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भारतीय राजव्यवस्था

जम्मू-कश्मीर अधिवास संशोधन

  • 09 Apr 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019

मेन्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर अधिवास संशोधन,  जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के अधिवासियों के संदर्भ में किये गए बदलावों को वापस लेते हुए केंद्रशासित प्रदेश में सभी सरकारी नौकरियों को केवल जम्मू-कश्मीर के अधिवासियों के लिये आरक्षित कर दिया है।

मुख्य बिंदु:   

  • 3 अप्रैल, 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गए आदेश के अनुसार, ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ सहित सभी सरकारी नौकरियों को केंद्रशासित प्रदेश के अधिवासियों के लिये सुरक्षित कर दिया गया है।
  • इस आदेश के माध्यम से पिछले परिवर्तन के दौरान जोड़े गए उस खंड को भी हटा लिया गया है जिसके तहत ‘अधिवास पात्रता के मानदंड को पूरा करने वाला कोई भी व्यक्ति "अधिवासित" माना जा सकता था’।
  • इसके तहत अधिवास प्रमाण-पत्र जारी करने का अधिकार ‘तहसीलदार’ को दिया गया है।
  • केंद्र सरकार ने यह परिवर्तन ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019’ की धारा-96 के तहत प्राप्त शक्तियों के आधार पर किया है।  

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019:

  • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को 6 अगस्त 2019 को लोकसभा से पारित किया गया था।
  • इस अधिनियम के माध्यम से जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर दो नए केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख (बगैर विधानसभा के) की स्थापना की गई।
  • इस अधिनियम के माध्यम से जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के लिये 107 सीटों वाली  विधानसभा की व्यवस्था दी गई। अधिनियम में जम्मू-कश्मीर मंत्रिपरिषद के अधिकतम सदस्यों की संख्या 10 सुनिश्चित की गई है। 
  • इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् आधार एक्ट, 2016, भारतीय दंड संहिता, 1860 और शिक्षा का अधिकार एक्ट, 2009 जैसे-106 केंद्रीय कानूनों को केंद्रशासित प्रदेश में लागू किया गया।

पूर्व में किये गए परिवर्तन: 

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 31 मार्च, 2020 को जारी आदेश के तहत ‘जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती अधिनियम), 2010’ में ‘स्थायी निवासियों' शब्द को  बदलकर ‘जम्मू और कश्मीर के अधिवासी’ कर दिया गया था।
  • 31 मार्च को जारी अधिसूचना के अनुसार, उन सभी लोगों को अधिवासी के रूप में परिभाषित किया गया था, जो-
    1. 15 वर्षों की अवधि तक केंद्रशासित प्रदेश  जम्मू और कश्मीर में रहा रहा हो।
    2. सात वर्ष तक केंद्रशासित प्रदेश  जम्मू और कश्मीर पढ़ा हो और यहाँ स्थित किसी शिक्षण संस्थान में 10 वीं या 12वीं की परीक्षा में शामिल हुआ हो।
    3. जो ‘राहत और पुनर्वास आयुक्त (प्रवासी)’ द्वारा एक प्रवासी के रूप में पंजीकृत हो।
  • इसके तहत केंद्र सरकार के उन अधिकारियों के बच्चों को भी अधिवास का पत्र बताया गया जिन्होंने अखिल भारतीय सेवाओं, पीएसयू, केंद्र के स्वायत्त निकाय, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, वैधानिक निकायों के अधिकारियों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों, केंद्र के मान्यता प्राप्त अनुसंधान संस्थानों में रहते हुए जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में 10 वर्ष तक अपनी सेवाएँ दी हों। 
  • साथ ही इस परिवर्तन के तहत जम्मू और कश्मीर के ऐसे निवासियों के बच्चों को भी अधिवास का पात्र बताया गया जो अपने रोज़गार या व्यवसाय या अन्य पेशा या वृत्ति के कारणों के संबंध में जम्मू और कश्मीर से बाहर रहते हैं, लेकिन उनके माता-पिता आवश्यक शर्तों को पूरा करते हैं।

‘अधिवास’ के संदर्भ में संशोधन का अधिकार:

  • ध्यातव्य है कि 6 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 A के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त कर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया था।
  • संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A (वर्तमान में निरस्त) के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य की विधान सभा को राज्य के ‘स्थायी निवासियों' को परिभाषित करने का अधिकार था और राज्य में गैर-निवासियों द्वारा संपत्ति खरीदने पर प्रतिबंध था।
  • 18 फरवरी, 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एक संसदीय पैनल को दी गई जानकारी के अनुसार, वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में विभिन्न विभागों में 84,000 पद खाली हैं, जिनमें से 22,078 पद चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिये, 54375 पद नाॅन-गैज़टेड (Non-Gazettted) और 7552 पद  गैज़टेड (Gazettted) स्तर के हैं।

स्रोत: द हिंदू

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