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सामाजिक न्याय

जेंडर स्नैपशॉट 2022

  • 08 Sep 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जेंडर स्नैपशॉट 2022, सतत् विकास लक्ष्य-5।

मेन्स के लिये:

महिलाओं से संबंधित मुद्दे, लैंगिक-अंतर, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।

 चर्चा में क्यों?

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र (UN) महिला और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक तथा सामाजिक मामलों के विभाग (UN DESA) द्वारा "सतत् विकास लक्ष्यों पर प्रगति (SDG): द जेंडर स्नैपशॉट 2022" नामक रिपोर्ट जारी की गई।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत् विकास लक्ष्य -5 (SDG-5) या लैंगिक समानता हासिल करना वर्ष 2030 तक प्रगति की मौजूदा गति से पूरा नहीं होगा।
  • वर्ष 2022 के अंत तक 368 मिलियन पुरुषों और लड़कों की तुलना में लगभग 383 मिलियन महिलाएँ और लड़कियाँ अत्यधिक गरीबी (एक दिन में 1.90 अमेरिकी डॉलर से भी कम) में जी रही होंगी।
  • प्रगति की मौजूदा दर पर पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में लगभग 300 वर्ष लगेंगे।
  • वर्ष 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लिये पिछले दशक की प्रगति की तुलना में अगले दशक की प्रगति 17 गुना तेज़ होनी चाहिये।
    • सबसे गरीब ग्रामीण परिवारों और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की लड़कियों को सबसे ज़्यादा नुकसान होने की आशंका है।
  • वर्ष 2021 में, युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में लगभग 38% महिला-प्रधान परिवारों ने मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा जबकि 20% पुरुष-प्रधान परिवारों ने इसका अनुभव किया।
  • वैश्विक स्तर पर महामारी के कारण वर्ष 2020 में महिलाओं की आय में अनुमानित 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ।
  • वर्ष 2021 के अंत तक पहले से कहीं अधिक लगभग 44 मिलियन महिलाओं और लड़कियों को जबरन विस्थापित किया गया।
  • 2 अरब से अधिक 15-49 प्रजनन आयु महिलाएंँ और लड़कियांँ सुरक्षित गर्भपात तक पहुंँच पर कुछ प्रतिबंधों वाले देशों और क्षेत्रों में रहती हैं।

SDG

चुनौतियांँ:

  • COVID-19 महामारी और उसके बाद हिंसक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और महिलाओं के यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकारों के खिलाफ प्रतिक्रिया जैसी वैश्विक चुनौतियाँ लैंगिक असमानताओं को और बढ़ा रही हैं।
  • यूक्रेन पर आक्रमण और युद्ध, विशेष रूप से महिलाओं तथा बच्चों के बीच खाद्य सुरक्षा और भी बदतर होती जा रही है।
  • दुनिया के अधिकांश हिस्सों में अभी भी कानूनी प्रणालियाँ सभी क्षेत्रों में महिलाओं के अधिकारों की समान सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती हैं जैसे कि विवाह और परिवार में महिलाओं के अधिकार को सीमित करना, काम पर असमान वेतन एवं लाभ तथा भूमि के स्वामित्व व नियंत्रण के असमान अधिकार आदि और दुर्भाग्य से यह आने वाली पीढ़ियों को सामना करना पड़ सकता है।

आगे की राह:

  • आँकड़ों से पता चलता है कि आय, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य में वैश्विक संकट से उनका जीवन बदतर हो गया है। हम इस प्रवृत्ति को ठीक करने में जितना अधिक समय लेंगे, उतना ही हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
    • लैंगिक समानता सभी सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नींव है और यह बेहतर निर्माण के केंद्र में होना चाहिये।
  • व्यापक वैश्विक संकट SDG की उपलब्धि को संकट में डाल रहे हैं, दुनिया के सबसे कमज़ोर जनसंख्या समूहों, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों में असमान रूप से प्रभावित हुए हैं।
    • लैंगिक समानता एजेंडे में सहयोग, साझेदारी और निवेश, जिसमें वैश्विक एवं राष्ट्रीय वित्त पोषण में वृद्धि शामिल है, पाठ्यक्रम को सही करने तथा लैंगिक समानता को पटरी पर लाने के लिये आवश्यक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों को 'वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक ' रैंकिंग प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: a

व्याख्या:

  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक, विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित की जाती है। अत: विकल्प a सही है।
  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक, जिसे लैंगिक समानता को मापने के लिये डिज़ाइन किया गया है, चार प्रमुख क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों के बीच गणना किये गए लैंगिक अंतर के अनुसार देशों को रैंक करता है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति जैसे मानकों पर लैंगिक समानता की स्थिति को मापा जाता है।
  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक 2021 ने 156 देशों को चार विषयगत आयामों में लैंगिक समानता की दिशा में उनकी प्रगति पर आकलन किया: आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक प्राप्ति, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता, एवं राजनीतिक अधिकारिता। इसके अलावा इस वर्ष के संस्करण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से संबंधित कौशल लैंगिक अंतराल का अध्ययन किया गया।
  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक -2021 में भारत 140वें स्थान पर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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