पारस्परिक कानूनी सहायता संधि
प्रिलिम्स के लिये:पारस्परिक कानूनी सहायता संधि, MLATs के लिये भारत में नोडल एजेंसी और इसका कानूनी आधार, पोलैंड की अवस्थिति मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद से निपटने में पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों (MLATs) की उपयोगिता, भारत-पोलैंड संबंधों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत सरकार और पोलैंड के बीच ‘आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता संधि’ को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय
- पारस्परिक कानूनी सहायता संधियाँ (MLATs):
- आपराधिक मामलों में ‘पारस्परिक कानूनी सहायता संधि’ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सहायता प्रदान करने के लिये देशों के बीच की गई द्विपक्षीय संधियाँ हैं।
- ये समझौते हस्ताक्षर करने वाले देशों के बीच आपराधिक और संबंधित मामलों में साक्ष्य एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान की अनुमति देते हैं।
- संधि का महत्त्व:
- अपराध की जाँच और अभियोजन: यह आपराधिक मामलों में सहयोग और पारस्परिक कानूनी सहायता के माध्यम से अपराध की जाँच तथा अभियोजन में दोनों देशों की प्रभावशीलता को बढ़ाएगा।
- अंतर्राष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद से इसका संबंध: यह अपराध की जाँच और अभियोजन में पोलैंड के साथ द्विपक्षीय सहयोग के साथ-साथ अपराध साधनों तथा आतंकवाद को वित्तपोषित करने हेतु उपयोग धन का पता लगाने, रोकने एवं ज़ब्त करने के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करेगी।
- बेहतर इनपुट प्राप्त करना: यह संगठित अपराधियों और आतंकवादियों के तौर-तरीकों में बेहतर जानकारी तथा अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में सहायक होगा।
- जिसका उपयोग आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में बेहतर नीतिगत निर्णयों के लिये किया जा सकता है।
- भारत में नोडल एजेंसी:
- गृह मंत्रालय आपराधिक कानून के मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता प्राप्त करने और प्रदान करने के लिये नोडल मंत्रालय तथा केंद्रीय प्राधिकरण है।
- वहीं जब मंत्रालयों द्वारा राजनयिक चैनलों के माध्यम से ऐसे अनुरोध भेजे जाते हैं, तो विदेश मंत्रालय को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।
- कानूनी आधार
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 105 केंद्र सरकार द्वारा विदेशी सरकारों के साथ समन/वारंट/न्यायिक प्रक्रियाओं के संबंध में पारस्परिक व्यवस्था का प्रावधान करती है।
- भारत ने 42 देशों (नवंबर 2019) के साथ पारस्परिक कानूनी सहायता संधि/समझौते किये हैं।
- पारस्परिक कानूनी सहायता संधियाँ (MLATs):
भारत-पोलैंड संबंध
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- भारत और पोलैंड के राजनयिक संबंध वर्ष 1954 में स्थापित हुए, जिसके पश्चात् वर्ष 1957 में वारसॉ में भारतीय दूतावास खोला गया।
- उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नस्लवाद के विरोध के आधार पर दोनों देशों ने समान वैचारिक धारणाएँ साझा कीं।
- पोलैंड के ‘कम्युनिस्ट युग’ (1944 से 1989) के दौरान दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण थे, इस दौरान नियमित उच्च स्तरीय यात्राओं के साथ, राज्य के व्यापारिक संगठनों द्वारा नियोजित व्यापार और आर्थिक वार्ताओं का आयोजन किया गया।
- वर्ष 1989 में पोलैंड द्वारा लोकतांत्रिक मार्ग चुने जाने के बाद भी संबंध घनिष्ठ बने रहे।
- वर्ष 2004 में पोलैंड के यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद से दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बने हुए है और यह मध्य यूरोप में भारत के प्रमुख आर्थिक भागीदारों में से एक बन गया है।
- आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
- निर्यात:
- पोलैंड मध्य यूरोपीय क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार और निर्यात गंतव्य है, पिछले दस वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार लगभग सात गुना बढ़ रहा है।
- भारतीय आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में द्विपक्षीय व्यापार का कुल मूल्य 2.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- निवेश:
- पोलैंड में भारत का निवेश 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- भारत में पोलैंड का कुल निवेश लगभग 672 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
- अप्रैल 2000 से मार्च 2019 तक भारत ने पोलैंड से 672 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का FDI प्राप्त किया है जो भारत के कुल FDI प्रवाह का 0.16% है।
- निर्यात:
- सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध:
- पोलैंड में इंडोलॉजी के अध्ययन की एक मज़बूत परंपरा है, पोलिश विद्वानों ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में संस्कृत का पोलिश में अनुवाद किया था।
- इंडोलॉजी भारत के इतिहास, संस्कृतियों, भाषाओं और साहित्य का अकादमिक अध्ययन है और इस तरह एशियाई अध्ययनों का एक भाग है।
- वर्ष 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ का आयोजन पोलिश मिशन द्वारा किया गया।
- पोलिश पोस्ट ((Poczta Polska) द्वारा महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर एक स्मारक डाक टिकट को जारी किया गया।
- गुरु नानक देव जी मिशन के 550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर पोलैंड के गुरुद्वारा साहिब और पोलिश मिशन के द्वारा संयुक्त रूप से गुरुद्वारा साहिब, पोलैंड में समारोह का आयोजन किया।
- 21 जून, 2015 को पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पोलैंड के 21 शहरों में आयोजित किया गया तथा लगभग 11000 लोगों द्वारा सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लिया गया था।
- पोलैंड में इंडोलॉजी के अध्ययन की एक मज़बूत परंपरा है, पोलिश विद्वानों ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में संस्कृत का पोलिश में अनुवाद किया था।
- भारतीय समुदाय:
- पोलैंड में लगभग 10,000 भारतीय समुदाय के होने का अनुमान है जिसमें व्यापारी (वस्त्र, वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स) शामिल हैं। जो बहुराष्ट्रीय या भारतीय कंपनियों और सॉफ्टवेयर/आईटी विशेषज्ञों के साथ साम्यवाद तथा पेशेवरों के पतन के बाद आए थे, जिनमें भारतीय छात्रों की बढ़ती संख्या भी शामिल थी।
आगे की राह:
- वर्ष 2017 में ब्लूमबर्ग द्वारा पोलैंड को 50 सबसे नवीन देशों में से एक के रूप में प्रशंसित किया गया था और यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत इसे मध्य यूरोप में प्रौद्योगिकी केंद्र तथा व्यापार करने के लिये अनुकूल स्थान के रूप में देखें।
- हरित प्रौद्योगिकियों, स्मार्ट सिटी, साइबर सुरक्षा, फिनटेक और जल प्रबंधन के मामले में पोलैंड एक मज़बूत देश है।
- पोलैंड ऑटोमोटिव क्षेत्र में भारतीय निवेशकों और निर्यातकों को भी बेहतरीन अवसर प्रदान करता है। पिछले 5 वर्षों में पोलैंड की रणनीतिक स्थिति, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी और फार्मा बाज़ार में 25% की वृद्धि को देखते हुए भारतीय निर्यातकों तथा निवेशकों के लिये यह अच्छा अवसर हो सकता हैं।
- भारत और पोलैंड के संबंध हमेशा से बहुत अच्छे रहे हैं। लेकिन हमारे बीच व्यापार को कोविड-19 के कारण नुकसान हुआ है।
- पोलैंड में बढ़ते भारतीय प्रवासी जिसमें लगभग 6,000 छात्र शामिल हैं। यह एक नया कारक है जिसने दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत किया है।
- पोलैंड तब से छात्रों के लिये और अधिक आकर्षक बन गया है जब से उसने प्रमुख विश्वविद्यालयों में चिकित्सा तथा इंजीनियरिंग में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की शुरुआत गई है
- कोविड-19 से पहले दिल्ली से वारसा के लिये सीधी उड़ान होती थी। इस सीधी उड़ान की बहाली से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध को मज़बूती प्रदान करेंगी।
स्रोत: पी.आई.बी
जलवायु परिवर्तन पर मसौदा प्रस्ताव: संयुक्त राष्ट्र
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), COP-26, नेट ज़ीरो, क्योटो प्रोटोकॉल मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के मसौदा प्रस्ताव का महत्त्व, इस पर भारत की प्रतिक्रिया और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिये भारत द्वारा अब तक की गई पहलें। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और रूस ने जलवायु परिवर्तन पर ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) के प्रस्तावित मसौदे का विरोध किया है।
- यह प्रस्ताव आयरलैंड और नाइज़र द्वारा सह-प्रायोजित था और इसे पहली बार जर्मनी द्वारा वर्ष 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में प्रस्तावित किया गया था।
- इसे 113 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों (कुल 193 में से) का समर्थन प्राप्त था, जिसमें 15 में से 12 संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सदस्य शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
- परिचय
- इस मसौदा प्रस्ताव में जलवायु परिवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके प्रभावों पर चर्चा हेतु सुरक्षा परिषद में एक औपचारिक स्थान बनाने का प्रयास किया गया है।
- इस प्रस्ताव ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव से इस विषय पर समय-समय पर रिपोर्ट प्रदान करने की भी मांग की है कि संघर्षों को रोकने हेतु जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न जोखिमों को किस प्रकार संबोधित किया जा सकता है।
- इसमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव से ‘जलवायु सुरक्षा’ हेतु एक विशेष दूत नियुक्त करने को भी कहा गया है।
- इसके अलावा, इसने संयुक्त राष्ट्र के फील्ड मिशनों को अपने संचालन के क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के आकलन पर नियमित रूप से रिपोर्ट करने और अपने नियमित कार्यों को करने में जलवायु विशेषज्ञों की मदद लेने के लिये कहा गया है।
- आवश्यकता
- प्रायः यह तर्क दिया जाता है कि जलवायु परिवर्तन का एक प्रकार का अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा आयाम भी है।
- जलवायु परिवर्तन से प्रेरित भोजन या जल की कमी, आवास या आजीविका का नुकसान, या प्रवास मौजूदा संघर्षों को बढ़ा सकता है या नए संघर्ष भी पैदा कर सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र के फील्ड मिशनों के लिये भी इसके महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हो सकते हैं, जो शांति स्थापना के प्रयासों में दुनिया भर में तैनात किये गए हैं।
- आलोचना:
- UNFCCC से UNSC की ओर स्थानांतरित
- भारत ने कहा कि जलवायु वार्ता को संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) से सुरक्षा परिषद में स्थानांतरित करने और इस मुद्दे पर सामूहिक कार्रवाई के लिये यह "एक कदम पीछे" का प्रयास है।
- वार्षिक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भी भारत ने अंतिम मसौदा समझौते में अंतिम समय में संशोधन के लिये दबाव बनाया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोयले के "फेज-आउट" के प्रावधान को "फेज-डाउन" में बदल दिया जाय।
- भारत के अनुसार यह मसौदा प्रस्ताव सही दिशा में की गई प्रगति को कमज़ोर करेगा।
- भारत ने कहा कि जलवायु वार्ता को संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) से सुरक्षा परिषद में स्थानांतरित करने और इस मुद्दे पर सामूहिक कार्रवाई के लिये यह "एक कदम पीछे" का प्रयास है।
- UNFCCC से UNSC की ओर स्थानांतरित
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन
- इसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े सभी मुद्दों पर चर्चा होती है।
- 190 से अधिक देश जो UNFCCC के सदस्य है जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा वैश्विक दृष्टिकोण पर कार्य करने के लिये वर्ष के अंतिम दो सप्ताह में वार्षिक कॉन्फ्रेंस करते हैं। इस वर्ष यह बैठक ग्लासगो में होने वाली है।
- यह वह प्रक्रिया है जिसने पेरिस समझौते को जन्म दिया है तथा इसके पूर्ववर्ती समझौते क्योटो प्रोटोकॉल, जो कि एक प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- UNSC के पास विशेषज्ञता नहीं है:
- इस जलवायु वार्ता में यह तर्क दिया गया है कि UNFCCC को जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी मुद्दों को संबोधित करने के लिये उपयुक्त मंच बने रहना चाहिये और दावा किया कि सुरक्षा परिषद के पास ऐसा करने की विशेषज्ञता नहीं है।
- जलवायु कार्रवाई पर आधिपत्य:
- UNFCCC के विपरीत जहाँ सभी 190 से अधिक देशों की सर्वसम्मति से निर्णय लिये जाते हैं वहीं UNSC में कुछ मुट्ठी भर विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन से संबंधित के निर्णय लिये जाएँगे ।
- UNSC के सदस्य "ऐतिहासिक उत्त्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन में प्रमुख योगदानकर्त्ता" हैं
- साथ ही इस मुद्दे को सुरक्षा परिषद में लाने का निर्णय अधिकांश विकासशील देशों की भागीदारी और आम सहमति के बिना किया गया था।
- UNFCCC के विपरीत जहाँ सभी 190 से अधिक देशों की सर्वसम्मति से निर्णय लिये जाते हैं वहीं UNSC में कुछ मुट्ठी भर विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन से संबंधित के निर्णय लिये जाएँगे ।
- UNSC के पास विशेषज्ञता नहीं है:
- हाल ही में भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन को सीमित करने संबंधी उपाय:
- COP-26 में पाँच तत्त्वों के साथ एक महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई प्रारंभ की गई है।
- वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 GW तक ले जाना
- वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना
- वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन कम करना
- वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करना
- वर्ष 2070 तक "शुद्ध शून्य" के लक्ष्य को प्राप्त करना।
- भारत अब स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में चौथे स्थान पर है और पिछले सात वर्षों में गैर-जीवाश्म ऊर्जा में 25% से अधिक की वृद्धि हुई है और कुल ऊर्जा मिश्रण का 40% तक पहुँच गया है।
- COP-26 में पाँच तत्त्वों के साथ एक महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई प्रारंभ की गई है।
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (सीडीआरआई) जैसी पहलों में भी अग्रणी भूमिका निभाई है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने UNSC सहित संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंगों की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 23 ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ की संरचना से संबंधित है।
- संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंगों में शामिल हैं- संयुक्त राष्ट्र महासभा, ट्रस्टीशिप परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं सचिवालय।
- ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ को अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी दी गई है और जब भी वैश्विक शांति पर कोई खतरा उत्पन्न होता है तब परिषद की बैठक आयोजित की जाती है।
- यद्यपि संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंग सदस्य राज्यों के लिये सिफारिशें करते हैं, किंतु सुरक्षा परिषद के पास सदस्य देशों के लिये निर्णय लेने और बाध्यकारी प्रस्ताव जारी करने की शक्ति होती है।
- स्थायी और अस्थायी सदस्य: UNSC में 15 सदस्य हैं जिसमे 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्यों शामिल है।
- पाँच स्थायी सदस्य: चीन, फ्राँस, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
- दस अस्थायी सदस्य: इसका चुनाव महासभा द्वारा दो वर्षों के लिये किया जाता है।
- प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दो वर्षीय कार्यकाल के लिये पाँच अस्थायी सदस्यों (कुल दस में से) का चुनाव किया जाता है। दस अस्थायी सीटों का वितरण क्षेत्रीय आधार पर होता है।
- जैसा कि प्रक्रिया के नियमों के नियम 144 में निर्धारित है, एक सेवानिवृत्त सदस्य तत्काल पुन: चुनाव के लिये पात्र नहीं है।
- प्रक्रिया के नियम 92 के अनुसार, चुनाव गुप्त मतदान द्वारा होता है तथा इसमें कोई नामांकन प्रक्रिया शामिल नहीं है। प्रक्रिया के नियम 83 के तहत, सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों को दो-तिहाई बहुमत से चुना जाता है।
- अफ्रीकी और एशियाई देशों के लिये पाँच सदस्य।
- पूर्वी यूरोपीय देशों के लिये एक सदस्य।
- दो सदस्य लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों के लिये।
- दो सदस्य पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देशों के लिये।
- भारत UNSC में अपनी एक स्थायी सीट का पक्ष करता रहा है।
- भारत जनसंख्या, क्षेत्रीय आकार, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), आर्थिक क्षमता, संपन्न विरासत और सांस्कृतिक विविधता तथा संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में योगदान आदि सभी पैमानों पर खरा उतरता है।
स्रोत: द हिंदू
यूनेस्को की ICH सूची में दुर्गा पूजा
प्रिलिम्स के लिये:यूनेस्को ICH ऑफ ह्यूमैनिटी, यूनेस्को, मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम, वर्ल्ड हेरिटेज प्रोग्राम, यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क नेटवर्क, यूनेस्को का नेटवर्क ऑफ क्रिएटिव सिटीज़ मेन्स के लिये:भारत के लिये सांस्कृतिक विरासत की रक्षा का महत्त्व, मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कोलकाता की दुर्गा पूजा को मानवता की ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ (ICH) की यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची में अंकित किया गया है।
- मानवता के यूनेस्को ICH के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला यह एशिया का पहला त्योहार है।
- इससे पहले यूनेस्को ने गुजरात में हड़प्पा शहर धौलावीरा को भारत की 40वीं विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया था।
प्रमुख बिंदु
- दुर्गा पूजा:
- दुर्गा पूजा पाँच दिवसीय त्योहार है जो नौ दिवसीय नवरात्रि उत्सव की पाँचवीं रात से शुरू होता है और दसवें दिन दशमी को समाप्त होता है।
- इस समय के दौरान, लोग सामूहिक रूप से देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और उनका आह्वान करते हैं, जिन्हें ब्रह्मांड की ऊर्जा स्त्री माना जाता है, जिन्हें 'शक्ति' भी कहा जाता है।
- यह देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक कार्निवाल और स्ट्रीट आर्ट फेस्टिवल में से एक है।
- इस समय के दौरान, देवी के जटिल रूप से डिजाइन किये गए मिट्टी के मॉडल को 'पंडालों' और मंडपों में पूजा जाता है जहाँ लोग एक साथ मिलते हैं।
- लोक संगीत, पाक कला, शिल्प और प्रदर्शन कला परंपराएँ उत्सव का एक हिस्सा हैं।
- इस त्योहार की शुरुआत पश्चिम बंगाल से हुई, जिसमें देश में सबसे बड़ा बंगाली समुदाय है, यह त्योहार भारत के कई अन्य हिस्सों और दुनिया में भी मनाया जाता है।
- महत्त्व:
- यह पारंपरिक कला और शिल्प, समुदायों की भलाई और आर्थिक सशक्तीकरण तथा रचनात्मकता को सक्रिय बनाए रखने एवं संरक्षित करने में इस त्योहार के योगदान करता है।
- इस वर्ष (2021) की शुरुआत में ‘ब्रिटिश काउंसिल इन इंडिया’ ने दुर्गा पूजा की रचनात्मक अर्थव्यवस्था के व्यय को 32,000 करोड़ रुपए बताया जो पश्चिम बंगाल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2.58% का योगदान देता है।
- यह पारंपरिक कला और शिल्प, समुदायों की भलाई और आर्थिक सशक्तीकरण तथा रचनात्मकता को सक्रिय बनाए रखने एवं संरक्षित करने में इस त्योहार के योगदान करता है।
- यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची:
- यह प्रतिष्ठित सूची उन अमूर्त विरासत तत्त्वों से बनी है जो सांस्कृतिक विरासत की विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
- यूनेस्को के अनुसार, सांस्कृतिक विरासत स्मारकों और वस्तुओं के संग्रह पर समाप्त नहीं होती है।
- इसमें हमारे पूर्वजों से विरासत में मिली परंपराएँ या जीवित अभिव्यक्तियाँ भी शामिल हैं और हमारे वंशजों को हस्तांतरित की जाती हैं, जैसे कि मौखिक परंपराएँ, प्रदर्शन कला, सामाजिक प्रथाएँ, अनुष्ठान, उत्सव की घटनाएँ, प्रकृति और ब्रह्मांड से संबंधित ज्ञान, अभ्यास या पारंपरिक ज्ञान और कौशल शिल्प।
- यह सूची वर्ष 2008 में स्थापित की गई थी जब अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये कन्वेंशन लागू हुआ था।
- संस्कृति मंत्रालय (भारत) ने भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) की राष्ट्रीय सूची का मसौदा भी लॉन्च किया है।
- राष्ट्रीय ICH सूची अपनी अमूर्त विरासत में अंतर्निहित भारतीय संस्कृति की विविधता को पहचानने का एक प्रयास है।
- यह पहल संस्कृति मंत्रालय के विजन 2024 का भी हिस्सा है।
- भारत वर्ष 2003 के यूनेस्को कन्वेंशन का भी एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है जिसका उद्देश्य परंपराओं और जीवित अभिव्यक्ति के साथ-साथ अमूर्त विरासत की सुरक्षा करना है।
- उत्कीर्ण तत्त्व:
- वर्तमान में, इसमें 492 तत्त्व शामिल हैं, जिनमें से यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिष्ठित प्रतिनिधि सूची में भारत की अब 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें शामिल हैं।
- भारत में दुर्गा पूजा के अलावा यूनेस्को द्वारा ICH के रूप में मान्यता प्राप्त 13 परंपराएंँ हैं।
यूनेस्को (UNESCO)
- यूनेस्को के बारे में:
- संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन' (UNESCO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। यह शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति स्थापित करने का प्रयास करती है।
- यूनेस्को के कार्यक्रम एजेंडा 2030 में परिभाषित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) की प्राप्ति में योगदान करते हैं, जिसे 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था।
- इसके 193 सदस्य देश और 11 संबद्ध सदस्य हैं। भारत वर्ष 1946 में यूनेस्को में शामिल हुआ था।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल ने यूनेस्को की सदस्यता वर्ष 2019 में औपचारिक रूप से छोड़ दी थी।
- इसका मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में है।
- यूनेस्को का अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (Intergovernmental Oceanographic Commission of UNESCO) आपदा न्यूनीकरण रणनीति के हिस्से के रूप में महासागर आधारित सुनामी चेतावनी प्रणाली स्थापित करने हेतु वैश्विक प्रयास का नेतृत्व कर रहा है।
- वर्ष 2020 में ओडिशा के दो गाँवों (वेंकटरायपुर और नोलियासाह) को सुनामी से निपटने हेतु तैयारियों के लिये ‘सुनामी रेडी’ (Tsunami Ready) के रूप में नामित किया है।
- यूनेस्को की अन्य पहलें:
- मानव व जीवमंडल कार्यक्रम
- विश्व विरासत कार्यक्रम
- यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क नेटवर्क
- यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क
स्रोत: पी.आई.बी
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग
प्रिलिम्स के लिये:लद्दाख की संसद, केंद्र शासित प्रदेश (UT), संविधान की छठी अनुसूची, स्वायत्त ज़िला परिषद (ADCs), राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) मैन्स के लिये:भारतीय संविधान की छठी अनुसूची का महत्त्व, भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश (UT) को शामिल करने की मांग समावेश के रास्ते में बाधाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद में भूमि, रोज़गार और स्थानीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के लिये केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई गई है।
- जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 द्वारा राज्य को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर (विधायिका के साथ) तथा लद्दाख (विधायिका के बिना) में विभाजित किया गया था।
प्रमुख बिंदु:
- छठी अनुसूची में शामिल करने की आवश्यकता:
- केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख क्षेत्र का प्रशासन अब पूरी तरह नौकरशाहों के हाथ में है जिससे सरकार की श्रीनगर से बढ़ती दूरियाँ भी साफ नजर आ रही है।
- जम्मू-कश्मीर में बदली हुई अधिवास नीति ने इस क्षेत्र में अपनी जमीन, रोज़गार, जनसांख्यिकी और सांस्कृतिक पहचान को लेकर आशंका पैदा कर दी है।
- लद्दाख केंद्र शासितप्रदेश के लेह और कारगिल में दो हिल काउंसिल हैं, लेकिन कोई भी छठी अनुसूची के तहत नहीं है।
- उनकी शक्तियाँ कुछ स्थानीय करों जैसे पार्किंग शुल्क और आवंटन तथा केंद्र द्वारा निहित भूमि के उपयोग तक सीमित हैं।
- NCST की सिफारिश:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने सिफारिश की है कि केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
- अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिये एक संवैधानिक निकाय NCST को केंद्र द्वारा लद्दाख में आदिवासियों की स्थिति की जाँच करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी।
- यदि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो वह छठी अनुसूची में में शामिल एकमात्र केंद्र शासितप्रदेश होगा। लद्दाख को ऐसा दर्ज़ा देने के लिये एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
- सिफारिश के पीछे के कारण:
- यह अनुमान लगाया गया है कि लद्दाख की 90% से अधिक आबादी आदिवासी है। लद्दाख में बाल्टी बेडा, बॉट (या बोटो), ब्रोकपा (या द्रोकपा, दर्द, शिन), चांगपा, गर्रा, सोम और पुरिगपा अनुसूचित जनजाति (ST) हैं।
- लद्दाख क्षेत्र में द्रोकपा, बलटी और चांगपा जैसे समुदायों की कई विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत हैं, जिन्हें संरक्षित और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के निर्माण से पहले लद्दाख क्षेत्र के लोगों के पास भूमि पर अधिकार सहित कुछ कृषि अधिकार थे, जो देश के अन्य हिस्सों के लोगों को लद्दाख में जमीन खरीदने या हासिल करने के लिये प्रतिबंधित करते थे।
- छठी अनुसूची में शामिल करने से क्षेत्र में शक्तियों के लोकतांत्रिक हस्तांतरण में मदद मिलेगी तथा क्षेत्र के त्वरित विकास के लिये धन के हस्तांतरण में भी वृद्धि होगी।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने सिफारिश की है कि केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
- लद्दाख को शामिल करने के पीछे की कठिनायाँ:
- लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना मुश्किल होगा। क्योकि संविधान में स्पष्ट है की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों के लिये है।
- देश के बाकी हिस्सों में आदिवासी क्षेत्रों के लिये पाँचवीं अनुसूची है।
- विशेष रूप से पूर्वोत्तर के बाहर के किसी भी क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
- मणिपुर, जहाँ कुछ स्थानों पर आदिवासी बहुल आबादी है, की स्वायत्त परिषदों को भी छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
- नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश, जो पूरी तरह से आदिवासी क्षेत्र हैं, भी छठी अनुसूची में शामिल नहीं हैं।
- हालाँकि, यह सरकार का विशेषाधिकार बना रहता है, यदि वह ऐसा निर्णय लेती है, तो इस उद्देश्य के लिये संविधान में संशोधन हेतु एक विधेयक ला सकती है।
- लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना मुश्किल होगा। क्योकि संविधान में स्पष्ट है की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों के लिये है।
छठी अनुसूची
- अनुच्छेद 244: अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची, स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों- स्वायत्त ज़िला परिषद (ADCs) - के गठन का प्रावधान करती है, जिनके पास राज्य के भीतर विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता होती है।
- छठी अनुसूची में चार उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन हेतु विशेष प्रावधान शामिल हैं।
- स्वायत्त ज़िले: इन चार राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है। राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को व्यवस्थित और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
- संसद या राज्य विधायिका के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों पर लागू नहीं होते हैं या निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
- इस संबंध में निर्देशन की शक्ति या तो राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास होती है।
- ज़िला परिषद: प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है, जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
- निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पूर्व भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं।
- प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में भी एक अलग क्षेत्रीय परिषद होती है।
- परिषद की शक्तियाँ: ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं।
- भूमि, वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है।
- वे जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों के संबंध में उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
- ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक स्कूलों, औषधालयों, बाज़ारों, मत्स्यपालन क्षेत्रों, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है।
- ज़िला एवं क्षेत्रीय परिषदों के पास भू राजस्व का आकलन एवं संग्रहण करने एवं कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
पहली हरित हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड परियोजना: आंध्र प्रदेश
प्रिलिम्स के लिये:ग्रीन हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड प्रोजेक्ट, डीकार्बोनाइजिंग, हाइड्रोजन के रूप, NTPC मेन्स के लिये:ग्रीन हाइड्रोजन और वर्ष 2070 तक भारत के कार्बन न्यूट्रल बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने में इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा आंध्र प्रदेश में सिम्हाद्री (विशाखापत्तनम के पास) संयंत्र में देश की पहली ग्रीन हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड परियोजना की शुरुआत की गई है।
प्रमुख बिंदु
- हरित हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड परियोजना के बारे में:
- यह अनूठी परियोजना के प्रारूप को NTPC द्वारा इन-हाउस डिज़ाइन किया गया है। यह बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं का अग्रदूत होगा। यह वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बनने के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- परियोजना के पास स्थापित फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट से इनपुट पावर लेकर उन्नत 240 kW सॉलिड ऑक्साइड इलेक्ट्रोलाइज़र का उपयोग कर हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाएगा।
- इससे पहले NTPC ने तेलंगाना के रामागुंडम् में भारत के सबसे बड़े फ्लोटिंग सोलर प्लांट के विकास का काम शुरू किया था।
- दिन के दौरान उत्पादित हाइड्रोजन को उच्च दबाव पर संग्रहीत किया जाएगा और 50 किलोवाट ठोस ऑक्साइड ईंधन सेल का उपयोग करके विद्युतीकृत किया जाएगा।
- एक ठोस ऑक्साइड ईंधन सेल (या SOFC) एक विद्युत रासायनिक रूपांतरण उपकरण है जो ईंधन के ऑक्सीकरण द्वारा सीधे विद्युत उत्पन्न करता है।
- महत्त्व:
- एक से अधिक माइक्रोग्रिड को परिनियोजित करने में सहायक:
- यह परियोजना देश के विभिन्न ऑफ-ग्रिड और रणनीतिक स्थानों में मल्टीपल माइक्रोग्रिड के अध्ययन के लिये उपयोगी होगी।
- स्वच्छ ऊर्जा विकास जलवायु परिवर्तन और इसके विनाशकारी प्रभावों को सीमित करने के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण हथियार है।
- यह परियोजना देश के विभिन्न ऑफ-ग्रिड और रणनीतिक स्थानों में मल्टीपल माइक्रोग्रिड के अध्ययन के लिये उपयोगी होगी।
- डीकार्बोनाइजिंग के लिये संभावनाएंँ:
- यह देश के दूर-दराज के क्षेत्रों जैसे- लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, आदि जो डीजल जनरेटर पर निर्भर है में डीकार्बोनाइज (Decarbonizing) की संभावनाओं को खोलेगा हैं।
- डीकार्बोनाइजिंग का अर्थ है पर्यावरण में जारी गैसीय कार्बन यौगिकों की मात्रा को हटाना या कम करना।
- NTPC रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड (NTPC REL) ने भी हरित हाइड्रोजन मोबिलिटी परियोजना हेतु केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के साथ एक समझौता किया है।
- यह देश के दूर-दराज के क्षेत्रों जैसे- लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, आदि जो डीजल जनरेटर पर निर्भर है में डीकार्बोनाइज (Decarbonizing) की संभावनाओं को खोलेगा हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- हाइड्रोजन ईंधन भारत की ऊर्जा सुरक्षा में निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है, जिसके द्वारा अपने 85% तेल और 53% गैस आवश्यकताओं का आयात करता है।
- स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिये भारत उर्वरक संयंत्रों और तेल रिफाइनरियों हेतु हरित हाइड्रोजन खरीदना अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है।
- NTPC परिवहन के लिये सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन (City Gas Distribution- CGD) नेटवर्क के लिये ईंधन को प्राकृतिक गैस के साथ मिलाकर हाइड्रोजन का लाभ उठाने पर भी विचार कर रही है।
- एक से अधिक माइक्रोग्रिड को परिनियोजित करने में सहायक:
- संबंधित पहल:
- भारतीय रेलवे द्वारा मौजूदा डीज़ल इंजन को रेट्रोफिटिंग करके हाइड्रोजन-ईंधन सेल प्रौद्योगिकी-आधारित ट्रेन के देश के पहले प्रयोग की घोषणा की गई है।
- राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHM):
- केंद्रीय बजट (2021-22) ने ऊर्जा स्रोत के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग करने के मिशन की घोषणा की है।
- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) लक्ष्य: यह वर्ष 2022 तक 100 गीगावॉट ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य रखता है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)
ग्रीन हाइड्रोजन
- यह पवन और सौर जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों द्वारा संचालित इलेक्ट्रोलाइज़र का उपयोग करके जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके उत्पादित किया जाता है।
- ईंधन भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये एक गेम-चेंजर हो सकता है, जो अपने तेल का 85% और गैस आवश्यकताओं का 53% आयात करता है।
- स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिये भारत उर्वरक संयंत्रों और तेल रिफाइनरियों के लिये हरित हाइड्रोजन खरीदना अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है।
हाइड्रोजन
- स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिये हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक है।
- हाइड्रोजन का प्रकार उसके बनने की प्रक्रिया पर निर्भर करता है:
- ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
- इसके तहत विद्युत द्वारा जल (H2O) को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है।
- उपोत्पाद: जल, जलवाष्प।
- ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन कोयले का उपयोग करके किया जाता है जहाँ उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
- ग्रे हाइड्रोजन (Grey Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है जहाँ संबंधित उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
- ब्लू हाइड्रोजन (Blue Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होती है, जहाँ कार्बन कैप्चर और स्टोरेज का उपयोग करके उत्सर्जन को कैप्चर किया जाता है।
- ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC)
- NTPC लिमिटेड विद्युत मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (Public Sector Undertaking- PSU) है।
- NTPC आरईएल (REL) की 100 % हिस्सेदारी वाली कंपनी है।
- भारत की सबसे बड़ी विद्युत कंपनी, NTPC की स्थापना वर्ष 1975 में भारत के विद्युत विकास में तेज़ी लाने के लिये की गई थी।
- इसका उद्देश्य नवाचार द्वारा संचालित किफायती, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से विश्वसनीय बिजली तथा संबंधित समाधान प्रदान करना है।
- मई 2010 में इसे महारत्न कंपनी (Maharatna company) घोषित किया गया।
- यह नई दिल्ली में स्थित है।