भारतीय अर्थव्यवस्था
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कार्य के बिना दुनिया
प्रिलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जॉन मेनार्ड कींस, कार्ल मार्क्स, AI के अनुप्रयोग। मेन्स के लिये:मानव श्रम की जगह लेने वाले AI के पक्ष और विपक्ष में तर्क, विभिन्न क्षेत्रों में AI के संभावित प्रभाव। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर हाल ही में संपन्न बैलेचले पार्क शिखर सम्मेलन में एलोन मस्क ने एक ऐसे भविष्य की कल्पना की जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता सभी मानव श्रम- शारीरिक और संज्ञानात्मक दोनों का स्थान ले लेगी और परिणामस्वरूप व्यक्तियों को नौकरी की तत्काल कोई आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि वे केवल व्यक्तिगत पूर्ति के लिये काम की तलाश करेंगे।
कार्य पर प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?
- जॉन मेनार्ड कींस: उन्होंने काम को कठिन परिश्रम के रूप में देखते हुए पूंजीवाद के तहत काम के घंटों को कम करने की वकालत की।
- उन्होंने अनुमान लगाया कि प्रौद्योगिकी में विकास के साथ काम के घंटे कम होने से कल्याण में वृद्धि होगी।
- कार्ल मार्क्स: उन्होंने काम को मानवता के सार के रूप में देखा, जो प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की अनुमति देकर अर्थ प्रदान करता है, मानवता का सार है।
- मार्क्स ने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जहाँ AI मानव कार्य को प्रतिस्थापित करने के बजाय उसे बढ़ाता है, बाहरी विनियोग के बिना आत्म-आनंद को सक्षम बनाता है।
मानव श्रम की जगह AI के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?
- मानव श्रम की जगह AI के पक्ष में तर्क:
- दक्षता और लागत में कमी: AI दोहराए जाने वाले कार्यों को करने में अद्वितीय दक्षता प्रदान करता है, श्रम-गहन प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करके व्यवसायों के लिये परिचालन लागत को कम करता है।
- बेहतर सटीकता और स्थिरता: AI सिस्टम मनुष्यों की तुलना में उच्च स्तर की सटीकता और स्थिरता के साथ कार्यों को निष्पादित कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ सटीक गणना या डेटा विश्लेषण की आवश्यकता होती है।
- 24/7 उपलब्धता और गति: AI बिना रुके कार्य करता है, जिससे बिना थकान के लगातार कार्य करना संभव होता है, जिससे तीव्र परिणाम और सेवा वितरण संभव होता है।
- खतरनाक वातावरण में सुरक्षा: मनुष्यों के लिये खतरनाक वातावरण, जैसे- गहरे समुद्र में अन्वेषण, अंतरिक्ष मिशन या खतरनाक विनिर्माण, AI-संचालित स्वचालन सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित करता है।
- मानव श्रम की जगह AI के विरुद्ध तर्क:
- जटिल निर्णय लेने और रचनात्मकता: AI सूक्ष्म निर्णय लेने, पूर्ण रचनात्मकता और अंतर्ज्ञान के साथ संघर्ष करता है, ऐसे डोमेन जहाँ मानव अनुभूति तथा भावनात्मक बुद्धिमत्ता उत्कृष्ट है।
- नैतिक निर्णय लेना: AI में नैतिक निर्णय और नैतिक तर्क का अभाव है, जो इसे नैतिक दुविधाओं या व्यक्तिपरक निर्णय से जुड़ी भूमिकाओं के लिये अनुपयुक्त बनाता है।
- मानवीय संपर्क और सहानुभूति: मानवीय संपर्क, समानुभूति और देखभाल या परामर्श जैसी भावनात्मक जुड़ाव की आवश्यकता वाली नौकरियाँ AI के लिये प्रामाणिक रूप से दोहराने हेतु चुनौतीपूर्ण हैं।
- विनियामक और विश्वास संबंधी चिंताएँ: AI की विश्वसनीयता, पूर्वाग्रह और जवाबदेही के विषय में चिंताएँ विनियामक एवं विश्वास संबंधी मुद्दों को बढ़ाती हैं, जिससे इसे व्यापक रूप से अपनाने तथा स्वीकार्यता पर असर पड़ता है।
विभिन्न डोमेन में AI के संभावित प्रभाव क्या हैं?
- सकारात्मक प्रभाव:
- दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि: यह AI प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करता है, कार्यों को स्वचालित करता है और दक्षता बढ़ाता है, जिससे उद्योगों में उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- संसाधन आवंटन को अनुकूलित करता है, अपव्यय और परिचालन लागत को कम करता है।
- नवाचार और नए रोज़गार सृजन: AI नवाचार को बढ़ावा देता है, जिससे नए उद्योगों, उत्पादों और सेवाओं का निर्माण होता है।
- उभरती तकनीकी ज़रूरतों को पूरा करते हुए AI विकास, प्रोग्रामिंग, डेटा विश्लेषण और रख-रखाव के क्षेत्र में नौकरियाँ पैदा करता है।
- बेहतर निर्णय लेने की क्षमता: AI की डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि व्यवसायों और नीति निर्माताओं के लिये बेहतर निर्णय लेने में सक्षम बनाती है।
- यह रुझानों के पूर्वानुमान में सटीकता और गति को बढ़ाता है, वृद्धि एवं विकास के लिये रणनीतियों को अनुकूलित करता है।
- उन्नत ग्राहक अनुभव: AI द्वारा संचालित वैयक्तिकृत अनुभव ग्राहकों की संतुष्टि और जुड़ाव में सुधार करते हैं।
- चैटबॉट, अनुशंसा प्रणाली और AI-संचालित ग्राहक सेवा उपयोगकर्त्ता अनुभव को बेहतर बनाती है।
- स्वास्थ्य देखभाल और अनुसंधान में प्रगति: AI चिकित्सा निदान, दवा खोज और उपचार निजीकरण में सहायता करता है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल परिणामों में सुधार होता है।
- विशाल डेटासेट का विश्लेषण और पैटर्न की पहचान करके वैज्ञानिक अनुसंधान को गति देता है।
- दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि: यह AI प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करता है, कार्यों को स्वचालित करता है और दक्षता बढ़ाता है, जिससे उद्योगों में उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- गोपनीयता और नैतिक चिंताएँ: डेटा पर AI की निर्भरता गोपनीयता के उल्लंघन और डेटा के दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ाती हैं।
- AI निर्णय लेने में नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं, खासकर चेहरे की पहचान और एल्गोरिथम पूर्वाग्रह जैसे क्षेत्रों में।
- आर्थिक असमानता: AI के लाभ समान रूप से वितरित नहीं हो सकते हैं, जिससे कुशल और अकुशल श्रमिकों के बीच अंतर बढ़ जाएगा।
- कुछ उद्योगों या भौगोलिक क्षेत्रों में AI लाभों का संकेंद्रण आर्थिक असमानताओं को बढ़ा सकता है।
- निर्भरता और भेद्यता: पर्याप्त मानवीय निरीक्षण के बिना AI सिस्टम पर अत्यधिक निर्भरता सिस्टम की त्रुटियों या साइबर खतरों जैसी कमज़ोरियों को जन्म दे सकती है।
- AI सिस्टम पर समझ या नियंत्रण की कमी समाज को तकनीकी विफलताओं के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है।
- सामाजिक प्रभाव और रोज़गार की गुणवत्ता: AI द्वारा सृजित रोज़गार में पारंपरिक भूमिकाओं के समान गुणवत्ता, स्थिरता या पूर्ति की कमी हो सकती है, जिससे व्यक्तियों की संतुष्टि और उद्देश्य की भावना प्रभावित हो सकती है।
- कार्य पैटर्न और कार्य प्रकृति में परिवर्तन मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण को प्रभावित कर सकता है।
- रोज़गार विस्थापन और कौशल अंतर: स्वचालन और AI कुछ रोज़गार भूमिकाओं की जगह ले सकते हैं। प्रासंगिक कौशल की कमी के कारण विस्थापित श्रमिकों को नई भूमिकाओं में परिवर्तन के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है।
- गोपनीयता और नैतिक चिंताएँ: डेटा पर AI की निर्भरता गोपनीयता के उल्लंघन और डेटा के दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ाती हैं।
निष्कर्ष:
AI की क्षमताओं का लाभ उठाने तथा मानव श्रम के मूल्य को संरक्षित करने के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है जो एक ऐसे भविष्य को आकार देने के लिये महत्त्वपूर्ण है जो सामाजिक कल्याण एवं सार्थक मानव योगदान सुनिश्चित करते हुए प्रौद्योगिकी का अनुकूलन करता है। निरंतर सीखने तथा अनुकूलनीय कौशल में निवेश करने से व्यक्तियों को AI की प्रगति के साथ आगे बढ़ने के लिये सशक्त बनाया जा सकता है, साथ ही एक संतुलित भविष्य को बढ़ावा दिया जा सकता है जहाँ मानव विशेषज्ञता एवं तकनीकी नवाचार एक-दूसरे के पूरक हों।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
टैक्स हेवेन के रूप में साइप्रस
प्रिलिम्स के लिये:टैक्स हेवन, दोहरा कराधान बचाव समझौता, साइप्रस के साथ भारत की कर संधि, कर चोरी मेन्स के लिये:साइप्रस को टैक्स हेवन के रूप में इस्तेमाल किये जाने को लेकर चिंताएँ और निहितार्थ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल की साइप्रस गोपनीय जाँच से साइप्रस में अपतटीय संस्थाओं और भारत में धनी व्यक्तियों से उनके संबंध से जुड़ी वित्तीय गतिविधियों का एक जटिल वेब सामने आया है।
- अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ (International Consortium of Investigative Journalists- ICIJ) के सहयोग से की गई यह वैश्विक अपतटीय जाँच, विश्व भर के अमीर और शक्तिशाली लोगों द्वारा टैक्स हेवेन के रूप में साइप्रस के उपयोग को उजागर करती है।
नोट:
- टैक्स हेवेन आमतौर पर एक अपतटीय देश होता है जहाँ राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर परिस्थिति में विदेशी व्यक्तियों तथा व्यवसायों को बहुत कम या कोई कर देय नहीं होता है।
- एक अपतटीय कंपनी अपने गृह देश के अलावा किसी अन्य क्षेत्राधिकार में निगमित होती है।
- एक अपतटीय कंपनी स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य किसी बाहरी देश में अनुकूल कर कानूनों या आर्थिक माहौल का लाभ उठाना है।
टैक्स हेवन के रूप में साइप्रस क्या कर लाभ प्रदान करता है?
- कॉर्पोरेट कराधान:
- साइप्रस से प्रबंधित और नियंत्रित अपतटीय कंपनियों और अपतटीय शाखाओं पर 4.25% कर लगता है।
- विदेश से प्रबंधित अपतटीय शाखाएँ और अपतटीय साझेदारियाँ कर से पूर्ण छूट का लाभ लेती हैं।
- विदहोल्डिंग कर और लाभांश:
- साइप्रस लाभांश पर कोई विदहोल्डिंग टैक्स नहीं लगाता है।
- अपतटीय संस्थाओं या शाखाओं के लाभकारी मालिक लाभांश या मुनाफे पर अतिरिक्त कर के लिये उत्तरदायी नहीं हैं।
- पूंजीगत लाभ और संपदा शुल्क:
- किसी अपतटीय इकाई में शेयरों की बिक्री या हस्तांतरण पर कोई पूंजीगत लाभ कर देय नहीं है।
- एक अपतटीय कंपनी में शेयरों की विरासत संपत्ति शुल्क से मुक्त है।
- आयात शुल्क में छूट:
- विदेशी कर्मचारियों के लिये कार, कार्यालय या घरेलू उपकरण की खरीद पर कोई आयात शुल्क नहीं।
- गुमनामी और गोपनीयता:
- साइप्रस अपतटीय संस्थाओं के लाभकारी मालिकों की गुमनामी सुनिश्चित करता है।
- गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए साइप्रस में अपतटीय ट्रस्टों को किसी भी सरकार या प्राधिकरण के साथ पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है।
- अपतटीय ट्रस्ट:
- ऑफशोर ट्रस्ट ऐसे ट्रस्ट हैं जिनकी संपत्ति और आय साइप्रस के बाहर है तथा यहाँ तक कि सेटलर एवं लाभार्थी भी साइप्रस के स्थायी निवासी नहीं हैं।
- यदि ट्रस्टी साइप्रस है तो साइप्रस में अपतटीय ट्रस्टों को संपत्ति शुल्क से छूट दी गई है।
- अपतटीय ट्रस्टों द्वारा उत्पन्न आय और लाभ पर कोई कर नहीं।
- ट्रस्ट को किसी भी सरकार या अन्य प्राधिकरण के साथ पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है और यह गोपनीयता नए कानून में निहित है।
- ऑफशोर ट्रस्ट ऐसे ट्रस्ट हैं जिनकी संपत्ति और आय साइप्रस के बाहर है तथा यहाँ तक कि सेटलर एवं लाभार्थी भी साइप्रस के स्थायी निवासी नहीं हैं।
साइप्रस के साथ भारत की कर संधि क्या है?
- वर्ष 2013 से पहले:
- पूंजीगत लाभ कर से छूट:
- भारत और साइप्रस के बीच एक कर संधि थी जो निवेशकों को बाहर निकलने पर पूंजीगत लाभ कर से छूट देती थी।
- दोनों देशों में पूंजीगत लाभ पर शून्य कराधान ने साइप्रस को भारत में इक्विटी निवेश के लिये एक पसंदीदा स्थान बना दिया है।
- साइप्रस ने 4.5% के कम विदहोल्डिंग टैक्स की पेशकश की, जिससे व्यक्तियों और व्यवसायों के लिये इसका आकर्षण बढ़ गया।
- विदहोल्डिंग टैक्स गैर-निवासियों द्वारा कर अनुपालन सुनिश्चित करने के एक साधन के रूप में कार्य करता है, जो अनिवासी व्यक्तियों को किये गए भुगतान पर लागू होता है।
- आयकर अधिनियम, 1961 या दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (Double Taxation Avoidance Agreement- DTAA), जो भी कम हो, द्वारा परिभाषित दरों पर सरकार के पास जमा किये गए कर में कटौती के लिये भुगतानकर्त्ता ज़िम्मेदार थे।
- भारत और साइप्रस के बीच एक कर संधि थी जो निवेशकों को बाहर निकलने पर पूंजीगत लाभ कर से छूट देती थी।
- पूंजीगत लाभ कर से छूट:
नोट:
- DTAA दो या दो से अधिक देशों के बीच हस्ताक्षरित एक कर संधि है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि इन देशों में करदाता एक ही आय पर दो बार कर लगाने से बच सकें।
- DTAA उन मामलों में लागू होता है जहाँ करदाता एक देश में रहता है और दूसरे देश में आय अर्जित करता है।
- DTAA या तो आय के सभी स्रोतों को कवर करने के लिये व्यापक हो सकते हैं या कुछ क्षेत्रों तक सीमित हो सकते हैं जैसे- शिपिंग, हवाई परिवहन, विरासत आदि से आय पर कर लगाना।
- वर्ष 2013 से:
- भारत ने आयकर अधिनियम की धारा 94A के तहत 1 नवंबर, 2013 को साइप्रस को अधिसूचित क्षेत्राधिकार (NJA) के रूप में नामित किया।
- NJA स्थिति के परिणामस्वरूप साइप्रस में संस्थाओं को भुगतान के लिये उच्च विदहोल्डिंग कर दर (30%) जैसे परिणाम देखे गए।
- NJA में संस्थाओं के साथ लेन-देन भारतीय हस्तांतरण मूल्य निर्धारण नियमों के अधीन हो गया।
- स्थानांतरण मूल्य निर्धारण एक उद्यम के अंदर नियंत्रित (या संबंधित) कानूनी संस्थाओं (विभिन्न देशों में स्थित हो सकता है) के बीच बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के लिये मूल्य निर्धारण है।
- भारत ने आयकर अधिनियम की धारा 94A के तहत 1 नवंबर, 2013 को साइप्रस को अधिसूचित क्षेत्राधिकार (NJA) के रूप में नामित किया।
- वर्ष 2016 से:
- वर्ष 2016 में साइप्रस के साथ एक संशोधित DTAA पर हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें वर्ष 2013 से पूर्वव्यापी प्रभाव से NJA स्थिति को रद्द करना स्पष्ट किया गया था।
- शेयरों के हस्तांतरण से पूंजीगत लाभ के स्रोत-आधारित कराधान के लिये नया DTAA पेश किया गया।
- अलगाव का तात्पर्य मालिक द्वारा संपत्ति की स्वैच्छिक बिक्री/स्थानांतरण या त्याग से है।
- 1 अप्रैल, 2017 से पहले किये गए निवेश को ग्रैंडफादरिंग क्लॉज़ द्वारा संरक्षित किया गया है, जिससे करदाता के निवास के देश में पूंजीगत लाभ पर कराधान की अनुमति मिलती है।
- विश्लेषण और निहितार्थ:
- चरणबद्ध विकास साइप्रस के साथ भारत की कर व्यवस्था की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है।
- स्रोत-आधारित कराधान की दिशा में कदम कर चोरी को रोकने और उचित राजस्व वितरण सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
- वैश्विक स्तर पर कर-संबंधित मामलों पर बढ़ती जाँच, जैसा कि विदेशी जाँच से पता चला है, ने कर संधियों के प्रति भारत के दृष्टिकोण को प्रभावित किया है।
- ग्रैंडफादरिंग क्लॉज़ का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तनों से पहले किये गए निवेशों के लिये निरंतरता और स्थिरता प्रदान करना था।
- चरणबद्ध विकास साइप्रस के साथ भारत की कर व्यवस्था की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है।
- साइप्रस में भारतीय कंपनियों की वैधता:
- साइप्रस में एक अपतटीय कंपनी स्थापित करना अवैध नहीं है।
- भारत का साइप्रस सहित कई देशों के साथ DTAA है, जो कम कर दरों की पेशकश करते हैं।
- कंपनियाँ ऐसे देशों में कानूनी रूप से उपलब्ध कर लाभों का आनंद लेने के लिये अपने कर निवास प्रमाणपत्र का उपयोग करती हैं।
- इन न्यायक्षेत्रों की विशेषता सामान्यतः कमज़ोर नियामक निगरानी और सख्त गोपनीयता कानून हैं।
निवेशक साइप्रस को टैक्स हेवेन के रूप में कैसे उपयोग करते हैं?
- साइप्रस में शेल कंपनियों के कई नेटवर्कों के माध्यम से धनराशि को प्रसारित करके मनी लॉन्ड्रिंग की सुविधा प्रदान की जाती है।
- शेल कंपनी एक ऐसी फर्म है जो अर्थव्यवस्था में कोई संचालन नहीं करती है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था में औपचारिक रूप से पंजीकृत, निगमित या कानूनी रूप से संगठित होती है।
- साइप्रस में उच्च स्तर की बैंकिंग गोपनीयता है और यह अन्य देशों के साथ वित्तीय खातों की जानकारी का स्वचालित रूप से आदान-प्रदान नहीं करता है।
- यह निवेशकों को अधिकारियों और लेनदारों से संपत्ति एवं आय छिपाने में सहायता करता है।
- इसके अलावा निवेशक रणनीतिक दान और लॉबिंग प्रथाओं के माध्यम से राजनीति तथा नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं।
भारत टैक्स हेवन के रूप में साइप्रस के उपयोग पर कैसे अंकुश लगा सकता है?
- अनुपालन तंत्र को सशक्त करना: भारत द्वारा प्रवर्तन एवं अनुपालन तंत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कर अधिकारियों के पास कर चोरी और परिवर्जन के मामलों का पता लगाने, जाँच करने एवं मुकदमा चलाने के लिये पर्याप्त संसाधन एवं शक्तियाँ मौजूद हैं। इस माध्यम से साइप्रस को टैक्स हेवन के रूप में उपयोग करने की स्थिति का मुकाबला किया जा सकता है।
- उत्तरदायित्व के उपाय: भारत को अपतटीय संस्थाओं की पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ानी चाहिये जिससे उनके हिताधिकारी स्वामियों, निदेशकों एवं वित्तीय गतिविधियों का खुलासा हो सके।
- भारत साइप्रस संस्थाओं अथवा व्यक्तियों को किये गए भुगतान पर विदहोल्डिंग टैक्स एवं परिवर्जन-विरोधी उपाय का इस्तेमाल भी कर सकता है।
- सशक्त विधान: भारत मज़बूत कानून बनाकर तथा लागू करके कर संधियों के दुरुपयोग का समाधान कर सकता है। इसमें इन कानूनों के दायरे तथा कवरेज का विस्तार करना एवं उनके प्रभावी कार्यान्वयन व निगरानी को सुनिश्चित करना शामिल है।
- नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देना: करदाताओं के नैतिक तथा ज़िम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देना तथा प्रोत्साहन देना चाहिये तथा उन्हें करों का उचित हिस्सा चुकाने एवं राष्ट्रीय विकास में योगदान देने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
साइप्रस से संबंधित मुख्य तथ्य:
- साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीपीय देश है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 9,251 वर्ग किलोमीटर है।
- लगभग 1.2 मिलियन लोगों की आबादी के साथ यह भूमध्य सागर में तीसरा सबसे बड़ा एवं तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला द्वीप है।
- राजधानी: इसकी राजधानी निकोसिया है।
- साइप्रस 2004 से यूरोपीय संघ का सदस्य रहा है।
- साइप्रस में अनुकूल भूमध्यसागरीय जलवायु है, जिसमें ऊष्म ग्रीष्मकाल एवं हल्की सर्दियाँ होती हैं।
- साइप्रस भौतिक रूप से विभाजित है, इसका दक्षिणी भाग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार द्वारा शासित है और उत्तरी भाग तुर्की द्वारा नियंत्रित है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
नाटो ने CFE संधि निलंबित की
प्रिलिम्स के लिये:यूरोप में पारंपरिक सशस्त्र बलों पर संधि, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO), शीत युद्ध, वारसा संधि, द्वितीय विश्व युद्ध, उत्तरी अटलांटिक संधि। मेन्स के लिये:यूरोप में पारंपरिक सशस्त्र बलों पर संधि, विश्व युद्ध, द्विपक्षीय, भारत को शामिल और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह तथा समझौते। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) ने रूस के समझौते से बाहर निकलने के जवाब में यूरोप में पारंपरिक सशस्त्र बलों पर संधि (CFE) के औपचारिक निलंबन की घोषणा की है, जो एक प्रमुख शीत युद्ध-युग सुरक्षा संधि है।
CFE से रूस के हटने की पृष्ठभूमि क्या है?
- CFE संधि के विषय में:
- CFE संधि, वर्ष 1990 में हस्ताक्षरित और वर्ष 1992 में पूरी तरह से अनुसमर्थित, का उद्देश्य शीत युद्ध के दौरान आपसी सीमाओं के पास NATO और वारसा संधि में शामिल देशों द्वारा पारंपरिक सशस्त्र बलों के जमाव को रोकना था।
- इसने यूरोप में पारंपरिक सैन्य बलों की तैनाती पर सीमाएँ लगा दीं और क्षेत्र में तनाव तथा हथियारों के निर्माण को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- यह संधि रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े शीत युद्ध-युग के कई समझौतों में से एक थी।
- संधि से रूस का अलग होना:
- वर्ष 2007 में रूस ने CFE संधि में अपनी भागीदारी को निलंबित कर दिया था और वर्ष 2015 में औपचारिक रूप से इससे अलग होने के आशय की घोषणा की थी।
- मई 2023 में रूसी राष्ट्रपति द्वारा संधि की निंदा करने वाले एक विधेयक पर हस्ताक्षर करने के बाद वापसी को अंतिम रूप देने का हालिया कदम आया।
- रूस ने संधि पर उनकी "विनाशकारी स्थिति" का हवाला देते हुए, वापसी के लिये अमेरिका और उसके सहयोगियों को दोषी ठहराया है।
- यूक्रेन संघर्ष का प्रभाव:
- फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण, जिसके कारण यूक्रेन में महत्त्वपूर्ण सैन्य उपस्थिति देखी गई, ने संधि से हटने के उसके निर्णय को प्रभावित किया।
- इस संघर्ष का सीधा प्रभाव NATO के उन सदस्य देशों पर पड़ता है जिनकी सीमा यूक्रेन के साथ लगती है, जैसे पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया और हंगरी।
रूस की चिंताएँ और NATO की स्थिति क्या है?
- रूस का दावा है कि CFE अब उसके हितों की पूर्ति नहीं करती है क्योंकि इस पर हस्ताक्षर अन्य उन्नत हथियारों के लिये नहीं बल्कि पारंपरिक हथियारों और उपकरणों के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिये किये गए थे।
- रूस ने यूक्रेन में विकास और NATO के विस्तार का हवाला देते हुए कहा कि CFE संधि को बनाए रखना उसके मौलिक सुरक्षा हितों के दृष्टिकोण से अस्वीकार्य हो गया है।
- NATO सैन्य जोखिम को कम करने, गलत धारणाओं को रोकने और सुरक्षा बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
- CFE संधि का निलंबन रूस और NATO के बीच चल रहे तनाव को रेखांकित करता है, जिसका वैश्विक सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता, खासकर पूर्वी यूरोप में महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
शीत युद्ध क्या है?
- शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और उस पर आश्रित देशों (पूर्वी यूरोपीय देश) तथा संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों (पश्चिमी यूरोपीय देश) के बीच भू-राजनीतिक तनाव की अवधि (1945-1991) थी।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो महाशक्तियों- सोवियत संघ और अमेरिका के प्रभुत्व वाले दो शक्ति गुटों में विभाजित हो गया।
- यह पूंजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ दो महाशक्तियाँ के बीच वैचारिक युद्ध था
- "शीत" शब्द का प्रयोग इसलिये किया जाता है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच प्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर कोई लड़ाई नहीं हुई थी।
शीत-युद्ध काल की अन्य NATO और USSR संधियाँ क्या हैं?
- उत्तरी अटलांटिक संधि (1949):
- उत्तरी अटलांटिक संधि, जिसे वाशिंगटन संधि के नाम से भी जाना जाता है, ने 4 अप्रैल, 1949 को NATO की स्थापना की।
- यह अमेरिका, कनाडा और विभिन्न यूरोपीय देशों सहित पश्चिमी देशों द्वारा गठित एक सामूहिक रक्षा गठबंधन था।
- वारसा संधि (1955):
- वारसा संधि को औपचारिक रूप से मित्रता, सहयोग और पारस्परिक सहायता की संधि के रूप में जाना जाता है, इस पर 14 मई, 1955 को हस्ताक्षर किये गए थे।
- यह NATO को जवाब था और सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी ब्लॉक के देशों के बीच एक समान पारस्परिक रक्षा गठबंधन स्थापित किया गया था।
- वारसा संधि में सोवियत संघ, पूर्वी जर्मनी, पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया और रोमानिया सहित कई अन्य देश शामिल थे।
- बर्लिन पर चार शक्ति समझौते (1971):
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस और सोवियत संघ के बीच 3 सितंबर, 1971 को हस्ताक्षरित यह समझौता शीत युद्ध के दौरान बर्लिन की स्थिति को संबोधित करता था।
- इसका उद्देश्य विभाजित शहर में संबंधों को सुधारना और तनाव कम करना था।
- इंटरमीडिएट रेंज परमाणु बल (INF) संधि (1987):
- 8 दिसंबर, 1987 को अमेरिकी राष्ट्रपति और सोवियत महासचिव द्वारा इस पर हस्ताक्षर किये गए, INF संधि ने यूरोप से मध्यवर्ती दूरी की परमाणु मिसाइलों की एक पूरी श्रेणी को समाप्त कर दिया।
- यह संधि शीत युद्ध के तनाव और परमाणु हथियारों को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- सामरिक शस्त्र सीमा वार्ता (SALT) और START संधियाँ:
- SALT संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हस्ताक्षरित द्विपक्षीय सम्मेलनों और अंतर्राष्ट्रीय संधियों की एक शृंखला थी।
- इन संधियों का लक्ष्य लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों (रणनीतिक हथियार) जो प्रत्येक पक्ष के पास हो और निर्माण कर सके, की संख्या को कम करना था ।
- पहली संधि, जिसे SALT I के नाम से जाना जाता है, पर वर्ष 1972 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- SALT I पर हस्ताक्षर कर अमेरिका और USSR सीमित संख्या में बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ-साथ सीमित संख्या में मिसाइल तैनाती स्थलों पर सहमत हुए।
नोट: फरवरी 2023 में, रूस ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अंतिम शेष प्रमुख सैन्य समझौते, नई START संधि में अपनी भागीदारी को निलंबित करने की घोषणा की थी।
- रणनीतिक आक्रामक हथियारों की और कमी तथा सीमा के उपायों पर संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूसी संघ के बीच फरवरी, 2011 में नई START संधि लागू हुई।
- हेलसिंकी समझौता (1975):
- अगस्त 1975 में हेलसिंकी में हस्ताक्षरित अंतिम समझौता एक संधि नहीं थी, बल्कि नाटो सदस्यों और वारसॉ संधि में शामिल देशों सहित 35 देशों द्वारा सहमत सिद्धांतों की घोषणा थी।
- इसका उद्देश्य पूर्व और पश्चिम के बीच संबंधों में सुधार करना था और इसमें मानवाधिकारों तथा क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की प्रतिबद्धताएँ शामिल थीं।
नाटो (NATO) क्या है?
- परिचय:
- नाटो अथवा उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन, एक राजनीतिक तथा सैन्य गठबंधन है जिसमें 31 सदस्य देश शामिल हैं।
- इसका गठन वर्ष 1949 में संबद्ध सदस्यों के बीच आपसी रक्षा एवं सामूहिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
- सदस्य देश:
- वर्ष 1949 में इस गठबंधन के 12 संस्थापक सदस्य थे: बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्राँस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका।
- वर्तमान में 19 और देश गठबंधन में शामिल हो गए हैं: ग्रीस तथा तुर्की (1952); जर्मनी (1955); स्पेन (1982); चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (1999); बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया (2004); अल्बानिया तथा क्रोएशिया (2009); मोंटेनेग्रो (2017); उत्तर मैसेडोनिया (2020); फिनलैंड (2023)।
- मुख्यालय: ब्रुसेल्स, बेल्जियम:
- मित्र देशों की कमान संचालन मुख्यालय: मॉन्स, बेल्जियम।
- विशेष प्रावधान:
- अनुच्छेद 5: नाटो संधि का अनुच्छेद 5 एक प्रमुख प्रावधान है जिसके अनुसार एक सदस्य देश पर हमला सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा।
- यह प्रावधान संयुक्त राज्य अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद केवल एक बार लागू किया गया है।
- हालाँकि नाटो की सुरक्षा दायरे में सदस्य दशों के गृह युद्धों अथवा आंतरिक तख्तापलट को शामिल नहीं किया गया है।
- अनुच्छेद 5: नाटो संधि का अनुच्छेद 5 एक प्रमुख प्रावधान है जिसके अनुसार एक सदस्य देश पर हमला सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा।
- नाटो के सहयोगी:
- यूरो-अटलांटिक पार्टनरशिप काउंसिल (EAPC)
- भूमध्यसागरीय संवाद
- इस्तांबुल सहयोग पहल (ICI)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नमेन्स:प्रश्न: शीत युद्ध के बाद के अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में भारत की लुक ईस्ट नीति (पूर्व की ओर देखो नीति) के आर्थिक और रणनीतिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
सर्वोच्च न्यायालय ने IBC के प्रमुख प्रावधानों को बरकरार रखा
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, IBC के प्रमुख प्रावधान, दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), अनुच्छेद 21, व्यक्तिगत गारंटर। मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय ने IBC के प्रमुख प्रावधानों को बरकरार रखा, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को बरकरार रखा है जिन्हें संवैधानिक आधार पर चुनौती दी गई थी।
- न्यायालय ने दिवाला कार्यवाही में समानता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के संबंध में चिंताओं को संबोधित किया।
याचिकाओं और सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों से क्या चिंताएँ बढ़ी हैं?
- याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:
- प्रमुख मुद्दा यह था कि व्यक्तिगत गारंटर को अपना मामला पेश करने या दिवाला समाधान प्रक्रिया की शुरुआत का विरोध करने या रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) की नियुक्ति में अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया था।
- व्यक्तिगत गारंटर वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य पक्ष द्वारा लिये गए ऋण या वित्तीय दायित्व हेतु व्यक्तिगत गारंटी प्रदान करता है। जब कोई व्यक्ति धन उधार लेता है या ऋण प्राप्त करता है, तो ऋणदाता को सुरक्षा के रूप में व्यक्तिगत गारंटी की आवश्यकता हो सकती है।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता ( Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) के चुनौती वाले हिस्से निष्पक्ष सिद्धांतों (प्राकृतिक न्याय) का पालन नहीं करते हैं तथा संविधान के अनुच्छेद 21, 19(1)(g) एवं 14 के तहत आजीविका, व्यापार और समानता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं।
- प्रमुख मुद्दा यह था कि व्यक्तिगत गारंटर को अपना मामला पेश करने या दिवाला समाधान प्रक्रिया की शुरुआत का विरोध करने या रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) की नियुक्ति में अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया था।
- न्यायालय की टिप्पणी:
- संवैधानिकता और व्यक्तिगत गारंटर: न्यायालय ने IBC के प्रमुख प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जिसमें व्यक्तिगत गारंटर के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही की अनुमति भी शामिल है।
- न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि IBC पूर्वव्यापी नहीं है और माना कि धारा 95 से 100 को सिर्फ इसलिये असंवैधानिक नहीं माना जा सकता क्योंकि वे व्यक्तिगत गारंटरों को लेनदारों की दिवालिया संबंधी याचिकाओं से पहले सुनवाई का मौका नहीं देते हैं।
- इसने उन दावों के खिलाफ निर्णय सुनाया कि इन प्रावधानों में निष्पक्षता की कमी है या प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ है, यह कहते हुए कि निष्पक्षता का मूल्यांकन मामले-दर-मामले किया जाना चाहिये।
- रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल्स (RP) की भूमिका: न्यायालय ने RP की नियुक्ति से पहले न्यायिक हस्तक्षेप को शामिल करने के विचार को खारिज़ कर दिया, यह कहते हुए कि एक निश्चित अनुभाग से पहले एक न्यायिक भूमिका जोड़ने से IBC की निर्धारित समय-सीमा बाधित हो जाएगी।
- यह स्पष्ट कर दिया गया था कि RP सूचना एकत्र करने वाले और सिफारिश करने वाले सुविधा प्रदाता हैं, निर्णय लेने वाले नहीं।
- अधिस्थगन प्रावधान: न्यायालय इस बात पर सहमत हुआ कि ये प्रावधान मुख्य रूप से देनदारों के बजाय ऋणों की रक्षा करते हैं।
- इसने विधायिका के निर्णयों का समर्थन किया कि कब अधिस्थगन लागू होना चाहिये और IBC में व्यक्तिगत देनदारों, भागीदारों एवं कॉर्पोरेट देनदारों के बीच मतभेदों पर प्रकाश डाला।
- संवैधानिकता और व्यक्तिगत गारंटर: न्यायालय ने IBC के प्रमुख प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जिसमें व्यक्तिगत गारंटर के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही की अनुमति भी शामिल है।
IBC पर SC के निर्णय का संभावित प्रभाव क्या हो सकता है?
- लेनदार का विश्वास:
- IBC के प्रावधानों की पुष्टि, विशेष रूप से व्यक्तिगत गारंटरों के संबंध में लेनदार का विश्वास बढ़ सकता है।
- गारंटरों के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने के विषय में लेनदार अधिक सुरक्षित महसूस करेंगे, जिससे संभावित रूप से ऋण की वसूली में अधिक मुखर दृष्टिकोण अपनाया जा सकेगा।
- स्पष्टता और पूर्वानुमेयता:
- न्यायालय के निर्णय द्वारा प्रदान की गई स्पष्टता दिवाला ढाँचे के अंदर पूर्वानुमान को बढ़ा सकती है। यह सहज और अधिक कुशल समाधान प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित कर सकता है, उन अनिश्चितताओं को कम कर सकता है जो पहले लेनदार के कार्यों में बाधा बन सकती थीं।
- समर्थकों को सतर्क करना:
- यह निर्णय समर्थकों और कॉर्पोरेट ऋणों के लिये व्यक्तिगत गारंटी प्रदान करने वाले व्यक्तियों को सावधान करेगा।
- समर्थक, यहाँ तक कि सॉल्वेंट कंपनियों के मामले में भी वे इस निर्णय द्वारा उजागर संभावित जोखिमों के कारण व्यक्तिगत गारंटी देने के विषय में अधिक सतर्क हो सकते हैं।
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 क्या है?
- सरकार ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता से संबंधित सभी कानूनों को समेकित करने तथा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) से निपटने के लिये IBC, 2016 को लागू किया, यह एक ऐसी समस्या है जो वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट ला रही है।
- दिवाला एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अथवा कंपनियाँ अपना परादेय ऋण/बकाया ऋण (Outstanding Debt) चुकाने में असमर्थ होती हैं।
- शोधन अक्षमता एक ऐसी स्थिति है जिसमें सक्षम अधिकारिता (Competent Jurisdiction) वाले न्यायालय में किसी व्यक्ति अथवा अन्य संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है, इसे हल करने तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये उचित आदेश पारित किये गए हैं। यह ऋण चुकाने में असमर्थता की विधिक घोषणा है।
- IBC सभी व्यक्तियों, कंपनियों, सीमित देयता भागीदारी (LLP) और साझेदारी फर्मों को कवर करता है।
- न्याय-निर्णयन प्राधिकारी:
- कंपनियों तथा LLP के लिये राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT)।
- व्यक्तियों तथा साझेदारी फर्मों के लिये ऋण वसूली अधिकरण (DRT)।
- न्याय-निर्णयन प्राधिकारी:
विधिक अंतर्दृष्टि:
महत्त्वपूर्ण संस्थानों के बारे में विस्तार से पढ़ें:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा हाल ही में समाचारों में आए ‘दबावयुक्त परिसंपत्तियों के धारणीय संरचन पद्धत्ति (स्कीम फॉर सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट्स/S4A)' का सर्वोत्कृष्ट वर्णन करता है? (2017) (a) यह सरकार द्वारा निरुपित विकासात्मक योजनाओं की पारिस्थितिकीय कीमतों पर विचार करने की पद्धत्ति है। उत्तर: (b) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार, पद्म पुरस्कार और अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार, विज्ञान रत्न पुरस्कार, विज्ञान श्री पुरस्कार, विज्ञान टीम पुरस्कार, विज्ञान युवा-शांति स्वरूप भटनागर (VY-SSB)। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पद्म पुरस्कार और अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों के समान 'राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार' (RVP) की घोषणा की है।
राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP) क्या है?
- शामिल पुरस्कार:
- विज्ञान रत्न पुरस्कार: ये पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में किये गए पूरे जीवन की उपलब्धियों और योगदान को मान्यता देंगे।
- विज्ञान श्री पुरस्कार: ये पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट योगदान को मान्यता देंगे।
- विज्ञान टीम पुरस्कार: ये पुरस्कार तीन या अधिक वैज्ञानिकों/शोधकर्त्ताओं/नवप्रवर्तकों की टीम को दिये जाएंगे, जिन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में एक टीम में काम करते हुए असाधारण योगदान दिया है।
- विज्ञान युवा-शांति स्वरूप भटनागर (VY-SSB): ये पुरस्कार युवा वैज्ञानिकों (अधिकतम 45 वर्ष) के लिये भारत में सर्वोच्च बहुविषयक विज्ञान पुरस्कार हैं।
- इनका नाम वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के संस्थापक और निदेशक शांति स्वरूप भटनागर के नाम पर रखा गया है, जो एक प्रसिद्ध रसायनज्ञ तथा दूरदर्शी थे।
- मानदंड:
- पुरस्कारों में प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचारों और टीम के सहयोगी प्रयासों को शामिल करते हुए विविध मानदंड शामिल हैं।
- पिछले पुरस्कारों के विपरीत RVP विज्ञान युवा-SSB पुरस्कार को छोड़कर आयु प्रतिबंध लागू नहीं करता है, जो आयु और लैंगिक पूर्वाग्रहों को संबोधित करने के आह्वान के अनुरूप है।
- पुरस्कारों के लिये नामांकन प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को आमंत्रित किये जाएंगे जो प्रत्येक वर्ष 28 फरवरी (राष्ट्रीय विज्ञान दिवस) तक खुले रहेंगे।
- इन पुरस्कारों की घोषणा प्रत्येक वर्ष 11 मई (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस) को की जाएगी। सभी श्रेणियों के पुरस्कारों के लिये पुरस्कार समारोह 23 अगस्त (राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस) को आयोजित किया जाएगा।
- महत्त्व:
- यह भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा के वैश्विक प्रभाव को पहचानते हुए विदेशों में भारतीय मूल के व्यक्तियों की भागीदारी को स्वीकार और प्रोत्साहित करता है।
- नए पुरस्कार सरकारी, निजी क्षेत्र के संगठनों में कार्य करने वाले वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों और नवप्रवर्तकों (या टीमों) या किसी संगठन के बाहर कार्य करने वाले व्यक्तियों के विस्तारित समूह के लिये खुले होंगे।
- नए पुरस्कारों में खोज-आधारित अनुसंधान के अलावा प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचारों या उत्पादों सहित पात्रता मानदंडों का भी विस्तार होगा। RVP में वैज्ञानिक अनुसंधान की बढ़ती सहयोगात्मक, अंतर-विषयक, अनुवादात्मक एवं अंतःक्रियात्मक प्रकृति को स्वीकार करने के लिये टीम पुरस्कारों (विज्ञान टीम) का एक सेट भी शामिल है।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि विज्ञान युवा-SSB पुरस्कार, जो 45 वर्ष की आयु तक के वैज्ञानिकों को दिया जाता है, को छोड़कर सभी RVP पुरस्कारों में कोई आयु प्रतिबंध नहीं है और स्पष्ट रूप से निष्पक्ष लिंग प्रतिनिधित्व की गारंटी देने की प्रतिज्ञा है।
RVP पिछली सीमाओं को पार करते हुए समावेशिता को कैसे बढ़ा सकता है?
- असाधारण योगदान के लिये स्पष्ट मानदंड:
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि RVP प्रणाली केवल वास्तव में "उल्लेखनीय और प्रेरणादायक योगदान" को ही मान्यता देती है, पुरस्कारों के विवरण में यह कथन अवश्य शामिल होना चाहिये कि योगदान किसी वैज्ञानिक/प्रौद्योगिकीविद् के मानक नौकरी विवरण के अलावा है, न कि केवल वृद्धिशील कार्य या उनकी नियुक्ति का अभिन्न अंग है।
- विविध वैज्ञानिक संलग्नता को शामिल करना:
- RVP पुरस्कारों में श्रेणियों को शामिल करके या शिक्षण, सलाह, विज्ञान संचार और नेतृत्व पर विचार करके अनुसंधान से परे वैज्ञानिकों के योगदान को स्वीकार किया जाना चाहिये।
- ये प्रयास अक्सर प्राथमिक भूमिकाओं के अतिरिक्त चयन के दौरान पुरस्कार संरचना के तहत मान्यता के योग्य होते हैं।
- आयु सीमा और लिंग समानता में संशोधन:
- विज्ञान युवा-SSB के लिये 45 वर्ष की आयु सीमा लैंगिक समानता की चुनौती पेश करती है, जिससे महिलाओं को पारिवारिक दायित्व निभाने में बाधा आती है।
- निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये कॅरियर की स्वतंत्रता के आधार पर 'युवा वैज्ञानिक' को फिर से परिभाषित करना या व्यक्तिगत परिस्थितियों पर विचार करते हुए पात्रता विस्तार की पेशकश करना लैंगिक समानता के खिलाफ बाधाएँ से बचने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- पारदर्शी चयन प्रक्रियाएँ:
- जब RVP पुरस्कार प्रक्रिया लागू की जाती है, तो चयन प्रक्रिया को पूर्व निर्धारित समय-सीमा का पालन करना होगा, शॉर्टलिस्ट किये गए आवेदकों की एक सार्वजनिक सूची प्रदान करनी होगी और इसमें लिंग-संतुलित एवं विविध चयन समितियाँ, अंतर्राष्ट्रीय जूरी सदस्य तथा एक गैर-पक्षपातपूर्ण जूरी सदस्य - एक गैर-वैज्ञानिक जूरी सदस्य शामिल होने चाहिये जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चयन निष्पक्ष हो।
- विविधता और सामाजिक आर्थिक प्रतिनिधित्व:
- नई पुरस्कार प्रणाली को लैंगिक समानता के अलावा पुरस्कार विजेताओं के बीच उचित सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और कार्यस्थल से संबंधित गंभीर प्रणालीगत सामाजिक चुनौतियों और/या बाधाओं तथा विचारों के योगदान के लिये सचेत होकर प्रयास करने का संकल्प लेना चाहिये।
- सुधार के लिये सतत् मूल्यांकन:
- वैज्ञानिक पुरस्कारों की आवश्यकता पर बहस के बावजूद भारत के पास निर्णय लेने के लिये पर्याप्त डेटा का अभाव है। हालाँकि वैज्ञानिक प्रगति, क्षेत्र के विकास, रोल मॉडल, विविधता और देश की वैज्ञानिक संस्कृति पर पुरस्कार प्रणाली के प्रभाव का मूल्यांकन सूचित निर्णयों हेतु महत्त्वपूर्ण है।
सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है? (2009) (a) साहित्य उत्तर: (c) |