भारतीय अर्थव्यवस्था
लक्ष्मी विलास बैंक का वित्तीय संकट
- 19 Nov 2020
- 9 min read
प्रिलिम्स के लियेगैर-निष्पादित परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक मेन्स के लियेबैंकिंग संकट और उसके कारण, बैंकिंग सेक्टर पर महामारी का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने चेन्नई स्थित लक्ष्मी विलास बैंक पर 30 दिवसीय मोरेटोरियम (Moratorium) लागू किया है, जिसका अर्थ है कि केंद्रीय बैंक द्वारा लक्ष्मी विलास बैंक की दैनिक गतिविधियों पर कुछ प्रतिबंध लगा दिये गए हैं। साथ ही भारतीय रिज़र्व बैंक ने डीबीएस बैंक इंडिया के साथ लक्ष्मी विलास बैंक के विलय की योजना का मसौदा भी तैयार किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 45(2) के आधार पर चेन्नई स्थित लक्ष्मी विलास बैंक पर कार्यवाही करते हुए कुछ विशिष्ट प्रतिबंध लागू किये हैं।
- रिज़र्व बैंक द्वारा लागू 30 दिवसीय मोरेटोरियम (Moratorium) के अंतर्गत 25,000 रुपए से अधिक राशि की निकासी को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
कारण
- लक्ष्मी विलास बैंक पर कार्यवाही करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कहा कि यह बैंक विगत तीन वर्षों से लगातार घाटे का सामना कर रहा है, जिससे बैंक का नेट-वर्थ प्रभावित हुआ है।
- ध्यातव्य है कि लक्ष्मी विकास बैंक को वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में 112 करोड़ रुपए और दूसरी तिमाही में 397 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
- इस प्रकार लक्ष्मी विलास बैंक अपने वित्तीय संकट से संबंधित मुद्दों को हल करने हेतु पर्याप्त पूंजी जुटाने में असमर्थ रहा है। साथ ही इस बैंक को तरलता की कमी का सामना भी करना पड़ रहा है।
- इसके अलावा बैंक द्वारा दिया गया लगभग एक-चौथाई ऋण, बैड एसेट (Bad Asset) अथवा गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के रूप में परिवर्तित हो चुका है।
- आँकड़ों के अनुसार, जून 2020 में लक्ष्मी विलास बैंक की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) कुल ऋण का 25.4 प्रतिशत हो गई थीं, जो कि जून 2019 में 17.3 प्रतिशत थीं।
- रिज़र्व बैंक की मानें तो बीते कुछ वर्षों में शासन संबंधी गंभीर मुद्दों के कारण लक्ष्मी विलास बैंक के वित्तीय प्रदर्शन में काफी गिरावट आई है।
विलय का प्रस्ताव
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने डीबीएस बैंक लिमिटेड (DBS Bank Ltd) की सहायक/अनुषंगी कंपनी डीबीएस बैंक इंडिया (DBS Bank India) के साथ लक्ष्मी विलास बैंक के विलय के प्रस्ताव का मसौदा प्रस्तुत किया है।
- रिज़र्व बैंक के अनुसार, डीबीएस बैंक इंडिया और लक्ष्मी विलास बैंक के विलय के पश्चात् दोनों बैंकों की संयुक्त बैलेंस शीट की स्थिति काफी अच्छी हो जाएगी।
- विलय के बाद दोनों बैंकों का संयुक्त पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) 12.51 प्रतिशत पर पहुँच जाएगा, जो कि वर्तमान में केवल 0.17 प्रतिशत (लक्ष्मी विलास बैंक) है।
- पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) किसी बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसे पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (CRAR) के रूप में भी जाना जाता है।
- रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि बैंकों के जमाकर्त्ताओं को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा और रिज़र्व बैंक उनके हितों की पूर्ण रक्षा करेगा।
- ज्ञात हो कि किसी भी अनिश्चितता की स्थिति में छोटे जमाकर्त्ताओं के लिये डिपॉज़िट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) भी एक विकल्प हो सकता है, जो कि रिज़र्व बैंक की एक सहायक/अनुषंगी कंपनी है और छोटे जमाकर्त्ताओं को 5 लाख रुपए तक का बीमा कवर प्रदान करती है।
भारत के वित्तीय सेक्टर का संकट
- वर्ष 2018 में IL&FS के डिफॉल्ट हो जाने के बाद से भारत के वित्तीय सेक्टर में ऐसी कई सारी घटनाएँ देखी गईं जहाँ बैंकिंग और गैर-बैंकिंग संस्थाएँ अपनी वित्तीय स्थिति कमज़ोर हो जाने अथवा तरलता की कमी के कारण डिफॉल्ट हो गईं।
- बीते वर्ष सितंबर माह में ‘पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक’ (PMC) में ऋण घोटाले के कारण बैंकिंग संकट देखने को मिला था, जिसमें एचडीआईएल (HDIL) कंपनी के प्रवर्तक भी शामिल थे, इस घोटाले की जाँच अभी भी जारी है और बैंक के पुनरुत्थान को लेकर कई प्रयास किये जा रहे हैं।
- इसी वर्ष मार्च माह में भारत में निज़ी क्षेत्र का चौथा सबसे बड़ा बैंक ‘यस बैंक’ (Yes Bank) भी संकट का सामना कर रहा था, जिससे निवेशकों के बीच डर का माहौल पैदा हो गया था।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत के कई पुरानी पीढ़ी के निजी बैंकों और बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के प्रदर्शन की निगरानी कर रहा है।
कारण
- गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की बढ़ती मात्रा, खराब वित्तीय स्थिति, ऋण से संबंधित घोटाले और शासन से संबंधित मुद्दों आदि ने भारत के बैंकिंग और वित्तीय सेक्टर में एक गंभीर संकट को जन्म दिया है।
- इसके अलावा तमाम तरह की ऋण गारंटी योजनाओं के बावजूद, ऋण की दर में काफी कम वृद्धि देखने को मिली है, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2020 में खुदरा ऋणों की वृद्धि दर केवल 10.6 प्रतिशत रही थी।
- इसके कारण भारतीय बैंकों की आय में कमी आ रही है और वित्तीय संकट का सामना करने हेतु पर्याप्त पूंजी जुटाना उनके लिये काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- यही कारण है कि बीते 15 महीनों में भारत के निजी क्षेत्र के कुछ प्रमुख बैंक और कुछ सहकारी बैंक वित्तीय संकट की चपेट में आ गए हैं।
महामारी और बैंकिंग सेक्टर
- महामारी के कारण भारत के बैंकिंग सेक्टर की चुनौतियाँ और भी गंभीर हो सकती हैं, क्योंकि इसके प्रभाव से आम लोगों और कंपनियों की वित्तीय स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित हुई है, जिसके कारण आने वाले समय में बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में और अधिक वृद्धि देखने को मिल सकती है।
- हालाँकि कई विश्लेषकों का अनुमान है कि सूचना प्रौद्योगिकी (IT), फार्मास्यूटिकल्स, FMCG और रसायन जैसे क्षेत्रों में बैंकों का NPA काफी कम रहेगा, किंतु आतिथ्य, पर्यटन और विमानन क्षेत्र में बैंकों के NPA में वृद्धि देखने को मिलेगी।
आगे की राह
- बैंकिंग सेक्टर के अधिकांश विश्लेषक इस बात पर एकमत हैं कि जब भी भारत की बैंकिंग और गैर-बैंकिंग संस्थाओं ने वित्तीय संकट का सामना किया है तो रिज़र्व बैंक ने उन्हें इस संकट से उबारने में सक्रिय भूमिका अदा की है।
- भारत के वित्तीय सेक्टर को गंभीर संकट से बचाने के लिये किसी भी प्रकार के अल्पकालिक उपाय के साथ-साथ दीर्घकालिक उपायों की भी आवश्यकता है, नीति निर्माताओं को बैंकिंग संकट के मूल कारणों पर विचार करते हुए उसे दूर करने के प्रयास करना चाहिये।