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डेली न्यूज़

  • 18 Sep, 2023
  • 53 min read
सामाजिक न्याय

भारत में आत्महत्या की प्रवृत्ति

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस, आत्महत्या की रोकथाम के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017, किरण हेल्पलाइन, मनोदर्पण पहल, राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति 2022

मेन्स के लिये:

भारत में आत्महत्या के प्रमुख कारक

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया गया। इस अवसर पर देश में महिलाओं, विशेषकर गृहिणियों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि, जो कि एक गंभीर समस्या है, पर चिंता व्यक्त की गई।

  • आत्महत्या, जिसमें सबसे अधिक संख्या गृहिणियों की होती है, के मुद्दे को अक्सर नज़रअंदाज कर दिया जाता रहा है। हालिया वर्षों में इन घटनाओं की संख्या में हुई वृद्धि चिंताजनक है।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस:

  • विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2003 में WHO और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी।
    • यह आत्महत्या संबंधी पूर्वाग्रहों को कम करने और संगठनों, सरकार तथा जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के साथ आत्महत्या को रोकने का संदेश देता है।
  • वर्ष 2021- 2023 तक के लिये विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की थीम "कार्रवाई के माध्यम से उम्मीद बढ़ाना” (Creating hope through action) है। इस थीम का उद्देश्य सभी में आत्मविश्वास और प्रबुद्धता की भावना को प्रेरित करना है।

भारत में गृहिणियों के समक्ष चुनौतियाँ:

  • हालिया आँकड़े: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2021 में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में गृहिणियों का अनुपात 51.5% था।
    • इस संदर्भ में केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक सूची में शीर्ष पर हैं।
      • आत्महत्या की कुल घटनाओं में लगभग 15% गृहिणियों से संबंधित हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित करती है।
  • चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ:
    • आने-जाने पर प्रतिबंध: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में कई महिलाओं का घर से बाहर कहीं आने-जाने पर प्रतिबंध होता है।
      • सामाजिक मानदंड और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण अक्सर वे अकेले यात्रा करने या फिर अपने घरों से दूर जाने से परहेज करती हैं।
      • ये परिस्थितियाँ उनमें अलगाव और असहायता की भावनाओं को जन्म दे सकती हैं।
    • वित्तीय स्वायत्तता की कमी: अपने जीवनसाथी या परिवार पर आर्थिक निर्भरता महिलाओं के प्रति विभिन्न प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति उन्हें संवेदनशील बना सकती है। वित्तीय स्वतंत्रता की कमी, वैवाहिक नियंत्रण; भारतीय समाज में पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ और पितृसत्तात्मक मानदंडों के परिणामस्वरूप, विशेषकर विवाह के संदर्भ में महिलाओं को बहुत कम स्वतंत्रता प्राप्त है।
      • ‘महिलाओं को अपने पति और ससुराल वालों की इच्छाओं के अनुरूप होना चाहिये’ ऐसी अपेक्षा विवशता की भावनाओं को जन्म दे सकती है।
    • शारीरिक, यौन और भावनात्मक दुर्व्यवहार: शारीरिक, यौन एवं भावनात्मक शोषण सहित घरेलू हिंसा भारत में एक गंभीर समस्या है। कई महिलाएँ कलंक, प्रतिशोध के डर या समर्थन के अभाव के कारण इस प्रकार के दुर्व्यवहार को चुपचाप सहन करती रहती हैं।
    • मदद मांगने की इच्छा न होना: मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करने और मदद मांगने को लेकर भारत में सामाजिक पूर्वाग्रह व्यापक है। कई महिलाएँ बाहरी सहायता लेने या अपने संघर्षों के बारे में दूसरों को बताने में झिझकती हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सहायता तक पहुँच में कमी देखी जाती है।

भारत में आत्महत्या की समस्या के अन्य कारक:

  • कृषि संकट और किसानों द्वारा आत्महत्याएँ: भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को अनियमित मौसम पैटर्न, भूमि क्षरण और उच्च इनपुट लागत सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • कर्ज के बोझ और फसल की बर्बादी के कारण बड़ी संख्या में किसानों द्वारा आत्महत्या की गई।
    • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कीटनाशकों जैसे घातक पदार्थों तक पहुँच अपेक्षाकृत सरल है और यह आवेगपूर्ण आत्महत्याओं की उच्च दर में योगदान देता है।
  • शैक्षणिक दबाव: भारत की प्रतिस्पर्द्धी शिक्षा प्रणाली छात्रों पर उच्च शैक्षणिक प्रदर्शन हेतु अत्यधिक दबाव डालती है।
    • विफलता का डर और माता-पिता की अत्यधिक उम्मीदें छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देने के साथ ही उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं, जिससे छात्रों को लगता है कि उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के हालिया प्रयासों के बावजूद अभी भी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच है।
    • यह समस्या भारत में मानसिक स्वास्थ्य संकट को बढ़ाती है और आत्महत्याओं में वृद्धि से जुड़ी एक सर्वोपरि चिंता के रूप में उभरती है।
  • LGBTQ+ व्यक्तियों पर पारिवारिक दबाव: भारत में कई LGBTQIA+ व्यक्तियों को अपने परिवारों से गंभीर भेदभाव और अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है, जिससे अलगाव एवं अवसाद की भावना उत्पन्न होती है।
  • परिवारों द्वारा स्वीकृति और समर्थन की यह कमी इस समुदाय की आत्महत्याओं में योगदान देने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
  • साइबरबुलिंग: प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया के उदय के साथ साइबरबुलिंग एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, खासकर युवाओं के बीच। ऑनलाइन उत्पीड़न एवं धमकी का मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो सकता है जो आत्महत्या की घटनाओं को बढ़ा सकता है।

आगे की राह

  • गृहिणियों को सशक्त बनाने के लिये AI और नवाचार का लाभ उठाना: विशेष रूप से उन गृहिणियों के लिये डिज़ाइन किये गए AI-संचालित कौशल विकास एवं रोज़गार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है जो कार्यबल में प्रवेश या पुनः प्रवेश करना चाहती हैं।
    • AI उन कौशलों और रोज़गार के अवसरों की पहचान करने में सहायता कर सकता है जो उनकी रुचियों तथा क्षमताओं के अनुरूप हों।
    • ये कार्यक्रम विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान कर सकते हैं, जैसे दूरस्थ कार्य, फ्रीलांसिंग या अंशकालिक रोज़गार, जिससे गृहिणियों में वित्तीय स्वतंत्रता की भावना और उद्देश्य की प्राप्ति की अनुमति मिलती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में सुधार: अधिक संख्या में मानसिक स्वास्थ्य क्लीनिकों की स्थापना और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित कर, विशेष रूप से ग्रामीण तथा कम सेवा वाले क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य विकारों का शीघ्र पता लगाने और हस्तक्षेप सुनिश्चित करने हेतु मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • विधान और विनियमन: कीटनाशकों की बिक्री पर सख्त नियम लागू करने की आवश्यकता है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में आत्महत्या का एक सामान्य तरीका है
    • साथ ही साइबरबुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न के खिलाफ कानून लागू करने से युवाओं में मानसिक समस्या को कम करने में सहायता मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय समाज में नवयुवतियों में आत्महत्या क्यों बढ़ रही है? स्पष्ट कीजिये। (2023)


भारतीय इतिहास

बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क

प्रिलिम्स के लिये:

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स, बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, योजना आयोग, SEBI

मेन्स के लिये:

भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार के उपाय 

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स (IICA) ने मुंबई में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) परिसर में यूनिसेफ और NSE के सहयोग से बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग (BRSR) पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।

बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क: 

  • बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग शीर्ष 1000 सूचीबद्ध कंपनियों अथवा व्यवसायों के लिये पर्यावरण, सामाजिक और कॉर्पोरेट प्रशासन (ESG) मापदंडों पर अपने प्रदर्शन की रिपोर्ट करने व उत्तरदायित्वपूर्ण व्यावसायिक प्रथाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के लिये एक अनिवार्य स्पष्टीकरण तंत्र (Mandatory Disclosure Mechanism) है।
    • वर्ष 2021 में SEBI ने बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी रिपोर्ट्स (BRR) को बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग (BRSR) से प्रतिस्थापित कर दिया।
  • नेशनल गाइडलाइन फॉर रिस्पॉन्सिबल बिज़नेस कंडक्ट (NGRBC) में कुल नौ सिद्धांत हैं, ये BRSR की बुनियाद के रूप में कार्य करते हैं। ये नौ सिद्धांत इस प्रकार हैं:
    • व्यवसायों को निष्ठापूर्वक और नैतिक, पारदर्शी व जवाबदेह तरीके से व्यवसाय को संचालित एवं शासित करना चाहिये।
    • व्यवसायों को धारणीय व सुरक्षित वस्तु एवं सेवाएँ प्रदान करनी चाहिये।
    • व्यवसायों को अपनी मूल्य शृंखला सहित सभी कर्मचारियों के कल्याण को बढ़ावा देना चाहिये एवं उनका सम्मान करना चाहिये।
    • व्यवसायों को अपने सभी हितधारकों के हितों का ख्याल रखना चाहिये और उनके प्रति उत्तरदायी होना चाहिये।
    • व्यवसायों को मानवाधिकारों का सम्मान करना चाहिये तथा उन्हें बढ़ावा देना चाहिये।
    • व्यवसायों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होना चाहिये और उसकी रक्षा के प्रयास करने चाहिये।
    • सार्वजनिक और नियामक नीतियों के निर्माण में सहभागिता के दौरान व्यवसायों को ज़िम्मेदार एवं पारदर्शिता के साथ कार्य करना चाहिये।
    • व्यवसायों को समावेशी और समान विकास को बढ़ावा देना चाहिये
    • व्यवसायों को ज़िम्मेदारी के साथ अपने उपभोक्ताओं के साथ जुड़ना चाहिये और उनका सम्मान करना चाहिये।

पर्यावरणीय, सामाजिक और कॉर्पोरेट प्रशासन (ESG):

  • यह दिशानिर्देशों का एक समूह है जो कंपनियों के लिये अपने संचालन में बेहतर मानकों का पालन करना अनिवार्य बनाता है, इसके अंतर्गत बेहतर प्रशासन, नैतिक आचरण, पर्यावरणीय रूप से सतत् प्रथाएँ और सामाजिक उत्तरदायित्त्व शामिल हैं।

  • वर्ष 2006 में यूनाइटेड नेशंस प्रिंसिपल फॉर रिस्पॉन्सिबल इन्वेस्टमेंट (United Nations Principles for Responsible Investment- UN-PRI) के आरंभ के साथ ESG ढाँचे को आधुनिक समय के व्यवसायों की एक अविभाज्य कड़ी के रूप में मान्यता दी गई है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स:

  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स (IICA) को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत 12 सितंबर, 2008 को एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था।
    • IICA की स्थापना के प्रस्ताव को फरवरी 2007 में योजना आयोग द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  • यह एक स्वायत्त संस्थान है और अनुसंधान, शिक्षा तथा वकालत के अवसर प्रदान करने हेतु कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के तत्त्वावधान में कार्य करता है।
    • यह एक थिंक टैंक भी है जो नीति निर्माताओं, नियामकों के साथ-साथ कॉर्पोरेट मामलों के क्षेत्र में कार्य करने वाले अन्य हितधारकों के लिये डेटा और ज्ञान का भंडार तैयार करता है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष:

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), जिसे मूल रूप से संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष के रूप में जाना जाता है, 11 दिसंबर, 1946 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा बनाया गया था, इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध से तबाह हुए देशों में बच्चों एवं माताओं को आपातकालीन भोजन तथा स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये की गई थी। 
  • वर्ष 1950 में UNICEF के अधिदेश को विकासशील देशों में बच्चों एवं महिलाओं की दीर्घकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विस्तारित किया गया था।
    • वर्ष 1953 में यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का एक स्थायी हिस्सा बन गया। 

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज:

  • नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) भारत का एक प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज बाज़ार है जो भारत में पूरी तरह से स्वचालित स्क्रीन आधारित ट्रेडिंग प्रदान करता है।
    • NSE को वर्ष 1992 में शामिल किया गया था। इसे अप्रैल 1993 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा स्टॉक एक्सचेंज के रूप में मान्यता दी गई थी और वर्ष 1994 में थोक ऋण बाज़ार के शुभारंभ के साथ परिचालन शुरू किया गया था।
  • इसकी अधिक लोकप्रिय पेशकशों में से एक NIFTY 50 इंडेक्स है, जो भारतीय इक्विटी बाज़ार में सबसे बड़ी संपत्ति को ट्रैक करता है।


शासन व्यवस्था

इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर लीगल मेट्रोलॉजी

प्रिलिम्स के लिये:

इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर लीगल मेट्रोलॉजी, लीगल मेट्रोलॉजी, मीटर अभिसमय (Metre Convention), इंटरनेशनल सिस्टम ऑफ यूनिट्स (SI), फॉरेन एक्सचेंज

मेन्स के लिये:

भारत के लिये OIML प्रमाणन प्राधिकरण का महत्त्व

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत 13वाँ ऐसा देश बन गया है जो OIML (इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर लीगल मेट्रोलॉजी) सर्टिफिकेट जारी कर सकता है।

  • उपभोक्ता मामले विभाग का लीगल मेट्रोलॉजी डिवीज़न अब OIML प्रमाणपत्र जारी करने के लिये अधिकृत है।

लीगल मेट्रोलॉजी:

  • लीगल मेट्रोलॉजी, मेट्रोलॉजी की एक शाखा को संदर्भित करती है जो वाणिज्यिक लेन-देन और अन्य क्षेत्रों में सटीकता, स्थिरता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये माप और माप उपकरणों से संबंधित विनियमन तथा कानून पर ध्यान केंद्रित करती है जहाँ माप महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • मेट्रोलॉजी माप और उसके अनुप्रयोग का विज्ञान है।
  • कानूनी मेट्रोलॉजी का प्राथमिक उद्देश्य माप के लिये स्पष्ट और समान मानक स्थापित करके उपभोक्ताओं एवं उत्पादकों दोनों के हितों की रक्षा करना है।

नोट:

  • CSIR-राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (NPL-India), भारत का राष्ट्रीय मेट्रोलॉजी संस्थान (NMI) है जो भारत में SI इकाइयों के मानकों को बनाए रखता है और वज़न तथा माप के राष्ट्रीय मानकों को कैलिब्रेट करता है।

इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर लीगल मेट्रोलॉजी (OIML): 

  • परिचय:
    • OIML की स्थापना वर्ष 1955 में हुई थी और इसका मुख्यालय पेरिस में है।
    • यह एक अंतर्राष्ट्रीय मानक-निर्धारण निकाय है जो कानूनी मेट्रोलॉजी अधिकारियों और उद्योग द्वारा उपयोग के लिये मॉडल नियमों, मानकों तथा संबंधित दस्तावेज़ों को विकसित करता है।
    • यह नैदानिक ​​थर्मामीटर, अल्कोहल साँस विश्लेषक (Alcohol Breath Analysers), रडार गति मापने वाले उपकरण, बंदरगाहों पर पाए जाने वाले जहाज़ टैंक और पेट्रोल वितरण इकाइयों जैसे मापन उपकरणों के प्रदर्शन पर राष्ट्रीय कानूनों एवं  विनियमों को सुसंगत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • भारत की सदस्यता:
    • भारत वर्ष 1956 में OIML का सदस्य बना। उसी वर्ष भारत ने मीटर अभिसमय  पर हस्ताक्षर किये
      • वर्ष 1875 का मीटर अभिसमय , जिसे औपचारिक रूप से मीटर अभिसमय या मीटर संधि के रूप में जाना जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिस पर 20 मई, 1875 को पेरिस, फ्राँस में हस्ताक्षर किये गए थे।
      • इसने इंटरनेशनल सिस्टम ऑफ यूनिट्स (SI) की स्थापना की, जो मीट्रिक प्रणाली का आधुनिक रूप है।
  • OIML प्रमाणपत्र:
    • OIML-CS डिजिटल बैलेंस, क्लिनिकल थर्मामीटर इत्यादि जैसे उपकरणों के लिये OIML प्रमाणपत्र और उनके संबंधित OIML प्रकार के मूल्यांकन/परीक्षण रिपोर्ट जारी करने, पंजीकृत और उपयोग करने की एक प्रणाली है।
    • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वज़न या माप की ब्रिकी का OIML पैटर्न अनुमोदन प्रमाणपत्र होना अनिवार्य है। यह दुनिया भर में स्वीकृत एकल प्रमाणपत्र है।
    • भारत के शामिल होने के साथ OIML प्रमाणपत्र जारी करने के लिये अधिकृत देशों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है। वे देश जो OIML प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं:
    • ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड, चीन, चेक गणराज्य, जर्मनी, डेनमार्क, फ्राँस, यूके, जापान, नीदरलैंड, स्वीडन और स्लोवाकिया (और अब भारत भी)।

OIML प्रमाणपत्र प्राधिकरण बनने का भारत के लिये महत्त्व: 

  • निर्यात में आसानी: उदाहरण के लिये मान लीजिये कि नोएडा में डिजिटल बैलेंस बनाने वाला एक उपकरण-निर्माता है जो अमेरिका या किसी अन्य देश में निर्यात करना चाहता है। इससे पहले, उसे प्रमाणन के लिये अन्य 12 (योग्य) देशों में से एक के पास जाना आवश्यक होगा।
    • अब प्रमाणपत्र भारत में जारी किये जा सकते हैं और इसके द्वारा प्रमाणित उपकरण निर्यात योग्य (अतिरिक्त परीक्षण शुल्क के बिना) होंगे और पूरी दुनिया में स्वीकार्य होंगे।
  • बेहतर विदेशी मुद्रा: इस कदम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कई मायनों में मदद मिलने की उम्मीद है, जिसमें निर्यात में वृद्धि, विदेशी मुद्रा की कमाई और रोज़गार सृजन शामिल है।
    • चूँकि इसके लिये केवल 13 देश ही अधिकृत हैं, इसलिये पड़ोसी देश और निर्माता प्रमाणीकरण कराने के लिये भारत आ सकते हैं। इसलिये यह विदेशी मुद्रा के मामले में भारत के लिये राजस्व अर्जक होगा।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ग्लोबल साउथ की बदलती गतिशीलता

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल साउथ, ग्रुप ऑफ 77 (G-77), ग्लोबल नॉर्थ, ग्रीन एनर्जी फंड, G20 समिट, UN ऑफिस फॉर साउथ-साउथ कोऑपरेशन (UNOSSC), यूरोपियन यूनियन (EU), शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (SCO), क्वाड , इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, G7 शिखर सम्मेलन, ब्रांट लाइन

मेन्स के लिये:

ग्लोबल साउथ का इतिहास, ग्लोबल साउथ के बढ़ते प्रभाव का परिदृश्य, ग्लोबल राजनीति में ग्लोबल साउथ का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2023 में भारत के प्रधानमंत्री ने "वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ" पर एक आभासी शिखर सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें लगभग 125 देश शामिल हुए। इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य क्षेत्र के लिये प्राथमिकताओं को निर्धारित करने हेतु ग्लोबल साउथ के देशों की राय और इनपुट प्राप्त करना था।

ग्लोबल साउथ का इतिहास:

  • ऐतिहासिक संदर्भ: "ग्लोबल साउथ" शब्द का प्रयोग प्रायः उपनिवेशवाद की ऐतिहासिक विरासत और पूर्व उपनिवेशित देशों एवं विकसित पश्चिमी देशों के बीच आर्थिक असमानताओं को उजागर करने के लिये किया जाता है।
    • यह आर्थिक वृद्धि और विकास में इन देशों के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करता है।
  • G-77 का गठन: वर्ष 1964 में 77 देशों का समूह (G-77) तब अस्तित्व में आया जब इन देशों ने जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के पहले सत्र के दौरान एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
    • G-77 उस समय विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन बन गया।
    • G-77 का उद्देश्य: इसे विकासशील देशों के आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने की उनकी क्षमता में सुधार करने के लिये बनाया गया था।
    • इसमें अब एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, कैरेबियन और ओशिनिया के 134 देश शामिल हैं। चीन तकनीकी रूप से इस समूह का हिस्सा नहीं है, इसलिये बहुपक्षीय मंचों पर इस समूह को अक्सर "जी-77+चीन" कहा जाता है।
  • UNOSSC: दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOSSC) की स्थापना वर्ष 1974 में की गई थी। इसकी भूमिका G-77 के सहयोग से ग्लोबल साउथ के देशों और विकसित देशों या बहुपक्षीय एजेंसियों के बीच सहयोग का समन्वय करना है

ग्लोबल साउथ के पुनरुद्धार का कारण:

  • 21वीं सदी के शुरुआती दशकों में ग्लोबल साउथ के प्रति रुचि और ध्यान में उल्लेखनीय गिरावट आई थी।
    • यह प्रवृत्ति विशेष रूप से भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में स्पष्ट थी, जिन्हें अपनी 'तीसरी दुनिया' की उत्पत्ति से दूर जाने और वैश्विक मंच पर अधिक प्रमुख भूमिका की तलाश करने वाला माना जाता था क्योंकि इन देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में सुधार एवं विस्तार किया था।
  • हालाँकि हाल के दिनों में ग्लोबल साउथ ने अपना महत्त्व और प्रासंगिकता फिर से हासिल कर ली है, जो उभरती वैश्विक व्यवस्था को आयाम देने में क्षेत्र के महत्त्व की बढ़ती मान्यता को दर्शाता है। इस पुनरुत्थान में योगदान देने वाले कई प्रमुख कारकों का उल्लेख किया गया है:
    • कोविड-19 महामारी का प्रभाव: सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौतियों दोनों के संदर्भ में कोविड-19 महामारी का वैश्विक दक्षिण के कई देशों पर गंभीर प्रभाव पड़ा। इस संकट ने इन देशों की कमज़ोरियों और ज़रूरतों पर फिर से ध्यान केंद्रित किया।
    • आर्थिक मंदी: महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक मंदी ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समर्थन की आवश्यकता को उजागर करते हुए ग्लोबल साउथ के देशों पर असमान रूप से प्रभाव डाला।
    • रूस-यूक्रेन संघर्ष का परिणाम: रूस-यूक्रेन संघर्ष का वैश्विक आर्थिक प्रभाव पड़ा। इसका विकासशील दुनिया पर तीव्र प्रभाव देखा गया, जिसने वैश्विक मामलों की परस्पर संबद्धता एवं अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में ग्लोबल साउथ के महत्त्व पर और अधिक ध्यान आकृष्ट किया।

‘ग्लोबल साउथ’ शब्द की आलोचना का कारण:

  • शब्द की अशुद्धि: ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द की उन देशों का प्रतिनिधित्व करने में अशुद्धि के लिये आलोचना की जाती है जिनका वर्णन करना इसका उद्देश्य था।
  • यह बताया गया है कि कुछ देश जिन्हें आमतौर पर ग्लोबल साउथ का हिस्सा माना जाता है, जैसे भारत, वास्तव में उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है, जबकि अन्य जैसे ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं लेकिन प्रायः उन्हें ग्लोबल साउथ के हिस्से के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • अधिक सटीक वर्गीकरण की आवश्यकता: 1980 के दशक में इस अशुद्धि की पहचान के कारण ‘ब्रांट लाइन (Brandt Line) (एक वक्र जिसने केवल सामान्य तौर पर भौगोलिक स्थिति के आधार की बजाय आर्थिक विकास और धन वितरण जैसे कारकों के आधार पर दुनिया को आर्थिक उत्तर एवं दक्षिण के रूप में अधिक सटीक रूप से विभाजित किया) का विकास हुआ।

ग्लोबल साउथ की मांग:

  • वैश्विक स्तर पर आनुपातिक मत: ग्लोबल साउथ, जिसमें बड़ी आबादी वाले देश शामिल हैं, यह मानता है कि विश्व के भविष्य को आयाम देने में उनकी सबसे अधिक भागीदारी है।
    • इन देशों में रहने वाली वैश्विक आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा होने के कारण उनका तर्क है कि वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनका आनुपातिक और सार्थक मत होना चाहिये।
  • न्यायसंगत प्रतिनिधित्व: ग्लोबल साउथ वैश्विक शासन में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व की मांग करता है। वैश्विक शासन का वर्तमान मॉडल विश्व की जनसांख्यिकीय और आर्थिक वास्तविकताओं को पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है तथा यह सुनिश्चित करने के लिये बदलाव का आह्वान करता है कि ग्लोबल साउथ के विचार सुने और माने जाएँ।

वैश्विक राजनीति में ग्लोबल साउथ का प्रभाव:

  • ग्लोबल साउथ को प्राथमिकता देना: भारत की G20 की अध्यक्षता ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं से प्रेरित थी। यह उन मुद्दों और चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता के विषय में बढ़ती जागरूकता का सुझाव देता है जो विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के विकासशील देशों के लिये प्रासंगिक हैं।
  • ग्लोबल साउथ नेतृत्व: यह तथ्य कि इंडोनेशिया, भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देश निरंतर G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी कर रहे हैं, वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में ग्लोबल साउथ के अधिक नेतृत्व तथा प्रभाव को इंगित करता है।
  • ये देश विश्व की आबादी और अर्थव्यवस्थाओं के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • समावेशिता: "वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ" शिखर सम्मेलन ग्लोबल साउथ के देशों की एक विस्तृत शृंखला के साथ समावेशिता और परामर्श के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है।
  • यह पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाली पारंपरिक शक्ति संरचनाओं से दूर जाने का संकेत देता है।
  • बहुपक्षवाद: ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं पर ज़ोर और G20 एजेंडा की मेज़बानी एवं आकार देने में इन देशों की भागीदारी बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जहाँ निर्णय राष्ट्रों के विविध समूह द्वारा सामूहिक रूप से लिये जाते हैं।
  • विकासशील विश्व का बढ़ता प्रभाव: यह G20, BRICS, शंघाई सहयोग संगठन (SCO), क्वाड, हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (Indo-Pacific Economic Framework- IPEF) और अन्य वैश्विक संगठनों की भागीदारी के माध्यम से स्पष्ट है, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में ग्लोबल साउथ में देशों से सक्रिय रूप से भागीदारी चाहते हैं।

ग्लोबल साउथ के बढ़ते प्रभाव का प्रमाण:

  • 'नुकसान और क्षति कोष' की स्थापना: मिस्र में COP27 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 'नुकसान और क्षति कोष' की स्थापना को ग्लोबल साउथ के लिये एक महत्त्वपूर्ण जीत माना गया।
    • यह ग्लोबल साउथ के देशों द्वारा वहन किये जाने वाले अनुपातहीन बोझ की मान्यता का प्रतीक है।
  • COP28 में ग्लोबल साउथ: ऐसा अनुमान है कि संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित होने वाले आगामी UNFCCC COP 28 में देश जलवायु परिवर्तन को कम करने पर चर्चा हेतु ग्लोबल साउथ के देशों की भूमिका अग्रणी होगी।
  • G7 समावेशिता: G7 शिखर सम्मेलन के मेज़बान के रूप में जापान ने भारत, ब्राज़ील, वियतनाम, इंडोनेशिया, कोमोरोस और कुक द्वीप समूह जैसे विकासशील देशों को इस वार्ता में शामिल करने के लिये उल्लेखनीय प्रयास किया।
    • इसे ग्लोबल साउथ तक पहुँचने तथा विश्व के सबसे धनी देशों के बीच अधिक समावेशी संवाद की आवश्यकता के रूप में देखा जा सकता है।
  • ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का विस्तार: दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इसकी सदस्यता को पाँच से बढ़ाकर 11 कर दिया गया। इस विस्तार का प्रमुख कारण ग्लोबल साउथ के अधिक देशों को ब्रिक्स समूह में शामिल करना है, जो ग्लोबल साउथ के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • क्यूबा में G-77 शिखर सम्मेलन: हाल ही में क्यूबा के हवाना में आयोजित G-77 शिखर सम्मेलन वैश्विक मंच पर ग्लोबल साउथ के महत्त्व को प्रदर्शित करता है, इसमें अहम मुद्दों पर चर्चा करने के लिये पर्याप्त संख्या में विकासशील देश एक मंच पर एकजुट हुए
  • G20 में अफ्रीकी संघ का समावेश: 55 देशों वाले अफ़्रीकी संघ को G20 में शामिल करना इस सम्मेलन के एक महत्त्वपूर्ण परिणाम के रूप में देखा जाता है जो वैश्विक मामलों में अफ्रीकी देशों की बढ़ती मान्यता तथा उभरती वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में उनके दृष्टिकोण व योगदान को शामिल करने की आवश्यकता का संकेत देता है।

निष्कर्ष:

जैसे-जैसे विश्व में नई-नई चुनौतियाँ और अवसर उत्पन्न हो रहे है, ग्लोबल साउथ का प्रभाव तथा इसकी भूमिका में लगातार वृद्धि हो रही है, वैश्विक शासन में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व की इसकी मांग सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है। पूरे विश्व में शक्ति के पुनर्संतुलन का दौर है, जिसमें भविष्य की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति व सहयोग को आकार देने में ग्लोबल साउथ भूमिका प्रमुख होती जा रही है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. G20 के सभी चार देश निम्नलिखित में से किस समूह के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. उभरती हुई अर्थव्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है। विस्तार से समझाइये। (2019)


भारतीय विरासत और संस्कृति

भारत का 41वाँ विश्व धरोहर स्थल: शांतिनिकेतन

प्रिलिम्स के लिये:

शांतिनिकेतन, यूनेस्को की विश्व विरासत सूची, रबींद्रनाथ टैगोर, देबेंद्रनाथ टैगोर, विश्व भारती विश्वविद्यालय, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI)

मेन्स के लिये:

शांतिनिकेतन को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित करने का महत्त्व

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

शांतिनिकेतन की लोकप्रियता का कारण:

  • ऐतिहासिक महत्त्व: वर्ष 1862 में रबींद्रनाथ टैगोर के पिता देबेंद्रनाथ टैगोर ने इस प्राकृतिक परिदृश्य को देखा और शांतिनिकेतन नामक एक घर का निर्माण करके एक आश्रम स्थापित करने का निर्णय लिया, जिसका अर्थ है "शांति का निवास"।
  • नाम परिवर्तन: यह क्षेत्र, जिसे मूल रूप से भुबडांगा कहा जाता था, ध्यान के लिये अनुकूल वातावरण के कारण देबेंद्रनाथ टैगोर द्वारा इसका नाम बदलकर शांतिनिकेतन कर दिया गया।
  • शैक्षिक विरासत: वर्ष 1901 में रबींद्रनाथ टैगोर ने भूमि का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा चुना और ब्रह्मचर्य आश्रम मॉडल के आधार पर एक विद्यालय की स्थापना की। यही विद्यालय आगे चलकर विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।
  • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल: संस्कृति मंत्रालय ने मानवीय मूल्यों, वास्तुकला, कला, नगर नियोजन और परिदृश्य डिज़ाइन में इसके महत्त्व पर बल देते हुए शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया।
  • पुरातत्त्व संरक्षण: भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) शांतिनिकेतन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए कई संरचनाओं के जीर्णोद्धार में शामिल रहा है।

रबींद्रनाथ टैगोर:

  • प्रारंभिक जीवन:
    • रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता, भारत में एक प्रमुख बंगाली परिवार में हुआ था। वह तेरह बच्चों में सबसे छोटे थे
    • टैगोर बहुज्ञ थे और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट थे। वह न केवल एक कवि थे बल्कि एक दार्शनिक, संगीतकार, नाटककार, चित्रकार, शिक्षक और समाज सुधारक भी थे।
    • नोबेल पुरस्कार विजेता:
    • वर्ष 1913 में, रबींद्रनाथ टैगोर "गीतांजलि" (सॉन्ग ऑफरिंग्स) नामक कविताओं के संग्रह के लिये साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले एशियाई बने।
  • नाइटहुड:
    • वर्ष 1915 में रबींद्रनाथ टैगोर को ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम (British King George V) द्वारा नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया।
    • वर्ष 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) के बाद उन्होंने नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।
  • राष्ट्रगान के रचयिता:
  • साहित्यिक कार्य:
    • उनकी साहित्यिक कृतियों में कविताएँ, लघु कथाएँ, उपन्यास, निबंध और नाटक शामिल हैं। उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में "द होम एंड द वर्ल्ड," "गोरा," गीतांजलि, घारे-बैर, मानसी, बालका, सोनार तोरी और "काबुलीवाला" शामिल हैं।
    • उन्हें उनके गाने 'एकला चलो रे (Ekla Chalo Re)' के लिये भी याद किया जाता है।
  • समाज सुधारक:
    • वह सामाजिक सुधार, एकता, सद्भाव और सहिष्णुता के विचारों को बढ़ावा देने के समर्थक थे। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की आलोचना की तथा भारतीय स्वतंत्रता के लिये कार्य किया।
  • टैगोर का दर्शन:
    • उनके दर्शन ने मानवतावाद, आध्यात्मिकता और प्रकृति तथा मानवता के बीच संबंध के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
  • साहित्यिक शैली:
    • टैगोर की लेखन शैली को उनके गीतात्मक और दार्शनिक गुणों द्वारा चिह्नित किया गया, जो अक्सर प्रेम, प्रकृति तथा आध्यात्मिकता के विषयों की खोज करती थी।
  • मृत्यु:
    • 7 अगस्त, 1941 को साहित्य की समृद्ध विरासत और भारतीय एवं विश्व संस्कृति पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हुए उनका निधन हो गया।

यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल:

  • विश्व धरोहर स्थल वह स्थान है जो यूनेस्को द्वारा अपने विशेष सांस्कृतिक या भौतिक महत्त्व के लिये सूचीबद्ध किया गया है।
  • विश्व धरोहर स्थलों की सूची यूनेस्को विश्व धरोहर समिति द्वारा प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय 'विश्व धरोहर कार्यक्रम' द्वारा रखी जाती है।
    • यह वर्ष 1972 में यूनेस्को द्वारा अपनाई गई विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से संबंधित अभिसमय नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित नेशनल पार्कों में से किस एक की जलवायु उष्णकटिबंधीय से उपोष्ण, शीतोष्ण और आर्कटिक तक परिवर्तित होती है? (2015)

(a) कंचनजंघा नेशनल पार्क
(b) नंदादेवी नेशनल पार्क
(c) न्योरा वैली नेशनल पार्क
(d) नामदफा नेशनल पार्क

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. महात्मा गांधी और रबींद्रनाथ टैगोर में शिक्षा एवं राष्ट्रवाद के प्रति सोच में क्या अंतर था? (2023)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का आउटवार्ड और इनवार्ड इन्वेस्टमेंट रुझान

प्रिलिम्स के लिये:

आउटवार्ड डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (ODI), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, टैक्स हेवन्स

मेन्स के लिये:

भारत का आउटवार्ड और इनवार्ड इन्वेस्टमेंट रुझान और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा की गई गणना के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023 में भारत में भारतीय कंपनियों द्वारा इनवार्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि के साथ-साथ आउटवार्ड डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (ODI) में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI):

  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) किसी देश के एक फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक गतिविधियों में किया गया निवेश है।
  • यह विभिन्न प्रकार का हो सकता है, जैसे शेयर खरीदना, सहायक कंपनी अथवा संयुक्त उद्यम स्थापित करना या ऋण प्रदान करना अथवा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करना।
    • FDI को आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक माना जाता है, क्योंकि यह मेज़बान देश में पूंजी, प्रौद्योगिकी, कौशल, बाज़ार तक पहुँच और रोज़गार के अवसर प्रदान कर सकता है।

आउटवर्ड डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (ODI):

  • ODI एक व्यावसायिक रणनीति है जिसमें एक घरेलू फर्म अपने परिचालन का विस्तार किसी विदेशी देश में करती है।
  • यदि उनके घरेलू बाज़ार संतृप्त हो जाते हैं और विदेशों में बेहतर व्यावसायिक अवसर उपलब्ध होते हैं, तो ODI को नियोजित करना कंपनियों के लिये एक स्वाभाविक प्रगति है।
  • अमेरिकी, यूरोपीय और जापानी कंपनियों ने लंबे समय से अपने घरेलू बाज़ारों के बाहर व्यापक निवेश किया है।
    • चीन हाल के वर्षों में एक बड़े ODI प्रतिभागी के रूप में उभरा है।

आउटवर्ड डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट रुझानों की मुख्य विशेषताएँ:

  • ODI में सिंगापुर सबसे आगे: 
    • वित्त वर्ष 2023 में सिंगापुर भारतीय ODI के सबसे बड़े लाभार्थी के रूप में उभरा, जिसने 2.03 लाख करोड़ रुपए प्राप्त किये, जो कुल ODI का 22.3% है, जो सिंगापुर के बाज़ार में भारतीय कंपनियों की बढ़ती रुचि को दर्शाता है।
    • सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने वाले भारतीय व्यवसायों के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में कार्य करता है।
    • वित्त वर्ष 2013 के दौरान निवेश किये गए कुल 9.1 लाख करोड़ रुपए का 60% प्राप्त करने वाले सिंगापुर, अमेरिका, यूके और नीदरलैंड शीर्ष गंतव्यों में से थे।
  • समग्र ODI विकास: 
    • भारतीय कंपनियों का कुल ODI 19.46% की प्रगतिशील वृद्धि के साथ वित्त वर्ष 2023 में 9.11 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जबकि यह वित्त वर्ष 2022 में 7.62 लाख करोड़ रुपए था।

  • टैक्स हेवेन:
    • बरमूडा, जर्सी और साइप्रस तीन क्षेत्राधिकार हैं जो कर लाभ के लिये जाने जाते हैं और भारतीय ODI प्राप्त करने वाले शीर्ष दस देशों में हैं।
      • बरमूडा, विशेष रूप से अपनी अनुकूल कर नीतियों के लिये प्रसिद्ध है, जिसमें लाभ, आय, लाभांश या पूंजीगत लाभ पर कोई कर नहीं शामिल है।

आवक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश रुझानों की मुख्य विशेषताएँ:

  • कुल FDI वृद्धि:
    • भारत में FDI प्रवाह में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, वित्त वर्ष 2023 में कुल FDI प्रवाह 49.93 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जबकि वर्ष 2022 में यह 46.72 लाख करोड़ रुपए था।
  • आवक FDI में अमेरिका शीर्ष पर:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका FY2023 में भारत में आवक FDI का सबसे बड़ा स्रोत था, जिससे 8.58 लाख करोड़ रुपए की आवक हुई, जो कुल हिस्सेदारी का 17.2% था।
  • अन्य प्रमुख FDI योगदानकर्ता:
    • भारत के FDI में योगदान देने के मामले में मॉरीशस, ब्रिटेन और सिंगापुर ने अमेरिका का अनुसरण किया। शीर्ष दस देशों का कुल FDI प्रवाह में 90% से अधिक का योगदान था।

बढ़ते ODI और FDI का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: 

  • ODI और FDI में वृद्धि भारतीय कंपनियों की बढ़ती वैश्विक उपस्थिति एवं विदेशों में निवेश तथा परिचालन का विस्तार करने की इच्छा को इंगित करती है, जो आर्थिक विकास और विविधीकरण में योगदान देती है।
  • विभिन्न देशों और क्षेत्रों में निवेश करने से भारतीय कंपनियों को जोखिमों में विविधता, नए बाज़ारों, प्रौद्योगिकी और संसाधनों तक पहुँच प्राप्त करने और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने की अनुमति मिलती है।
  • यदि भारत विभिन्न देशों से महत्त्वपूर्ण FDI आकर्षित करना जारी रखता है, तो निवेश गंतव्य के रूप में इसकी अपील और आर्थिक विकास एवं रोज़गार सृजन की संभावना बढ़ जाएगी।

https://www.youtube.com/watch?v=ScyDy5UZx5Y 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न . भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आई की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ. डी.आई के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक एफ.डी.आई को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइये। (2016)


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