शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2021
प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE), राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार, समीक्षा पोर्टल मेन्स के लिये: ऊर्जा संरक्षण सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय और वैश्विक प्रयास, भारत में बिजली क्षेत्र का परिदृश्य और ऊर्जा संरक्षण की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
‘ऊर्जा दक्षता ब्यूरो’ (BEE) द्वारा प्रतिवर्ष 14 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस’ मनाया जाता है।
यह दिवस लोगों को ‘ग्लोबल वार्मिंग’ और जलवायु परिवर्तन के विषय में जागरूक करने पर केंद्रित है और ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण की दिशा में प्रयासों को बढ़ावा देता है। यह ऊर्जा दक्षता और संरक्षण के क्षेत्र में देश की उपलब्धियों पर भी प्रकाश डालता है।
विद्युत मंत्रालय ने ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के तहत वर्ष 2021 में ऊर्जा संरक्षण सप्ताह (8-14 दिसंबर) मनाया जा रहा है। समारोह के हिस्से के रूप में, विद्युत मंत्रालय के तहत ‘ऊर्जा दक्षता ब्यूरो’ ने विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया है।
प्रमुख बिंदु
- ऊर्जा संरक्षण:
- ‘ऊर्जा संरक्षण’ ऐसे प्रयासों को संदर्भित करता है, जिनके माध्यम से किसी विशेष उद्देश्य के लिये कम ऊर्जा का उपयोग करके ऊर्जा का कुशलतापूर्वक संरक्षण सुनिश्चित किया जाता है- जैसे बल्ब और पंखों का यथा संभव कम उपयोग करना- या किसी विशेष सेवा के उपयोग को कम किया जाता है- जैसे कम ड्राइविंग और इसके बजाय सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, ताकि ऊर्जा संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
- ऊर्जा संरक्षण एक सचेत, व्यक्तिगत प्रयास है और वृहद स्तर पर यह ऊर्जा दक्षता की ओर ले जाता है।
- ऊर्जा संरक्षण का अंतिम लक्ष्य स्थायी ऊर्जा उपयोग की ओर पहुँचना है।
- गौरतलब है कि यह 'ऊर्जा दक्षता' शब्द से अलग है, जिसके तहत ऐसी तकनीक का उपयोग किया जाता है जिसमें समान कार्य करने हेतु कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001:
- अधिनियम भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को कम करने के लक्ष्य के साथ अधिनियमित किया गया था। यह निम्नलिखित के लिये विनियामक अधिदेश प्रदान करता है:
- उपकरणों की मानक और लेबलिंग;
- वाणिज्यिक भवनों हेतु ऊर्जा संरक्षण कोड तथा
- ऊर्जा गहन उद्योगों के लिये ऊर्जा खपत मानदंड।
- अधिनियम भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को कम करने के लक्ष्य के साथ अधिनियमित किया गया था। यह निम्नलिखित के लिये विनियामक अधिदेश प्रदान करता है:
- ऊर्जा संरक्षण सप्ताह:
- विद्युत् मंत्रालय द्वारा 8 से 14 दिसंबर 2021 तक ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत ऊर्जा संरक्षण सप्ताह मनाया जा रहा है।
- BEE और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने मिलकर इस क्षेत्र के विकास को ऊर्जा-कुशल तथा पर्यावरण के अनुकूल तरीके से सुनिश्चित करने के लिये कई पहल की हैं।
- MSME क्षेत्र में विभिन्न संगठनों के बीच तालमेल सुनिश्चित करने के लिये बीईई और एमएसएमई मंत्रालय ने एक सहयोगी मंच - "समीक्षा" (लघु और मध्यम उद्यम ऊर्जा दक्षता ज्ञान साझाकरण) को भी बढ़ावा दिया है।
- मंच का उद्देश्य ज्ञान को एकत्र करना और स्वच्छ, ऊर्जा प्रौद्योगिकियों तथा प्रथाओं को बढ़ावा देने और अपनाने के लिये विभिन्न संगठनों के प्रयासों में तालमेल बिठाना है।
- बीईई ने एमएसएमई समूहों के ऊर्जा और संसाधन मानचित्रण के परिणामों पर एक इंटरएक्टिव कार्यशाला का आयोजन किया है।
- राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार:
- ऊर्जा मंत्रालय ने अपने उत्पादन को बनाए रखते हुए ऊर्जा खपत को कम करने के लिये विशेष प्रयास करने वाले उद्योगों और प्रतिष्ठानों को पुरस्कार के माध्यम से राष्ट्रीय मान्यता प्रदान करने हेतु वर्ष 1991 में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार शुरू किया था।
- यह उद्योग, प्रतिष्ठानों और संस्थानों में 56 उप-क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता उपलब्धियों को मान्यता देता है।
- अन्य संबंधित पहलें:
- राष्ट्रीय:
- प्रदर्शन उपलब्धि और व्यापार योजना (PET): यह ऊर्जा बचत के प्रमाणीकरण के माध्यम से ऊर्जा गहन उद्योगों में ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिये लागत प्रभावशीलता को बढ़ाने हेतु एक बाज़ार आधारित तंत्र है जिसका व्यापार किया जा सकता है।
- मानक और लेबलिंग: यह योजना 2006 में शुरू की गई थी और वर्तमान में उपकरण/उपकरणों के लिये लागू की गई है।
- ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC): इसे 2007 में नए वाणिज्यिक भवनों के लिये विकसित किया गया था।
- मांग पक्ष प्रबंधन: यह विद्युत मीटर की मांग या ग्राहक-पक्ष पर प्रभाव डालने के उद्देश्य से उपायों का चयन, योजना और कार्यान्वयन है।
- वैश्विक प्रयास:
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी: यह सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य के लिये ऊर्जा नीतियों को आकार देने हेतु दुनिया भर के देशों के साथ कार्य करती है।
- भारत IEA का एक सदस्य देश नहीं बल्कि एक सहयोगी सदस्य (Association Country) है। हालांँकि IEA ने भारत को पूर्णकालिक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया है।
- IEA और एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL - Ministry of Power) ने ऊर्जा कुशल प्रकाश व्यवस्था के कई लाभों को प्रदर्शित करने के लिये भारत सरकार के घरेलू कुशल प्रकाश कार्यक्रम - ‘उजाला’ (UJALA) पर मिलकर केस स्टडी की।
- सस्टेनेबल एनर्जी फॉर आल (SEforALL)
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो जलवायु पर पेरिस समझौते के अनुरूप सतत् विकास लक्ष्य-7 (वर्ष 2030 तक सभी के सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा की पहुँच) की उपलब्धि की दिशा में तेज़ी से कार्रवाई करने के लिये संयुक्त राष्ट्र और सरकार के नेताओं, निजी क्षेत्र, वित्तीय संस्थानों तथा नागरिक समाज के साथ साझेदारी में काम करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी: यह सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य के लिये ऊर्जा नीतियों को आकार देने हेतु दुनिया भर के देशों के साथ कार्य करती है।
- पेरिस समझौता:
- यह जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसका लक्ष्य पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है।
- पेरिस समझौते के तहत भारत ने वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा तीव्रता (प्रति यूनिट जीडीपी के लिये खर्च ऊर्जा इकाई) को वर्ष 2005 की तुलना में 33-35% कम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- मिशन इनोवेशन (MI):
- यह स्वच्छ ऊर्जा नवाचार में तेज़ी लाने के लिये 24 देशों और यूरोपीय आयोग (यूरोपीय संघ की ओर से) की एक वैश्विक पहल है।
- भारत इसके सदस्य देशों में से एक है।
- राष्ट्रीय:
- भारत में विद्युत क्षेत्र का परिदृश्य:
- कुल क्षमता: भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विद्युत उत्पादक देश है। नवंबर 2021 तक, इसकी बिजली ग्रिड में लगभग 392 GW की कुल क्षमता जोड़ी गई है।
- भारत की बिजली उत्पन्न करने के लिये तापीय, परमाणु और नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) प्रणालियाँ प्रमुख स्रोत हैं।
- तापीय, परमाणु और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता क्रमशः 60% (234.69 GW), 2% (6.78 GW) और 38% (150.54 GW) की हिस्सेदारी रखती है।
- भारत की बिजली उत्पन्न करने के लिये तापीय, परमाणु और नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) प्रणालियाँ प्रमुख स्रोत हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र विश्व स्तर पर चौथा सबसे आकर्षक नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ार है।
- पवन ऊर्जा स्थापना क्षमता के मामले में भारत चौथे स्थान पर था जबकि सौर ऊर्जा स्थापना क्षमता में इसे पाँचवें स्थान पर रखा गया है।
- भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा (RI) क्षमता के 150 गीगावाट को पार करके एक मील का पत्थर हासिल किया है।
- नवंबर 2021 में, वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट तथा वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट के महत्वाकाँक्षी लक्ष्य के मुकाबले कुल नवीकरणीय ऊर्जा (RI) स्थापित क्षमता 150.54 गीगावाट है।
- कुल क्षमता: भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विद्युत उत्पादक देश है। नवंबर 2021 तक, इसकी बिजली ग्रिड में लगभग 392 GW की कुल क्षमता जोड़ी गई है।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE):
- BEE केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- यह भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ नीतियों और रणनीतियों को विकसित करने में सहायता करता है।
- BEE अपने कार्यों को करने में मौज़ूदा संसाधनों और बुनियादी ढाँचे की पहचान तथा उपयोग करने के लिये नामित उपभोक्ताओं, एजेंसियों एवं अन्य संगठनों के साथ समन्वय करता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय
प्रिलिम्स के लिये: कॉन्टिनेंटल शेल्फ़, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, UNCLOS मेन्स के लिये: UNCLOS और समुद्री विवाद जैसे कि दक्षिण चीन सागर तथा पूर्वी चीन सागर में |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) पर अपना समर्थन दोहराया है।
- भारत ने UNCLOS,1982 में विशेष रूप से परिलक्षित अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के आधार पर नेविगेशन और ओवरफ्लाइट तथा अबाधित वाणिज्य की स्वतंत्रता का भी समर्थन किया है।
- भारत, UNCLOS का एक समर्थक देश है।
प्रमुख बिंदु:
- सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) 1982 एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो समुद्री और समुद्री गतिविधियों के लिये कानूनी ढाँचा स्थापित करता है।
- इसे समुद्र के नियम के रूप में भी जाना जाता है यह समुद्री क्षेत्रों को पाँच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है अर्थात्- आंतरिक जल, प्रादेशिक सागर, सन्निहित क्षेत्र, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और हाई सीज़।
- यह तटीय देशों और महासागरों को नेविगेट करने वालों द्वारा अपतटीय शासन के लिये मज़बूती प्रदान करता है।
- यह न केवल तटीय देशों के अपतटीय क्षेत्रों का ज़ोन है बल्कि पाँच संकेंद्रित क्षेत्रों में देशों के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के लिये विशिष्ट मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
- जबकि UNCLOS पर दक्षिण चीन सागर में लगभग सभी तटीय देशों द्वारा हस्ताक्षर और पुष्टि की गई है किंतु इसकी व्याख्या अभी भी बहुत विवादित है।
- पूर्वी चीन सागर में भी समुद्री विवाद है।
समुद्री क्षेत्र
- आधार रेखा:
- यह तटीय देश द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त तट के साथ कम परिक्षेत्र की जल रेखा है।
- आंतरिक जल:
- आंतरिक जल वे जल होते हैं जो आधार रेखा के भू-भाग पर स्थित होते हैं और जिससे प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई मापी जाती है।
- प्रत्येक तटीय देश की अपने भूमि क्षेत्र की तरह अपने आंतरिक जल पर पूर्ण संप्रभुता होती है। आंतरिक जल के उदाहरणों में खाड़ी, बंदरगाह, इनलेट, नदियाँ और यहाँ तक कि समुद्र से जुड़ी झीलें भी शामिल हैं।
- आंतरिक जल से इनोसेंट पैसेज के गुज़रने का कोई अधिकार नहीं है।
- इनोसेंट पैसेज का तात्पर्य उन जल से गुज़रना है जो शांति और सुरक्षा के प्रतिकूल नहीं हैं। हालाँकि, राष्ट्रों को इसे निलंबित करने का अधिकार है।
- प्रादेशिक सागर:
- प्रादेशिक समुद्र अपनी आधार रेखा से समुद्र की ओर 12 नॉटिकल मील (NM) तक विस्तृत होता है।
- एक नॉटिकल मील पृथ्वी की परिधि पर आधारित होता है और अक्षांश के एक मिनट के बराबर होता है। यह भूमि मापित मील (1 समुद्री मील = 1.1508 भूमि मील या 1.85 किमी) से थोड़ा अधिक है।
- प्रादेशिक समुद्र अपनी आधार रेखा से समुद्र की ओर 12 नॉटिकल मील (NM) तक विस्तृत होता है।
- सन्निहित क्षेत्र (Contiguous Zone):
- सन्निहित क्षेत्र का विस्तार आधार रेखा से 24 नॉटिकल मील तक विस्तृत होता है।
- तटीय देशों को अपने क्षेत्र के भीतर राजकोषीय, आव्रजन, स्वच्छता और सीमा शुल्क कानूनों के उल्लंघन को रोकने तथा दंडित करने का अधिकार होता है।
- इसमें संबंधित देश को अपनी सीमा में न्याधिकारिता का अधिकार होता है। लेकिन यह हवाई और अंतरिक्ष क्षेत्र पर लागू नहीं होता है।
- अनन्य आर्थिक क्षेत्र ( Exclusive Economic Zone-EEZ):
- EEZ आधार रेखा से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक फैला होता है। इसमें तटीय देशों को सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन का संप्रभु अधिकार प्राप्त होता है।
- हाई सीज़ (High Seas):
- EEZ से अलग समुद्र की सतह और जल स्तंभ को ‘हाई सीज़’ कहा जाता है।
- इसे "सभी मानव जाति की साझा विरासत" के रूप में माना जाता है और यह किसी भी राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे है।
- देश इन क्षेत्रों में गतिविधियों का संचालन तब तक कर सकते हैं जब तक कि वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये हों, जैसे कि पारगमन, समुद्री विज्ञान और पानी के नीचे की खोज।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
बैंक जमा राशि बीमा कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये:जमा राशि बीमा, DICGC मेन्स के लिये:जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) की आवश्यकता और जमा बीमा का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने "जमाकर्त्ता प्रथम: 5 लाख रुपए तक गारंटीकृत समयबद्ध जमा बीमा भुगतान" पर नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि 1 लाख से अधिक जमाकर्त्ताओं (जो बैंकों में के समक्ष उत्पन्न वित्तीय संकट के कारण अपने धन का उपयोग नहीं कर सके) को 1,300 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था।
- जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation-DICGC) अधिनियम के तहत 76 लाख करोड़ रुपए की जमा राशि का बीमा किया गया था, जो लगभग 98% बैंक खातों को पूर्ण कवरेज़ प्रदान करता है।
- इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) विधेयक, 2021 को मंज़ूरी दी थी।
जमा बीमा: यदि कोई बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये पैसे नहीं होते हैं तथा उसे परिसमापन के लिये जाना पड़ता है, तो यह बीमा बैंक जमा को होने वाले नुकसान के खिलाफ एक सुरक्षा कवर प्रदान करता है।
क्रेडिट गारंटी: यह वह गारंटी है जो प्रायः लेनदार को उस स्थिति में एक विशिष्ट उपाय प्रदान करती है जब उसका देनदार अपना कर्ज़ वापस नहीं करता है।
प्रमुख बिंदु
- जमा बीमा हेतु सीमा:
- वर्तमान में एक जमाकर्त्ता के पास बीमा कवर के रूप में प्रति खाता अधिकतम 5 लाख रुपए का दावा है। इस राशि को 'जमा बीमा' कहा जाता है।
- जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (DICGC) द्वारा प्रति जमाकर्त्ता को 5 लाख रुपए का कवर प्रदान किया जाता है।
- जिन जमाकर्त्ताओं के खाते में 5 लाख रुपए से अधिक हैं, उनके पास बैंक के दिवालिया होने की स्थिति में धन की वसूली के लिये कोई कानूनी सहारा नहीं है।
- बीमा के लिये प्रीमियम प्रत्येक 100 रुपए जमा हेतु 10 पैसे से बढ़ाकर 12 पैसे कर दिया गया है और यह सीमा 15 पैसे तक बढाई गई है।
- इस बीमा के प्रीमियम का भुगतान बैंकों द्वारा DICGC को किया जाता है और जमाकर्त्ताओं को नहीं दिया जाता है।
- बीमित बैंक पिछले छमाही के अंत में अपनी जमा राशि के आधार पर, प्रत्येक वित्तीय छमाही की शुरुआत से दो महीने के भीतर अर्ध-वार्षिक रूप से निगम को अग्रिम बीमा प्रीमियम का भुगतान करते हैं।
- वर्तमान में एक जमाकर्त्ता के पास बीमा कवर के रूप में प्रति खाता अधिकतम 5 लाख रुपए का दावा है। इस राशि को 'जमा बीमा' कहा जाता है।
- कवरेज़:
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित बैंकों को DICGC के साथ जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है।
- कवर की गई जमा राशियों के प्रकार:
- DICGC निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियों को छोड़कर सभी बैंक जमाओं, जैसे बचत, सावधि, चालू, आवर्ती आदि का बीमा करता है:
- विदेशी सरकारों की जमाराशियाँ।
- केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियाँ।
- अंतर-बैंक जमा।
- राज्य भूमि विकास बैंकों की राज्य सहकारी बैंकों में जमाराशियाँ।
- भारत के बाहर प्राप्त कोई भी जमा राशि।
- कोई भी राशि जिसे आरबीआई की पिछली मंज़ूरी के साथ निगम द्वारा विशेष रूप से छूट दी गई है।
- DICGC निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियों को छोड़कर सभी बैंक जमाओं, जैसे बचत, सावधि, चालू, आवर्ती आदि का बीमा करता है:
- जमा बीमा की आवश्यकता:
- पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (PMC) बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे हाल के मामलों में जमाकर्त्ताओं को बैंकों में अपने फंड तक तत्काल पहुंँच प्राप्त करने में परेशानी के चलते जमा बीमा के विषय पर ध्यान आकर्षित किया था।
DICGC
- DICGC के बारे में:
- यह वर्ष 1978 में संसद द्वारा डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट, 1961 के पारित होने के बाद जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया।
- यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
- फंड:
- निगम निम्नलिखित निधियों का रख-रखाव करता है:
- जमा बीमा कोष
- क्रेडिट गारंटी फंड
- सामान्य निधि
- पहले दो को क्रमशः बीमा प्रीमियम और प्राप्त गारंटी शुल्क द्वारा वित्तपोषित किया जाता है तथा संबंधित दावों के निपटान के लिये उपयोग किया जाता है।
- सामान्य निधि का उपयोग निगम की स्थापना और प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने के लिये किया जाता है।
- निगम निम्नलिखित निधियों का रख-रखाव करता है:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आंतरिक सुरक्षा
‘Log4Shell’ सुभेद्यता
प्रिलिम्स के लिये:Log4Shell, ओपन-सोर्स लॉगिंग सॉफ्टवेयर ‘Apache Log4J’, भेद्यता, एप्लीकेशन लॉगिंग मेन्स के लिये:भारत और विश्व पर ‘Log4Shell’ सुभेद्यता का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों
हाल ही में व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले ओपन-सोर्स लॉगिंग सॉफ्टवेयर ‘Apache Log4J’ में ‘Log4Shell’ नामक एक गंभीर सुभेद्यता का पता चला है और इस सुभेद्यता का उपयोग साइबर हमलावरों द्वारा भारत सहित दुनिया भर के संगठनों के कंप्यूटरों को लक्षित करने के लिये किया जा रहा है।
- सुभेद्यता एक ओपन-सोर्स लॉगिंग लाइब्रेरी पर आधारित है, जिसका उपयोग उद्यमों और यहाँ तक कि सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रयोग किया जाता है।
सुभेद्यता (Vulnerability)
एप्लीकेशन लॉगिंग
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प्रमुख बिंदु
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नाम
- इस सुभेद्यता को सामान्य तौर पर Log4Shell और आधिकारिक तौर पर ‘CVE-2021-44228’ नाम दिया गया है।
- ‘CVE’ नंबर दुनिया भर में खोजी गई प्रत्येक सुभेद्यता को दी गई अद्वितीय संख्या है।
- इस सुभेद्यता का पता पहली बार उन वेबसाइटों पर लगाया गया था जो ‘माइनक्राफ्ट’ (Minecraft) नामक माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के स्वामित्व वाले गेम सर्वर को होस्ट कर रहे थे।
-
‘Log4j’ लाइब्रेरी:
- ‘Log4j’ गैर-लाभकारी अपाचे सॉफ्टवेयर फाउंडेशन के हिस्से के रूप में स्वयंसेवी प्रोग्रामर के एक समूह द्वारा बनाए रखा गया ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर है और यह एक प्रमुख जावा-लॉगिंग फ्रेमवर्क है।
- ‘Log4j’ लाइब्रेरी प्रत्येक जावा-आधारित वेब सर्विस या एप्लीकेशन में अंतर्निहित है और एप्लीकेशन पर लॉग इन करने में सक्षम करने के लिये व्यापक संख्या में कंपनियों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है।
- ‘जावा’ (Java) दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली प्रोग्रामिंग भाषाओं में से एक है।
- यह सुभेद्यता ‘Log4j 2’ संस्करणों, जो दुनिया भर में उपयोग की जाने वाली एक बहुत ही कॉमन लॉगिंग लाइब्रेरी है, को प्रभावित करता है।
- लॉगिंग, डेवलपर्स (Developers) को एक एप्लीकेशन की सभी गतिविधियों को देखने की अनुमति देता है।
- एप्पल (Apple), माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft), गूगल (Google) जैसी सभी टेक कंपनियांँ इस ओपन-सोर्स लाइब्रेरी (Open-Source Library) पर भरोसा करती हैं, जैसा कि एंटरप्राइज़ एप्लीकेशन सिस्को (CISCO), नेटएप (Netapp), क्लाउडफेयर (Cloudflare),
- अमेज़न (Amazon) और अन्य पर करते हैं।
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गंभीर/सीवियर रेटिंग (Severe Rating):
- Log4Shell को सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा इसे 10 की गंभीर/सीवियर रेटिंग दी गई है।
- यह सुभेद्यता एक हैकर को सिस्टम पर नियंत्रण करने की अनुमति दे सकती है।
- एक साइबर हमलावर उपभोक्ता द्वारा प्रिंट या किसी फाइल में लॉगिंग करने हेतु दी गई कमॉन्ड के समय लॉगिंग वाले सर्वर को हैक कर सकता है।
- यह एक बुनियादी "प्रिंट" निर्देश को लीक-सम-सीक्रेटे-डेटा-आउट-ऑन-ओंट-द--इंटरनेट सिचुएशन (Leak-Some-Secret-Data-Out-Onto-The-Internet Situation) या डाउनलोड-एंड-रन-माय-मैलवेयर-एट-वन्स कमांड (Download-And-Run-My-Malware-At-Once Command) में परिवर्तित कर सकता है।
- सरल शब्दों में कहें, तो कानूनी या सुरक्षा कारणों से किया गया एक लॉग मैलवेयर आरोपण घटना (Malware Implantation Event) में परिवर्तित हो सकता है।
-
रिमोट कोड निष्पादन (RCE):
- एक पंक्ति के कोड का उपयोग करके भेद्यता का फायदा उठाया जा सकता है जो हमलावरों को पीड़ित के सिस्टम पर रिमोट कमांड निष्पादित करने की अनुमति देता है।
- किसी भी जावा-आधारित वेब सर्वर को नियंत्रित करने और रिमोट कोड निष्पादन (Remote Code Execution-RCE) हमलों को अंजाम देने के लिये हमलावरों द्वारा इसका उपयोग किया जा सकता है।
- RCE हमले में हमलावर लक्षित प्रणाली पर नियंत्रण कर लेते हैं और अपनी इच्छानुसार कोई भी कार्य कर सकते हैं।
- कई रिपोर्टों के अनुसार, इस भेद्यता पर पहले से ही हैकर द्वारा परीक्षण किया जा रहा है, और यह उन्हें एक एप्लीकेशन तक पहुंँच प्रदान करता है, जो संभावित रूप से उन्हें डिवाइस या सर्वर पर दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर चलाने की अनुमति प्रदान करता है।
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Log4Shell भेद्यता का प्रभाव:
- क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग: उनके द्वारा महसूस किये गए अधिकांश हमले पीड़ितों की कीमत पर क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के उपयोग पर केंद्रित प्रतीत होते हैं। हालाँकि मूल शोषण के नए रूपांतरण तेजी से पेश किये जा रहे हैं।
- इस भेद्यता के सफल दोहन से संवेदनशील जानकारी का खुलासा हो सकता है, डेटा में वृद्धि या संशोधन हो सकता है, या सेवा से इनकार (DoS) हो सकता है।
- वैश्विक: इससे ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड (ANZ) क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र था जिसमें 46% कॉर्पोरेट नेटवर्क एक प्रयास के शोषण का सामना कर रहे थे।
- जबकि इस तरह के प्रयास का सामना करने वाले 36.4% संगठनों के साथ उत्तरी अमेरिका सबसे कम प्रभावित था।
- भारत: भारत में लगभग 41% कॉर्पोरेट नेटवर्क पहले ही शोषण के प्रयास का सामना कर चुके हैं।
- भारतीय कंपनियाँ अपने पश्चिमी समकक्षों की तुलना में अधिक असुरक्षित नहीं हैं क्योंकि वे जावा-आधारित अनुप्रयोगों का उपयोग करती हैं।
- भारतीय कंपनियाँ अपनी कमज़ोर सुरक्षा स्थिति के कारण उच्च जोखिम में हैं, विशेष रूप से छोटी कंपनियाँ जिनके पास समस्या का पता लगाने और उसे जल्दी से ठीक करने के लिये जानकारी या संसाधन नहीं हो सकते हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग: उनके द्वारा महसूस किये गए अधिकांश हमले पीड़ितों की कीमत पर क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के उपयोग पर केंद्रित प्रतीत होते हैं। हालाँकि मूल शोषण के नए रूपांतरण तेजी से पेश किये जा रहे हैं।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
स्माइल योजना
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय क्षेत्रक योजना, राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम मेन्स के लिये:भिखारियों के लिये स्माइल योजना और उनकी आजीविका बढ़ाने में इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लोकसभा में एक प्रश्न का लिखित उत्तर देते हुए यह सूचित किया कि मंत्रालय द्वारा "स्माइल- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन" (Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise-SMILE) नामक योजना तैयार की गई है।
- इसमें केंद्रीय क्षेत्रक की 'भिखारियों के व्यापक पुनर्वास के लिये योजना' नामक एक उपयोजना भी शामिल है।
- वर्तमान में यह पायलट प्रोजेक्ट 7 शहरों दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद, इंदौर, लखनऊ, नागपुर और पटना में चल रहा है।
प्रमुख बिंदु
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स्माइल योजना के बारे में:
- भिखारियों और ट्रांसजेंडरों के लिये मौजूदा योजनाओं के विलय के बाद यह एक नई योजना है।
- यह योजना राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों और शहरी स्थानीय निकायों के पास उपलब्ध मौजूदा आश्रय गृहों के उपयोग के लिये भिक्षावृत्ति में लगे व्यक्तियों के लिये पुनर्वास सुनिश्चित करती है।
- मौजूदा आश्रय गृहों की अनुपलब्धता के मामले में कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा नए समर्पित आश्रय गृह स्थापित किये जाएँगे।
-
मुख्य केंद्र:
- इस योजना के केंद्र में बड़े पैमाने पर पुनर्वास, चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान, परामर्श, बुनियादी दस्तावेज़, शिक्षा, कौशल विकास आदि हैं।
- अनुमान है कि इस योजना के तहत लगभग 60,000 सबसे गरीब व्यक्तियों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये लाभान्वित किया जाएगा।
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क्रियान्वयन:
- इसे राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकारों/स्थानीय शहरी निकायों, स्वैच्छिक संगठनों, समुदाय आधारित संगठनों (CBOs), संस्थानों और अन्य के सहयोग से लागू किया जाएगा।
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भिखारियों के व्यापक पुनर्वास के लिये योजना:
- यह भिक्षावृत्ति में संग्लन व्यक्तियों के जीवनस्तर में सुधार के लिये एक व्यापक योजना होगी।
- इस योजना को चुनिंदा शहरों में पायलट आधार पर लागू किया गया है जहाँ भिखारियों की संख्या अधिक है।
- वर्ष 2019-20 के दौरान मंत्रालय ने भिखारियों के कौशल विकास कार्यक्रमों हेतु राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान (NISD) को 1 करोड़ रुपए और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम (NBCFDC) को 70 लाख रुपए की राशि जारी की गई।
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भारत में भिक्षावृत्ति की स्थिति:
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 (2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएँ) है और पिछली जनगणना के बाद से इस संख्या में वृद्धि हुई है।
- पश्चिम बंगाल इस सूची में सबसे ऊपर है, उसके बाद क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश और बिहार का स्थान आता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप में भिखारियों की संख्या केवल दो है।
- केंद्रशासित प्रदेशों में नई दिल्ली में सबसे अधिक 2,187 भिखारी थे, उसके बाद चंडीगढ़ में इनकी संख्या 121 थी।
- पूर्वोत्तर राज्यों में असम 22,116 भिखारियों के साथ सूची में सबसे ऊपर है, जबकि मिज़ोरम 53 भिखारियों के साथ निचले स्थान पर है।
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम के तहत विभिन्न राज्यों में भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी से हटाने के लिये एक याचिका पर विचार करने हेतु सहमत हुआ है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम (NBCFDC)
- NBCFDC सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तत्त्वावधान में भारत सरकार का उपक्रम है।
- इसे कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के तहत 13 जनवरी, 1992 को एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों को लाभ पहुँचाने हेतु आर्थिक एवं विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देना तथा कौशल विकास व स्वरोज़गार उपक्रमों में इन वर्गों के गरीबों की सहायता करना है।
राष्ट्रीय समाज रक्षा संस्थान (NISD)
- NISD एक स्वायत्त निकाय है और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR), दिल्ली सरकार के साथ 1860 के सोसायटी अधिनियम XXI के तहत पंजीकृत है।
- यह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का एक केंद्रीय सलाहकार निकाय है।
- यह सामाजिक रक्षा के क्षेत्र में नोडल प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान है।
- संस्थान वर्तमान में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम, वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण, भिक्षावृत्ति रोकथाम, ट्रांसजेंडर और अन्य सामाजिक रक्षा संबंधी मुद्दों के क्षेत्र में मानव संसाधन विकास पर केंद्रित है।
- संस्थान का अधिदेश प्रशिक्षण, अनुसंधान और प्रलेखन के माध्यम से भारत सरकार के सामाजिक रक्षा कार्यक्रमों हेतु जानकारी प्रदान करना है।
स्रोत- पी.आई.बी
भारतीय अर्थव्यवस्था
काला धन
प्रिलिम्स के लिये:टैक्स हेवन, राउंड ट्रिपिंग, भगोड़ा आर्थिक अपराधी, ट्रांसफर प्राइसिंग, व्हिसलब्लोअर, अर्थव्यवस्था पर काले धन का प्रभाव, काले धन के स्रोत, वित्तीय खुफिया इकाई, वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स मेन्स के लिये:भारत में काले धन से निपटना, पनामा की प्रासंगिकता और पैराडाइज़ पेपर लीक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने संसद में कहा है कि वर्ष 2015 के दौरान एकमुश्त तीन महीने की अनुपालन विंडो के तहत कर और जुर्माना के रूप में 2,476 करोड़ रुपए एकत्र किये गए हैं।
- यह भी कहा गया है कि पिछले पाँच वर्षों में विदेशी खातों में कितना काला धन पड़ा है, इसका कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है।
- पनामा और पैराडाइज़ पेपर लीक में 930 भारत से जुड़ी संस्थाओं के 20,353 करोड़ रुपए के अघोषित क्रेडिट का पता चला है।
प्रमुख बिंदु
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काला धन:
- आर्थिक सिद्धांत में काले धन की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है, काले धन हेतु कई अलग-अलग शब्द जैसे समानांतर अर्थव्यवस्था, काला धन, काला आय, बेहिसाब अर्थव्यवस्था, अवैध अर्थव्यवस्था और अनियमित अर्थव्यवस्था सभी का कमोबेश समान रूप से उपयोग किया जा रहा है।
- काले धन की सबसे सरल परिभाषा संभवतः वह धन हो सकती है जो कर अधिकारियों से छिपा हो।
- वित्त मंत्रालय द्वारा किये गए एक गुप्त अध्ययन के अनुसार वर्ष 2014 में निष्कर्ष निकाला गया कि लगभग 90% बेहिसाब धन भारत के बाहर के बजाय इसके भीतर पड़ा था।
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काले धन का स्रोत:
- यह दो व्यापक श्रेणियों से आ सकता है:
- अवैध गतिविधि:
- अवैध गतिविधि के माध्यम से अर्जित धन स्पष्ट रूप से कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता है और इसलिये यह काला धन होता है।
- कानूनी लेकिन रिपोर्ट नहीं की गई गतिविधि:
- दूसरी श्रेणी में कानूनी गतिविधि से होने वाली आय शामिल है जिसकी सूचना कर अधिकारियों को नहीं दी जाती है।
- अवैध गतिविधि:
- यह दो व्यापक श्रेणियों से आ सकता है:
काले धन के स्रोतों के उदाहरण
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प्रभाव:
- राजस्व की हानि:
- काला धन कर के एक हिस्से को समाप्त कर देता है और इस प्रकार सरकार का घाटा बढ़ जाता है।
- सरकार को इस घाटे को करों में वृद्धि, सब्सिडी में कमी और उधार में वृद्धि करके संतुलित करना होता है।
- उधार लेने से ब्याज के बोझ के कारण सरकार के ऋण में और वृद्धि होती है। अगर सरकार घाटे को संतुलित करने में असमर्थ है, तो उसे खर्च कम करना होगा, जो कि विकास को प्रभावित करता है।
- धन संचलन:
- आमतौर पर लोग काले धन को सोने के तौर पर, अचल संपत्ति और अन्य गुप्त तरीकों के रूप में रखते हैं।
- ऐसा पैसा मुख्य अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बनता है और इसलिये आमतौर पर प्रचलन से बाहर रहता है।
- काला धन अमीरों के बीच संचालित होता रहता है और उनके लिये अधिक अवसर पैदा करता है।
- उच्च मुद्रास्फीति:
- अर्थव्यवस्था में बेहिसाब काला धन होने से मुद्रास्फीति की स्थिति अधिक देखी जाती है, जो गरीबों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करती है।
- यह अमीर और गरीब के बीच असमानता को भी बढ़ाता है।
- राजस्व की हानि:
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सरकार द्वारा की गई पहलें:
- विधायी प्रयास:
- भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018
- केंद्रीय वस्तु और सेवा कर अधिनियम, 2017
- बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016
- काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) कर अधिरोपण अधिनियम 2015
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002
- गोल्ड एमनेस्टी स्कीम: यह आय कर के मामलों में काले धन का दोहन करने के लिये स्वैच्छिक आय प्रकटीकरण योजना के समान है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAA)
- भारत दोहरे कराधान से बचाव के लिये सूचनाओं के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से दोहरा कराधान अपवंचन समझौते/कर सूचना विनिमय समझौतों/बहुपक्षीय सम्मेलनों के तहत विदेशी सरकारों के साथ सक्रिय रूप से वार्ता कर रहा है।
- सूचना का स्वचालित आदान-प्रदान:
- भारत वित्तीय सूचना के सक्रिय साझाकरण के लिये ‘ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफार्मेशन’ नाम से एक बहुपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में अग्रणी रहा है, जो कर चोरी से निपटने के वैश्विक प्रयासों में सहायता करेगा।
- सामान्य रिपोर्टिंग मानक पर आधारित ‘ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफार्मेशन’ व्यवस्था वर्ष 2017 से शुरू है, जिससे भारत अन्य देशों में भारतीय निवासियों के वित्तीय खाते की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका का विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम:
- भारत ने इस अधिनियम के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सूचना साझा करने हेतु समझौता किया है।
- फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF):
- भारत FATF का सदस्य है।
- दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAA)
- विधायी प्रयास:
आगे की राह
- देश में सार्वजनिक खरीद, विदेशी अधिकारियों द्वारा ली जाने वाली रिश्वत की रोकथाम, नागरिक शिकायत निवारण, सूचना प्रदाता (व्हिसलब्लोअर) सुरक्षा, यूआईडी आधार से संबंधित उपयुक्त विधायी ढाँचे की आवश्यकता है।
- अवैध धन से निपटने वाली संस्थाओं की स्थापना और उनका सुदृढ़ीकरण: सूचना के आदान-प्रदान के लिये आपराधिक जाँच प्रकोष्ठ निदेशालय, मॉरीशस और सिंगापुर में आयकर विदेशी इकाइयाँ (ITOUs), CBDT के तहत विदेशी कर, कर अनुसंधान एवं जाँच प्रभाग को मज़बूत करने में बहुत उपयोगी रहे हैं।
- चुनाव सुधार: काले धन के उपयोग के लिये चुनाव सबसे बड़े चैनलों में से एक है, ऐसे में चुनावों में धन-बल को कम करने के लिये उचित सुधार की आवश्यकता है।
- कार्मिक प्रशिक्षण: विशिष्ट क्षेत्रों में प्रभावी कार्रवाई के लिये कर्मियों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये वित्तीय आसूचना इकाई-भारत (Financial Intelligence Unit-India) अपने कर्मचारियों को धनशोधन रोधी, आतंकवादी वित्तपोषण और संबंधित आर्थिक मुद्दों पर प्रशिक्षण के अवसर प्रदान कर उनके कौशल को नियमित रूप से उन्नत करने हेतु सक्रिय प्रयास करती है।
- बैंक लेनदेन को प्रोत्साहित करना: काले धन के खतरे को रोकने के लिये उद्योग निकाय ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ ने बैंकिंग चैनलों के माध्यम से लेनदेन को प्रोत्साहित करने और कृषि आय पर कराधान के लिये एक उपयुक्त ढाँचे का सुझाव दिया है।
- इसके अलावा इसने अचल संपत्ति क्षेत्र में सुधार और कर चोरी को ट्रैक करने के लिये आईटी बुनियादी ढाँचे के निर्माण का भी सुझाव दिया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संरक्षणवाद बनाम वैश्वीकरण
प्रिलिम्स के लिये:वैश्वीकरण, संरक्षणवाद, आत्मनिर्भर भारत पहल मेन्स के लिये:वैश्वीकरण के पक्ष और विपक्ष, वैश्वीकरण में गिरावट, भारत में संरक्षणवाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैश्विक प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री (EAM) द्वारा ज़ोर देकर कहा गया है कि कोविड -19 महामारी ने अनियंत्रित वैश्वीकरण (Unchecked Globalization) के बजाय भारत की क्षमताओं और अधिक घरेलू उत्पादन की आवश्यकता को बढ़ाया है।
- उन्होंने आगे कहा कि तकनीकी विकास को बढ़ावा देने के लिये, राष्ट्रों को आंतरिक रूप से अधिक स्टार्ट-अप, आपूर्ति शृंखला और रोज़गार सृजित करने की ज़रूरत है।
- विदेश मंत्री के इस भाषण ने संरक्षणवाद बनाम वैश्वीकरण के बीच एक बहस छेड़ दी है।
प्रमुख बिंदु
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वैश्वीकरण:
- परिचय: वैश्वीकरण एक सीमारहित दुनिया की परिकल्पना करता है या एक ग्लोबल विलेज के रूप में दुनिया की स्थापना का प्रयास करता है।
- आधुनिक वैश्वीकरण की उत्पत्ति: वर्तमान वैश्वीकरण वर्ष 1991 में शीत युद्ध की समाप्ति और सोवियत संघ के विघटन के साथ शुरू हुआ था।
- संचालित कारक: वैश्वीकरण दो प्रणालियों लोकतंत्र और पूंजीवाद, जो शीत युद्ध के अंत में अस्तित्त्व में आया।
- वैश्वीकरण के आयाम: इसका श्रेय सीमाओं के पार माल, लोगों, पूंजी, सूचना और ऊर्जा के त्वरित प्रवाह को दिया जा सकता है, जो अक्सर तकनीकी विकास द्वारा सक्षम होता है।
- वैश्वीकरण का प्रकटीकरण: टैरिफ के बिना व्यापार, आसान या बिना वीज़ा के साथ अंतर्राष्ट्रीय यात्रा, कुछ बाधाओं के साथ पूंजी प्रवाह, सीमा पार पाइपलाइन और ऊर्जा ग्रिड और वास्तविक समय में निर्बाध वैश्विक संचार ऐसे लक्ष्य प्रतीत होते हैं जिनकी ओर दुनिया आगे बढ़ रही थी।
- वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क:
- वस्तुओं और सेवाओं तक पहुँच: वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप व्यापार और जीवन स्तर में वृद्धि हुई है।
- यह घरेलू उत्पाद, पूंजी और श्रम बाज़ारों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की व्यापार एवं निवेश रणनीतियाँ अपनाने वाले देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाता है।
- सामाजिक न्याय का वाहक: समर्थकों का मानना है कि वैश्वीकरण, मुक्त व्यापार का प्रतिनिधित्त्व करता है जो वैश्विक आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, रोज़गार का सृजन करता है, कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाता है और उपभोक्ताओं के लिये कीमतें कम करता है।
- सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ाता है: सीमा-पार दूरियों को कम करके, वैश्वीकरण ने अंतःपारीय-सांस्कृतिक समझ और साझाकरण को बढ़ाया है।
- प्रौद्योगिकी और मूल्यों को साझा करना: यह विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी के माध्यम से गरीब देशों को आर्थिक रूप से विकसित होने तथा समृद्ध होने का मौका भी प्रदान करता है।
- वस्तुओं और सेवाओं तक पहुँच: वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप व्यापार और जीवन स्तर में वृद्धि हुई है।
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वैश्वीकरण के विपक्ष में तर्क:
- वैश्विक समस्याओं का उदय: वैश्वीकरण की आलोचना वैश्विक असमानताओं को बढ़ाने, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के प्रसार और सीमा पार संगठित अपराध तथा बीमारी के तेज़ी से प्रसार के कारण की जाती है।
- राष्ट्रवाद की प्रतिक्रिया: वैश्वीकरण के आर्थिक पहलू के बावजूद, इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा, राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं में वृद्धि हुई है।
- सांस्कृतिक एकरूपता की ओर बढ़ना: वैश्वीकरण लोगों के व्यवहार अभिसरण को बढ़ावा मिलता है जिससे अधिक सांस्कृतिक एकरूपता हो सकती है।
- इससे बहुमूल्य सांस्कृतिक प्रथाओं और भाषाओं की विलुप्ति का खतरा है।
- साथ ही, एक देश के दूसरे देश पर सांस्कृतिक आक्रमण के खतरे भी हैं।
नि-वैश्वीकरण या संरक्षणवाद
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अर्थ:
- संरक्षणवाद सरकारी नीतियों को संदर्भित करता है जो घरेलू उद्योगों की सहायता के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है।
- टैरिफ, आयात कोटा, उत्पाद मानक और सब्सिडी कुछ प्राथमिक नीति उपकरण हैं जिनका उपयोग सरकार संरक्षणवादी नीतियों को लागू करने में कर सकती है।
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वैश्विक क्षेत्र में संरक्षणवाद:
- वर्ष 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट (GFC) के बाद से वैश्वीकरण में स्थिरता शुरू हो गई।
- यह ब्रेक्जिट और अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी’ में परिलक्षित होता है।
- इसके अलावा व्यापार युद्ध तथा विश्व व्यापार संगठन की वार्ता को बाधित करना वैश्वीकरण के पीछे हटने की एक और मान्यता है।
- ये रुझान वैश्वीकरण विरोधी या संरक्षणवाद की भावना का मार्ग प्रशस्त करते हैं, जो कोविड-19 महामारी के प्रसार के कारण और बढ़ सकता है।
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भारत में संरक्षणवाद
- पिछले कुछ वर्षों में, कई देशों ने संरक्षणवादी बनने के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था की आलोचना की है। इसे निम्नलिखित उदाहरणों में दर्शाया जा सकता है:
- भारत सरकार द्वारा अमेरिका के साथ एक लघु व्यापार समझौते के लिये शर्तों पर सहमत होने में विफल रहने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को आयात के लिये नहीं खोलना।
- भारत 15 देशों की ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ से बाहर हो गया था।
- महामारी की शुरुआत के बाद, मई 2020 में शुरू की गई ‘आत्मनिर्भर भारत पहल’ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक संरक्षणवादी कदम के रूप में भी माना जाता था।
- पिछले कुछ वर्षों में, कई देशों ने संरक्षणवादी बनने के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था की आलोचना की है। इसे निम्नलिखित उदाहरणों में दर्शाया जा सकता है:
आगे की राह
- डी-ब्यूरोक्रेटाइज़ेशन: भारत को ऐसी नीतियाँ बनाने की ज़रूरत है, जो अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करें, कृषि जैसे कुछ क्षेत्रों को नौकरशाही से मुक्त करें और श्रम कानूनों को कम जटिल बनाएँ ।
- कच्चे माल की खरीद से लेकर तैयार उत्पादों के आउटलेट तक एक समग्र और आसानी से सुलभ पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
- जन-केंद्रित नीतियाँ: रोज़गार को गति प्रदान करने का एकमात्र तरीका स्थानीय क्षेत्र में मूल्यवर्द्धन को बढ़ाना है। विकास को गति देने के लिये ऐसी जन-केंद्रित और क्षेत्र-विशिष्ट नीतियों के निर्माण की आवश्यकता है।
- वैकल्पिक वैश्विक गठबंधन: भारत को अब क्षेत्रीय गठबंधनों से आगे बढ़ने की ज़रूरत है और संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे व्यापार के मामले में समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोगात्मक गठबंधन की कोशिश करनी चाहिये, ताकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में चीन के आधिपत्य का मुकाबला करने हेतु एक विकल्प का तलाशा जा सके।
- अनुसंधान एवं विकास और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना: लागत-प्रतिस्पर्द्धी और गुणवत्ता प्रतिस्पर्द्धी बनने के लिये निर्माण क्षमता तथा नीति ढाँचे को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- उत्पादन में वृद्धि करना: घरेलू उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ निर्यात बढ़ाने और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये और अधिक स्वायत्तता पर ज़ोर देना आवश्यक है। भारत को अब अगले 20 वर्ष के लिये योजना बनाने की ज़रूरत है।