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डेली न्यूज़

  • 17 Jan, 2025
  • 33 min read
सामाजिक न्याय

भारत में किशोर गर्भावस्था की रोकथाम

प्रिलिम्स के लिये:

बाल विवाह, NFHS-5, अवरुद्ध विकास, उच्च शिशु मृत्यु दर, लैंगिक असमानता, ASHA, मानसिक स्वास्थ्य, Bpl परिवार, आयुष्मान भारत, बाल लिंग अनुपात, अधिक उम्र में विवाह

मेन्स के लिये:

बाल विवाह संबंधी मुद्दे, महिलाओं से संबंधित मुद्दों के समाधान में शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का महत्त्व।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

टीन एज प्रेगनेंसी एंड मदरहुड इन इंडिया: एक्सप्लोरिंग स्टेटस एंड आईडेंटिफायिंग प्रिवेंशन एंड मिटिगेशन स्ट्रेटेज़ीज़ नामक अध्ययन में देश में किशोर गर्भावस्था से संबंधित मौजूदा चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।

भारत में किशोर गर्भावस्था के संबंध में अध्ययन के निष्कर्ष क्या हैं?

  • किशोर गर्भावस्था और बाल विवाह: भारत में किशोर गर्भावस्था, बाल विवाह और लैंगिक असमानता से संबंधित है। 
    • बाल विवाह की दर में गिरावट आई है (वर्ष 2005 के 47% से वर्ष 2020 में 24%) लेकिन किशोर गर्भधारण उच्च (6%) बना हुआ है, विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में।
  • सामाजिक और आर्थिक कारक: किशोरावस्था में गर्भधारण के प्रमुख कारणों में गरीबी, सामाजिक मानदंड तथा प्रजनन शिक्षा का अभाव शामिल है। 
    • कम उम्र में विवाह को अक्सर वित्तीय समाधान के रूप में देखा जाता है और दुल्हनों पर जल्दी माँ बनने का दबाव रहता है।
  • क्षेत्रीय भिन्नता: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 (वर्ष 2019-21) में पाया गया कि 15-19 वर्ष की आयु की 6.8% महिलाएँ गर्भवती थीं या उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था, जिनमें पश्चिम बंगाल (16%) और बिहार (11%) में इसकी दर सबसे अधिक थी।
  • सहायता का अभाव और कल्याण में कमी: किशोर माताओं को कलंक का सामना करना पड़ता है और इन्हें संस्थागत सहायता का अभाव होता है, जिसके कारण इनके स्कूल छोड़ने से कम शिक्षा के कारण गरीबी बनी रहती है। 
  • कल्याणकारी योजनाओं में प्रायः आयु आधारित पात्रता के कारण इन्हें शामिल न किये जाने से इन्हें कम संसाधन मिल पाते हैं।
  • नीतिगत अंतराल: प्रयासों के बावजूद, नीतिगत बाधाएँ किशोर माताओं के लिये प्रभावी सेवाओं में बाधाक हैं।  
    • किशोर गर्भधारण को कम करने के उद्देश्य से संचालित कल्याणकारी कार्यक्रमों से वंचित किये जाने से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है।

किशोर गर्भावस्था के क्या प्रभाव हैं?

  • मातृ स्वास्थ्य जोखिम: किशोर माताओं को एनीमिया, समय से पहले प्रसव और मातृ मर्त्यता का अधिक जोखिम रहता है।
    • NFHS-5 के अनुसार, कई किशोर माताओं को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्राप्त नहीं है, जिससे जोखिम बढ़ जाता है।
  • बाल स्वास्थ्य और वृद्धिरोध: किशोर माताओं से जन्मे बच्चों में साधारण से कम वज़न, वृद्धिरोध और उच्च शिशु मृत्यु दर का खतरा अधिक होता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार किशोर माताओं से जन्मे बच्चों में वृद्धिरोध और साधारण से कम वज़न का प्रचलन 11% अधिक है।
  • सामाजिक परिणाम: किशोरावस्था में गर्भधारण से माता और बच्चे दोनों के लिये स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं, जैसे मातृ जटिलताएँ और बाल कुपोषण, जबकि युवा माताओं के लिये आर्थिक और शैक्षिक अवसर गंभीर रूप से सीमित हो जाते हैं।
    • किशोर माताएँ प्रायः स्कूल छोड़ देती हैं, जिससे उनके आर्थिक अवसर सीमित हो जाते हैं और गरीबी का चक्र (अंतर-पीढ़ीगत गरीबी) जारी रहता है। 
    • वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, किशोर कन्याओं में 55% अनपेक्षित गर्भधारण के परिणामस्वरूप गर्भपात होता है, जिनमें से कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में असुरक्षित हैं।
  • लैंगिक असमानता और हिंसा: लैंगिक असमानता और पितृसत्तात्मक मानदंडों से किशोर माताओं का हाशियाकरण होता है तथा वे अपने जीवन में सुधार लाने के अवसरों से वंचित हो जाती हैं।
    • बाल विवाह से घरेलू हिंसा के मामले बढ़ते हैं और लैंगिक असमानता बढ़ती है। इसके साथ ही, इन प्रथाओं से युवा लड़कियों के अवसर सीमित हो गए हैं।

किशोर कालीन सगर्भता में कमी लाने, मातृत्व स्वास्थ्य और शिक्षा के लिये क्या योजनाएँ हैं?

  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): PMMVY के अंतर्गत 19 वर्षीय अथवा उससे अधिक आयु की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को उनके पहले जीवित बच्चे के जन्म पर 5,000 रुपए प्रदान किये जाते हैं, जिससे बेहतर मातृ स्वास्थ्य और पोषण को बढ़ावा मिलता है। 
    • आयु संबंधी यह अनिवार्यता किशोरावस्था में गर्भधारण और बाल विवाह उन्मूलन के प्रयासों को बल देती है
  • जननी सुरक्षा योजना (JSY): JSY के तहत 19 वर्षीय और उससे अधिक आयु की गर्भवती महिलाओं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की, और आशा कार्यकर्त्ताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिया जाता है।
    • किशोरावस्था में गर्भधारण और बाल विवाह को रोकने के लिये आयु मानदंड एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।
  • राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK): RKSK के अंतर्गत पोषण, प्रजनन स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हुए 10 से 19 वर्षीय किशोरों को लक्षित किया जाता है, जिससे किशोर स्वास्थ्य और अल्प आयु में विवाह से संबंधित मुद्दों का प्रत्यक्ष समाधान होता है।
  • बालिका समृद्धि योजना: BSY, बीपीएल परिवारों को बालिका शिक्षा के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। स्कूल में लड़कियों की पढ़ाई को लगातार बनाए रखना तथा जब तक शादी के लिये कानूनी रूप से बालिक नहीं हो जाती शादी न करने के लिये प्रोत्साहन करना, जिससे बालिकाओं की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति में सुधार होता है
  • एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS): ICDS छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये पोषण, टीकाकरण, स्वास्थ्य सम्बन्धी जाँच तथा स्कूल-पूर्व शिक्षा के साथ-साथ गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सहायता प्रदान करती है।
  • स्कूल स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रम: आयुष्मान भारत के तहत वर्ष 2020 में शुरू किया गया, यह 6-18 वर्ष की आयु के छात्रों के लिये किशोर स्वास्थ्य पर केंद्रित है, जिसमें यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और स्वच्छता जागरूकता शामिल है।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: इसका उद्देश्य लिंग आधारित चयन को रोकना तथा 18 वर्ष तक की लड़कियों की शिक्षा और सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है, साथ ही शिशु लिंगानुपात में सुधार एवं समान अवसर सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना है

आगे की राह: 

  • शिक्षा की भूमिका: वर्जनाओं को दूर करने और सुरक्षित प्रजनन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये व्यापक प्रजनन शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिये।
    • पश्चिम बंगाल में कन्याश्री प्रकल्प जैसे कार्यक्रम, जो विवाह में देरी करने पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, को देश भर में लागू किया जाना चाहिये।
  • सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समितियाँ बाल विवाह की निगरानी और रोकथाम कर सकती हैं, तथा किशोर गर्भावस्था के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता उत्पन्न कर सकती हैं।
    • किशोरों को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य (SRH) के बारे में शिक्षित करने में माता-पिता, शिक्षकों, सामाजिक और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की सक्रिय भागीदारी महत्त्वपूर्ण है।
    • बाल विवाह से निपटने के लिये आशा, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और पुलिस सखी जैसे स्थानीय कार्यकर्त्ताओं को प्रोत्साहित करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • इस दृष्टिकोण का एक सफल उदाहरण असम में देखा गया है, जहाँ बाल विवाह से निपटने के लिये स्थानीय कार्यकर्त्ताओं को प्रभावी ढंग से संगठित किया गया है।
  • नीतिगत सिफारिशें: बाल विवाह को रोकने के लिये बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 जैसे कानूनों के प्रवर्तन को मज़बूत बनाना।
  • उन्नत डेटा संग्रहण: किशोर गर्भधारण पर एक राष्ट्रीय डेटाबेस स्थापित करना और लक्षित हस्तक्षेपों को डिजाइन करने के लिये अनुदैर्ध्य अध्ययन आयोजित करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच और किशोर गर्भधारण को रोकने के लिये शिक्षा में कैसे सुधार कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रारंभिक:

प्रश्न. ‘मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से-कौन सा/से सही है/हैं? (2019)

  1. गर्भवती महिलाएँ तीन महीने की डिलीवरी से पहले और तीन महीने की डिलीवरी के बाद सवैतनिक छुट्टी की हकदार हैं।
  2.  क्रेच वाले उद्यमों में माँ को प्रतिदिन कम-से-कम छह बार शिशु गृहों में जाने की अनुमति होनी चाहिये।
  3.  दो बच्चों वाली महिलाओं को कम अधिकार प्राप्त हैं।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मुख्य:

Q. भारत में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2019)


सामाजिक न्याय

ऑनर किलिंग की रोकथाम हेतु सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

लिंगानुपात, भारतीय न्याय संहिता (BNS), विधि आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, मूल अधिकार। 

मेन्स के लिये:

ऑनर किलिंग से निपटने के लिये आवश्यक सुधार, न्यायिक दृष्टिकोण और विधिक प्रावधान।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश में झूठी शान के चलते एक लड़की को उसके परिवार वालों ने इसलिये गोली मार दी क्योंकि वह उनकी इच्छा के विरुद्ध अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करना चाहती थी। 

ऑनर किलिंग क्या है?

  • परिचय: ऑनर किलिंग का आशय परिवार के किसी सदस्य (आमतौर पर महिला) की हत्या करना है, जिससे रिश्तेदारों या समुदाय के सदस्यों द्वारा की जाती है।
    • ये कृत्य अक्सर पारिवारिक सम्मान, नैतिकता एवं सामाजिक व्यवहार के संबंध में सख्त सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक मानदंडों में निहित होते हैं।
  • प्रमुख आँकड़े: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 और 2020 में ऑनर किलिंग की संख्या प्रत्येक वर्ष 25 और वर्ष 2021 में 33 रही। लेकिन इससे संबंधित आँकड़े बताए गए आँकड़ों से कहीं अधिक हो सकते हैं।
  • कारण: 
    • जाति व्यवस्था: जाति का दर्ज़ा खोने के भय से (विशेष रूप से अंतर्जातीय या समान गोत्र विवाह के विरुद्ध) हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
    • पितृसत्तात्मक मानदंड: महिलाओं को जीवनसाथी चुनने के अधिकार से अक्सर वंचित रखा जाता है तथा विवाह को पारिवारिक सम्मान का पर्याय माना जाता है।
    • खाप पंचायतें: ये अनौपचारिक निकाय (जो प्रमुख जाति के पुरुषों द्वारा नियंत्रित होती हैं) जातिगत मानदंडों का उल्लंघन करने पर हत्या सहित दंड लगाते हैं। 
    • लैंगिक असंतुलन: विषम लैंगिक अनुपात से महिलाओं के विरुद्ध हिंसा (विशेषकर तब जब विवाह का विकल्प पारंपरिक मानदंडों के विपरीत होता है) को बढ़ावा मिलता है।
    • सामाजिक स्थिति: निर्धारित सामाजिक स्थिति को व्यक्तिगत उपलब्धियों पर प्राथमिकता दी जाती है, जिसके कारण पारिवारिक सम्मान व्यक्तिगत पसंद पर हावी हो जाता है। 
  • परिणाम: 
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन: यह जीवन के मूल मानवाधिकार का उल्लंघन है। इससे लैंगिक असमानता के साथ पितृसत्तात्मक मानदंडों को मज़बूती मिलती है।
    • सामाजिक प्रभाव: जीवित बचे परिवार और समुदाय गंभीर मनोविज्ञान संबंधी अभिघात और दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो जाते हैं।
    • शासन संबंधी चुनौतियाँ: अप्रभावी विधिक ढाँचे या सामाजिक स्वीकृति के कारण अपराधकर्त्ता दंड से बच जाते हैं, जिससे विधिसम्मत शासन प्रभावित होता है।
    • सांस्कृतिक पिछड़ापन: प्रतिगामी परंपराओं को प्रतिबलित करते हुए और प्रगति को बाधित करते हुए यह महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार में बाधा डालता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय परिणाम: मानहनन आधारित हिंसा से वैश्विक मानवाधिकार जाँच की संभावना बढ़ जाती है तथा राजनयिक संबंध प्रभावित होते हैं।

नोट: ऑनर किलिंग को "हत्या" माना जाता है क्योंकि विधि में उन्हें विशेष रूप से संबोधित नहीं किया गया है। इस प्रकार, वे भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधानों के अधीन हैं।

  • "विधिविरुद्ध जमाव का प्रतिषेध (वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप) विधेयक, 2011" शीर्षक से प्रस्तुत यह विधेयक मुख्य रूप से स्व-निर्णयन को रोकने के उद्देश्य से जाति पंचायतों द्वारा बुलाई गई "विधिविरुद्ध सभा" से संबंधित है।
    • प्रारंभिक समर्थन के बावजूद, यह विधेयक संसद में पारित नहीं हो सका और अधिनियम में प्रवर्तित नहीं हुआ।
  • भारतीय विधि आयोग की 242वीं रिपोर्ट (2012) में ऐसे ऑनर किलिंग-रोधी कानूनों की आवश्यकता पर बल दिया गया, जिनमें मामलों की जाँच, अभियोजन और दंड के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश हों।

ऑनर किलिंग की रोकथाम हेतु कौन-से विधिक प्रावधान हैं?

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 299-304 (अब BNS): इस धारा के तहत हत्या और हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के दोषी किसी भी व्यक्ति के दंड का प्रावधान किया गया है।
    • हत्या और मानव वध के लिये आजीवन कारावास या मृत्युदंड हो सकता है।
    • सदोष मानव वध वह है जब किसी की मृत्यु लापरवाही या आपराधिक आशय के कारण होती है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 307: इसके तहत हत्या के प्रयास के लिये 10 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत गैर इरादतन हत्या के प्रयास के लिये तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 34 और 35: इसके अंतर्गत सामान्य आशय से व्यक्तियों द्वारा किये गए आपराधिक कृत्यों के लिये दंड का प्रावधान किया गया है

ऑनर किलिंग से संबंधित न्यायिक निर्णय क्या हैं?

  • लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 2006: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने ऑनर किलिंग को क्रूर कृत्य बताते हुए और अपराधकर्त्ताओं के लिये कठोर दंड पर बल देते हुए अंतरजातीय विवाह में युवा युगलों के साथ होने वाले उत्पीड़न और हिंसा की निंदा।
  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम कृष्णा मास्टर केस, 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनर किलिंग के अपराधियों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास का दंड दिया। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने जघन्य अपराधों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित किये जाने के महत्त्व पर बल दिया।
  • अरुमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य मामला, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि माता-पिता संबंध तोड़ सकते हैं, लेकिन बच्चों को अंतरजातीय विवाह के लिये डरा-धमका या परेशान नहीं कर सकते।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को अंतरजातीय दम्पतियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने तथा उत्पीड़न या हिंसा को रोकने के लिये कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
  • शक्ति वाहिनी केस, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ऑनर किलिंग मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है तथा ऐसे अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को विशेष प्रकोष्ठ स्थापित करके तथा पारिवारिक खतरों का सामना कर रहे दम्पतियों को सुरक्षा प्रदान करके ऑनर किलिंग को रोकने का निर्देश दिया।

आगे की राह: 

  • नया कानून: लक्षित सुरक्षा प्रदान करने, जवाबदेही सुनिश्चित करने, कानूनी प्रक्रियाओं को मानकीकृत करने, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप बनाने तथा सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिये एक समर्पित ऑनर किलिंग विरोधी कानून की आवश्यकता है। 
  • चुनावी अयोग्यता: ऑनर किलिंग की सामाजिक वैधता को कम किया जाना चाहिये, इसके लिये दोषी ठहराए गए लोगों को कम-से-कम पाँच वर्ष तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। इससे यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि ऐसे लोगों को अधिकार वाले पदों पर नहीं होना चाहिये।
    • इससे ऐसे ऑनर किलिंग आदेशों और गतिविधियों को उचित ठहराने से रोका जा सकेगा तथा जाति और समुदाय के आधार पर पंचायतों पर अंकुश लगेगा।
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट: त्वरित न्याय सुनिश्चित करने तथा पीड़ितों के अधिकारों को कमज़ोर करने वाली देरी को रोकने के लिये ऑनर किलिंग के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित किये जाने चाहिये।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन करके पंजीकरण अवधि को एक महीने से घटाकर एक सप्ताह कर दिया गया, ताकि विवाहों को संभावित खतरों या हिंसा से बचाया जा सके।
    • भारतीय दंड संहिता में एक प्रावधान शामिल किया जाए जिसमें ऑनर किलिंग को परिभाषित कर दंड का निर्धारण किया जाए, ताकि कानूनी प्रणाली को ऐसे अपराधों से निपटने तथा उन्हें रोकने में मदद मिल सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में ऑनर किलिंग पर कानूनी प्रावधान और न्यायिक स्थिति क्या है? इनसे निपटने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

प्रश्न. “जाति व्यवस्था नई-नई पहचानों और सहचारी रूपों को धारण कर रही है। अतः भारत में जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। टिप्पणी कीजिये। (2018)

प्रश्न. खाप पंचायतें संविधानेतर प्राधिकरणों के तौर पर प्रकार्य करने, अक्सर मानवाधिकार उल्लंघनों की कोटि में आने वाले निर्णयों को देने के कारण खबरों में बनी रही हैं। इस संबंध में स्थिति को ठीक करने के लिये विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा की गई कार्रवाइयों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2015)


प्रारंभिक परीक्षा

राज्य संप्रतीक

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) से अनुमोदन के बाद त्रिपुरा द्वारा अपने पहले आधिकारिक राज्य संप्रतीक का अनावरण किया गया, जिससे इस मुद्दे पर विमर्श को बढ़ावा मिला है।  

  • त्रिपुरा सरकार के संप्रतीक/प्रतीक के प्रस्ताव को भारत का राज्य संप्रतीक (प्रयोग का विनियमन) नियम, 2007 के नियम 4(2) के अंतर्गत अनुमोदित किया गया है।

राज्य के ध्वज, प्रतीक और गीत से संबंधित प्रावधान क्या हैं? 

  • राज्य ध्वज: भारत में राज्यों का अपना राज्य ध्वज हो सकता है, जब तक कि वह संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950, भारतीय ध्वज संहिता, 2002 और राष्ट्र-गौरव अपमान-निवारण अधिनियम, 1971 के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का स्थान न ले ले या उसका विरोधाभाषी न हो। 
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने S. R. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले 1994 में फैसला दिया था कि राज्य अपने स्वयं के झंडे रख सकते हैं, जब तक उससे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान न हो। 
      • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारत के संविधान द्वारा राज्यों को अपने स्वयं के ध्वज अपनाने पर रोक नहीं लगाई गई है। 
      • इसने कहा कि राज्य ध्वज को हमेशा राष्ट्रीय ध्वज के नीचे फहराया जाना चाहिये और यह उसके साथ नहीं फहराया जा सकता है तथा इसका उपयोग आधिकारिक या वैधानिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता है।
  • राज्य प्रतीक: भारत का राज्य प्रतीक, भारत के राज्य संप्रतीक (अनुचित प्रयोग प्रतिषेध) अधिनियम, 2005 के अंतर्गत विनियमित होता है। 
    • भारत में राज्य अपना प्रतीक चिह्न अपना सकते हैं, लेकिन राज्य प्रतीकों के लिये उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी लेनी पड़ती है।
    • राज्य के प्रतीकों के अधिकृत उपयोगों में आधिकारिक मुहरें, स्टेशनरी, वाहन और प्रमुख सार्वजनिक भवन शामिल हैं। व्यक्तिगत, संगठनात्मक या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये अनधिकृत उपयोग सख्त वर्जित है।
  • राज्य गीत: भारत में राज्य गीतों पर एक समान कानून का अभाव है, जिन्हें आमतौर पर राज्य विधानसभाओं या कार्यपालिकाओं द्वारा अनुमोदित किया जाता है। ये गीत राज्य की विरासत को दर्शाते हैं तथा आधिकारिक कार्यक्रमों में गाए जाते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रगान का सम्मान सुनिश्चित होता है।
  • उदाहरण: पश्चिम बंगाल ने पोइला बैसाख (बैसाख के बंगाली महीने का पहला दिन) को राज्य दिवस (या बांग्ला दिवस) के रूप में घोषित किया, और रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित बांग्लार माटी बांग्लार जल को राज्य गीत के रूप में घोषित किया।

नोट: संविधान का अनुच्छेद 51A (मौलिक कर्त्तव्य) नागरिकों पर उनके मौलिक कर्त्तव्यों के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय और राज्य प्रतीकों का सम्मान करने का नैतिक कर्त्तव्य डालता है।

  • अनुच्छेद 51A (a): संविधान का पालन करना तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का आदर करना।

संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 क्या है?

  • परिचय:
    • संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 उचित अनुमति के बिना निजी संस्थाओं द्वारा वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये राष्ट्रीय प्रतीकों, नामों और चिह्नों के अनधिकृत उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
    • यह अधिनियम राज्य प्रतीकों पर भी लागू होता है, जिसका अर्थ है कि राज्य के प्रतीकों और नामों को भी इस कानून के तहत संरक्षित किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य प्रतीकों का उचित प्राधिकरण के बिना वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये दुरुपयोग न किया जाए।
  • अनुचित उपयोग का निषेध:
    • अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत अनुसूची में सूचीबद्ध नामों या प्रतीकों अथवा उनकी प्रतिकृति का, व्यापार, कारोबार, पेशे, या ट्रेडमार्क/पेटेंट के रूप में, केंद्र सरकार अथवा किसी प्राधिकृत अधिकारी की पूर्वानुमति के बिना उपयोग किया जाना प्रतिबंधित है।

भारतीय झंडा संहिता, 2002

  • परिचय:
    • भारतीय झंडा संहिता, 2002 में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग, प्रदर्शन और फहराने के नियमों का उल्लेख किया गया है । 
    • यह राष्ट्र गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 द्वारा अधिनियमित है। 
  • प्रमुख प्रावधान:
    • सामग्री और निर्माण:
      • राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते गए, हाथ से बुने हुए या मशीन से बने सामग्रियों जैसे कपास, पॉलिएस्टर, ऊन या रेशम से बना होना चाहिये। दिसंबर 2021 के संशोधन के पश्चात् पॉलिएस्टर और मशीन से बने झंडों को अनुमति दी गई है।
    • आरोहण एवं प्रदर्शन:
      • व्यक्ति, संगठन या संस्थाएँ किसी भी दिन सम्मान के साथ ध्वज फहरा सकते हैं। जुलाई 2022 में संशोधन के तहत इसे खुले में या निजी संपत्तियों पर दिन-रात  फहराने की अनुमति दी गई है।
    • डिज़ाइन और आयाम:
      • झंडा आयताकार होना चाहिये, जिसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 होना चाहिये।
    • प्रतिबंध:
      • ध्वज को अन्य झंडों के साथ एक ही ध्वजारोहण केंद्र से नहीं फहराया जा सकता।
      • इसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल आदि जैसे गणमान्य व्यक्तियों के अलावा अन्य किसी के वाहन पर नहीं फहराया जा सकता।
      • किसी अन्य ध्वज या पताका को राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर या बगल में नहीं रखा जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. आंध्र प्रदेश के मदनपल्ली के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2021)

(a) पिंगली वेंकैया ने यहाँ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का डिज़ाइन किया।
(b) पट्टाभि सीतारमैया ने यहाँ से आंध्र क्षेत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्त्व किया।
(c) रबींद्रनाथ टैगोर ने यहाँ राष्ट्रगान का बांग्ला से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया।
(d) मैडम ब्लावात्स्की तथा कर्नल ऑलकाट ने सबसे पहले यहाँ थियोसोफिकल सोसाइटी का मुख्यालय स्थापित किया।

उत्तर: (c)


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