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भारतीय विरासत और संस्कृति

लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना

  • 30 Jul 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री द्वारा राज्य सभा में दी गई जानकारी के अनुसार, भारत सरकार लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण के लिये ‘लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना’ (Scheme for Protection and Preservation of Endangered Languages-SPPEL) का संचालन कर रही है।

Indian Language

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1961 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 1652 भाषाएँ थीं। लेकिन वर्ष 1971 तक इनमें से केवल 808 भाषाएँ ही बची थीं।
  • भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण/पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया (People’s Linguistic Survey of India) 2013 के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में लगभग 220 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं जबकि 197 भाषाओं को लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • वर्तमान में भारत सरकार केवल उन भाषाओं को मान्यता देती है जिसकी अपनी एक लिपि हो तथा व्यापक स्तर पर बोली जाती हो। इस प्रकार भारत सरकार द्वारा 122 भाषाओं को मान्यता दी गई है जो भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण द्वारा आकलित 780 भाषाओं की तुलना में बहुत कम है।
    • इस विसंगति का एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारत सरकार ऐसी किसी भाषा को मान्यता नहीं देती जिसे बोलने वालों की संख्या 10,000 से कम है।
  • यूनेस्को द्वारा अपनाए गए मानदंडों के अनुसार, कोई भाषा तब विलुप्त हो जाती है जब कोई भी व्यक्ति उस भाषा को नहीं बोलता है या याद रखता है। यूनेस्को ने लुप्तप्राय के आधार पर भाषाओं को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:-
    • सुभेद्य (Vulnerable)
    • निश्चित रूप से लुप्तप्राय (Definitely Endangered)
    • गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Severely Endangered)
    • गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered)
  • यूनेस्को ने 42 भारतीय भाषाओं को गंभीर रूप से संकटग्रस्त माना है।

पतन के कारण:

  • भारत सरकार द्वारा 10,000 से कम लोगों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषाओं को मान्यता नहीं दी जाती है।
  • समुदायों की प्रवासन एवं आप्रवासन की प्रवृत्ति के कारण पारंपरिक बसावट में कमी आती जा रही है, जिसके कारण क्षेत्रीय भाषाओं को नुकसान पहुँचता है।
  • रोज़गार के प्रारूप में परिवर्तन बहुसंख्यक भाषाओं का पक्षधर है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में परिवर्तन।
  • ‘व्यक्तिवाद’ की प्रवृत्ति में वृद्धि होना, समुदाय के हित से ऊपर स्वयं के हित को प्रथिमकता दिये जाने से भाषाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • पारंपरिक समुदायों में भौतिकवाद का अतिक्रमण जिसके चलते आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य उपभोक्तावाद से प्रभावित होते है।

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • भाषा के अस्तित्त्व को सुरक्षित रखने का सबसे बेहतर तरीका ऐसे विद्यालयों का विकास करना है जो अल्पसंख्यकों की भाषा (जनजातीय भाषाएँ) में शिक्षा प्रदान करते हैं। यह भाषा का संरक्षण करने और उसे समृद्ध बनाने में वक्ताओं को सक्षम बनाता है।
  • भारत की संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिये प्रोजेक्ट टाइगर की तर्ज पर एक विशाल डिजिटल परियोजना शुरू की जानी चाहिये।
  • ऐसी भाषाओं के महत्त्वपूर्ण पहलुओं जैसे- कथा निरूपण, लोकसाहित्य तथा इतिहास आदि का श्रव्य दृश्य/ऑडियो विज़ुअल प्रलेखन (Documentation) किया जाना चाहिये।
  • इस तरह के प्रलेखन प्रयासों कोण बढ़ाने के लिये ग्लोबल लैंग्वेज हॉटस्पॉट्स (Global Language Hotspots) जैसी अभूतपूर्व पहल के मौजूदा लेखन कार्यों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना (SPPEL)

Scheme for Protection and Preservation of Endangered Languages (SPPEL)

  • इसकी स्थापना वर्ष 2013 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा की गई थी।
  • इस योजना का एकमात्र उद्देश्य देश की ऐसी भाषाओं का दस्तावेज़ीकरण करना और उन्हें संग्रहित करना है जिनके निकट भविष्य में लुप्तप्राय या संकटग्रस्त होने की संभावना है।
  • इस योजना की निगरानी कर्नाटक के मैसूर में स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages-CIIL) द्वारा की जाती है।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission-UGC) अनुसंधान परियोजनाओं को शुरू करने के लिये केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिये केंद्र स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • इस योजना के अधीन केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान देश में 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली सभी मातृभाषाओं और भाषाओं की सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रलेखन का कार्य करता है।

केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान

Central Institute of Indian Languages- CIIL

  • मैसूर में स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक अधीनस्‍थ कार्यालय है।
  • इसकी स्‍थापना वर्ष 1969 में की गई थी।
  • यह भारत सरकार की भाषा नीति को तैयार करने, इसके कार्यान्‍वयन में सहायता करने, भाषा विश्‍लेषण, भाषा शिक्षा शास्‍त्र, भाषा प्रौद्योगिकी तथा समाज में भाषा प्रयोग के क्षेत्रों में अनुसंधान द्वारा भारतीय भाषाओं के विकास में समन्‍वय करने हेतु स्‍थापित की गई है।
  • इसके अंतर्गत इनके उद्देश्‍यों को बढ़ावा देने के लिये यह बहुत से कार्यक्रमों का आयोजन करता है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
    • भारतीय भाषाओं का विकास
    • क्षेत्रीय भाषा केंद्र
    • सहायता अनुदान योजना
    • राष्‍ट्रीय परीक्षण सेवा

स्रोत: PIB

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