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डेली न्यूज़

  • 19 Sep, 2024
  • 44 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

रोज़गार बाज़ार में बढ़ता कौशल अंतराल

प्रिलिम्स:

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) , आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 , वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) , विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित पहल

मेन्स:

भारत में विनिर्माण क्षेत्र के विकास चालक, भारत के विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत के रोज़गार बाज़ार में अर्द्ध-कुशल और उच्च-कुशल रोज़गार के बीच विभाजन बढ़ रहा है। विगत दो दशकों में सेवा क्षेत्र (विशेष रूप से आईटी, बैंकिंग और वित्त) आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक रहा है । इसके विपरीत, परिधान और फुटवियर जैसे पारंपरिक उद्योग (जो अर्द्ध-कुशल रोज़गार प्रदान करते हैं) स्थिर हो रहे हैं।

भारत के विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के वर्तमान रुझान क्या हैं?

  • सेवा क्षेत्र:
    • सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में योगदान: भारत के सेवा क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 50% से अधिक का योगदान है तथा इससे लगभग 30.7% आबादी को रोज़गार मिलता है एवं यह सॉफ्टवेयर सेवाओं हेतु वैश्विक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
    • रिकवरी और संवृद्धि: सेवा क्षेत्र में वित्त वर्ष 2022-23 में उल्लेखनीय सुधार हुआ और वर्ष-दर-वर्ष (YoY) 8.4% की वृद्धि दर दर्ज की। 
      • भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग बाज़ार वर्ष 2021 और 2024 के बीच 6-8 % तक बढ़ने का अनुमान है।
    • GII रैंकिंग: सितंबर 2023 में भारत ने तकनीकी रूप से गतिशील, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार योग्य सेवाओं की प्रगति से प्रेरित होकर वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) में अपना 40वाँ स्थान बनाए रखा।
    • FDI: सेवा क्षेत्र में सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित हुआ, जो अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक 109.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
  • विनिर्माण क्षेत्र:
    • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14% (जो लक्षित 25% से कम है) बना हुआ है,  जिससे उच्च-कुशल और अर्द्ध-रोज़गार के बीच का अंतराल बढ़ रहा है।
    • विनिर्माण की कमज़ोर स्थिति: भारत का विनिर्माण क्षेत्र बांग्लादेश, थाईलैंड और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे है, जिससे अर्द्ध-कुशल रोज़गार सृजन प्रभावित हो रहा है।
      • अर्थशास्त्री इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारत अपनी 1.4 अरब विशाल जनसंख्या के कारण केवल सेवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं रह सकता है।
    • रोज़गार सृजन की आवश्यकता: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 7.85 मिलियन गैर-कृषि रोज़गारों की आवश्यकता होगी, जो बढ़ते कार्यबल को समायोजित करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गारों के सृजन की व्यापक आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार में गिरावट के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता (GDP में मात्र 14% का योगदान) से श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में बाधा उत्पन्न हुई है।
    • भारत का सेवा निर्यात वैश्विक वाणिज्यिक सेवा निर्यात का 4.3% है, जबकि इसका वस्तु निर्यात वैश्विक वस्तु बाज़ार का केवल 1.8% है। इस असंतुलन के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र में सीमित रोज़गार सृजित होते हैं
  • उच्च-कौशल वाले उद्योगों की ओर बदलाव: विनिर्माण क्षेत्र को नज़रअंदाज़ करते हुए वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के उदय से उच्च-कौशल वाले आईटी पेशेवरों के लिये  रोज़गार के अवसरों में वृद्धि हुई है लेकिन यह बदलाव पर्याप्त अर्द्ध-कौशल वाले रोज़गार सृजन में परिणत नहीं हुआ है। 
    • भारत में GCC की संख्या में वृद्धि हुई है, जिनमें से लगभग 1,600 बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थापित किये गए हैं, जो डेटा एनालिटिक्स और सॉफ्टवेयर विकास पर केंद्रित हैं।
  • निर्यात-संबंधी रोज़गार में गिरावट: विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में निर्यात-संबंधी रोज़गार वर्ष 2012 के कुल घरेलू रोज़गार के 9.5% से घटकर वर्ष 2020 में 6.5% हो गए हैं। 
    • इस गिरावट का कारण भारत के सेवा क्षेत्र और उच्च कौशल विनिर्माण का निर्यात क्षेत्र में प्रभुत्व होना है, जो व्यापक कार्यबल हेतु रोज़गार सृजन में कम प्रभावी है , जिसके परिणामस्वरूप व्यापार से संबंधित रोज़गार सृजन में कमी आई है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में सीमित भागीदारी: GVC में भारत की घटती भागीदारी के कारण रोज़गार सृजन सीमित हो गया है जबकि GVC की वैश्विक व्यापार में 70% भागीदारी है। 
    • विश्व बैंक के अनुसार, कच्चे माल की कमी और उच्च परिवहन लागत जैसी चुनौतियों ने भारत की व्यापार भागीदारी को कम कर दिया है।
  • उच्च टैरिफ: मध्यवर्ती वस्तुओं पर उच्च टैरिफ ने भारतीय निर्माताओं के लिये उत्पादन लागत बढ़ा दी है, जिससे उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो गई है। 
    • भारत का औसत टैरिफ वर्ष 2014 के 13% से बढ़कर संभावित रूप से वर्ष 2022 में 18.1% हो गया, जिससे वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन होने के साथ अर्द्ध-कुशल रोज़गार के अवसरों में कमी आई है।
  • अर्द्ध-कौशल संबंधी विनिर्माण में भारत द्वारा अवसर का लाभ न उठा पाना: भारत को वर्ष 2015 से 2022 के बीच अर्द्ध-कौशल विनिर्माण से चीन के बाहर हो जाने से उत्पन्न अवसर का लाभ उठाने में संघर्ष का सामना करना पड़ा। 
    • परिधान, चमड़ा, वस्त्र और फुटवियर जैसे उद्योगों में चीन की कम होती उपस्थिति से बांग्लादेश, वियतनाम जैसे देशों तथा यहाँ तक कि जर्मनी एवं नीदरलैंड जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को भी लाभ हुआ है।
  • कौशल विकास का अभाव: भारत के केवल 16% श्रम बल को कौशल प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है , जिसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त व्यावसायिक कौशल और शिक्षा के कारण रोज़गार की संभावना में कमी बनी हुई है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के अनुसार केवल 45% स्नातक ही रोज़गार योग्य हैं।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये क्या पहल की गई हैं?

  • PM मित्र पार्क: सरकार ने वर्ष 2023 में परिधान क्षेत्र में विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिये 4,445 करोड़ रुपए के निवेश के साथ 7 पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (PM-MITRA) पार्कों की स्थापना को मंज़ूरी दी।
  • राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम: आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 28,602 करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश के साथ 12 औद्योगिक स्मार्ट शहरों की स्थापना को मंज़ूरी दी, जिसका उद्देश्य विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना है
  • टैरिफ में कटौती: केंद्रीय बजट 2024-25 में चिकित्सा उपकरण और वस्त्र सहित विभिन्न वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती की घोषणा की गई , जिसका उद्देश्य उत्पादन लागत को कम करना तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह योजना गैर-कृषि इकाइयाँ स्थापित करने में उद्यमियों को सहायता प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक कारीगरों तथा बेरोज़गार युवाओं के लिये रोज़गार सृजित करना है। 
    • वर्ष 2018-19 से 30 जनवरी, 2024 तक इस कार्यक्रम के तहत अनुमानित 37.46 लाख रोज़गार सृजित होना संभावित है।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): इस योजना के तहत स्वरोज़गार को बढ़ावा देने के लिये व्यक्तियों और सूक्ष्म/लघु व्यवसायों को 10 लाख रुपए तक का ज़मानत-मुक्त ऋण प्रदान करना शामिल है। 
    • 29 मार्च, 2024 तक इस योजना के तहत लगभग 47.7 करोड़ ऋण स्वीकृत किये  जा चुके हैं।

आगे की राह

  • कौशल पहचान के लिये विकेंद्रीकृत सामुदायिक कार्रवाई: यह दृष्टिकोण संभावित श्रमिकों की पहचान करने और उन्हें विशिष्ट कौशल की आवश्यकता वाले उद्योगों के साथ जोड़ने में मदद कर, विनिर्माण क्षेत्र को लक्षित कार्यबल प्रदान करता है।
  • एकीकृत मानव विकास: स्थानीय स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और रोज़गार को एकीकृत करके तथा महिला समूहों का सहयोग प्राप्त कर अधिक स्वस्थ, अधिक कुशल कार्यबल का निर्माण किया जा सकता हैं, जो विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता एवं समावेशिता दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC) भागीदारी को बढ़ावा देना: कम टैरिफ और सरलीकृत व्यापार के माध्यम से GVC में एकीकरण में सुधार करके, भारतीय निर्माता बड़े बाज़ारों, आधुनिक प्रौद्योगिकियों तथा वैश्विक नेटवर्क तक पहुँच सकते हैं, जिससे विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होगी।
    • केंद्रीय बजट 2024-25  में कई प्रमुख वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती की घोषणा की गई है, लेकिन विश्व बैंक का सुझाव है कि लागत असमानताओं को खत्म करने और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने के लिये तथा अधिक कटौती आवश्यक है।
  • कौशल विकास में निवेश: आधुनिक विनिर्माण की उभरती मांगों को पूरा करने के लिये उच्च और अर्द्ध-कुशल दोनों रोज़गार क्षेत्रों में श्रमिकों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है, विशेष रूप से तब जब यह अधिक तकनीकी रूप से संचालित हो रहा है।
  • स्नातक डिग्री के साथ व्यावसायिक कार्यक्रम: व्यावसायिक शिक्षा को पारंपरिक डिग्री के साथ संयोजित करने से छात्रों को विनिर्माण क्षेत्र में आवश्यक व्यावहारिक कौशल प्राप्त होने की अधिक संभावना होती है, जिससे इस क्षेत्र में उनकी रोज़गार क्षमता में सुधार होता है।
  • प्रशिक्षुता लागतों को साझा करना: सरकार और उद्योग के बीच प्रशिक्षुता लागतों को साझा करने से अधिक प्रशिक्षुता को बढ़ावा मिलेगा, विनिर्माण फर्मों को प्रशिक्षित श्रमिकों तक पहुँच मिलेगी साथ ही श्रमिकों को उद्योग-प्रासंगिक अनुभव प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • महिला उद्यमियों के लिये सुव्यवस्थित ऋण: महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के लिये ऋण तक पहुँच को सरल बनाकर उन महिला उद्यमियों, जो आपूर्ति शृंखलाओं में योगदान देती हैं या अपना स्वयं का विनिर्माण उद्यम शुरू करती हैं, को समर्थन प्रदान कर विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता ने रोज़गार बाज़ार को किस प्रकार प्रभावित किया है तथा अधिक संतुलित विकास के लिये इस असंतुलन को दूर करने हेतु क्या रणनीति अपनाई जा सकती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)   

प्रिलिम्स:

प्रश्न: 'आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक' में निम्न में से किस एक को सर्वाधिक भार दिया गया है? (2015) 

(a) कोयला उत्पादन 
(b) बिजली उत्पादन 
(c) उर्वरक उत्पादन 
(d) इस्पात उत्पादन 

उत्तर: (b) 


प्रश्न. हाल ही में भारत में प्रथम 'राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र' का गठन कहाँ किये जाने के लिये प्रस्ताव दिया गया था? (2016) 

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) महाराष्ट्र
(d) उत्तर प्रदेश

उत्तर: (a)


प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल/पहलें की है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश एवं विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना 
  2. 'एकल खिड़की मंज़ूरी’ (सिंगल विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना 
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न 1: "औद्योगिक विकास दर सुधार के बाद की अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि में पिछड़ गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हाल के परिवर्तन औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) 

प्रश्न 2: आमतौर पर देश कृषि से उद्योग में और फिर बाद में सेवाओं में स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं में स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


भारतीय अर्थव्यवस्था

चाय उद्योग में सुधार की आवश्यकता

प्रिलिम्स:

चाय उद्योग, चरम मौसमी घटनाएँ, कीटनाशक, तराई, नीलगिरी, भारतीय चाय बोर्ड, भूस्खलन, वाणिज्य प्रौद्योगिकियाँ, पाम ऑयल, फार्मर फील्ड स्कूल (FFS)।

मेन्स:

चाय उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ, चाय उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।

स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2024 में चाय उत्पादन में गिरावट के कारण असम और पश्चिम बंगाल की चाय की कीमतों में लगभग 13% की वृद्धि देखी गई।

भारत में चाय उद्योग की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • हाल की प्रवृत्ति:
    • चाय उत्पादन में गिरावट: पश्चिम बंगाल और असम में वर्ष 2024 में चाय उत्पादन में क्रमशः लगभग 21% तथा 11% की गिरावट आई है, जिसके कारण घरेलू कीमतों में 13% की वृद्धि हुई है
    • प्रीमियम उत्पादों की हानि: नष्ट हुई फसल मुख्य रूप से मानसून की पहली एवं दूसरी वर्षा से संबंधित है, जिसे वर्ष की सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली चाय माना जाता है , जिससे उद्योग की लाभप्रदता तथा नकदी प्रवाह पर और अधिक प्रभाव पड़ा।
    • निर्यात बाज़ार में गिरावट: इस वर्ष निर्यात कीमतों में 4% की गिरावट आई है , जो एक निराशाजनक प्रवृत्ति है।
    • चाय बोर्ड से लंबित सब्सिडी: यह उद्योग हाल के वर्षों में किये गए विकास कार्यों के लिये चाय बोर्ड से उचित सब्सिडी प्राप्त नहीं कर पाया है। सब्सिडी न मिलने से वित्तीय बोझ (खासकर कम उत्पादन वाले वर्ष के दौरान) बढ़ गया है।
  • चाय उद्योग से संबंधित अन्य तथ्य: 
    • वैश्विक स्थिति: भारत चीन के बाद विश्व भर में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष 5 चाय निर्यातकों में से एक (जो कुल वैश्विक चाय निर्यात में लगभग 10% का योगदान देता है) है।
      • अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 तक भारत से चाय निर्यात का कुल मूल्य 752.85 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
    • भारत में चाय की खपत: वैश्विक चाय खपत में  भारत का योगदान 19% है।
      • भारत अपने कुल चाय उत्पादन का लगभग 81% घरेलू स्तर पर खपत करता है, जबकि केन्या और श्रीलंका जैसे देश अपने उत्पादन का अधिकांश हिस्सा निर्यात करते हैं।
    • उत्पादक राज्य: प्रमुख चाय उत्पादक राज्य असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल हैं, जो भारत के कुल चाय उत्पादन का 97% उत्पादन करते हैं।
    • प्रमुख निर्यात: भारत से निर्यात की जाने वाली चाय का अधिकांश हिस्सा काली चाय है जो कुल निर्यात का लगभग 96% है। असम, दार्जिलिंग और नीलगिरि चाय को विश्व में सबसे बेहतरीन चाय में से एक माना जाता है।

Major_Tea_Producing_States

भारत में चाय उद्योग से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • मौसम से प्रेरित गिरावट: भारत का चाय उत्पादन चरम मौसमी घटनाओं (विशेष रूप से मई 2024 में हीट वेव और उसके बाद असम में बाढ़) से काफी प्रभावित हुआ है ।
    • मई 2024 में भारतीय चाय उत्पादन मई 2023 के 130.56 मिलियन किलोग्राम से घटकर 90.92 मिलियन किलोग्राम रह गया, जो 10 वर्षों से अधिक समय में मई का सबसे कम उत्पादन रहा
  • चाय की कीमतों में अपेक्षित वृद्धि: उत्पादन में व्यवधान के परिणामस्वरूप चाय की औसत कीमत में 20% तक की वृद्धि देखी गई।
    • जुलाई 2024 में चाय की कीमत में वर्ष 2024 की शुरुआत से 47% की वृद्धि देखी गई।
  • कीटनाशकों पर प्रतिबंध: भारत सरकार ने 20 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनके महँगे होने के कारण चाय की कीमतें बढ़ गईं। 
    • हालाँकि कीटनाशक प्रतिबंध के बाद भारतीय चाय की मांग फिर से बढ़ (विशेष रूप से रूस, यूक्रेन, बेलारूस, अजरबैजान और कजाकिस्तान में जो भारतीय चाय के प्रमुख खरीदार हैं) गई है
    • हालाँकि कीटनाशकों पर प्रतिबंध से मांग में वृद्धि हुई है लेकिन इससे उत्पादन संबंधी चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुई हैं, क्योंकि चाय उत्पादकों को वैकल्पिक कीट प्रबंधन समाधान खोजने में कठिनाई हो रही है
  • देश के अंदर खपत में स्थिरता: देश के अंदर खपत लगभग स्थिर होने के साथ निर्यात परिदृश्य में गिरावट के कारण, बाज़ार में अतिरिक्त चाय आने से मूल्य प्राप्ति पर और अधिक दबाव पड़ रहा है।
  • छोटे चाय उत्पादकों (STG) पर प्रभाव: STG (जो एक हेक्टेयर से कम भूमि पर उत्पादन करते हैं) की भारत के कुल चाय उत्पादन में 55% से अधिक और पश्चिम बंगाल के चाय उत्पादन में 65% का योगदान है।
    • उत्पादन की हानि और निर्यात मूल्य में गिरावट का इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • नकारात्मक प्रभाव: इसका पत्ती कारखानों (BLFs) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि STG इन कारखानों के लिये कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं।
    • BLF ऐसे चाय कारखाने हैं जो अन्य उत्पादकों से चाय की पत्तियाँ खरीदते हैं और उन्हें तैयार चाय में संसाधित करते हैं। 
  • उत्तर बंगाल में चाय बागान बंद: डुआर्स, तराई और दार्जिलिंग क्षेत्रों में लगभग 13 से 14 चाय बागान बंद हो गए हैं, जिससे 11,000 से अधिक श्रमिक प्रभावित हुए हैं
    • उत्तरी बंगाल में लगभग 300 बागानों से प्रतिवर्ष लगभग 400 मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है

वैश्विक चाय सांख्यिकी

  • वैश्विक उत्पादन और खपत: वर्ष 2022 में कुल वैश्विक चाय उत्पादन 6,478 मिलियन किलोग्राम था जबकि वैश्विक चाय की खपत 6,209 मिलियन किलोग्राम थी।
  • निर्यात: वर्ष 2022 में उत्पादक देशों से कुल चाय निर्यात 1,831 मिलियन किलोग्राम रहा। 
  • प्रमुख उत्पादक: चीन, भारत, केन्या और श्रीलंका प्रमुख चाय उत्पादक और निर्यातक हैं। ये देश वैश्विक चाय उत्पादन का 82% और वैश्विक चाय निर्यात का 73% हिस्सा रखते हैं।

Production_and_Export_Share_of_Countries

भारतीय चाय बोर्ड

  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1953 में हुई थी और इसका मुख्यालय कोलकाता में है। पूरे भारत में इसके 17 कार्यालय हैं।
  • वैधानिक निकाय: इसकी स्थापना चाय अधिनियम, 1953 की धारा 4 के तहत की गई थी
  • नियामक प्राधिकरण: यह चाय उत्पादकों, निर्माताओं, निर्यातकों, चाय दलालों, नीलामी आयोजकों और गोदाम रखवालों सहित विभिन्न संस्थाओं को नियंत्रित करता है।
  • कार्य: यह बाज़ार सर्वेक्षण करता है, विश्लेषण करता है, उपभोक्ता व्यवहार पर नज़र रखता है तथा आयातकों और निर्यातकों को प्रासंगिक एवं सटीक जानकारी प्रदान करता है।

जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर चाय उद्योग को किस प्रकार प्रभावित करता है?

  • अत्यधिक वर्षा: यद्यपि चाय के पौधे वर्षा के पानी पर निर्भर रहते हैं लेकिन अत्यधिक वर्षा से जलभराव, मृदा अपरदन और ढलान क्षेत्र को नुकसान हो सकता है , जिससे उपलब्ध बागान क्षेत्र कम हो सकता है।
  • सूखे का प्रभाव: सूखे के कारण चाय के पौधों पर धूल जम जाती है और सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध हो जाता है, जिससे भारत एवं चीन जैसे देशों में उत्पादन प्रभावित होता है।
  • पाला से होने वाली क्षति: पाला विशेष रूप से रवांडा और चीन जैसे स्थानों पर हानिकारक है, जहाँ पत्तियाँ जल्दी गिर जाती हैं
  • ग्लेशियरों का पिघलना : पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्रों में जमीन की अस्थिरता से चट्टान के हिमस्खलन और भूस्खलन का खतरा बढ़ सकता है ।
    • चट्टानी हिमस्खलन और भूस्खलन से चाय बागानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि चाय के विकास के लिये पहाड़ी ढलानों की आवश्यकता होती है।
  • चाय उत्पादन और गुणवत्ता पर प्रभाव: ग्लोबल वार्मिंग के कारण गुणवत्ता वाली चाय का उत्पादन कठिन और महँगा हो जाता है। 
    • चाय की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में गिरावट आने से उपभोक्ताओं के लिये कीमतें बढ़ जाएंगी।

आगे की राह

  • न्यूनतम बेंचमार्क मूल्य निर्धारण: विनियमित चाय बागानों (RTG) और छोटे चाय उत्पादकों (STG) को चाय के विभिन्न ग्रेडों के लिये  न्यूनतम बेंचमार्क मूल्य निर्धारित करने हेतु सरकार के साथ सहयोग करना चाहिये।
    • बेंचमार्क कीमतें लागत-प्लस मॉडल पर आधारित होनी चाहिये, ताकि उत्पादन लागत को कवर तथा क्षेत्र के विकास एवं निर्यात क्षमता में वृद्धि को सुनिश्चित किया जा सके।
  • ई-कॉमर्स एकीकरण: लाभ मार्जिन बढ़ाने के लिये प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता बिक्री की सुविधा हेतु ई-कॉमर्स प्रौद्योगिकियों और मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करना। 
  • प्रीमियम चाय पर ज़ोर: केवल उत्पादन बढ़ाने के बजाय, व्यवसाय को गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, क्योंकि इससे उत्पादकों की आय में वृद्धि होगी।
    • उपभोक्ताओं की आय बढ़ने के साथ ही प्रीमियम चाय की मांग बढ़ने की संभावना है।
  • पूरक फसल के रूप में पाम तेल: DGT और RTG को पाम-ऑयल उत्पादन में विविधता लाने पर विचार करना चाहिये, क्योंकि पूर्वोत्तर भारत के चाय बागान इस फसल के लिये उपयुक्त हैं।
    • पाम-ऑयल की खेती में कम श्रम , न्यूनतम पानी की आवश्यकता के साथ उच्च आय प्राप्त होती है। 
  • अन्य देशों से सीखना: उच्च गुणवत्ता वाली चाय का स्थायी उत्पादन हेतु किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • केन्या चाय विकास एजेंसी (KTDA) ने किसान फील्ड स्कूल (FFS) मॉडल की शुरुआत की है , जो रोपण (Planting), फाइन-प्लकिंग (Fine-Plucking), प्रमाणीकरण की तैयारी आदि के माध्यम से उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने हेतु व्यावहारिक शिक्षा प्रदान करता है।
  • नीलामी प्रणाली: यह सुनिश्चित करने के लिये कि खरीदी गई 100% चाय पत्ती सार्वजनिक नीलामी प्रणाली के माध्यम से बेची जाए,  तार्किक नीलामी प्रणाली शुरू की जानी चाहिये।
    • वर्तमान में केवल 40% चाय पत्तियों की नीलामी होती है, जिससे मूल्य प्राप्ति प्रभावित होती है।
  • निर्यात गंतव्यों का विस्तार: एशिया प्रशांत क्षेत्र में रेडी-टू-ड्रिंक (RTD) चाय बाज़ार का वर्ष 2028 तक 6.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है , जो 5.73 % की वार्षिक दर से बढ़ रहा है ।
    • भारत इस बाज़ार से लाभ उठाने की अच्छी स्थिति में है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R$D) की आवश्यकता: चाय की गुणवत्ता बढ़ाने, जलवायु-अनुकूल किस्मों को विकसित करने और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिये जैविक कीटनाशकों जैसे पर्यावरण अनुकूल समाधान खोजने के क्रम में अनुसंधान एवं विकास महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में चाय उद्योग के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। नीतिगत हस्तक्षेप और तकनीकी प्रगति इन चुनौतियों से निपटने में किस प्रकार मदद कर सकती है? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: भारत में ‘‘चाय बोर्ड’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. चाय बोर्ड सांविधिक निकाय है। 
  2. यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संलग्न नियामक निकाय है। 
  3. चाय बोर्ड का प्रधान कार्यालय बंगलूरु में स्थित है। 
  4. बोर्ड के दुबई और मॉस्को में विदेश स्थित कार्यालय हैं।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3 और 4         
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. ब्रिटिश बागान मालिकों ने असम से हिमाचल प्रदेश तक शिवालिक और लघु हिमालय के चारों ओर चाय बागान विकसित किये थे, जबकि वास्तव में वे दार्जिलिंग क्षेत्र से आगे सफल नहीं हुए। चर्चा कीजिये। (2014)


भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रीन हाउस गैस में कमी हेतु फूड बैंक

प्रिलिम्स के लिये:

मीथेन उत्सर्जन से बचने के लिये खाद्य पुनर्प्राप्ति (FRAME), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) , सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), सतत् विकास लक्ष्य (SDG) , ग्रीनहाउस गैसें।

मेन्स के लिये:

खाद्यान्न की बर्बादी, भारत और विश्व में खाद्यान्न की बर्बादी का वर्तमान परिदृश्य, खाद्यान्न की बर्बादी के कारण, इसे कम करने के लिये उठाए गए कदम।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

 मेथेन उत्सर्जन से बचने के लिए खाद्य पुनर्प्राप्ति (Food Recovery to Avoid Methane Emissions- FRAME) नामक एक नई पद्धति पर आधारित हालिया अनुमानों के अनुसार, फूड बैंक, ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कटौती कर जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • प्रत्येक फूड बैंक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में उतनी ही कमी लाता है, जितनी एक वर्ष में सड़कों से 900 गैसोलीन-संचालित कारों को हटाने से आती है।

नोट: 

  • FRAME एक ऐसा उपकरण है जिसे खाद्य पुनर्प्राप्ति और पुनर्वितरण के माध्यम से खाद्यान्न की बर्बादी (food loss and waste-FLW) के पर्यावरणीय प्रभाव को मापने और कम करने के लिये विकसित किया गया है ।
    • मेक्सिको और इक्वाडोर में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में FRAME द्वारा छह समुदाय-संचालित फूड बैंकों का विश्लेषण किया गया, जिसमें पाया गया कि उन्होंने सामूहिक रूप से एक वर्ष में 816 मीट्रिक टन मीथेन उत्सर्जन को रोका, जो कि प्रति फूड बैंक औसतन 136 मीट्रिक टन था।
    • यह पद्धति फूड बैंकों को खाद्य पुनर्प्राप्ति से होने वाले उत्सर्जन पर नज़र रखने में मदद करती है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आती है, साथ ही खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है, तथा पर्यावरणीय एवं सामाजिक चुनौतियों का समाधान होता है।

खाद्यान्न की बर्बादी रोकने में फूड बैंक कितने प्रभावी हैं?

  • फूड बैंक:
    • फूड बैंक एक गैर-लाभकारी संगठन है जो ऐसे लोगों को भोजन उपलब्ध कराता है जो भूख से बचने के लिये पर्याप्त भोजन जुटाने में कठिनाई महसूस करते हैं। 
    • यह आमतौर पर अन्य संगठनों जैसे कि फूड पैंट्री और किचन सूप के माध्यम से कार्य करता है , हालाँकि कुछ फूड बैंक प्रत्यक्ष रूप से स्वयं भोजन वितरित करते हैं। 
    • वे खाद्य आपूर्ति शृंखला से अधिशेष भोजन एकत्र कर सामुदायिक संगठनों के माध्यम से भूख से जूझ रहे लोगों में वितरित करते हैं।
  • फूड बैंकों का वैश्विक प्रभाव:
    • उत्सर्जन में कमी: अनुमान है कि प्रत्येक फूड बैंक प्रतिवर्ष 906 गैसोलीन-संचालित कारों के बराबर GHG उत्सर्जन से बचता है , या एक दशक में उगाए गए लगभग 63,000 वृक्षों के पौधों के बराबर कार्बन भंडारण से बचता है।
      • वर्ष 2019 में फूड बैंकों ने सामूहिक रूप से 12 मिलियन टन से अधिक CO2 समतुल्य उत्सर्जन को रोका और 75 मिलियन टन पौष्टिक भोजन को लैंडफिल में जाने से बचाया।
    • खाद्य सुरक्षा: फूड बैंकों ने अपने नेटवर्क के अंतर्गत भूख से जूझ रहे 66 मिलियन से अधिक लोगों को भोजन प्रदान किया।
      • भोजन को पुनः प्राप्त और पुनर्वितरित करके, ये संगठन न केवल पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हैं, बल्कि कमज़ोर आबादी के लिये भी खाद्य सुरक्षा प्रदान करते हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों के साथ संरेखण: FRAME संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य 12.3 का समर्थन करता है , जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक खुदरा और उपभोक्ता स्तर पर वैश्विक खाद्य अपशिष्ट को आधा करना है।

खाद्यान्न की बर्बादी की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) का अनुमान है कि विश्व स्तर पर 31% खाद्यान्न की बर्बादी हो जाती है, जिसमें से 14% फसल कटाई के बाद तथा अतिरिक्त 17% खुदरा एवं उपभोक्ता स्तर पर बर्बाद हो जाता है
  • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारतीय परिवार अपने भोजन का 40%, या 78.2 मिलियन टन प्रति वर्ष बर्बाद कर देते हैं, जिससे देश को लगभग 92,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होता है।
    • भारत में प्रति व्यक्ति भोजन की बर्बादी 55 किलोग्राम प्रति वर्ष है, तथा ग्रामीण क्षेत्रों में यह बर्बादी शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है। 
    • दक्षिण एशिया मे भूटान में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की बर्बादी सबसे कम 19 किलोग्राम प्रति वर्ष, जबकि पाकिस्तान में यह दर सबसे अधिक 130 किलोग्राम प्रति वर्ष है। 

खाद्यान्न की बर्बादी के परिणाम: 

  • इससे भुखमरी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है ।
    • लैंडफिल में खाद्य अपशिष्ट से शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन उत्पन्न होती है, जो पहले 20 वर्षों में  CO2 की तुलना में 80 गुना अधिक ऊष्मा ग्रहण कर लेती है।
  • वर्ष 2017 में, खाद्यान्न की बर्बादी और अपशिष्ट से उत्सर्जन 9.3 गीगाटन CO2 समतुल्य (GtCO2e) तक पहुँच गया है।
    • खाद्य प्रणालियाँ वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग एक-तिहाई के लिये ज़िम्मेदार हैं, तथा खाद्यान्न की बर्बादी इस आँकड़ें के आधे के लिये ज़िम्मेदार हैं।

नोट:

  • वर्ष 2030 तक खाद्यान्न की बर्बादी को आधा करने के लिये खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट, राष्ट्रीय प्रगति को नियंत्रित करती है (SDG 12.3)SDG 12 का उद्देश्य सतत् उपभोग और उत्पादन पैटर्न सुनिश्चित करना है।

आगे की राह:

  • निम्न लक्ष्य निर्धारित करना: सरकार को सतत् विकास लक्ष्यों (SGD) के अनुरूप राष्ट्रीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर मापन योग्य और समयबद्ध निम्न लक्ष्य निर्धारित करके खाद्य अपव्यय को कम करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना: स्कूल पाठ्यक्रमों में खाद्य अपशिष्ट शिक्षा को शामिल करके, जागरूकता अभियान शुरू करके और व्यवसायों को सतत् प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करके सतत् खाद्य उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करना।
  • खाद्य पुनर्प्राप्ति नेटवर्क को सुदृढ़ बनाना: खाद्य पुनर्प्राप्ति कार्यक्रमों के विकास का समर्थन करना, जो प्रौद्योगिकी और स्थानीय पहलों का लाभ उठाते हुए, कमज़ोर आबादी को अधिशेष भोजन वितरित करते हैं।
  • अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को बढ़ाना: जैविक कचरे का पुन: उपयोग करने और लैंडफिल पर भार कम करने के लिय, बड़े पैमाने पर खाद निर्मित करने, बायोगैस सुविधाओं और अपशिष्ट-से-ऊर्जा पहल जैसे कुशल खाद्य अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना।

निष्कर्ष:

जलवायु परिवर्तन और खाद्य असुरक्षा से निपटने में फूड बैंकों के प्रभाव को अधिकतम करने हेतु खाद्य पुनर्प्राप्ति पहलों को बढ़ावा देने वाली नीतियों का समर्थन करना आवश्यक है। खाद्य प्रणाली में हितधारकों के बीच जागरूकता, वित्त पोषण और सहयोग में वृद्धि से फूड बैंकों की प्रभावशीलता बढ़ सकती है। खाद्य अपशिष्ट को संबोधित करके, हम वैश्विक स्तर पर जलवायु लक्ष्यों और खाद्य सुरक्षा लक्ष्यों दोनों को प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

भारत खाद्यान्न की बर्बादी की समस्या का प्रभावी ढंग से निपटन करके इसे अवसर में किस प्रकार बदल सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL) की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।
  2. परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार की मुखिया होगी।
  3. गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छ: महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं।

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भारत में भूख और कुपोषण को खत्म करने में कैसे मदद की है? (मुख्य परीक्षा, 2021)


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