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डेली न्यूज़

  • 18 Jul, 2024
  • 40 min read
भारतीय राजनीति

विधान में धन विधेयक के उपयोग की जाँच सर्वोच्च न्यायालय करेगा

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के मुख्य न्यायाधीश, धन विधेयक, संसद, राज्यसभा, अनुच्छेद 110, न्यायिक समीक्षा, सर्वोच्च न्यायालय, समेकित निधि

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान, न्यायिक समीक्षा

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने संसद में विवादास्पद संशोधनों को पारित करने के लिये सरकार द्वारा धन विधेयक मार्ग के उपयोग को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।

  • यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्यसभा की अवहेलना तथा संविधान के अनुच्छेद 110 के संभावित उल्लंघन से संबंधित है।

धन विधेयक के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • राज्यसभा को दरकिनार करना: प्राथमिक चिंताओं में से एक यह है कि विवादास्पद संशोधनों को धन विधेयक के रूप में पारित करने से सरकार को राज्यसभा को दरकिनार करने का मौका मिल जाता है, जिससे संसद की द्विसदनीय प्रकृति कमज़ोर होती है।
    • किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने से राज्यसभा को केवल उसमें परिवर्तन की सिफारिश करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है तथा उसे विधेयक को संशोधित करने या अस्वीकार करने का अधिकार नहीं होता।
    • उच्च सदन के रूप में राज्यसभा कानून पर अतिरिक्त जाँच करती है। इसे दरकिनार करने से व्यापक बहस और निरीक्षण का अवसर कम हो जाता है।
  • अनुच्छेद 110 का उल्लंघन: यह निर्दिष्ट करता है कि धन विधेयक क्या होता है। ऐसी चिंताएँ हैं कि धन विधेयक के रूप में चिह्नित किये गए कुछ संशोधन इन प्रावधानों का सख्ती से पालन नहीं करते हैं।
  • अध्यक्ष का प्रमाणन: संविधान के अनुच्छेद 110 के अंतर्गत लोकसभा के अध्यक्ष को किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रामाणित करने का अधिकार है, यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है।
    • इससे इस शक्ति के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंता उत्पन्न होती है, जिससे विधायी प्रक्रियाओं को दरकिनार करने का अवसर मिल जाता है।
  • चिंता को उजागर करने वाले विशिष्ट मामले:
    • आधार अधिनियम: आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ तथा सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 को अनुच्छेद 110(1) के तहत धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिसके कारण व्यापक विवाद हुआ।
      • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जिसमें बहुमत से फैसला दिया गया कि अधिनियम का मुख्य उद्देश्य सब्सिडी और लाभ प्रदान करना था, जिसमें समेकित निधि से व्यय शामिल है तथा इसलिये इसे धन विधेयक के रूप में पारित करने के योग्य माना गया।
      • हालाँकि न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ (जो उस समय मुख्य न्यायाधीश नहीं थे) ने असहमति जताते हुए कहा कि इस मामले में धन विधेयक की राह अपनाना "संवैधानिक प्रक्रिया का दुरुपयोग" है।
    • वित्त अधिनियम, 2017: वित्त अधिनियम, 2017 में कई अधिनियमों में संशोधन शामिल थे, जिनमें सरकार को न्यायाधिकरणों के सदस्यों की सेवा शर्तों के संबंध में नियमों को अधिसूचित करने का अधिकार देना शामिल था।
      • कई याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि वित्त अधिनियम, 2017 को पूरी तरह से रद्द कर दिया जाना चाहिये, क्योंकि इसमें ऐसे प्रावधान शामिल थे जिनका अनुच्छेद 110 में सूचीबद्ध विषयों से कोई संबंध नहीं था।
      • वर्ष 2019 में रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड मामले में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने धन विधेयक पहलू को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भेज दिया था।
    • धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) संशोधन: वर्ष 2015 से धन विधेयक के रूप में पारित PMLA में संशोधनों ने प्रवर्तन निदेशालय को गिरफ्तारी और छापेमारी सहित व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं।
      • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इन संशोधनों की वैधता को बरकरार रखा, लेकिन यह सवाल कि क्या उन्हें धन विधेयक के रूप में पारित किया जाना चाहिये था, सात न्यायाधीशों की पीठ पर छोड़ दिया।
      • इन संशोधनों के माध्यम से दी गई व्यापक शक्तियों ने संभावित दुरुपयोग और विधायी जाँच को दरकिनार करने के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कीं।

वर्ष 2019 के फैसले के बाद के घटनाक्रम

  • सात न्यायाधीशों वाली पीठ (जिसका उल्लेख पहले किया गया है) ने अभी तक वैध धन विधेयक की अवधारणा से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार नहीं किया है, जिसका प्रभाव आगामी विधानों पर पड़ेगा।
  • न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों और चुनावी कानूनों से संबंधित मामलों में धन विधेयक के प्रश्न को हल करने से परहेज़ किया है तथा बड़ी पीठ के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा है।

धन विधेयकों के गलत वर्गीकरण के संभावित परिणाम क्या हैं?

  • कानूनी चुनौतियाँ: विधेयकों को धन विधेयक के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत करने से लंबी कानूनी लड़ाई हो सकती है, जिससे विधायी प्रक्रिया में अनिश्चितता बढ़ सकती है।
  • विधायी उदाहरण: यदि न्यायपालिका इसे बरकरार रखती है, तो धन विधेयक का अनुचित उपयोग भविष्य की सरकारों के लिये राज्यसभा को दरकिनार करने का एक उदाहरण स्थापित कर सकता है।
  • लोगों का विश्वास: धन विधेयकों से संबंधित विवाद विधायी प्रक्रिया और संसदीय प्रक्रियाओं की अखंडता में जनता के विश्वास को खत्म कर सकते हैं।
  • भारतीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव:
    • धन विधेयकों के इर्द-गिर्द चल रही बहस और न्यायिक समीक्षा लोकसभा तथा राज्यसभा के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने के महत्त्व को रेखांकित करती है।
    • यह सुनिश्चित करना कि महत्त्वपूर्ण कानून के पारित होने में पर्याप्त जाँच और बहस शामिल हो, विधायी पारदर्शिता तथा जवाबदेही के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • संवैधानिक प्रावधानों को बनाए रखना और उनका दुरुपयोग रोकना भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता के लिये आवश्यक है।

धन विधेयक क्या है?

  • परिचय: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा दी गई है, जिसमें कहा गया है कि यदि किसी विधेयक में केवल विशिष्ट वित्तीय मामलों से संबंधित प्रावधान हों तो उसे धन विधेयक माना जाता है। इनमें शामिल हैं:
    • कराधान संबंधी मामले: किसी भी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन या विनियमन।
    • उधार विनियमन: केंद्र सरकार द्वारा धन उधार लेने का विनियमन।
    • निधियों की अभिरक्षा: भारत की समेकित निधि (करों और उधार तथा ऋण के रूप में किये गए व्ययों के माध्यम से सरकार द्वारा प्राप्त राजस्व) या आकस्मिकता निधि (अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिये धन) का प्रबंधन।
    • निधियों का विनियोजन: समेकित निधि से धन का विनियोजन।
    • व्यय घोषणा: समेकित निधि पर लगाए गए किसी भी व्यय की घोषणा।
    • धन प्राप्ति: समेकित निधि या सार्वजनिक खातों से संबंधित धन की प्राप्ति।
    • अन्य मामले: उपरोक्त प्रावधानों से संबंधित कोई भी मामले।
  • लोकसभा अध्यक्ष का प्रमाणन: किसी विधेयक को धन विधेयक मानने का निर्णय लोकसभा अध्यक्ष के पास होता है। यह निर्णय अंतिम होता है और इस पर किसी भी न्यायालय या संसद के किसी भी सदन द्वारा सवाल नहीं उठाया जा सकता है तथा न ही राष्ट्रपति द्वारा इसे चुनौती दी जा सकती है।
    • प्रमाणन के बाद अध्यक्ष विधेयक को धन विधेयक के रूप में अनुमोदित करते हैं, जब इसे सिफारिशों के लिये राज्यसभा को भेजा जाता है।
  • विधायी प्रक्रिया: धन विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश किये जा सकते हैं और राष्ट्रपति द्वारा अनुशंसित किये जाने होते हैं। उन्हें सरकारी विधेयक माना जाता है और उन्हें केवल मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
    • लोकसभा में पारित होने के पश्चात् विधेयक को राज्यसभा में भेजा जाता है, जिसके पास सीमित शक्तियाँ होती हैं, जैसे यह धन विधेयक को अस्वीकार या संशोधित नहीं कर सकता है अपितु केवल अनुशंसाएँ कर सकता है और चाहे वह अनुशंसाएँ करे या नहीं 14 दिनों के भीतर विधेयक को वापस भेजा जाना होता है।
    • लोकसभा राज्यसभा की अनुशंसाओं को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। यदि लोकसभा किसी अनुशंसा को स्वीकार करती है तो विधेयक को संशोधित रूप में पारित माना जाता है; यदि वह उन्हें अस्वीकार करती है, तो यह अपने मूल रूप में पारित होता है।
  • राष्ट्रपति की स्वीकृति: जब धन विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो वह या तो स्वीकृति दे सकता है या उसे विधारित (रोकना) रख सकता है किंतु पुनर्विचार के लिये वापस नहीं कर सकता।
    • प्रायः राष्ट्रपति धन विधेयकों को स्वीकृति दे देता है क्योंकि वे उसकी पूर्व अनुमति से प्रस्तुत किये जाते हैं।

नोट: किसी विधेयक को केवल इस आधार पर धन विधेयक नहीं घोषित किया जा सकता क्योंकि इसमें ज़ुर्माना या आर्थिक दंड अधिरोपित करना, लाइसेंस या सेवाओं के लिये शुल्क की मांग या भुगतान तथा स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये कराधान शामिल है।

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दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. प्रतिविरोधात्मक संशोधनों को पारित करने हेतु सरकार द्वारा उन्हें धन विधेयक के रूप में घोषित करने से जुड़ी चिंताओं का मूल्यांकन कीजिये। ये प्रावधान किस प्रकार विधायी जवाबदेहिता को सुनिश्चित या कमज़ोर करते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. धन विधेयक के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2018)

(a) किसी बिल (विधेयक) को धन विधेयक तब माना जाएगा जब इसमें केवल किसी कर के अधिरोपण, उन्मूलन, माफी, परिवर्तन या विनियमन से संबंधित प्रावधान हों।
(b) धन विधेयक में भारत की संचित निधि एवं भारत की आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा से संबंधित उपबंध होते है।
(c) धन विधेयक भारत की आकस्मिकता निधि से धन के विनियोजन से संबंधित होता है।
(d) धन विधेयक भारत सरकार द्वारा धन के उधार लेने या कोई प्रत्याभूति देने के विनियमन से संबंधित होता है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. यदि किसी धन विधेयक में राज्य सभा द्वारा पर्याप्त संशोधन किया जाए तो क्या होगा? (2013)

(a) लोकसभा अभी भी राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार करते हुए विधेयक पर आगे बढ़ सकती है।
(b) लोकसभा इस विधेयक पर आगे विचार नहीं कर सकती।
(c) लोकसभा इस विधेयक को पुनर्विचार के लिये राज्यसभा में भेज सकती है।
(d) राष्ट्रपति विधेयक पारित करने के लिये संयुक्त बैठक बुला सकते हैं।

उत्तर: (a)


भारतीय राजनीति

संसदीय लोकतंत्र में शैडो कैबिनेट

प्रिलिम्स के लिये:

शैडो कैबिनेट, विपक्ष के नेता (LoP), किचन कैबिनेट, संसद 

मेन्स के लिये:

भारत में शैडो कैबिनेट, नियंत्रण एवं संतुलन 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विपक्ष के नेता (LoP) और बीजू जनता दल (BJD) के अध्यक्ष ने ओडिशा विधानसभा के 50 बीजेडी सदस्यों (विधायकों) को शामिल करते हुए एक 'शैडो कैबिनेट' का गठन किया है।

  • यह घटनाक्रम राज्य में भारतीय जनता पार्टी की हालिया चुनावी सफलताओं के मद्देनज़र हुआ है, जो विधायी गतिशीलता (Legislative Dynamics) में महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है।

शैडो कैबिनेट क्या है?

  • परिचय: शैडो कैबिनेट में विपक्षी विधायक/सांसद शामिल होते हैं, जो सरकार के मंत्रियों के विभागों को दर्शाते हैं। विपक्ष के नेता के नेतृत्व में शैडो कैबिनेट विभिन्न विभागों और मंत्रालयों में सत्तारूढ़ सरकार के कार्यों की निगरानी तथा आलोचना करता है।
    • विश्व भर के संसदीय लोकतंत्रों में, शैडो कैबिनेट की अवधारणा शासन और विपक्ष की गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • वेस्टमिंस्टर प्रणाली से उत्पन्न और यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा तथा न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में प्रमुख रूप से उपयोग की जाने वाली शैडो कैबिनेट की अवधारणा विपक्षी सांसदों को सत्तारूढ़ सरकार की नीतियों की जाँच करने तथा उन्हें चुनौती देने के लिये एक संरचित ढाँचा प्रदान करती है।
  • लाभ:
    • विशिष्ट मंत्रालयों की छाया में काम करके, सांसदों को गहन ज्ञान और विशेषज्ञता प्राप्त होती है, जिससे वे संसदीय परिचर्चाओं के दौरान सरकार की नीतियों को प्रभावी ढंग से चुनौती दे पाते हैं।
    • यह विपक्षी सांसदों को नेतृत्व का अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है, जो उन्हें शैडो कैबिनेट में उनके प्रदर्शन के आधार पर भविष्य में मंत्री की भूमिकाओं के लिये तैयार करता है।
    • कार्यकारी कार्यों की सुदृढ़ जाँच सुनिश्चित करके और सार्वजनिक नीतियों पर सूचित परिचर्चाओं (Informed Debates) को बढ़ावा देकर संसदीय लोकतंत्र को मज़बूत करता है।
      • सरकारी नीतियों के लिये एक विश्वसनीय विकल्प प्रस्तुत करके, शैडो कैबिनेट यह सुनिश्चित करता है कि निर्णयों पर पूर्ण परिचर्चा और जाँच की जाए, जिससे जल्दबाज़ी या मनमाने विधायी कार्यों को रोका जा सके।
  • चुनौतियाँ और आलोचनाएँ:
    • भारत की बहुदलीय प्रणाली में, अलग-अलग दलों की प्राथमिकताओं और विचारधाराओं के कारण एकीकृत शैडो कैबिनेट का समन्वय करने से चुनौतियों का सामना करता है।
    • आलोचकों का तर्क है कि विशिष्ट मंत्रालयों पर ध्यान केंद्रित करने से सांसदों की शासन संबंधी मुद्दों की समग्र समझ सीमित हो सकती है। हालाँकि समर्थकों का यह भी कहना है कि शैडो कैबिनेट में समय-समय पर फेरबदल करके इस चिंता को दूर किया जा सकता है।
    • वैधानिक पद होने के बावजूद, विपक्ष के नेता की मान्यता और शैडो कैबिनेट का संस्थागतकरण अलग-अलग हो सकता है, जिससे विभिन्न संसदीय सत्रों में उनकी प्रभावशीलता पर प्रभाव पड़  सकता है।
  • भारतीय लोकतंत्र के लिये संभावित निहितार्थ:
    • सभी विधायी कार्रवाइयों पर गहन वाद-विवाद और उनका न्यायोचित होना सुनिश्चित करते हुए शैडो कैबिनेट को संस्थागत रूप देने से संसद के कामकाज का निगरानी तंत्र सुदृढ़ हो सकता है।
      • नीतियों के लिये सुसंगत विकल्प प्रस्तुत कर शैडो कैबिनेट संसदीय कार्यवाही में जनता का विश्वास बढ़ा सकता है और विपक्षी दल को शासन के विश्वसनीय विकल्प के रूप में प्रदर्शित कर सकता है।
    • व्यक्तित्व-संचालित राजनीति से नीति-केंद्रित बहसों की ओर बदलाव को प्रोत्साहित करते हुए, शैडो कैबिनेट शासन और सार्वजनिक नीति पर अधिक व्यापक चर्चा को बढ़ावा देता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण:
    • यूनाइटेड किंगडम: शैडो कैबिनेट को नेता प्रतिपक्ष (विपक्ष का नेता) द्वारा सरकार के मंत्रिमंडल को प्रतिबिंबित करने के लिये नियुक्त किया जाता है।
      • इसके अंतर्गत सत्तारूढ़ विपक्ष को एक वैकल्पिक सरकार के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रत्येक सदस्य अपनी पार्टी के एक विशिष्ट नीति क्षेत्र की अध्यक्षता करता है और मंत्रिमंडल में अपने समकक्ष से सवाल करता है तथा उन्हें चुनौती देता है।
    • कनाडा: यहाँ विपक्षी दल शैडो कैबिनेट का गठन करते हैं जो कि विपक्षी दल के सांसदों का समूह होता है जिन्हें आलोचक कहा जाता है जो सत्तारूढ़ दल के कैबिनेट मंत्रियों के समान विशेषज्ञता के क्षेत्रों के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
      • उन्हें एक दूसरे की प्रतिबिंब के रूप में बैठाना यह स्मरण कराता है कि विपक्षी दल अगली बार सत्तारूढ़ दल का स्थान ले सकता है।

भारत में शैडो कैबिनेट के साथ प्रयोग

  • महाराष्ट्र, 2005 भाजपा-शिवसेना शैडो कैबिनेट:
    • इसे काॅन्ग्रेस-NCP सरकार के कामकाज की आलोचना करने हेतु गठित किया गया था।
    • संरचना: इसमें भाजपा और शिवसेना के प्रमुख विपक्षी नेताओं को शामिल किया गया जिन्होंने अपने संबंधित सरकारी मंत्रालयों के कामकाज की निगरानी की।
    • प्रभाव: इसनें राज्य विधानसभा में विपक्षी दल के कामकाज की संरचित जाँच और नीतिगत आलोचना प्रदान की।
  • मध्य प्रदेश, 2014 काॅन्ग्रेस शैडो कैबिनेट:
    • संरचना: इसमें वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेताओं और विधायकों को शामिल किया गया जिन्होंने अपने संबंधित सरकारी मंत्रालयों के कामकाज की निगरानी की।
    • परिणाम: राज्य विधानमंडल की कार्यवाही में विपक्ष की पारदर्शिता और जवाबदेहिता बढ़ी।
  • गोवा, 2015 NGO अध्यक्षता वाली शैडो कैबिनेट:
    • यह जेन नेक्स्ट, एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा गठित किया गया था। आधिकारिक विपक्षी दल न होने के बावजूद भी उक्त NGO ने सत्तारूढ़ सरकार की नीतियों का विश्लेषण किया।
    • इसने शासन के मुद्दों की स्वतंत्र जाँच की और सार्वजनिक चर्चा की।
  • केरल, 2018 सिविल सोसायटी शैडो कैबिनेट:
    • यह सत्तारूढ़ पक्ष की नीतियों की जाँच करने हेतु सिविल सोसायटी के सदस्यों की अध्यक्षता में बनाई गई थी। इसमें सामाजिक कार्यकर्त्ता और विशेषज्ञ शामिल थे, जो विपक्षी दल UDF से संबद्ध नहीं थे।
    • प्रभाव: इसने सरकारी नीतियों और पहलों पर महत्त्वपूर्ण विश्लेषण तथा वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किये।

नोट: 'आंतरिक कैबिनेट' या 'किचन कैबिनेट' का तात्पर्य एक लघु अनौपचारिक समूह से है जिसमें प्रधानमंत्री और दो से चार विश्वस्त सहयोगी शामिल होते हैं, जिन्हें सत्ता के वास्तविक केंद्र की संज्ञा दी जा सकती है।

आगे की राह 

  • औपचारीकरण: हालाँकि विधि द्वारा शैडो कैबिनेट का औपचारीकरण करना अनिवार्य नहीं है किंतु संसद अपने नियमों में संशोधन करके विपक्ष के नेता को औपचारिक रूप से मान्यता दे सकती है और उन्हें शैडो कैबिनेट नियुक्त करने का अधिकार दे सकती है।
    • इससे विपक्ष का दर्जा बढ़ेगा और संचालन के लिये एक रूपरेखा प्राप्त होगी।
    • दीर्घावधि में विपक्ष के नेता और शैडो कैबिनेट को औपचारिक रूप से मान्यता देने के लिये संविधान में संशोधन करने पर विचार किया जाना चाहिये।
  • रिसर्च फंडिंग: संसद विशेष रूप से शैडो कैबिनेट के लिये अनुसंधान कर्मचारियों और संसाधनों के लिये बजट आवंटित कर सकती है। इससे उन्हें सरकारी नीतियों का अधिक प्रभावी ढंग से विश्लेषण करने और सूचित विकल्प विकसित करने का अधिकार मिलेगा।
  • छाया मंत्रियों का चयन: विपक्ष के नेता को प्रासंगिक नीति क्षेत्रों में उनकी विशेषज्ञता, अनुभव और योग्यता के आधार पर छाया मंत्रियों की नियुक्ति करनी चाहिये। इससे यह सुनिश्चित होता है कि शैडो कैबिनेट में ऐसे व्यक्ति शामिल हों जो सूचित और रचनात्मक आलोचना करने में सक्षम हों।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. छाया मंत्रिमंडल (Shadow Cabinet) की अवधारणा और संसदीय लोकतंत्र में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये। यह सत्तारूढ़ सरकार के मंत्रिमंडल के विकल्प के रूप में कैसे काम करता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सचिवालय मंत्रिमंडल का निम्न में से क्या है? (2014)

  1. मंत्रिमंडल बैठक के लिये कार्यसूची तैयार करना।
  2. मंत्रिमंडल समितियों को साचिविक सहायता।
  3. मंत्रालयों को वित्तीय संसाधनों का आवंटन।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021)


जैव विविधता और पर्यावरण

UNEP फोरसाइट रिपोर्ट 2024

प्रिलिम्स के लिये:

UNEP फोरसाइट रिपोर्ट 2024, संयुक्त राष्ट्र SDG लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र, ग्लोबल वार्मिंग, जबरन विस्थापन, जलवायु परिवर्तन, UNEP, UNEA। 

मेन्स के लिये:

UNEP फोरसाइट रिपोर्ट 2024, प्रमुख विशेषताएँ, महत्त्व आदि।

स्रोत: यू.एन.ई.पी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) ने "नेविगेटिंग न्यू होराइजन्स: ए ग्लोबल फोरसाइट रिपोर्ट ऑन प्लेनेटरी हेल्थ एंड ह्यूमन वेलबीइंग, 2024" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

  • रिपोर्ट में विश्व से उन उभरती चुनौतियों से निपटने का आग्रह किया गया है जो ग्रह के स्वास्थ्य को बाधित कर सकती हैं। इसमें जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता हानि, प्रकृति हानि और प्रदूषण के तीन ग्रहों के संकट को बढ़ाने वाले 8 महत्त्वपूर्ण वैश्विक बदलावों पर प्रकाश डाला गया है।

रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG) लक्ष्यों में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं: नवीनतम 2023 SDG प्रगति रिपोर्ट के अनुसार, 169 SDG लक्ष्यों में से 85% लक्ष्य पटरी से उतर गए हैं और 37% लक्ष्यों में कोई प्रगति नहीं हुई है या वर्ष 2015 के बाद से इनमें गिरावट आई है।
    • SDG 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता), एसडीजी 13 (जलवायु कार्रवाई), SDG 14 (पानी के नीचे जीवन) और SDG 15 (भूमि पर जीवन) के लक्ष्यों में से 42.85% या तो स्थिर हैं या पीछे जा रहे हैं।
    • 60% पर्यावरणीय संकेतकों की स्थिति या तो खराब हो रही है या अस्पष्ट बनी हुई है।

SDG Progress

  • 8 बदलाव, परिवर्तन के 18 संकेत: UNEP रिपोर्ट में 8 महत्त्वपूर्ण बदलावों की पहचान की गई है, जिनमें परिवर्तन के 18 संभावित संकेत हैं।
    • ये संकेत स्वाभाविक रूप से अच्छे या बुरे नहीं हैं, बल्कि ये संभावित भविष्य के घटनाक्रमों के शुरुआती संकेत हैं और यदि ऐसा होता है तो भविष्य पर इनका बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।

  • मानव और पर्यावरण के बीच तेज़ी से बदलते संबंध: अनुमान है कि वर्ष 2050 तक मानवीय गतिविधियों के कारण 90% से अधिक भूमि प्रभावित होगी। 46% तक प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं।
    • अनुमान है कि वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान 2.1-3.9°C तक बढ़ जाएगा।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधनों से, इन परिवर्तनों का कारण बन रहा है, तथा अधिकांश उत्सर्जन के लिये विकसित देश ज़िम्मेदार हैं।
  • महत्त्वपूर्ण संसाधनों की कमी और प्रतिस्पर्द्धा: महत्त्वपूर्ण संसाधनों के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को नया रूप दे रही है। मांग आपूर्ति से अधिक है, जिससे अस्थिरता और संभावित संघर्ष बढ़ रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ भंडार केंद्रित हैं।
    • सबसे बुनियादी संसाधन, जल और भोजन, जलवायु परिवर्तन तथा असंवहनीय प्रबंधन के कारण बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं,जिससे असुरक्षित आबादी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
    • शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिये वर्ष 2050 में महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग में अनुमानित वृद्धि नीचे दी गई है:

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल रूपांतरण और प्रौद्योगिकी: डिजिटल प्रौद्योगिकियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की तीव्र प्रगति के प्रमुख चालकों में मोबाइल डिवाइस, इंटरनेट का उपयोग तथा AI का विकास शामिल है जो प्रगति की संभावनाएँ प्रदान करते हैं, उनके पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार करने की आवश्यकता है।
    • दुनिया भर में 8.89 बिलियन से ज़्यादा मोबाइल सब्सक्रिप्शन हैं, जिनमें से लगभग 5.6 बिलियन उपयोगकर्त्ताओं के पास डिवाइस है। अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2023 में दुनिया की 67.4% आबादी इंटरनेट उपयोगकर्त्ता थी।

  • संघर्ष का एक नया युग: रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि AI-आधारित और स्वायत्त हथियार, मानवीय निगरानी के बिना, 4-6 वर्षों में बड़ी वैश्विक गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं।
    • विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इस तरह के व्यवधानों के होने की संभावना बहुत अधिक (59%) है, जिसका प्रभाव बहुत अधिक माना जाता है।
    • उदाहरणों में रूस-यूक्रेन युद्ध में रूसी लक्ष्यों पर हमला करने के लिये यूक्रेनी सेना द्वारा AI से लैस ड्रोन का उपयोग करना और AI-नियंत्रित जैव हथियारों का जोखिम शामिल है।
  • सामूहिक बलपूर्वक विस्थापन: रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक जनसंख्या का 1.5% हिस्सा जबरन विस्थापित हुआ है, जो एक दशक पहले की संख्या से लगभग दोगुना है।
    • जलवायु परिवर्तन इसका एक प्रमुख कारण है, जिसमें जंगल में आग लगना, बाढ़, खराब वायु गुणवत्ता और असहनीय गर्मी जैसी चरम स्थितियाँ महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान देती हैं।
    • अफ्रीका, मध्य अमेरिका, प्रशांत द्वीप समूह और दक्षिण एशिया में जलवायु के कारण होने वाले प्रवास तथा विस्थापन का जोखिम अधिक है।
    • यदि कोई शमन नहीं होता है, तो वर्ष 2070 तक 3 बिलियन लोग उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों से पृथक हो सकते हैं और वर्ष 2050 तक पर्यावरणीय प्रवासियों की सँख्या 25 मिलियन से 1 बिलियन तक हो सकती है।
    • विगत 20 वर्षों में आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों की संख्या में 340% की वृद्धि हुई है, जलवायु संबंधी आपदाएँ अब संघर्षों की तुलना में अधिक लोगों को विस्थापित कर रही हैं।

Projected growth

  • बढ़ती असमानताएँ: रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वैश्विक असमानता बढ़ती जा रही है, जहाँ शीर्ष 10% लोगों के पास 75% से अधिक संपत्ति है, जबकि निम्न 50% लोगों के पास केवल 2% संपत्ति है।
    • कई देशों में असमानता शिक्षा, नौकरियों और सेवाओं तक असमान पहुँच के साथ-साथ वैश्वीकरण से प्रेरित है।
    • धन संबंधी असमानता पारिस्थितिक असमानताओं को भी जन्म देती है, क्योंकि अमीर लोग जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं, जबकि गरीब लोग सबसे अधिक पर्यावरणीय क्षति का सामना करते हैं।
  • गलत सूचना, घटता विश्वास और ध्रुवीकरण: विज्ञान एवं सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास की कमी ने साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण और लोकतांत्रिक शासन को कमज़ोर कर दिया है।
    • कथित विफलताओं और 'फर्ज़ी खबरों' से विश्वास में होने वाली गिरावट जलवायु संकट जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिये प्रभावी नीतियों को लागू करना कठिन बना देती है।

UNEP द्वारा भविष्य का दृष्टिकोण और सिफारिशें क्या हैं?

  • हितधारकों की भागीदारी को व्यापक बनाना: महिलाओं, स्वदेशी समूहों और युवा लोगों सहित विविध प्रकार के हितधारकों को सक्रिय रूप से शामिल करना, सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ाने, गलत सूचनाओं से निपटने तथा विश्वास का निर्माण करने के लिये तकनीकी एवं सामाजिक नवाचारों का उपयोग करना।
  • युवा लोगों के लिये सशक्त आवाज़: यह सुनिश्चित करें कि युवाओं की सभी शासन स्तरों पर निर्णय लेने में महत्त्वपूर्ण भूमिका हो ताकि अंतर और अंतर-पीढ़ीगत समानता (Intra- and inter-generational equity) प्राप्त हो सके।
  • GDP से परे प्रगति को पुनः परिभाषित करना: सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में निवेश का मार्गदर्शन करने के लिये समावेशी धन सूचकांक और बहुआयामी भेद्यता सूचकांक जैसे मानव एवं पर्यावरणीय कल्याण के व्यापक संकेतकों को शामिल करना।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण: तीव्र और अनुकूल शासन को बढ़ावा देना जो समुदायों को प्रयोग करने, नवाचार करने तथा ज्ञान साझा करने के लिये सशक्त बनाता है, यह लचीले दीर्घकालिक पर्यावरणीय लक्ष्यों को भी निर्धारित करता है।
  • डेटा-संचालित निर्णय लेना: स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक पर्यावरण निगरानी को बढ़ाते हुए, विभिन्न क्षेत्रों और पैमानों पर साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सूचित करने के लिये डेटा, निगरानी और ज्ञान-साझाकरण प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना।
  • संधारणीय विकास: समानता, संधारणीयता और स्थिति स्थापकता के साझा मूल्यों द्वारा निर्देशित, पर्यावरणीय विषयों को दृष्टिगत रखते हुए विकास करने के लिये विश्व की अर्थव्यवस्थाओं तथा समुदायों में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है एवं मनुष्यों और ग्रह को प्राथमिकता देने के लिये व्यवसायों, बाज़ारों व शासन की भूमिका में सुधार किया जाना चाहिये।

UNEP क्या है?

  • 05 जून, 1972 को स्थापित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
  • इसका प्राथमिक कार्य वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करना, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक अधिवक्ता के रूप में कार्य करना है।
  • प्रमुख रिपोर्ट: एमिशन गैप रिपोर्ट, अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, ग्लोबल एन्वायरनमेंट आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इनटू हेल्थी प्लेनेट रिपोर्ट।
  • प्रमुख अभियान: बीट पॉल्यूशन’, ‘UN75’, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।
  • मुख्यालय: नैरोबी, केन्या।

 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. विकसित होते मानव-पर्यावरण संबंधों ने वैश्विक सतत् विकास लक्ष्य प्रगति को किस प्रकार प्रभावित किया है? वैश्विक प्रगति के लिये इस संबंध के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये तथा एक सतत् भविष्य के लिये नवीन रणनीतियाँ प्रस्तुत कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. यू.एन.ई.पी. द्वारा समर्थित ‘कॉमन कार्बन मेट्रिक’को किसलिये विकसित किया गया है? (2021)

(a) संपूर्ण विश्व में निर्माण कार्यों के कार्बन पदचिह्न का आकलन करने के लिये।
(b) कार्बन उत्सर्जन व्यापार में विश्व भर में वाणिज्यिक कृषि संस्थाओं के प्रवेश हेतु अधिकार प्रदान करने के लिये।
(c) सरकारों को अपने देशों द्वारा किये गए समग्र कार्बन पदचिह्न के आकलन हेतु अधिकार देने के लिये।
(d) किसी इकाई समय (यूनिट टाइम) में विश्व में जीवाश्म ईंधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले समग्र कार्बन पदचिह्न के आकलन के लिये।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)


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