डेली न्यूज़ (19 Mar, 2021)



विनियोग विधेयक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने विनियोग विधेयक को मंज़ूरी दी है, इससे केंद्र सरकार भारत की संचित निधि से धनराशि की निकासी कर सकेगी।

प्रमुख बिंदु:

  • विनियोग विधेयक सरकार को किसी वित्तीय वर्ष के दौरान व्यय की पूर्ति के लिये भारत की संचित निधि से धनराशि निकालने की शक्ति देता है।
    • संविधान के अनुच्छेद-114 के अनुसार, सरकार संसद से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही संचित निधि से धन निकाल सकती है।
    • निकाली गई धनराशि का उपयोग वित्तीय वर्ष के दौरान खर्च को पूरा करने के लिये किया जाता है।
  • अनुसरित प्रक्रिया:
    • विनियोग विधेयक लोकसभा में बजट प्रस्तावों और अनुदानों की मांगों पर चर्चा के बाद पेश किया जाता है।
      • संसदीय वोटिंग में विनियोग विधेयक के पारित न होने से सरकार को इस्तीफा देना होगा तथा आम चुनाव कराना होगा।
    • एक बार जब यह लोकसभा द्वारा पारित हो जाता है, तो इसे राज्यसभा में भेज दिया जाता है।
      • राज्यसभा की शक्तियाँ:
        • राज्यसभा को इस विधेयक में संशोधन की सिफारिश करने की शक्ति प्राप्त है। हालाँकि राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार करना या अस्वीकार करना लोकसभा का विशेषाधिकार है।
    • राष्ट्रपति से विधेयक को स्वीकृति मिलने के बाद यह विनियोग अधिनियम बन जाता है।
      • विनियोग विधेयक की अनूठी विशेषता इसका स्वत: निरसन है, जिससे यह अधिनियम अपने वैधानिक उद्देश्य को पूरा करने के बाद अपने आप निरस्त हो जाता है।
    • सरकार विनियोग विधेयक के अधिनियमित होने तक भारत की संचित निधि से धनराशि नहीं निकाल सकती है। हालाँकि इसमें समय लगता है और सरकार को अपनी सामान्य गतिविधियों के संचालन के लिये धन की आवश्यकता होती है। अतः अपने तत्काल व्ययों को पूरा करने के लिये संविधान ने लोकसभा को वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिये अग्रिम रूप से अनुदान प्रदान करने हेतु अधिकृत किया है। इस प्रावधान को 'लेखानुदान' के रूप में जाना जाता है।

लेखानुदान:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 के अनुसार,  लेखानुदान केंद्र सरकार के लिये अग्रिम अनुदान के रूप में है, इसे भारत की संचित निधि से अल्पकालिक व्यय की आवश्यकता को पूरा करने के लिये प्रदान किया जाता है और आमतौर पर नए वित्तीय वर्ष के कुछ शुरुआती महीनों के लिये जारी किया जाता है।
  • आवश्यकता:
    • एक चुनावी वर्ष के दौरान सरकार या तो अंतरिम बजट ’या ‘लेखानुदान’ को ही जारी करती है क्योंकि चुनाव के बाद नई सरकार पुरानी सरकार की नीतियों को बदल सकती है।
  • संशोधन:
    • किसी विनियोग विधेयक की राशि में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की राशि में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, संसद के सदन में प्रख्यापित नहीं किया जा सकता है और  ऐसे संशोधन की स्वीकार्यता के संबंध में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है।
  • विनियोग विधेयक बनाम वित्त विधेयक:
    • वित्त विधेयक में सरकार के व्यय के वित्तपोषण संबंधी प्रावधान हैं, जबकि एक विनियोग विधेयक में धन निकासी की मात्रा और उद्देश्य को निर्दिष्ट किया गया है।
    • विनियोग और वित्त विधेयक दोनों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसे राज्यसभा की स्पष्ट सहमति की आवश्यकता नहीं होती है। राज्यसभा इस पर केवल चर्चा करके इसे लौटा देती है।
    • धन विधेयक:
      • एक विधेयक को उस स्थिति में धन विधेयक कहा जाता है यदि इसमें केवल कराधान, सरकार द्वारा धन उधार लेने, भारत की संचित निधि से धनराशि प्राप्त करने से संबंधित प्रावधान हैं।
      • वे विधेयक जिनमें केवल ऐसे प्रावधान हैं जो उपर्युक्त मामलों से संबंधित हैं, उन्हें ही धन विधेयक माना जाएगा।

भारत की संचित निधि:

  • इसकी स्थापना भारत के संविधान के अनुच्छेद 266 (1) के तहत की गई थी।
  • इसमें समाहित हैं:
    • करों के माध्यम से केंद्र को प्राप्त सभी राजस्व (आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और अन्य प्राप्तियाँ) तथा सभी गैर-कर राजस्व।
    • सार्वजनिक अधिसूचना, ट्रेज़री बिल (आंतरिक ऋण) और विदेशी सरकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों (बाहरी ऋण) के माध्यम से केंद्र द्वारा लिये गए सभी ऋण।
  • सभी सरकारी व्यय इसी निधि से पूरे किये जाते हैं (असाधारण मदों को छोड़कर जो लोक लेखा निधि या सार्वजनिक निधि से संबंधित हैं) और संसद के प्राधिकरण के बिना निधि से कोई राशि नहीं निकाली जा सकती।
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) इस निधि का लेखा परीक्षण करते हैं।

संसद में बजट की विभिन्न अवस्थाएँ:

  • बजट की प्रस्तुति।
  • आम चर्चा।
  • विभागीय समितियों द्वारा जाँच।
  • अनुदान की मांगों पर मतदान।
  • विनियोग विधेयक पारित करना।
  • वित्त विधेयक पारित करना।

स्रोत-द हिंदू


विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट- 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्विस संगठन IQAir द्वारा तैयार की गई विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट (World Air Quality Report) में उल्लेख किया गया है कि विश्व के शीर्ष 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं।

  • इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिये 106 देशों से PM2.5 डेटा एकत्र किया।

PM2.5

  • PM2.5, 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास का एक वायुमंडलीय कण होता है, जो कि मानव बाल के व्यास का लगभग 3% होता है।
  • यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है और हमारे देखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। साथ ही यह डायबिटीज़ का भी एक कारण होता है।
  • यह इतना छोटा होता है कि इसे केवल इलेक्ट्रॉन को माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है।
  • यह कण निर्माण स्थल, कच्ची सड़कें, खेत आदि जैसे कुछ स्रोतों से सीधे उत्सर्जित होते हैं।
  • अधिकांश कण वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनते हैं, जो बिजली संयंत्रों, उद्योगों और ऑटोमोबाइल से निकलने वाले प्रदूषक हैं।

प्रमुख बिंदु

देशों की राजधानियों की रैंकिंग:

  • दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित राजधानी शहर के रूप में स्थान दिया गया है, इसके बाद क्रमशः ढाका (बांग्लादेश), उलानबटार, (मंगोलिया), काबुल (अफगानिस्तान) और दोहा (कतर) का स्थान है।

देशों की रैंकिंग:

  • बांग्लादेश को पाकिस्तान और भारत के बाद सबसे प्रदूषित देश का दर्जा दिया गया है।
  • सबसे कम प्रदूषित देश प्यूर्टो रिको है, उसके बाद क्रमशः न्यू कैलेडोनिया और अमेरिकी वर्जिन आइलैंड हैं।

विश्व के शहरों की रैंकिंग:

  • चीन का होटन (Hotan) शहर विश्व का सबसे प्रदूषित (110.2 µg/m³) शहर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद ज़िला (106 µg/m³) है।

भारतीय परिदृश्य:

  • दिल्ली की वायु गुणवत्ता में वर्ष 2019-2020 के दौरान लगभग 15% की वृद्धि हुई है।
    • दिल्ली को 10वें सबसे प्रदूषित शहर और विश्व के शीर्ष प्रदूषित राजधानी शहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • गाजियाबाद विश्व का दूसरा और भारत का पहला सबसे प्रदूषित शहर है, इसके बाद बुलंदशहर, बिसरख जलालपुर, भिवाड़ी, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर और लखनऊ का स्थान है।
  • वर्ष 2020 के अधिकांश दिनों में उत्तर भारतीय शहरों की तुलना में दक्कन के शहरों में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की दैनिक सीमा 25 µg/m3 से अपेक्षाकृत बेहतर वायु गुणवत्ता दर्ज की गई है।
    • हालाँकि भारत के प्रत्येक शहर में वर्ष 2018 और इसके पहले की तुलना में वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया, जबकि 63% शहरों में वर्ष 2019 की तुलना में प्रत्यक्ष सुधार देखा गया।
  • भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में परिवहन, खाना पकाने के लिये बायोमास जलाना, बिजली उत्पादन, उद्योग, निर्माण, कृषि अपशिष्ट जलाना आदि शामिल हैं।
    • वर्ष 2020 में बड़े पैमाने पर कृषि अपशिष्ट जलाए गए, इसके अंतर्गत किसानों द्वारा फसल की कटाई के बाद बचे फसल अवशेषों में आग लगा दी जाती है। पंजाब में इस प्रकार की घटना वर्ष 2019 में 46.5% तक बढ़ गई।

कोविड और इसका प्रभाव:

  • वर्ष 2020 में कण-प्रदूषण के संपर्क में आने से कोविड-19 के प्रसार ने नई चिंताओं को जन्म दिया, जो वायरस के प्रति संवेदनशीलता और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को बढ़ाता है।
  • प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चला है कि कोविड-19 से और वायु प्रदूषण जोखिम के कारण मृत्यु का अनुपात 7% से 33% तक है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण

  • दिल्ली-एनसीआर और गंगा के मैदानों में वायु प्रदूषण एक जटिल घटना है जो कई कारकों पर निर्भर है।
  • पवन की दिशा में परिवर्तन:
    • उत्तर-पश्चिम भारत में अक्तूबर माह में मानसून (Monsoon) की वापसी शुरू हो जाती है और हवाओं की दिशा उत्तर-पूर्व की तरफ होती है।
    • ये हवाएँ अपने साथ उत्तरी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धूल लेकर आती हैं।
  • हवा की गति में कमी:
    • उच्च गति वाली हवाएँ प्रदूषकों को हटाने में बहुत प्रभावी होती हैं, लेकिन सर्दियों में ग्रीष्मकाल की तुलना में हवा की गति में गिरावट आ जाती है जिससे यह क्षेत्र प्रदूषण का शिकार हो जाता है।
    • दिल्ली चारों तरफ से भू-भाग से घिरा है और इसे देश के पूर्वी, पश्चिमी या दक्षिणी हिस्से के खुले मौसम का लाभ नहीं मिल पाता है।
  • पराली दहन:
    • पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में जलने वाले कृषि अपशिष्ट को सर्दियों के दौरान दिल्ली में धुंध का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
      • इससे वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ज़हरीले प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें शामिल हैं।
    • वर्षों से धान के ठूँठ/कृषि अपशिष्ट को खेत से हटाने या साफ करने के लिये उसमें आग लगाने की विधि को अन्य निपटान के तरीकों से आसान और सस्ता माना जाता रहा है।
  • वाहन प्रदूषण:
    • वाहन दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को सर्दियों में खराब करने वाला सबसे बड़े कारण हैं, ये इस क्षेत्र में कुल PM2.5 कणों के लगभग 20% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • धूल के तूफान:
    • खाड़ी देशों से आने वाले धूल के तूफान यहाँ की पहले से ही खराब स्थिति को और बढ़ा देते हैं। बारिश के दिनों में विशेषकर अक्तूबर और जून के बीच नहीं दिखने वाला धूल का प्रकोप शुष्क ठंडे मौसम में प्रभावी हो जाता है।
    • धूल प्रदूषण, PM10 और PM2.5 कणों के लिये लगभग 56% तक ज़िम्मेदार है।
  • तापमान में कमी:
    • वायु की दिशा में परिवर्तन के साथ-साथ तापमान में गिरावट भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर का एक प्रमुख कारक है। जैसे ही तापमान बढ़ता है, प्रतिलोम ऊँचाई (वह परत जिसके ऊपर प्रदूषक वायुमंडल में फैल नहीं सकते) कम हो जाती है और ऐसा होने पर हवा में प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ जाती है।
  • पटाखे:
    • पटाखों के बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद इनका इस्तेमाल दिवाली पर होना एक आम बात है। हालाँकि यह वायु प्रदूषण का प्रमुख कारक नहीं है, लेकिन इसे बढ़ाने में निश्चित रूप से योगदान करता है।
  • निर्माण गतिविधियाँ और खुले में अपशिष्ट को जलाना:
    • दिल्ली-एनसीआर में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हवा में धूल और प्रदूषण बढ़ने का एक अन्य प्रमुख कारण है। दिल्ली में कचरे के लैंडफिल साइटों में कचरे को जलाना भी वायु प्रदूषण को बढ़ता है।

उठाए गए प्रमुख कदम

  • टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder- यह ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है) खरीदने के लिये किसानों को सब्सिडी दी गई।
  • वाहनों से होने वाले प्रदूषण कम करने के लिये BS-VI वाहनों की शुरुआत करना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा, एक आपातकालीन उपाय के रूप में ऑड-ईवन का प्रयोग, पूर्वी एवं पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेस-वे का निर्माण आदि।
  • राजधानी में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिये ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (Graded Response Action Plan) का कार्यान्वयन। इसमें थर्मल पावर प्लांट बंद करने और निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपाय शामिल हैं।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) के तत्त्वावधान में सार्वजनिक सूचना के लिये राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (NAQI) का विकास। इस सूचकांक के अंतर्गत 8 वायु प्रदूषकों (PM2.5, PM10, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड) को शामिल किया गया है।

    आगे की राह

    • वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उचित राजनीतिक इच्छाशक्ति, लोगों में जागरूकता और अधिक-से-अधिक पारदर्शिता का होना एक प्रमुख शर्त है, अन्यथा सभी उपाय केवल कागज़ पर ही रह जाएंगे।
    • सक्रिय नागरिकों की तुलना में कोई बेहतर प्रहरी नहीं हो सकता है, इसलिये प्रदूषण के लक्ष्य को हर साल सार्वजनिक किया जाना चाहिये ताकि वर्ष के अंत में इसका मूल्यांकन किया जा सके।
    • स्वच्छ हवा में साँस लेना हर भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। इसलिये मानव स्वास्थ्य के लिये वायु प्रदूषण से निपटने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (DoNER) ने कहा कि कनेक्टिविटी, ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।

    प्रमुख बिंदु:

    • नवंबर 2014 में घोषित ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’,  ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’  का ही उन्नत रूप है।
    • यह विभिन्न स्तरों पर विशाल एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने हेतु एक राजनयिक पहल है।
    • इस पॉलिसी के तहत द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर कनेक्टिविटी, व्यापार, संस्कृति, रक्षा और लोगों-से-लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ गहन और निरंतर संपर्क को बढ़ावा दिया जाता है।

    लक्ष्य:

    • आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना तथा एक सक्रिय व व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाकर भारत-प्रशांत क्षेत्र में स्थित देशों के साथ रणनीतिक संबंध विकसित कर उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के आर्थिक विकास में सुधार करना जो कि दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार है।

    लुक ईस्ट पॉलिसी:

    • रणनीतिक साझेदार सोवियत संघ के विघटन (शीत युद्ध, 1991 के अंत में ) के प्रभाव से उबरने के लिये भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में अमेरिका के सहयोगी देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने का प्रयास किया।
    • इन प्रयासों में वर्ष 1992 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने लुक ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की ताकि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों को रणनीतिक रूप दिया जा सके और एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के रणनीतिक प्रभाव को प्रतिसंतुलित किया जा सके।

    India-Acts-East

    लुक ईस्ट पॉलिसी एवं एक्ट ईस्ट पॉलिसी में अंतर:

    • लुक ईस्ट पॉलिसी:
      • लुक ईस्ट पॉलिसी में ‘दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ’ (आसियान) तथा उनके आर्थिक एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया।
        • भारत वर्ष 1996 में आसियान का एक संवाद भागीदार और वर्ष 2002 में शिखर स्तरीय वार्ताओं का भागीदार बना।
        • वर्ष 2012 में यह संबंध रणनीतिक साझेदारी में बदल गया।
        • वर्ष 1992 में जब भारत ने लुक ईस्ट पॉलिसी शुरू की, उस समय आसियान के साथ भारत का व्यापार 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। वर्ष 2010 में आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद व्यापार बढ़कर 72 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2017-18) हो गया है।
        • भारत ‘पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन’ (EAS), ‘आसियान क्षेत्रीय मंच’ (ARF) आदि जैसे कई क्षेत्रीय मंचों में भी सक्रिय भागीदार है।
    • एक्ट ईस्ट पॉलिसी:
      • ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी आसियान देशों के आर्थिक एकीकरण तथा पूर्वी एशियाई देशों के साथ सुरक्षा सहयोग पर केंद्रित है।
        • भारत के प्रधानमंत्री ने ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’  के तहत 4C पर प्रकाश डाला है।
          • संस्कृति (Culture)
          • वाणिज्य (Commerce)
          • कनेक्टिविटी (Connectivity)
          • क्षमता निर्माण (Capacity Building)
      • सुरक्षा भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है।
        • दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में बढ़ते चीनी हस्तक्षेप के संदर्भ में भारत द्वारा नौपरिवहन की स्वतंत्रता हासिल करना और हिंद महासागर में अपनी भूमिका स्पष्ट करना ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी की एक प्रमुख विशेषता है।
        • भारत ‘क्वाड’ नामक भारत-प्रशांत क्षेत्र आधारित अनौपचारिक समूह के माध्यम से भी ऐसे प्रयास कर रहा है।

    कनेक्टिविटी बढ़ाने की पहल:

    • भारत और बांग्लादेश के बीच अगरतला-अखौरा रेल लिंक
    • इंटर-मॉडल परिवहन संपर्क और बांग्लादेश के माध्यम से अंतर्देशीय जलमार्ग।
    • कलादान मल्टीमॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट परियोजना एवं म्याँमार और थाईलैंड के साथ नॉर्थ ईस्ट को जोड़ने वाली त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना।
    • ‘भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम’ के तहत विभिन्न सड़क एवं पुल परियोजनाओं तथा हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट के आधुनिकीकरण का काम किया गया है।
      • ‘भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम’ वर्ष 2017 में स्थापित किया गया था जिसका उद्देश्य भारत की "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" और जापान की "फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक रणनीति" के तहत भारत-जापान सहयोग हेतु एक मंच प्रदान करना है।
      • यह फोरम भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र के आर्थिक आधुनिकीकरण के लिये विशिष्ट परियोजनाओं की पहचान करेगा, जिनमें कनेक्टिविटी, विकास संबंधी बुनियादी ढाँचे, औद्योगिक संपर्क और पर्यटन, संस्कृति एवं खेल संबंधी गतिविधियों के माध्यम से लोगों के बीच संपर्क जैसे कारक शामिल हैं।

    अन्य पहलें:

    • महामारी के दौरान आसियान देशों को दवा/चिकित्सा आपूर्ति के रूप में विस्तारित सहायता।
    • आसियान देशों के प्रतिभागियों के लिये IIT में 1000 पीएचडी फेलोशिप की पेशकश के साथ छात्रवृत्ति प्रदान की गई है।  
    • भारत शिक्षा, जल संसाधन, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में ज़मीनी स्तर के समुदायों के  विकास में सहायता प्रदान करने के लिये कंबोडिया, लाओस, म्याँमार और वियतनाम में त्वरित प्रभाव परियोजनाओं को लागू कर रहा है।
      • ‘क्विक इम्पैक्ट प्रोजेक्ट्स' (QIPs) कम लागत वाली छोटे पैमाने की परियोजनाएँ हैं, जिन्हें कम समय-सीमा के भीतर योजनाबद्ध और कार्यान्वित किया जाता है।

    स्रोत-पीआईबी


    उड़ान 4.1

    चर्चा में क्यों?

    ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ (भारत@75) की शुरुआत के अवसर पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने उड़ान 4.1 योजना के तहत लगभग 392 मार्गों को प्रस्तावित किया है।

    प्रमुख बिंदु

    उड़ान 4.1

    • उड़ान 4.1 मुख्यतः छोटे हवाई अड्डों, विशेष तौर पर हेलीकॉप्टर और सी-प्लेन मार्गों को जोड़ने पर केंद्रित है।
    • सागरमाला विमान सेवा के तहत कुछ नए मार्ग प्रस्तावित किये गए हैं।
      • सागरमाला सी-प्लेन सेवा संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे अक्तूबर 2020 में शुरू किया गया था।

    उड़ान योजना

    • ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (उड़ान) योजना को वर्ष 2016 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना के रूप में लॉन्च किया गया था।
    • उड़ान योजना देश में क्षेत्रीय विमानन बाज़ार विकसित करने की दिशा में एक नवोन्मेषी कदम है।
    • इस योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय मार्गों पर किफायती तथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक उड़ानों की शुरुआत करना है, ताकि छोटे शहरों में भी आम आदमी के लिये सस्ती उड़ानें शुरू की जा सकें।
    • यह योजना मौजूदा हवाई-पट्टी और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के गैर-सेवारत और कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना करती है। यह योजना 10 वर्षों की अवधि के लिये संचालित की जाएगी।
      • कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डे वे हैं, जहाँ एक दिन में एक से अधिक उड़ान नहीं भरी जाती, जबकि गैर-सेवारत हवाई अड्डे वे हैं जहाँ से कोई भी उड़ान नहीं भारी जाती है।
    • चयनित एयरलाइन्स को केंद्र, राज्य सरकारों और हवाई अड्डा संचालकों द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है, ताकि वे गैर-सेवारत और कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों पर सस्ती उड़ानें उपलब्ध करा सकें।
    • अब तक उड़ान योजना के तहत 5 हेलीपोर्ट्स और 2 वाटर एयरोड्रोम सहित 325 मार्गों एवं 56 हवाई अड्डों का परिचालन सुनिश्चित किया गया है।

    उड़ान 1.0

    • इस चरण के तहत 5 एयरलाइन कंपनियों को 70 हवाई अड्डों (36 नए बनाए गए परिचालन हवाई अड्डों सहित) के लिये 128 उड़ान मार्ग प्रदान किये गए।

    उड़ान 2.0

    • वर्ष 2018 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 73 ऐसे हवाई अड्डों की घोषणा की, जहाँ कोई सेवा नहीं प्रदान की गई थी या उनके द्वारा की गई सेवा बहुत कम थी।
    • उड़ान योजना के दूसरे चरण के तहत पहली बार हेलीपैड भी योजना से जोड़े गए थे।

    उड़ान 3.0

    • पर्यटन मंत्रालय के समन्वय से उड़ान 3.0 के तहत पर्यटन मार्गों का समावेश।
    • जलीय हवाई-अड्डे को जोड़ने के लिये जल विमान का समावेश।
    • उड़ान के दायरे में पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई मार्गों को लाना।

    उड़ान 4.0

    • वर्ष 2020 में देश के दूरस्थ क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (उड़ान) के चौथे संस्करण के तहत 78 नए मार्गों के लिये मंज़ूरी दी गई थी।
    • लक्षद्वीप के मिनिकॉय, कवरत्ती और अगत्ती द्वीपों को उड़ान 4.0 के तहत नए मार्गों से जोड़ने की योजना बनाई गई है।

    स्रोत: पी.आई.बी.


    भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका (IBSA) महिला फोरम की बैठक

    चर्च में क्यों?

    हाल ही में छठे भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका (India-Brazil-South Africa- IBSA) महिला फोरम की बैठक का आयोजन किया गया।

    • वर्तमान में भारत IBSA संवाद मंच का अध्यक्ष है।

    प्रमुख बिंदु

    बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

    • वर्ष 2020 को निम्नलिखित के संदर्भ में याद किया गया:
      • बीजिंग घोषणा और प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (BDFA) की 25वीं वर्षगाँठ: बीजिंग में आयोजित वर्ष 1995 का चतुर्थ संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र की अब तक की सबसे बड़ी सभाओं में से एक था तथा विश्व में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
      • सतत् विकास 2030 एजेंडा को अपनाने की 5वीं वर्षगाँठ: सतत् विकास लक्ष्य 5 का उद्देश्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव तथा हिंसा को खत्म करना है।
      • महिलाओं, शांति और सुरक्षा पर UNSC संकल्प 1325 की 20वीं वर्षगाँठ।
      • UN WOMEN की स्थापना का एक दशक: UN WOMEN जो लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये समर्पित संयुक्त राष्ट्र (United Nation) का एक संगठन है, ने वर्ष 2020 में अपनी स्थापना के 10 वर्ष पूरे किये।
    • दूसरे देशों को कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने के लिये टीके, मास्क, सैनिटाइज़र, पीपीई किट आदि देने के लिये भारत सरकार के प्रयासों की सराहना की गई।

    महिला सशक्तीकरण के लिये भारत का प्रयास:

    • भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 16 के अंतर्गत पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार मिले हैं।
    • भारत ने वर्ष 1980 में संयुक्त राष्ट्र की महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन के लिये कन्वेंशन (The Convention on the Elimination of all Forms of Discrimination Against Women -CEDAW) पर हस्ताक्षर किये और वर्ष 1993 में कुछ आरक्षणों के साथ इसकी पुष्टि की।
    • दहेज़ और घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के लिये ऐसी घटनाओं को दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के माध्यम से आपराधिक घोषित किया गया है।
    • सरकार ने वर्ष 2017 में निजी क्षेत्र में मातृत्व लाभ अधिनियम के अंतर्गत  मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया है।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 सभी महिलाओं को सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों में कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से बचाता है।
    • सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2020 में महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन देने का निर्णय दिया।
    • महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने का प्रयास, इससे भारतीय राजनीति में सभी स्तरों पर महिलाओं को 33% सीटों का आरक्षण मिल जाएगा।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की महिलाओं को गैस कनेक्शन प्रदान करने की योजना) आदि लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली सरकार की फ्लैगशिप योजनाएँ हैं।
      • भारत ने जहाँ मानव विकास हेतु कुछ उपाय किये हैं, वहीं लैंगिक समानता को लेकर तुलनात्मक रूप से कम प्रयास किये गए हैं। विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा जारी वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (Global Gender Gap Report) में भारत की रैंकिंग वर्ष 2018 में 108वें स्थान से घटकर वर्ष 2020 में 112वें स्थान पर आ गई।

    भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका संवाद मंच

    • IBSA के विषय में: IBSA संवाद मंच भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक त्रिपक्षीय समूह है।

    India-Brazil

    • गठन: इन तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की 6 जून, 2003 को ब्रासीलिया में हुई बैठक में इस समूह को औपचारिक रूप दिया गया तथा इसका नाम IBSA वार्ता मंच (IBSA Dialogue Forum) रखा गया और ब्रासीलिया घोषणा (Brasilia Declaration) की गई।
    • मुख्यालय: IBSA का मुख्यालय या स्थायी कार्यकारी सचिवालय नहीं है। इसे राज्य और सरकार के प्रमुखों के शिखर सम्मेलन के रूप में जाना जाता है।
      • अब तक पाँच IBSA लीडरशिप समिट आयोजित किये जा चुके हैं। 5वाँ IBSA शिखर सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2011 में प्रिटोरिया (दक्षिण अफ्रीका) में किया गया था। छठे IBSA शिखर सम्मेलन की मेज़बानी भारत द्वारा की जाएगी।
    • IBSA का एक नवाचारी कार्य गरीबी एवं भुखमरी के उन्मूलन के लिये वर्ष 2004 में IBSA सुविधा निधि की स्थापना करना है, जिसके माध्यम से सहयोगी विकासशील देशों में विकास परियोजनाओं को निष्पादित किया जाता है।
      • अब तक IBSA ने 20 भागीदार विकासशील देशों में SDG (पहले MDG) की उपलब्धि में योगदान देने के उद्देश्य से सुरक्षित पेयजल, कृषि और पशुधन, सौर ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में 31 परियोजनाओं का समर्थन किया है।
      • IBSA सुविधा निधि को वर्ष 2010 में न्यूयॉर्क में दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये एमडीजी पुरस्कार दिया गया जो विश्‍व के दूसरे भागों में विकास से जुड़े अनुभवों को साझा करने हेतु नवाचारी दृष्टिकोण का प्रयोग करने में IBSA  के कार्यों को स्वीकृति प्रदान करता है।
    • IBSAMAR नामक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास त्रिपक्षीय रक्षा सहयोग IBSA का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। IBSAMAR के अब तक छह संस्करण आयोजित किये जा चुके हैं, जिनमें से नवीनतम संस्करण का आयोजन अक्तूबर 2018 में दक्षिण अफ्रीका के तट के निकट किया गया था।

    स्रोत: पी.आई.बी.