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डेली न्यूज़

  • 17 Dec, 2022
  • 34 min read
शासन व्यवस्था

‘ प्रधानमंत्री विरासत का संवर्द्धन’ योजना

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री विरासत का संवर्द्धन योजना, प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, कौशल विकास योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री कौशल को काम कार्यक्रम (Pradhan Mantri Kaushal Ko Kaam Karyakram- PMKKK) को प्रधानमंत्री विरासत का संवर्द्धन (PM VIKAS) योजना के रूप में नया नाम दिया गया है। 

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: 
    • यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जो देश भर में अल्पसंख्यक और कारीगर समुदायों के कौशल, उद्यमिता एवं नेतृत्त्व प्रशिक्षण आवश्यकताओं पर केंद्रित है।
    • यह एक एकीकृत योजना है जो अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की पाँच पूर्ववर्ती योजनाओं को जोड़ती है:
      • सीखो और कमाओ:
        • यह अल्पसंख्यकों के लिये प्लेसमेंट से जुड़ी एक कौशल विकास योजना है, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक युवाओं के कौशल को उनकी योग्यता, वर्तमान आर्थिक रुझान और बाज़ार की क्षमता के आधार पर विभिन्न आधुनिक/पारंपरिक कौशल में उन्नत करना है।
      • ‘उस्ताद’ (विकास के लिये पारंपरिक कला/शिल्प में कौशल और प्रशिक्षण उन्नयन) योजना : इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों की पारंपरिक कला और शिल्प की समृद्ध विरासत को बढ़ावा देना एवं संरक्षित करना है।
      • हमारी धरोहर: यह भारत के अल्पसंख्यक समुदायों की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिये तैयार किया गया है। 
      • नई रोशनी: यह 18 से 65 वर्ष की आयु वर्ग के अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं के लिये एक नेतृत्त्व विकास कार्यक्रम है। इसे वर्ष 2012-13 में शुरू किया गया था।
      • नई मंजिल: इस योजना का उद्देश्य 17-35 वर्ष की आयु के छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित युवाओं (पुरुष और महिला दोनों) को लाभान्वित करना है, जिनके पास औपचारिक स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र नहीं है।
      • इस योजना को 15वें वित्त आयोग की अवधि के लिये कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया है। 
  • घटक: 
    • कौशल और प्रशिक्षण
    • नेतृत्त्व और उद्यमिता
    • शिक्षा
    • बुनियादी ढाँचे का विकास
  • उद्देश्य:
    • पीएम विकास का उद्देश्य कौशल विकास, शिक्षा, महिला नेतृत्व और उद्यमिता के घटकों का उपयोग करके अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से कारीगर समुदायों की आजीविका में सुधार करना है।  
    • ये घटक योजना के उद्देश्य हेतु एक-दूसरे के पूरक हैं ताकि लाभार्थियों की आय में वृद्धि की जा सके और क्रेडिट तथा बाज़ार लिंकेज की सुविधा प्रदान की जा सके। 

अल्पसंख्यक से संबंधित अन्य योजनाएँ: 

  • प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम: 
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिये विद्यालय, महाविद्यालय, पॉलिटेक्निक, लड़कियों के छात्रावास, आईटीआई, कौशल विकास केंद्र आदि जैसी सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं को विकसित करना है।
  • बेगम हज़रत महल बालिका छात्रवृत्ति:
    • छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित आर्थिक रूप से पिछड़ी लड़कियों के लिये छात्रवृत्ति की सुविधा।
  • गरीब नवाज रोज़गार योजना:
    • अल्पसंख्यक युवाओं को कौशल आधारित रोज़गार के लिये सक्षम बनाने हेतु अल्पावधि रोज़गार उन्मुख कौशल विकास पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिये इस योजना को शुरू किया गया था। 
  • हुनर हाट: 
    • यह कारीगरों, शिल्पकारों और पारंपरिक पाक विशेषज्ञों की कला को विकसित कर उन्हें बाज़ार एवं रोज़गार के अवसर प्रदान करने के लिये लॉन्च किया गया। 

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

वायु प्रदूषण पर विश्व बैंक की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, विश्व बैंक

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व बैंक ने 'स्वच्छ वायु के लिये प्रयास: दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य' नामक एक रिपोर्ट जारी की।

  • रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में लागू की जा रही नीतियों (अधिकतर वर्ष 2018 से) के साथ बने रहने से परिणाम तो मिलेंगे लेकिन वाँछित स्तर तक नहीं।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • एयरशेड (Airsheds): 
    • दक्षिण एशिया में छह बड़े एयरशेड मौज़ूद हैं, जहाँ एक की वायु गुणवत्ता दूसरे में वायु की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। वे हैं:
      • पश्चिम/मध्य भारत-गंगा का मैदान (IGP) जिसमें पंजाब (पाकिस्तान), पंजाब (भारत), हरियाणा, राजस्थान का हिस्सा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
      • मध्य/पूर्वी IGP: बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बांग्लादेश
      • मध्य भारत: ओडिशा/छत्तीसगढ़
      • मध्य भारत: पूर्वी गुजरात/पश्चिमी महाराष्ट्र
      • उत्तरी/मध्य सिंधु नदी का मैदान: पाकिस्तान, अफगानिस्तान का हिस्सा
      • दक्षिणी सिंधु का मैदान और आगे पश्चिम: दक्षिण पाकिस्तान, पश्चिमी अफगानिस्तान पूर्वी ईरान में फैला हुआ है।
    • जब वायु की दिशा मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर थी तो भारतीय पंजाब में वायु प्रदूषण का 30% पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की ओर से आया तथा बांग्लादेश के सबसे बड़े शहरों (ढाका, चटगाँव और खुलना) में वायु प्रदूषण का औसतन 30% भारत में उत्पन्न हुआ था। कुछ वर्षों में सीमाओं के पार दूसरी दिशा में पर्याप्त प्रदूषण प्रवाहित हुआ। 
  • PM 2.5 के संपर्क में: 
    • वर्तमान में 60% से अधिक दक्षिण एशियाई प्रतिवर्ष PM2.5 के औसत 35 µg/m3 के संपर्क में हैं।
    • IGP के कुछ हिस्सों में यह 100 µg/m3 तक बढ़ गया है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित 5 µg/m3 की ऊपरी सीमा से लगभग 20 गुना है।
  • वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत:
    • बड़े उद्योग, बिजली संयंत्र और वाहन वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं, लेकिन दक्षिण एशिया में इनके अतिरिक्त ऐसे और कई स्रोत प्रदूषण में पर्याप्त योगदान देते हैं।
    • इनमें खाना पकाने और गर्म करने के लिये ठोस ईंधन का दहन, ईंट भट्टों जैसे छोटे उद्योगों से उत्सर्जन, नगरपालिका और कृषि अपशिष्ट को जलाना तथा दाह संस्कार शामिल हैं।

सुझाव:

  • एयरशेड को कम करना:
    • विभिन्न सरकारी उपाय कण पदार्थ में कमी ला सकते हैं, लेकिन एयरशेड में महत्त्वपूर्ण कमी के लिये एयरशेड में समन्वित नीतियों की आवश्यकता है।
      • दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों में वर्ष 2030 तक सभी वायु प्रदूषण प्रबंधन उपायों को पूरी तरह से लागू किये जाने के बावजूद दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र 35 ग्राम/एम3 से नीचे प्रदूषक जोखिम को नियंत्रित नहीं कर पाएगा।
      • हालाँकि यदि दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों ने भी सभी संभव उपायों को अपनाया तो यह प्रदूषण संबंधी आँकड़े में कमी लाने में मदद कर सकता है। 
  • नज़रिये में बदलाव: 
    • भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों को वायु गुणवत्ता में सुधार लाने और प्रदूषकों को WHO द्वारा स्वीकार्य स्तरों तक कम करने के लिये अपने दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है।
  • समन्वय की आवश्यकता:
    • वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये न केवल इसके विशिष्ट स्रोतों से निपटने की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के बीच घनिष्ठ समन्वय की भी आवश्यकता है।
    • क्षेत्रीय सहयोग लागत प्रभावी संयुक्त रणनीतियों को लागू करने में मदद कर सकता है जो वायु गुणवत्ता की अन्योन्याश्रित प्रकृति से संबंधित है।
    • एयरशेड के बीच पूर्ण समन्वय की आवश्यकता वाले इस सबसे किफायती कदम से दक्षिण एशिया में PM 2.5 का औसत जोखिम 27.8 करोड़ डॉलर प्रति μg/m3 तक कम हो जाएगा और सालाना 7,50,000 से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकेगी।

एयरशेड:

  • विश्व बैंक एयरशेड को सामान्य भौगोलिक क्षेत्र के रूप में परिभाषित करता है जहाँ प्रदूषक फँस जाते हैं, जिससे सभी के लिये समान वायु गुणवत्ता का निर्माण होता है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु भारत की पहलें:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक के मूल्य की गणना में सामान्यतः निम्नलिखित में से किस वायुमंडलीय गैस को ध्यान में रखा जाता है? (2016)

  1. कार्बन डाइऑक्साइड 
  2. कार्बन मोनोऑक्साइड 
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड 
  4. सल्फर डाइऑक्साइड 
  5. मीथेन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5
(d) 1,2,3,4 और 5

उत्तर: (b)


प्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (AQGs) के प्रमुख बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से यह किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है?  (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

भारतीय फुटवियर और चमड़ा विकास

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय फुटवियर और चमड़ा विकास कार्यक्रम योजना

मेन्स के लिये:

चमड़ा उद्योग, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने 31 मार्च, 2026 या अगली समीक्षा तक 'भारतीय फुटवियर और चमड़ा विकास कार्यक्रम (Indian Footwear and Leather Development Programme- IFLDP)' योजना को जारी रखने की मंज़ूरी दी है।

  • IFLDP को पूर्ववर्ती IFLADP (भारतीय फुटवियर, चमड़ा और सहायक उपकरण विकास कार्यक्रम) की निरंतरता के रूप में अनुमोदित किया गया था

भारतीय फुटवियर और चमड़ा विकास कार्यक्रम (IFLDP): 

  • परिचय: 
    • यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसका उद्देश्य चमड़ा क्षेत्र के लिये बुनियादी ढाँचे का विकास करना, चमड़ा क्षेत्र की विशिष्ट पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करना, अतिरिक्त निवेश की सुविधा, रोज़गार सृजन और उत्पादन में वृद्धि करना है।
    • इसे वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • उप-योजनाएँ: 
    • सतत् प्रौद्योगिकी और पर्यावरण संवर्द्धन (STEP)
    • चमड़ा क्षेत्र का एकीकृत विकास (IDLS)
    • मेगा लेदर फुटवियर और एक्सेसरीज़ क्लस्टर डेवलपमेंट (MLFACD)
    • संस्थागत सुविधाओं की स्थापना (EIF)
    • फुटवियर और चमड़ा क्षेत्र में भारतीय ब्रांडों का ब्रांड प्रचार
    • फुटवियर और चमड़ा क्षेत्र में डिज़ाइन स्टूडियो का विका

तत्कालीन IFLDP का प्रभाव: 

  • यह कार्यक्रम विशेष रूप से महिलाओं के लिये गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन, कौशल विकास, अच्छे काम, उद्योग को पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाने और एक स्थायी उत्पादन प्रणाली को बढ़ावा देने हेतु लक्षित है।
  • देश भर में फैले चमड़े के उत्पादन से संबंधित क्षेत्रों ने सतत् विकास लक्ष्यों में योगदान देकर लैंगिक समानता, गरीबी में कमी, क्षेत्र-विशिष्ट कौशल/शिक्षा के क्षेत्र में लाभान्वित किया है।
  • अन्य राष्ट्रीय विकास योजनाएँ (NDPs) जैसे कि आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन, अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, बुनियादी अवसंरचना विकास, सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा तथा अन्य पर्यावरणीय लाभ IFLAD कार्यक्रम के माध्यम से अच्छी तरह से प्रदान किये जाते हैं।

भारत के चमड़ा उद्योग की वर्तमान स्थिति: 

  • भारत में चमड़ा उद्योग की हिस्सेदारी वैश्विक चमड़ा उत्पादन का लगभग 13% है और यहाँ लगभग 3 बिलियन वर्ग फीट चमड़े का वार्षिक उत्पादन होता है।
  • यह उद्योग उच्च निर्यात आय में अपनी निरंतरता के लिये जाना जाता है और यह देश के लिये शीर्ष 10 विदेशी मुद्रा अर्जकों में से एक है।
  • भारत में चमड़े संबंधी कच्चे माल की प्रचुरता है और इसका कारण है कि भारत में विश्व के 20% मवेशी और भैंस तथा 11% बकरी और भेड़ की आबादी है।
  • चमड़ा उद्योग एक रोज़गार सघन उद्योग है जो 4 मिलियन से अधिक लोगों को रोगार प्रदान करता है, जिनमें से अधिकांश समाज के कमज़ोर वर्गों से हैं।
    • लगभग 30% हिस्सेदारी के साथ चमड़ा उत्पाद उद्योग में महिला रोज़गार प्रमुख है।
    • भारत के चमड़ा उद्योग में 35 वर्ष से कम आयु के 55% कार्यबल के साथ सबसे कम उम्र का कार्यबल है।
  • वर्ष 2022 तक भारत दुनिया में जूते और चमड़े के कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, चमड़े के कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक और चमड़े की वस्तु एवं एक्सेसरीज़ का पाँचवाँ सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • भारत में चमड़े और जूते के उत्पादों के प्रमुख उत्पादन केंद्र तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में स्थित हैं।
  • भारतीय चमड़ा और फुटवियर उत्पादों के प्रमुख बाज़ार अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली, फ्राँस, स्पेन, नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, हॉन्गकॉन्ग, बेल्जियम और पोलैंड हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से चमड़ा और चमड़े के उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक है तथा अप्रैल-अगस्त 2022 के दौरान देश के कुल चमड़े के निर्यात का 25.19% का निर्यात किया गया

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स

प्रिलिम्स के लिये:

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स, यू.पी.आई., ई-कॉमर्स से संबंधित पहलें

मेन्स के लिये:

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) उन प्लेटफार्मों पर "कम शुल्क" अधिरोपित करेगा जो नेटवर्क के "रखरखाव और विकास" में योगदान देंगे।

  • यह नेटवर्क देश में दो सबसे बड़ी ई-कॉमर्स फर्मों यूएस-आधारित अमेज़न और घरेलू फ्लिपकार्ट जैसे निजी ई-कॉमर्स द्वारा नेटवर्क पर विक्रेताओं एवं लॉजिस्टिक्स भागीदारों से लिये जाने वाले अनिवार्य कमीशन को कम करने का प्रयास करेगा।

ONDC:

  • परिचय:
    • यह वाणिज्य मंत्रालय के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department of Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा स्थापित एक ओपन ई-कॉमर्स प्रोटोकॉल है।
    • ONDC के तहत यह परिकल्पना की गई है कि एक भागीदार ई-कॉमर्स साइट (उदाहरण के लिये-अमेज़न) पर पंजीकृत खरीदार किसी अन्य प्रतिभागी ई-कॉमर्स साइट (उदाहरण के लिये फ्लिपकार्ट) पर विक्रेता से सामान खरीद सकता है।
    • वर्तमान में एक ही प्लेटफॉर्म के माध्यम से होने वाले लेन-देन के लिये खरीदारों और विक्रेताओं को एक ही एप पर उपस्थित होना आवश्यक होता है। उदाहरण के लिये किसी खरीदार को अमेज़न (Amazon) पर किसी विक्रेता से उत्पाद खरीदने के लिये अमेज़न के ही एप या वेबसाइट पर जाना होगा।
  • उद्देश्य:
    • ई-कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण और विकेंद्रीकरण।
    • विक्रेताओं, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों के साथ-साथ स्थानीय व्यवसायों के लिये समावेशिता और पहुँच।
    • उपभोक्ताओं के लिये विकल्पों और निर्भरता में वृद्धि।

ONDC के फायदे:

  • सबके लिये एकसमान अवसर: ONDC सभी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के लिये एकसमान अवसर प्रदान करने और देश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) तथा छोटे व्यापारियों के लिये डिजिटल बाज़ार तक पहुँच के विस्तार का इच्छुक है।
  • प्रतिस्पर्द्धी और नवोन्मेषी पारितंत्र: ONDC रिटेल, फूड और मोबिलिटी जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने तथा व्यवसायों को रूपांतरित करने के लिये दिग्गज प्लेटफॉर्मों के एकाधिकार को तोड़कर आपूर्तिकर्त्ताओं व उपभोक्ताओं को सशक्त बनाएगा।
  • उपभोक्ताओं के लिये चयन की स्वतंत्रता: उपभोक्ता संभावित रूप से किसी भी विक्रेता, उत्पाद या सेवा को एक साझा मंच पर खोज सकते हैं, जिससे उपभोक्ताओं के लिये चयन की स्वतंत्रता में वृद्धि होती है।
  • तटस्थ और विनियमित प्लेटफॉर्म: ONDC ओपन-सोर्स कार्यप्रणाली पर विकसित ओपन नेटवर्क को बढ़ावा देने, खुले विनिर्देशों एवं नेटवर्क प्रोटोकॉल का उपयोग करने तथा किसी विशिष्ट प्लेटफॉर्म से स्वतंत्र रहने पर लक्षित है।

ONDC से संबंधित चुनौतियाँ:

  • UPI के विपरीत ONDC को लागू करने के लिये एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र है।
  • संतोषजनक सेवा प्रदानकर्त्ता के लिये मौजूदा ग्राहकों से पदग्राही ग्राहकों को बदलना मुश्किल होगा।
  • हो सकता है कि नेटवर्क सहभागी प्रारंभ में महत्त्वपूर्ण बाज़ार विकास निवेश न करें।
  • विक्रेता आधार में वृद्धि से नेटवर्क पर खरीदार के अनुभव में सुधार नहीं होगा।
  • नेटवर्क पर मुद्रीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है।
  • खरीदार और विक्रेता पक्षों के बेमेल होने के कारण अधिक ग्राहक बनाना चुनौतीपूर्ण होगा।
  • जवाबदेही पर स्पष्टता का अभाव, विशेष रूप से ग्राहकों की शिकायतों और रिटर्न को संबोधित करने के मामले में।

आगे की राह

  • प्रमुख ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये सरकार द्वारा ई-कॉमर्स हेतु एक बेहतर डिजिटल स्पेस बनाया जाना चाहिये।
    • उपभोक्ताओं के साथ-साथ विक्रेताओं के लाभ के लिये विभिन्न भाषाओं और उपयोगकर्त्ता के अनुकूल इंटरफेस को ध्यान में रखते हुए एक उचित डिजिटल शिक्षा नीति बनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • लाखों किराना स्टोरों को प्लेटफॉर्म पर लाने के लिये बड़े पैमाने पर वित्तपोषित किये जाने की आवश्यकता है।
  • सूचना विषमता, अपारदर्शी मूल्य निर्धारण, गुणवत्ता संबंधी चिंताओं और क्रेता-विक्रेता विवादों जैसे मुद्दों को हल करने के लिये मांग एवं आपूर्ति पक्षों को एक सुरक्षित एकल खिड़की तक पहुँचने में सक्षम बनाया जाना चाहिये।

ondc

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2022)

  1. आरोग्य सेतु
  2. कोविन
  3. डिजिलॉकर
  4. दीक्षा

ऊपर्युक्त में से कौन-से ओपन-सोर्स डिजिटल प्लेटफॉर्म के शीर्ष पर स्थापित किया गया है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

स्रोत: पी. आई. बी.


भारतीय राजनीति

न्यायाधीशों द्वारा खुद को सुनवाई से अलग रखना

प्रिलिम्स के लिये:

न्यायाधीशों द्वारा खुद को सुनवाई से अलग रखना, सर्वोच्च न्यायालय 

मेन्स के लिये:

न्यायाधीशों द्वारा खुद को सुनवाई से अलग रखना और संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने वर्ष 2002 के दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार के लिये आजीवन कारावास की सज़ा पाए 11 लोगों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

न्यायाधीशों द्वारा खुद को सुनवाई से अलग रखना:

  • परिचय: 
    • यह पीठासीन न्यायालय के अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी के बीच मतभेद के कारण आधिकारिक कार्रवाई जैसे कानूनी कार्यवाही में भाग लेने से अलग रहने से संबंधित है।
  • खुद को सुनवाई से अलग रखने संबंधी नियम:
    • पुनर्मूल्यांकन को नियंत्रित करने वाले कोई औपचारिक नियम नहीं हैं, हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों में इस मुद्दे पर बात की गई है।
      • रंजीत ठाकुर बनाम भारत संघ (1987) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह दूसरे पक्ष के मन में पक्षपात की संभावना की आशंका के प्रति तर्कों को बल प्रदान करता है।
      • न्यायालय को अपने सामने मौजूद पक्ष के तर्क को देखना चाहिये और तय करना चाहिये कि वह पक्षपाती है या नहीं।
  • खुद को सुनवाई से अलग रखने का कारण: 
    • जब हितों का टकराव होता है तो एक न्यायाधीश मामले की सुनवाई से पीछे हट सकता है ताकि यह धारणा पैदा न हो कि उसने मामले का निर्णय करते समय पक्षपात किया है।
    • हितों का टकराव कई तरह से हो सकता है जैसे:
      • मामले में शामिल किसी पक्ष के साथ पूर्व या व्यक्तिगत संबंध होना।
      • किसी मामले में शामिल पक्षों में से एक के लिये पेश कियावकीलों या गैर-वकीलों के साथ एकतरफा संचार।
      • उच्च न्यायालय (High Court- HC) के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की जाती है, जिस पर निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा तब लिया गया जब वह उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो।
      • किसी कंपनी के मामले में जिसमें उसके शेयर हैं जब तक कि उसने अपने हित का खुलासा नहीं किया है और इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
    • यह प्रथा कानून की उचित प्रक्रिया के कार्डिनल सिद्धांत से उत्पन्न होती है कि कोई भी अपने मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता है।
      • कोई भी हित या हितों का टकराव किसी मामले से हटने का आधार होगा क्योंकि एक न्यायाधीश का कर्तव्य है कि वह निष्पक्ष रूप से कार्य करे।

 सुनवाई से अलग रहने की प्रक्रिया:

  • सामान्यतः सुनवाई से अलग होने का फैसला न्यायाधीश खुद करता है क्योंकि यह हितों के किसी भी संभावित टकराव का खुलासा करने के लिये न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है।
    • कई न्यायाधीश मामले में शामिल वकीलों को मौखिक रूप से खुद को अलग करने के कारणों की व्याख्या नहीं करते हैं। कुछ कालानुक्रमिक क्रम में कारण बताते हैं।
  • कुछ परिस्थितियों या मामलों में वकील या पक्ष इसे न्यायाधीश के सामने लाते हैं। एक बार अलग होने का अनुरोध किये जाने के बाद न्यायाधीश के पास इसे वापस लेने या न लेने का अधिकार होता है।
    • हालाँकि ऐसे कुछ उदाहरण हैं जहाँ न्यायाधीशों ने विरोध न देखते हुए भी सुनवाई से पीछे हटने से इनकार कर दिया, लेकिन केवल इसलिये कि ऐसी आशंका व्यक्त की गई थी, ऐसे कई मामले भी सामने आए हैं जहाँ न्यायाधीशों ने किसी मामले से पीछे हटने से इनकार कर दिया है।
  • यदि कोई न्यायाधीश सुनवाई से अलग हो जाता है, तो मामले को एक नई पीठ को सौंपने के लिये मुख्य न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया जाता है।

न्यायाधीशों द्वारा स्वयं को सुनवाई से अलग रखने संबंधी चिंताएँ:

  • न्यायिक स्वतंत्रता को कम करना:
    • यह वादियों को अपनी पसंद की बेंच चुनने की अनुमति देता है, जो न्यायिक निष्पक्षता को कम करता है।
    • साथ ही इन मामलों से अलग होना न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता दोनों को कमज़ोर करता है।
  • विभिन्न व्याख्याएँ:
    • चूँकि यह निर्धारित करने के लिये कोई नियम नहीं है कि न्यायाधीश इन मामलों में कब खुद को अलग कर सकते हैं, एक ही स्थिति की अलग-अलग व्याख्याएँ हैं।
  • प्रक्रिया में देरी:
    • कुछ कार्य मुद्दों को उलझाने या कार्यवाही में बाधा डालने और देरी करने के इरादे से या किसी अन्य तरीके से न्याय के प्रारूप में बाधा डालने या इसे बाधित करने के इरादे से भी किये जाते हैं।

आगे की राह

  • न्याय में परिवर्तन के एक उपकरण के रूप में तथा वादी की पसंद की बेंच चुनने के साधन के रूप में और न्यायिक कार्य से बचने हेतु एक साधन के रूप में पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था का उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
  • न्यायिक अधिकारियों को हर तरह के दबाव का विरोध करना चाहिये, चाहे वह कहीं से भी हो और यदि वे विचलित हो जाते हैं तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ-साथ संविधान भी कमज़ोर हो जाएगा।
  • इसलिये एक नियम जो न्यायाधीशों की ओर से अलग होने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है, जल्द-से-जल्द बनाया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


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