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डेली न्यूज़

  • 16 Apr, 2021
  • 65 min read
शासन व्यवस्था

स्पुतनिक-V वैक्सीन

चर्चा में क्यों?

रूस द्वारा विकसित कोविड-19 प्रतिरोधी वैक्सीन ‘स्पुतनिक-V’ को ‘ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (DCGI) द्वारा आपातकालीन उपयोग के लिये मंज़ूरी दे दी गई है।

  • कोविशील्ड (सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) और कोवैक्सिन (भारत बायोटेक) के बाद आपातकालीन उपयोग की मंज़ूरी पाने वाला यह तीसरा कोरोनवायरस टीका है।

प्रमुख बिंदु:

स्पुतनिक-V वैक्सीन:

  • स्पुतनिक-V वैक्सीन को मॉस्को में ‘गामालेया नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी’ द्वारा विकसित किया गया है।
  • इसमें दो अलग-अलग वायरस का उपयोग किया गया है जो मनुष्यों में सामान्य सर्दी (एडेनोवायरस) का कारण बनते हैं।
    • एडेनोवायरस के कमज़ोर होने से ये वह मनुष्यों में अपनी प्रतिकृति का निर्माण नहीं कर सकता है और बीमारी का कारण नहीं बन सकता है।
    • उन्हें संशोधित भी किया जाता है ताकि वैक्सीन कोरोनोवायरस स्पाइक प्रोटीन बनाने के लिये एक कोड प्रदान कर सके। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब वास्तविक वायरस शरीर को संक्रमित करने की कोशिश करता है, तो यह एंटीबॉडी के रूप में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का निर्माण कर सकता है।
  • स्पुतनिक टीकाकरण के दौरान दोनों खुराकों में से प्रत्येक के लिये अलग-अलग वेक्टर का उपयोग किया जाता है। यह दोनों खुराकों के लिये एक ही वितरण तंत्र का उपयोग करके अन्य टीकों की तुलना में लंबी अवधि के लिये प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
    • दोनों खुराकों को 21 दिनों के अंतराल पर दिया जाता है।
  • स्पुतनिक-V को तरल रूप में -18 डिग्री सेल्सियस पर संग्रहीत किया जाता है। हालाँकि इसके शुष्क रूप में इसे 2-8 डिग्री सेल्सियस पर संग्रहीत किया जा सकता है, इसे कोल्ड-चेन बुनियादी ढाँचे में अतिरिक्त निवेश किये बिना भी पारंपरिक रेफ्रिजरेटर में भंडारित किया जाता है।

प्रभावकारिता:

  • द लांसेट में प्रकाशित रूस में आयोजित चरण-3 के परीक्षण परिणामों में यह पाया गया कि इसकी प्रभावकारिता 91.6% है।

एडेनोवायरस:

  • एडेनोवायरस (ADV) 70-90 नैनोमीटर आकार के DNA वायरस हैं, जो मनुष्यों में कई बीमारियों जैसे-सर्दी, श्वसन संक्रमण आदि को प्रेरित करते हैं।
  • इन टीकों के लिये एडेनोवायरस को प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि उनका DNA दोहरे तंतु से निर्मित होता है जो उन्हें आनुवंशिक रूप से अधिक स्थिर बनाता है और इंजेक्शन लगने के बाद उनके बदलने की संभावना कम होती है।
  • रेबीज़ वैक्सीन एक एडेनोवायरस वैक्सीन है।
  • एडेनोवायरस वैक्सीन एक प्रकार की वायरल वेक्टर वैक्सीन है।
    • इस टीके में एडेनोवायरस को जीन या वैक्सीन एंटीजन की ‘टारगेट होस्ट टिश्यू’ में पहुँचाने के लिये एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • हालाँकि एडेनोवायरस वैक्सीन में कमियाँ हैं, जैसे कि मानव में पहले से मौजूद प्रतिरक्षा, उत्तेजक प्रतिक्रियाएँ आदि।
    • जिस तरह मानव शरीर ज़्यादातर वास्तविक वायरल संक्रमणों के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करता है, वह एडेनोवायरल वैक्टर के लिये प्रतिरक्षा भी विकसित करता है। 

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

बी आर अंबेडकर: 130 वीं जयंती

चर्चा में क्यों? 

14 अप्रैल, 2020 को राष्ट्र द्वारा बी आर अंबेडकर (B R Ambedkar) की 130 वीं जयंती मनाई गई।

  • डॉ. अंबेडकर एक समाज सुधारक, न्यायविद, अर्थशास्त्री, लेखक, बहुभाषाविद (कई भाषाओं के जानकर), विद्वान और विभिन्न धर्मों के  विचारक थे।

DR-BR-Ambedkar

प्रमुख बिंदु: 

  • जन्म: बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म वर्ष 1891 में महू, मध्य प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में हुआ था।

संक्षिप्त परिचय:

  • उन्हें भारतीय संविधान के पिता (Father of the Indian Constitution) के रूप में जाना जाता है और वह भारत के पहले कानून मंत्री थे।
  • वह संविधान निर्माण की मसौदा समिति के अध्यक्ष (Chairman of the Drafting Committee) थे।
  • वह एक प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होंने दलितों और अन्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिये लड़ाई लड़ी।

योगदान:

  • उन्होंने मार्च 1927 में उन हिंदुओं के खिलाफ महाड़ सत्याग्रह (Mahad Satyagraha) का नेतृत्व किया जो नगरपालिका बोर्ड के फैसले का विरोध कर रहे थे।
    • 1926 में म्युनिसिपल बोर्ड ऑफ महाड़ (महाराष्ट्र) ने सभी समुदायों हेतु   तालाबों  का उपयोग करने से संबंधित आदेश पारित किया। इससे पहले अछूतों को महाड़ में तालाब के पानी का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी।
  • उन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों (Three Round Table Conferences) में भाग लिया।
  • वर्ष 1932 में डॉ. अंबेडकर ने महात्मा गांधी के साथ पूना समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे इन्होंने दलित वर्गों (सांप्रदायिक एवार्ड ) हेतु पृथक  निर्वाचन मंडल की मांग के विचार को छोड़ दिया।
    • हालाँकि प्रांतीय विधानमंडलों में दलित वर्गों के लिये सुरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 147 कर दी गई तथा केंद्रित विधानमंडल (Central Legislature) में दलित वर्गों की सुरक्षित सीटों की संख्या में 18 प्रतिशत की वृद्धि की गई 
  •  हिल्टन यंग कमीशन (Hilton Young Commission) के समक्ष प्रस्तुत इनके विचारों ने भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की नींव रखने का कार्य किया।

चुनाव और पद:

  • वर्ष 1936 में ये विधायक (MLA) के रूप में बॉम्बे विधानसभा (Bombay Legislative Assembly) के लिये चुने गए।
  • वर्ष 1942 में इन्हें एक कार्यकारी सदस्य के रूप में वायसराय की कार्यकारी परिषद में नियुक्त किया गया था।
  • वर्ष 1947 में डॉ. अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनने हेतु प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण को स्वीकार किया।

बौद्ध धर्म को अपनाना:

  • हिंदू कोड बिल (Hindu Code Bill) पर मतभेद को लेकर इन्होने वर्ष 1951 में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
  • इन्होंने  बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया तथा  6 दिसंबर, 1956 (महापरिनिर्वाण दिवस) को उनका निधन हो गया।
  • चैत्य भूमि मुंबई में स्थित है जो बी आर अंबेडकर स्मारक के रूप में जानी जाती है।
  • वर्ष 1990 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

महत्त्वपूर्ण कार्य:

  • पत्रिकाएँ: 
    • मूकनायक (1920)
    • बहिष्कृत भारत'  (1927)
    • समता (1929)
    • जनता (1930)
  • पुस्तकें:
    • जाति प्रथा का विनाश
    • बुद्ध या कार्ल मार्क्स
    • अछूत: वे कौन थे और अछूत कैसे बन गए 
    • बुद्ध और उनके धम्म
    • हिंदू महिलाओं का उदय और पतन
  • संगठन:
    • बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1923)
    • स्वतंत्र लेबर पार्टी (1936)
    • अनुसूचित जाति फेडरेशन (1942)

वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता:

  • भारत में जाति आधारित असमानता अभी भी कायम है। हालाँकि  दलितों ने आरक्षण के माध्यम से एक राजनीतिक पहचान हासिल की  है तथा अपने स्वयं के राजनीतिक दलों का गठन किया है लेकिन इन सबके बावजूद अभी भी सामाजिक (स्वास्थ्य और शिक्षा) और आर्थिक क्षेत्र में पिछड़े हैं।
  • सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ ही राजनीति में सांप्रदायिकरण का उदय हुआ है। अत: अंबेडकर की संवैधानिक नैतिकता द्वारा धार्मिक नैतिकता को एक सुरिक्षित आधार प्रदान करके भारतीय संविधान की स्थायी क्षति को रोका जा सकता है।

गोलमेज सम्मेलन:

  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन: इसका आयोजन 12 नवंबर, 1930 को  लंदन में किया गया था लेकिन कॉन्ग्रेस  ने इसमें भाग नहीं लिया था।
    • मार्च, 1931 में महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन (भारत का वायसराय 1926-31) के मध्य गांधी-इरविन समझौता (Gandhi-Irwin Pact) संपन्न हुआ। इसमें कॉन्ग्रेस द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त करने तथा  निकट भविष्य में होने वाले  गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति दी गई।
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन: इसका आयोजन 7 सितंबर, 1931  को लंदन में हुआ। 
  • तृतीय गोलमेज सम्मेलन: 17 नवंबर, 1932 को  समय-समय पर नियुक्त विभिन्न उप-समितियों की रिपोर्टों पर विचार करने हेतु  लंदन में तीसरे गोलमेज़ सम्मेलन का आयोजन किया गया  जिसकी परिणति अंततः भारत शासन अधिनयम, 1935 के रूप में हुई।
  • कॉन्ग्रेस ने तीसरे गोलमेज़ सम्मेलन में भाग नहीं लिया क्योकि कॉन्ग्रेस के अधिकांश प्रमुख नेता उस समय जेल में थे। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

भारत में बाल श्रम और बंधुआ मज़दूर

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन ने भारत में बाल श्रम और बंधुआ मजदूर की परिभाषाओं के बारे में अस्पष्टता का मुद्दा उठाया है, यह अध्ययन विशेष रूप से गन्ना उत्पादक राज्यों (बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश) में किया गया।

प्रमुख बिंदु:

अध्ययन का परिणाम:

  • अध्ययनकर्त्ताओं  ने  माता-पिता की सहायता करने वाले बच्चों को बाल श्रम की श्रेणी से बाहर रखा है ।
  • इसी तरह प्रवासी श्रमिकों के अग्रिम भुगतान और बंधुआ मज़दूरों से संबंधित जोखिमों को लेकर भ्रम की स्थिति थी ।
  • गन्ने के क्षेत्र में अधिकांश हस्तक्षेप या तो सरकारी अधिकारियों द्वारा या कंपनियों के कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) द्वारा किया गया। कृषि तकनीकों में सुधार केवल गन्ना उत्पादकता में वृद्धि सुनिश्चित करने पर केंद्रित थी।

बाल श्रम और बंधुआ मज़दूर (अर्थ):

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा बाल श्रम को ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और गरिमा से वंचित करता है एवं जो उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक है।
  • बंधुआ मज़दूर को "सभी काम या सेवा के रूप में परिभाषित किया है। दूसरे शब्दों में ऐसा व्यक्ति जो  ऋण को चुकाने के बदले ऋणदाता के लिये श्रम करता है या सेवाएँ देता है, बंधुआ मज़दूर (Bounded Labour) कहलाता है।
    • इसे ऋण बंधन या ऋण दासता, अनुबंध श्रमिक या बंधक मज़दूर भी कहा जाता है। 
    • बंधुआ मज़दूरी एक ऐसी प्रथा है जिसमें नियोक्ता द्वारा श्रमिकों को उच्च-ब्याज पर ऋण दिया जाता हैं और जो कम मज़दूरी पर उनसे काम कराते हैं तथा कर्ज का भुगतान प्राप्त  करते हैं।

Child-Labour

बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 के प्रमुख प्रावधान: 

  • अधिनियम के अनुसार, 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिये परिवार से जुड़े व्यवसाय को छोड़कर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने पर पूर्ण रोक का प्रावधान किया गया है
  •  इसके अनुसार 14 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिये नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक कार्यों में नियुक्त किया जाएगा।
  • अधिनियम के अनुसार, बच्चे केवल स्कूल से आने के बाद या स्कूल की छुट्टियों के दौरान काम कर सकते हैं और बच्चों को परिवार के स्वामित्व वाले सुरक्षित क्षेत्रों में काम करने की अनुमति है।
  • आलोचना: 
    • यह आलोचना की जाती है कि अधिनियम "परिवार या पारिवारिक उद्यमों" में बाल श्रम की अनुमति देता है या बच्चे को एक दृश्य-श्रव्य मनोरंजन उद्योग में एक कलाकार के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है ।
      • यह असंगठित क्षेत्रों में परिश्रम करने वाले बच्चों के एक वर्ग को शामिल नहीं  करता है, जो कृषि के साथ-साथ घरेलू कार्यों को भी करते है।
    • अधिनियम कार्य के समय को परिभाषित नहीं करता है और यह बताता है कि बच्चे स्कूल से आने  के बाद या छुट्टियों के दौरान काम कर सकते हैं।

भारत में बंधुआ मज़दूर:

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, बंधुआ मज़दूरी प्रचलित बाज़ार मज़दूरी और कानूनी न्यूनतम मज़दूरी से कम है।
  • भारत का संविधान अनुच्छेद 23 (मौलिक अधिकार) के अंतर्गत बंधुआ मज़दूरी पर प्रतिबंध लगाता है।
    • अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध करता है।
  • समाज में कमज़ोर आर्थिक और सामाजिक स्थिति होने के कारण अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को गाँवों के जमींदार या साहूकार नाममात्र के वेतन या बिना किसी वेतन के श्रम करने को मज़बूर करते हैं।
  • वस्तुतः बंधुआ मज़दूरी केवल ग्रामीण कृषि के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों जैसे-खनन, माचिस फैक्ट्रियाँ और ईंट भट्ठे आदि में व्यापक रूप से प्रचलित है।दूसरे शब्दों में बंधुआ मज़दूरी मुख्यतः कृषि क्षेत्र तथा अनौपचारिक क्षेत्र, जैसे- सूती कपड़ा हथकरघा, ईंट भट्टे, विनिर्माण, पत्थर खदान, रेशमी साड़ियों का उत्पादन, चाँदी के आभूषण, सिंथेटिक रत्न आदि में प्रचलित है।

भारत में गन्ने की खेती

  • यह एक उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय फसल है। इसके लिये  21°C से 27°C  तापमान और 75 सेमी. से 100 सेमी. के बीच वार्षिक वर्षा के साथ गर्म और आर्द्र जलवायु अनुकूल मानी जाती है ।
  • भारत में गन्नों की खेती मुख्य रूप से बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश में की जाती है।
  • इनमें से उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है और देश में उगाई जाने वाली नकदी फसल का लगभग 40% योगदान देता है, इसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक का स्थान है, जिसका हिस्सा कुल घरेलू उत्पादन का क्रमश: 21% और 11% है।

भारत में अन्य बाल श्रम कानून / कार्यक्रम 

  • संविधान का अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को कारखाने या खान में काम करने के लिये नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक काम में नहीं लगाया जाएगा।
  • बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति (1987): 1987 में बाल मज़दूरी के लिये विशेष नीति बनाई गई, जिसमें जोखिम भरे व्यवसाय एवं प्रक्रियाओं में लिप्त बच्चों के पुर्नवास पर ध्यान देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015: इसमें आयु या व्यवसाय की सीमा के बिना देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की श्रेणी में कामकाजी बच्चे शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) 2007: इस योजना के तहत 9-14 वर्ष की आयु के बच्चों को काम करने से रोका जाता है और उन्हें एनसीएलपी विशेष प्रशिक्षण केंद्रों में दाखिला दिया जाता है, जहाँ उन्हें प्रारंभिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मध्याह्न भोजन, वजीफा, स्वास्थ्य देखभाल आदि मुख्यधारा से पहले औपचारिक शिक्षा प्रणाली, प्रदान की जाती है।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 ने राज्य के लिये यह सुनिश्चित करना अनिवार्य कर दिया है कि 6 से 14 साल की उम्र के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो। 
  • खान अधिनियम, 1952 18 वर्ष से कम आयु के बालक से किसी खदान में मज़दूरी कराने पर रोक लगाता है। 
  • पेंसिल पोर्टल, 2017 नो चाइल्ड लेबर हेतु प्रभावी प्रवर्तन मंच :
    • पेंसिल पोर्टल नो चाइल्ड लेबर के  प्रभावी प्रवर्तन के लिये एक मंच है, जो बाल श्रम को खत्म करने के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। यह एक इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल है जिसका उद्देश्य केंद्र, राज्य, ज़िला, सरकारें, सिविल सोसाइटी और आम जनता को बाल श्रम संबंधी समाज के लक्ष्य को प्राप्त करने में शामिल करना है
    • यह बाल श्रम अधिनियम और राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये शुरू किया गया है।
  • हाल ही में भारत ने बाल श्रम पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दो समझौतों 138 (रोज़गार के लिये न्यूनतम आयु) और 182 (बाल श्रम के सबसे निकृष्टतम रूप) के तहत बाल श्रम को खत्म करने की पुष्टि की है।

बंधुआ मजदूर से संबंधित योजनाएँ / अधिनियम

बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: 

  • इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत में है लेकिन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा इसे लागू किया जाएगा।
  • यह सतर्कता समितियों के रूप में ज़िला स्तर पर एक संस्थागत तंत्र का प्रावधान करता है।
    • सतर्कता समितियाँ जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को सलाह देती हैं कि इस अधिनियम के प्रावधानों को ठीक से लागू किया जाए।
  • राज्य सरकारों / संघ राज्य क्षेत्र के एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिये प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। 

पुनर्वास के प्रयास- बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना 2016

  • इस योजना के तहत बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किये गए वयस्क पुरुषों को 1 लाख रुपए तथा बाल बंधुआ मज़दूरों और महिला बंधुआ मज़दूरों को 2 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।

आगे की राह: 

  • गरीबी और उसके प्रभावी चक्र को बेहतर ढंग से संबोधित किया जाए तो परिवारों के जीविकोपार्जन और बच्चों को स्कूल भेजने के लिये अन्य साधनों की पहचान की जा सकती है।
  • कई NGOs जैसे- बचपन बचाओ आंदोलन, चाइल्ड फंड, केयर इंडिया, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन आदि भारत में बाल श्रम को खत्म करने के लिये काम कर रहे हैं। बाल श्रम के प्रभाव से बचने के लिये राज्य स्तर के पदाधिकारियों के साथ सुव्यवस्थित प्रणाली की आवश्यकता है।
  • बंधुआ बाल श्रमिकों को सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय समुदायों से  तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होती है
  • एक बहुत ठोस, विश्वसनीय एवं सभ्य सामाजिक सुरक्षा पैकेज और प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नैरो-लाइन सीफर्ट-1 (एनएलएस-1) गैलेक्सी: सुदूर गामा रे उत्सर्जक आकाशगंगा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खगोलविदों ने एक नई नैरो-लाइन सीफर्ट-1 (Narrow-Line Seyfert 1- NLS1) नामक सक्रिय आकाशगंगा का पता लगाया है। इसकी पहचान सुदूर गामा रे उत्सर्जक आकाशगंगा के रूप में की गई है।

प्रमुख बिंदु

अध्ययन:

  • आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्ज़र्वेशनल साइंसेज़ (Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences) के वैज्ञानिकों ने अन्य संस्थानों के शोधकर्त्ताओं के सहयोग से लगभग 25,000 चमकीले सक्रिय ग्लैक्टिक न्यूकली (Active Galactic Nuclei) का अध्ययन स्लोन डिजिटल स्काई सर्वे (Sloan Digital Sky Survey) से किया। 
    • AGN ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली, लंबे समय तक रहने वाली और चमकदार वस्तुओं के स्थिर स्रोत हैं। इनसे होने वाले उत्सर्जन सामान्यतः एक्स-रे और अवरक्त बैंड में अधिक चमक और अल्ट्रावायलेट में अत्यधिक चमक के साथ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम रूप में फैले होते हैं।
    • SDSS एक प्रमुख मल्टी-स्पेक्ट्रल इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपिक रेडशिफ्ट सर्वे (Multi-Spectral Imaging and Spectroscopic Redshift Survey) है जो न्यू मैक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका में अपाचे प्वाइंट वेधशाला में एक समर्पित 2.5 मीटर चौड़े कोण वाले ऑप्टिकल टेलीस्कोप का उपयोग करता है।
      • इसने ब्रह्मांड के अब तक के सबसे विस्तृत त्रि-आयामी मानचित्रों का निर्माण आकाश के एक-तिहाई गहरे बहु-रंगीन चित्रों और तीन मिलियन से अधिक खगोलीय पिंडों के साथ किया है।

अध्ययन के निष्कर्ष:

  • उन्हें एक अनोखी वस्तु मिली जो एक उच्च रेडशिफ्ट (1 से अधिक) में स्थित उच्च-ऊर्जा गामा किरणों का उत्सर्जन कर रही थी।
    • इसकी पहचान गामा किरण उत्सर्जक एनएलएस-1 ग्लैक्सी के रूप में की गई है। यह अंतरिक्ष में दुर्लभ है।
    • नई गामा रे उत्सर्जक एनएलएस-1 तब बनता है जब ब्रह्मांड 4.7 अरब वर्ष (वर्तमान ब्रह्मांड 13.8 बिलियन वर्ष पुराना है) पुराना होता है।

रेडशिफ्ट

रेडशिफ्ट के विषय में:

  • यह आकाशगंगाओं और आकाशीय पिंडों से प्रकाश का लंबे रेडियो तरंग की ओर विस्थापन है।
  • इससे खगोलविदों को अंतरिक्ष में पिंडों की गति और अदृश्य ग्रहों तथा आकाशगंगाओं की गतिविधियों के विषय में खोज करने एवं प्रारंभिक ब्रह्मांड के बारे में जानकारी इकट्ठा करने में मदद मिलती है।

महत्त्व:

  • खगोलविद ब्रह्मांड के विस्तार और इसके सबसे दूर (सबसे पुरानी) स्थित पिंडों की दूरी मापने के लिये रेडशिफ्ट का उपयोग करते हैं।

मापन:

  • स्पेक्ट्रोस्कोपी रेडशिफ्ट को मापने का सबसे सटीक तरीका है।
    • जब सफेद प्रकाश की किरण त्रिकोणीय प्रिज़्म से टकराती है तो वह विभिन्न घटकों (ROYGBIV) में अलग हो जाती है, जिसे स्पेक्ट्रम (स्पेक्ट्रा) कहा जाता है।
  • खगोलविद विभिन्न तत्त्वों द्वारा निर्मित स्पेक्ट्रा को देख सकते हैं और इनकी तुलना तारों के स्पेक्ट्रा से कर सकते हैं। पिंडों के पास आने या दूर जाने के विषय में तारों के स्पेक्ट्रा की अवशोषण या उत्सर्जन रेखाओं (दिखाई देने वाली) को स्थानांतरित करके जाना जा सकता है।

Redshifts

  • खगोलविदों को रेडशिफ्ट पैरामीटर (z) दूरी (आकाशगंगा, ग्रह आदि) की गणना करने में मदद करता है।
    • Z का मूल्य बढ़ने पर पिंड की दूरी बढ़ जाती है।

इस्तेमाल किये गए उपकरण:

  • शोध के लिये वैज्ञानिकों ने विश्व के सबसे बड़े जमीनी टेलीस्कोप अमेरिका के हवाई स्थित जापान के 8.2 एम सुबारू टेलीस्कोप (8.2 m Subaru Telescope) का इस्तेमाल किया।
  • इसकी शक्तिशाली प्रकाश संग्रह क्षमता आकाशीय पिंडों के प्रकाश को संग्रह कर सकती है। सुबारू टेलीस्कोप की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसका मुख्य फोकस अन्य बड़े टेलीस्कोपों की तुलना में व्यापक क्षेत्र तक है।

महत्त्व:

  • एनएलएस-1 से गामा किरण का उत्सर्जन इस बात को चुनौती देता है कि कैसे सापेक्षवादी कणों के स्रोत बनते हैं क्योंकि एनएलएस-1 एजीएन का अनूठा वर्ग है जिसे कम द्रव्यमान के ब्लैक होल (Black Hole) से ऊर्जा मिलती है और इसे घुमावदार आकाशगंगा में होस्ट (Host) किया जाता है। 
  • सापेक्षवादी जेट:
    • कुछ सक्रिय आकाशगंगाओं के केंद्र में स्थित सुपरमैसिव ब्लैक होल जो कि प्रकाश की गति से चलने वाले विकिरण और कणों के शक्तिशाली जेट का निर्माण करते हैं, सापेक्षवादी जेट (Relativistic Jet) कहलाते हैं।
    • माना जाता है कि ये जेट ब्रह्मांड में सबसे तेज़ गति से चलने वाले कणों के स्रोत हैं जो कि कॉस्मिक किरणें हैं।
  • रेड शिफ्ट पर एक-दूसरे से बड़े एनएलएस-1 का पता लगाने की विधि वर्तमान में मौजूद नहीं थी।
  • इस खोज से ब्रह्मांड में गामा रे उत्सर्जक एनएलएस-1 आकाशगंगाओं के पता लगाने का मार्ग प्रशस्त होगा। 

आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्ज़र्वेशनल  साइंसेज

  • यह नैनीताल, उत्तराखंड में स्थित देश का खगोल भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान से संबंधित एक अग्रणी अनुसंधान संस्थान है।
  • सर्वप्रथम इसकी स्थापना 20 अप्रैल, 1954 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वाराणसी में की गई, तदुपरांत वर्ष 1955 में नैनीताल एवं वर्ष 1961 में इसे अपने वर्तमान स्थान मनोरापीक में ले जाया गया। इस संस्था का प्राथमिक उद्देश्य खगोल भौतिकी के तारकीय, सौर और सैद्धांतिक शाखाओं में आधुनिक खगोल भौतिकी अनुसंधान को विकसित करना है। यहाँ आने वालों को साफ आकाश वाली रातों में दूरबीन के माध्यम से कुछ खगोलीय पिंड भी दिखाए जाते हैं।

आकाशगंगा

  • एक आकाशगंगा गैस, धूल और अरबों सितारों एवं उनके सौर प्रणालियों का एक विशाल संग्रह है, जो गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक साथ बँधे होते हैं।
  • पृथ्वी मिल्की वे आकाशगंगा (Milky Way Galaxy) का हिस्सा है, जिसमें बीच में सुपरमैसिव ब्लैकहोल भी है।

Solar-system

ब्लैक होल

  • यह अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसा छिद्र है जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता।
  • इस अवधारणा को वर्ष 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा प्रमाणित किया गया था लेकिन ब्लैक होल शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर ने वर्ष 1960 के दशक के मध्य में किया था।
  • आमतौर पर ब्लैक होल की दो श्रेणियाँ होती हैं:
    • पहली श्रेणी- ऐसे ब्लैक होल जिनका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान (एक सौर द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान के बराबर होता है) से दस सौर द्रव्यमान के बीच होता है। बड़े पैमाने पर तारों की समाप्ति से इनका निर्माण होता है।
    • दूसरी श्रेणी सुपरमैसिव ब्लैक होल की है। ये जिस सौरमंडल में पृथ्वी है उसके सूर्य से भी अरबों गुना बड़े होते हैं।

गामा रे खगोल विज्ञान

  • यह गामा किरणों का उत्सर्जन करने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं का अध्ययन करता है। गामा-रे दूरबीनों को उच्च ऊर्जा की खगोल भौतिकी प्रणालियों का निरीक्षण करने के लिये बनाया गया है।
  • पृथ्वी का वायुमंडल गामा किरणों को अवरुद्ध करता है, इसलिये अवलोकन उच्च ऊँचाई वाले गुब्बारे या अंतरिक्षयान द्वारा किये जाते हैं।
  • गामा-रे खगोल विज्ञान अति दूर स्थित पिंडों का पता लगाने का अद्वितीय साधन है। वैज्ञानिक इन उच्च ऊर्जा पर ब्रह्मांड की खोज करके नई भौतिकी की खोज, सिद्धांतों का परीक्षण और प्रयोग कर सकते हैं जो पृथ्वी से जुड़ी प्रयोगशालाओं में संभव नहीं है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

रुपए के मूल्य में गिरावट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बीते 9 माह के निचले स्तर- 75.4 पर पहुँच गया और भारतीय रुपए को होने वाला यह नुकसान, विभिन्न उभरते बाज़ारों में सबसे अधिक है।

  • 22 मार्च, 2021 से पिछले तीन हफ्तों में रुपए में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.2 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।

Currency-Movement

प्रमुख बिंदु

गिरावट के कारण

  • कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी
    • कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में हो रही वृद्धि एक महत्त्वपूर्ण चिंता के रूप में सामने आया है। संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए कई राज्य और अधिक कठोर लॉकडाउन लागू करने पर विचार कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में निवेशक अर्थव्यवस्था की रिकवरी में देरी होने को लेकर चिंतित हैं।
  • अमेरिकी डॉलर में मज़बूती
    • अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बेहतर रिकवरी की उम्मीद के परिणामस्वरूप अमेरिकी डॉलर में भी मज़बूती देखी जा रही है, जिसके कारण रुपए पर दबाव बढ़ रहा है।
  • रिज़र्व बैंक का सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने तरलता प्रदान करने हेतु सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) लागू करने की घोषणा की है, जिससे रुपए पर अतिरिक्त दबाव आ गया है।
    • इसे एक प्रकार की मात्रात्मक नीति के रूप में देखा जा रहा है, जिसके तहत भारतीय रिज़र्व बैंक बाज़ार को अधिक-से-अधिक तरलता प्रदान करके सरकार के उधार कार्यक्रम का समर्थन करेगा।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में कमी
    • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में कमी भारतीय रुपए पर दबाव को और अधिक बढ़ा सकता है। गौरतलब है कि अक्तूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच भारतीय इक्विटी बाज़ारों में आने वाले विदेशी निवेश में भारी वृद्धि देखने को मिली थी।
      • यद्यपि अक्तूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच भारतीय बाज़ारों में 1.94 लाख करोड़ रुपए का शुद्ध विदेशी निवेश हुआ था, किंतु अप्रैल 2021 से अब तक निवेशकों ने कुल 2,263 करोड़ रुपए बाज़ार से बाहर निकाल लिये हैं।

रुपए के मूल्यह्रास का प्रभाव

  • निम्नलिखित पर रुपए के मूल्यह्रास का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा
    • विदेशों से आयात करने वाले लोगों पर 
    • विदेशों में पढ़ रहे छात्रों पर 
    • विदेश यात्रा कर रहे लोगों पर 
    • विदेशों में निवेश कर रहे लोगों पर 
    • विदेश में चिकित्सा उपचार प्राप्त कर रहे लोगों पर 
  • निम्नलिखित पर रुपए के मूल्यह्रास का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा
    • भारत से निर्यात करने वाले लोगों पर 
    • अनिवासी भारतीयों (NRIs) से प्रेषण प्राप्त करने वाले लोगों पर 
    • भारत की यात्रा कर रहे विदेश यात्रियों पर 

मुद्रा का मूल्यह्रास

  • अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्यह्रास का आशय मुद्रा के मूल्य में गिरावट से है।
    • अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में बाज़ार शक्तियाँ (मुद्रा की मांग  और आपूर्ति के आधार पर) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं।
  • रुपए के मूल्यह्रास का अर्थ है कि डॉलर के संबंध में रुपया कम मूल्यवान हो गया है।
    • इसका मतलब है कि रुपया अब पहले की तुलना में कमज़ोर है।
    • उदाहरण के लिये पूर्व में 1 अमेरिकी डॉलर 70 रुपए के बराबर था, किंतु मूल्यह्रास के बाद अब 1 डॉलर 76 रुपए के बराबर हो गया है, इसका अर्थ है कि डॉलर के सापेक्ष रुपए का मूल्यह्रास हुआ है यानी डॉलर खरीदने के लिये अब अधिक रुपए चुकाने होंगे।
  • मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करने वाले कारक
    • मुद्रास्फीति
    • ब्याज़ दर 
    • व्यापार घाटा 
    • समष्टि आर्थिक नीतियाँ
    • इक्विटी बाज़ार
  • मुद्रा के मूल्यह्रास के कारण किसी देश की निर्यात गतिविधि बढ़ जाती है, क्योंकि उसके उत्पाद और सेवाएँ तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक रुपए का समर्थन करने के लिये मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करता है।
  • रिज़र्व बैंक द्वारा निम्नलिखित तरीकों से मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप किया जाता है:
    • डॉलर की खरीद और बिक्री के माध्यम से वह प्रत्यक्ष रूप से मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप कर सकता है।
      • यदि रिज़र्व बैंक रुपए के मूल्य को बढ़ाना चाहता है, तो वह डॉलर की बिक्री कर सकता है और जब उसे रुपए के मूल्य को नीचे लाने की आवश्यकता होती है, तो वह डॉलर की खरीद करता है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मौद्रिक नीति के माध्यम से भी रुपए के मूल्य को प्रभावित कर सकता है।
      • रिज़र्व बैंक रुपए के मूल्य को नियंत्रित करने के लिये रेपो दर (जिस दर पर RBI बैंकों को उधार देता है) और तरलता अनुपात (वह राशि जिसे बैंकों के लिये सरकारी बाॅॅण्ड में निवेश करना आवश्यक होता है) को समायोजित कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

मानस मोबाइल एप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने भारत के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये एक मोबाइल एप, मानस (Mental Health and Normalcy Augmentation System-MANAS) लॉन्च किया।

  • MANAS को एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में ‘प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद’ (PM-STIAC) ​​का समर्थन प्राप्त है।
    • PM-STIAC: यह एक अति-महत्त्वपूर्ण परिषद है जो प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय को विशिष्ट विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी स्थिति का आकलन करने, इस क्षेत्र की चुनौतियों को समझने, विशिष्ट हस्तक्षेप, भविष्य के रोडमैप को विकसित करने और तदनुसार प्रधानमंत्री को सलाह देने की सुविधा प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • मानस एक व्यापक, समर्पित और राष्ट्रीय डिजिटल कल्याणकारी मंच है, जिसे भारतीय नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये विकसित किया गया है।
    • यह विभिन्न सरकारी मंत्रालयों के स्वास्थ्य और कल्याण संबंधी प्रयासों को एकीकृत करता है।
    • यह सार्वभौमिक दक्षता के साथ जीवन कौशल और मुख्य मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर आधारित है, जो विभिन्न आयु आधारित तरीके प्रदान कर मानसिक स्वास्थ्य कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने वाले सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।

विकसित करने वाली संस्थाएँ:

  • ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज़’ (NIMHANS) बंगलूरू, सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज (AFMC) पुणे और ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग’ (C-DAC) बंगलूरू।

लाभधारक:

  • सभी आयु वर्ग के लोगों की समग्र भलाई के साथ-साथ MANAS का प्रारंभिक संस्करण 15-35 वर्ष के आयु वर्ग में सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

लक्ष्य:

  • एक स्वस्थ और खुशहाल समुदाय का निर्माण करने के लिये अपनी क्षमता को पोषित करके भारत को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना।

मानस का आदर्श वाक्य:

  • उत्तम मन, सक्षम जन।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य:

Cause-for-concern

  • डेटा विश्लेषण: फरवरी 2020 में ‘द लांसेट साइकेट्री’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2017 में भारत में 197.3 मिलियन लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त थे।
    • शीर्ष मानसिक बीमारियों से अवसादग्रस्त विकारों से 45.7 मिलियन लोग और चिंता संबंधी विकारों से 44.9 मिलियन लोग ग्रस्त थे।
    • भारत में कुल विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) में मानसिक विकारों का योगदान वर्ष 1990 के 2.5% से बढ़कर वर्ष 2017 में 4.7% हो गया।
      • अवसादग्रस्तता विकार और चिंता विकार कुल मानसिक विकारों में सबसे अधिक प्रभावी रहे हैं।
      • DALYs: DALYs नामक इकाइयों में किसी बीमारी या विकार से जुड़ी दिव्यांगता के प्रकार को मापा जा सकता है।
        • DALY किसी दी गई आबादी के भीतर बीमारी, दिव्यांगता या समय से पहले मृत्यु के कुल वर्षों के बारे में बताता है।

मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये अन्य भारतीय पहलें:

  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (MHCA) 2017:
    • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (MHCA) 2017 वर्ष 2018 में लागू हुआ, जो कि ‘विकलांग लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लागू किया गया था, भारत ने वर्ष 2007 में इसकी पुष्टि की थी।
  • किरन:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्मघाती विचारों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना करने वाले लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये एक 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन शुरू की है।
  • मनोदर्पण पहल:
    • मनोदर्पण आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
    • इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड -19 के दौरान उनके मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।
  • निमहांस राह (NIMHANS RAAH) एप:
    • यह मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों और पेशेवरों के संबंध में डेटा का वन-स्टॉप स्रोत है। इसे NIMHANS द्वारा विकसित किया गया है।

आगे की राह:

  • हालाँकि सुरक्षित और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य के लिये एप विकसित करना आवश्यक है, परंतु इस एप को सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाओं जैसे- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, पोषण अभियान, ई-संजीवनी और अन्य के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये। इसके अलावा इसे बहुभाषी बनाया जाना चाहिये।
  • मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये।

स्रोत-पीआइबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

लिथियम आयन बैटरी प्रदर्शन पर शोध

चर्चा में क्यों?

आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्त्ताओं ने रिचार्जेबल लिथियम आयन बैटरी के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिये एक तकनीक विकसित की है, जो वर्तमान में उपयोग किये जाने वाले अधिकांश वहनीय (Portable) उपकरणों को शक्ति प्रदान करती है।

प्रमुख बिंदु:

लिथियम आयन बैटरी:

  • विकास:
    • वर्ष 2019 में रसायन का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) संयुक्त रूप से तीन रसायन वैज्ञानिकों, अमेरिका (America) के जॉन बी गुडइनफ, ब्रिटेन (Britain) के एम. स्टेनली व्हिटिंगम और जापान (Japan) के अकीरा योशिनो को लिथियम-आयन बैटरी (Lithium-Ion Batteries) की खोज और उसके विकास के लिये दिया गया है।
    • लिथियम आयन बैटरी के विकास की शुरूआत 1970 के दशक में तेल संकट के दौरान हुई थी, जब एक्सॉन मोबाइल के लिये काम कर रहे व्हिटिंघम (Whittingham) ने एक ऐसी ऊर्जा तकनीक की खोज शुरू की जो पेट्रोल-डीज़ल जैसे जीवाश्म ईंधन से मुक्त हों और जिसे पुन: रिचार्ज किया जा सके। 
    • वर्ष 1985 में वाणिज्यिक रूप से संचारित पहली लिथियम आयन बैटरी अकीरा योशिनो द्वारा बनाई गई थी।
  • उपयोगिता: 
    • लिथियम-आयन बैटरी प्रौद्योगिकी इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये महत्त्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत बन गई है। यद्यपि लिथियम-आयन बैटरी को फोन और लैपटॉप जैसे अनुप्रयोगों के लिये भी पर्याप्त रूप से कुशल माना जाता है।
    • वर्तमान में अधिकांश इलेक्ट्रिक वाहन (EV) ली-आयन बैटरी का उपयोग करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी सैद्धांतिक सीमा तक पहुँच रहे हैं जो लगभग 300 वाट प्रति घंटे की ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम हैं ।
    •  इन बैटरियों का उपयोग सौर और पवन ऊर्जा को संग्रहीत करने के लिये भी किया जा सकता है।
  • हानि:
    • लिथियम-आयन बैटरी के कुछ नुकसान भी है जिसमें ओवरहीटिंग के कारण उनकी संवेदनशीलता और उच्च वोल्टेज पर नुकसान होने का खतरा शामिल है।
      • चूँकि वे ज्वलनशील और दहनशील पदार्थों से बने होते हैं।
    • यह बैटरी समय के साथ अपनी क्षमता खोने लगती हैं- उदाहरण के लिये, एक नए लैपटॉप की बैटरी, एक पुराने लैपटॉप की अपेक्षा बेहतर होती है।

नवीन शोध:

  • आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो SCO के रूप में सबसे महत्त्वपूर्ण बैटरी आंतरिक अवस्थाओं में से एक का अनुमान लगा सकती है। 
    • SCO बैटरी की शेष क्षमता को दर्शाता है, यानी बैटरी को पूरी तरह से डिस्चार्ज होने से पहले कितना चार्ज किया जा सकता है।
  • शेष क्षमता का ज्ञान बैटरी की क्षमता के उपयोग को अनुकूलित करने में मदद करता है, यह बैटरी की ओवरचार्जिंग और अंडर चार्जिंग को रोकता है, उसकी क्षमता में सुधार करता है, लागत कम करता है और बैटरी की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • एक बैटरी की संचालन क्षमता में सुधार और अनुकूलित करने के लिये, इसके विभिन्न राज्यों की सटीक भविष्यवाणी करना महत्वपूर्ण है। इनमें से एक राज्य SCO है , जिसके बारे में अभी तक अनुमान लगाना मुश्किल है।

‘स्टेट ऑफ चार्ज’ (SOC)

  • सेल की आवेश की स्थिति (SOC) उस क्षमता को दर्शाती है जो वर्तमान में संचारित  क्षमता के कार्य के रूप में उपलब्ध है।
  • SOC का मान 0% और 100% के बीच भिन्न-भिन्न होता है। यदि SOC 100% है, तो सेल पूरी तरह से चार्ज है जबकि 0% का SOC यह इंगित करता है कि सेल पूरी तरह डिस्चार्ज है।
  • व्यावहारिक अनुप्रयोगों में,SOC को 50% से अधिक की अनुमति नहीं है और इसलिये SOC 50% तक पहुँचने पर सेल को रिचार्ज किया जाता है।
  • इसी तरह, जैसे-जैसे सेल की उम्र बढ़ने लगती है, अधिकतम SOC कम होने लगती है। इसका मतलब है कि एक वृद्ध कोशिका के लिये, 100% SOC एक नए सेल के 75 -80% SOC के बराबर होगी।

संबंधित विकास:

  • वर्ष 2019 में, जॉन्स हॉपकिन्स एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी ने एक लिथियम-आयन बैटरी विकसित की है।यह बैटरी दहनशील से मुक्त होती है।
  • इससे पहले जनवरी 2020 में, ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्होंने दुनिया की सबसे कुशल लिथियम-सल्फर (ली-एस) बैटरी विकसित की है, जो लगातार पाँच दिनों तक स्मार्टफोन को बिजली देने में सक्षम है
    • जबकि ली-एस बैटरी में प्रयुक्त सामग्री ली-आयन बैटरी से अलग नहीं होती है, ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने  बिना किसी गिरावट के उच्च तनाव को समायोजित करने के लिये सल्फर कैथोड्स (एक प्रकार का इलेक्ट्रिकल कंडक्टर, जिसके माध्यम से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं) के डिजाइन को फिर से जोड़ दिया है।
  • खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KBIL) की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियों- नालको (NALCO), हिंदुस्तान कॉपर और मिनरल एक्सप्लोरेशन कार्पोरेशन लिमिटेड द्वारा विदेशों में लिथियम एवं कोबाल्ट जैसे रणनीतिक खनिज संसाधनों को प्राप्त करने के लिये विशिष्ट जनादेश के साथ अगस्त 2019 में की गई थी।  
  • KBIL द्वारा चिली और बोलिविया में भी महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज के लिये ऐसे ही संभावित विकल्पों पर कार्य किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि  चिली और बोलिविया भी विश्व के शीर्ष लिथियम उत्पादक देशों की सूची में शामिल हैं। 

लिथियम-आयन प्रौद्योगिकी के संभावित विकल्प:  

  • लिथियम सल्फर बैटरी:
    • ली-एस बैटरी को आमतौर पर उत्पादन, ऊर्जा दक्षता और बेहतर सुरक्षा की कम लागत के कारण ली-आयन बैटरी के उत्तराधिकारी माना जाता है ।
      • उनके उत्पादन की लागत कम है क्योंकि सल्फर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
    • फिर भी, इन बैटरियों के व्यवसायीकरण में कुछ कठिनाइयाँ आई हैं जिनमें मुख्यतः उनके लघु जीवन चक्र और अपूर्ण बिजली क्षमता शामिल है।
  • ग्रैफीन बैटरी:
    • लिथियम बैटरियों को बार-बार चार्ज करने की आवश्यकता इसकी वहनीयता को सीमित करती है, ऐसे में ग्रैफीन बैटरियाँ इसका एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती हैं।  ग्रैफीन हाल ही में स्थिर और पृथक किया गया पदार्थ है।  
  • फ्लोराइड बैटरी:
    • फ्लोराइड बैटरियों में लिथियम बैटरी की तुलना में आठ गुना अधिक समय तक चलने की क्षमता है।
  • सैंड बैटरी (Sand Battery):
    • लिथियम-आयन बैटरी के इस वैकल्पिक प्रकार में वर्तमान ग्रेफाइट ली-आयन बैटरी की तुलना में तीन गुना बेहतर प्रदर्शन प्राप्त करने के लिये सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है। यह भी स्मार्टफोन में प्रयोग की जाने वाले लिथियम-आयन बैटरी के समान होती है परंतु इसमें एनोड के रूप में ग्रेफाइट के बजाय सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है।
  • अमोनिया संचालित बैटरी:
    • अमोनिया से चलने वाली बैटरी का शायद बाज़ार में शीघ्र उपलब्ध होना संभव न हो परंतु आमतौर पर घरेलू क्लीनर के रूप में ज्ञात यह रसायन लिथियम का एक विकल्प हो सकता है, क्योंकि यह वाहनों और अन्य उपकरणों में लगे फ्यूल सेल को ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
    • यदि वैज्ञानिकों द्वारा अमोनिया उत्पादन के एक ऐसे तरीके को खोज कर ली जाती है जिसमें उपोत्पाद के रूप में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन न होता हो, तो इसे फ्यूल सेल को ऊर्जा प्रदान करने के लिये वहनीय विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  • ऊर्ध्वाधर रूप से संरेखित कार्बन नैनोट्यूब इलेक्ट्रोड:
    • यह लिथियम आयन बैटरी इलेक्ट्रोड के लिये अच्छा विकल्प हो सकती है जिसमें उच्च दर की क्षमता और योग्यता की आवश्यकता होती है।
  • सॉलिड-स्टेट बैटरी: 
    • इसमें जलीय इलेक्ट्रोलाइट सॉल्यूशन के विकल्पों का उपयोग किया जाता है, यह एक ऐसा नवाचार है जो आग के जोखिम को कम करने के साथ ऊर्जा घनत्व में तीव्र वृद्धि करते हुए चार्जिंग समय को दो-तिहाई से कम कर सकता है।
    • ये सेल बगैर अतिरिक्त स्थान घेरे ही कॉम्पैक्ट इलेक्ट्रिक वाहन की परिवहन क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं,  जो बैटरी प्रौद्योगिकी में एक महत्त्वपूर्ण बढ़त होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन पोर्टल: NCSC

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में सरकार द्वारा डॉ. बी.आर अंबेडकर की 130वीं जयंती के अवसर पर ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग’ (National Commission for Scheduled Castes- NCSC) हेतु एक  ‘ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन पोर्टल’ (Online Grievance Management Portal) का शुभारंभ किया गया है।

  • यह पोर्टल अनुसूचित जाति से संबंधित मामलों में शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को आसान बनाएगा।

प्रमुख बिंदु: 

ऑनलाइन पोर्टल के बारे में:

  • इस पोर्टल को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology) के अंतर्गत भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एप्लीकेशन एंड जियोइन्फॉर्मेटिक्स ( BISAG-N) द्वारा  उत्कृष्टता केंद्र  (Centre of Excellence) के रूप में डिज़ाइन किया गया है।
  • यह शिकायतों की एंड-टू-एंड ई-फाइलिंग ( End-to-End e-Filing of Complaint) और उनकी ट्रैकिंग करने की सुविधा प्रदान करेगा।
    • NCSC शिकायत प्रबंधन पोर्टल, अनुसूचित जाति के नागरिकों के खिलाफ हुए अत्याचारों से संबंधित शिकायतों को दर्ज करेगा।
  • यह सुनवाई प्रक्रिया को भारत में ई-कोर्ट परियोजना (e-Courts Project) के समान संचालित करेगा तथा समयबद्ध तरीके  से देश की अनुसूचित जाति की जनसंख्या हेतु एक शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराएगा।
  • यह शिकायतों को भौतिक रूप से प्रस्तुत करेगा।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) के बारे में:

  • NCSC एक संवैधानिक निकाय है जो भारत में अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा हेतु कार्य करता है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जाति आयोग से संबंधित है।
    • यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति हेतु कर्तव्यों के निर्वहन के साथ एक राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान करता है जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से संबंधित सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांँच और निगरानी कर सकता है, अनुसूचित जाति एवं जनजाति से संबंधित विशिष्ट शिकायतों के मामले में पूछताछ कर सकता है तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक विकास योजना प्रक्रिया में भाग लेने के साथ सलाह देने  का अधिकार रखता है।
    • 89वांँ संविधान संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति हेतु गठित पूर्ववर्ती राष्ट्रीय आयोग को वर्ष 2004 में दो अलग-अलग आयोगों में बदल दिया गया। इसके तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ( National Commission for Scheduled Castes- NCSC) और अनुच्छेद 338-A के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) का गठन किया गया।

NCSC के कार्य:

  • संविधान के तहत अनुसूचित जातियों हेतु प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों के संबंध में सभी मुद्दों की निगरानी और जांँच करना।
  • अनुसूचित जातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने से संबंधित शिकायतों में पूछताछ करना।
  • अनुसूचित जातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना के संबंध में केंद्र या राज्य सरकारों को सलाह देना।
  • अनुसूचित जातियों के सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन के संबंध में राष्ट्रपति को नियमित रूप से रिपोर्टिंग करना ।
  • अनुसूचित जाति समुदाय के कल्याण, सुरक्षा, विकास और उन्नति के संबंध में कार्य करना।
  • आयोग को एंग्लो-इंडियन समुदाय (Anglo-Indian Community) के संबंध में भी इसी प्रकार  के कार्यों का निर्वहन करना आवश्यक है क्योंकि यह अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित है ।
  • वर्ष 2018 तक आयोग द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग ( Other Backward Classes- OBCs) के संबंध में भी इसी तरह के कार्यों का निर्वहन किया जाता था परंतु 2018 के 102वें संशोधन अधिनियम द्वारा इसे इस ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है।

अनुसूचित जाति के उत्थान के लिये अन्य संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:

  • अनुच्छेद 15 (4) अनुसूचित जाति की उन्नति हेतु विशेष प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 16 (4अ) राज्य की राय में राज्य संबंधित सेवाओं में अनुसूचित जातियों/जनजातियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो अत: राज्य पदोन्नति में भी ऐसे किसी वर्ग या वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है।
  • अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है।
  • अनुच्छेद 46 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की वृद्धि तथा शोषण से रक्षा का प्रयास करना।
  • अनुच्छेद 335: सेवाओं और पदों को लेकर SC और ST के दावों पर विचार करने हेतु विशेष उपायों को अपनाने का प्रावधान करता है, ताकि उन्हें बराबरी के स्तर पर लाया जा सके।
  • 82वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा  अनुच्छेद 335 में एक प्रावधान शामिल किया गया  जो राज्य को किसी भी परीक्षा में अर्हक अंक में छूट प्रदान करने हेतु अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के पक्ष में कोई प्रावधान करने में सक्षम बनाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332 क्रमशः लोकसभा  और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करते हैं।
  • पंचायतों से संबंधित भाग IX और नगर पालिकाओं से संबंधित संविधान के भाग IXA के तहत स्थानीय निकायों में SC और ST हेतु आरक्षण की परिकल्पना की गई है।
  •  एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून 2018

स्रोत: पी.आई.बी 


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