़ने के मूल कारणों की पहचान करें तथा उनका समाधान करें।
- छात्र प्रतिधारण को प्रोत्साहित करने के लिये छात्रवृत्ति कार्यक्रम और परामर्श पहल जैसे लक्षित हस्तक्षेप लागू करें।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- स्कूल के बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करें, यह सुनिश्चित करें कि सभी स्कूलों में बिजली, स्वच्छ पेयजल और उचित स्वच्छता सुविधाएँ जैसी बुनियादी सुविधाएँ हों।
- स्कूलों को कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा प्रदान करके शिक्षा में प्रौद्योगिकी के एकीकरण को बढ़ावा देना।
- शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देना:
- घूर्णी याद करने की तुलना में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दें।
- बाल-केंद्रित शिक्षण विधियों और मूल्यांकन रणनीतियों को लागू करें जो महत्त्वपूर्ण सोच तथा समस्या-समाधान कौशल को प्रोत्साहित करें।
- जाँचना और परखना:
- शिक्षा नीतियों और हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये मज़बूत निगरानी तथा मूल्यांकन तंत्र स्थापित करें।
- सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने और तदनुसार रणनीतियों को समायोजित करने के लिये डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि का उपयोग करें।
शिक्षा से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
- नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी एन्हांस्ड लर्निंग (NPTEL)
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020:
- NEP 2020 शिक्षा प्रणाली में बदलाव पेश करता है, जिसमें कक्षा 5 तक मातृ भाषा या स्थानीय भाषा का उपयोग, व्यापक शिक्षा ढाँचे और विभिन्न स्तरों पर परीक्षाओं की शुरुआत शामिल है। हालाँकि इन नीतियों के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- NEP 2020 सकल घरेलू उत्पाद के 6% के लक्ष्य की सिफारिश करते हुए शिक्षा में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का भारत की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) मेन्स:प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) |


शासन व्यवस्था
आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों
प्रिलिम्स के लिये:आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें, शाकनाशी, प्रतिरोध, सूखा, बी.टी. कपास, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC), धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 (DMH -11), 'अर्ली हीरा -2' सरसों, बैसिलस एमाइलोलिकफेशियन्स, मेन्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्य 2: शून्य भुखमरी को प्राप्त करने में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि सरसों (Mustard ) जैसी आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें आम जन के लिये गुणवत्तापूर्ण खाद्य तेल को सस्ता कर देंगी तथा विदेशी आयात पर निर्भरता को कम करके राष्ट्रीय हित में योगदान देंगी।
- जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) ने सरसों के आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण, धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 (Dhara Mustard Hybrid-11 :11) को जारी किये जाने हेतु पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी है।
- यदि इसे व्यावसायिक खेती के लिये मंज़ूरी मिल जाती है तो यह भारतीय किसानों के लिये उपलब्ध पहली आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य फसल होगी।
भारत की खाद्य तेल मांग:
- भारत की कुल खाद्य तेल मांग 24.6 मिलियन टन (2020-21) थी और घरेलू उपलब्धता 11.1 मिलियन टन (2020-21) थी।
- वर्ष 2020-21 में कुल खाद्य तेल मांग का 13.45 मिलियन टन (54%) लगभग ₹1,15,000 करोड़ के आयात के माध्यम से पूरा किया गया, जिसमें पाम ऑयल (57%), सोयाबीन तेल (22%), सूरजमुखी तेल (15%) और कुछ मात्रा में कैनोला गुणवत्ता वाला सरसों का तेल शामिल थे।
- वर्ष 2022-23 में कुल खाद्य तेल मांग का 155.33 लाख टन (55.76%) आयात के माध्यम से पूरा किया गया।
- भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है, ध्यातव्य है की भारत की वनस्पति तेल की खपत में 40% हिस्सेदारी पाम ऑयल की है।
- भारत अपनी वार्षिक 8.3 मीट्रिक टन पाम ऑयल ज़रूरत का आधा हिस्सा इंडोनेशिया से पूरा करता है।
- वर्ष 2021 में भारत ने घरेलू पाम तेल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (National Mission on Edible Oil-Oil Palm) का अनावरण किया।
आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM ) फसलें क्या हैं?
- GM फसलों के जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर इसमें किसी अन्य फसल से आनुवंशिक गुणों जैसे- उपज में वृद्धि, खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे से प्रतिरोध, या बेहतर पोषण मूल्य का समामेलन किया जा सके।
- इससे पहले, भारत ने केवल एक GM फसल, BT कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी थी, लेकिन GEAC ने व्यावसायिक उपयोग के लिये GM सरसों की सिफारिश की है।
GM सरसों क्या है?
- धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (DMH-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों का आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण है।
- DMH-11 भारतीय सरसों की किस्म 'वरुणा' और पूर्वी यूरोपीय 'अर्ली हीरा-2' सरसों के बीच संकरण का परिणाम है।
- इसमें दो एलियन जीन ('बार्नेज' और 'बारस्टार') शामिल होते हैं जो बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स (Bacillus amyloliquefaciens) नामक मृदा जीवाणु से पृथक किये जाते हैं जो उच्च उपज वाली वाणिज्यिक सरसों की संकर प्रजाति विकसित करने में सहायक है।
- DMH-11 ने राष्ट्रीय सीमा की तुलना में लगभग 28% अधिक और क्षेत्रीय सीमा की तुलना में 37% अधिक उपज प्रदर्शित है और इसके उपयोग का दावा तथा अनुमोदन GEAC द्वारा अनुमोदित किया गया है।
- "बार जीन" संकर बीज की आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखता है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) क्या है?
- जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत कार्य करती है।
- यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों तथा पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन हेतु उत्तरदायी है।
- समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GE) जीवों और उत्पादों को जारी करने से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये भी उत्तरदायी है।
- GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अपर सचिव द्वारा की जाती है और सह-अध्यक्षता जैवप्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा की जाती है।
- वर्तमान में, इसके 24 सदस्य हैं और ऊपर बताए गए क्षेत्रों में अनुप्रयोगों की समीक्षा के लिये प्रत्येक माह बैठक होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. पीड़कों के प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021) प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (2021) प्रश्न. विज्ञान किस प्रकार हमारे जीवन के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है? विज्ञान आधारित तकनीकों से कृषि में कौन से उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं? (वर्ष 2020) प्रश्न. जल इंजीनियरीग और कृषि-विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019) |


भारतीय विरासत और संस्कृति
बांग्ला को शास्त्रीय भाषा तथा गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेले का दर्जा देने की मांग
प्रिलिम्स के लिये:शास्त्रीय भाषा, गंगासागर मेला, मकर संक्रांति, कुंभ मेला, कपिल मुनि मंदिर, हेमिस गोम्पा मेला, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग। मेन्स के लिये:शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लाभ, भारत में प्रमुख मेले। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने दो अलग-अलग मुद्दों पर अपनी मांग रखी, पहला बांग्ला के लिये शास्त्रीय भाषा का दर्जा, जो विश्व की 7वीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेले का दर्जा।
गंगासागर मेला क्या है?
- परिचय:
- गंगासागर मेला, जो मकर संक्रांति (जनवरी के मध्य) के दौरान लगता है, कुंभ मेले के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ मेला है।
- यह वार्षिक तीर्थ मेला लाखों लोगों को गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित सागर द्वीप की ओर आकर्षित करता है एवं प्रसिद्ध राजा भागीरथ द्वारा गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का स्मरण कराता है।
- मेले को राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त होने के लाभ:
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पश्चिम बंगाल सरकार गंगासागर मेले को राष्ट्रीय दर्ज़ा देने की मांग कर रही है, जिससे केंद्रीय वित्त पोषण और बुनियादी अवसंरचना के विकास में वृद्धि होगी, जिससे पश्चिम बंगाल में पर्यटन एवं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
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भारत में अन्य प्रमुख मेले:
- कुंभ मेला: यह हर 12 वर्ष में चार बार मनाया जाता है, यह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में चार पवित्र नदियों पर चार तीर्थस्थलों के बीच आयोजित किया जाता है है।
- अर्द्ध कुंभ मेला हर छठे वर्ष केवल दो स्थानों, हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
- और प्रति 144 वर्ष बाद एक महाकुंभ का आयोजन होता है।
- पुष्कर मेला: पुष्कर मेला राजस्थान के पुष्कर शहर में आयोजित होने वाला वार्षिक पाँच दिवसीय ऊँट और पशुधन मेला है।
- यह विश्व के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक है।
- हेमिस गोम्पा मेला: भारत के सबसे उत्तरी कोने में, लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में 300 वर्ष पुराना वार्षिक मेला मनाया जाता है जिसे हेमिस गोम्पा मेले के नाम से जाना जाता है।
- हेमिस मठ द्वारा गुरु पद्मसंभव की जयंती पर मेले का आयोजन किया जाता है।
- कुंभ मेला: यह हर 12 वर्ष में चार बार मनाया जाता है, यह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में चार पवित्र नदियों पर चार तीर्थस्थलों के बीच आयोजित किया जाता है है।
नोट: गंगासागर मेले को हाल ही में समुद्र के बढ़ते स्तर और सागर द्वीप पर कपिल मुनि मंदिर के पास समुद्र तट के कटाव के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कटाव का मुकाबला करने के लिये ड्रेजिंग और टेट्रापॉड के बावजूद स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
शास्त्रीय भाषाएँ क्या हैं?
- परिचय:
- 2004 में भारत सरकार ने "शास्त्रीय भाषाएँ" नामक भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया।
- 2006 में इसने शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने के लिये मानदंड निर्धारित किये। अब तक 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है।
क्रमांक | भाषा | घोषित वर्ष |
1. | तमिल | 2004 |
2. | संस्कृत | 2005 |
3. | तेलुगु | 2008 |
4. | कन्नड़ | 2008 |
5. | मलयालम | 2013 |
6. | ओडिया | 2014 |
- मापदंड:
- प्रारंभिक साहित्य एवं लिखित इतिहास अत्यंत पुराना है, जिसका इतिहास 1,500-2,000 वर्ष पुराना है।
- प्राचीन पुस्तकों या पांडुलिपियों के भंडार का स्वामित्व जिन्हें पीढ़ियों से विशेषरूप से सांस्कृतिक विरासत के रूप में महत्त्व दिया गया है।
- एक ऐसी मूल साहित्यिक परंपरा की उपस्थिति जो किसी अन्य भाषण समुदाय से नहीं ली गई है।
- शास्त्रीय भाषा एवं साहित्य आधुनिक से भिन्न होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।
- लाभ:
- एक बार जब किसी भाषा को शास्त्रीय घोषित कर दिया जाता है, तो उसे उस भाषा के अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता प्राप्त होती है साथ ही प्रतिष्ठित विद्वानों के लिये दो प्रमुख पुरस्कारों के लिये मार्ग भी खुल जाते है।
- इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध किया जा सकता है कि कम से कम केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के प्रतिष्ठित विद्वानों के लिये एक निश्चित संख्या में पेशेवर सीटें निर्धारित की जाएँ।
नोट: भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं: असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित में से किसे एक भाषा को शास्त्रीय भाषा (क्लासिकल लैंग्वेज) का दर्ज़ा (स्टेटस) दिया गया है? (2015) (a) उड़िया उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित संविधान संशोधन अधिनियमों में से किस एक के अंतर्गत भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत भाषाओं में चार भाषाएँ जोड़ी गईं, जिससे उनकी संख्या बढ़कर 22 हो गई? (2008) (a) संविधान (90वाँ संशोधन) अधिनियम उत्तर: (c) |


जैव विविधता और पर्यावरण
हिमालय में वनाग्नि
प्रिलिम्स के लिये:हिमालयी क्षेत्र, भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI), वर्षण मेन्स के लिये:हिमालय वनाग्नि, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण |
स्रोत: डाउन.टू.अर्थ
चर्चा में क्यों?
इस सर्दी में वर्षा की कमी के कारण हिमालयी क्षेत्र में विशेषकर हिमाचल तथा उत्तराखंड में वनाग्नि/जंगल की आग लगने की कई घटनाएँ सामने आई हैं।
- भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) के अनुसार, 16 अक्तूबर, 2023 से 16 जनवरी 2024 के बीच वनाग्नि की 2,050 घटनाएँ हुईं, किंतु विगत वर्ष इसी अवधि के दौरान वनाग्नि की केवल 296 घटनाएँ हुईं।
वनाग्नि क्या है?
- परिचय:
- इसे बुश फायर/वेजिटेशन फायर अथवा वनाग्नि भी कहा जाता है, इसे किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन अथवा प्राकृतिक स्थिति जैसे कि जंगल, घास के मैदान, क्षुपभूमि (Shrubland) अथवा टुंड्रा में पौधों/वनस्पतियों के जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है और पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे- वायु तथा स्थलाकृति आदि) के आधार पर इसका प्रसार होता है।
- वनाग्नि के लिये तीन कारकों की उपस्थिति आवश्यक है और वे हैं- ईंधन, ऑक्सीजन एवं ऊष्मा अथवा ताप का स्रोत।
- वर्गीकरण:
- सतही आग: इस प्रकार की जंगल की आग मुख्य रूप से सतही आग के रूप में हो सकती है, जिसमें ज़मीन पर पड़े कूड़े ( पत्ते और टहनियाँ एवं सूखी घास आदि) में आग लगती है।
- भूमिगत आग: कम तीव्रता की ऐसी आग जिसमें सतह एवं इसके नीचे के कार्बनिक पदार्थ और कूड़े में आग लगती है, इसे भूमिगत आग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। अधिकांश घने जंगलों में मृदा की सतह पर कार्बनिक पदार्थ का आवरण पाया जाता है।
- ये आग आमतौर पर पूरी तरह से भूमिगत होने के साथ सतह से कुछ मीटर नीचे तक लग सकती है।
- यह आग बहुत धीरे-धीरे फैलती है तथा ज़्यादातर मामलों में इस प्रकार की आग का पता लगाना और उस पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
- ये महीनों तक जारी रह सकती है जिससे मृदा का वनस्पति आवरण नष्ट हो सकता है।
- भूमिगत आग: ये आग उपसतह जैविक ईंधन में लगी आग हैं, जैसे जंगल के नीचे की परत, आर्कटिक टुंड्रा या टैगा, और दलदल या दलदल की जैविक मिट्टी।
- भूमिगत और ज़मीनी आग के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं है।
- सुलगती भूमिगत आग कभी-कभी ज़मीनी आग में बदल जाती है।
- यह आग जड़ और अन्य सामग्री को सतह पर या भीतर जला देती है, यानी, क्षय के विभिन्न चरणों में कार्बनिक पदार्थ की परत के साथ जंगल के फर्श पर उगने वाली जड़ी-बूटियों तक को जला देती है।
- यह सतही आग (surface fires) की तुलना में अधिक हानिकारक हैं, क्योंकि वे वनस्पति को पूरी तरह से नष्ट कर सकते हैं। भूमिगत आग सतह के नीचे जलती है और अक्सर सतही अग्नि से प्रज्ज्वलित होती है।
हिमालय क्षेत्र में वनाग्नि की घटनाओं किन कारकों का योगदान है?
- बर्फबारी और वर्षा का अभाव:
- सर्दियों के महीनों में बर्फबारी और वर्षा की अनुपस्थिति ने इस क्षेत्र को शुष्क बना दिया है। बर्फबारी और वर्षा मिट्टी की नमी बनाए रखने एवं वन क्षेत्र को अत्यधिक शुष्क होने से बचाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- शुष्क स्थितियाँ:
- मिट्टी और वनस्पति में नमी की कमी जंगल की आग के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ बनाती है। सूखी पत्तियाँ, सूखी मिट्टी के साथ मिलकर, आग के लिये संभावित ईंधन के रूप में कार्य करती हैं।
- बढ़ता तापमान, संभवतः जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ, जंगलों के सूखने में योगदान देता है। उच्च तापमान से वाष्पीकरण दर बढ़ जाती है, जिससे मिट्टी की नमी और कम हो जाती है।
- मानवीय गतिविधियाँ:
- मानवीय गतिविधियाँ, जैसे लापरवाही से सिगरेट छोड़ना या अनियंत्रित रूप से जलाना, वनाग्नि का कारण बन सकता है।
- यदि ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो वन विभाग द्वारा नियंत्रित जलावन भी इस समस्या में योगदान दे सकता है।
- कमज़ोर वृक्ष प्रजातियाँ:
- चीड़ पाइन जैसे अग्नि-प्रवण और ज्वलनशील वृक्ष प्रजातियों की उपस्थिति से वनाग्नि का खतरा बढ़ जाता है।
- हिमाचल का लगभग 15% वन क्षेत्र चीड़ से आच्छादित है।
- दीर्घकालीन सूखा रहने से खतरा:
- कई महीनों तक बारिश या बर्फबारी के बिना लंबे समय तक सूखा रहने से क्षेत्र में वनाग्नि का खतरा बढ़ जाता है।
वनाग्नि से निपटने के लिये सरकार द्वारा कौन-सी पहल की गई हैं?
- वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF), वर्ष 2018 में वन सीमांत समुदायों को जागरूक करने, सक्षम बनाने तथा उनका सशक्तीकरण करने और उन्हें राज्य वन विभागों के साथ सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित करके वनाग्नि को कम करने के लक्ष्य के साथ यह कार्ययोजना बनाई गई थी।
- वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (FPM) एकमात्र सरकार प्रायोजित कार्यक्रम है जो वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।
आगे की राह
- प्रारंभिक चेतावनी देने और जंगल की संभावित आग पर त्वरित प्रतिक्रिया करने के लिये उपग्रह-आधारित प्रौद्योगिकियों सहित उन्नत निगरानी प्रणालियों को लागू करने की आवश्यकता है।
- वन प्रबंधन और आग की रोकथाम के प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना आवश्यक है। लोगों को ज़िम्मेदार वन प्रथाओं एवं अग्नि सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता कार्यक्रम करने चाहिये।
- टिकाऊ वन प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना आवश्यक है जिससे जैव विविधता को बनाए रखने, आग प्रतिरोधी वनस्पति को बढ़ावा देने और अत्यधिक ज्वलनशील वृक्ष प्रजातियों को कम किया जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से वायुमंडल में किनका उत्सर्जन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण होता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
मेन्स:प्रश्न. अधिकांश असामान्य जलवायु घटनाओं को एल-नीनो प्रभाव के परिणाम के रूप में समझाया गया है। क्या आप सहमत हैं? (2014) |

