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डेली न्यूज़

  • 17 Jul, 2024
  • 46 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान की आपूर्ति और मांग संबंधी चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, ISRO के प्रक्षेपण यान, स्पेसएक्स का फाल्कन 9, भूस्थिर अंतरण कक्षा

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, भारत की अंतरिक्ष प्रक्षेपण सेवाएँ, उपग्रह-आधारित सेवाओं का बाज़ार

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष ने कहा कि इसरो की प्रक्षेपण यान क्षमता, मांग से तीन गुना अधिक है।

  • इस बयान से भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के संबंध में विशेषज्ञों के बीच वार्ता शुरू हो गई है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि भारत अपनी सेवाओं के लिये पर्याप्त मांग सृजित करने के लिये संघर्ष कर रहा है।

भारत का वर्तमान प्रक्षेपण यान परिदृश्य क्या है?

  • मौजूदा प्रक्षेपण वाहन:
  • मौजूदा प्रक्षेपण यानों की सीमाएँ:
    • कम पेलोड क्षमता: भारत के LVM-3 की क्षमता चीन के लॉन्ग मार्च 5 की क्षमता से एक तिहाई से भी कम है। भारत के मौजूदा प्रक्षेपण यानों को चंद्रयान 4 जैसे अधिक महत्त्वाकांक्षी मिशनों के लिये क्षमता संबंधी सीमाओं का सामना करना पड़ता है जिसके लिये अपग्रेड और नए प्रक्षेपण यान  विकसित करने की आवश्यकता है।
      • भारत के पास वर्तमान में संचार, रिमोट सेंसिंग, पोज़िशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT), मौसम विज्ञान, आपदा प्रबंधन, अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट, वैज्ञानिक मिशन तथा प्रायोगिक मिशन जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये उपग्रहों का समूह है। इसके अतिरिक्त इसे आगामी अंतरिक्ष मिशनों के लिये प्रक्षेपण यानों की आवश्यकता है।
    • यानों के उन्नयन की आवश्यकता: इसरो ने LVM-3 को अर्द्ध-क्रायोजेनिक इंजन के साथ उन्नत करने की योजना बनाई है जिसका उद्देश्य भूस्थिर अंतरण कक्षा (GTO) तक इसकी पेलोड क्षमता को छह टन तक बढ़ाना है।
      • GTO तक 10 टन भार ले जाने के लिये नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) अथवा प्रोजेक्ट सूर्य नामक एक नया प्रक्षेपण यान विकसित करने की योजना बनाई गई है।
      • वर्तमान में इसरो ने इस परियोजना के लिये केवल एक फंडिंग प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
      • इसके अतिरिक्त छोटे उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण के लिये आत्मविश्वास स्थापित करने के लिये SSLV के एक और सफल उड़ान की आवश्यकता है।
    • विदेशी प्रक्षेपण यानों पर निर्भरता: भारी पेलोड के प्रक्षेपण लिये भारत एरियन वी और स्पेसएक्स के फाल्कन 9 पर निर्भर रहता है।

ISRO_Launch_Vehicles

आपूर्ति एवं मांग के बीच विसंगति क्यों है?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: पहले इसरो आपूर्ति-संचालित मॉडल उपग्रहों को लॉन्च करता पर कार्य करता था, और तत्पश्चात् ग्राहकों की तलाश करता था। यह दृष्टिकोण वर्ष 2019 के बाद मांग-संचालित मॉडल में स्थानांतरित हो गया, जिसके कारण वास्तविक ज़रूरतों के सापेक्ष लॉन्च वीकल्स की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित हुई।
  • इस परिवर्तन के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि उपग्रह सेवाओं की मांग उपग्रह निर्माण तथा प्रक्षेपण से पहले की जानी चाहिये।
  • मांग सृजित करने में चुनौतियाँ: 
    • आर्थिक कारक: उपग्रहों के लिये लॉन्च वीकल्स की आवश्यकता होती है, हेवी वीकल्स का उपयोग लूनर एक्सप्लोरेशन जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिये किया जाता है तथा स्माल वीकल्स का उपयोग प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिये किया जाता है।
      • उपग्रहों का परिचालन जीवनकाल सीमित होता है, जिसके कारण उन्हें बदलने की आवश्यकता होती है, जिससे लॉन्च वीकल्स की अतिरिक्त मांग सृजित हो सकती है। हालाँकि तकनीकी प्रगति ने इन जीवनकालों को बढ़ा दिया है, जिससे लॉन्च वीकल्स की मांग में अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है।
      • लॉन्च वीकल्स में भी सुधार हो रहा है, जिनमें एक ही प्रक्षेपण में अनेक उपग्रहों को लॉन्च करने की क्षमता, पुन: प्रयोज्य रॉकेट चरण तथा विषैले ईंधनों के स्थान पर हरित विकल्पों के उपयोग के प्रयास शामिल हैं।
    • बाज़ार अनुवेधन: इंटरनेट सेवाओं जैसे कुछ क्षेत्रों में, मौजूदा विकल्प (उदाहरण के लिये, किफायती फाइबर एवं मोबाइल इंटरनेट) अंतरिक्ष-आधारित समाधानों की कथित आवश्यकता को प्रभावित कर सकते हैं। इससे उपग्रह क्षमताओं को विकसित करने की ज़रूरत कम हो जाती है।
    • सरकारी पहलों पर निर्भरता: भारत सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र मांग को प्रोत्साहित करे, उपग्रहों का निर्माण के साथ-साथ उनको प्रक्षेपित करे, ग्राहक सेवाएँ प्रदान करे, प्रक्षेपण सेवाओं से राजस्व उत्पन्न करे और साथ ही श्रमिकों के कौशल को उन्नत करे।
      • निजी कंपनियाँ चाहती हैं कि सरकार उनकी ग्राहक बने और विश्वसनीय विनियमन उपलब्ध कराए, जिससे उन्हें दीर्घकालिक राजस्व प्राप्त हो सके।
      • यदि सरकार संभावित उपभोक्ताओं को खरीदारी करने हेतु सूचित करने और प्रोत्साहित करने के लिये सक्रिय कदम नहीं उठाती है, तब इस बात की पूर्ण संभावना है कि आपूर्ति तथा मांग में असंतुलन जारी रहेगा।

आगे की राह

  • हितधारकों को शिक्षित करना: मांग सृजित करने की कुंजी संभावित उपयोगकर्त्ताओं (सरकारी संस्थाओं, उद्योगों के साथ-साथ आम नागरिकों) को उपग्रह सेवाओं के लाभों एवं अनुप्रयोगों के बारे में शिक्षित करना है।
    • जागरूकता बढ़ाने और उपग्रह-आधारित सेवाओं के लिये बाज़ार तैयार करने की ज़िम्मेदारी इसरो तथा निजी क्षेत्र दोनों पर है।
  • जटिल ग्राहक आधार (Complex Customer Base): उपग्रह सेवाओं की मांग को कृषि, वित्त और रक्षा सहित विविध क्षेत्रों में विकसित किया जाना चाहिये। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग-अलग ज़रूरतें और जागरूकता का स्तर होता है, जिससे मांग सृजन के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
  • लागत-प्रभावशीलता (Cost-Effectiveness): लागत-प्रतिस्पर्धी प्रक्षेपण सेवा प्रदाता के रूप में भारत की बढ़त को बनाए रखना तथा अंतरिक्ष तक किफायती पहुँच चाहने वाले वैश्विक ग्राहकों को आकर्षित करना।
    • इसरो के सफल प्रक्षेपणों के सिद्ध रिकॉर्ड को बनाए रखना, संभावित ग्राहकों के बीच विश्वास और आत्मविश्वास को बढ़ावा देना।
  • सरकारी दबाव (Government Push): सरकार प्रारंभिक वित्तपोषण उपलब्ध कराकर, उपग्रहों के लिये प्रक्षेपण स्थान की गारंटी देकर तथा अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों के लाभों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाकर निजी अंतरिक्ष उपक्रमों को समर्थन दे सकती है।
  • सहयोग (Collaboration): संयुक्त मिशन, प्रौद्योगिकी विनिमय और ज्ञान साझा करने के लिये अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना। सहायक विनियामक वातावरण बनाकर उपग्रह विकास और प्रक्षेपण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण क्षेत्र के समक्ष वर्तमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिये, आपूर्ति और मांग के बीच के अंतर को पाटने के उपाय सुझाइए।

और पढ़ें: 2024 में अंतरिक्ष मिशन

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष  के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं जो पृथ्वी संसाधनों के मानिटरन उपयोगी हैं जबकि GSLV को मुख्यतः संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
  2. PSLV द्वारा प्रमोचित उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर रहते प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है।
  3. GSLV Mk III, एक चार स्टेज वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमें प्रथम और तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में द्रव रॉकेट इंजनों का प्रयोग होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 2
(d) केवल 3

उत्तर: (a)


भारतीय अर्थव्यवस्था

चाइना प्लस वन

प्रिलिम्स के लिये:

चाइना प्लस वन रणनीति, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI), मुद्रास्फीति, GDP, भारत के व्यापार समझौते, GST, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 

मेन्स के लिये:

चीन की आर्थिक मंदी और भारत के लिये अवसर,भारत अपने कार्यों से स्वयं को चीन के समक्ष एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

भारत के पास चाइना प्लस वन रणनीति का लाभ उठाने तथा वैश्विक विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने का अवसर है।

  • हालाँकि चीन के निर्यात की स्थिति सुदृढ़ बनी हुई है किंतु भारत का वृहद् घरेलू बाज़ार, कम श्रम लागत और विकास की संभावना इसे चीन का एक आकर्षक विकल्प बनाती है।

चाइना+1 रणनीति क्या है?

  • परिचय:
    • यह कंपनियों की वैश्विक प्रवृत्ति को संदर्भित करता है जिसमें कंपनियाँ चीन के अतिरिक्त अन्य देशों में अपने परिचालन इकाई स्थापित कर अपने विनिर्माण और आपूर्ति शृंखलाओं का विस्तार करते हैं।
    • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य विशेष रूप से भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों को दृष्टिगत रखते हुए किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता के कारण होने वाले जोखिमों को कम करना है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में चीन का प्रभुत्व:
    • विगत कुछ दशकों से चीन वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का केंद्र रहा है जिससे इसे "वर्ल्ड्स फैक्ट्री" की संज्ञा दी जाती है। यह उत्पादन के अनुकूल कारकों और सुदृढ़ व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र के कारण संभव हुआ है।
  • 1990 के दशक में चीन की ओर रुख:
    • 1990 के दशक में अमेरिका और यूरोप की बड़ी विनिर्माण इकाइयों ने कम विनिर्माण लागत तथा वृहद् घरेलू बाज़ार तक पहुँच के कारण चीन में अपना उत्पादन करना शुरू किया।
  • महामारी के दौरान व्यवधान:
    • कोविड-19 महामारी से कई अर्थव्यवस्थाओं में गंभीर व्यवधान उत्पन्न हुए। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समय के साथ महामारी से उबरने के पश्चात् मांग में अचानक वृद्धि हुई। हालाँकि चीन की ज़ीरो-कोविड नीति के परिणामस्वरूप औद्योगिक लॉकडाउन जारी रहा जिससे आपूर्ति शृंखला और कंटेनर की उपलब्धता प्रभावित हुई।
  • चाइना+1 रणनीति की उत्पत्ति:
    • चीन की ज़ीरो-कोविड नीति, आपूर्ति शृंखला व्यवधान, माल ढुलाई की उच्च दरों और लीड हेतु लंबे समयावधि सहित कई कारकों के परिणामस्वरूप कई वैश्विक कंपनियों को "चाइना-प्लस-वन" रणनीति अपनाने के लिये प्रेरित किया।
      • इसमें एशिया के भारत, वियतनाम, थाईलैंड, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे अन्य विकासशील देशों में कंपनियों द्वारा अपनी आपूर्ति शृंखला निर्भरता में विविधता लाने के उद्देश्य से वैकल्पिक विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करना शामिल है।

भारत के लिये विदेशी निवेश आकर्षित कर पाने की क्या संभावनाएँ हैं?

  • जनसांख्यिकीय लाभ और उपभोग शक्ति:
    • विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत की 28.4% जनसंख्या की आयु 30 वर्ष से कम है जबकि चीन में यह आँकड़ा 20.4% का है, जो कार्यबल और उपभोक्ता बाज़ार को आगे बढ़ा रही है। इससे उपभोग, बचत और निवेश को बढ़ावा मिलता है, जिससे भारत एक संभावित मल्टी-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तथा वैश्विक कंपनियों के लिये आकर्षक बाज़ार के रूप में स्थापित होता है।
  • लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और बुनियादी ढाँचे का लाभ:
    • वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में भारत की कम श्रम और पूंजी लागत इसके उत्पादन क्षेत्र को अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
      • डेलॉयट द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत का औसत विनिर्माण वेतन चीन की तुलना में 47% कम है।
    • इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के माध्यम से सरकार द्वारा बुनियादी ढाँचे में किये गए महत्त्वपूर्ण निवेश का उद्देश्य विनिर्माण लागत को कम करना और रसद में 20% सुधार करना है, जिससे भारत के प्रति कंपनियों अधिक आकृष्ट होंगी।
  • व्यावसायिक वातावरण और नीतिगत पहल:
    • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, कर सुधार और एफडीआई मानदंडों में ढील जैसे हालिया नीतिगत हस्तक्षेपों ने अनुकूल व्यावसायिक परिवेश तैयार किया है।
    • मेक इन इंडिया पहल और व्यवसाय को सुगम बनाने के प्रयासों से विदेशी निवेश आकर्षित हो रहा है।
  • डिजिटल कौशल और तकनीकी बढ़त:
    • जनवरी 2024 तक भारत में 870 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, जो इसकी आबादी का 61% है। इसके साथ ही गूगल और फेसबुक जैसी वैश्विक तकनीकी दिग्गजों तक पहुँच, जो चीन में उपलब्ध नहीं है, भारतीय युवाओं को डिजिटल लाभ देती है।
  • रणनीतिक आर्थिक साझेदारी:
    • संयुक्त अरब अमीरात के साथ CEPA व्यापार समझौते जैसी पहलों के माध्यम से उप-क्षेत्रीय साझेदारी और चीन के प्रभाव नियंत्रण पर भारत का ध्यान, उसके रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • इस विविधीकरण से 5 वर्षों के भीतर द्विपक्षीय व्यापार में 200% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे घरेलू हितों की रक्षा करते हुए नए बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित होगी।
  • गतिशील कूटनीति और वैश्विक प्रभाव:
    • QUAD और I2U2 जैसे समूहों में भारत की सक्रिय भागीदारी साथ ही प्रमुख देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते, इसके आर्थिक संबंधों को मज़बूत करते हैं तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, वित्त एवं बाज़ार पहुँच के द्वार खोलते हैं।
    • चूँकि भारत G20 और SCO में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है, इसलिये वह वैश्विक व्यापार प्रवृत्तियों को आकार देने के लिये अपनी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
  • बड़ा घरेलू बाज़ार:
    • भारत का 1.3 अरब लोगों का बड़े घरेलू बाज़ार, जिसकी आय में वृद्धि हो रही है, चीन के लिये एक आकर्षक विकल्प प्रस्तुत करता है।
    • भारत की प्रति व्यक्ति GDP वर्ष 2018 और 2023 के बीच औसतन 6.9% बढ़ी है, जिससे एक बड़ा उपभोक्ता आधार तैयार हुआ है जो निरंतर आर्थिक विकास तथा बढ़े हुए वैश्विक व्यापार के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करता है।

भारत में चीन+1 रणनीति से कौन-से क्षेत्र लाभांवित होंगे?

  • सूचना प्रौद्योगिकी/सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवाएँ (IT/ITeS): वर्ष 2024 NASSCOM रिपोर्ट में भारत को IT सेवाओं के निर्यात में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में मान्यता दी गई है, जिसे "मेक इन इंडिया" जैसी पहलों से बल मिला है, जिसका उद्देश्य देश को IT हार्डवेयर के लिये विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना है। इस प्रयास ने प्रमुख वैश्विक प्रौद्योगिकी फर्मों को आकर्षित किया है।
  • फार्मास्यूटिकल्स: भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग, जिसका मूल्य वर्ष 2024 में 3.5 लाख करोड़ रुपए होगा और यह मात्रा के हिसाब से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग होगा।
    • भारत "विश्व की फार्मेसी" के रूप में उभरा है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की लगभग 70% वैक्सीन आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है तथा अमेरिका की तुलना में 33% कम विनिर्माण लागत प्रदान करता है।
  • धातु और इस्पात: भारत के समृद्ध प्राकृतिक संसाधन और विशेष इस्पात के लिये PLI योजना से वर्ष 2029 तक 40,000 करोड़ रुपए के निवेश आकर्षित करने की उम्मीद है, इसे एक प्रमुख इस्पात निर्यातक के रूप में स्थापित करती है। चीन द्वारा निर्यात छूट वापस लेने तथा प्रसंस्कृत इस्पात उत्पादों पर शुल्क लगाने से भारत का आकर्षण बढ़ता है।

C+1 परिदृश्य में भारत का प्रदर्शन कैसा है?

  • आयात वृद्धि:
    • विश्लेषित देशों में पश्चिमी देशों से भारत के आयात में दूसरी सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है, जिसकी वर्ष 2014 से 2023 तक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate- CAGR) 6.3% रही है।
    • वियतनाम और थाईलैंड ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है, जहाँ अमेरिका, ब्रिटेन तथा यूरोपीय संघ के आयात में CAGR 12.4% रहा है।

  • व्यावसायिक धारणा:
    • प्रचुर संसाधन और रणनीतिक योजना होने के बावजूद, भारत को चीन से स्थानांतरित होने वाले व्यवसायों के बीच सकारात्मक प्रभाव पैदा करने में संघर्ष करना पड़ा है।
    • वियतनाम और थाईलैंड अधिक आकर्षक गंतव्य के रूप में उभरे हैं।

  • टैरिफ दरें:
    • भारत में गैर-कृषि उत्पादों के लिये औसतन 14.7% की उच्च टैरिफ दरों ने पश्चिमी निवेशकों को हतोत्साहित किया है। विश्लेषण किये गए देशों में यह सबसे अधिक है।
      • भारत में रिवर्स शुल्क संरचना (Inverted Duty Structure), जिसमें आयातित कच्चे माल पर कर, अंतिम उत्पादों पर कर से अधिक है, भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करता है।

  • आशाजनक भविष्य की संभावनाएँ:
    • विश्लेषण के अनुसार, एशिया में उत्पादन स्थानांतरित करने या नई सुविधाओं में निवेश करने की योजना बना रही कंपनियों के लिये भारत सबसे पसंदीदा स्थान के रूप में उभरा है, जहाँ 28 कंपनियों ने रुचि दिखाई है, जबकि वियतनाम के लिये यह आँकड़ा 23 है।
    • उल्लेखनीय बात यह है कि इन इच्छुक कंपनियों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (28 में से 8) इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से हैं, एक ऐसा क्षेत्र जिसमें भारत पहले वियतनाम से पीछे था।

भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा डालने वाले कारक क्या हैं?

  • ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस: भारत का विनियामक वातावरण जटिल है, जिसमें नौकरशाही संबंधी बाधाएँ और असंगत नीति कार्यान्वयन शामिल हैं, जो घरेलू तथा विदेशी दोनों निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
  • विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता: उच्च इनपुट लागत, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और कुशल श्रम की कमी के कारण भारत को विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • CME समूह की रैंकिंग इस मुद्दे को उजागर करती है, जिसमें भारत को कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से पीछे रखा गया है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमियाँ: खराब परिवहन, रसद और ऊर्जा बुनियादी ढाँचे से परिचालन लागत बढ़ जाती है तथा व्यावसायिक दक्षता कम हो जाती है।
  • श्रम बाज़ार की कठोरता: प्रतिबंधात्मक श्रम कानून, विशेष रूप से संगठित क्षेत्र में, लचीलेपन और रोज़गार सृजन में बाधा डालते हैं।
  • कर संरचना: कई अप्रत्यक्ष करों सहित जटिल कर व्यवस्था, व्यापार करने की लागत में वृद्धि करती है।
  • भूमि अधिग्रहण की चुनौतियाँ: औद्योगिक परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया से निवेश में देरी होती है और लागत बढ़ जाती है।
  • कौशल में भिन्नता: शिक्षा प्रणाली प्राय: आधुनिक अर्थव्यवस्था की मांग के अनुरूप कौशल स्नातक तैयार करने में विफल रहती है।
  • भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार की व्यापकता से निवेशकों का विश्वास कम होता है और लेन-देन की लागत बढ़ती है।

आगे की राह

  • लक्षित प्रोत्साहन एवं सब्सिडी: भारत को अपनी विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने के लिये, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में प्रोत्साहन तथा सब्सिडी प्रदान करनी चाहिये, जिसमें कर लाभ, भूमि सब्सिडी एवं बुनियादी ढाँचे का समर्थन शामिल हो।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में वृद्धि करना: भारत में समग्र रूप से व्यावसाय को आसान बनाने हेतु विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, नौकरशाही बाधाओं को कम करने, श्रम कानूनों, भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं के साथ-साथ पर्यावरणीय मंज़ूरी को सरल बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • विशिष्ट औद्योगिक क्लस्टर विकसित करना: प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं, सामान्य परीक्षण एवं प्रमाणन केंद्रों के साथ-साथ साझा लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे सहित विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे एवं सहायता सेवाओं एवं विशिष्ट क्षेत्रों के लिये समर्पित औद्योगिक क्लस्टर या विनिर्माण केंद्र बनाने की आवश्यकता है।
  • कौशल विकास में निवेश करना: भारत को व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मज़बूत करने पर भी ध्यान देना चाहिये तथा विनिर्माण क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप कुशल कार्यबल विकसित करने के लिये उद्योग के साथ सहयोग करना चाहिये, STEM शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये तथा उच्च तकनीक विनिर्माण की मांगों को पूरा करने के लिये मौजूदा कार्यबल को भी उन्नत करना चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स को बढ़ाना: सड़क, रेलवे, बंदरगाह एवं हवाई अड्डों सहित आधुनिक, कुशल तथा अच्छी तरह से जुड़े परिवहन नेटवर्क में निवेश करना और विद्युत आपूर्ति, जल एवं अन्य आवश्यक उपयोगिताओं की विश्वसनीयता व उपलब्धता में सुधार करना।
  • व्यापार नीतियों एवं समझौतों को सुव्यवस्थित करना: भारतीय निर्यात के लिये बाज़ार पहुँच में सुधार, आयात-निर्यात प्रक्रियाओं को सरल बनाने और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने हेतु टैरिफ को कम करने हेतु प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर वार्ता एवं हस्ताक्षर करना।
  • अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना: सरकार को विनिर्माण प्रौद्योगिकियों एवं प्रक्रियाओं में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान और विकास (R&D) में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा कंपनियों को भारत में अनुसंधान व विकास केंद्र स्थापित करने के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करने हेतु प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

C+1 अवसर भारत के लिये अपने विनिर्माण क्षेत्र की दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करने तथा वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति के रूप में उभरने के लिये एक विशेष अवसर प्रस्तुत करता है। प्रमुख बाधाओं को दूर करके और एक व्यापक रणनीति को लागू करके, भारत इस प्रवृत्ति का लाभ उठाकर सतत् आर्थिक विकास एवं रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकता है। भारत के लिये अब C+1 क्षमता का लाभ उठाने और स्वयं को शीर्ष विनिर्माण गंतव्य के रूप में स्थापित करने का अवसर है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: चाइना प्लस वन रणनीति क्या है? इस रणनीति का पूर्ण उपयोग करने के लिये भारत के सामने चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?(2017)

(a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: C 


मेन्स:

प्रश्न. मध्य एशिया, जो भारत के लिये एक हित क्षेत्र है, में अनेक बाह्य शक्तियों ने स्वयं को संस्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में, भारत द्वारा अश्गाबात करार, 2018 में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (2018)


शासन व्यवस्था

SC सूची को संशोधित करने में राज्यों की असमर्थता

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसूचित जाति की स्थिति के लिये मानदंड, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950, भारत का महारजिस्ट्रार

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जाति की स्थिति के लिये मानदंड और दलित ईसाइयों और मुस्लिम व्यक्तियों को शामिल करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) ने फैसला दिया कि राज्यों को संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जाति (Scheduled Caste- SC) सूची में परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।

  • यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब न्यायालय ने वर्ष 2015 की बिहार सरकार की अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसमें तांती-तंतवा (Tanti-Tantwa) समुदाय को अनुसूचित जाति (SC) के रूप में वर्गीकृत करने की मांग की गई थी तथा इस तरह के वर्गीकरण को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया था।

नोट:

  • तांती-तंतवा एक हिंदू जाति है जो भारत में बुनकर और कपड़ा व्यापारी समुदाय से संबंधित है। इस समुदाय की गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम तथा ओडिशा जैसे राज्यों में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है।

मामले की पृष्ठभूमि और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?

  • मामले की पृष्ठभूमि:
    • तांती-तंतवा समुदाय को पहले बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये) अधिनियम, 1991 के तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग (Extremely Backward Class- EBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
    • 1 जुलाई, 2015 को बिहार सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (State Commission for Backward Classes- SCBC) की सिफारिश के आधार पर तांती-तंतवा समुदाय को SC सूची में विलय करने का प्रस्ताव जारी किया।
    • इस निर्णय का उद्देश्य तांती-तंतवा समुदाय को अनुसूचित जाति का लाभ पहुँचाना था और इसे 2017 में पटना उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था, लेकिन बाद में इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जाति सूची में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है।
      • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341(1) भारत के राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अनुसूचित जाति निर्दिष्ट करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • अनुच्छेद 341(2) संसद को इस सूची को संशोधित करने का अधिकार देता है। इस प्रकार, SC सूची में किसी भी बदलाव के लिये संविधान में संशोधन की आवश्यकता होती है।
    • न्यायालय ने कहा कि बिहार सरकार ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और भारत के महापंजीयक से परामर्श नहीं किया, जिन्होंने तांती/तंतवा को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।
    • न्यायालय ने राज्य सरकार की अधिसूचना को "दुर्भावनापूर्ण" और अक्षम्य "शरारत" करार दिया, जिससे वास्तविक अनुसूचित जाति के सदस्यों को उनके उचित लाभों से वंचित किया गया।
    • न्यायालय ने प्रस्ताव को रद्द तो कर दिया, लेकिन प्रस्ताव से पहले ही लाभान्वित हो चुके लोगों के मामले में संतुलित रुख अपनाया। न्यायालय ने निर्देश दिया कि ऐसे व्यक्तियों को उनकी मूल ईबीसी श्रेणी में समायोजित किया जाना चाहिये और जिन एससी कोटे के पदों पर वे बैठे थे, उन्हें एससी श्रेणी में वापस कर दिया जाना चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ:
    • यह निर्णय संवैधानिक योजना की पुष्टि करता है, जिसके अनुसार केवल संसद ही अनुसूचित जाति की सूची में परिवर्तन कर सकती है तथा राज्य सरकारें एकतरफा तरीके से उसमें बदलाव नहीं कर सकती हैं।
    • यह निर्णय वास्तविक अनुसूचित जाति सदस्यों के हितों की रक्षा करता है, यह सुनिश्चित करके कि उनके लिये निर्धारित लाभ अन्य समुदायों को न दिये जाएँ
    • यह निर्णय एससी सूची के संबंध में विधानमंडल और कार्यपालिका की शक्तियों को स्पष्ट रूप से चित्रित करके शक्ति के पृथक्करण को बरकरार रखता है।
    • यह अन्य राज्यों के लिये एक मिसाल बन सकता है जो एससी/एसटी सूचियों में अनधिकृत परिवर्तन करने का प्रयास कर रहे हैं, जो पूरे देश में एक आम मुद्दा है।

अनुसूचित जाति (SC) सूची में संशोधन/परिवर्तन की प्रक्रिया क्या है?

  • अनुसूचित जाति सूची में संशोधन/परिवर्तन की प्रक्रिया:
    • पहल और जाँच: राज्य सरकार किसी समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने या बाहर करने का प्रस्ताव करती है, जिसकी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जाँच की जाती है।
      • इसके बाद प्रस्ताव का सामाजिक-आर्थिक कारकों और ऐतिहासिक आँकड़ों के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है, जिसमें भारत के महापंजीयक की भी राय ली जाती है।
    • विशेषज्ञ परामर्श और मंत्रिमंडल की मंज़ूरी: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) प्रस्ताव पर विशेषज्ञ अनुशंसाएँ प्रदान करता है।
      • इसके पश्चात् मंत्रिमंडल NCSC की अनुशंसाओं और अन्य कारकों पर विचार करते हुए प्रस्ताव की समीक्षा करता है तथा प्रस्तावित संशोधनों के लिये मंज़ूरी प्रदान करता है।
    • संसदीय प्रक्रिया: संसद में एक संविधानिक संशोधन विधेयक पेश किया जाता है जिसमें अनुसूचित जाति सूची में प्रस्तावित संशोधनों का विवरण दिया जाता है।
      • इस विधेयक के पारित होने के लिये विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है यानी दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले कुल सदस्यों का बहुमत तथा साथ ही प्रत्येक सदन में उपस्थित कुल सदस्यों का बहुमत।
    • राष्ट्रपति की स्वीकृति और कार्यान्वयन: दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये भेजा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति दिये जाने के उपरांत अनुसूचित जाति सूची में किये गए संशोधन आधिकारिक रूप से क्रियान्वित हो जाते हैं।
  • अनुसूचित जाति सूची में शामिल किये जाने हेतु मानदंड:
    • अस्पृश्यता की परंपरागत प्रथा से समुदायों में उत्पन्न अत्यधिक सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन।

भारत का महारजिस्ट्रार

  • भारत के महारजिस्ट्रार कार्यालय की स्थापना वर्ष 1961 में गृह मंत्रालय के अधीन भारत सरकार द्वारा की गई थी।
  • रजिस्ट्रार का पद प्रायः संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत सिविल सेवक द्वारा धारण किया जाता है।

अनुसूचित जाति के उत्थान से संबंधित संविधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 15(4) अनुसूचित जातियों की उत्थान के लिये विशेष प्रावधान करता है। 
  • अनुच्छेद 16(4A) राज्य सेवाओं में पदों पर पदोन्नति में उन अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण की अनुमति देता है जिनका प्रतिनिधित्व कम है। 
  • अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है। 
  • अनुच्छेद 46 राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देने तथा उन्हें सामाजिक अन्याय एवं शोषण से संरक्षित करने का निर्देश देता है। 
  • अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332 में क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया है। 
  • अनुच्छेद 335 यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियाँ करते समय प्रशासन कार्य पटुता बनाए रखने की संगति के अनुसार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों पर विचार किया जाए। 
  • भाग IX (पंचायतें) और भाग IXA (नगर पालिकाएँ) स्थानीय शासन निकायों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण का प्रावधान करते हैं।
    • अनुच्छेद 243D(4): यह प्रावधान पंचायतों (स्थानीय स्वशासन संस्थाओं) में अनुसूचित जातियों के लिये क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों के आरक्षण को अनिवार्य बनाता है।
    • अनुच्छेद 243T(4): यह प्रावधान नगर पालिकाओं (शहरी स्थानीय निकायों) में अनुसूचित जातियों के लिये उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिये उपलब्ध संवैधानिक सुरक्षा उपाय और योजनाएँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022)

(a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी।
(b) इससे उस क्षेत्र में एक स्थानीय स्वशासी निकाय का सृजन होगा।
(c) इससे वह क्षेत्र संघ राज्य क्षेत्र में बदल जाएगा।
(d) ऐसे क्षेत्रों वाले राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य घोषित किया जाएगा।

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019)

(A) तीसरी अनुसूची
(B) पाँचवी अनुसूची
(C) नौवीं अनुसूची
(D) बारहवीं अनुसूची

उत्तर: (B)


मेन्स:

प्रश्न. वर्ष 2001 में आर.जी.आई. ने कहा कि दलित जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, वे एक भी जातीय समूह नहीं हैं क्योंकि वे विभिन्न जाति समूहों से संबंधित हैं। इसलिये उन्हें अनुच्छेद 341 के खंड (2) के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है, जिसमें शामिल करने हेतु एकल जातीय समूह की आवश्यकता होती है। (2014)

प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)


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